प्रेम रावत जी:
सभी श्रोतागण को मेरा नमस्कार!
काफी कुछ हमने कहा है इन वीडियोज़ के द्वारा। काफी कुछ आपलोगों ने सुना भी होगा। बहुत सारे प्रश्न भी हमारे पास आये। एक बात हम कहना चाहते हैं कि अगर आप प्रश्न भेजते रहें तो अच्छी बात है। वैसे काफी सारे हैं और भी आएं तो अच्छा रहेगा। अपने कमैंट्स (comments) भी, जो कुछ आप कहना चाहते हैं वह भी भेजिए, अपने एक्सप्रेशन्स (expressions) भी भेजिए। अपने भाव भी प्रकट कीजिये अगर आपको यह वीडियोज़ अच्छी लगती हैं तो।
सबसे बड़ी बात यही हो जाती है कि यह जो हमको जीवन मिला है, यह जो हमारा समय है इसका सदुपयोग हम किस प्रकार कर सकें। लोग तो बहुत सारे प्रश्न पूछते हैं "ऐसा क्यों है, वैसा क्यों है, यह क्यों होता है, वह क्यों होता है, ऐसा काहे के लिए होता है!" पर सबसे बढ़िया प्रश्न तो यही है कि “यह जो मेरे को समय मिला है इसका मैं सबसे अच्छा प्रयोग कैसे कर सकूँ। इसका सदुपयोग मैं कैसे कर सकूँ!”
तो उसके लिए संत-महात्माओं ने एक बात बहुत स्पष्ट कही है कि — और यह बात लोग सुनते हैं और काफी मात्रा में सुनते हैं यह बात, पर मेरे ख्याल से लोगों की या तो समझ में नहीं आती है या उसको स्वीकार नहीं करना चाहते हैं कि जो भी तुम्हारे प्रश्न हैं, तुम्हारा मन है, तुम्हारा दिमाग जो है, प्रश्नों को पूछता है, वह प्रश्नों के बारे में सोचता है, वही प्रश्न आते हैं। परन्तु तुम्हारे हृदय में सारे उत्तर ही उत्तर हैं। मन में, दिमाग में प्रश्न ही प्रश्न हैं, हृदय में उत्तर ही उत्तर हैं।
तो जबतक तुम अंदर नहीं जाओगे और उस चीज को महसूस नहीं करोगे जो तुम्हारे अंदर है, यह तुम्हारे प्रश्न खत्म नहीं होंगें। यह चलते रहेंगे, चलते रहेंगे, चलते रहेंगे, चलते रहेंगे। और जब इस परिस्थिति में जब और ज्यादा चीजें नहीं कर रहे हो — कई लोग हैं जो घर में बैठे हुए हैं इसी के बारे में सोच रहे हैं, परेशान हो रहे हैं, खबर देख रहे हैं — कहीं कुछ हुआ, कुछ हुआ, कुछ हुआ, कुछ हुआ। तो इसका तो काम ही है परेशान होना — मन का तो काम ही है परेशान होना। परेशान होना भी और परेशान करना भी। और लोगों को परेशान करता है।
तो आपने कोई ऐसी चीज अगर देख ली जिससे आप परेशान हो रहे हैं और इन परिस्थितयों में तो परेशान होना स्वाभाविक बात है और बड़ी आसान बात है। परन्तु, आपके अंदर एक चीज है कि इन सारी परिस्थितियों के होते हुए भी, वह इन सब चीजों से सम्बन्ध नहीं बनाना चाहती है, इन परेशानियो से सम्बन्ध नहीं बनाना चाहती है। वह परेशान नहीं होना चाहती है — वह है आपका हृदय। वह है असली आप। अब असली, नकली की बात आ जाती है — वही राजा जनक को जो किस्सा है, जो मैंने सुनाया पहले कि सच क्या है ? सच यह जो मैं दुनिया में देख रहा हूँ, यह सच है ? मैं राजा हूँ यह सच है कि मैंने जो सपना देखा वह सच है ? जिसमें मैं लड़ाई हार गया, जिसमें मैं जंगल में जा रहा हूँ और खाने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है, भूख लगी हुई है, भीखा हुआ हूँ मैं, भूखा हूँ — वह सारी चीजें, तो सच क्या है ?
तो जब अष्टावक्र जी को मौका मिला — राजा जनक के बारे में, राजा जनक को सम्बोधित करने का। तो अष्टावक्र ने यही समझाया कि "न यह सच है और न वह सच है।" जो प्रश्नों के उत्तर हम खोज रहे हैं वह किस दुनिया में खोज रहे हैं। या तो इस दुनिया में खोज रहे हैं, परन्तु न यह दुनिया सच है और न जो हमने अपने विचारों से दुनिया बनायी हुई है, न वह सच है। सच क्या है ? जो तुम्हारे अंदर स्थित है — वह सच है। वह तुम्हारा सच है। और जबतक तुम उस सच को जानोगे नहीं, उस सच को पहचानोगे नहीं, तबतक सवाल आते रहेंगे, उठते रहेंगे, उठते रहेंगे, उठते रहेंगे, उठते रहेंगे क्योंकि — एक किस्सा मैं सुनाता हूँ।
एक बार मैं नेपाल गया और बहुत साल हो गए हैं मुझे नेपाल गए हुए, तो काफी साल पहले की बात है मैं नेपाल गया, तो वहां जहां मैं ठहरा हुआ था, तो किसी ने कहा कि "जी एक व्यक्ति हैं और वह आपसे मिलना चाहते हैं।"
मैंने कहा "कोई बात नहीं, पर कौन हैं वह।"
उसने कहा कि, "जी यहां एक वेदांत सोसाइटी है और वह उसके प्रेसिडेंट हैं।”
हमने सोचा "भैया! वेदांत सोसाइटी के प्रेसिडेंट हमसे मिलना चाहते हैं, कहीं ऐसी बात आगे, प्रश्न ऐसा रख दिया, क्योंकि हमने वेदांत जो है वह पढ़े नहीं हैं, तो वेदांत सोसाइटी के प्रेसिडेंट हमसे मिलना चाहते हैं। मैंने कहा, पता नहीं क्या पूछेंगे!"
तो मैंने सोचा "ठीक है, कोई बात नहीं जो भी पूछेंगे मेरे को अपने अंदर से ही उत्तर देना है। और स्पष्ट रूप से जो भी मैं कह पाउंगा, वह मैं कहूंगा। तो मैंने कहा, ठीक है उनको बुला लो!"
तो सवेरे-सवेरे मैं उठा और सोचने लगा कि "हां आज वह आने वाले हैं, उनसे मिलना है, पता नहीं क्या कहेंगे! कैसी यह मीटिंग होगी!" तो सोचता रहा, सोचता रहा, सोचता रहा। फिर तैयार हुआ मैं गया, मीटिंग में गया।
तो वह आये और जैसे ही वह आये तो मैं बैठ गया, वह आये और उन्होंने कहा कि — "मैं तो सिर्फ आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ।"
मैंने कहा — "क्या ?"
कहा — "मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ आपको, क्योंकि मैंने सारे वेद पढ़े और मेरे मन में यही प्रश्न था कि "वह असली चीज क्या है, वह असली चीज जो है, जो असली सार है, वह आपने मेरे को बता दिया। बस!"
मेरे लिए — मैंने कहा — ठीक है। फिर थोड़ी बहुत बातचीत की और वह चले गए। मैं सोचता रहा कि "तुम्हारे मन में यह था कि क्या पूछेगा, क्या होगा, कैसे होगा, यह होगा, वह होगा!"
और असली में बात थी कि किसी ने उस सार को समझा, जो मेन चीज है उसको समझा। और जब उस मेन चीज को समझ लिया तो उसके बाद कोई प्रश्न नहीं रह जाता है। उसके बाद फिर वह प्रश्न ही प्रश्न बन जाते हैं। क्योंकि यह है एक सीखने का तरीका, यह है एक समझने का तरीका। जैसे एक कमरे के अंदर अगर अँधेरा ही अँधेरा है, तो उस कमरे में क्या है आप उसको नहीं जान पाएंगे। उसको नहीं समझ पाएंगे कि क्या है उस कमरे के अंदर।
परन्तु जैसे ही उस कमरे में उजाला होगा तो प्रकाश जब होगा, उजाला जब होगा तो उजाला किसी चीज को बनाएगा नहीं। उजाला मेज को या कुर्सी को या गिलास रखा हुआ है वहां या पलंग रखा हुआ है वहां। उन चीजों को बनाएगा नहीं, परन्तु अगर वह चीजें वहां हैं, तो आप उनको देख सकेंगे। बस, बस! देखने के बाद आप, अपने आप इसका निर्णय ले सकते हैं कि आप उस कमरे में किस चीज का इस्तेमाल करना चाहते हैं — कुर्सी पर बैठना चाहते हैं या नहीं बैठना चाहते हैं या पलंग पर लेटना चाहते हैं या नहीं लेटना चाहते हैं। परन्तु पलंग है, कुर्सी है; मेज है; पानी है; आपको भूख लगी हैं, फल हैं। यह सारी चीजें वहां मौजूद हैं और अगर आप उन चीजों का सेवन करना चाहते हैं तो आप कर सकते हैं और यह क्यों हो रहा है ? यह इसलिए हो रहा है, क्योंकि अब उस कमरे में प्रकाश है। उजाले से पहले जब प्रकाश नहीं था, बत्ती जलने से पहले जब प्रकाश नहीं था, तब क्या हालत थी ? अगर आपको भूख लगी थी या प्यास लगी थी या आप थके हुए थे, आपको बैठने की जरूरत थी — आपको नहीं मालूम है कि कहां बैठें! आपको नहीं मालूम था कि पानी वहां है या नहीं है। आपको नहीं मालूम था कि वहां भोजन है या नहीं है! और इसके कारण मनुष्य परेशान होता है, क्योंकि उसको मालूम नहीं है।
परन्तु जब उसको मालूम होने लगता है, जब वह जानने लगता है, जब वह पहचानने लगता है, तो अपने आप फिर वह निर्णय ले सकता है कि उसको किस चीज की जरूरत है। अब उसको पूछने की जरूरत नहीं है, अगर उसको प्यास लगती है तो उसको पूछने की जरूरत नहीं है "पानी है या नहीं है!" अब वह देख सकता है कि "पानी है!"
ठीक इसी प्रकार अपने जीवन के अंदर, जब अंदर अँधेरा है, तो मनुष्य के हजारों प्रश्न हैं — क्या है, ये क्या है, वह क्या है, कब मिलेगा, कैसे मिलेगा, क्या मैं नरक में जाऊँगा, क्या मैं स्वर्ग में जाऊँगा, मेरे साथ क्या होगा — सब — यह सारी चीजें सुनी हुई हैं। जब आप पैदा हुए थे आपको नरक के बारे में कुछ नहीं मालूम था, स्वर्ग के बारे में कुछ नहीं मालूम था — यह सब चीजें आपने सुनी कि "नरक होता है, स्वर्ग होता है, यह होता है, वह होता है" और आपने सोचना शुरू किया कि कहां जाऊँगा मैं ? मैंने कैसे कर्म किये हैं, मैंने कहीं गलती तो नहीं कर दी ? सारी चीजें होने लगती हैं, यह सारे डाउट्स (doubts) जो हैं, यह होने लगते हैं। परन्तु जब वह बत्ती, वह ज्ञान रूपी लाइट बल्ब जलने लगता है, इसलिए कहा है कि —
ज्ञान बिना नर सोहहिं ऐसे।
लवण बिना भव व्यंजन जैसे।।
क्योंकि भव्य व्यंजन लगते तो सब सुंदर हैं, सब ठीक हैं, सब अच्छे हैं, परन्तु खाने पर उनमें कुछ नहीं हैं, खाने में स्वाद नहीं है। ठीक इसी प्रकार, जिस मनुष्य के जीवन के अंदर वह ज्ञान रूपी बत्ती नहीं जल रही है उसका जीवन कुछ इसी प्रकार है कि सबकुछ है उसके पास, परन्तु वह नहीं जानता कि वह कहां है! वह यह नहीं जानता कि आगे क्या हो रहा है! वह यह नहीं जानता कि आज के दिन में क्या हो रहा है, कल की प्लानिंग के बारे में उसको सबकुछ मालूम है, कल की प्लानिंग करने में बड़ा माहिर है, परन्तु आज वह कुछ नहीं जानता। क्योंकि जो सब्र की बात होती है, वह बहुत बड़ी बात होती है।
एक बार एक व्यक्ति था। और उसने काफी धन कमाया, मेहनत की, काफी धन कमाया। उसके दो पुत्र थे, तो जब समय आया उसका तो उसने कहा, देखो मेरे दो पुत्र हैं — अपने बच्चों को बुलाया उसने, बड़े हो गए थे वह सब। उसने कहा, तुम जो दो हो उसमें से मैं एक चुनूंगा, जो मेरा वारिस बनेगा। यह सारा कुछ मैंने जो किया है, वह उसी के पास जाएगा। तो मैं अगले कमरे में जा रहा हूँ और मैं उस कमरे में जब चला जाऊंगा तब तुमको बुलाऊंगा एक-एक करके और तुमसे कुछ प्रश्न पूछूंगा और जो मेरे को अच्छी तरीके से उसका जवाब देगा उसको मैं यह सारी चीजें सौपूंगा।
बहुत कुछ कमाया था उसने। पहले बच्चे को बुलाया, पहले लड़के को बुलाया। कमरा बिलकुल अँधेरा था, उस कमरे में अँधेरा ही अँधेरा था। पहले लड़के से वह पूछता है कि — "तुम क्या-क्या देख सकते हो ?”
