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परिपूर्णता का अनुभव 00:22:22 परिपूर्णता का अनुभव Video Duration : 00:22:22 साथ साथ, न० : 9, श्रृंखला, श्री प्रेम रावत द्वारा

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जो आप हैं, जैसे आप हैं, इस पृथ्वी पर ऐसा न कभी कोई था और न कभी कोई होगा। आप जिस प्रकार रोते हैं वह आपका रोना है। जब आप हंसते हैं तो जिस प्रकार आप हंसते हैं, वह आपका हंसना है। ये जो सिग्नेचर आप हैं यह फिर कभी नहीं होगा। आप जैसे बहुत हैं, पर आप जैसा कोई नहीं है।

(प्रेम रावत) हमारे सभी श्रोताओं को हमारा नमस्कार। काफी दिनों के बाद यह मौका मिला है। मैं काफी सारे देशों में भ्रमण करके आ रहा हूं। और यह मौका मिला है मेरे को कि आपके साथ बात करूं, कुछ आपके आगे एक बात रखूं। और सबसे बड़ी बात तो यही है कि जो कुछ यह है, जो कुछ हो रहा है, आपको अपनी जिंदगी कुछ इस तरीके से जीनी है कि यह हो रहा है या नहीं हो रहा है, इसका कोई महत्व आपके ऊपर ज्यादा नहीं होना चाहिए। क्योंकि सबसे बड़ी बात तो यह है कि आप जीवित हैं।

तो भगवान राम की कहानी आप सब लोगों ने सुनी है। उसमें काफी सारे कैरेक्टर थे, पर मेन कैरेक्टर उनको देखा जाये, मेन कैरेक्टर तो एक तरफ तो रावण है और एक तरफ है हनुमान। अब देखिए, रावण क्या बनना चाहता है ? रावण परफेक्ट बनना चाहता है, संपूर्ण बनना चाहता है। क्या मांगता है वो ? जब ब्रह्मा की उन्होंने तपस्या की, ब्रह्मा ने खुश होकर के — मांगो, क्या मांगते हो ? क्या मांगा कि मेरे को कोई दानव नहीं मार सकता है, कोई पशु नहीं मार सकता है, सब, ये सबकुछ मांगा ताकि मेरे को मारने वाला ही न हो। हां, इतनी बेवकूफी उसने की कि वो मनुष्य को भूल गया, उसने मनुष्य के बारे में, उसने सोचा कि मनुष्य तो बहुत कमजोर है, वो क्या मेरे को मारेंगे ? और यही चीज उसका कारण बनी मौत का।

तो एक तरफ तो है रावण, जो संपूर्ण बनना चाहता है। और दूसरी तरफ है हनुमान और हनुमान क्या चाहते हैं ? वो जो संपूर्ण है उसको महसूस करना चाहते हैं। उसका अनुभव करना चाहते हैं। उसकी सेवा करना चाहते हैं। रावण नहीं। रावण तो बनना चाहता है। सबसे शक्तिशाली बनना चाहता है। सबसे परफेक्ट बनना चाहता है जो कोई गलती कर ही नहीं सकता। तीनों लोकों का वो राजा बनना चाहता है। सारे प्लैनेट्स जो हैं, सूर्य है, चंद्रमा है, सब उसके अधीन हों। ये सब चाहता है वो। एक तरफ से अगर आप पूर्ण को भी नहीं समझते हैं, संपूर्ण को भी नहीं समझते हैं, तो हिन्दी भाषा में बहुत सरल रूप से अगर इस बात को रखा जाये तो जो घट में विराजमान है, कौन, वही जिसके लिए कहा है कि —

विधि हरि हर जाको ध्यान करत हैं, मुनिजन सहस अठासी।

सोई हंस तेरे घट माहिं, अलख पुरुष अविनाशी।।

तो वो जो अविनाशी है, रावण उस अविनाशी जैसा बनना चाहता है।

और हनुमान, हनुमान उस अविनाशी का दर्शन करना चाहता है, उस अविनाशी का अनुभव करना चाहता है, उस अविनाशी की सेवा करना चाहता है। ये दोनों में फर्क है। दोनों महापण्डित हैं। दोनों शक्तिशाली हैं। दोनों ही महापण्डित हैं, दोनों ही बहुत शक्तिशाली हैं।

बल्कि जब हनुमान की माताजी ने, अंजनि ने पूछा हनुमान से कि “भाई, तुम अगर चाहते तो तुममें तो इतनी शक्ति है, तुम तो, ये पुल-वुल बनाने की क्या जरूरत थी, ये वानरों की सेना की क्या जरूरत थी, इन सारी चीजों की क्या जरूरत थी, अगर तुम चाहते तो वहां तुम खुद ही जाकर के सारी रावण की सेना को नष्ट कर सकते थे, रावण को मार सकते थे, रावण के भाइयों को मार सकते थे, रावण के बेटों को मार सकते थे और सीता को वापिस ला सकते थे। तो तुमने ऐसा क्यों नहीं किया ?”

तो हनुमान जी बोलते हैं — ये मेरी कहानी नहीं है। ये मेरी कहानी नहीं है। ये कहानी भगवान राम की है। इतना शक्तिशाली होने के बावजूद भी वो क्या करना चाहते हैं ? जब कहा, मांगा गया कि मांगों क्या मांगते हो तो —

भक्तिदान मोहे दीजिये।

क्या, भक्ति का दान। सेवा करना चाहता है। समझना चाहता है। अनुभव करना चाहता है। इसी में आनंद है।

आज हम क्या कर रहे हैं ? हम जो इस दुनिया के लोग हैं, क्या कर रहे हैं ? पूछता हूं मैं यह सवाल। आपसे पूछता हूं। क्या हम भी रावण की तरह संपूर्ण नहीं होना चाहते हैं अपने काम में, अपनी नौकरी में ? क्या बच्चा इम्तिहान के समय यह ख़्वाब नहीं देखता है कि मेरे को सौ में से सौ मिल जाएं। परफेक्ट! इतना आसान हो मेरा पेपर कि सौ में से सौ मिल जाएं। मैं पास हो जाऊं। जब शादी का समय आता है, मेकअप लगाया जाता है, आहा! कितने घंटे लगते हैं मेकअप लगाने में। ये लगाना है, वो लगाना है, परफेक्ट करना है, परफेक्ट करना है, परफेक्ट करना है, परफेक्ट करना है। संपूर्ण करना है, संपूर्ण करना है, संपूर्ण करना है। सबकुछ ऐसा होना चाहिए, सबकुछ बढ़िया होना चाहिए। सबकुछ अच्छा होना चाहिए।

हमारा देश परफेक्ट होना चाहिए। हमारे शहर परफेक्ट होने चाहिए। और यही सारे सपने लोग देख रहे हैं। सब लोग पीछा कर रहे हैं उस परफेक्शन का, उस संपूर्णता का, जो संपूर्ण है उसका पीछा कर रहे हैं, हम भी ऐसे बनें, हम भी ऐसे बनेंगे, हम भी ऐसे बनेंगे, हमारा भी ये होना चाहिए, हमारा भी ये होना चाहिए, हमारा भी ये होना चाहिए।

और जीते कैसे हैं ? क्योंकि जब वो जो पहला वाला दायरा है, जब वो निकाल दिया अपने मन से, अपने दिमाग से, तो पड़े हुए हैं सब छोटे-छोटे दायरों के पीछे। मेरी फैमिली परफेक्ट होनी चाहिए, मेरी बीवी परफेक्ट होनी चाहिए। मेरा जॉब परफेक्ट होना चाहिए। मेरी कार परफेक्ट होनी चाहिए। मेरी मोटरसाइकिल परफेक्ट होनी चाहिए। मेरा स्कूटर परफेक्ट होना चाहिए। मेरे दोस्त परफेक्ट होने चाहिए। मेरा खाना परफेक्ट होना चाहिए।

एक बार मैं यूट्यूब देख रहा था। अब तो हमारी भी चैनल हो गयी है यूट्यूब में। तो एक दिन मैं देख रहा था यूट्यूब, भोजन के बारे में। तो उसमें एक आदमी खाना बना रहा है, वो कह रहा है कि आप ये डिश अपना घर में बना सकते हैं बिलकुल रेस्टोरेंट जैसा। तब मेरे को ख्याल आया, एक जमाना था कि रेस्टोरेंट में कहा करते थे कि एकदम घर के जैसा खाना है। आपको यहां घर जैसा खाना मिलेगा। अब वो समय गया, अब क्या समय आया है ? अब घर में रेस्टोरेंट जैसा वाला खा लो। उलटी गंगा। अब जिन्होंने वो समय देखा है, उनके लिए तो ये उलटी गंगा हो गयी। जो नये, नौजवान लोग हैं उनके लिए और क्या है ? घर में बहुत भद्दा बनता है, क्योंकि किसी के पास टाइम तो है नहीं। तो खराब बनता है, तो इसलिए जो रेस्टोरेंट में बनता है वो बढ़िया बनता है।

क्योंकि ये धारणाएं बना रखी हैं मनुष्य ने कि जब ऐसा होगा तो बढ़िया होगा, अब ऐसा होगा तो बढ़िया होगा, अब ऐसा होगा तो… कामधेनु गऊ थी न, जो इच्छा हो वो पूरी कर देती थी। तो सबको कामधेनु गऊ चाहिए। और अगर कामधेनु गऊ नहीं मिल रही है, तो कोई बात नहीं, हम ऐसा प्रबंध करेंगे टेक्नोलॉजी के द्वारा, एडवरटाइजमेंट के द्वारा ऐसी चीजों का आविष्कार करेंगे कि जो हमारी इच्छा हो वो हम पूरी कर सकें। तो हमारे सारे लोगों से मांगना, क्या मांगना ? बड़े-बड़े लोगों के पास जाते हैं और वो कहते हैं — “हां, भाई, क्या मांगना चाहते हो ?” “अजी, हमारी मनोकामना पूरी हो।” परंतु मनोकामना तो, वो तो तो तो तो, राम के समय तो तो तो तो तो तो रावण पूरी करता था। आहा! वो भक्ति का क्या हुआ भाई ? वो अनुभव करने का क्या हुआ भाई कि वो जो छोटे-छोटे दायरे हैं, उन पर ज्यादा ध्यान नहीं देना है, जो बड़ा वाला दायरा है, उस पर ध्यान देना है कि यहां हैं, अब नहीं हैं, अब नहीं रहेंगे, परंतु जबतक हैं, तबतक इस जीवन के अंदर उस सुंदर चीज का अभ्यास करें, उस सुंदर चीज का अनुभव करें और अपने जीवन को सफल करें। 

और क्या ? और क्या है ? हम लोग समझते हैं कि ये सारी जो माया है, ये बनी रहेगी। ना! वही वाली बात है जो, एक जमाना था कि रेस्टोरेंट जाइये, रेस्टोरेंट — बढ़िया रेस्टोरेंट है यह इसलिए क्योंकि यहां एकदम घर का खाना मिलता है। और अब उलटी गंगा है। अपने घर में रेस्टोरेंट वाला फूड मंगवा लो। अपने घर में रेस्टोरेंट वाला फूड खाओ। सारी तपस्या हो रही है। काहे के लिए हो रही है तपस्या ? अपना जीवन सफल करने के लिए हो रही है तपस्या ? या और शक्तिशाली बनने के लिए ये तपस्या हो रही है ? और धन के लिए तपस्या हो रही है ? 

