प्रश्नकर्ता:
प्रेम रावत जी, महिला सशक्तिकरण आज हमारे समाज का एक अहम मुद्दा है। महिलाओं को अवसर देने के लिये बहुत से प्रयास हो रहे हैं और कहीं-कहीं विरोध भी देखने में आता है। महिलाओं के प्रति अपने नजरिये को हम किस तरह से और स्वतंत्र और बड़ा बना सकते हैं?
प्रेम रावत :
देखिए! प्रकृति का एक नियम है कि अगर आप इस प्रकृति में कहीं भी देख लीजिए! अगर आपका कोई योगदान नहीं है तो प्रकृति ने उस चीज को, जिसका कोई योगदान नहीं है, कोई पर्पज़ नहीं है, उसको पहले ही खतम कर दिया। अब एक समय था कि डायनासोर थे! और जो कुछ भी माहौल था, वो डायनासोर्स के लिए खतम हो गया जब, उनकी कोई जरूरत नहीं रही तो प्रकृति ने कहा — जाओ! तो इस प्रकृति में मनुष्य भी है — और मर्द भी है और औरत भी है। इसका मतलब है, सबका योगदान है। तो हम काहे के लिए डरते हैं ? ये चीजें — जो विभाजन होता है कि "नहीं, ऐसा नहीं होना चाहिए। इनको नीचे रखना चाहिए। ये करना...!" ये डर से होता है। अब लोग समझते हैं कि डर से नहीं होता है, पर डर से होता है। बिना औरत के, कोई मर्द पैदा नहीं होता है। और लोग भूल जाते हैं इस बात को। भाई! तुम आए कहां से ? तुम आए कहां से ?
तो जो आदर मिलना चाहिए, जो सत्कार होना चाहिए, वो नहीं करते हैं लोग। उनको डर है कि अगर औरतें — उनको बढ़ावा दिया गया तो वो सारा, सबकुछ रूल करने लगेंगी। नहीं। डर से नहीं, प्यार से, सबको एक साथ लेकर अगर हम आगे चलेंगे तो बहुत दूर तक पहुंच जाएंगे। क्योंकि जो हमारी शक्ति इन विभाजनों में अटक जाती है, वो हमको धीमे कर रही है। सारे समाज को धीमे कर रही है।
तो यह तो समय आ गया है साथ का। सबको साथ होना चाहिए और फिर आगे चलेंगे और सबका कोई न कोई योगदान है, इसीलिए वो यहां हैं। प्रकृति के रूप में अगर देखा जाए तो सभी का कुछ न कुछ योगदान है। और जबतक योगदान है तो उस योगदान को रेकग्नाइज़ करना चाहिए। मैंने तो यह देखा है कि कई बार पुरुष जो हैं, किसी बात को लेकर अटक जाते हैं और उसका हल औरतों को मालूम होता है कि "तुम अटके हुए हो, इसको इस तरीके से देखो!"
तो अगर गाड़ी आगे चलानी है यह, तो ये जो चारों चक्के हैं, इनको एक ही दिशा में चलना पड़ेगा। अगर चारों चक्के अलग-अलग दिशा में चलने लगें तो यह गाड़ी कहीं नहीं जाएगी। और यही हो रहा है! पर समय आ गया है — अब तक जो होते आया है, होते आया है। पर अब समय आ गया है कि हम सब एक होकर के आगे चलें।
प्रेम रावत :
जब आदमी बांसुरी बजाता है तो आपको मालूम है वो क्या कर रहा है ? उस बांसुरी में वो फूंक मार रहा है और जो छेद है बांसुरी के, उनको खोल के और बंद करके, वो उस आवाज को स्वर में ला रहा है और उसका आप आनंद उठा सकते हैं।
सोचिये! सोचिये कि अगर वो फूंक ही मारता रहे बांसुरी पर और कुछ न करे, क्या स्वर निकलेगा ? क्या आवाज निकलेगी ?
जिसको बांसुरी बजानी नहीं आती है न, तो वो भी बांसुरी में बजाने की जब कोशिश करता है, तो फूंक मारता है बांसुरी में। तो फूं-फूं करके तो आवाज आती है परंतु उसको लगता है कि वैसी आवाज क्यों नहीं आयी जब इसने बजायी ?
मेरे को सीखना पड़ेगा और अगर मैं सीख जाऊं तो मैं भी इसी तरीके से इसको बजा सकता हूं।
आपको क्या दिया ?
