प्रेम रावत:
आजादी मनुष्य में एक स्वाभाविक गुण है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि असली आजादी कहां से आती है ? असली आजादी मनुष्य के हृदय से आती है। हालांकि हम में से बहुत से लोग अपने आप को आजाद समझते हैं लेकिन आजाद नहीं हैं, क्योंकि मनुष्य काम, क्रोध, लोभ और मोह आदि की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। वह यह भी भूल गया है कि असली आजादी हृदय के अंदर से आती है। जिस दिन मनुष्य इसे पहचानने लगेगा उस दिन वह असली आजादी का एहसास करेगा।
एक नदी को देखिये, नदी आजादी से बहती है। वह किसी से नहीं पूछती है कि उसे कहां बहना चाहिए। वह अपने आप रास्ता ढूंढ लेती है जो उसे सबसे ज्यादा पसंद है। बेशक रास्ते में उसे चट्टान मिले। चट्टान रास्ता नहीं बदलता और पानी बगल से निकल जाता है। चट्टान सोचती होगी हमने रास्ता नहीं बदला और जीत गयी। लेकिन उसे पानी की शक्ति का पता नहीं है। पानी में एक धुन है। धीरे-धीरे करके पानी चट्टान को काटता है। समय आने पर चट्टान वहां से गायब हो जाती है और पानी उसी रास्ते से बहने लगता है। तमाम घाटियां पानी की इस शक्ति का गवाह हैं। बहुत ही नम्रता के साथ पानी अपना प्रयास नहीं छोड़ता। वह बहता रहता है और धीरे-धीरे चट्टानों को काटता रहता है। आखिर में कठोर चट्टान को विनम्र, नरम पानी के आगे झुकना पड़ता है।
मनुष्य विनम्रता और इंसानियत का अभ्यास करके और अपने हृदय में मौजूद शांति का अनुभव करके जीवन को सफल कर सकता है। क्योंकि जिसका अभ्यास हम अपने जीवन में सबसे अधिक करते हैं, उसमें माहिर हो जाते हैं। यदि हम क्रोध का अभ्यास करेंगे तो उसमें माहिर हो जायेंगे। जब इसका अभ्यास होगा तो सोचना-विचारना खत्म हो जाता है। उसी तरह इंसानियत का अभ्यास करेंगे तो उसमें माहिर हो जायेंगे। सच का अभ्यास करेंगे तो सच में माहिर हो जायेंगे और अपने अंदर का जो प्रेम है उसे पाने का अभ्यास करेंगे तो आप उसमें माहिर हो जायेंगे। आप इस पर विचार करिये। मनुष्य बनिए। क्योंकि आप मनुष्य हैं। आप इंसानियत को समझना शुरू कीजिये। जिस दिन मनुष्य की इंसानियत खत्म हो गयी, इंसान इंसान नहीं रह जायेगा। इसलिए इंसानियत को समझिये। यह जिंदगी आप को एक उपहार के रूप में मिली है। इसे स्वीकार कीजिये और अपने जीवन को सफल बनाइये।
क्योंकि आपके जीवन की यात्रा आपकी पहली स्वांस से शुरू हुई थी, तब से इस स्वांस का आना और जाना रूका नहीं है। यह जीवन भर आप के साथ रहेगा। आपके आखिरी पल तक। आप जानते हैं कि यह स्वांस आपके अंदर आता है, इस पर ध्यान दीजिए। जब आप अपनी इस आयी हुई स्वांस को अपने जीवन में महसूस करते हैं, यह आराम, चैन, संतुष्टि लाता है। आप आभारी रहें कि आप जीवित हैं। इस अस्तित्व की सराहना कीजिए।
मनुष्य अपने जीवन में सदैव यही आशा करता है कि उसका जीवन सुखमय हो। उसके जीवन में कभी दुःख न आये। परंतु सच तो यह है कि जीवन में सुख-दुःख जीवन भर चलता रहता है। जब दुःख आता है तो मनुष्य निराश हो जाता है, जब सुख आता है तो उसमें इतना खो जाता है कि उसे यह भी ध्यान नहीं रहता कि दुःख दोबारा भी आ सकता है क्यांकि वह सुख सिर्फ कुछ पल के लिये ही होता है। इसी सुख-दुःख के चक्कर में जीवन पूरा हो जाता है।