और होगा क्या ? जो रावण के साथ हुआ, वही होगा। हनुमान का वध नहीं हुआ। रावण का हुआ। रावण का हुआ। ध्यान देने की बात है। क्योंकि ये जो धारणायें बना रखी हैं और इनके पीछे जो हम भागते रहते हैं, भागते रहते हैं, वही प्रवृत्ति है जो रावण की थी, हनुमान की नहीं। तुम अगर अपने जीवन को सफल करना चाहते हो, तो वो करना पड़ेगा जो हनुमान जी ने किया। और अगर वो कर पाये, तो कोई भी परिस्थिति हो, सुख-चैन से आप जी सकोगे। 

अपना ख्याल रखें…ये बीमारी किसी को दो मत, किसी से लो मत। अपना ख्याल रखो और हमारे सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार।

हम कौन हैं 00:21:35 हम कौन हैं Video Duration : 00:21:35 साथ साथ, न० : 1, श्रृंखला, श्री प्रेम रावत द्वारा

हमारे सभी श्रोताओं को हमारा बहुत-बहुत नमस्कार।

आज मैं आपको एक कहानी सुनाना चाहता हूं और कहानी कुछ इस प्रकार है कि एक औरत थी और उसका एक मकान था। काफी बूढ़ी हो चली थी वह और उसके मकान के आसपास उसकी एक जमीन भी थी उसमें वह कुछ जानवरों को पालती थी। तो उसके मकान में एक छोटी-सी चुहिया भी रहती थी और उस औरत को शक था कि उसके घर में कोई चूहा जरूर रहता है। तो एक दिन वह बाजार गई और उसने एक चूहे का जो पिंजरा होता है जिससे चूहे को पकड़ लेते हैं वह खरीदा और घर ले आई। तो जब चूहे ने देखा कि वह पिंजरा, बड़ा खतरनाक पिंजरा वह लाई है, तो चुहिया को बहुत घबराहट हुई। उसने सोचा कि यह कुछ ना कुछ रखेगी खाने के लिए और जब मेरे को भूख लगेगी तो मैं वो सूंघूंगी और मैं पिंजरे में जाऊंगी खाने के लिए और पकड़ी जाऊंगी। तो यह तो अच्छा नहीं हुआ।

तो वह बाहर गई चुहिया और एक मुर्गा था बाहर, तो वह मुर्गे के पास गई कि "भैया मुझे बचा लो!"

मुर्गे ने कहा — "क्या बात है ? क्यों तेरे को क्या आपत्ति है ? क्या दुविधा आई है तेरे सिर पर ?"

तो चुहिया ने कहा कि "वह औरत जो है, मकान मालकिन जो है, वह एक पिंजरा लाई है चूहों को पकड़ने का और उसमें अगर वह खाना रखेगी और मेरे को भूख लगी तो मैं अगर गई खाने के लिए तो पकड़ी जाऊंगी और वह मेरे को मार देगी। मेरे को बचा लो।"

तो मुर्गे ने कहा, "तो मैं क्या करूं ? मेरे लिए तो लाई नहीं है वो। मैं तो फंसूगा नहीं उसमें। फंसना तो तेरे को ही है। यह तो तेरी समस्या है, मेरी समस्या थोड़े ही है। यह तो तेरी समस्या है, मेरी समस्या थोड़े ही है। तू संभाल, मैं नहीं संभाल सकता; मैं कुछ नहीं कर सकता तेरे लिए।"

तो निराश हो गयी चुहिया। फिर गई वह, एक बकरी उस औरत ने पाल रखी थी तो वह बकरी के पास गयी।  

बकरी से उसने कहा कि "मेरे को बचा लो!"

 बकरी ने कहा — "क्या बात है ?"  

कहा कि "ऐसे-ऐसे वह पिंजरा लाई है और उसमें वह खाना रखेगी और मेरे को अगर भूख लगी तो मैं फंस जाऊंगी और वह मेरे को मार देगी।"

बकरी ने कहा, "मैं तो उसमें फिट भी नहीं होउंगी। मैं तो बहुत बड़ी हूँ। मेरे को तो खतरा है नहीं, तो मैं तेरी मदद क्यों करूं ? भाई, खतरा तो तेरे को है, मेरे को थोड़े ही है, मैं काहे के लिए तेरी मदद करूँ।"

तो जब बहुत ही निराश हो गई वह, तो कुछ दिनों के बाद फिर वह गधे के पास गयी। गधे से उसने कहा — "तुम तो बहुत बड़े हो, बलवान हो मेरी मदद करो।"

गधे ने कहा — "क्या बात है ?"

कहा कि "ऐसे-ऐसे वह पिंजरा लाई है और मेरे को पकड़ेगी और मेरे को मार देगी।"

तो गधे ने कहा कि "मैं क्या करूँ ? मैं तेरे लिए सिर्फ एक प्रार्थना कर सकता हूँ भगवान से कि तेरे को बचाये और मैं क्या करूँ! मेरे लिए तो वो लाई नहीं है। मैं तो उसमें फिट भी नहीं होऊंगा। मेरे को तो कोई दिक्कत है नहीं। यह तो तेरी समस्या है, तू संभाल। मैं क्यों संभालूं!"

खैर! चुहिया सचमुच में बहुत ही निराश हो गई कि कोई उसके लिए, कोई बचाने वाला नहीं है।  

एक दिन क्या हुआ कि एक सांप उधर से गुजर रहा था और वह उस पिंजरे में जाकर फँस गया। अब फँस गया तो सांप ने वहां से चलने की कोशिश की तो आवाज आने लगी। रात का समय था, बहुत अंधेरा था, तो जो औरत है उसने जब आवाज सुनी तो उसने सोचा कि चूहा फँस गया। वह बाहर आयी अपने कमरे से। बाहर आई और वह टटोलने लगी और सांप ने उस औरत को डस लिया। जब सांप ने डस लिया तो वह चिल्लाई और उसका पड़ोसी आया, तो पड़ोसी आया तो उसने देखा कि यह हो रखा है कि उसको सांप ने डस लिया है। तो वह उसको अस्पताल ले गया। अब अस्पताल ले गया, वहां उसका इलाज हुआ तो ज्यादा गंभीर तरीके से नहीं काटा था सांप ने, तो थोड़े दिन के बाद वह घर आई। जब घर आई तो डॉक्टर ने कहा "इसको घर ले जाओ, ये वहां आराम कर लेगी।" 

जब घर आई वह, तो बिल भी आया अस्पताल से। बिल तो आता ही है अस्पताल से, तो बिल आया अस्पताल से, तो उसके पास ज्यादा पैसे नहीं थे। तो पैसे न होने के कारण जो मुर्गा था उसको बेच दिया गया और किसने खरीदा उस मुर्गे को ? कसाई ने खरीदा। और उससे भी उसका जो बिल था वह पूरा नहीं हुआ, जो अस्पताल को देना था उसने पैसा। तो जो बकरी थी उसको भी बेच दिया गया, उसको भी कसाई ने खरीदा। चुहिया अभी मरी नहीं है। मुर्गा और बकरी जिन्होंने कहा कि “ये उसकी समस्या नहीं है।” कारण तो वही है, परंतु उनको कसाई को बेच दिया गया। अब जो कुछ भी था उसका बिल वो पूरा किया, औरत आराम करने लगी। कुछ दिन बीते पर उसकी हालत अच्छी नहीं हुई। कुछ दिनों के बाद वह औरत मर गई। मर गई तो उसके सारे परिवार के लोग आए, उसका अंतिम-संस्कार करने के लिए। अब जब वो सब आए तो उनके खाने का प्रबंध करना था ये सबकुछ करना था, तो उसके लिए काफी पैसे की जरूरत थी। तो वो कहां से पैसा लाएं ? उसके पास तो थे नहीं, तो जो गधा था उसको बेच दिया गया और उससे जो पैसे मिले उससे उसका अंतिम-संस्कार, खाना-पीना लोगों का जो कुछ भी करना था वो हुआ। पर जिसने उस गधे को खरीदा वह बहुत ही अत्याचारी था। और खूब — उसको मालूम था कि वह खूब काम करवाएगा उस गधे से। पीटेगा उसको, मारेगा उसको।

तो यह हुआ। अब इसमें है क्या कि अगर वह सचमुच में उस छोटी-सी चुहिया की मदद कर देते, उस छोटी-सी चुहिया की मदद कर देते, तो वह सांप उसमें नहीं फंसता और अगर जो सांप उसमें फंसा वह नहीं फंसता, तो कोई उस औरत को नहीं डसता और अगर औरत को नहीं डसता, तो न तो मुर्गा, न बकरी और न गधे को, जो कुछ भी उनके साथ था वह खोना नहीं पड़ता। तो मैंने आपको यह कहानी क्यों सुनाई ? 

इसका मतलब — इसका मतलब है कि कई बार हम यह समझते हैं कि जो हमारे साथ हो रहा है, वह हमारे साथ हो रहा है या कोई किसी के साथ कुछ हो रहा है वह हमारी समस्या नहीं है। परंतु जबतक हम इस संसार के अंदर हैं तो हमको यह देखना है कि जो औरों के साथ हो रहा है, वह हमारे साथ भी हो सकता है। जो औरों के साथ हो रहा है, वह हमारे साथ भी हो सकता है। जो अत्याचार हम औरों की तरफ देखते हैं, वह हमारे साथ भी हो सकता है। तो सबसे बड़ी बात यह बन जाती है कि हम अपने में क्या कर सकते हैं! और क्या कर सकते हैं ? हम अपने को जानने की कोशिश करें। अपने आपको समझने की कोशिश करें कि हम कौन हैं। क्या हमको यह जो मनुष्य शरीर मिला है, जो कुछ भी हमारे सामने है इसका हमारे लिए महत्व क्या है ? क्या हम इसमें से निचोड़ सकते हैं! क्या हम इसमें से पा सकते हैं! किस तरीके से हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है! दुखी होना, दुख में लगे रहना, चिंता करना, चिंता में लगे रहना, दिन-रात एक ही बात "अब क्या होगा, अब क्या होगा, अब क्या होगा, अब क्या होगा" या इस जिंदगी के अंदर इससे भी बढ़कर कोई चीज है! 

