एक झलक:
ऐंकर : सर! आपकी जिंदगी का कोई ऐसा incident, जिसने आपकी लाइफ को change कर दिया हो ?
प्रेम रावत जी : हां! एक तो था, पर मेरे को याद नहीं है वो। पर मैं जानता हूं कि वो हुआ है जब मैंने पहला स्वांस लिया। मेरी सारी जिंदगी को बदल दिया।
ऐंकर : अरे सर! {हँसने लगते हैं}
प्रेम रावत जी : मेरे को जीवित कर दिया! उससे पहले मैं क्या था ? अब, मैं स्वांस तो ले नहीं रहा था! जब मैं बाहर आया तो किसी न किसी तरीके से — या तो मेरे को उल्टा पकड़ा होगा या कुछ किया होगा, परंतु मेरे को अच्छी तरीके से मालूम है, क्योंकि मैंने देखा है बच्चों का जन्म होते हुए, मेरे अपने, कि उस समय, जब बच्चा बाहर आता है तो ख्याल एक ही चीज पर जाता है। ये नहीं कि वो लड़का है या लड़की है; ये कैसा है, कैसा नहीं है! सिर्फ एक चीज पर जाता है — स्वांस ले रहा है या नहीं ?
चाहे वो किसी भी धर्म का हो, किसी भी मजहब का हो; अमीर हो, गरीब हो — स्वांस ले रहा है या नहीं ? और जैसे ही — अगर वो स्वांस नहीं ले रहा है तो डॉक्टर उसको उल्टा पकड़ता है और एक देता है पीछे से, जबतक वो स्वांस लेना शुरू न कर दे। और जब वो स्वांस लेना शुरू करता है तो वो घर आ सकता है। और अगर वो स्वांस नहीं लेगा तो वो घर नहीं आएगा। अस्पताल से ही कहीं और जाएगा। हां! जबतक वो स्वांस ले रहा है, उसके लिए — उसके चाचा होंगे, उसके मामा होंगे, उसकी मां होगी, उसके बाप होंगे, उसके भाई होंगे, उसके दोस्त होंगे, उसके दुश्मन होंगे, उसके सबकुछ होगा। और जिस दिन वो स्वांस लेना बंद कर देगा, उसको अपने ही घर से ले जाएंगे।
वहां रह नहीं सकते। ये स्वांस का चमत्कार है! और इसको नहीं समझेंगे अगर — तो यही एक चीज है, जो हुई मेरे भी जीवन के अंदर! और आज भी वो चीज मेरे अंदर आ रही है और जा रही है।
एक झलक:
ऐंकर : सर! आपकी जिंदगी का कोई ऐसा incident, जिसने आपकी लाइफ को change कर दिया हो ?
प्रेम रावत जी : हां! एक तो था, पर मेरे को याद नहीं है वो। पर मैं जानता हूं कि वो हुआ है जब मैंने पहला स्वांस लिया। मेरी सारी जिंदगी को बदल दिया।
ऐंकर : अरे सर! {हँसने लगते हैं}
प्रेम रावत जी : मेरे को जीवित कर दिया! उससे पहले मैं क्या था ? अब, मैं स्वांस तो ले नहीं रहा था! जब मैं बाहर आया तो किसी न किसी तरीके से — या तो मेरे को उल्टा पकड़ा होगा या कुछ किया होगा, परंतु मेरे को अच्छी तरीके से मालूम है, क्योंकि मैंने देखा है बच्चों का जन्म होते हुए, मेरे अपने, कि उस समय, जब बच्चा बाहर आता है तो ख्याल एक ही चीज पर जाता है। ये नहीं कि वो लड़का है या लड़की है; ये कैसा है, कैसा नहीं है! सिर्फ एक चीज पर जाता है — स्वांस ले रहा है या नहीं ?