तो लड़का बोलता है — "क्या-क्या देख सकते हो, यह कैसा प्रश्न है ? इस कमरे में तो अँधेरा ही अँधेरा है, मैं कुछ नहीं देख सकता। हाँ! इतनी बात है कि मैं आपको सुन जरूर सकता हूँ, परन्तु मैं देख कुछ नहीं सकता हूँ। इस कमरे में कुछ नहीं है। आपके सिवा इस कमरे में कुछ नहीं है।"
दूसरे लड़के को उसने बुलाया — तो उसने कहा, ठीक है — (पहले वाले को, बड़े वाले को) जाओ तुम जैसा भी तुमने जवाब दिया है, अच्छा है! तुम्हारे समझ से सही जवाब तुमने दिया है।
दूसरे को बुलाया, दूसरा आया तो वह जो लड़का आया वह खड़ा हो गया।
तो उसने कहा — "तुम क्या-क्या देख सकते हो ?"
तो उस लड़के ने कहा कि — "उससे पहले कि मैं इस बात का आपको जवाब दूँ कि मैं क्या-क्या देख सकता हूँ। मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूँ। वह सवाल है कि "आपने यह सबकुछ जो कमाया, यह कैसे कमाया ?
तो बाप बड़ा खुश हुआ कि "मेरा जो लड़का है यह जानना चाहता है कि मैंने कैसे कमाया!" तो कहने लगा कि मैंने मेहनत की, मैंने ईमानदारी से कमाया, मैं ईमानदार बना और ईमानदारी से मैंने यह सब इकट्ठा किया। मेहनत से मैंने यह सब इकट्ठा किया, सोच-समझ के मैंने काम किया। जब मेरे को नहीं मालूम था कि क्या करना है, तो मैंने उसकी सलाह और लोगों से ली जो मेरे दोस्त थे, मेरे अच्छे चाहने वाले थे; जो इसमें माहिर थे। उनसे मैंने सलाह ली फिर धीरे-धीरे-धीरे-धीरे करके, सब्र रखकर मैंने ये सारी चीजें इकट्ठा कीं।
तब उसके पिता ने बोला कि "ठीक है तुमने यह बहुत अच्छा प्रश्न मेरे से पूछा, पर मेरे प्रश्न का भी तुम जवाब दो, क्या तुम देख सकते हो कुछ ?"
तो वह बोलता है — "हाँ मैं देख सकता हूँ! आप खड़े हैं यहां, आपके बगल में मेज है, वहां कुर्सी लगी हुई है। यह सबकुछ है।
तो क्यों वह देख सका ? जब पहला वाला आया, उससे जब पहले-पहले प्रश्न किया गया, तो उसने अपनी आँखों को समय नहीं दिया बदलने का। देखिये! जब बाहर धूप लगी हुई है, बाहर से अंदर आते हैं, जहां अँधेरा है तो समय लगता है कि आँखें एडजस्ट (adjust) करें। और फिर आँखें देखने लगती हैं। तो जो पहला वाला था, उसने वह समय नहीं दिया, उसने वह समय नहीं दिया। उसने कहा, मेरे को कुछ नहीं दिखाई दे रहा और वह चला गया।
पर जो दूसरा वाला था वह होशियार था। उसको मालूम था कि मैं तभी देख पाऊंगा अगर मैं इन आँखों को थोड़ा-सा समय दूँ। ताकि यह, जो यह माहौल है इसके अनुकूल बदल सके। तो वह बात उसने पूछ लिया अपने पिताजी से कि "आपने यह सबकुछ इकट्ठा किया!" और वह जो पिता उसको समझा रहा था तबतक उसकी आँखें उस कमरे के अँधेरे से एडजस्ट हो गयीं। जब एडजस्ट हो गयीं, तो उसको सबकुछ दिखाई देने लगा। तो उसका बाप बड़ा खुश हुआ और उसी के नाम सबकुछ उसने कर दिया।
बात धन की नहीं है। बात दौलत की नहीं है। बात यह है कि क्या आप भी वह समय देते हैं ? जब आप बाहर से, इस दुनिया से अंदर की तरफ मुड़ें, तो क्या आप भी वह समय देते हैं कि आप भी एडजस्ट हो सकें, जो अंदर की चीज है उसको जानने के लिए ?
तो कई बार हम यह नहीं होने देते हैं। और लगे रहते हैं — "क्या है, ऐसा होना चाहिए, ऐसा होना चाहिए, ऐसा होना चाहिए!" सचमुच में यह जो मन है, यह फोटो छापता रहता है, फोटो छापता रहता है — ऐसा होना चाहिए, ऐसा होना चाहिए, मेरी बीवी ऐसी होनी चाहिए, मेरा परिवार ऐसा होना चाहिए, मेरे बच्चे ऐसे होने चाहिए; मेरे दोस्त ऐसे होने चाहिए, इन सब चीजों के पीछे लगा रहता है, लगा रहता है, लगा रहता है, लगा रहता है। अगर सचमुच में इस बारे में सोचा जाए तो झगड़े की जड़ यही है — सारे चित्र हैं हमारी जिंदगी के अंदर, जो हमने बना रखे हैं।
तो ध्यान दीजिये और सुरक्षित रहिये; तंदरुस्त रहिये और सबसे ज्यादा, सबसे बड़ी चीज आनंद से रहिये!
सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
प्रेम रावत जी:
मेरे सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
मैं एक चीज आपको सुनाता हूं —
हृदया भीतर आरसी, मुख देखा नही जाय।
मुख तो तबहि देखहि, जब दिल की दुविधा जाय॥
कबीरदास जी कहते हैं कि हम सभी प्राणियों के हृदय में एक आईना है और वह आईना, उसमें हम अपना फेस देख सकते हैं, अपना चेहरा देख सकते हैं, अपने आपको देख सकते हैं इसका मतलब यही है। परंतु उस पर धुंध लगी हुई है, मैल लगा हुआ है और जबतक दिल साफ नहीं होगा तबतक वह आईना ठीक ढंग से आपका जो — आपकी जो छवि है उसको दिखा नहीं पाएगा। तो यह मैला कैसे हो जाता है, क्यों हो जाता है ?
लोगों का यह भी प्रश्न है। देखिये! कोई भी चीज है अगर उसको छोड़ दिया जाए, उस पर कोई अमल नहीं किया जाए, उस पर कोई कोशिश नहीं की जाए, उसको साफ नहीं रखा जाए, तो धीरे-धीरे-धीरे वह मैला होने लगेगा। मनुष्य के साथ भी यही बात है। जो असली चीज है वह क्यों है यहां, वह क्या कर सकता है, क्या पाने की उसकी इच्छा है। अगर वह इन सब चीजों को भूलने लगे कि वह यहां क्यों आया है ? वह जो परमानंद का आनंद है उसको लेने के लिए यहां आया है — अगर वह ये सारी चीजें भूलने लगे तो धीरे-धीरे करके और कोई चीज आ जाती है। और वह क्या आती है — वही धुंध, वही मैल लगने लगता है!
कई बार मैं सुनाता हूँ कि जब हम कपड़े साफ करते हैं तो इसका यह मतलब नहीं है कि हम सफाई कहीं से लाते हैं, सफाई कहीं से नहीं लाते सफाई तो उस कपड़े में है पर वह सफाई दिखाई नहीं दे रही है और इसलिए नहीं दिखाई दे रही है क्योंकि उस पर मैल लगा हुआ है। अगर आप उस कपड़े को साफ करना चाहते हैं तो सफाई लाने की जरूरत नहीं है। मैल को निकालने की जरूरत है मैल को अगर आप निकाल देंगे तो कपड़ा अपने आप साफ हो जाएगा।
ठीक इसी प्रकार मनुष्य के अंदर भी जो मैल है, वह मैल जो दुविधा होती है; जो प्रश्न उठते हैं; जो शंकाएं होती हैं; यह वह मैल है। जब वह जान नहीं पाता है, पहचान नहीं पाता है कि मैं क्या हूं और मेरे अंदर क्या है तो उसको वह दिखाई नहीं देता है साफ तरीके से कि असली चीज क्या है! अगर वह असली चीज को जानना चाहता है, अपनी असलियत को समझना चाहता है, तो यह जो भ्रम का मैल है इसको निकालने की जरूरत है। परन्तु दुनिया भर के लोग सफाई को ढूंढ रहे हैं जो, उनको जब मालूम पड़ता है कि यह मन का मैल है इसको निकालने की जरूरत है तो वह सफाई को ढूंढने लगते हैं कि हम सफाई को — सफाई हमारे पास आ जाए तो फिर यह अपने आप चला जाएगा। नहीं! यह मैल को निकालने की जरूरत है और जब मैल को निकालेंगे तो सफाई अपने आप है।
तो भ्रम जो होता है मनुष्य को, वह क्यों होता है ? क्योंकि जो चीज वह जानता है, जो चीज स्पष्ट है उसके लिए वह अस्पष्ट हो जाती है जब भ्रम आता है। जब मनुष्य भ्रमित होता है कि मैं क्यों हूं यहां ? काहे के लिए हूं ? क्योंकि जब दुःख उसके ऊपर पड़ते हैं तब वह सोचता है कि यह क्या हो रहा है, मैं इससे कैसे निकलूं ? मैं इससे कैसे स्वतंत्र होऊं ? क्या होगा मेरे साथ ? जब मनुष्य को आज की कदर कम हो जाती है और कल की कदर ज्यादा हो जाती है तो अपने आप मनुष्य भ्रमित होता है क्योंकि आज में तो वह सही है। आज में तो जो हो रहा है वह उसके साथ हो रहा है पर वह जब कहने लगता है अपने से कि कल क्या होगा; जब वह कहने लगता है अपने से कि कल क्या होगा तब उसका दिमाग जो है चक्कर खाने लगता है। कल क्या होगा ? यह भी हो सकता है, यह भी हो सकता है, यह भी हो सकता है —
सो परत्र दुख पावहि सिर धुनि धुनि पछिताइ।
कालहि कर्महि ईस्वरहि मिथ्या दोष लगाइ।।
देखिये बड़ी साधारण सी बात है। इस परिस्थिति में भी आप देख लीजिये — जो कोरोना वायरस की परिस्थिति है इसमें भी आप देख लीजिये।
क्योंकि गवर्नमेंट कुछ कहे न कहे बात आपकी सुरक्षा की है। आप — बात किसी और चीज की नहीं है, बात पॉलिटिक्स की नहीं है; राजनीति की नहीं है किसी और चीज की नहीं है सबसे बड़ी बात है कि आप सुरक्षित रहें। आप बीमार न हों। छोटी-सी बात है इसका जो रिजल्ट है, इसका जो निष्कर्ष वह तो बहुत बड़ी चीज है। आपको जीवन मिलेगा, आप जी सकते हैं। यह तो, परन्तु इसको करना क्या है ? बड़ी छोटी-सी बात है — परहेज करना है!
किसी और से ना मिलें — यह सोचें अपने मन में कि जो कोई भी है बाहर उसको यह बीमारी है और उससे आपको यह बीमारी लग सकती है। तो सब से दूर रहें। 6 फीट का (अभी बताया है सभी लोगों ने कि) 6 फीट की दूरी बनाकर रखें। अपने हाथ धोएं। यह तो समझ लीजिये कि किसी ने आपको बताया। अब जब इस पर अमल करने की बात है, जब अमल करने की इस पर बात आती है तो लोग कहते हैं — ठीक है! 1 दिन ठीक है; 2 दिन ठीक है; 3 दिन ठीक है; 4 दिन ठीक है; पर जैसे-जैसे यह समय बीतता जा रहा है मन और चंचल होता जा रहा है।
जैसे मैंने पहले कहा कि यह जो आवाज है, जो मन की आवाज है यह आपके कानों के बीच की आवाज़ है। आपके कानों के बीच के अंदर लगी हुई है और कान बंद करने से यह आवाज जाएगी नहीं। जो भी आप कर रहे हैं आपके अंदर यह आवाज है और आपको परेशान कर रही है, परेशान कर रही है, परेशान कर रही है, परेशान कर रही है, आप परेशान होते जा रहे हैं। यह तो उल्टी बात हो गई, यह तो उल्टी बात हो गई। मैं एक बात कहता हूं कि जिस घड़े में, जिस मटके में छेद है नीचे उसमें कितना पानी आ सकता है ? उसमें तुम सारे समुद्र का पानी भी डाल दो तब भी वह मटका भरेगा नहीं जबतक उस मटके में वह छेद है, तो तुम सारे समुद्र का पानी उस मटके में डाल सकते हो तब भी वह मटका नहीं भरेगा।
ठीक इसी प्रकार, जिस मनुष्य के अंदर यह भ्रम है, जिसका मन एकाग्र नहीं है, जो अपने आपको नहीं जानता है उस मनुष्य को आप कोई भी चीज कह दीजिए भले से भले चीज कह दीजिए परंतु उस पर वह अमल नहीं कर पाएगा। मतलब, छोटी-सी बात है, छोटी-सी बात है — आशा देखिए!