जीवन है तो समस्याएं भी हैं। मनुष्य इन समस्याओं से बच नहीं सकता। क्योंकि ये सभी समस्याएं हमारी ही बनाई हुई हैं। समस्याओं का बोझ अमीर-गरीब सबके लिए बराबर है। ये बात अलग है कि ये समस्याएं प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक नया रूप ले लेती हैं, जिससे सभी को दुःख पहुंचता है और दुःखों को झेलते-झेलते मनुष्य में निराशा आ जाती है।
परंतु एक सच्चाई यह है कि जीवन में निराशा है तो आशा भी है! आशा यह है कि जैसे सूर्य उदय होता है, अस्त होता है और एक नई सुबह आती है, ठीक उसी प्रकार मेरा भी हर दिन आशाओं से भरा होना चाहिए। जो कुछ भी मैंने कल किया, जो भी मेरी कल समस्याएं थी, वह सब आज मेरे लिए बदल सकती हैं। मैं अपने जीवन में अपनी असली आशा को पाऊं।
क्योंकि बनाने वाले ने हमको यह शरीर दिया है, यह स्वांस दिया है, जो अनमोल है। परंतु हम दुनिया के और चक्करों में फंस जाते हैं और जो सच्चाई हमारे हृदय में स्थित है उससे अंजान रह जाते हैं। हम सोचते हैं कि नौकरी, परिवार, जिम्मेदारियां हैं — यही सब कुछ हमारा जीवन है। लेकिन यह जीवन नहीं है। इस जीवन की अगर कोई कड़ी है तो वह है एक-एक स्वांस जो अंदर आता है और जाता है। जिस दिन इस स्वांस का आना-जाना बंद हो जाएगा, आपका मान-सम्मान, आपके रिश्ते-नाते, आपकी नौकरी, आपका धन-वैभव और वो सारी चीजें, जिनको आप अपना जीवन समझते हैं, वे सब समाप्त हो जाएंगी।
अगर जीवन का कुछ लक्ष्य होना चाहिए, तो वो यह है कि मैं उस चीज को जान लूं, जिसके अभाव में मैं कुछ नहीं हूं और जिसके होने से मैं सब कुछ हूं। अगर मैं उस चीज को नहीं जानता हूं तो मेरा जीवन अधूरा है। क्योंकि इस संसार से जाना सबको है! कब जाना है, यह किसी को नहीं मालूम। परंतु कम से कम कुछ तो अच्छा करें कि इस जीवन में भी आशा का दीपक जल उठे, क्योंकि यह आपका जीवन है। और यह तभी संभव है जब ऐसा मार्गदर्शक मिले जो हमारे अंधेरे जीवन में प्रकाश लेकर आये और हमारी समस्त निराशाओं को आशाओं में बदल दे।
- प्रेम रावत
प्रेम रावत:
इस संसार में मनुष्य का जन्म होता है और एक दिन उसे इस संसार से जाना है। यह कोई तर्क या विचार-विमर्श करने की बात नहीं है। चाहे कोई कितना ही ज्ञानी हो या अज्ञानी हो, सबको यह बात मालूम है। ज्ञानी को भी जाना है और अज्ञानी को भी जाना है; अमीर को भी जाना है, गरीब को भी जाना है; शिक्षित को भी जाना है, अनपढ़ को भी जाना है। इस बात को कोई नहीं बदल सकता। जब से इस सृष्टि की रचना हुई है, तब से यह नियम लागू है कि जो इस संसार में आया है, वह एक न एक दिन संसार से जायेगा।