चाहे वो किसी भी धर्म का हो, किसी भी मजहब का हो; अमीर हो, गरीब हो — स्वांस ले रहा है या नहीं ? और जैसे ही — अगर वो स्वांस नहीं ले रहा है तो डॉक्टर उसको उल्टा पकड़ता है और एक देता है पीछे से, जबतक वो स्वांस लेना शुरू न कर दे। और जब वो स्वांस लेना शुरू करता है तो वो घर आ सकता है। और अगर वो स्वांस नहीं लेगा तो वो घर नहीं आएगा। अस्पताल से ही कहीं और जाएगा। हां! जबतक वो स्वांस ले रहा है, उसके लिए — उसके चाचा होंगे, उसके मामा होंगे, उसकी मां होगी, उसके बाप होंगे, उसके भाई होंगे, उसके दोस्त होंगे, उसके दुश्मन होंगे, उसके सबकुछ होगा। और जिस दिन वो स्वांस लेना बंद कर देगा, उसको अपने ही घर से ले जाएंगे।
वहां रह नहीं सकते। ये स्वांस का चमत्कार है! और इसको नहीं समझेंगे अगर — तो यही एक चीज है, जो हुई मेरे भी जीवन के अंदर! और आज भी वो चीज मेरे अंदर आ रही है और जा रही है।
एक झलक:
प्रेम जी! आज के समय में जो छोटे-छोटे बच्चे हैं, वो भी बहुत तनावग्रस्त रहते हैं। तनावग्रस्त जीवन जीते हैं। उनके ऊपर उनके पैरेंट्स की उम्मीद का बोझ होता है, स्कूल की पढ़ाई का बोझ होता है। Peer pressure होता है, जिसकी वजह से बच्चे बहुत सारे गलत चीजों में उलझ जाते हैं, लग जाते हैं, जो उनके स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल होता है। तो आप यहां पर उनके पैरेन्ट्स के लिए क्या कहेंगे ? उन बच्चों को क्या कहेंगे ? Because that’s a big problem today!
प्रेम रावत जी : देखिए! बच्चे तो बच्चे हैं!
ऐंकर : जी!
प्रेम रावत जी : बच्चे तो ये समझिए कि डबल रोटी हैं। दूध में डालेंगे तो वो दूध से भर जाएंगे। पानी में डालेंगे, वो पानी से भर जाएंगे। जो डबल रोटी होती है, उसकी यही प्रकृति है। बच्चे भी उसी प्रकार हैं। ये जो बच्चे बोझ महसूस कर रहे हैं, ये उनका बोझ नहीं है, ये उनके पैरेन्ट्स का बोझ है। और बेचारे पैरेन्ट्स जिस बोझ को — जिस बोझ का अनुभव कर रहे हैं, वो इस सोसाइटी का बनाया हुआ बोझ है। परंतु हम यह नहीं समझते हैं कि ये जो सोसाइटी है, ये हमसे चाहती क्या है ?
एक झलक
ऐंकर :
थोड़ा-सा पंजाब में लेकर चलता हूं। पंजाब में एक सबसे मेजर प्रॉब्लम चल रही है — farmers suicides की। किसान बहुत आत्महत्याएं कर रहे हैं। हर रोज तीन-चार की एवरेज बन रही है कि किसान suicide कर रहे हैं और सबसे बड़ा कारण है कि उनके ऊपर कर्जा बहुत है। कर्ज बहुत है! तो बहुत बार ये हुआ कि पंचायतें इकट्ठी हों, उनका मनोबल बढ़ाया जाए कि नहीं, suicide किसी भी बात का हल नहीं है, कोई जरिया नहीं है। हम आपके साथ हैं। कुछ न कुछ मिल-बांटकर करेंगे। But, इसका कोई असर नहीं हो रहा है। लगातार suicides हो रहे हैं।
ऐसी स्थिति में जब बैंक वाले उसके घर में रोज आते हैं, ऐसी स्थिति में जब वो गांव के बाहर नहीं जा सकता, ऐसी स्थिति में जब घर का चूल्हा ठंडा पड़ा है, उस स्थिति में क्या किसान जी पाएगा ? उसके अंदर की परिस्थिति ऐसी बनी होती है — उसको लगता है कि एक जरिया — मैं मर जाऊं, सब खत्म! ये नहीं पता कि पीछे वाले तिल-तिल मरते रहेंगे फिर भी।
प्रेम रावत जी :
देखिए! लाचारी, ये बहुत बड़ी बीमारी है। बहुत बड़ी बीमारी है! क्योंकि जब मनुष्य अपने आपको देखता है कि वह लाचार है, उसके पास कोई रास्ता नहीं है, कोई आशा नहीं बची। निराश हो जाता है! ये ठीक बात नहीं है। किसान अन्नदाता है। वह अन्न उपजाता है। उससे ये दुनिया चल रही है।
ऐंकर :
बिल्कुल!
प्रेम रावत जी :
हम फ्यूल की तरफ, पेट्रोल की तरफ लगते हैं। पेट्रोल से दुनिया नहीं चल रही है। मनुष्य चल रहे हैं तो उस पेट्रोल से, जो किसान उगाता है। जो उस जमीन से, उस धरती से निकलता है। और उन सभी लोगों को, जो भी कभी लाचार हों, उनको मैं यह कहना चाहता हूं कि जब सारे संसार के अंदर अंधेरा, अंधेरा, अंधेरा ही दिखाई देता है, तब भी तुम्हारे हृदय के अंदर एक दीया है, जो जल रहा है। अगर उस दीये को तुम बाहर ले आए तो वह तुम्हारी अंधेरी दुनिया में उजाला कर देगा। निराश मत हो!