दूसरी बात, अब लोग यह भी कह रहे हैं कि "यह क्यों हो गया, ऐसा हो गया कि किसी पर यह ब्लेम लगाना चाहिए, किसी को दोषी ठहराना चाहिए।" बाद में, बाद में अभी नहीं। अभी जो करना है वह यह करना है कि आप सुरक्षित रहें और इसका कोई इलाज — जब वैज्ञानिक लोग, डॉक्टर लोग जब इसका इलाज निकाल लेंगे और आप ठीक हो जायें और सब चीजें ठीक हो जायें और कोई आपको बाहर से आकर के यह बीमारी न दे तब और सारी बातें। पर और तब नहीं होगा, तब नहीं होगा! क्यों इसलिए नहीं होगा क्योंकि फिर लोग लग जायेंगे अपने काम में, लग जाएंगे सारी बातों में। और यह जो कुछ भी आपने सीखा है यह सब लोग भूल जायेंगे। मैं ज्योतिषी हूँ जो आपको यह कह रहा हूँ ? नहीं! किसी ने आकर मेरे कान में यह बात कही ? नहीं!
दो-तीन दिन पहले मैं देख रहा था कि अट्ठारह सौ कुछ में, साल 18 सौ कुछ में एक 'स्पेनिश फ्लू' हुआ था ठीक इसी तरीके का। और वह फ्लू भी सारे संसार भर में फैला और जो कुछ भी उस समय हुआ, वह इस समय भी हो रहा है और लोगों ने उस समय से कोई चीज नहीं सीखी, कोई चीज नहीं समझी। अब फिर वही चीज हो रही है। ऐसे ही लड़ाईयां होती हैं, ऐसे ही सबकुछ होता है।
आप अपने जीवन में इस समय में सबसे बढ़िया मौका है कुछ समझने का, कुछ सीखने का। क्या सीखना है आपको ?
एक, सबसे पहली बात यह मनुष्य शरीर जो आपको मिला है, यह समय जो आपके पास है यह बहुत ही दुर्लभ है। इसका कोई मोल नहीं है। इस बात को जानिये! अपने आपको जानिये! सचेत होकर के अपनी जिंदगी को बिताइये। और अपने हृदय के अंदर, पूरी तरीके से आभार प्रकट करने की कोशिश कीजिये कि आपका हृदय आभार से भरे।
आभार किस चीज के लिए ? जो सबकुछ सुंदर है, जो अच्छा है उसके लिए। उसके लिए आपको जानना पड़ेगा कि अच्छा क्या है, आपके लिए अच्छा क्या है ? मैं बताता हूं आपके लिए अच्छा क्या है। आप तो सोचते हैं आपके लिए अच्छा है कि "आपका धन बढ़े, आपका बिजनेस बढ़े, आपका परिवार बढ़े, आपका घर भरे, आपका यह हो, वह हो।" नहीं, मैं बताता हूँ आपके लिए अच्छा क्या है ? अच्छा है "इस स्वांस का आना-जाना।"
नर तन भव वारिधि कहुं बेरो।
सनमुख मरुत अनुग्रह मेरो।।
यही भगवान कहते हैं कि इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है। यह है आपके लिए अच्छाई — "इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है।" इस कृपा को स्वीकार कीजिये। जबतक आप कृपा को स्वीकार नहीं करेंगे तब तक यह भ्रम जाएगा कैसे-कैसे यह पता लगेगा कि यह साफ हो गया है और आवाज कहां है कानों के बीच में है बाहर नहीं है, बाहर होती तो इयर-प्लग लगा करके या ऊँगली लगा करके या अंगूठा लगा करके उसको बंद कर लेते। परन्तु यह तो कानों के बीच में है। और कानों के बीच में होने की वजह से यह समझ में नहीं आता है कि कहां जाऊं, क्या करूं, सब अन्धेरा ही अँधेरा दिखाई देता है। सब अन्धेरा ही अँधेरा दिखाई देता है।
अब वो एक प्रश्न था जो किसी ने पूछा कि — "जब मैं अपने दोस्तों को देखता हूं उनके पास नई-नई लेटेस्ट गैजेट होते हैं तो मेरे को ईर्ष्या होती है कि उनके पास नहीं है मेरे पास — मेरे पास नहीं है उनके पास है।"
फिर सोच रहा था रात को — तुम्हारे पास एक ऐसा गैजेट है कि तुम उसकी कदर जान सकते हो। उसको तुम बाहर उभार सकते हो अपनी जिंदगी के अंदर। एक ऐसा गैजेट है कि वह हमेशा लैटेस्ट (latest) होता है, हमेशा लैटेस्ट होता है। और कैसा गैजेट है, क्या गैजेट है ? वही तुम्हारे स्वांस का गैजेट है, यह हमेशा नई आती है — पुरानी नहीं, नई आती है और तुम्हारे को जिंदगी लाती है। ऐसा गैजेट उनके पास नहीं है। तुमको ईर्ष्या की जरूरत नहीं है। तुम समझो कि तुम्हारे पास क्या चीज है और जबतक हम समझेंगे नहीं कि हमारे पास क्या चीज है, क्या संभावना है यह जिसको जीवन कहा जाता है यह संभावना है और संभावना क्या है और कैसी है जबतक हम इस बात को जानेंगे नहीं, समझेंगे नहीं, तबतक सबकुछ अधूरा ही रहेगा। जान नहीं पाएंगे, पहचान नहीं पाएंगे कि क्या है ? और जो दुनिया हमको कहेगी हम उसी को स्वीकार करते चले जाएंगे। यही तो चक्कर है।
सवेरे-सवेरे कितने ही लोग हैं जो अखबार पढ़ते हैं या टेलीविज़न चालू करते हैं या रेडियो चालू करते हैं। काहे के लिए, खबर सुनना चाहते हैं। क्या हो रहा है, क्या हो रहा है यह सुनना चाहते हैं। ठीक है सुनिए! पर क्या हो रहा है, हमसे पूछिए। हमसे पूछिए, दरअसल में क्या हो रहा है। हम देते हैं आपको खबर। क्या हो रहा है ? आपका स्वांस चल रहा है। इस सारे संसार को रचने वाले की आप पर कृपा हो रही है, यह हो रहा है। हॉट न्यूज़, हैडलाइन न्यूज़ क्या है कि "आप जीवित हैं!" यह होनी चाहिए हैडलाइन न्यूज़। यह है असली हैडलाइन न्यूज़ — आप जीवित हैं!
अगर आपके लिए यह हैडलाइन न्यूज़ नहीं है तो, आप तो गए। चाहे आपको कुछ भी ना हो! आप तो गए। क्यों गए ? क्योंकि खाली हाथ आप आये थे, खाली हाथ आपको जाना है। कुछ पल्ले नहीं लगेगा।
भीखा भूखा कोई नहीं, सबकी गठरी लाल,
गठरी खोलना भूल गए, इस विधि भये कंगाल
यह भी कबीरदास जी ने कहा है।
दरअसल में गरीब भूखा कोई नहीं है। परन्तु जो गठरी है उसको खोलना भूल गए, क्योंकि जब खोली नहीं तो इसीलिए कंगाल हो रखे हैं। कंगाल होना यह मतलब नहीं है कि कंगाल, कंगाल है। अगर वह अपने आपको कंगाल महसूस करता है तो चाहे कितना से भी कितना धनी आदमी हो, वह कंगाल हो गया। वह महसूस क्या करता है ?
अगर हजारों लोग एक जगह बैठकर खाना खा रहे हैं पर तुम खाना नहीं खा रहे हो और तुमको भूख लगी हुई है तो यह थोड़ी है कि तुम हजारों लोगों के बीच में बैठे हुए हो वह खाना खा रहे हैं, तो तुम्हारी भूख भी खत्म हो जाएगी। ना! जबतक तुम खाना नहीं खाओगे तबतक तुम्हारी भूख कैसे खत्म होगी। तुम अगर नदी के पास चले जाओ नदी में साफ पानी है, नदी में स्वच्छ पानी है, नदी में मीठा पानी है तो क्या तुम्हारी प्यास खत्म हो जाएगी ? जब तक पानी नहीं पियोगे तब तक वह नदी में कितने हजारों-हजारों गैलन पानी बह रहा है, परन्तु तुम्हारी प्यास खत्म नहीं होगी, जबतक तुम उस पानी को पियोगे नहीं। तो बात हो गयी स्वीकार करने की, समझने की, अपनाने की और मैं दूसरी चीज की बात नहीं कर रहा हूं मैं कह रहा हूं कि आप अपने जीवन को अपनाइये। इसमें आपको राहत मिलेगी। इसमें आपको चैन मिलेगा। इसमें आपको सुख मिलेगा। इसी में है वह 'सच्चिदानंद' — सत् चित् और आनंद और जब तक खोजते रहोगे, खोजते रहो। क्या चाहते हो ?
सभी लोग चाहते हैं कि "जी, हम सफाई चाहते हैं, हमको सफाई दे दो, सफाई दे दो, सफाई दे दो, सफाई दे दो, अब मैं कैसे दे दूँ सफाई ? सफाई तो तुम्हारे अंदर है। हां, मैल धोने के लिए साबुन चाहिए —
गुरु धोबी सिस कापडा, साबुन सिरजनहार ।
सुरति सिला पर धोइये, निकसे मैल अपार
इस चीज की जरूरत है। यही कहा है कबीरदास जी ने कि — गुरु तो है धोबी वह धोता है और शिष्य क्या है — कपड़ा है। गुरु धोबी सिस कापडा, साबुन सिरजनहार
— साबुन जो है वह मैल को धोने का साधन है। सुरति सिला पर धोइये — जब उस सुरति को, इस ज्ञान के अंदर लगाएंगे और फिर धोयेंगे, रगड़ेंगे — यह जो स्वांस अंदर आ रहा है, जा रहा है — धोयेंगे — ढ़ंक, ढ़ंक, ढ़ंक, ढ़ंक! देखा होगा आपने, जब धोते हैं। जब वह सुरति चढ़ेगी, तब सारा मैल निकलकर अलग होगा।
तो यह बात समझने की है, सोचने की है और सबसे बड़ी बात घबराने की नहीं है। घबराने से कुछ नहीं होगा, डरने की नहीं है, डरने से कुछ नहीं होगा। अपनी ताकत, जो अंदरूनी अपनी ताकत है आपके पास, अब उसको इस्तेमाल करने की जरूरत है। अभी कितने दिन और लग सकते हैं इसमें। लोग पूछ रहे हैं यह कब खत्म होगा ? कब खत्म होगा ? जब खत्म होगा तब खत्म होगा। यह किसी के लाइसेंस को लेकर तो चलता नहीं है। यह जो वायरस है यह जीती-जागती चीज थोड़े ही है। यह तो जीता-जागता कीटाणु भी नहीं है परंतु यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक बड़े आसानी से पहुंचता है — जब कोई छींकें या थूकें। तो इसलिए कहते हैं मास्क पहनो। ताकि "एक तो तुमको न लगे और तुम किसी को नहीं लगने दो।"
तो यही बात है कि सबसे सुंदर बात, सबसे अच्छी बात यही है कि हम अपने जीवन में इस बात को समझें, डरे नहीं चाहे कुछ भी समस्या सामने आए। कोई भी समस्या बनकर सामने आए। चाहे यही चीज समस्या बन जाए कि "तुम एक जगह रहो, अपने घर पर रहो, बाहर मत जाओ!" कई लोगों के लिए तो यही समस्या बन गया है। जी नहीं सकते वो! परन्तु जो जानता है कि तुम्हारे अंदर वह है बैठा हुआ, उसके साथ कुछ समय बिता सकते हो तो बिताओ। इससे बढ़िया चीज क्या हो सकती है, इससे बढ़िया चीज कुछ नहीं हो सकती है। परंतु जिसको नहीं मालूम है, उसको नहीं मालूम है। जिसको मालूम है, उसको मालूम है और जिसको मालूम है, उसके लिए आनंद ही आनंद है। कहीं भी आनंद है, कहीं भी चले जाओ।
वही मैं सुनाता हूं लोगों को। एक आदमी था साउथ अफ्रीका में, तो वह मेरा सत्संग सुनता था। उसमें मैं कहता था कि "भाई! तुम्हारे अंदर यह स्वांस आ रहा है, जा रहा है।” आपलोगों ने भी सुना होगा कितनी बार मैंने लोगों से कहा है कि "तुम्हारे अंदर यह स्वांस आ रहा है, जा रहा है।”
तो एक दिन वह अपने कमरे में गया। अपने बंक (Bunk) पर लेटा हुआ था वह और उसने अपनी आंखें बंद की और वह अपने स्वांस पर ध्यान करने लगा। तो स्वांसपर ध्यान करने लगा। वह जेल में है और यह जेल में हो रहा है और स्वांस पर अपना ध्यान करने लगा और करते-करते-करते वह कहता है कि मेरे अंदर मैं शांति का अनुभव करने लगा और इतनी शांति, इतनी शांति जितना मैं और इसमें मेरा ध्यान गया — “सूरत शिला पर धोइये निकसे मैल अपार”
जैसे-जैसे वह मैल निकलने लगा इतनी शांति का अनुभव किया, इतनी शांति का अनुभव किया कि मैं सोच भी नहीं सकता कि इतनी शांति मेरे अंदर मौजूद थी। यह कैसे संभव हुआ जेल में ? जेल में यह हो रहा है! जेल में — आप तो जेल में नहीं अपने घर में हैं। यह जेल में हो रहा है! और ऐसी-वैसी जेल नहीं थी वह, बहुत-बहुत स्ट्रिक्ट (strict) जेल है तो अपने जीवन को सफल बनाइए, आनंद लीजिए। जैसे भी आप ले सकते हैं आनंद लीजिए। सब्र रखिए! एक दिन यह खत्म होगा, होगा और जबतक हो तबतक आप सब्र रखिये और आनंद लीजिये।
सभी को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
प्रेम रावत जी:
मेरे श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
जिस चीज के बारे में मैं चर्चा करने जा रहा हूं वह यह है क्योंकि, मैं जब प्रश्न पढ़ रहा था और मैंने काफी सारे प्रश्न पढ़े तो मुझे एहसास हुआ कि लोगों को अभी भी डर है इस कोरोना वायरस को लेकर के। देखिये! आप डर सकते हैं, अगर आप डरना चाहते हैं तो यह आपके ऊपर निर्भर है। परंतु आपको मैं यह बताना चाहता हूं कि डरने से कुछ हासिल नहीं होगा, कुछ भी नहीं होगा। होगा क्या ? आप परेशान होंगे, जब आप परेशान होंगे तो आपका शरीर और कमजोर होगा आपका शरीर अगर कमजोर होगा तो यह वायरस जिससे आप डर रहे हैं यह और आप पर आक्रमण कर सकती है। सबसे बड़ी बात है कि आप अंदर से खुश रहें और अंदर की खुशी कहां से आएगी, कैसे मनुष्य अंदर से खुश रह सकता है इन परिस्थितियों में ?