आपको क्या मिला जो बनाने वाले ने आपको दिया ? और वो चीज आप कभी भूलना मत।
जो भगवान ने हमको दिया है, यह भी एक यंत्र है।
एक-एक स्वांस, एक-एक स्वांस जो आपके अंदर आ रहा है, यह उसकी दया का फल है।
आज पता नहीं, हम कितनी चीजों को इस संसार के अंदर दोष देते हैं और मैं आपकी बात नहीं कर रहा हूं, मैं सारे संसार की बात कर रहा हूं। सारे संसार की बात कर रहा हूं।
पर जब तक हम सीखेंगे नहीं उसको बजाना, तो जो भी कोशिश करेंगे — क्योंकि यह भी एक यंत्र है जो मेरा जीवन है। और इसके अंदर भी ऐसी आवाज निकल सकती है, कि ऐसी आवाज निकले कि आदमी को नफरत हो और ऐसी भी आवाज निकल सकती है जो मधुर से मधुर हो।
दोष! दोष इस यंत्र का नहीं है। इसको बजाना सीखना पड़ेगा। हर एक मनुष्य इसको बजा सकता है। हर एक मनुष्य इसको बजा सकता है। और जब बजाना सीख लेंगे तब ही ऐसी मधुर आवाज आयेगी, तभी ऐसा स्वर निकलेगा कि उसमें, और तो और आप खो जायेंगे। आप!
जो मेरा जीवन है, जो बनाने वाले ने मुझको दिया, यह भी एक यंत्र है और अगर मैं सीख जाऊं तो मैं भी इसको बजा सकता हूं।
प्रेम रावत:
मधुमक्खी। मधुमक्खी क्या करती है ? उसके बिज़ी होने का एक कारण है। वो ढूंढ रही है, ढूंढ रही है, ढूंढ रही है, ढूंढ रही है — हर एक फूल के पास जा के वो ढूंढ रही है कि, उस फूल में से वो थोड़ा-सा शहद रूपी अमृत मिले और वो उसको ले। कब तक रहेगी वो उस फूल में ? जब तक वो जितना उसको लेना है, वो ले न ले। और जब ले लिया फिर दूसरे फूल के पास, फिर दूसरे फूल के पास, फिर दूसरे फूल के पास।
अगर हर एक स्वांस हमारे लिए एक उस बनाने वाले का एक फूल {flower} है, तो हमको फूल तो मिल गया। मधुमक्खी की तरह उसमें से मीठा अगर रस निकालना हमने सीखा नहीं, तो फूल तो मिलते रहेंगे, मिलते रहेंगे, मिलते रहेंगे, मिलते रहेंगे और बेकार होते रहेंगे, बेकार होते रहेंगे, बेकार होते रहेंगे।
यह जो स्वांस रूपी फूल है, यह भरा हुआ है उस अमृत से...अमृत से...अमृत से...। कौन से अमृत से ? उस शांति के अमृत से — उस आनंद के अमृत से भरा हुआ है।
इस हर एक स्वांस रूपी फूल में से वो जो उसमें अमृत — शहद रूपी जो अमृत उसमें बसा हुआ है, उसको निकालने की विधि मेरे पास है।
और अगर कभी आपको इंट्रेस्ट हो कि आप अपने स्वांस रूपी फूल में से वो अमृत निकालना चाहते हैं, तो मेरे पास आओ।
प्यास के साथ आना, प्यास के बिना मत आना। प्यास क्या है ? उस मधुमक्खी के लिए तो वो इच्छा है कि वो उसको उड़ा के ले जाती है — वह है प्यास। छोटी सी तो है वो! सारे जीवन भर खोजती रहेगी, खोजती रहेगी, खोजती रहेगी— वह है प्यास।
जिस दिन अपनी प्यास को तुम महसूस करो — प्यास ही एक साधन है जो पानी तक ले जायेगी। किसी ने तुम्हारे अन्दर प्यास डाली है।
अगर यह जो स्वांस अन्दर आ रहा है, इसकी कीमत नहीं पहचानी अपने जीवन में, सारा जीवन व्यर्थ चला जायेगा।
आये थे कुछ कमाने के लिए, जाना है खाली हाथ। और मैं लोगों से कहता हूं — खाली हाथ तुम आये थे, पर खाली हाथ तुमको जाने की जरूरत नहीं है।
हर एक फूल में से निकालो जितना निकाल सकते हो, और डालो उस प्याले में ताकि वो भर जाये, वो उस अमृत से भर जाये। फिर जहां जाना है, जब हृदय के अन्दर आनंद है, हृदय के अन्दर तसल्ली है, हृदय के अन्दर शांति है तो चलो, फिर चलो — जहां जाना है चलो। पानी पीयो, ठाठ से पीयो। अपनी प्यास को बुझाओ...प्यास को बुझाओ...प्यास को बुझाओ... प्यास को बुझाओ...।