जब इस संसार से सबको जाना ही है तो फिर मनुष्य के लिए क्या शेष रह गया ? कौन-सी चीज बाकी रह गयी ? एक चीज है, जिसे कहते हैं 'जिंदगी'! यह जिंदगी क्या है ? एक तरफ है जन्म और दूसरी तरफ है मरण! इन दोनों के बीच का जो समय है, वह है जिंदगी! इस जिंदगी में — जन्म और मरण के बीच में, मनुष्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्या है ? जीवन में कितनी ही चीजें घटित होती रहती हैं, पर सबसे बड़ी बात है कि उसका स्वांस निरंतर चलता रहता है। जब तक यह स्वांस चलता रहता है, तब तक मनुष्य जीवित है। जब स्वांस रुक जाता है, तब उस मनुष्य के लिए सबकुछ समाप्त हो जाता है। लोग परस्पर विभिन्नताओं को देखते हैं, परन्तु इस संसार में हर एक मनुष्य का जन्म एक समान तरीके से ही होता है। सब एक ही तरह से इस संसार में आते हैं और एक ही तरह से इस संसार से जाते हैं।
मूल बात है इस स्वांस की! यह स्वांस कितना बड़ा आशीर्वाद है, हमलोग यह भूल जाते हैं! कितनी कृपा मनुष्य पर हुई है कि उसे यह जीवन मिला, यह शरीर मिला और हर पल उसके अंदर यह स्वांस अपने आप चलता है। जीवन की यही पहचान है कि मनुष्य का स्वांस चल रहा है या नहीं ? यह स्वांस भगवान की कृपा से अपने आप आता है और अपने आप जाता है। अपने पीछे वह एक ऐसा समय छोड़ जाता है, जो कभी दोबारा नहीं आएगा। इसका महत्व अंतिम समय में पता चलता है, जब एक-एक स्वांस लेने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
हममें से कितने व्यक्ति हैं, जो इस पर विचार करते हैं। एक-एक दिन करके धीरे-धीरे सम्पूर्ण जीवन व्यतीत हो जाता है।
क्या हम जीवित होने के महत्व को समझ पाते हैं ? क्या हमें मालूम है कि हमारी एक-एक स्वांस में अपार आनंद भरा हुआ है और हम उसे जीते-जी प्राप्त कर सकते हैं ?
हमारी जिंदगी में वह समय कब आएगा, जब हम अपने हृदय का प्याला पूरी तरह से भर सकेंगे ? क्योंकि यह जीवन तो हर क्षण बीत रहा है, पर आनंद पाने की हमारी कामना अभी भी ज्यों की त्यों बनी हुई है।
प्रेम रावत:
काल करे सो आज करि, आज करे सो अब।
पल में परलय होयगी, बहुरि करेगा कब।।
कबीरदास की ये पक्तियां मानव प्रकृति की ओर इशारा करती हैं। क्योंकि मनुष्य की यह आदत है कि वह कुछ कार्यों को तो तुरन्त कर लेता है और कुछ को अगले दिन पर छोड़ देता है। प्रश्न यह है कि वह किस प्रकार के कार्यों को शीघ्र कर लेता है और किन्हें भविष्य के लिए छोड़ देता है। देखा यह गया है कि अधिकांशतः वही कार्य कल पर छोड़े जाते हैं जो बाहरी रूप से देखने पर इतने महत्वपूर्ण नहीं लगते। मनुष्य अपने दिन की सफलता का मूल्यांकन भौतिक उपलब्धियों के आधार पर करता है कि उसने क्या-क्या हासिल किया। परंतु क्या वह थोड़ी देर रुककर कभी यह भी सोचता है कि जिस जीवन को वह भौतिक सुखों को पाने की लालसा में दिन-रात लगा रहा है, वह जीवन उसे क्यों मिला है ? उसके जीवन का उद्देश्य क्या है ?
एक तरफ सारी दुनिया की जिम्मेदारियां हैं और एक तरफ है आपका जीवन! जो आपको दिया गया है जो आपके लिए है। यदि आप इस बात को स्वीकार करते हैं तो प्रश्न उठता है कि जो चीज आपको मिली है क्या उसे भी संभालने की कोशिश आज तक की गई या नहीं ? आज के दिन जो अनमोल चीज आपको मिली है, उसको संवारा या नहीं संवारा ?