तो बात यह है कि यह सारी परिस्थिति जो हैं, जो भी परिस्थिति है इस समय, एक तो यह आपके अंदर नहीं है आपसे बाहर है। और दूसरी चीज इसका प्रभाव सबसे ज्यादा — उससे पहले कि आपको यह बीमारी हो या ना हो वह देखा जाए सबसे ज्यादा प्रभाव इस बीमारी का आपके कानों के बीच में पड़ रहा है। मैंने जो अभी नई किताब लिखी है इसमें मैं चर्चा करता हूं और चर्चा यही है कि जो बाहर की आवाज है उसको तो आप बड़ी आसानी से बंद कर सकते हैं, अपने कानों को बंद कर लीजिए और वह आवाज बंद हो जाएगी। पर, जो आवाज कानों के बीच में है उसको कैसे बंद किया जाए ?
तो यही सबसे बड़ी बात हो जाती है — एक, आपके अंदर क्या-क्या शक्तियां हैं, किन चीजों का आप उपयोग — जिन शक्तियों का आप उपयोग कर सकते हैं, कौन सी शक्तियां हैं आपके पास ? आपके पास सहनशीलता है, आपके पास सब्र है, आपके पास स्पष्टता है, आपके पास जानना है — मानना नहीं जानना, आपके अंदर वह — जो सारे सृष्टि का पालनहारा है वह भी आपके अंदर मौजूद है। तो मतलब, आपके अंदर की जो चीजें हैं उनमें कोई कमी नहीं है और आप किसी, किसी भी परिस्थिति का बुरे से बुरे समय में भी आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
भगवान कृष्ण क्या कहते हैं अर्जुन को, (मैं आपको बताता हूँ) कहते हैं — "अर्जुन तू युद्ध भी कर और मेरा सुमिरन भी कर! मेरे को अंदर याद रख, मेरा सुमिरन भी कर और युद्ध भी कर!"
तो समझने की बात है कि क्या कहा जा रहा है कि — यह जो सारी चीजें हो रही है बाहर इनके बावजूद भी एक चीज तुम्हारे अंदर हो रही है और उसका सुमिरन करना तुम्हारे लिए बहुत जरूरी है कि मैं सबके हृदय में विराजमान हूं। भगवान कह रहे हैं कि “मैं सबके हृदय में विराजमान हूं और जो मेरा सुमिरन करता है, जो मेरा ध्यान करता है।” तो कैसा ध्यान अब यह भी समझने की बात है, क्योंकि हमलोगों ने भगवान की फोटो देखी हैं। चित्रकारों ने अपने मन से जो उनके मन में था कि — "भगवान ऐसे होंगे, भगवान ऐसे होंगे" जो वर्णन उन्होंने सुना, उसके आधार पर उन्होंने चित्र बनाये। भगवान को आंखें भी दीं, भगवान को नाक भी दिया, भगवान को केश भी दिये, भगवान को ये भी दिया, भगवान को सबकुछ..बिलकुल मनुष्य की तरह भगवान को बनाया।
लोग जब भगवान का सुमिरन करते हैं, वह जब तस्वीरों को देखते हैं, मूर्तियों को देखते हैं, आकार को देखते हैं तो वह समझते हैं कि भगवान का आकार है। परंतु वह, जो समय से पहले था, जो है और हमेशा रहेगा; जब मनुष्य नहीं रहेंगे तब भी वह रहेगा; जब मनुष्य नहीं थे तब भी वह था; आज मनुष्य है तब भी वह है। उसका आकार क्या है, उसको आकार की क्या जरूरत है ? हमको आंखों की जरूरत है, हमको नाक की जरूरत है क्योंकि हम स्वांस लेते हैं नाक से, सूंघते हैं नाक से। मुँह — मुँह से बोलते भी हैं, खाना भी खाते हैं। कान की हमको जरूरत है, कान से हम सुनते हैं। पर, जो सब जगह व्यापक है जो सब जगह है, जिसके लिए सुनना न सुनना इसका कोई महत्व नहीं है यह हमारे लिए तो है। तो क्या हम भगवान को अपने रूप में बना रहे हैं या भगवान का असली रूप स्वीकार कर रहे हैं ?
अगर भगवान का हम असली रूप स्वीकार करना चाहते हैं, तो उसका हमको एहसास करना पड़ेगा हमारे अंदर। वह इस तरीके से नहीं है कि हमारे कोई ख्याल हैं, कोई विचार हैं और उन विचारों में वह सृष्टि का पालनहारा जो है, पालनहार जो है, वह हमारे विचारों में; हमारे दृष्टिकोणों में; हमारे चित्रों में — हम जो अपने मन से चित्र बनाते हैं उसमें वह फंसा हुआ है। नहीं! उसको फंसने की क्या जरूरत है। मैं कई बार कहता हूँ कि भगवान — वह भगवान, जो असली भगवान है वही एक है, जो इधर से उधर नहीं जा सकता। क्योंकि वह इधर भी है और उधर भी है, यहां से जायेगा कहां ? वह यहां भी है, यहां भी है — सबसे बड़ी बात है, सबसे बड़ी बात है।
एक बार अकबर और बीरबल की बात आती है, तो एक बार अकबर के दरबार में एक कवि आया। उसने एक कविता लिखी अकबर के बारे में कि "कितना महान वह राजा है सबकुछ है उसके पास!" तो सब ने वाह-वाह की। सबने कहा , "यह तो बिल्कुल सच बात कही इसने, कितनी सुंदर इसने कविता बनाई है।" तो जब उसको लगा कि सब लोगों को यह पसंद है तो उसने फिर एक और कविता बनायी और उसमें और राजा की बड़ाई की। और जब उसने सुना कि लोग ताली बजा रहे हैं, सब बड़े प्रसन्न हो रहे हैं, राजा भी खुश हो रहा है, तो उसने एक और कविता बनायी। ऐसे वह कविता बनाते गया, बनाते गया, बनाते गया, बनाते गया, बनाते गया। अंत में ऐसी उसने कविता बनाई जिसमें उसने कहा कि "आप तो भगवान से भी बड़े हैं, आप तो भगवान से भी बड़े हैं!"
अब जैसे ही उसने यह कहा तो एकदम सन्नाटा छा गया। अब कोई राजा की तरफ देखे, कोई अकबर की तरफ देखे, कोई कहीं देखे, कोई कहीं देखे अब — क्या हमको ताली बजानी चाहिए या नहीं बजानी चाहिए! ताली बजाते हैं तो इसका मतलब है कि सचमुच में हम इससे सहमत हैं कि "अकबर भगवान से भी बड़ा है" और यह तो हो नहीं सकता। क्योंकि हमको मालूम था कि यह कैसे हो सकता है, यह कैसे संभव है। ताली बजा रहे हैं या नहीं बजाएं क्या करें, क्या नहीं करें! उनको हिचकिचाहट हुई।
राजा ने देखा कि कोई ताली नहीं बजा रहा है इसने इतनी बड़ी बात कह दी कि "यह भगवान से भी बड़े हैं और एकदम से सन्नाटा सा फैल गया सारे दरबार में।" तो यह कैसे हो गया ? तो अकबर को सूझी तो उसने बीरबल की तरह देखा कहा "बीरबल! क्या सचमच में मैं भगवान से बड़ा हूं ?"
तो बीरबल ने कहा "बादशाह! मेरे को एक दिन का टाइम दीजिए, दो दिन का टाइम दीजिए मैं सोचकर आपको बताऊंगा।"
अकबर ने कहा — ठीक है! जाओ।
तो दुविधा में पड़ा बीरबल, क्या कहूं ? अब अगर मैं यह कहता हूँ कि "हां आप भगवान से बड़े हैं!" तो यह तो गलत होगा। और अकबर को अच्छी तरीके से मालूम है कि "वह भगवान से बड़ा नहीं है।" तो वह मेरे को कोड़े — मेरे पर कोड़े बरसायेगा या मेरा सिर अलग कर देगा या मेरे को कोई न कोई पनिशमेंट (punishment) देगा। तो मैं क्या करूं, क्या करूं, क्या करूं! सोचता रहा! सोचता रहा! फिर उसको एक ख्याल आया।
दूसरे दिन गया, बड़ा खुश होकर गया अकबर के दरबार में, उसने कहा कि “मेरे को जवाब मिल गया है आपके प्रश्न का बादशाह।”
तो अकबर ने कहा, क्या ? क्या मैं सचमुच में भगवान से बड़ा हूँ ?
कहा — "बड़े-छोटे की बात नहीं है, पर आप एक चीज कर सकते हैं, जो भगवान नहीं कर सकता।" सारे दरबार में एकदम सन्नाटा फैल गया कि, यह तो कुछ न कुछ ऐसा कहेगा कि गड़बड़ होगी।
तो अकबर को भी लगा कि "मैं कुछ ऐसा कर सकता हूँ, जो भगवान नहीं कर सकता है। यह तो बहुत बड़ी बात हो गयी।"
अकबर ने कहा, "बीरबल बताओ, क्या ऐसी बात है, जो मैं कर सकता हूँ, भगवान नहीं कर सकता।"
तब बीरबल ने कहा, "आप किसी को अपने देश से, जहाँ तक आपका राज्य है, अपने राज्य से बाहर निकाल सकते हैं। परन्तु, वह जो सारे संसार का पालनहारा है, वह किसको अपने राजदरबार से कहां बाहर निकल सकता है! जहां तक उसका राज्य है, जहां तक उसकी सृष्टि है, जहां तक उसकी रचना है वही सबकुछ है और वह किसको बाहर निकालेगा ? कहाँ भेजेगा ? कौन सी ऐसी जगह है जहां वह नहीं है, जहां उसका नहीं है!"