प्रेम रावत:
बात है जीवन की। हम जिस बात को करते हैं, उसका किसी मजहब से लेना-देना नहीं है। वो मनुष्य के लिए है। और सबसे जरूरी बात समझना यह है कि क्योंकि हम जीवित हैं, कौन-सी ऐसी चीजें हैं, जो हमारे जीवन में सबसे ज्यादा प्रभाव रखती हैं, जो जरूरी हों ? क्योंकि अगर विषय होता कि आप धन और कैसे कमा सकते हैं — अगर विषय होता कि आप कैसे 50 परसेंट पैसे को बढ़ा सकते हैं, जो आपके पास है, तो यह जगह बहुत छोटी पड़ती। क्योंकि आजकल हम लोगों की जो समझ है, वो कुछ इसी प्रकार की हो गयी है।
एक छोटी-सी कहानी है कि एक बार पांडव भाई, जो वनवास में थे, तो उनको प्यास लगी —बहुत ही प्यासे थे तो खोजना शुरू किया और युधिष्ठिर खोजते-खोजते तालाब के किनारे पहुंचे तो उनको बड़ी खुशी हुई कि पानी मिल गया है। जैसे ही वह पानी की तरफ गए, उनका ध्यान गया कि सारे उनके भाई जमीन पर लेटे हुए हैं, मरे हुए हैं। तो जैसे ही युधिष्ठिर ने हाथ अपना पानी में डाला पानी पीने के लिए, तो जो वहां गंधर्व था, उसने कहा, ‘‘रुको! पानी मत पीओ! मेरे सवालों का पहले जवाब दो, फिर मैं पानी पीने दूंगा।’’
उसने कहा, ‘‘नहीं, मेरे को प्यास लगी है, पानी पीने दो!’’
बोला, ‘‘नहीं! तुम्हारे भाइयों के साथ यही हुआ है। उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी, पानी पीने लगे। मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया और सब मरे पड़े हैं। तुम्हारे साथ भी यही होगा।’’
तो युधिष्ठिर रुके, कहा ‘‘पूछो!’’
तो कई सवाल पूछे गए और उनमें से एक सवाल था कि ‘‘सबसे अद्भुत् चीज क्या है ? पीक्यूलियर, स्ट्रेन्ज! अद्भुत!’’
तो युधिष्ठिर कहते हैं, ‘‘मनुष्य है! मनुष्य है!’’
फिर पूछा जाता है उनसे, ‘‘क्यों ? क्यों मनुष्य अद्भुत है ?’’
कहा कि ‘‘इसलिए कि कोई ऐसा मनुष्य नहीं है, जिसको यह नहीं मालूम कि एक दिन उसको मरना है, पर वह जीता ऐसे है कि कभी मरेगा ही नहीं। इसलिए अद्भुत है!’’
बात मरने की नहीं है, बात जीने की है — किस प्रकार जी रहा है ? किस प्रकार जी रहा है ? बात धन कमाने की नहीं है। कमाइए, खूब कमाइए! जितना हो सकता है, उतना कमाइए! बात धन कमाने की नहीं है, पर जिस तरीके से आप कमा रहे हैं, बात उसकी है कि आप किस तरीके से कमा रहे हैं, कि आप उस धन को अपने साथ ले जाएंगे और यह होगा नहीं।
हर एक चीज का एक लिहाज़ होता है। जब आप अपने घर से कहीं जाने के लिए निकलते हैं, दूर सफर करने के लिए निकलते हैं — तीन दिन के लिए जाना है, चार दिन के लिए जाना है, पांच दिन के लिए जाना है, छः दिन के लिए जाना है, उसी तरीके से तो आप पैक करते हैं अपने सूटकेस को ? इस प्रकार से सूटकेस पैक होता है कि उसमें सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ! ये तो नहीं करते हैं! दो दिन के लिए जाना है, तीन दिन के लिए जाना है, उसी चीज को देख के — क्या होना है, क्या करना है ? ये सब देखकर के ही तो आप पैक करते हैं? पर अपने जीवन में किस तरीके से पैक करते हैं?
जो आपके नाते हैं, रिश्ते हैं — और मैं यह चर्चा इसलिए कर रहा हूं आजकल, जब मैं यहां पहुंचा, मेरे पास एक रिक्वेस्ट आयी कि ‘‘जी! एक व्यक्ति हैं और वो अपने जीवन के आखिरी दौर पर हैं — डॉक्टरों ने कह दिया है। और वो आपसे बात करना चाहते हैं।’’ तो मैंने फोन किया।
तो सबसे पहले उन्होंने कहा कि ‘‘हां, मेरे को कह दिया है कि मैं जा रहा हूं!’’