लोग कहते हैं कि "भाई जो तुम भोग रहे हो इस जीवन में यह तुम्हारे पिछले कर्मों का फल है। मानते हैं लोग, बहुत मानते हैं। परन्तु वो समझाने वाले ये नहीं समझाते हैं कि हमने किया क्या! क्या किया पिछले जन्म में कि ये जो चिंता हैं, जो बोझ हैं हमारे ऊपर यह हम भोग रहे हैं उन कर्मों की वजह से, तो वो कर्म क्या थे ताकि हम उनको आगे ना करें! जबतक हम अपने आपको नहीं समझेंगे, हम किसी और को कैसे समझ पाएंगे। जबतक हम अपने आपको नहीं समझेंगे, तबतक हम यह कैसे समझ पाएंगे कि हमारे लिए इस जीवन में क्या संभावना है, क्या संभव है! अगर हम लगे रहेंगे — भोग रहे हैं, भोग रहे हैं, भोग रहे हैं, भोग रहे हैं और यह कभी ख्याल नहीं आ रहा है कि "क्या यह इस जीवन का लक्ष्य है ?"  क्योंकि संत-महात्माओं ने जो कहा है, वो यह नहीं कहा है, वो यह कहा है कि “यह जो मनुष्य शरीर तुमको मिला है, यह मोक्ष का दरवाजा है।” 

बड़े भाग्य पाइये — यह मनुष्य शरीर जो मिला है, बड़े भाग्य से मिला है और यह मोक्ष का दरवाजा है। और अगर यह सचमुच में मोक्ष का दरवाजा है, तो क्या हम — क्योंकि मोक्ष भी, इसकी भी, यह भी बहुत बड़ी बात है। एक यह मोक्ष है कि हम फिर — हमारा यहां आना-जाना न रहे इससे हमको मोक्ष मिले। पर एक छोटा-सा मोक्ष जिसकी हमको जरूरत है कि हमको अपनी चिंताओं से मुक्ति मिले। हमको अपने दुखों से मुक्ति मिले। वह भी तो मोक्ष है। तो जबतक हम उस चीज को सोचेंगे नहीं, जबतक उस चीज को हम समझेंगे नहीं तबतक आगे जाएंगे कैसे, आगे बढ़ेंगे कैसे ? और तभी यह संभव है। क्योंकि सारी चीजें जो हमारे सामने इस समय हैं "यह मुसीबत है, यह मुसीबत है, अब क्या होगा, यह क्या होगा, यह क्या होगा” इन सारी चीजों को लेकर के जो आज हो रही हैं लोग डरेंगे। और मैं लोगों से यही कहता हूं कि डरने से कुछ नहीं होगा, डरने से कोई चीज कम नहीं होगी, समझना जरूरी है। यह भी, जो है, यह भी बीतेगा। यह भी बीतेगा। परन्तु वो जो चिंताएं हैं, वो जो मुसीबतें हैं, जो आती रहती हैं, आती रहती हैं, आती रहती हैं, आती रहती हैं और मनुष्य परेशान होता रहता है उससे मोक्ष कैसे मिले ?

उससे मोक्ष मिलने के लिए आपको अपने आपको समझना बहुत जरूरी है। आप क्या कर सकते हैं और क्या नहीं कर सकते हैं! चाहे इन चिंताओं से आपको मोक्ष मिल सकता है या नहीं मिलेगा, यह सब आपके ऊपर निर्भर है — डर पर नहीं, आप पर निर्भर है। और हर एक चीज, हर एक चीज से मिली हुई है, जुड़ी हुई है — हर एक चीज। वही जो मैंने पहले कहा जो गड़बड़ और लोगों के साथ होती है हम तो देखते हैं — यह है, यह है — हमारे साथ नहीं होगी! क्यों नहीं हो सकती ? जब उनके साथ हो गयी, हमारे साथ भी हो जायेगी। परन्तु जबतक हम इसमें से अपने आपको किसी तरीके से उभारेंगे नहीं, ऊपर नहीं लायेंगे और इस भवसागर में डूबते ही रहेंगे, डूबते ही रहेंगे, डूबते ही रहेंगे, डूबते ही रहेंगे। भवसागर की जब बात आती है तो यह नहीं है तुम भवसागर में जाकर तैरो या भवसागर में जाकर तुम आनंद लो। ना! यह कहा है कि भवसागर को, इसको पार करना है — इसको पार करना है, यहां रहना नहीं है। इस भवसागर में रहना नहीं है।  

तो हम समझें इस बात को और कुछ ऐसा हो गया है कि हम इस भवसागर में अटके हुए हैं। जहां देखते हैं भवसागर है, भवसागर है, भवसागर है, भवसागर है, भवसागर है। क्या है भवसागर ? जो चिंताएं, जिनमें हम डूबे हुए हैं जो सच नहीं हैं, पर सच लगती हैं। उनमें हम डूबे हुए हैं और उसी में डूब रहे हैं। भवसागर की बहुत ही व्याख्यान हो सकती हैं, परन्तु एक तो यह व्याख्या जरूर होगी कि यह असली नहीं है, माया है। सत्य नहीं है, असत्य है और असत्य में हम डूब रहे हैं। और जबतक हम अपने आपको नहीं समझेंगे तबतक इस असत्य में डूबते रहेंगे, बाहर नहीं निकलेंगे। 

तो सबसे बड़ी बात यह मैं कहना चाहता था आपसे कि डर से नहीं, जो अंदर से शक्ति है उससे, समझ से, हम इस चीज का सामना करें। जो हमारे अंदर असली ताकत है उससे हम इस चीज का सामना करें। और अगर उस शक्ति से, जो सचमुच में मनुष्य की अंदर की शक्ति है उससे अगर हम सामना करेंगे तो जीत भी हमारी होगी। यह मैं कहना चाहता था।  

तो सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

 

 

असली संभावना 00:22:11 असली संभावना Video Duration : 00:22:11 साथ साथ, न० : 2, श्रृंखला, श्री प्रेम रावत द्वारा

हमारे सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार! 

आज फिर मैं कुछ आपसे कहना चाहता हूं। लम्बी-चौड़ी बात नहीं है, वैसे तो छोटी-सी बात है और छोटी-सी बात यह है कि हम जानते हैं कि दरअसल में इस संसार में बहुत कुछ होता है अच्छा भी होता है, बुरा भी होता है। और यह भी हम अच्छी तरीके से जानते हैं कि जो अच्छा होता है उसमें अगर हमारा कुछ लाभ हो, तो हम उसको अच्छा मानते हैं और अगर कुछ ऐसा होता है जिसमें हमारा भी बुरा होता है तो उसको हम बुरा मानते हैं। 

अब आप देख लीजिए कि इस सारे संसार के अंदर कितने ही लोग लगे हुए हैं राजनीति में कई-कई पार्टियां हैं — कुछ किसी पार्टी को वोट देते हैं, कुछ किसी पार्टी को वोट देते हैं। और क्यों ? जो पार्टी उन बाधाओं को आगे रखती है जिनसे कि उनका भला होगा, तो वो लोग उस पार्टी को वोट देंगे। और दूसरे, जो देखते हैं कि उनका भला होगा, तो वो उस पार्टी को, दूसरी पार्टी को वोट देंगें। तो इस प्रकार से सारा चक्कर इस संसार का चलता है। परन्तु भला क्या है ? असली भला क्या है और असली बुरा क्या है ? इसमें और कोई पार्टी नहीं है, इसमें और कोई राजनीति नहीं है, इसमें कोई बैंक नहीं है, इसमें कोई पैसा नहीं है, इसमें कोई खाने की चीज नहीं है। 

मैं बात कर रहा हूं जिंदगी की। अगर यह मनुष्य तन मिला है और अगर आप जीवित हैं, तो यह भला है, भला है। कई परिस्थितियां हैं जो हो सकता है कि आपकी इच्छा के अनुकूल न हों, परन्तु वो परिस्थितियां तो बदलेंगी। एक समय था कि वो वैसी परिस्थिति नहीं थी। आज वो हैं, कल वो हो सकता है ना रहें। परसों नई वाली आयें, नितरसों पुरानी वाली आयें। यह सारा चक्कर इस संसार का तो चलता रहता है। इसमें फिर दो बातें आती हैं। क्या यह हमको मालूम है कि सबसे बड़ी चीज जो हमारे जीवन में होगी, उससे बड़ी चीज कोई हो नहीं सकती है। वो यह है कि हमको यह जीवन मिला। इससे बड़ी चीज हो नहीं सकती।

 पर क्या जब हम बैठे हुए हैं कोई हमसे यह बात आकर कहता है तो हम कहेंगे "हां, आप सच कह रहे हैं, सच कह रहे हैं, सच कह रहे हैं।" दो मिनट के बाद वह हाल नहीं है — मतलब पानी में हाथ डाला पर पानी में हाथ तो जरूर गया, परन्तु हाथ गीला नहीं हुआ। कह तो दिया कि "हां सबसे बड़ी चीज यह है कि मेरा जन्म हुआ, मैं जीवित हूं, परंतु उसका कोई असर नहीं हुआ।" फिर जैसे ही, जैसे मौसम बदलता है या घड़ी की सूई चलती है ठीक उसी प्रकार से दो मिनट में कुछ और हो रहा है। क्या हो रहा है ? "वही दुनियादारी की बातें, वही चिंता, वही अब क्या होगा, यह होगा, वह होगा, वह करना है, यह करना है, वह करना है" इन्हीं सब चीजों में ध्यान जा रहा है। 

आज पता नहीं कितने लोग सारी स्थिति को देखकर के घबराए हुए हैं और यह कोई नहीं सोच रहा है कि मैं जीवित हूं। ठीक है, ये परिस्थितियां हैं जैसी हैं, पर मैं जीवित हूँ। और क्योंकि मैं जीवित हूँ मैं कुछ कर सकता हूँ। एक तो मैं यह कर सकता हूं कि मैं अपनी सुरक्षा कर सकता हूं, क्योंकि मैं जीवित हूं। और दूसरी चीज, मैं अपने जीवन के अंदर आनंद ला सकता हूं। इस महामारी से मैं बच सकता हूं, इस कोविड-19 से मैं बच सकता हूं और अपने जीवन के अंदर मैं आनंद भी ला सकता हूं। और यह संभावना कि "मैं अपने जीवन में आनंद लाऊं" इस कोविड-19 से पहले भी थी और इस कोविड-19 के बाद भी रहेगी। जबतक आप जीवित हैं आपके अंदर यह स्वांस आ रहा है, जा रहा है तबतक यह संभावना बनी हुई है। तो यह तो मैंने कह दिया, (वहां, जो आप लोग बैठे हैं जहां कोई अपना सिर भी हिला रहा होगा "हां जी, ठीक कह रहे हैं।") 

परन्तु बात यह वही है कि हाथ पानी में डाला, हाथ तो जरूर डाला, पर हाथ भीगा नहीं — मतलब, यह जो संदेश है कि "आपके जीवन के अंदर सबसे बड़ी चीज यह होगी कि आप जीवित हैं। मतलब आप, आप नहीं होते अगर यह स्वांस आपके अंदर नहीं आता। आप, आप नहीं होते अगर आपके अंदर यह स्वांस नहीं आता। लोगों को चंद मिनटों का दुख जरूर होता, फिर आगे गाड़ी चलती रहती और चलती रहती। आप, आप हैं क्योंकि आपके अंदर यह स्वांस है आ रहा है और जा रहा है। परंतु यह बात कि "आपके अंदर यह स्वांस आ रहा है, जा रहा है" यह संदेश चढ़ता नहीं है। 