जहां पानी की कमी नहीं होती वहां पानी को लोग बर्बाद भी करते हैं, पर जहां पानी नहीं होता है वहां उस पानी के नीचे भी एक डिब्बा रख देते हैं ताकि वह पानी खराब न हो। इसी तरह आपका स्वांस है। एक दिन आया था, जो कि पहला स्वांस था। एक दिन जायेगा, वह आखिरी स्वांस होगा और बीच में है आज का दिन! इसी आज के दिन को आप दुनिया के सभी कार्यों को संवारने में लगा देते हैं लेकिन जो अनमोल स्वांस मिला है, उस पर ध्यान नहीं जाता है। क्योंकि हम उसी दिन को बढ़िया समझते हैं कि जिसमें बिजनेस में वृद्धि हो, अच्छी नौकरी मिल जाए आदि। परंतु सबसे बढ़िया दिन तो वह होगा, जिस दिन आप कहेंगे, “आज के दिन मुझे यह जीवन मिला, मेरा स्वांस चल रहा है, मैं जीवित हूं। मेरे पास यह मौका है, मैं इसे खोना नहीं चाहता। आज के दिन मुझे वह बात समझ में आयी, जिसकी चर्चा सारे संत-महात्मा अपने जीवन भर करते आये हैं।”
समय के सद्गुरु की कृपा से हम इस स्वांस की कीमत को समझ सकते हैं। जिस दिन यह बात समझ जाएंगे, उस दिन से यह जीवन व्यर्थ नहीं जाएगा। उस दिन तुम भी अपना हृदय रूपी डिब्बा उस नल के नीचे रख दोगे। जो पानी व्यर्थ बह रहा था, वह बच जाएगा। जिंदगी संवर जाएगी। वह चीज मिल जाएगी जिससे हम अपने जीवन को पूरा कर सकें। हर दिन आभारी हृदय से, चैन और आनंद से कह सकेंगे, “हे बनाने वाले, तेरा लाख-लाख शुक्र है।” फिर यह कहेंगे कि आज का दिन ही मेरे जीवन का पहला दिन है। कल अगर फिर यह दिन आया तो मैं इसे बेकार नहीं जाने दूंगा। इसी तरीके से हमें हर दिन का स्वागत करना होगा। आने वाले कल के लिए नहीं, न गुजरे हुए कल के लिए, बल्कि आज के लिए और सदा के लिए! क्योंकि इस जीवन में जितने भी दिन आएंगे, वे सब ‘आज’ के रूप में ही आएंगे। कल, परसों, नितरसों करके नहीं आएंगे। 'आज' में ही आनंद छिपा है।
अभी हमारे पास समय है कि हम कल को संवारने के बजाय आज पर ध्यान दें। आज के दिन में अपने हृदय को शांति और आनंद से भर लें। कल आए न आये, मुझे परवाह नहीं है। यदि कल आएगा तो मैं उसका भी स्वागत आज की ही तरह करूंगा ताकि मेरे हृदय का प्याला दिन-प्रतिदिन भरता चला जाए और मेरा जीवन सफल हो।
दो मुसाफिर जा रहे थे। उनमें से एक मुसाफिर चोर था। चोर ने मुसाफिर से पूछा कि “भाई, तुम कहां जा रहे हो ?’’
उस मुसाफिर ने कहा, “मैं धन कमाने के लिए विदेश गया था अब अपनी सारी कमाई लेकर अपने घर जा रहा हूँ।’’
चोर ने कहा “मैं भी वहीं जा रहा हूं, दोनों साथ रहेंगे तो ठीक रहेगा।’’
मुसाफिर ने कहा “अच्छा है भाई। एक से भले दो!’’