एक झलक
ऐंकर :
थोड़ा-सा पंजाब में लेकर चलता हूं। पंजाब में एक सबसे मेजर प्रॉब्लम चल रही है — farmers suicides की। किसान बहुत आत्महत्याएं कर रहे हैं। हर रोज तीन-चार की एवरेज बन रही है कि किसान suicide कर रहे हैं और सबसे बड़ा कारण है कि उनके ऊपर कर्जा बहुत है। कर्ज बहुत है! तो बहुत बार ये हुआ कि पंचायतें इकट्ठी हों, उनका मनोबल बढ़ाया जाए कि नहीं, suicide किसी भी बात का हल नहीं है, कोई जरिया नहीं है। हम आपके साथ हैं। कुछ न कुछ मिल-बांटकर करेंगे। But, इसका कोई असर नहीं हो रहा है। लगातार suicides हो रहे हैं।
ऐसी स्थिति में जब बैंक वाले उसके घर में रोज आते हैं, ऐसी स्थिति में जब वो गांव के बाहर नहीं जा सकता, ऐसी स्थिति में जब घर का चूल्हा ठंडा पड़ा है, उस स्थिति में क्या किसान जी पाएगा ? उसके अंदर की परिस्थिति ऐसी बनी होती है — उसको लगता है कि एक जरिया — मैं मर जाऊं, सब खत्म! ये नहीं पता कि पीछे वाले तिल-तिल मरते रहेंगे फिर भी।
प्रेम रावत जी :
देखिए! लाचारी, ये बहुत बड़ी बीमारी है। बहुत बड़ी बीमारी है! क्योंकि जब मनुष्य अपने आपको देखता है कि वह लाचार है, उसके पास कोई रास्ता नहीं है, कोई आशा नहीं बची। निराश हो जाता है! ये ठीक बात नहीं है। किसान अन्नदाता है। वह अन्न उपजाता है। उससे ये दुनिया चल रही है।
ऐंकर :
बिल्कुल!
प्रेम रावत जी :
हम फ्यूल की तरफ, पेट्रोल की तरफ लगते हैं। पेट्रोल से दुनिया नहीं चल रही है। मनुष्य चल रहे हैं तो उस पेट्रोल से, जो किसान उगाता है। जो उस जमीन से, उस धरती से निकलता है। और उन सभी लोगों को, जो भी कभी लाचार हों, उनको मैं यह कहना चाहता हूं कि जब सारे संसार के अंदर अंधेरा, अंधेरा, अंधेरा ही दिखाई देता है, तब भी तुम्हारे हृदय के अंदर एक दीया है, जो जल रहा है। अगर उस दीये को तुम बाहर ले आए तो वह तुम्हारी अंधेरी दुनिया में उजाला कर देगा। निराश मत हो!
एक झलक
ऐंकर : यही चीजें आपको औरों से अलग बनाती हैं। आपकी जो मुझे कैटेगरी नजर आती है, जिस तरीके से मैंने आपको सुना — यूट्यूब पर भी सुना और साक्षात् सुनकर आया मैं, तो औरों से अलग हैं आप। तो कैसे आप अपने आपको अलग मानते हैं उन सबसे ?
प्रेम रावत जी : देखिए! एक तो मैं अपने आपको मनुष्य मानता हूं।
ऐंकर : जी!
प्रेम रावत जी : और मनुष्य होने के नाते मुझे इसमें गर्व है। और लोगों को जो देखता हूं, वो समझते हैं कि मनुष्य सबसे नीचे है। मैं समझता हूं कि मनुष्य सबसे ऊपर है।
ऐंकर : बहुत अच्छे!
प्रेम रावत जी : तो यह बात अलग है। तो लोग कहते हैं कि "हमको पूजो"!
हम कहते हैं, "नहीं, तुम अपने आपको पूजना शुरू करो! जो तुम्हारे अंदर है, उसको पूजना शुरू करो!"
लोग कहते हैं, "हमको आशीर्वाद दीजिए!"
मैंने कहा कि "जिसका आशीर्वाद तुम्हारे सिर पर है, तुम चाहते हो कि मैं उसका हाथ हटाकर के अपना हाथ रखूं ? मेरे में, तुम में कोई अंतर नहीं है। मेरे को भी दुःख होता है, तुमको भी दुःख होता है। इसीलिए मैं तुमसे बात कर सकता हूं। क्योंकि मेरा अनुभव है कि मनुष्य होने के नाते हम उस चीज का भी अनुभव कर सकते हैं, जो हमारे जीवन में शांति लाए और उस चीज का भी अनुभव कर सकते हैं, जो अशांति लाए।"