(प्रेम रावत) जो हम चाहते हैं और जो असलियत है, इसमें विभाजन क्यों है ? जो हम चाहते हैं और असलियत जो है, उसमें विभाजन क्यों ये है ? वो दोनों चीज़ें अलग-अलग क्यों हैं ?
तो सुनिए, ध्यान से सुनिए।
हम, वो जो शक्ति है जो सबके ह्रदय में विराजमान है, जो हर एक कण-कण में विराजमान है, जो रस्सी जब जली हुई नहीं है तो उसमें भी विराजमान है और जब वो रस्सी जलके राख हो जाए तब भी वो उस रस्सी की राख में विराजमान है। तुममे विराजमान है, और जब तुम इस संसार से चले जाओगे, तुम्हारा शरीर काम नहीं करेगा फिर भी वो तुम्हारे शरीर में विराजमान है । और जब तुम्हारा शरीर जला दिया जाएगा तो जो तुम्हारी राख होगी वो उसमें भी विराजमान है। और जब तुम्हारी राख को बहा दिया जाएगा और जब तुम्हारी राख पानी से मिल जाएगी तो उसमें भी विराजमान है, क्योंकि वो पानी में विराजमान है।
अगर तुमको गाढ़ दिया गया और तुम सड़ गए तो जो तुम्हारा सड़ा हुआ हिस्सा है, वो उसमें भी विराजमान है। और जिस मिट्टी से तुम बने, वो उसमें पहले ही विराजमान था। और जब उस मिट्टी से तुम बने तो वो अब तुममें विराजमान है, और ऐसा कभी होगा नहीं कि तुम उससे कभी जुदा हो जाओ, क्योंकि तुम हो नहीं सकते।
परन्तु वो तब भी था जब तुम, तुम नहीं थे। वो तब भी था जब तुम हो और वो तब भी रहेगा जब तुम नहीं रहोगे। तीनों चीज़ें आ गयी न इस में?था, है, रहेगा, और तुम नहीं।
तुम क्या हो? अपनी याददाश्त हो, पहचान हो। कौन कौन है, कौन क्या है, क्या नाम है, ये सारी चीज़ें, अगर ये सारी चीज़ें तुममें से निकल गई तो कौन क्या है, क्या, कुछ समझ में नहीं आएगा। तो जब ये है, तो फिर चक्कर क्या है ? मतलब जब ऐसा है तो सबकी चैन कि बंसी बजनी छानिये। नहीं ?
सबकी चैन कि बंसी... कहाँ से आया ये गुस्सा, कहाँ से आया ये दुःख? कहाँ से आई ये सारी चीज़ें ? जानना, न जानना, इसका तो सवाल... जब वो है, और रहेगा, और उसको तुम निकल नहीं सकते। उसको ये नहीं कह सकते "यहाँ मत आना।" तो फिर ये सारा चक्कर क्या है ?
