2024 में, छह महाद्वीपों में, लोगों ने श्री प्रेम रावत जी के प्रेरक संदेश को अपनाया और इस जीवन द्वारा मिले अवसर को गहराई से समझा।
2025 के स्वागत के लिए, श्री प्रेम रावत जी ने एक विशेष नए साल का संदेश रिकॉर्ड किया है, जिसका आप आनंद ले सकते हैं और इस संदेश में रुचि रखने वालों से साझा कर सकते हैं। लॉग-इन की आवश्यकता नहीं है।
यह संदेश आप टाइमलेस टुडे® ऐप्प/वेबसाइट, श्री प्रेम रावत केआधारिक यूट्यूब चैनल और PremRawat.com पर देख सकते हैं।
फ्रेंच, हिंदी, इटालियन, चीनी, जर्मन, ब्राज़ीलियाई पुर्तगाली और स्पेनिश में अनुवाद उपलब्ध है, और अन्य भाषाओं में अनुवाद जल्द ही उपलब्ध कराया जाएगा।
आशा है कि 2025 आपके लिए संतोष, कृतज्ञता और जीवित रहने के अटल आनंद लाये। नव वर्ष की शुभकामनाएँ!
श्री प्रेम रावत जी का आशा और शांति का संदेश, वास्तव में जश्न मनाने के लिए एक सम्मोहक और हृदयस्पर्शी कारण है। 8 दिसंबर, 2024 को आयोजित यह जन्मदिन समारोह भी ख़ास और अविस्मरणीय था।
वर्ष के अपने 60वें कार्यक्रम में, श्री प्रेम रावत जी ने स्पेन के बार्सेलोना में खचाखच भरी सभा को संबोधित किया। विश्व भर से 6,900 से अधिक दर्शकों ने ऑनलाइन भाग लिया।
इस स्मृति को पुनः दोहराएं या पहली बार इसका आनंद लें! यह पुनः प्रसारण अब आपकी क्लासिक या प्रीमियर सदस्यता के साथ हिंदी अनुवाद के साथ उपलब्ध है।
श्री प्रेम रावत जी का आशा और शांति का संदेश, वास्तव में जश्न मनाने के लिए एक सम्मोहक और हृदयस्पर्शी कारण है। 8 दिसंबर, 2024 को आयोजित यह जन्मदिन समारोह भी ख़ास और अविस्मरणीय था।
वर्ष के अपने 60वें कार्यक्रम में, श्री प्रेम रावत जी ने स्पेन के बार्सेलोना में खचाखच भरी सभा को संबोधित किया। विश्व भर से 6,900 से अधिक दर्शकों ने ऑनलाइन भाग लिया।
इस स्मृति को पुनः दोहराएं या पहली बार इसका आनंद लें! यह पुनः प्रसारण अब आपकी क्लासिक या प्रीमियर सदस्यता के साथ हिंदी अनुवाद के साथ उपलब्ध है।
(प्रेम रावत) जो हम चाहते हैं और जो असलियत है, इसमें विभाजन क्यों है ? जो हम चाहते हैं और असलियत जो है, उसमें विभाजन क्यों ये है ? वो दोनों चीज़ें अलग-अलग क्यों हैं ?
तो सुनिए, ध्यान से सुनिए।
हम, वो जो शक्ति है जो सबके ह्रदय में विराजमान है, जो हर एक कण-कण में विराजमान है, जो रस्सी जब जली हुई नहीं है तो उसमें भी विराजमान है और जब वो रस्सी जलके राख हो जाए तब भी वो उस रस्सी की राख में विराजमान है। तुममे विराजमान है, और जब तुम इस संसार से चले जाओगे, तुम्हारा शरीर काम नहीं करेगा फिर भी वो तुम्हारे शरीर में विराजमान है । और जब तुम्हारा शरीर जला दिया जाएगा तो जो तुम्हारी राख होगी वो उसमें भी विराजमान है। और जब तुम्हारी राख को बहा दिया जाएगा और जब तुम्हारी राख पानी से मिल जाएगी तो उसमें भी विराजमान है, क्योंकि वो पानी में विराजमान है।
अगर तुमको गाढ़ दिया गया और तुम सड़ गए तो जो तुम्हारा सड़ा हुआ हिस्सा है, वो उसमें भी विराजमान है। और जिस मिट्टी से तुम बने, वो उसमें पहले ही विराजमान था। और जब उस मिट्टी से तुम बने तो वो अब तुममें विराजमान है, और ऐसा कभी होगा नहीं कि तुम उससे कभी जुदा हो जाओ, क्योंकि तुम हो नहीं सकते।
परन्तु वो तब भी था जब तुम, तुम नहीं थे। वो तब भी था जब तुम हो और वो तब भी रहेगा जब तुम नहीं रहोगे। तीनों चीज़ें आ गयी न इस में?था, है, रहेगा, और तुम नहीं।
तुम क्या हो? अपनी याददाश्त हो, पहचान हो। कौन कौन है, कौन क्या है, क्या नाम है, ये सारी चीज़ें, अगर ये सारी चीज़ें तुममें से निकल गई तो कौन क्या है, क्या, कुछ समझ में नहीं आएगा। तो जब ये है, तो फिर चक्कर क्या है ? मतलब जब ऐसा है तो सबकी चैन कि बंसी बजनी छानिये। नहीं ?