लोगों से हम पूछते हैं कि "भाई, इतनी सुन्दर बात तुमने समझी अपने जीवन के अंदर इसका कुछ तो प्रभाव होना चाहिए तुम्हारे जीवन में ?” लेकिन लोग हैं "अजी हमारे पास यह समस्या है, हमारे पास यह है, हमारा यह नहीं हो रहा है, हमारा वह नहीं हो रहा है, आप यह कर दीजिये; वह कर दीजिये।"

अब हिंदुस्तान में कितने ही हैं। लोग आते हैं अपनी समस्या लेकर आते हैं, हॉल भर जाते हैं — "समस्या है जी, हमारी यह समस्या है, हमारा यह नहीं हो रहा है, हमारा बिज़नेस दस साल पहले हमने एक बिजनेस खोला था वह सक्सेसफुल नहीं हो रहा है, हम क्या करें ?" हां बच्चा! तुम जाओ, पीछे जाओ तुमको एक भूरा कुत्ता मिलेगा उसको सैंडविच खिला देना।" कुत्ते को सैंडविच ? कुत्ता कहाँ से सैंडविच — कुत्ता प्रकृति में कहाँ से लाएगा सैंडविच ? प्रकृति में क्या खाने का प्रबंध है उसके लिए ? उसके लिए वह वही खाएगा जो उसके लिए प्रबंध है — मांस खाने वाला है वह। पर उसको क्या खिला दो ? सैंडविच खिला दो। कमाल है। एक तो उसकी तबीयत खराब होगी और आप समझते हैं कि उसको सैंडविच खिलाने से आपका बिज़नेस चल जाएगा। ऐसा बिज़नेस होना चाहिए आपका कि कुत्ते को, कुत्ते को सैंडविच खिलाओ! लोगों को बेवकूफ बनाया जाता है, लोग बेवकूफ बनने के लिए तैयार हैं। जो असली बात है कि तुम्हारे अंदर यह स्वांस है आ रहा है, जा रहा है, इसको समझो। यह बात जो मैं कह रहा हूँ, यह बहुत पुरानी बात है। 

नर तन भव बारिधि कहुँ बेरो। सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो॥ 

"इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है" — ये कहते हैं भगवान। 

यह नर तन भवसागर से पार होने का तरीका है, सैंडविच खिलाने का नहीं। 

"अजी हमारी शादी नहीं हो रही है!" 

अब शादी नहीं हो रही है तो नहीं हो रही है। क्या कर लोगे ? जबरदस्ती तो कर नहीं सकते। और जिनकी हो गई है उनसे पूछो कि तुम कितने भाग्यशाली हो! मज़ाक-मज़ाक में ये बात भी आ जाती है। तो चढ़ती क्यों नहीं है यह फिर ? समझ में आई तो जरूर, पर चढ़ती नहीं है। क्यों ? क्योंकि हजारों बहाने बना रखें हैं — "अजी! हमारे पास टाइम नहीं है।" तुम्हारे पास टाइम नहीं है, तो फिर टाइम का मतलब क्या हुआ तुम्हारी जिंदगी के अंदर! जो चीज जरूरी है जब तुम्हारे पास उसी के लिए टाइम नहीं है, तो फिर तुम्हारे पास टाइम हो या न हो उसका फायदा क्या है! भाई, तुम जीवित हो, तुम अपने जीवन में निर्णय ले सकते हो, जबतक तुम जीवित हो अपने जीवन में तुम निर्णय ले सकते हो। क्या निर्णय लिया है तुमने ? क्या निर्णय लिया है कि तुम उस चीज को समझोगे! इस हृदय को तुम आनंद से, असली आनंद से भरोगे या नहीं या अपनी जेब भरना चाहते हो ? मैं नहीं कह रहा हूं कि तुमको जेब नहीं भरनी चाहिए, परन्तु एक बात याद रखो अपनी जेब के बारे में उसको चाहे तुम कितना भी भर लो इतना भर लो, इतना भर लो, इतना भर लो कि पूछो मत, परन्तु उसमें से एक पैसा, आधा पैसा, चौथाई पैसा भी तुम अपने साथ नहीं ले जा सकोगे।  

तुम एक ही चीज अपने साथ ले जा सकोगे और वह है आनंद। जब मनुष्य अपने जीवन के अंदर उस आनंद से भर जाता है, तो उसकी सारी जिंदगी बदल जाती है। उसके लिए सबकुछ सक्सेसफुल है। वह जब देखता है अपनी जिंदगी को और इस संसार को देखता है तो उसको और यह लगता है कि मैं कितना भाग्यशाली हूँ। वह किसी का बुरा नहीं चाहता। कई बार मेरे को यही बात याद आती है कि —

कबीरा खड़ा बाज़ार में, सबकी मांगे खैर, 

ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।

समाज में कैसे रहना चाहिए ? इस तरीके से रहना चाहिए। ये सोशल मीडिया वाले जितने भी हैं, अगर ये पूछना चाहते हैं कभी कि कैसे मनुष्य को रहना चाहिए इस संसार के अंदर और सोशल मीडिया के बारे में क्या राय है आपकी ? तो मैं यह कहूंगा कि —

कबीरा खड़ा बाज़ार में, सबकी मांगे खैर, 

ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।

कर लो यह। सोशल मीडिया में या तो दोस्ती होगी या बैर होगा। वो कह रहे हैं कि खड़ा हूँ मैं सब ठीक है। “कबीरा खड़ा बाज़ार में, सबकी मांगे खैर” — मैं चाहता हूँ कि सब ठीक रहें, सब अच्छा हो, सबके लिए अच्छा हो। सिर्फ यह नहीं कि मेरे दोस्तों के लिए अच्छा हो, यह नहीं कि मेरी पार्टी के लिए अच्छा हो या ये नहीं कि “यह होना चाहिए इसी में मेरा फायदा है।” नहीं! वो, वो फायदा, वो देखो जिसमें सबका फायदा है। 

अगर सचमुच में संसार ऐसा होता तो आज जो गरीबी की समस्याएं हैं, क्या ये कभी होती ? ना! सब अपनी जेब भरने में लगे हुए हैं और किसी से मतलब ही नहीं है। दिखावे का सब दान करते हैं — "हम दे रहे हैं जी।" देना है तो वो दो जिससे सचमुच में हृदय प्रसन्न होता है। छोटा बच्चा है, साल भर का है, दो साल का है उसको दे दो, तीन-चार हजार रुपए उसको दे दो, कोई मतलब नहीं है उसको। कोई मतलब नहीं है। प्यार दो, आनंद दो — खुश! 

अभी हाल में मैं अपनी पोती के साथ खेल रहा था, तो वह वहां नहीं रहती जहां मैं रहता हूं। तो गया था मैं देखने के लिए कि सब ठीक-ठाक है। तो वह आई और थोड़ा-थोड़ा उसको याद था कि मैं कौन हूँ। वह आई और हमने खेलना शुरू किया, प्यार दिया, समय दिया, खुश हो गई। और फिर जहां मैं जाऊं पापा, पापा, पापा, पापा, पापा, करके मेरे पीछे पड़ी हुई। 

क्यों ? यही तो चीजें हम भूल जाते हैं कि हम अपने जीवन में उस प्रेम का, उस सच्चाई का, उस आनंद का एक स्रोत बन सकते हैं और बन क्या सकते हैं बल्कि हम तो हैं। हैं! परन्तु हम समझते नहीं हैं कि हम हैं। हम खड़े हैं बाजार में हमको यह नहीं मालूम कि सबकी खैर कैसे मांगे। हां, तो खड़े हैं बाजार में तो क्या करना पड़ता है ? "हेलो, हेलो, हेलो, यह है, वह है, हाथ हिलाओ, यह करो, वह करो, कैसे हो, ठीक हो, अच्छे हो, यह है, वह है" पर — सबकी मांगे खैर, ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।

 

नदी को देखो चलती है, चलती है, चलती है, चलती है, चलती है। अभी मैं सोचता हूं कि कितने ही लोग हैं हिंदुस्तान में जो छुआछूत को मानते हैं, "तुम हमारी कैटगरी के नहीं हो" — जात-पात का अंतर है, तो मैं जात-पात का अंतर तब मानूं जब नीची जाति वाला गंगा के पास जाए और गंगा रुक जाए कि "यह नहीं आ सकता।" जब गंगा मना नहीं कर रही है, तो हम लोग मना क्यों करते हैं! और यही सबकुछ लेकर डूबेगा। जब मनुष्य मनुष्य के साथ नहीं रह सकता, तो वह प्रकृति के साथ कैसे रहेगा! और अगर प्रकृति के साथ वह नहीं रह सकता है, तो एक बात मनुष्य को याद होनी चाहिए, हमेशा याद होनी चाहिए कि प्रकृति मनुष्य से बड़ी है। 

आपको शक हो रहा है कि मैं जो कह रहा हूं वह गलत है! कोरोना वायरस से क्या किया ? आंख से तो देख नहीं सकते उसको, उसके लिए माइक्रोस्कोप चाहिए इतना छोटा है वह, इतनी छोटी-सी वायरस है, जिन्दा भी नहीं है और सारे संसार को हाथ पर बिठा दिया। कैसे हो गया ये ? क्योंकि वह प्रकृति है और वह मनुष्य से बड़ी है। प्रकृति के साथ रहेगा कैसे जब वह अपने साथ नहीं रह सकता है। 

लोग हैं, गवर्नमेंट कहती है "भाई! अपने घर में रहो, मास्क पहनो, हाथ धोओ।" "नहीं, हम तो जाएंगे, बाहर जाएंगे, हमको मास्क नहीं पहनना है, हमको यह नहीं करना है, हमको वह नहीं करना है।" क्यों ? कच्छा नहीं पहनते हो, कपड़े नहीं पहनते हो, बनियान नहीं पहनते हो!  यह तो सिर्फ तुम्हारी भलाई के लिए ही है। तुम्हारी भलाई के लिए है पहनो और सुरक्षित रहो। परंतु लोगों के लिए यह नहीं है, "हमको यह करना है, हमको वह करना है, ऐसा ये होना चाहिए, ऐसा वो होना चाहिए।"  

खैर! मैं न तो गवर्नमेंट हूँ, न मैं कोई पॉलीटिकल पार्टी हूँ। मैं तो इतना ही जानता हूं कि —

“नर तन भव बारिधि कहुँ बेरो” — यह इस भवसागर से पार उतरने का साधन है। 

“सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो” — इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है।  

इतना मैंने समझा है, इतना मैंने समझा है। और यह भी है —  

“करूणधार सद्गुरु दृढ नावा, दुर्लभ काज सरल करी पावा” — ऐसे सद्गुरु की जरूरत है जो खेकर के इस नौका को इस भवसागर के पार उतार दें। बस! बस।

तो यह मैं कहना चाहता था। सभी लोग सुरक्षित रहें, कुशल-मंगल रहें यही मेरी आशा है। और सबसे बड़ी चीज चाहे कैसा भी माहौल हो आनंद से यह समय भी गुजारें। 

सभी को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

 

स्वांस रूपी मंथन 00:18:32 स्वांस रूपी मंथन Video Duration : 00:18:32 साथ साथ, न० : 3, श्रृंखला, श्री प्रेम रावत द्वारा