जिस-जिस चीज़ की तुम कल्पना करते हो ये तुम्हारी सिर्फ खयालों की दुनिया में है। सिर्फ। और वो इस ख़याल की दुनिया से अलग है। इसी लिए कहा है, इसको तुम अपने खयालों से नहीं पकड़ सकते। खयालों में नहीं है वो।
कण-कण में है, खयालों में नहीं है। कण-कण में है, विचारों में नहीं है। कण-कण में है, और तुम्हारे ह्रदय में है, और ह्रदय में तुम इसका अनुभव कर सकते हो।
ये है समझने की चीज़, ये है जानने की चीज़, ये है पहचाने की चीज़।
प्रेम रावत
ज्ञान के लिए तुमको पैसे देने की ज़रुरत नहीं है, पर जितना ध्यान तुम ज्ञान की तरफ नहीं दोगे, उसकी जो प्राइस तुम चुका रहे हो, इसकी कीमत जो तुम चुका रहे हो, वो अपना समय बर्बाद करके चुका रहे हो। खुद का ही समय बर्बाद कर रहे हो। और मैं नहीं चाहता कि तुम्हारा समय बर्बाद हो। "मानुष जन्म अनमोल रे, माटी में न रोल रे अब तो मिला है, फिर न मिलेगा कभी नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं रे।" जो असली समझ है, जो असली मौका है, इसको मत छोड़ो। तुम्हारे आनंद का सवाल है। तुम्हारे जीवन में आनंद ही आनंद होना चाहिए, और मैं तो कहता हूँ कि उस समय भी आनंद होना चाहिए जब विपरीत हवा बह रही हो, क्योंकि बहेगी। अगर तुम्हारे साथ बहेगी तो विपरीत भी बहेगी। और ये एक साधन है, कि चाहे विपरीत हवा भी बह रही हो, तुम्हारा ह्रदय आनंद में गद-गद रह सकता है।
(होस्ट भाग्यश्री) स्वयं की आवाज़ सिर्फ स्वयं के लिए नहीं, पर लोगों का भी दृष्टिकोण बदल सकती है। जब हम असली में अपनी आवाज़, अपने चेतना जगाएं। तो चेतना तो अन्दरूनी बात होती है। मतलब लोग मैडिटेशन भी करते हैं, कहीं हिमालय में जाकर बैठ जाते हैं, समाधी लेते हैं। तो अंदर की चेतना एक इंसान कैसे जगाए ?
(प्रेम रावत) ये तो हम...देखिये, हर एक चीज़ कर ट्रेंड होता है, फैशन बन जाता है। लोग कहते हैं, "अजी, मैडिटेशन का ट्रेंड बन गया।" बैठे हुए हैं... कबीर दास जी ने क्या कहा?
"मन तो कहीं और दिया, तन साधुन के संग, कहैं कबीर कोरी गजी, कैसे लागै रंग?" हैं ? "मेरेको किस, किसकी SMS आई है ?" मन तो है SMS में। मन तो है इन चीज़ों में।
"मन के बहुत तरंग हैं, छीन-छीन बदले सोय, एकै रंग में जो रहे, ऐसा बिरला कोय?" एक ही रंग में जो रह सकता है। बदलते रहते हैं। और मनुष्य हैं, वो लगे रहते हैं।
असली बात तो ये है कि आपके अंदर एक फैशन है। उस फैशन को कहते हैं "ज़िन्दगी", उस फैशन को कहते हैं "जीना", और वो है प्रकृति का सबसे बढ़िया फैशन। और वो फैशन चल रहा है। उस फैशन को अपनाओ अपने जीवन को सफल बनाओ। सिर्फ फार्मूला से नहीं, हृदय से।
प्यार कैसे होता है? ह्रदय से होता है। वैसे तो वो कह सकता है, "मैंने उसको अंगूठी दे दी, मैंने उसको घड़ी दे दी, मने उसको टाई दे दी, मैंने उसको चॉकलेट दे दिए, मैंने... मेरेको उससे प्यार है!"
(भाग्यश्री) ये नया किस्म का प्यार है न ?
(प्रेम रावत) हाँ, यही है दुनियाँ का प्यार। चॉकलेट दे दो, ये कर दो, वो कर दो, परन्तु इससे कुछ नहीं होना है। प्यार होता है, ह्रदय से। वो असली प्यार है, वो सच्चा प्यार है।
वो सच्चा प्यार है। और सच्चा प्यार परमानेंट नहीं, जब तक है, तब तक है। प्यार में जबरदस्ती नहीं होती है।
अब लोग लिखते हैं न, हमको चिट्ठी लिखते हैं। किसी ने लिखा कि, "उससे मेरेको प्यार था,और वो छोड़ कर किसी और लड़की के पास चले गया।" नहीं था। नहीं था, इसी लिए चले गया।
तुम अपने जीवन के अंदर उसको समझो कि असली प्यार क्या होता है। असली मुहब्बत क्या होती है। किसके साथ करोगे असली मुहब्बत? एक है, जो तुमको छोड़ने के लिए तैयार नहीं है।
आखरी दम तक तुमको नहीं छोड़ेगा। तो अगर मुहब्बत करनी है, तो ऐसे से मुहब्बत करो। ऐसे से मुहब्बत करो। ये है असली मुहब्बत।
प्रेम रावत
दुःख का आना और दुःख का जाना इन दो चीज़ों में कोई सम्बन्ध है?