तो जहां तक कहानी की बात है तो अकबर को यह बात बहुत अच्छी लगी।
जब मैं इस कहानी को याद करता हूँ तो मेरे को यही लगता है कि "हां सचमुच में, कौन सी ऐसी जगह है, कौन सी ऐसी चीज है, जहां वह नहीं है! वह जब मेरे अंदर है तो, मुझे डरने की क्या जरूरत है। इस चीज से, जिससे लोग डर रहे हैं और सबका यही है कि "अब क्या होगा ?" "ठीक होगा! तुम चिंता मत करो।" वैज्ञानिक लोग लगे हुए हैं इसका हल देखने के लिए और जैसे ही इसकी वैक्सीन (vaccine) निकलेगी तो फिर लोग बाहर जा सकते हैं और जो कुछ भी है कर सकते हैं। उनको अगर बीमारी लगी भी तो उस पर उनको कोई असर नहीं होगा। लोग कोशिश कर रहे हैं, दवाइयां ढूंढ रहे हैं इसके लिए। तो सबसे बड़ी बात है कि आप सबकी मदद करें और कैसे कर सकते हैं सबकी मदद — आइसोलेट रहें और खुश रहें। असली खुशी तभी होती है जब आदमी जानता है अपने आपको, जानता है कि मेरे अंदर क्या विराजमान है, मेरे अंदर क्या है —
"इस घट अंदर बाग-बगीचे" — कितनी सुंदर बात कही है कि इस घट के अंदर सुंदर-सुंदर बाग हैं, सुंदर सुंदर बगीचे हैं, सबकुछ हैं, फव्वारे हैं, हीरे हैं, मोती हैं, सबकुछ है। परन्तु सिर्फ इतनी कमी है लोगों में कि वह अपने अन्तर्मुख होकर के इस बात को समझें।
एक, किसी ने एक सवाल यह भी पूछा है कि "मेरे जो दोस्त हैं उन सबके पास नए-नए फोन रहते हैं, नए-नए गैजेट्स रहते हैं, लेटेस्ट टेक्नोलॉजी रहती है और जब मैं अपने मां-बाप से पूछता हूं कि मेरे को भी यह चीज चाहिए मेरे दोस्तों के पास हैं मेरे पास क्यों नहीं हैं तो, मेरे मां-बाप कहते हैं कि तुम पढ़ो-लिखो, कमाओ और फिर तुम यह सारी चीजें खरीद सकते हो तो, प्रश्न यही है कि आप क्या सोचते हैं इसके बारे में ?"
मैं कहता हूं कि आपके माँ-बाप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं, आपके माँ-बाप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। आपको ईर्ष्या नहीं होनी चाहिए। उनको यह सारी चीजें बिना मेहनत किये जो मिल रही हैं इसका उनको फल भोगना पड़ेगा और इसका फल अच्छा नहीं है इसका फल बिल्कुल अच्छा नहीं है। क्योंकि जो बिना मेहनत के चीज हाथ में लग जाती है उसकी आदमी कभी कदर नहीं कर सकता है, कभी सोच नहीं सकता है उसके बारे में ढंग से। और ऐसे बच्चे जिनको मां-बाप देते रहते हैं, देते रहते हैं, फिर बड़े होकर गड़बड़ काम करते हैं, गड़बड़ काम करते हैं और फिर उनकी आँखें खुलती हैं कि ऐसा मेरे साथ नहीं होना चाहिए।
हमको मालूम है, हम बहुत जेलों में जाते हैं, लोगों से बात करते हैं और यही सारी चीजें होती रहती हैं — जब उनको मिलता रहता है, मेहनत करनी नहीं पड़ती है, कभी सोचना नहीं पड़ता है, कदर नहीं होती है चीजों की तो फिर आगे जाकर उनके साथ गड़बड़ी होती है। अपने माँ-बाप की बात सुनो, वो ठीक कह रहे हैं। जब तुम मेहनत करोगे — वह यह नहीं कह रहे हैं कि तुम्हारे पास ये चीजें नहीं होनी चाहिए, वो यह कह रहे हैं कि तुमको अगर ये चीजें चाहिए तो मेहनत करो और मेहनत करके खरीदो। अपने पैसों से खरीदो। तुम बढ़िया से बढ़िया चीज खरीदोगे, तुमको पसंद भी आएगी, तुमको अपने पर गर्व भी होगा। तुमको अच्छी भी लगेगी वह चीज और ईर्ष्या की बात नहीं। ईर्ष्या नहीं होनी चाहिए किसी पर भी। किसी के पास तुमसे कोई अच्छी चीज है तो तुमको हमेशा अपने हृदय में यही सोचना चाहिए, अपने अंदर यही सोचना चाहिए — "ठीक है! अच्छा है इसके पास है। क्या मेरे पास भी होना चाहिए ?”
क्यों जी! जब तुम किसी का एक्सीडेंट होते हुए देखते हो, कोई पड़ा हुआ है रोड के साइड में, तो तुम कहते हो यह मेरे साथ भी होना चाहिए। तुम जिस चीज को अच्छा समझते हो उसी चीज के पीछे पड़ते हो। तुम जानो तुम्हारे पास क्या है! अगर तुम, अगर जान गए कि यह जो तुम्हारे अंदर स्वांस आ रहा है, जा रहा है यह कितनी कीमती चीज है और तुम्हारे दोस्तों को नहीं मालूम तो, तुमको कुछ मालूम है जो तुम्हारे दोस्तों को नहीं मालूम तुमको ईर्ष्या करने की जरूरत नहीं रहेगी।
अपना यह जो समय है इसको अच्छी तरीके से बितायें और आनंद लें खुश रहें क्योंकि खुशी तुम्हारे अंदर है और सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
प्रेम रावत जी:
सभी श्रोताओं को मेरा नमस्कार!
क्योंकि यह वीकेंड आ गया है — शनिचर, इतवार का दिन है और प्रश्न पढ़ने का यह मौका है। तो आप लोगों ने जो प्रश्न भेजे हैं, उनका मैं जवाब देने की मैं कोशिश करूँगा।
"मैं अपने अंदर की अच्छाइयों को बाहर नहीं ला पा रही हूँ, क्योंकि मेरे अंदर इतनी कड़वाहट भर गयी है कि अब मुझे इस जीवन से उतना प्यार नहीं रहा, जितना पहले था। मैं भटक चुकी हूँ। मैं वापिस जाना चाहती हूँ पर कुछ तो है जो मुझे रोक रहा है और मैं चाहकर भी नहीं जा पा रही हूँ। मैं दिन भर परेशान रहती हूँ।"
देखिये! आपको परेशान — एक तो परेशान रहने की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि जो कुछ भी हो रहा है, जो कुछ भी दुःखों का कारण है वह कितना बड़ा है ? इतना बड़ा है, इतना। जो कुछ भी हो रहा है वह यहां हो रहा है। बाहर की जो परिस्थिति है, वह तो हमेशा बदलती रहती है कभी कुछ है, कभी कुछ है, कभी कैसी है, कभी कैसी है। परन्तु यहां जो आवाज इन कानों के बीच में हो रही है, इसको कैसे रोका जाए ? प्रश्न का मूल जो सवाल है, वह मैं इस प्रकार देख रहा हूँ कि इसको कैसे रोका जाए ? परेशानी जिसकी आप बात कर रहे हैं वह यहां है। बाहर की परिस्थिति तो हमेशा बदलती रहेंगी — "कभी कुछ है, कभी कुछ है, कभी कैसा है, कभी कैसा है!" और अगर हम बाहर की परिस्थितयों में ही लगे रहे तो हमारे जीवन में हम कभी आनंद नहीं ले पाएंगे। जो सुख है, असली सुख है उसकी अनुभूति नहीं कर पाएंगे। लगे रहेंगे, लगे रहेंगे, जैसे वह बैल होता है, जो कुंए के पास चलता है — सारे दिन चलता रहता हैं, चलता रहता है, चलता रहता है, तो वह भी सोचता होगा पता नहीं कहाँ से कहाँ पहुंच गया मैं! पर जब रात को या शाम को उसकी पट्टी खुलती है तो वह अपने आपको वहीं पाता है जहां वह पहले था। तो मनुष्य के साथ भी यही हाल है। हाल क्या है ? मैं फिर सुनाकर बताता हूँ कि —
जल बिच कमल, कमल बिच कलियां, जा में भंवर लुभासी।
आपने देखा होगा भंवर — भैं, भैं, भैं, भैं कभी फूलों के इधर से आता है, कभी उधर से आता है, कभी यहां जाता है, कभी वहां जाता है, कभी इधर बैठता है, कभी उधर, बैठता है। तो वही बात —
जल बिच कमल, कमल बिच कलियां, जा में भंवर लुभासी।
सो मन तिरलोक भयो —
तीनों लोकों में — कौन-कौन से लोक हैं, एक पृथ्वी लोक है, पाताल लोक है और स्वर्ग लोक है — तीनों लोकों में वह दौड़ता रहता है। तो —
सो मन तिरलोक भयो सब, यती सती संन्यासी।।
सभी का मन कभी इधर जाता है, कभी उधर जाता है, कभी इधर डोल रहा है, कभी उधर डोल रहा है और उसी के साथ सारे मनुष्य इस सारे संसार के अंदर कभी इधर डोल रहे हैं, कभी उधर डोल रहे हैं, कभी इधर जाते हैं, कभी उधर जाते हैं। यह हो रहा है। और आपके साथ जो हो रहा है — आप दुखी हो रहे हैं उससे। क्योंकि आपको मालूम है कि कोई ऐसी जगह है जहां शांति है, जहां सुख है और आप वहां पहुंचना चाहते है पर पहुंच नहीं सकते हैं। क्योंकि आप समझते हैं कि इन सारी चीजों ने आपको जकड़ा हुआ है।
एक कहावत है अंग्रेजी में कि — "तुमको पंखों की जरूरत नहीं है उड़ने के लिए, तुमको परों की जरूरत नहीं है उड़ने के लिए, यह जो रस्सियां तुमको बांधे हुए हैं, बंधन जो तुमको बांधे हुए हैं इसको काटने की जरूरत है, तुम अपने आप ही उड़ने लग जाओगे।"
एक कहानी भी है इसी प्रकार से — एक आदमी था उसने कभी अपने जीवन में हाथी को नहीं देखा था। तो वह हाथी देखना चाहता था। तो उसने इंटरनेट पर रिसर्च की कि कहाँ हाथी हैं ? तो उसको पता लगा कि साउथ में, दक्षिण की तरफ — वहां हाथी मिलेंगे, तो वह गया। एक गाँव में गया जहां बहुत सारे हाथी थे, तो उसने देखा कि बड़े-बड़े हाथी, सब एक जगह इकट्ठा हो रखे हैं और उन पर ऐसी छोटी-सी धागे की तरह रस्सी बांधी हुई है उनके पैर पर और उस रस्सी के होने से वह कहीं नहीं जा रहे हैं। वह अपने आपको बंधा हुआ पा रहे हैं। यह बड़ा अजीब दृश्य उसको दिखाई दिया कि "इतना बलवान, इतना बड़ा हाथी और इसको बाँध रखा है छोटी-सी कच्ची रस्सी से। यह कैसे बंध गया ?"
तो पहले तो उसने हाथी को देखा, खुश हुआ हाथी को देखकर के। फिर जो वहां प्रधान था उस गांव का, उसके पास वह गया कहा — भाई! एक बात बताइये कि बड़े -बड़े बलवान हाथी हैं, इनको आपने बाँध रखा है इस छोटी-सी रस्सी से, यह कैसे संभव है ? यह तो तोड़ देंगे। तो प्रधान ने कहा "जब यह बच्चे थे, तो ऐसी ही रस्सी से इनको बाँधा जाता था और तब ये उस रस्सी को तोड़ नहीं पाते थे। अब ये बड़े हो गए हैं, पर ये समझते है कि उनसे भी बलवान है यह रस्सी और ये रस्सी को तोड़ नहीं पाएंगे।
देखिये! वही बात है, वही बात है कि जिस चीज से हम बंधे हुए हैं, उससे ज्यादा बलवान हम हैं, अपनी परिस्थितयों से ज्यादा बलवान हम हैं। परन्तु हम भूल गए हैं कि हम ज्यादा बलवान हैं। हम सोचते हैं कि हमारी परिस्थितियां जो हैं, वह हमसे बलवान हैं। जबतक आपके अंदर, कैसा राम बैठा है ?
"एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट-घट में बैठा, एक राम का जगत पसारा, एक राम जगत से न्यारा!"
वह जो सबके घट में बैठता है, वह राम आपके अंदर है। और राम की बात मैंने क्यों कही ?
क्योंकि जब भगवान राम इस दुनिया में आये, जब उनका अवतार हुआ, तो उनके साथ क्या हुआ ? आप समझते हैं कि जो उनके साथ परिस्थितियां थीं, क्योंकि — मैं फिर याद दिला देता हूँ आपको कि उनके साथ क्या हुआ ?
उनका राज्याभिषेक होना था। और जिस दिन उनका राज्याभिषेक होना था, उनको राजा बनना था, इसके लिए उनको ट्रेंड किया हुआ था, इसके लिए वह समझते थे, वह जानते थे कि “ठीक है, हां! एक दिन मैं राजा बनूंगा।” सबसे बड़े पुत्र वही थे। तब जब समय आया, उनके राज्याभिषेक का, उस दिन जहां खुशियों की बात थी — सीता माता, उनकी अर्धांगिनी, देखने में अति खूबसूरत, सभी गुणों से संपन्न, सम्पूर्ण, वह सीता माता उनको भी खुशी कि आज राज्याभिषेक होगा हमारे पति का, राम का राज्याभिषेक होगा। लक्ष्मण बहुत खुश। उस दिन क्या हुआ ?