हमारे सभी श्रोताओं को हमारा नमस्कार। और आज के दिन मैं आपसे यही बात करना चाहता हूं कि देखिये, चाहे बाहर कितना भी अंधेरा हो और क्योंकि जो कुछ भी आज हो रहा है इसके कारण कई लोग हैं जिनको यह लगता है कि बाहर बहुत ही अंधेरा है और मैं यह बात सरासर मानता हूं कि सचमुच में बाहर बहुत अंधेरा है। परंतु बात बाहर की नहीं है, बात हमारे अंदर की है और हमारे अंदर एक उजाला है, एक दिया है जो जल रहा है और उजाला दे रहा है।

देखिये, आपने यह सुना होगा कि एक बार समुद्र मंथन हुआ था, एक तरफ देवता और एक तरफ दानव। और उन्होंने एक पहाड़ लिया और उस पर रस्सी बांधी, (सांप था वह, शेषनाग) और फिर समुद्र मंथन हुआ और काफी सारी चीजें निकलीं। तो मैं एक दिन सोच रहा था कि इस कहानी का तुक क्या है, इसका मतलब क्या है! मंथन हो रहा है और समुद्र में से ये सारी चीजें निकल रही हैं।

तो जब कोई भी कहानी, अच्छी कहानी हो और उसको मैं सुनता हूं तो उसका क्या मतलब है मेरे जीवन में यह मैं जानने की कोशिश करता हूं। तो मैं जब सोचने लगा इसके बारे में तो मैंने कहा, "हम्म, मेरा भी इस जीवन के अंदर एक मंथन हो रहा है और एक तरफ यह स्वांस आ रहा है और जा रहा है।" एक तरफ जाने का मतलब, क्योंकि जाना — इस स्वांस का जाना यह आखिरी चीज होगी जो मैं करूंगा और पहली चीज जो मैंने की वह थी इस स्वांस का आना, जाना नहीं आना। पहले मैंने स्वांस लिया और जिंदगी ने अपनी तरफ खींचा। मैं जीवित था। और हर समय मौत भी खींचती है और यह स्वांस जाता है। फिर आता है, फिर जाता है, फिर आता है, फिर जाता है और उस कहानी में तो जब समुद्र मंथन हुआ तो बहुत सारी चीजें निकलीं — विष भी निकला और अमृत भी निकला। यह जो मंथन हो रहा है इससे क्या निकल रहा है ? इससे क्या निकल रहा है!

जो मेरा जीवन है जिस जीवन को लेकर के मैं जिन्दा हूँ, यह जो मंथन हो रहा है क्या निकल रहा है — विष ? मेरे अंदर से क्या निकल रहा है — शांति, आनंद, अमृत या गुस्सा ? और ये सारी चीजें मनुष्य के अंदर हैं और यह मंथन हो रहा है। जीवन-मौत, जीवन-मौत, जीवन-मौत, जीवन-मौत और ये सारी चीजें हैं और पूछना यह है अपने आपसे कि क्या सचमुच में मेरे अंदर अमृत है, जो सुंदरता है, जो आनंद है वो आ रहा है बाहर या वो चीजें बाहर आ रही हैं जो न मेरे को पसंद हैं, जो न मैं उनको चाहता हूं, न वह किसी के लिए भला करेंगी। घमंड है — मनुष्य को जब घमंड होने लगता है तो वह यह भूल जाता है कि यह जिंदगी और मौत के बीच में लटका हुआ है। 

एक कहानी है कि एक बार एक राजा हाथी पर बैठा हुआ था। वह भी नशे में धुत था, हाथी भी नशे में धुत था और हाथी ने राजा को गिरा दिया। गिरते-गिरते राजा एक कुएं में जा गिरा। गिरते समय राजा को होश आया कि मैं गिर रहा हूं तो उसने हाथ से पकड़ने की कोशिश की और एक टहनी थी उसको पकड़ लिया। लिया। अब वह देखता है, अब उसको होश आया तो वह देखता है कि एक टहनी पकड़ी हुई है और नीचे देखता है तो नीचे बड़े-बड़े मगरमच्छ, बड़े-बड़े सांप और वो चाहते हैं कि राजा गिरे ताकि वो उसको खा जाएं। राजा ऊपर देखता है क्या हालत है, तो दो चूहे एक सफेद, एक काला उस टहनी को काट रहे हैं, जिस टहनी को राजा ने पकड़ा हुआ है।

मतलब, स्पष्ट है बात कि हम अज्ञानता के कारण, न जानने के कारण और मैं यह भी कहना चाहता हूं कि एक तो बात होती है न जानना और एक बात यह होती है कि जानबूझकर न जानना — जानते हुए भी अंजान बनना, बहाना बनाना। सभी लोग बहाना बनाते हैं। क्या बनाते हैं बहाना — "हमारे पास टाइम नहीं है!" मतलब, क्या कह रहे हैं आप ? क्या कह रहे हैं टाइम नहीं है, किस चीज के लिए टाइम नहीं है! अपना टाइम बर्बाद करने के लिए तो टाइम सबके पास है, अपना टाइम बर्बाद करने के लिए तो टाइम सबके पास है, परंतु इस टाइम को, इसका सदुपयोग करने के लिए किसी के पास टाइम नहीं है। उलटी गंगा बह रही है। क्या हो गया है इस संसार में — 

 ये जग अंधा मैं केहि समझाऊं, 

सभी भुलाना पेट का धन्धा, मैं केहि समझाऊं।

क्या करूं ? 

गुरु विचारा क्या करै, शब्द न लागा अंग ।
कहैं कबीर मैली गजी, कैसे लागै रंग ।।

कुछ नहीं!

आती है बात अंदर मनुष्य क्या देखता है ? अपनी मुसीबतों को देखता है और मुसीबत से बचाने वाला कहता है, "अच्छा वहां मत जाना — वहीं जाता है। यह मत करना — वही करता है।” किसी भी संकट में अपने आपको मत भूलो; किसी भी संकट में इस स्वांस को मत भूलो, इस जिंदगी को मत भूलो। क्या भूलता है आदमी, उसी चीज को भूलता है। कितना भी अंधेरा बाहर हो तुम्हारे अंदर उजाला है, उसी को भूलता है। फिर जब दुखी होता है तब उसके लिए सारा टाइम ही टाइम है, टाइम ही टाइम है, टाइम ही टाइम है। जो आदमी दुखी है वह कभी यह नहीं कहेगा मेरे पास टाइम नहीं है, मेरे पास टाइम नहीं है, मेरे पास टाइम नहीं है। 

सुख में सुमिरन ना किया, दु:ख में किया याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥ 

जब सबकुछ अच्छा है तब तो इस चीज की तरफ ध्यान ही नहीं गया और जब सबकुछ गड़बड़ होगा तब मनुष्य कि "अब मैं क्या करूँ, अब मैं क्या करूँ, अब मैं क्या करूँ।" वह सोचता है कि "मैं यह कर दूंगा तो मैं यह पा लूंगा या यह पा लूंगा या यह पा लूंगा" और जो पाया हुआ है उसको भूल जाता है। मनुष्य के साथ तो फिर यही बात हो गयी न कि जेब में छेद है, जेब में छेद है और खूब सारा, जहां भी वह जा रहा है उसको हीरे मिल रहे हैं, एक हीरा यहां मिला उसने हीरा उठाया अपनी जेब में डाला, परन्तु जेब में छेद है वह गिर गया। दो-तीन कदम आगे और बढ़ा फिर एक हीरा मिला। हीरे को जेब में रखा परन्तु जेब में छेद है। अच्छा, यह मालूम नहीं है मनुष्य को कि "मेरे जेब में छेद है।" यह नहीं मालूम और यही सबसे बड़ी चीज है। जो पाया भी उसको बचा नहीं पाओगे, उसको रख नहीं पाओगे। क्यों नहीं रख पाओगे; क्यों नहीं बचा पाओगे उसको ? क्योंकि जेब में छेद है।

ठीक, ठीक इसी प्रकार का छेद अज्ञानता है। और इस अज्ञानता की वजह से जो कुछ भी तुम्हारे पास आता है तुम उसको बचा नहीं पाते। यह जो मंथन हो रहा है इसमें से अच्छा भी निकल रहा है और बुरा भी निकल रहा है। बचाना चाहिए अच्छे को, फेंक देना चाहिए बुरे को और तुम उल्टा कर रहे हो जो बुरा है उसे बचा रहे हो और जो अच्छा है उसे फेंक रहे हो। और अज्ञानता क्या है ?

दूसरी बात, जो अज्ञानता जानता है कि वह क्या अज्ञानता है और अज्ञानता को जानते हुए भी वह ज्ञान की तरफ नहीं जाता है, अपनी ओर नहीं जाता है, तो फायदा क्या है! ज्ञान का, अज्ञान का, तो फायदा क्या है! जो आदमी पॉकेट में तो फ्लैश लाइट रखी हुई है, टॉर्च रखी हुई और अंधेरे में ठोकर खा रहा है और चिल्ला रहा है "हाय राम, हाय राम, हाय राम, हाय राम, चोट लग गई, चोट लग गई, चोट लग गई, चोट लग गई, कोई बचाओ, यह करो, वह करो।" परन्तु अपनी जेब में हाथ डालकर वह लाइट जलाने के लिए तैयार नहीं है। लाइट में सबकुछ है, फ्लैश लाइट में नयी बल्ब है, सबकुछ ठीक है, नयी बैटरी हैं, सबकुछ ठीक है। खूब अच्छी रोशनी देती है, परन्तु अपने हाथ में वह लेने के लिए तैयार नहीं है। तो ऐसी हालत में क्या होगा ?