सबकी चैन कि बंसी... कहाँ से आया ये गुस्सा, कहाँ से आया ये दुःख? कहाँ से आई ये सारी चीज़ें ? जानना, न जानना, इसका तो सवाल... जब वो है, और रहेगा, और उसको तुम निकल नहीं सकते। उसको ये नहीं कह सकते "यहाँ मत आना।" तो फिर ये सारा चक्कर क्या है ?
जिस-जिस चीज़ की तुम कल्पना करते हो ये तुम्हारी सिर्फ खयालों की दुनिया में है। सिर्फ। और वो इस ख़याल की दुनिया से अलग है। इसी लिए कहा है, इसको तुम अपने खयालों से नहीं पकड़ सकते। खयालों में नहीं है वो।
कण-कण में है, खयालों में नहीं है। कण-कण में है, विचारों में नहीं है। कण-कण में है, और तुम्हारे ह्रदय में है, और ह्रदय में तुम इसका अनुभव कर सकते हो।
ये है समझने की चीज़, ये है जानने की चीज़, ये है पहचाने की चीज़।
दिल्ली में 124वें हंस जयंती समारोह के दूसरे सत्र में प्रेम रावत ने सच्ची संतुष्टि और आंतरिक शांति पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने बताया कि मान-सम्मान अस्थायी होते हैं और अंततः समाप्त हो जाते हैं, इसलिए हमें केवल आंतरिक शांति पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
उन्होंने यह भी बताया कि शांति और संतुष्टि बाहरी चीजों से नहीं, बल्कि हमारे भीतर से आती है। प्रेम रावत जी ने संतुष्टि को प्यास या भूख के शांत होने से तुलना करते हुए कहा कि ये केवल अनुभव से पूरी होती हैं। असली आनंद बाहरी उपलब्धियों में नहीं, बल्कि आत्म-चेतना और आंतरिक संतोष में है।
प्रेम रावत जी ने श्रोताओं को यह समझने के लिए प्रेरित किया कि जो शक्ति पूरे ब्रह्मांड को चलाती है, वही शक्ति उनके अंदर भी है।
उनका संदेश यह था कि सच्ची संतुष्टि और आनंद बाहरी परिस्थितियों में नहीं, बल्कि अपने भीतर शांति और संतोष को अनुभव करने में है।
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दिल्ली में 124वें हंस जयंती समारोह के तीसरे सत्र में श्री प्रेम रावत जी ने बड़ी संख्या में मौजूद दर्शकों को जीवन के उद्देश्य और शांति की आवश्यकता पर कहानियों, विचारों और महत्वपूर्ण सवालों के साथ प्रेरित किया।
श्री प्रेम रावत जी ने विश्व में बढ़ते लालच के प्रभाव पर चर्चा की और अपने शांति के संदेश को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की अपनी प्रतिज्ञा व्यक्त की। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि वास्तविक शांति मानवता की सम्पूर्णता के लिए अनिवार्य है। इसी संदेश को लेकर वे अपनी आगामी यात्रा में अफ्रीका की ओर रवाना होंगे, जहाँ वे दक्षिण अफ्रीका के एक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में उपस्थित लोगों को संबोधित करेंगे, जहाँ हाल ही में एक हजार लोगों ने ज्ञान की प्राप्ति की है।
उन्होंने उन सामाजिक अवधारणाओं पर चर्चा की जो बिना विचार किए लोगों के कार्यों को प्रेरित करती हैं। आत्म-सम्मान की समझ और दूसरों के प्रति सम्मान की भावना के महत्व पर बल देते हुए, उन्होंने समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान के सांस्कृतिक परिवर्तन पर ज़ोर दिया। उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की जो महिलाओं का सम्मान करे और विश्व के लिए एक मिसाल बने।
अंत में उन्होंने एक विचारोत्तेजक प्रश्न के साथ सत्र का समापन किया: "आप अपने जीवन के प्रभारी हैं। आप इस समय के साथ क्या करेंगे?"
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