राज्याभिषेक नहीं हुआ, उस दिन उनको बताया गया कि "तुम चौदह साल के लिए वनवास जाओगे। एक साल नहीं, दो साल नहीं, तीन साल नहीं, चार साल नहीं, पांच साल नहीं, छः साल नहीं, सात साल नहीं, चौदह साल के लिए तुम वनवास जाओगे। और, और तुम्हारा राज्याभिषेक नहीं होगा। तुम राजा नहीं बनोगे, भरत राजा बनेगा।"
भगवान राम ने कहा — "ठीक है, जैसी उनके पिताजी की आज्ञा, उसी प्रकार से आगे होगा।" कोई बात नहीं — चले गए वह।
इतना ही बहुत था ? ना! राक्षस, राक्षसों को मारा जा रहा है जंगल में हैं — एक दिन नहीं, दो दिन नहीं, तीन दिन नहीं, चौदह साल के लिए वह जंगल में हैं। उनकी अर्धांगिनी — उनके साथ वह अपना प्यार भी नहीं जता सकते, क्योंकि अगर वह गर्भवती हो जाएंगी, भगवान राम को अच्छी तरीके से मालूम है कि अगर वह गर्भवती हो जाएंगी तो जंगल में ही बच्चा का जन्म होगा और मुश्किलें और बढ़ जाएंगी, तो वह छू भी नहीं सकते। उनके साथ कौन है ? कभी तो भगवान राम बैठकर सोचते होंगे कि क्या दुर्भाग्य की बात है मेरे को भी जंगल में जाना पड़ा, मेरे भाई को भी जंगल में जाना पड़ा और सीता को भी जंगल में जाना पड़ा। अब एक जगह हैं नहीं टिके हुए — कभी किधर जाते हैं, कभी किधर जाते हैं, कभी किधर जाते हैं। खाने के लिए क्या है ? तुम समझते हो खाने के लिए शॉपिंग सेंटर है कोई ? ना! अपने पैरों पर, अपने हाथों से जो कुछ भी मिल जाए — जाना है, हर रोज जंगल में जाना है। जो कुछ भी मिल जाए उसको तोडक़र के लाना है और उससे खाना बनाना है।
उसके बाद सीता की भी चोरी हो जाती है। वह समय, यह समय जैसा आजकल होता है, ऐसा नहीं था। सचमुच में भगवान राम को दुःख हुआ। आज के कई पति हैं जिनको बड़ी खुशी होगी कि "चली गयी"! पर उस समय ऐसा नहीं था। उस समय उनको जेन्यूवाइन्ली (genuinely) दुःख हुआ। सचमुच में दुःख हुआ। सीता चली गयी उसको — किसी तरह से सीता को वापिस लाना है। उनके पास शस्त्र थे, अस्त्र थे सबकुछ था। पर, उनके पास कोई आदमी नहीं थे। कोई लड़ने के लिए सिपाही लोग नहीं थे। वही अकेले थे — सिर्फ लक्ष्मण, सीता और राम!
जो उन्होंने सेना तैयार की वह कैसी सेना थी ? वानरों की और भालुओं की! वानरों की और भालुओं की सेना उन्होंने तैयार की। और उस सेना को ले जाकर के लंका पर उन्होंने हमला बोला। उस समय लड़ाई चल रही है और लक्ष्मण को बाण लगा। और लक्ष्मण की जो लाइफ है, जो जिंदगी है वह मंडरा रही है — कितना दुःख हो रहा है भगवान राम को। मैं अवतार की बात कर रहा हूँ और इतना दुःख हो रहा है, इतना दुःख हो रहा है कि ऋषि-मुनि भगवान को समझा रहे हैं कि "आप विष्णु के अवतार हैं आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है।" ये हालात हैं और फिर भी वह आये और जब उन्होंने रावण को मार दिया और जब वापस वह अयोध्या आये, उनका फिर राज्याभिषेक हुआ, तो तुम समझते हो सारी उनकी परेशानियां खत्म हो गयीं ? नहीं! वह तो और बढ़ीं। कैसे ?
हम तो राम राज्य की बात करते हैं, पर क्या सीता के लिए भी वह राम राज्य था ? जब वह आ गए थे वापिस, तो अब सीता तो गर्भवती थी। किसी बेवकूफ धोबी ने यह कहा कि उसकी बीवी भाग गयी — "उसने कहा अगर मेरी बीवी होती तो मैं राम थोड़े हूँ जो सीता को वापिस ले आता!"
इतना सुनते ही भगवान राम ने कहा लक्ष्मण से — "ले जाओ सीता को, अलग कर दो!" क्या भगवान राम को दुःख नहीं हुआ होगा ? क्या उनको नहीं मालूम था कि सीता गर्भवती है। फिर वाल्मीकि के आश्रम में सीता रही। वहां लव और कुश को जन्म दिया। और जब — फिर भगवान राम ने कहा कि — "ठीक है! सीता तू आ जा, वापिस आ जा, पर एक बार और अग्नि परीक्षा कर ले। ताकि मैं सब से कह सकूं कि "तू पवित्र है!"
सीता ने कहा कि — "कितनी बार करती रहूंगी मैं यह ? धरती तू मेरे को वापिस ले ले।" धरती से ही उनका जन्म हुआ था। धरती फटी और भगवान राम की अर्धांगिनी — सीता हमेशा-हमेशा के लिए उनसे दूर हो गयी।
क्या यह समस्या नहीं है ?
इस समय — इन स्थितियों में कोई भी आपकी परिस्थिति हो, जरा ध्यान दें कि वही राम — "एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट-घट में बैठा, एक राम का जगत पसारा, एक राम जगत से न्यारा" — तुम्हारे घट में वह राम बैठा है। उसको समझो, उसको जानो, उसको पहचानो। अपने जीवन की कदर जानो। तुम्हारा यह संघर्ष, तुम्हारा यह जीवन जो है इन दुनिया की परिस्थितियों का सामना करने के लिए नहीं है। यह है सच्चिदानंद को जानने के लिए। यह है —
नर तन भव वारिधि कहुं बेरो।
सनमुख मरुत अनुग्रह मेरो।।
इस भवसागर को पार करने का यह साधन है। तो कुछ भी हो, कोई भी परिस्थिति हो हौसला कभी नहीं भूलना चाहिए, छोड़ना चाहिए।
दूसरा सवाल है — "मैं इतनी मेहनत करता हूँ अपने आपको जानने के लिए, लेकिन मैं अभी तक अपने आपको जान नहीं पाया।"
देखिये! आपकी दो आँखें हैं और यह सारी दुनिया को देखती हैं और सबकी आँखों को देखती हैं, पर अगर आप अपने आपको देखना चाहते हैं, तो ये आँखें अपने आपको तभी देख सकेंगी, जब आपके सामने एक दर्पण होगा, आईना होगा, मिरर (mirror) होगा। जबतक ज्ञान रूपी mirror आपके पास नहीं है, तबतक आप अपने आपको जान नहीं पाएंगे, पहचान नहीं पाएंगे। और अगर 'है', तो आपको अपनी आँखें खोलनी पड़ेंगी। तभी उस दर्पण में आप अपने आपको देख पाएंगे। क्योंकि कई लोग हैं जो ज्ञान लेकर भी अपनी आँख बंद रखते हैं और दर्पण को अपने आगे कर लेते हैं और कहते हैं, "मैं अपने आपको क्यों नहीं देख पा रहा हूँ!"
इसलिए नहीं देख पा रहे हैं क्योंकि आँख अभी भी आपकी बंद हैं। आँखें खोलिये, जानिये, उस ज्ञान के अनुभव को स्वीकार कीजिये। जब आपका हृदय पूरी तरह से भरेगा, जब आप उस शांति का अनुभव करेंगे, तब आपके जीवन में वाह-वाह होगी। तब आप जान पाएंगे कि आप दरअसल में कौन हैं!
यह भी सवाल है कि — "मैं अपने आपको स्थिर नहीं कर पा रहा हूँ। जब भी ध्यान में बैठता हूं तो मन में इधर-उधर की बातें याद आती हैं।"
यह आपके साथ अकेला ही सम्बन्ध नहीं है, यह औरों के साथ भी होता है। क्योंकि यह मन है, त्रिलोक में भागता है — "कभी इधर जा रहा है, कभी उधर जा रहा है, कभी उधर जा रहा है, कभी उधर जा रहा है।" तो इसके लिए मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ।
एक बार एक आदमी था। तो वह अपने गुरु के पास पहुंचा। उसने कहा कि "आपकी सेवा मैंने की है और मैं चाहता हूँ कि आप मेरे को कोई वरदान दें।"
गुरु महाराज जी ने कहा — ठीक है! क्या चाहते हो, क्या मांगते हो ?
कहा कि — "मेरे को ऐसा जिन्न दे दो, जो मेरी सारी इच्छाओं को पूरी कर दे। मैं चाहता हूँ कि मेरी सारी इच्छाएं पूरी हो जाएं।"
गुरु महाराज जी ने कहा — "ठीक है! हम जिन्न तो तुमको दे देंगे, पर एक बात याद रखना। जब भी तुम्हारे पास उस जिन्न के लिए कुछ नहीं होगा, तो वह जिन्न तुमको खाने के लिए आएगा। तो तुमको खा जाएगा, तुमको मार देगा।"
उसने कहा कि — "जी! आपको चिंता करने की जरूरत ही नहीं है। मेरी तो इतनी इच्छाएं हैं, इतनी इच्छाएं हैं, इतनी इच्छाएं हैं कि मैं उस जिन्न को पूरी तरीके से बिज़ी रखूँगा। उसको कभी मौका ही नहीं मिलेगा, आराम करने का।"
गुरु महाराज जी ने कहा — "देख ले भाई! जान ले, समझ ले नहीं तो फिर तेरे को पछताना पड़ेगा!”
उसने कहा — "नहीं! आप चिंता मत कीजिये, दे दीजिये मुझको !"
तो उसको जिन्न मिल गया। अब जिन्न आया और कहा कि "मैं तेरे को खाऊंगा।"
कहा — नहीं! नहीं! अभी मेरी इच्छा है कि "तू मेरे लिए एक बड़ा सा महल बना।"
जब महल बन गया तो कहा कि "मैं तेरे को खाऊंगा।"
कहा — नहीं! नहीं! मेरी इच्छा है — "तू अच्छे-अच्छे पकवान मेरे लिए तैयार कर!"
उसने पकवान तैयार कर दी तो कहा कि "मैं खाऊंगा।"
मेरे को नौकर-चाकर चाहिए, मेरे को धन चाहिए, मेरे को ये चाहिए, मेरे को वो चाहिए।
वह करता रहा, करता रहा, करता रहा, करता रहा। एक हफ्ता बीत गया और एक हफ्ते के बाद उसके पास कुछ बचा नहीं मांगने के लिए। सबकुछ, सारी उसकी इच्छाएं पूरी हो गयीं।
अब आया जिन्न कहा कि "मैं तेरे को खाऊंगा।"
तो भागा-भागा वह गया गुरु महाराज जी के पास कि "जी, अब मैं क्या करूँ ? मेरी इच्छाएं तो एक हफ्ते में ही पूरी हो गयीं और यह जिन्न मेरे को खाने के लिए आ रहा है।"
कहा, "हां! इस जिन्न को बैठकर कहो कि मेरा यह जो स्वांस अंदर आ रहा है, जा रहा है इस पर ध्यान दे!"
तो वह भी बैठ गया, जिन्न भी बैठ गया। और जो स्वांस आ रहा है, जा रहा है, उस पर जिन्न का ध्यान जाने लगा। जब जाने लगा तो मोह भी काबू में आ गया। यही बात है समझने कि —
कुंभ का बाँधा जल रहे, जल बिन कुंभ न होय,
ज्ञान का बाँधा मन रहे, गुरु बिन ज्ञान न होय।
तुम्हारे अंदर जो चीज है, जब तुम उसका अनुभव करोगे, अपने मन को उसमें एकाग्र करोगे, तब जाकर तुम्हारा मन उस चीज में लगेगा — उस जिन्न की तरह।
तो अभी काफी समय हो गया है। मुझे आशा है कि आप लोगों को, यह वीडियो जो हम बना रहे हैं, आप लोगों तक पहुंचा रहे हैं। यह आपको पसंद आ रही हैं। अगर आपको पसंद आ रही हैं तो, प्लीज हमें write कीजिए — जो अलग-अलग तरीके हैं लिखने के, वह भेजिए — जो आपको अच्छी लगीं तो, जो आपका अनुभव है उसको हमारे तक भेजिए। और प्रश्न भेजिए ताकि हम आपको इनके उत्तर दे सकें। सभी लोगों को, सभी श्रोताओं को मेरा नमस्कार!