खुशखबरी यह है कि जबतक तुम जीवित हो, वह दिया तुम्हारे अंदर जलता रहेगा। और जब तुम उस दीये को अपने से बाहर में लाओगे तो चाहे कितना भी घोर अंधेरा हो, वह घोर अंधेरा नहीं रहेगा। फिर प्रकाश ही प्रकाश हो जाएगा। और प्रकाश का मतलब ? प्रकाश का मतलब यह है कि अब तुम देख सकते हो कौन-सी चीज कहां है, कौन-सी चीज से तुमको बचना है, कौन-सी चीज से तुमको बचने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इधर से मुड़ना है, उधर से मुड़ना है, इधर से चलना है, उधर से चलना है, सब दिखाई देगा — यह है ज्ञान।

और अज्ञानता क्या है ? आँख बंद है, अँधेरा ही अँधेरा है , कभी इधर ठोकर खा रहे हैं, कभी उधर ठोकर खा रहे हैं, कभी उधर ठोकर खा रहे हैं, कभी उधर ठोकर खा रहे हैं, ऐसे करते-करते-करते अगर पैर भी टूट गया तो फिर कहीं जा भी नहीं पायेंगे, एक ही जगह बैठे रहेंगे, एक ही जगह कहेंगें कि "भगवान! मेरे को ऐसा क्यों बनाया, मेरे साथ — मैंने क्या ऐसा किया था, फिर कर्मों की बात होगी, यह होगा, वह होगा।" भगवान की तरफ ध्यान जाएगा तो भगवान की तरफ इसलिए ध्यान नहीं जाएगा कि "भगवान तैनें मेरे को यह मनुष्य शरीर दिया, मैं कितना भाग्यशाली हूं।" वो जहाँ ध्यान जाएगा कि "तैनें मेरे साथ ये अत्याचार क्यों किया! नहीं! यही तो होता है ना ? यही तो होता है। लोग यही करते हैं, "कोई कहीं जाता है, कोई कुछ करता है, कोई कुछ करता है, कोई कुछ करता है, कोई कुछ करता है।"

जो तुम्हारे अंदर भगवान है उसकी भक्ति कैसे होगी ? केला चढ़ाकर ? उसको केला पहुँचाओगे कैसे ? उसकी भक्ति तभी हो सकती है जब एक — तुम अपने आपको जानो, इस जिंदगी को सचेत रूप से जीयो और तीसरी चीज अपने हृदय के अंदर वह आभार भरे। जब यह होगा, तब सबकुछ होगा। और यह नहीं होगा तो कुछ नहीं होगा। खाली हाथ आये थे, खाली हाथ जाओगे — और यही करना चाहते हो तो उसमें कोई खराबी नहीं है, करो, कोई बात नहीं है। परन्तु क्योंकि तुमको मनुष्य शरीर मिला है, तो एक संभावना उत्पन्न हुई है और वह संभावना यह है कि तुम आनंद से भर जाओ, तुम्हारा हृदय रूपी यह जो प्याला है वह आनंद से भर जाए। यह हो सकता है, यह हो सकता है। सोचो, विचारो और अपना ख्याल रखो और आनंद लो।

सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

 

मोक्ष का दरवाजा 00:19:25 मोक्ष का दरवाजा Video Duration : 00:19:25 साथ साथ, न० : 4, श्रृंखला, श्री प्रेम रावत द्वारा

मेरे श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

आज मैं जिस चीज की बात करना चाहता हूं, एक तो — सबसे बड़ी बात यह है कि हमारे पास, हमारे सामने यह मौका है। ठीक है, "समस्याएं हैं, यह बात है, वह बात है, कोरोना वायरस है, इकोनॉमी का क्या होगा" ये सारी बातें अख़बारों में आती रहती हैं, "कहीं ये हो गया, कहीं वो हो गया" — ये सारी बातें अख़बारों में आती रहती हैं। और खबर है, और खबर है, लोग कहते हैं "ताजी खबर है, ताजी खबर है, इसको पढ़ो, इसको पढ़ो, इसको पढ़ो," पर एक और भी खबर है और वह खबर यह है कि आप जीवित हैं — आप जीवित हैं, आपको ये सारी चीजें करनी हैं, "यह करना है, वह करना है, ये बात होनी चाहिए, ये बात होनी चाहिए, ये बात होनी चाहिए।"

देखिये एक बात तो स्पष्ट है, जिस भी रास्ते पर मनुष्य आज चल रहा है, न मनुष्य खुश है, न रास्ता खुश है। मनुष्य क्यों नहीं खुश है, क्योंकि उसको और चाहिए। सारी प्रकृति क्यों खुश नहीं है, क्योंकि वह प्रकृति को ही परेशान कर रहा है अपनी इच्छाओं को पूरी करने के लिए। सुंदर-सुंदर नदियां उनको मैला कर दिया, सुंदर-सुंदर जंगल उनको काट रहा है। ये  सबकुछ जो हो रहा है इस संसार के अंदर, एक-दूसरे को मारने के लिए सब तैयार बैठे हुए हैं। अच्छा, एक बात आप देख लीजिये — अगर कोई गलती करता है, तो मनुष्य जैसी गलती करता है वैसा कोई नहीं करता है। मनुष्य जैसे गलती करता है और कोई नहीं करता है और मनुष्यों के पास हैं वह बटन जिनको दबाया और अगर गलती से भी दबा दिया और मिसाइल (missile) चल गई तो लाखों के लाखों लोग मर सकते हैं। ये हाल है।

विज्ञान, कोई भी ज्ञान, कोई भी ज्ञान ऐसा होना चाहिए जिससे कि मनुष्य बचें, ये नहीं कि मनुष्यों का अंत हो। तुम क्या हो — मनुष्य हो। मैं क्या हूं — मनुष्य हूं। यह नहीं कि मैं ऐसी चीज बनाऊं जिससे कि मैं तुमको मारुं, नहीं। या तुम मेरे को मारो, नहीं। बल्कि मैं तुमको बचा सकूँ, हानि से बचा सकूँ, ऐसी चीज का मैं अविष्कार करूं। तुम ऐसी चीज का अविष्कार करो। जो वैज्ञानिक लोग हैं वह ऐसी चीज का आविष्कार करें, जिससे कि मनुष्य बचें, मरे नहीं, बचें। परन्तु आज जो हालत है, वो हालत यह बना रखी है मनुष्य ने कि जहाँ देखो लोग एक-दूसरे को मारने के लिए तैयार हैं।

तो अगर इसके बारे में जरा सोचा जाए तो "ये सबकुछ हुआ कैसे!" इतना लालच, इतना लालच, इतना लालच, इतना लालच, इतना लालच, यह आया कहां से लालच! क्योंकि मनुष्य के अंदर अच्छाई तो है। इस संसार के अंदर जो हम अखबारों में पढ़ते हैं, "यह हो रहा है, वह हो रहा है, इसका ऐसे गलत कर दिया, ऐसे किसी ने गलत कर दिया।" ठीक है, परंतु यह मत भूलो इस संसार के अंदर आज भी, अभी भी, बहुत सारे, बहुत सुंदर लोग, अच्छे लोग हैं, जो सचमुच एक-दूसरे का भला चाहते हैं। वो एक-दूसरे को बचाने के लिए तैयार हैं। इस बात को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि अच्छाई मरी नहीं है। इस समय हो क्या रहा है कि जो मनुष्य की बुराइयां हैं, उन पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है और जो अच्छाइयां है, उन पर कम ध्यान दिया जा रहा है। और सबसे बढ़िया चीज क्या है मनुष्य के लिए! उसकी अच्छाई कहां है ? मनुष्य की वह अच्छाई उसके अंदर है।

जो हजारों-हजारों साल पहले, वो लोग जिन्होंने अपने आपको जानने की कोशिश की, अपने आपको पहचानने की कोशिश की और उन लोगों के दिमाग में एक बात स्पष्ट थी कि यह जो मनुष्य है, यह बहुत गलत रास्ते पर चलेगा। क्योंकि उन्होंने उसी समय देखा कि वह गलत रास्ते पर चल रहा था। और उनको लगा कि “अगर ऐसे चलता रहा, चलता रहा, चलता रहा, तो पता नहीं कहां का कहां गलत रास्ते से पहुँच जाएगा।” तो बड़ी सुंदर-सुंदर बातें उन्होंने मनुष्य को समझाने के लिए रखीं। और एक बात, हर एक बात में से एक बात कि जिस अच्छाई को तुम खोज रहे हो, जिस चीज को तुम खोज रहे हो, वह तुम्हारे अंदर है। बाहर नहीं, पेड़ पर नहीं, समुद्र के नीचे नहीं, तुम्हारे अंदर है। और अगर तुम दो मिनट भी बैठ करके इस बात को विचारो, सोचो कि सचमुच में तुम कितने भाग्यशाली हो, इसलिए नहीं कि तुम्हारी जो इच्छाएं हैं, जो बदलती रहती हैं —

मन के बहुत तरंग हैं, छिन छिन बदले सोय।
एकै रंग में जो रहै, ऐसा बिरला कोय ।।


तो ये जो इच्छाएं बदलती रहती हैं — "कभी कहीं भागती हैं, कभी कहीं भागती हैं, कभी कहीं भागती हैं, कभी कहीं भागती हैं।" एक रंग की बात, वह क्या बात है — वह बात है कि तुम बैठ करके सोचो कि तुम सचमुच में कितने भाग्यशाली हो कि वह चीज, जिसकी तुमको तलाश है, वह तुमसे बाहर नहीं है, वह तुम्हारे अंदर है। कितनी सुंदर बात है, पर उसका कोई असर नहीं होता है मनुष्य पर। क्या पूछेगा कि मैं अगर उस चीज को जान जाऊं जो मेरे अंदर है, तो क्या होगा ? मेरा बिजनेस आगे बढ़ेगा! मेरा प्रमोशन होगा! मेरे को ग्रेड्स अच्छे मिलेंगे स्कूल में! मेरे को अच्छा पति मिलेगा; मेरे को अच्छी पत्नी मिलेगी; मेरा घर और बनेगा ?"

ये बातें मनुष्य सोचता है। तुम जब पानी पीते हो, तो उससे क्या होता है ? तुम्हारी प्यास बुझती है। तुम्हारे अंदर भी एक प्यास लगी है अपने आपको जानने की, अपने आपको पहचानने की। और यह प्यास जबतक तुम बुझा नहीं पाओगे, तबतक तुम खोजते रहोगे, खोजते रहोगे, खोजते रहोगे, खोजते रहोगे, यह काम करेगी, यह काम करेगी, नई चीजों का आविष्कार करोगे, नई चीजों — हरेक चीज बदलेगी और बदलते रहोगे, बदलते रहोगे, बदलते रहोगे और तुमको एक मिनट का यह भी नहीं होगा कि "मैं बदल क्यों रहा हूं!” मैं बदल क्यों रहा हूं, पर बदलते रहेंगे लोग। क्यों बदलते रहेंगे ? क्योंकि वो जानते नहीं कि क्यों बदल रहे हैं। उनको खुद ही नहीं मालूम कि क्यों बदल रहे हैं। अगर बदल भी रहे हैं तो उनको मालूम नहीं है कि क्यों बदल रहे हैं। मैं कहता हूं कि वो इसलिए बदल रहे हैं और यही बात उनको, जो लोग इस बात को समझे कि कितना जरूरी है कि मनुष्य अपने आपको समझे। उनको हम लोग संत-महात्मा भी कहते हैं, महापुरुष भी कहते हैं। और आज की बात नहीं है, कल की बात नहीं है, हजारों साल पहले की बात मैं कह रहा हूं। तो क्या कि —  

बड़े भाग मानुष तन पावा |
सुर दुर्लभ सद् ग्रन्थन्हि गावा ||
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा |
पाई न जेहिं परलोक सँवारा

यह मोक्ष का दरवाजा है। इसकी परिभाषा आपके लिए पहले ही कर दी कि आप कितने भाग्यशाली हैं कि यह जो नर तन है, जो आपको मिला है यह देवी-देवताओं को भी दुर्लभ है, उनके पास नहीं है। देवी-देवताओं के बारे में तो कहा जा सकता है कि “वो खा सकते हैं, बना नहीं सकते हैं।” तो जब हवन होता है या पूजा होती है तो देवी-देवताओं को दिया जाता है, क्योंकि वो खा सकते हैं, पर बना नहीं सकते हैं। मनुष्य ही एक ऐसा है जो बना भी सकता है और खा भी सकता है। और क्या-क्या नहीं बना दिया मनुष्य ने! ऐसे-ऐसे पकवान जिनके बारे में सोचते ही मुंह में पानी आता है। और सबसे बड़ी बात कि वह जिसकी तुमको तलाश है, जिस चीज की तुमको तलाश है, जिस चीज की तुमको प्यास है, वह भी तुम्हारे अंदर है।