क्योंकि बैठे-बैठे सोचें रहे हो तुम कि, "दुःख चले जाएगा, तभी तो सुख आएगा।"
"और जब सुख आ गया तो दुःख की क्या ज़रूरत है? दुःख चले जाएगा अपने आप ही।"
नहीं?
क्यों जी?
और अगर मैं तुमको कहूँ, अगर मैं तुमको कहूँ कि सुख का आना और दुःख का जाना इसमें कोई कनेक्शन नहीं है।
सारा माहौल दुखी हो सकता है फिर भी तुम सुखी हो सकते हो। दुःख की बात नहीं कही। सुख की बात कही।
तुम समझते हो कि तुम्हारे जीवन के अंदर जो परिस्थितियाँ हैं अगर ये बदल जाएं, तो तुम सुखी हो जाओगे।
ये नहीं होता है। ये नहीं होता है।
तो क्या ये संभव है कि जो भी दुःख की परिस्थिति हो उस परिस्थिति में होने के बावजूद भी तुम सुखी हो सकते हो?
बहुत बड़ी बात हो गई। बहुत बड़ी बात के लिए हाँ कर दिया तुमने। बहुत ही बड़ी बात के लिए हाँ कर दिया।
अब अगर इसके बारे में थोड़ा भी सोचें तो ये सोंचना पड़ेगा, कि सुखी होना कितना सुलभ है। कितना सरल है।
मुझे ये सारी चीज़ें बदलने की ज़रूरत नहीं है। मुझे ये सारी चीज़ें बदलने की ज़रूरत नहीं है।
अर्थात:रात्रि में है अँधेरा क्योंकि सूरज ढल गया है। बत्तियां अभी ऑन नहीं हैं, चालू नहीं हैं। अँधेरा है।
अगर जेब में फ़्लैश-लाइट है, टोर्च है, तो उसको निकालो, चालू करो, और उजाला पाओ बैठ करके तुम भगवन सूर्य को कहो, "जल्दी से उदय हो जाइये, जल्दी से उदय हो जाइये, जल्दी से उदय हो जाइये", उससे कुछ नहीं होगा।
यही हमारी चूक रहती है।
जब भगवन से हम प्रार्थना करते हैं, तो क्या प्रार्थना करते हैं?
"हमारे दुखों को हरो।"
ये नहीं कि, "सुख को हमारे पास लाओ।" क्योंकि सुख का झील, सुख का कुआं, तुम्हारे अंदर हमेशा, हमेशा है।
तुमको कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है, तुमको किसी से लाने की ज़रूरत नहीं है, तुमको किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है।
वह तुम्हारे अंदर है।
प्रेम रावत
दुनियादारी की जो बातें हैं, उनमे लोग ऐसा उलझ जाते हैं कि पूछो मत।
यहाँ कोई ऐसा नहीं है बैठा हुआ, जिसको यह नहीं मालूम हो कि एक दिन जाना है। और कितने दिन तुम यहाँ रहोगे। ये जो तुम्हारा समय है, ये कितना लम्बा है?