प्रेम रावत जी:
भारतवर्ष के श्रोताओं को मेरा नमस्कार!
आज का दिन — एक दिन और चला गया। मुझे यही आशा है कि आप लॉकडाउन में हैं, आप सुरक्षित हैं, आप आनंद में हैं और आपने यह दिन जो चला गया, इसको अपने हाथों से से खाली निकलने नहीं दिया। किसी न किसी रूप में, किसी न किसी प्रकार से आपने इस जीवन में, इस समय, इस दिन को पकड़ना सीख लिया है। इसको निचोड़कर इसका जो आनंद है, इसके अंदर जो शांति है यह जो चीजें आपके लिए पॉसिबल हैं, उपलब्ध हो जाती हैं, आपने इन चीजों को जाने नहीं दिया और अपने जीवन को सफल बनाने के लिए आप हमेशा परिश्रम करते हैं।
देखिये! कई लोग हैं जिनका यह पता नहीं क्यों दिमाग में बात है कि हमको कुछ ऐसा दे दीजिए कि एक बार हम कर लें तो फिर हम को दोबारा करने की जरूरत ना पड़े। देखिये! एक रात को अगर आप सो गए तो इसका यह मतलब नहीं है कि आपको फिर सोना नहीं पड़ेगा। नहीं! आपको सोना पड़ेगा। हर रात सोना पड़ेगा। नहीं तो आप अपने आपको थका-मांदा महसूस करेंगे। अगर आपने एक दिन खाना खा लिया तो इसका मतलब नहीं है कि आपको कभी खाने की जरूरत नहीं है। नहीं! आपको हर रोज खाना पड़ेगा और जिस दिन आप नहीं खाएंगे उस दिन आपको भूख लगेगी। पानी के साथ भी यही बात है। अगर एक दिन आपने पानी पी लिया, तो इसका यह मतलब नहीं है कि आपको कभी पानी पीने की जरूरत नहीं पड़ेगी। पानी पीने की जरूरत भी आपको पड़ेगी। तो ये जो चीजें हैं यह जब भी आपको जरूरत है इनकी आपको यह करनी पड़ेगी — खाना खाना पड़ेगा जब भूख लगेगी, प्यास लगेगी आपको पानी पीना पड़ेगा, जब आप थकेंगे तो आपको सोना पड़ेगा।
ठीक इसी प्रकार, शांति भी एक ऐसी चीज है। अगर आप उस चीज से जुड़े हुए नहीं हैं जो शांति का स्रोत है, तो आपके जीवन के अंदर शांति नहीं होगी। फिर आपको जुड़ना पड़ेगा फिर आप उस चीज से जब जुड़ेंगे, तो आपको शांति का एहसास होगा। यह बड़ी बात नहीं है साधारण सी बात है और अच्छी बात है कि हम उस चीज के साथ — कोई ऐसी चीज है जो हमको प्यास लगाती है उस शांति की तरफ जाने की और हम शांति की तरफ जाएं। हमारा हृदय चाहता है कि हम शांति की तरफ जायें। हम दुनिया की तरफ देखते हैं, दुनिया की तरफ जब देखते हैं तो यही बात होती है कि मेरे को यह करना है, मेरे को वह करना है, मैं कैसे बैठकर शांति की तरफ ध्यान दूं, मेरी जिंदगी इतनी बिज़ी है। सबसे पहली बात यह है कि जिंदगी किसकी है ? यह जिंदगी किसकी है और किसके लिए है ? यह जो आपकी जिंदगी है वह किसके लिए है आपके लिए है या किसी और के लिए है ?
सोचिए आप, ध्यान दीजिए इस बात पर क्योंकि यह बात बहुत जरूरी है। आप इस बात को समझें यह बहुत जरूरी है। पैदा कौन हुआ ? जब आप इस संसार में आए, कौन आया ? आप आये। कौन जाएगा इस संसार में और जिसके जाने के बाद आप किसी चीज का अनुभव नहीं कर पाएंगे ? वह भी आप हैं। यह जिंदगी आपको दी गई है। यह स्वांस किसके अंदर आ रहा है, किसके अंदर जा रहा है ? आपके अंदर आ रहा है, आपके अंदर जा रहा है।
ठीक है! औरों के अंदर आ रहा है, औरों के अंदर जा रहा है। परंतु औरों के अंदर जो वह स्वांस आ रहा है, जो जा रहा है उससे मेरा कुछ ताल्लुकात नहीं है। उससे उनका ताल्लुकात है — अर्थात वह जो स्वांस उनके अंदर आ रहा है, जा रहा है उस स्वांस से वो जिंदा हैं और जो मेरे अंदर आ रहा है, मेरे अंदर जा रहा है उससे मैं जिंदा हूं।
तो यह जिंदगी किसकी है ? सबसे बड़ी बात है यह जिंदगी किसकी है ? यह जिंदगी आपको मिली है और इसका दुरुपयोग अगर करेगा तो कौन करेगा ? आप करेंगे । और इसका सदुपयोग अगर कोई करेगा तो कौन करेगा ? वह भी आप करेंगे।
तो बात आ जाती है कि फिर इसका सदुपयोग क्या है ? सबसे बड़ी बात इस जीवन का असली सदुपयोग क्या है ? मैं फिर सुनाता हूं आपको, अभी कुछ दिन पहले मैंने सुनाया था यह —
बड़े भाग्य मानुष तन पावा, सुर दुर्लभ सद्ग्रन्थन गावा।
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा, पाइ न जेंही परलोक संवारा।
जो देवताओं को भी दुर्लभ है, जो देवताओं को भी दुर्लभ है, क्योंकि यह मनुष्य शरीर — एक खूबी मनुष्य शरीर की यह है, मनुष्य की यह है कि मनुष्य बना भी सकता है और खा भी सकता है। देवता लोग खा सकते हैं, बना नहीं सकते। वो खा सकते हैं, बना नहीं सकते। मनुष्य खा भी सकता है और बना भी सकता है। तो क्या बताया है — संतों ने, महात्माओं ने, वेदों ने, शास्त्रों ने, क्या बताया कि यह काहे के लिए मिला है! यह मिला है —
“साधन धाम मोक्ष कर द्वारा — यह साधना का धाम है और मोक्ष का दरवाजा है।” इसलिए मिला है, इसलिए यह समय है, इसलिए यह मनुष्य शरीर मिला है। और कोई भी चीज जो आप पा सकते हैं वह आपकी होगी नहीं, क्योंकि जब आप जाएंगे तो खाली हाथ आप आये थे, खाली हाथ आपको जाना पड़ेगा। और जो लोग आज की परिस्थिति को देखकर डर रहे हैं, इनको डरने की जरूरत नहीं है। आपको डरने की जरूरत नहीं है। सावधान होने की जरूरत है, सतर्क होने की जरूरत है, पर आपको डरने की जरूरत नहीं है । डरने से कुछ होता नहीं है, डरने से कुछ होता नहीं है। अपनी आंख बंद करने से कुछ होता नहीं है। समझें कि अगर यह जिंदगी सचमुच में "साधन धाम — साधना का धाम है मोक्ष का दरवाजा है" तो क्या मैं यह कर रहा हूं, क्या मैं यह कर रहा हूं ? क्या जो वह ज्ञान है —
आतमज्ञान बिना नर भटके, क्या मथुरा क्या काशी।
मृग नाभि में है कस्तूरी, बन बन फिरे उदासी।।
मोहे सुन-सुन आवे हांसी।
पानी में मीन पियासी, मोहे सुन-सुन आवे हांसी।।
फिर वही बात हो गई, फिर वही बात हो गई कि जिस चीज के लिए हम आये वह हम जानते ही नहीं हैं। जो हमको यह साधन मिले हुए हैं — यह सिर है; ये आंखें हैं; यह कान है; नाक है; मुंह है; शरीर है; दिमाग है; यह काहे के लिए मिला हुआ है ? काहे के लिए हमको मिला ? इसका हमको मालूम ही नहीं है। इससे क्या हासिल कर सकते हैं, यह हमको मालूम ही नहीं है। लगे हुए है, लगे हुए हैं, कर रहे हैं, हासिल कर रहे हैं। हासिल कर रहे हैं ऐसे, जैसे कि यह साथ ले जाएंगे। पर, यह साथ नहीं जा सकता। यह साथ नहीं जा सकता। साथ तो सिर्फ एक चीज जा सकती है और वह है “आनंद।” और जबतक आप इस परिस्थिति में भी, जो आपके अंदर का आनंद है इसको अगर आप महसूस करने की कोशिश नहीं करेंगे, तो यह हाथों से निकल जाएगा। दिन निकल जाएगा, समय निकल जाएगा और आप रह जाएंगे।
तो फिर फायदा ही नहीं हुआ। फिर फायदा ही क्या हुआ ? फिर फायदा ही क्या हुआ आने का ? जब खाली हाथ आये और खाली हाथ ही जाना है, तो फिर फायदा ही क्या हुआ ? क्या ले जाएंगे यहां से ? क्या ले जा सकते हैं यहां से ? एक चीज को ले जा सकते हैं — वह जो आपके अंदर है, आपकी जो समझ है। वही मैं कहता हूँ कई बार, कई बार कहता हूँ मैं लोगों से कि जब आप किसी के यहां खाना खाने जाते हैं या अपने दोस्तों से मिलते हैं, तो जब खाना खाने जाते हैं तो आप बर्तन ले जाते हैं साथ ? नहीं! जब आपको खाना खिलाया जाता है या आप अपने मित्र के पास गए, अपने रिश्तेदार के पास गए, उसने खाना खिलाया आपको, तो जो कुछ भी आपको खिलाया वह तो गया। वह तो जाएगा। तो क्या बचेगा उस दिन का ? आनंद जो है वह बचेगा। उस आनंद को आप सालों-सालों रख सकते हैं अपने साथ। खाने को नहीं — जो खाना खाया आपने, अगर वह आपके साथ सालों-सालों रहने लगा, तो आपको कब्ज़ हो जाएगा और वह आपको पसंद नहीं होगा, पसंद नहीं आएगा।
परंतु सबसे बड़ी बात कि वह जो आनंद है वह आप ले जा सकते हैं। खाली हाथ आए थे, खाली हाथ आपको जाना है, परंतु आप जीवन के आनंद को साथ ले जा सकते हैं और इन परिस्थितयों में भी वह आनंद आपके अंदर है। सिर्फ बात यह है कि क्या आप उस खान को जोतना जानते हैं, उस खेत को जोतना जानते हैं क्योंकि अगर आप उस खेत को जोड़ेंगे, जोतेंगे तो वहां से कुछ ना कुछ जरूर निकलेगा।
सब्र की बात है भाई! मैं फिर याद दिलाना चाहता हूं कि सभी को सब्र रखो, डरने की बात नहीं है। समय बीत रहा है डर से कुछ नहीं होगा। सतर्क रहो, हाथ धोओ अपने। "न किसी को यह बीमारी दो न किसी से यह बीमारी लो" — यह आप याद रखिए, बस यह याद रखिए — छः फीट लोगों से दूर रहना ताकि उनका थूक या किसी प्रकार की — किसी प्रकार से भी यह कीटाणु जो है या यह वायरस जो है आपके ऊपर जाकर न पड़े। उसके बाद आनंद ही आनंद से रहिये।
यह समय समस्याओं पर ध्यान देने का नहीं है। यह समय है अपने आप पर ध्यान देने का। अपने आप पर ध्यान दीजिए। समस्याएं तो ऐसी हैं — समस्याएं कहीं जा नहीं रही हैं, उनको आपका नंबर अच्छी तरीके से मालूम है, वह कहीं जा नहीं रही हैं। पर, आप जा रहे हैं तो इसलिए इस समय में ध्यान से, प्रेम से, प्यार से, अपने साथ रहना सीखें, अपने जीवन को सफल करें।
प्रेम रावत जी:
सभी श्रोतागणों को मेरा नमस्कार!
आज मैं जिस बात की चर्चा करने जा रहा हूं वह बात आपके अंदर है, क्योंकि बात है जानने की और समझने की। दिन बीत रहे हैं इस लॉकडाउन में, महामारी लगी हुई है। कुछ लोग इस बात को समझते हैं कि अगर हम आइसोलेटेड रहें तो सबका भला है। कुछ लोग इस बात को नहीं समझ रहे हैं। लोगों में अजीब-अजीब धारणाएं हैं — जैसे, मतलब ये सारी चीजें लोगों में हमेशा ही रहती हैं।
परन्तु समझने की बात यह है कि आपके जीवन के अंदर, आपका जो यह समय है — यह समय लॉकडाउन का नहीं, पर जो समय है, आप पैदा हुए, आपको एक दिन जाना है, तो यह जो समय है इसमें आप कर क्या रहे हैं ? क्या हो रहा है इस समय में ? इसकी कहानी क्या है ? इसके एक्टर कौन-कौन हैं ? इसमें कौन-कौन लगा हुआ है ? इसका तुक क्या है ? इसका मतलब क्या है ?