तो अपने आपको जानना, अपने आपको पहचानना इसकी यही कीमत है कि तुम अपने जीवन को सफल करो। और चीजें हैं जिसके पीछे सब लोग भाग रहे हैं। यह कोई नहीं पूछ रहा है, “क्यों भाग रहे हैं!” यह कोई नहीं — भाग रहे हैं, परंतु यह नहीं मालूम क्यों भाग रहे हैं। यह मालूम है कि जो हो रहा है वह अच्छा नहीं हो रहा है, परन्तु क्यों अच्छा नहीं हो रहा है यह नहीं मालूम। इसके लिए बड़े-बड़े विद्वान लोग बैठकर के आर्टिकल लिखते हैं, बड़ी-बड़ी किताबें लिखते हैं, बड़े-बड़े भाषण होते हैं, बड़े-बड़े डिबेट होते हैं — डिबेट ने किसका पेट भरा! कुछ नहीं, होता वही है। 

एक जमाना था, क्या-क्या नहीं होता था। आज जमाना है, क्या-क्या नहीं हो रहा है। बड़े-बड़े आविष्कार हो गए हैं बीच में, परन्तु मनुष्य अभी भी अपने आपको सुरक्षित नहीं पाता है। अभी भी उसको डर लगता है; अभी भी उसको भय लगता है। छोटी, छोटी, छोटी, छोटी, लड़ाइयां और बढ़ गई हैं। जो हर एक देश का डिफेंस बजट है वह बढ़ रहा है, घट नहीं रहा है, बढ़ रहा है, और बढ़ रहा है, और बढ़ रहा है, और बढ़ रहा है, और बढ़ रहा है। क्यों ? कैसी प्यास लगी है ? क्या चाहते हो ?

कई लोग हैं जिनको तो यह भी नहीं मालूम कि "हृदय" होता क्या है,  पर प्यास तो अंदर से लगी है तुमको। और जबतक वह प्यास बुझेगी नहीं, तबतक तुम खुश नहीं रह पाओगे। सबकुछ होने के बाद भी ऐसा लगेगा जैसे कोई चीज अधूरी है — सबकुछ होने के बाद।

इसीलिए मैं बार-बार लोगों को समझाता हूँ कि "भाई, सबकुछ हमारे आगे है। क्या करना है — हजारों साल पहले वह बात स्पष्ट हो गई है। क्या — कि जिस चीज की तुमको तलाश है, वह तुम्हारे अंदर है। अब उनको कैसे मालूम कि हम किसी चीज को तलाशेंगे — 2020 में हम किसी चीज को तलाशेंगे, उनको कैसे मालूम था ? क्योंकि उनको मालूम था कि वह चीज बदलती नहीं है, वह तब भी वैसी थी और आज भी वैसी है और वो कभी बदलेगी नहीं, चाहे कुछ भी हो जाए, वो बदलेगी नहीं।

हां, मनुष्य लगा हुआ है। अंधाधुंध चीजों को नष्ट कर रहा है, नष्ट कर रहा है, नष्ट कर रहा है, नष्ट कर रहा है और क्यों नष्ट कर रहा है ? सोचिये जरा, क्यों नष्ट कर रहा है! प्रकृति को जो वह नष्ट करने में लगा हुआ है, वह क्यों नष्ट कर रहा है ? वह इसलिए नष्ट कर रहा है, क्योंकि वह खुश होना चाहता है। वह सुखी होना चाहता है, वह आनंद में रहना चाहता है। और जो आनंद में वह रहना चाहता है, वह उसके अंदर है। जो सचमुच में चीज उसको खुश करेगी, वह बाहर नहीं है, वह उसके अंदर है। जो सचमुच में परमानंद है, जिसकी वह खोज कर रहा है, वह भी उसके अंदर है, बाहर नहीं और वह खोज रहा है बाहर। कभी मिलेगी उसको ? नहीं, मिल ही नहीं सकती। जब वहां वह है ही नहीं, वह आनंद बाहर है ही नहीं, तो वह खोजता रहे, खोजता रहे, खोजता रहे, खोजता रहे, खोजता रहे।  

अब लोग कितने खुश होते हैं, जब नया मकान बनाते हैं — नया मकान बनाते हैं, खुश हो जाते हैं। अपना नाम आगे लगाते हैं, खुश हो जाते हैं, "हां, यह हमारा नया मकान है।" पर कभी यह सोचते हैं कि एक दिन इस मकान में मैं नहीं रहूंगा, कोई और रहेगा — मैं गलत कह रहा हूँ ? जिसने भी वह मकान बनाया, वह तो वहां रह नहीं रहा। कितने ही ऐसे मकान हैं, जो फिर लोग खरीदते हैं। यह नहीं सोचता है मनुष्य, यह नहीं सोचता है। पर लगा हुआ है, पर बाहर उन चीजों का आनंद, जो असली आनंद है, वह उसके अंदर है और वह पा सकता है। वह जान सकता है, पहचान सकता है।  

तो भाई, यही मैं आप लोगों से कहना चाहता था। सुरक्षित रहिये और इस बीमारी से बचिए — "ना किसी को दीजिये; ना किसी से लीजिये" — और आनंद में रहिये।

तो सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

तुम भाग्यशाली हो 00:22:45 तुम भाग्यशाली हो Video Duration : 00:22:45 साथ साथ, न० : 5, श्रृंखला, श्री प्रेम रावत द्वारा

हमारे सब श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार। मुझे आशा है आप कुशल-मंगल होंगे। और मैं आपसे यही कहना चाहता हूं कि यह जो जीवन मिला है यह सचमुच, आप कितने भाग्यशाली हैं कि आपको यह जीवन मिला। अब जब लोग यह शब्द सुनते हैं "भाग्यशाली" तो मेरे को एक प्रोग्राम मेरा याद आता है, जो नेपाल में हमने किया। काफी साल हो गए हैं उस प्रोग्राम को किये हुए। तो बहुत सारे लोग आए हुए थे और हम सुना रहे थे। और मैंने कहा कि, "कितने लोग हैं यहां, जो अपने आपको भाग्यशाली नहीं समझते हैं ?" तो मैं भी इस बात के लिए तैयार नहीं था कि कितने लोगों ने अपने हाथ ऊपर किए। और मैंने कहा कि "अगर कुछ ना भी हो मेरा काम यह है कि आज यहां जाने से पहले, आप अपने आपको भाग्यशाली समझें।"    

क्योंकि अगर कोई अभागा है तो वह है, जो भाग्यशाली होते हुए भी अपने आपको भाग्यशाली नहीं समझता। क्यों नहीं समझता ? क्योंकि सबसे पहले वह कौन-सी चीजों को देखता है ? अपनी समस्याओं को देखता है, अपनी मुश्किलों को देखता है। अब जब सारे, दिन-रात चिंता किस बात की है ? दिन-रात है चिंता अपनी समस्याओं की। सबेरे मनुष्य उठता है… और हिंदुस्तान में तो यह बात है कि — एक दिन एक राजा उठा अपने पलंग से, खिड़की के पास गया, खिड़की खोली और उसने देखा एक व्यक्ति नीचे खड़ा हुआ है तो दोनों की आंखें मिली और जो व्यक्ति था उसने राजा को प्रणाम किया और राजा वहां से चला गया। और वह दिन राजा का बहुत बुरा बीता, बहुत बुरा बीता। उसके पैसे भी खत्म हुए, राजा के और कई दरबारियों ने उस पर हमला बोलने की कोशिश की। उसका मतलब, सारा दिन उसका खराब गया। जब शाम का टाइम आया, तो राजा को सचमुच में बहुत गुस्सा आया कि "आज का दिन इतना खराब, इतनी मुश्किलें, इतनी मुश्किलें, इतनी मुश्किलें मेरे को झेलनी पड़ीं, जरूर इसके पीछे कोई कारण है!" 

तो उसने सोचा, "हां, सबेरे जब मैं उठा था और मैंने खिड़की खोली, तो मैंने एक व्यक्ति को नीचे खड़ा देखा। तो राजा ने तुरंत सब जगह ऐलान करवाया कि वह जो व्यक्ति है वह सामने आए। तो गरीब ब्राह्मण था वो। वह आया राजा के सामने। राजा ने पूछा कि, "तुम वही व्यक्ति हो जिसकी नजर हमसे मिली आज सबेरे ?"

कहा — "हां महाराज, आपके दर्शन हुए सबेरे।"

राजा ने कहा, "ठीक है।" 

अपने सिपाहियों को राजा ने संकेत किया "इसका सिर इसके धड़ से अलग कर दो। इसका सिर काट दो, इसको मार दो।" 

 ब्राह्मण बोला, "महाराज, क्यों ?"

राजा ने कहा कि "जब मैं सबेरे-सबेरे उठा सबकुछ ठीक था। उसके बाद मैंने खिड़की खोली, तेरा चेहरा देखा और सारा दिन मेरा इतना खराब गया, इतना खराब गया, इतना खराब गया, इतना खराब गया कि मैं कह नहीं सकता। वह सब तेरे कारण हुआ। अगर मैं तेरा मुंह नहीं देखता, तो ये सबकुछ नहीं होता।"

ब्राह्मण बोला, "महाराज, ठीक है, आप राजा हैं। जैसा आप कहें। पर, जरा सोचिए कि मेरा दिन कैसे बीता। मेरा तो सिर मेरे धड़ से अलग होने जा रहा है। और वह सिर्फ इसलिए क्योंकि मैंने आपका चेहरा देखा। आपने मेरा चेहरा देखा, तो ठीक है आपको कुछ मुश्किलें हुईं आपके इस दिन में। परंतु मैंने आपका देखा और मैं मरने जा रहा हूं। तब राजा को समझ में आया, "अरे मैं किस चीज के पीछे पड़ा हूँ!" यह सब बकवास है। इसके पीछे नहीं पड़ना है।

तो कोई आता है, कोई कहता है कि सचमुच में तुम बहुत भाग्यशाली हो। तो लोग कहते हैं "नहीं।" क्यों नहीं ? "हमारा यह हो जाए, तब हम भाग्यशाली अपने आपको समझेंगे, जब यह हो जाए, तब समझेंगे, जब यह हो जाए, तब समझेंगे।" पर ये जितनी भी चीजें हैं, जिनके होने से तुम अपने आपको भाग्यशाली समझोगे, इन वजहों से तुम भाग्यशाली नहीं हो। तुम्हारी नौकरी में तरक्की हो जाए, इसकी वजह से तुम भाग्यशाली नहीं हो। क्योंकि जिस नौकरी में तुम तरक्की चाहते हो, एक दिन तुमको वही नौकरी छोड़नी पड़ेगी। उसे कहते हैं "रिटायरमेंट।"  

लोगों को यह है कि "अजी, हमारा लड़का नहीं हो रहा है।" लड़का चाहिए सबको हिन्दुस्तान में। और अब थोड़ा-थोड़ा बदल रहा है, कोई बात नहीं "हमारा बच्चा नहीं हो रहा है।" एक दिन तुमको भी अपने बच्चे को छोड़ना पड़ेगा। वह बच्चा नहीं रहेगा, तब वह भी बड़ा हो जाएगा और तुम भी वृद्ध हो जाओगे। और उसको छोड़ना पड़ेगा। "हमारा यह बिज़नेस रुका हुआ है।" बिज़नेस तो बिज़नेस है। कभी किसी का होता है, कभी किसी का होता है, कभी किसी का होता है। 

तुम उसको अपना बनाना चाहते हो, वह तुम्हारा थोड़ी होगा। बिज़नेस का क्या है ?  