चलते-चलते रात हो गयी दोनों एक सराय में ठहरे। जैसे ही वह मुसाफिर खाना खाने नीचे गया, चोर ने उसके सामान की,बिस्तर की, खूब तलाशी ली परंतु उसे कुछ नहीं मिला ।
चोर सोचता रहा, “सारी जगह ढूंढ लिया धन कहीं नहीं मिला आखिर इसने धन छुपाया कहां ? कहीं यह झूठ तो नहीं बोल रहा।’’
अगली सुबह वे दोनों आगे की यात्रा पर निकल पड़े।
चोर ने मुसाफिर से पूछा, "क्या तुमने वाकई धन कमाया है।"
मुसाफिर बोला, "हां, बहुत सारा धन कमाया है। इतना कि अब मुझे काम करने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।"
रास्ता लम्बा था, रात हो गई। इस बार भी उन्हें सराय में ठहरना पड़ा। वहां भी चोर ने सब जगह तलाशी ली। इस बार भी उसके हाथ कुछ नहीं लगा।
अगले दिन गांव पहुंचने के बाद उस चोर ने मुसाफिर से कहा, “अब तुम अपने घर पहुंच गए हो और सुरक्षित भी हो। मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ। दरअसल, मैंएक चोर हूं। जब तुम नीचे खाना खाने के लिए जाते थे तो मैं धन के लालच में तुम्हारे समान की तलाशी लेता था। दोनों रात मैंने तुम्हारे सामान की तलाशी ली किन्तु मुझे कुछ नहीं मिला। तुमने कुछ कमाया भी है या झूठ बोल रहे हो ?"
मुसाफिर बोला – "मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ।"
उसने चोर को अपना कमाया हुआ धन दिखाया और कहा, “तुमने हर जगह मेरे धन को ढूंढा, मेरे बक्से, मेरे बिस्तर, मेरे तकिये के नीचे ढूंढ़ा, किन्तु तुमने इसे अपने तकिये के नीचे नहीं ढूंढा।”
चोर ने हैरानी से पूछा, “अपने तकिये के नीचे!”
मुसाफिर बोला “तुमने इस धन को पाने के लिए हर जगह ढूंढा किन्तु वहां नहीं ढूँढा जहां यह था, तुम्हारे खुद अपने तकिये के नीचे। मुझे मालूम था तुम सब जगह ढूंढोगे परन्तु अपने तकिये के नीचे कभी नहीं ढूंढ़ोगे, इसलिए तुमसे नजर बचाकर इस धन को मैं तुम्हारे तकिये के नीचे रख देता था।”
चोर ने निराश होते हुए कहा, “काश! मैंने अपने तकिये के नीचे देखा होता।’’
ठीक उसी प्रकार वह परम सत्ता, वह ईश्वर हमारे अंदर मौजूद है, किन्तु लोग उसे खोजने के लिए इधर-उधर भटकते हैं, जो बाहर ढूंढने से नहीं मिलेगा। उसके लिए भटकने की जरूरत नहीं है।
एक कहानी है, एक आदमी राजा के दरबार में नौकरी मांगने के लिये आया। राजा ने उसको नौकरी दे दी। वह राजा की खूब सेवा करता था। राजा को भी वह बहुत प्रिय था। राजा ने उसके काम और उसकी ईमानदारी को देखकर उसे अपने राज्य का सेनापति बना दिया। जिससे दरबार में सब उससे ईर्ष्या करने लगे और उसे सेनापति पद से हटाने की कोशिश में लग गए। लोगों ने उसकी जासूसी करनी शुरू कर दी ताकि उसे राजा के सामने नीचे दिखा सकें। लोगों ने देखा कि हर रोज सेनापति दरबार खत्म होने के बाद एक बहुत ही सुनसान जगह पर बनी एक कोठरी में जाकर दरवाजा बंद करके घंटों-घंटों बिताता था।
लोगों ने देखा तो उन्हें लगा कि यह बात राजा को बतानी चाहिए, फिर राजा इसे नौकरी से निकाल देंगे।
लोग राजा के पास गये। राजा से शिकायत की कि "महाराज, सेनापतिहर रोज दरबार खत्म होने के बाद एक सुनसान जगह पर कमरे में घंटों-घंटों बिताते हैं। पता नहीं वह क्या करते हैं ?"