सोंचने की बात है। सोंचना इसके बारे में। अपने आप को बिना सोंचे जवाब मत देना।
सोंचना।
जो तुम्हारा यहां समय है, जबसे तुम पैदा हुए और जिस दिन तुमको जाना है, वह समय कितना लम्बा है ? तुमको तो लम्बा लगता है। तुमको तो 24 घाटे लम्बे लगते हैं। तुमको एक दिन ज़्यादा लम्बा लगता है।
दो दिन...कोई कह दे, "हाँ चार दिन के बाद आएगा।" "चार दिन के बाद? अरे यह तो बहुत समय हो गया।"
हर एक चीज़ तुमको तुरंत चाहिए तुरंत, तुरंत, तुरंत, तुरंत, तुरंत। हर एक चीज़।
लोगों को 15 घाटे हवाई जहाज में बैठना पड़ता है, लोगों को अच्छा नहीं लगता। वो चाहते हैं कि हवाई जहाज उड़े और नीचे उतरे। बस, पहुँच जाएं, तुरंत। बस में, तुरंत। और एक घंटे की यात्रा है, दो घंटे की यात्रा है, तीन घंटे की यात्रा है, चार घंटे की यात्रा है, ये तुमको बड़ी लगती है। बहुत ज़्यादा है। पर तुम्हारी यात्रा, तुम्हारी। बस की नहीं, टैक्सी की नहीं, स्कूटर की नहीं, हवाई जहाज की नहीं, पानी के जहाज की नहीं, तुम्हारी यात्रा कितनी लम्बी है ?
अगर किसी से कहा जाए कि, "पछत्तर साल के बाद मिलेंगे", तुमको नहीं लगेगा कि पछत्तर साल तो बहुत होते हैं? पछत्तर साल के बारे में तो मच्छर सोंच भी नहीं सकता है कि वो कितना समय है।
पर जो तुमको लगता है कि अभी तुम्हारे पास समय है, ये माया का प्रकोप है। क्योंकि यह है नहीं। और उससे पहले कि तुम संभल पाओ, जाने का समय हो जाएगा। कोई नहीं रहेगा।
सब कुछ बदलेगा।
तुम बदलाव नहीं चाहते हो पर बदलाव होता है तुम्हारे जीवन में, और एक ऐसा बदलाव होगा तुम्हारे जीवन में, ऐसा बदलाव होगा, ऐसा बदलाव होगा, जिसके बारे में तुम सोंच भी नहीं सकते।
तो मैं ये सब कुछ क्यों कह रहा हूँ ? मैं इस लिए कह रहा हूँ, कि, "तुमको अपने जीवन में सबसे पहली चीज़ क्या होनी चाहिए", इसको समझना बहुत ज़रूरी है।
क्यों ? क्यों ज़रूरी है ?
इस लिए ज़रूरी है, कि जितना समय तुम चाहते हो, या जितना समय तुम सोंचते हो कि तुम्हारे पास है, उतना समय तुम्हारे पास नहीं है। तो जब समय नहीं है तो सबसे पहले वो करना चाहिए जो सबसे ज़रूरी है। नहीं ?
"मानुष जनम अनमोल रे, माटी में न रोल रे अब तो मिला है, फिर न मिलेगा, कभी नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं रे।"
प्यार किससे होना चाहिए?
प्यार उससे होना चाहिए जो तुम्हारा प्यार तुमको दे सके। ऐसा प्यार, ऐसा प्यार कि जिसकी हद नहीं।
और वो कहां है? वो भी तुम्हारे अंदर है।
सबसे, वो चीज जो तुमको सबसे बड़ा सुख दे सके, वो भी तुम्हारे अंदर है।
शांति तुम्हारे अंदर है।
वो, जिसने सारी सृष्टि की रचना की है, और संचालन करता है, वो भी तुम्हारे अंदर है।
जो सचमुच में दया और करुणा का सागर है, वो भी तुम्हारे अंदर है।
जो तुमसे सचमुच में प्यार करता है, वो भी तुम्हारे अंदर है।
जिसका रूप ही प्रकाश है, वो भी तुम्हारे अंदर है।
जिसको जानने से कोई संशय नहीं रहता, वो भी तुम्हारे अंदर है।
इसलिए, अपने आप को जानना बहुत जरूरी है। क्योंकि अपने आप को नहीं जानते हो, तो तुम दुख में फंसे रहोगे, फंसे रहोगे, फंसे रहोगे, फंसे रहोगे।