बड़े-बड़े सोचने वाले, बड़े-बड़े थिंक-टैंक वाले, बड़े-बड़े अपने कमरे में बैठ करके, सोच करके, विचार के, मीटिंग करके, यह करके, वह करके, इतना पैसा बनाएंगे, ये कर देंगे, वो कर देंगे। और एक ने यह नहीं सोचा कि ऐसी कोई वायरस आएगी, जो सबके-सबकी खड़ी कर देगी। बड़े-बड़े बिज़नेस, गए। कैसे ? क्योंकि.....भैया, इसी को माया कहते हैं। और माया के कारण तुम भाग्यशाली नहीं हो। तुम भाग्यशाली हो इसलिए कि तुमको यह मनुष्य शरीर मिला है और इसमें जो बनाने वाले की असली कृपा है — इस स्वांस  का आना-जाना, वह लगा हुआ है और क्योंकि तुम जीवित हो यह संभावना उत्पन्न होती है कि तुम अपने जीवन में आनंद को महसूस कर सको। तुम्हारा जीवन आनंद से भर सके। तुम्हारी इच्छाओं से नहीं। तुम्हारी इच्छापूर्ति के लिए नहीं, तुम्हारी इच्छापूर्ति के लिए यह जीवन तुमको नहीं मिला है। तुम्हारी इच्छापूर्ति के लिए यह जीवन तुमको नहीं मिला है। यह जीवन मिला है, यह मोक्ष का दरवाजा है। यह भवसागर को पार करने का साधन है — 

नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो। सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो॥

इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है। तो यह समझने की बात है। यह समझने की बात है। लोग तो लगे हुए हैं, "हां जी, हमारी इच्छापूर्ति होनी चाहिए।" अब कहां, कहां-कहां भागते रहोगे अपनी इच्छापूर्ति के लिए ?  कहां-कहां नहीं भागे! तुमको याद है कब से तुम्हारी इच्छाएं हैं ? कब से ? और भगवान से प्रार्थना करते थे, "भगवान मेरी यह इच्छा पूरी कर दे।" कितनी बार तुमने अपने पलंग पर बैठे-बैठे यह सोचा होगा, "भगवान आज किसी न किसी तरीके से छुट्टी कर दे, स्कूल में।" नहीं हुई। क्या करोगे ? नहीं हुई। "भगवान इस बार पास कर दे, अगले साल मैं और पढूंगा!" नहीं हुई। फेल हो गए। ये सारी चीजें, जो मनुष्य समझता है कि यह साधन है इच्छापूर्ति का। यह इच्छा पूर्ति का साधन नहीं है। कहीं नहीं कहा है कि यह इच्छापूर्ति का साधन है। बड़े-बड़े गुरु हैं, बड़े-बड़े स्वामी हैं यही लोगों को कहते है, "अच्छा, यह कर दो तो इच्छापूर्ति हो जाएगी तुम्हारी, यह कर दो तो इच्छापूर्ति......" लोगों को बहका रहे हैं। खुद तो उनकी होती नहीं है औरों के पीछे लगे हुए हैं कि उनकी इच्छा पूरी कर देंगे। और जहां देखो, कहा है क्या कि —

नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो — यह भवसागर को पार करने का साधन है। इच्छापूर्ति का तो सवाल ही नहीं पैदा होता है। इच्छापूर्ति का तो सवाल ही नहीं पैदा होता है।

मृग नाभि कुंडल बसे, मृग ढूंढ़े बन माहिं।

ऐसे घट घट ब्रह्म हैं, दुनिया जानत नाहिं।।

इच्छापूर्ति का तो सवाल ही नहीं पैदा होता है। क्या है कि —

जल बिच कमल, कमल बिच कलियां, जा में भंवर लुभासी। 

सो मन तिरलोक भयो सब, यती सती संन्यासी।।  

और आखिरी में कि —

है घट में पर दूर बतावें, दूर की बात निरासी 

है घट में पर दूर बतावें, दूर की बात निरासी

तुम्हारे ही घट में है — जिस चीज की तुमको तलाश है, वह तुमसे दूर नहीं है, वह तुम्हारे पास है। इसलिए तुम भाग्यशाली हो। और तुम यह बात न भी जानो, अगर तुम यह बात न भी जानो, तब भी तुम भाग्यशाली हो। पर फ़र्क यह है तुम जानते नहीं कि तुम भाग्यशाली हो और एक व्यक्ति है जो इस बात को समझता है, उसको मालूम है कि वह भाग्यशाली है। 

कहानी आती है ना वही कि एक आदमी जा रहा था, उसको एक कांच का टुकड़ा दिखाई दिया। तो वह, नीचे की तरफ उसने सोचा कि यह कांच का टुकड़ा है और किसी को लग जाएगा अच्छी बात नहीं है, अच्छा नहीं होगा। तो उसने उठा करके उसको फेंक दिया। भला ही काम किया उसने, उसको फेंक दिया। अब फेंक दिया, तो एक दूसरा आदमी आ रहा है पीछे। उसने देखा कांच का टुकड़ा नहीं है, हीरा है। उसने उठाकर अपनी जेब में रख लिया। अब जरा इन दो आदमियों के बारे में बात करते हैं। एक जो पहला वाला था, आदमी खराब है ? नहीं, आदमी अच्छा है। आदमी अच्छा है, क्योंकि वह भला चाहता है लोगों का कि इस कांच के टुकड़े से कोई घायल ना हो जाए, तो उसने उस कांच के टुकड़े को उठाकर फेंक दिया। दूसरा आता है, वह देखता है — वह देखता है तो उसको क्या दिखाई देता है ? वह कांच का टुकड़ा नहीं है, वह हीरा है। जो हीरे को काटते हैं, अभी कट नहीं किया गया है उसको, काटा नहीं गया है, पर हीरा है। और वो भी उसको उठाकर के अपनी जेब में डाल देता है। मतलब, क्या बड़ी चीज है इसमें ?   

सबसे बड़ी चीज इसमें यह है कि एक को परख है और एक को परख नहीं है। जिसको परख नहीं है, उसने तो सिर्फ एक ही काम किया कांच का टुकड़ा समझ के उसको रास्ते से उठाकर के फेंक दिया। दूसरे ने, अगर पहले वाला नहीं आता, दूसरा ही वाला आता और वह देखता कि हीरा पड़ा हुआ है तो वह भी तो उसको उठा करके अपनी जेब में डालता ताकि किसी को हानि नहीं पहुंचती। कैसे पहुंचती ? वह तो जेब में है। तो बात हानि पहुंचाने की अच्छे काम की नहीं हुई, बात है परख की। सोचिये आप, बात है परख की, जानने की। 

तो सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि क्या आप जानते हैं, क्या मिला है आपको ? क्या है यह मनुष्य शरीर ? ठीक है, एक तरफ तो यह मिट्टी है, एक तरफ तो यह मिट्टी है। दो-तीन दिन पहले मैं किसी से बात कर रहा था, मैंने कहा कि "यह जो मेरी मिट्टी है यह वाली, यह साधारण मिट्टी नहीं है। यह इसलिए साधारण मिट्टी नहीं है, क्योंकि जब भी हम स्कूल जाते थे — मंडे, ट्यूजडे, वेनसडे, थर्सडे, फ्राईडे, सैटरडे, तो यह मिट्टी बनी है “बन-समोसे से।” इसमें है बन और समोसा। वो खाते थे लंच टाइम पर और शिकंजी — एक बोतल शिकंजी, गर्मियों में। तो ये हमारी जो खाल है, यह बनी हुई है बन-समोसे की। पर खैर, है यह मिट्टी। मज़ाक-मज़ाक में मैंने उससे कहा। पर है यह मिट्टी और मिट्टी में जाकर इसको मिलना है।  

तो फिर बड़ी बात क्या हुई ? वो परखने की! जानने की है, देखने की है, पहचानने की है। पहचान क्या होती है ? मां के सामने हजारों बच्चे रख दीजिए वह अपना पहचान लेगी। और बच्चे के सामने हजारों मां रख दीजिए वह अपनी पहचान लेगा, अपनी मां पहचान लेगा। बात है पहचानने की। क्या आप पहचानते हैं कि यह क्या है ? यह जो शरीर मिला है, यह क्या है ? इससे क्या संभव है ? इससे आप अपने जीवन में उस चीज का अनुभव कर सकते हैं, जो सब जगह है। जो सब जगह है। और आपके घट में भी है। उस चीज का अनुभव कर सकते हैं — 

विधि हरि हर जाको ध्यान करत हैं, मुनि जन सहस अट्ठासी। 

सोई हंस तेरे घट माहीं, अलख पुरुष अविनाशी।।

उसका अनुभव कर सकते हैं और उसका दर्शन करना, उसका अनुभव करना, वह एक ही व्यक्ति कर सकता है, जो सचमुच में, सचमुच में बहुत, बहुत भाग्यशाली है। है वह सबके घट में, पर वो समझने वाले बहुत कम हैं। वही वाली बात है —

गुरु बेचारा क्या करे शब्द न लगे अंग — कोई बात समझ में आती ही नहीं है। इतने पड़े हुए हैं अपनी समस्याओं के पीछे, इतने पड़े हुए हैं, दिन-रात उन्हीं का.... भजन भी किसका हो रहा है ? समस्याओं का हो रहा है। रात को उठे हैं, तो किसके बारे में सोच रहे हैं ? समस्याओं के बारे में सोच रहे हैं। तो तुम समस्याओं के अगर भक्त बन गए, तो समस्या तुम्हारी भगवान, तुम समस्या के भक्त। लगे रहो। और एक दिन वह समय आएगा कि तुमको जाना है और उस दिन क्या करोगे ? कुछ नहीं। उस दिन भी तुम रोओगे, "अभी नहीं, अभी नहीं, अभी नहीं।"  

मैं एक भजन सुन रहा था कि — 

मानुष जन्म अनमोल रे माटी में न रोल रे।

अब तो मिला है फिर न मिलेगा कभी नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं रे। 

मत कर गर्व जवानी का तू है बुलबुला पानी का।

ये सारी चीजें हमारी मदद करने के लिए हैं कि हम समझ पाएं कि क्या हमको मिला है। और मैं तो यही समझता हूं कि सभी लोगों को यह देखना चाहिए, समझना चाहिए, परखना चाहिए कि आप सचमुच में कितने भाग्यशाली हैं। 

सभी लोगों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार।

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