राजा को धीरे-धीरे शक होने लगा कि कुछ गड़बड़ जरूर है!
एक दिन राजा उसके पीछे-पीछे गया और देखा कि सचमुच जब सेनापति दरबार से निकला तो वह उसी कमरे में गया और काफी घंटों के बाद कमरे से बाहर आया ।
दूसरे दिन राजा ने फिर उसका पीछा किया। इस बार जब वह कमरे में चला गया तो राजा ने दरवाजा खटखटाया। उसने दरवाजा खोला और राजा को वहां देख हैरान हो गया।
उसने कहा, "महाराज, आप यहां क्या कर रहे हैं ? यह जगह आपके लिए उचित नहीं है।"
राजा ने कहा, "मैं देखना चाहता हूं कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?"
राजा अंदर गया तो देखा कि एक बड़ा बक्सा कमरे के बीच में रखा हुआ है।
राजा को शक हुआ कि हो सकता है इसमें चोरी का सामान हो।
राजा ने कहा, "इस बक्से को खोलो!"
सेनापति ने कहा, "महाराज, इस बक्से में ऐसी कोई चीज नहीं है जो आपके देखने योग्य हो।"
अब राजा का शक और बढ़ गया। उसने गुस्से में कहा "इस बक्से को खोलो"।
सेनापति ने बक्सा खोल दिया।
बक्से में पुराने-मैले कपड़े देखकर राजा ने पूछा, "ये क्या है ?"
क्योंकि राजा ने सोचा था कि उस बक्से में सोने-चांदी की कोई चीज मिलेगी, लेकिन फटे-पुराने, मैले कपड़े उसमें रखे हुए थे।
तब सेनापति ने कहा, "महाराज, जब आपके दरबार से मैं आता हूं, मैं जानता हूं कि आपकी ही कृपा से जहां मैं हूं, मैं हूं। जो मैं आज हूं, वह आपकी की ही दया से हूं, आप ही की कृपा से हूं। जब मैं आपके दरबार में आया था तो इन कपड़ों को पहनकर आया था। मैं हर रोज इन कपड़ों को पहनता हूं और अपने को याद दिलाता हूं कि मैं कौन हूं। अगर आपकी दया न हो, आपकी कृपा न हो तो मेरा यही हाल होगा। क्योंकि मैं वाकई में यह हूं। जहां आपने पहुंचा दिया, मैं वहां नहीं हूं। वह तो आपकी दया है, आपकी कृपा है। आपकी कृपा और दया का मुझको हमेशा पात्र बने रहना है। इस बात को याद दिलाने के लिए मैं इस कमरे में आता हूं।"
सेनापति की बात सुनकर राजा की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए और खुश होकर उन्होंने उसे अपने राज्य का मंत्री घोषित कर दिया।
समझने की बात है कि हम भी बिना ज्ञान के कहां थे ? कहां भटक रहे थे ? किस-किस बात को हमने सोच रखा था ? जो बातें दुनिया के लोगों ने हमको बतायीं, उन्हीं बातों को लेकर के हम बैठे हुए हैं।
हममें से कितने व्यक्ति हैं जो इस पर विचार करते हैं ? एक-एक दिन करके धीरे-धीरे सम्पूर्ण जीवन व्यतीत हो जाता है। क्या हम जीवित होने के महत्व को समझ पाते हैं ? क्या हमें मालूम है कि हमारी एक-एक स्वांस में अपार आनंद भरा हुआ है और हम उसे जीते-जी प्राप्त कर सकते हैं ? हमारी जिंदगी में वह समय कब आएगा, जब हम अपने हृदय का प्याला पूरी तरह से भर सकेंगे ? क्योंकि यह जीवन तो हर क्षण बीत रहा है।
- श्री प्रेम रावत