क्योंकि एक प्रश्न है और वह प्रश्न यह है कि मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है ? अब यह सभी लोग पूछते हैं। कुछ लोग हैं जो पूछते हैं और कुछ लोग हैं जिन्होंने अभी पूछा नहीं है, पर पूछेंगे आगे क्योंकि यह प्रश्न कभी न कभी तो आएगा कि मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है ? मैं यहां कर क्या रहा हूँ ? तो क्या कर रहे हैं आप ? आपके जीवन का उद्देश्य है क्या ? क्या आप अपने आप को समझना चाहते हैं ? क्या आप अपने आपको जानना चाहते हैं ?
क्योंकि जबतक आप अपने आप को जानेंगे नहीं, तबतक आप यह नहीं जान पाएंगे कि जिन चीजों की आपको तलाश है, जिन चीजों को आप चाहते हैं वह पहले से ही आपके अंदर है। अब शांति की लोग खोज करते हैं। कोई कहीं जा रहा है, कोई कहीं जा रहा है, कोई कहीं जा रहा है। अरे! जो चीज तुम्हारे अंदर पहले से ही है, तुम उसको खोज क्यों रहे हो ?
कई लोग मेरे से, मेरे पास — जब मैं 13 साल का था, 14 साल का था, जब मैं विदेश आया। 13 साल का था मैं उस समय, तो लोग हमारे पास आते थे पूछते थे और यह पूछते थे कि "जी! हम खोज रहे हैं कब मिलेगा ?"
तो मैं उनसे कहता था — "जब तुम खोजना बंद कर दोगे तब मिलेगा।"
अब उस समय यह बात लोगों की समझ में आए ना आए मेरे को नहीं मालूम। अब मेरे ख्याल से कई लोगों के यह समझ में नहीं आती थी। अब मैं यही समझाता था लोगों को कि "तुम किस चीज को खोज रहे हो!" तुम्हारी धारणाएं बनी हुई हैं उसको तुम खोज रहे हो। अब जैसे, इसका मतलब क्या हुआ कि कई बार छोटे बच्चे हैं, तो बच्चे हैं तो कभी उनको मस्ती चढ़ती है तो वह किसी को डराना चाहते हैं तो मास्क ले आते हैं। तो मास्क पहना और अब भूत लगने लगे या जानवर लगने लगे या भयानक लगने लगे। तो किसी के पास चले गए और वा.. आ..... करके किया। तो लोग डरते हैं — "क्या है, कौन आ गया, क्या हो गया।"
और उसके बाद वो फिर हंसते हुए उस मास्क को निकालते हैं और उसके पीछे कौन है वह दिखाई देता है, तो सब ठीक है! यह है, यह — इसको मैं जानता हूं यह ठीक है, यह भूत नहीं है, यह जानवर नहीं है, — ठीक है! तो उसी तरीके से हमारे साथ भी यह बात है। हमने भी एक मास्क पहन रखा है — अपने जीवन में हमने भी एक मास्क पहन रखा है कि "मैं यह हूँ!" मेरा, मेरे जीवन का उद्देश्य यह है; मेरे जीवन का मतलब यह है — और यह सारी चीजें हमारे पास रहती हैं। और इस मास्क को लेकर के हम सारे संसार को इंप्रेस करना चाहते हैं, डराना नहीं चाहते हैं, इंप्रेस करना चाहते हैं — "मैं यह हूं; मैं वह हूं; मैंने ऐसा कर दिया; मैंने वैसा कर दिया; मैंने यह हासिल कर लिया; मैंने वह हासिल कर लिया; यह सफलता मिली मेरे को; यह सफलता मिली मेरे को — सारी चीजें। मास्क पहना हुआ है।
और एक समय आता है, जब मनुष्य अपने आपको देखने लगता है तो वह कहने लगता है, "क्या मैं सचमुच में यह हूँ ?"
क्योंकि उसकी आँखें उस मास्क से देख रही हैं। और आईने में जो उसको दिखाई दे रहा है — वह अपने आपको नहीं जानता है। वह आपने आपको नहीं देख रहा है, वह मास्क को देख रहा है। और मास्क को देखते हुए कहता है "आहाह ! मेरा चेहरा ऐसा है, मेरा चेहरा ऐसा है, मेरा चेहरा ऐसा है, मेरा चेहरा ऐसा है। परन्तु मास्क को निकाल करके देखिए आईने में और आपको अपना असली चेहरा दिखाई देगा।
संत-महात्मा क्या कहते हैं कि — जब तुम यह करोगे, इस मास्क को निकलोगे — वह मास्क की बात नहीं करते हैं, वह अपने आपको जानने की बात करते हैं —
मृग नाभि कुण्डल बसे, मृग ढूंढ़े बन माहिं।
ऐसे घट घट ब्रह्म हैं, दुनिया जानत नाहिं।।
जिस चीज की — तुम सुंदरता को ढूंढ रहे हो, पर सुंदरता तुम्हारे अंदर है, पर तुमने जो मास्क पहन रखा है इसको जबतक निकालोगे नहीं, तब तक तुमको सुंदरता नहीं दिखाई देगी। पर मास्क को निकालो और तुमको वह सुंदरता, असली सुंदरता क्या है वह दिखाई देगी। तो बात यही हो जाती है कि क्या सचमुच में हमने वह मास्क पहन रखा है ? कोई दानी है; कोई मां है; कोई भाई है; कोई बहन है; कोई यह है; कोई वह है; और सबने एक-एक मास्क पहन रखा — और परिवार के लोग भी, परिवार के सदस्य जो एक-दूसरे को अच्छी तरीके से जानते हैं। परन्तु कई बार वह भी उस व्यक्ति तक पहुंच नहीं सकते हैं। किसी ने कुछ किया तो किसी को गुस्सा आ गया। अब गुस्से को लेकर के — "इसने यह कर दिया मेरे साथ, ये अच्छा नहीं किया, ये अच्छा नहीं किया — क्लेश जो होता है अंदर से, क्लेश आ रहा है उनके। उसने ये अच्छा नहीं किया, उसने ये कर दिया, उसने ये कर दिया, उसने ये कर दिया।“
पर जानने की बात यह है, पहचानने की बात यह है कि "तुम अपने अंदर उस क्लेश को चाहते हो या नहीं ?" अगर उस क्लेश को नहीं चाहते हो, मैं दूसरे की बात नहीं कर रहा हूं मैं यह नहीं कह रहा हूं कि "उसको तुमने माफ कर दिया या नहीं कर दिया!" नहीं! वह बात तो बाद में आएगी। पर सबसे पहले बात यह है कि क्या तुम अपने अंदर जो तुम कड़वापन, जो जहर तुम अपने अंदर लिए फिर रहे हो यह तुमको चाहिए या नहीं ? इससे तुमको छुटकारा कैसे मिलेगा ? तो पहले अपने आप को तो देखो तुम हो कौन ? तुम अपने आपको तो समझो तुम हो कौन ? क्योंकि जब सारे ही परिवार के सदस्य एक जगह बैठे हुए हैं, एक घर में बैठे हुए हैं तो सबको यह है कि "मैं इसको जानता हूं; यह मेरे को जानता है या मैं उसको जानता हूं; मैं उसको जानता हूं; मैं उसको जानता हूं; मैं उसको जानता हूं। पर तुम जिस चीज को जानते हो वह तो सिर्फ एक मास्क है। तुम असली चीज को नहीं जानते हो ? असली कौन है ? कैसा है ? किसको प्यार चाहिए ? किसको आनंद की जरूरत है ? किसको शांति की जरूरत है ? किसको करुणा की जरूरत है — दो शब्द, दो शब्द मीठे; दो शब्द, दो शब्द मीठे — अगर बोल दो, दूसरा अगला पिघलने के लिए तैयार है।
यह बात समझने की है। तो यह जो मास्क पहना हुआ है, इसको कब निकालोगे ? इसको कब छोड़ोगे ? कब इसको अलग रखोगे ? कब तुम समझोगे कि तुम्हारा जीवन, जो तुमको मिला हुआ है इसको अब स्वीकार करने की जरूरत है। यह नहीं कि यह जीवन मिला हुआ है — मैं यह कर लूंगा, मैं वहां चला जाऊंगा, अब यह हो जाएगा, वह जाएगा यह सारी चीजें नहीं बल्कि इसको स्वीकार करने की जरूरत है।
मैं अपने जीवन में उस चीज को चाहता हूं जिस चीज को चाहने से, जिस चीज को पाने से, जिस चीज के मिलने से, मेरा जीवन सफल हो। और वह चीज कहां मिलेगी मेरे को ? वह चीज मेरे को मिलेगी — मेरे ही अंदर, अपने ही अंदर। इससे ज्यादा खुशखबरी क्या हो सकती है ? संभव ही नहीं है।
बात है आनंद की, बात है इस संसार के अंदर असली आनंद लेने की। क्योंकि मैं बात करता हूं कई बार कि आपकी लॉटरी निकली और एक शॉपिंग सेंटर के अंदर आपको भेज दिया गया और उस शॉपिंग सेंटर के अंदर हर एक प्रकार की दुकान है और आप उसमें जा सकते हैं और किसी भी चीज, कोई भी चीज उसको आप ले सकते हैं। बस शर्त यह है कि जब आप उस शॉपिंग सेंटर से बाहर निकलें, आप अपने साथ कुछ नहीं ले जा सकते हैं तो अब क्या ले जायेंगे ? क्या आप की स्ट्रैटेजी है?
कुछ लोग हैं जो यह कह सकते हैं कि — "मैं तो जाऊंगा ही नहीं जब मैं कुछ ले ही नहीं जा सकता अपने साथ। तो मैं तो उस शॉपिंग सेंटर में जाऊंगा ही नहीं” — ऐसे भी लोग हैं। कुछ लोग हैं — "यह कैसी लॉटरी निकली है ? इसका तुक क्या हुआ ? जब हम वह चीजें पकड़ ही नहीं सकते हैं, उनको ला ही नहीं सकते हैं अपने साथ, तो फिर यह कैसी लॉटरी निकली"— ऐसे भी लोग हैं। और कुछ लोग हैं — जिनकी स्ट्रैटेजी, जिनका लक्ष्य यह है कि मैं जाऊंगा और हर एक चीज का आनंद लूंगा। मैं अपने साथ कोई चीज ला नहीं सकता हूं, पर मैं आनंद को अपने साथ ला सकता हूँ। वह कोई चीज नहीं है। यह सबसे बड़ी बात है कि मैं आनंद को अपने साथ ला सकता हूं।
क्या आप अपने जीवन में उस आनंद को ले रहे हैं या क्लेश से भरे हुए हैं ? अब तक आपने किस चीज को देखा ? क्या अपने अंदर स्थित उस दिव्य शक्ति को देखा ? उस दिव्यता को देखा या आपने सिर्फ लोगों की बुराइयों को देखा ? अगर सिर्फ लोगों की बुराइयों को देखा तो बुराई से आपका परिचय है। और बुरा क्या है —
बुरा जो देखन मैं गया, बुरा न मिलिया कोय,
जब घट देखा झांक के, मुझसे बुरा न कोयII
बुराई और अच्छाई — अच्छाई भी तुम्हारे अंदर है; आनंद भी तुम्हारे अंदर है; बोर्डम भी तुम्हारे अंदर है; सारी चीजें तुम्हारे अंदर हैं और तुम अपने जीवन में क्या चाहते हो सबसे बड़ी बात यह है ? तुम अपने जीवन में क्या चाहते हो ? तुम आनंद को चाहते हो; ज्ञान को चाहते हो; समझना चाहते हो; स्पष्टता को चाहते हो; प्रेम को चाहते हो; शांति को चाहते हो, तो ये सारी चीजें भी तुम्हारे अंदर हैं और इनको तुम पा सकते हो। इनको तुम जान सकते हो। यह मौका है। यह कभी न कभी तो होना है।
अगर सचमुच में मास्क पहना हुआ है तो इस मास्क को हटाने का समय आ गया है। तुमको किसी के लिए कुछ बनने की जरूरत नहीं है तुमको अपने आप को समझने की जरूरत है। तुमको किसी और को इंप्रेस करने के लिए, उस पर प्रभाव डालने के लिए तुमको अपना भेष बदलने की जरूरत नहीं है। तुमको अपने आपको जानने की जरूरत है और जबतक अपने आपको जानोगे नहीं, जबतक अपने आप को पहचानोगे नहीं तबतक यह गाड़ी आगे नहीं चलेगी।
शांति क्या है — यह एक प्रश्न बना रहेगा तुम्हारे लिए, उत्तर नहीं! तुम कौन हो — तुम अपने से ही दूर रहोगे तो दूर नहीं रहना चाहिए। अपने आप को जानो; अपने आप को समझो और अपने पास आओ और अपने जीवन को सफल बनाओ।
तो सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!