मैंने कहा कि असलियत तो यह है कि हम सब जा रहे हैं। कोई ऐसा नहीं है, जो नहीं जा रहा है। सिर्फ इतना है कि डॉक्टर ने अभी नहीं कहा है। मतलब, डॉक्टर कह दे — अपशगुन! डॉक्टरों का तो मुंह भी नहीं देखना चाहिए, वो ऐसी चीज कह सकते हैं। पर डॉक्टर कह देते हैं तो हमारा सारा सोचने का तरीका बदल जाता है। डॉक्टर कह देते हैं तो हमारे सोचने का तरीका बदल जाता है। जीने का तरीका बदल जाता है। और डॉक्टर ने नहीं कहा है, फिर भी हकीकत तो वही है।
तो संत-महात्माओं का इसके बारे में यह कहना है कि हम आपने आपको — अब मैं पैराफ्रेज़ कर रहा हूं। अंग्रेजी में जो शब्द होगा कि हम अपने आपको cheat कर रहे हैं — और कोई नहीं, हम अपने आपको cheat कर रहे हैं। जो फैक्ट्स हैं, जो हकीकत है, उसको स्वीकार नहीं कर रहे हैं। परंतु एक ऐसी हकीकत अपने दिमाग में बनाए हुए हैं, जो हकीकत नहीं है। जो हकीकत नहीं है।
तो फिर क्या रह गया ? मतलब, अगर मैं इसी तरीके से बोलता रहूं, थोड़ी देर के बाद आप लोगों को तो रोना आना लगेगा। इतना डिप्रेसिंग बन जाएगा ये सारा सब्जेक्ट — ‘‘जाना है, जाना है, जाना है! इसकी परवाह मत करो! उसकी परवाह मत करो! ये क्या होगा ? वो क्या होगा?’’
नहीं, नहीं, नहीं, नहीं! मैं डिप्रेसिंग बात करने के लिए नहीं आया हूं। डिप्रेसिंग बात करनी है तो आपको मेरी क्या जरूरत है ? टेलीविजन चालू कीजिए, न्यूज चैनल देखिए, डिप्रेशन अपने आप आ जाएगा! अखबार खोल के बैठ जाइए!
परंतु बात कुछ ऐसी है कि इस अंधेरे के बीच में एक रोशनी है। बात कुछ ऐसी है कि इस डिप्रेसिंग न्यूज के बीच में — इस सारे डिप्रेसिंग संसार के बीच में एक खुशखबरी है! और वो खुशखबरी है — यह जीवन! वो खुशखबरी है — यह स्वांस! वो खुशखबरी है — तुम्हारा जिंदा होना!
On screen text:
इस सारे डिप्रेसिंग संसार के बीच में एक खुशखबरी है!
वो खुशखबरी है — ये जीवन!
आप में कोई कमी नहीं है बस अपनी खूबियों को जानने की कोशिश करो।
- प्रेम रावत:
संगीत –
मुमकिन है, मुमकिन है, मुमकिन है, मुमकिन है
हर डगर सफर ढूंढे दिल मुकाम जो
मिल जाये यूं हीं कहीं, मुमकिन है
रंग इश्क का रंग देता है रूह को
चाहे फासलें भी हों, मुमकिन है
पुरुष: कहीं न कहीं अंदर कुछ अकेलापन-सा हमेशा लगता है, सबकुछ होने के बावजूद भी।
महिला: आजकल फिज़िकल वर्क से ज्यादा मेंटल वर्क है। इस दुनिया में हमें जितना अपना माइंड यूज़ करना पड़ रहा है, उसके लिये हमें एक बहुत ही पॉज़िटिविटी और पीस की जरूरत है।
महिला: शांति जो है वो हमारे जीवन में बहुत जरूरी है। हम यह मानेंगे इसके बगैर हमारा जीवन जो है वह अधूरा है।
महिला: मैं किसी भी कौस्ट पर अपनी शांति — मन की जो है न, खोने नहीं देती।
प्रेम रावत:
अगर तुम्हारे जीवन की शांति बिखर गयी तो तुम भी बिखर जाओगे और जिस दिन तुम्हारे इस जीवन के अंदर शांति आ जायेगी, तुम भी पूरे हो जाओगे।
संगीत –
हर डगर सफर ढूंढे दिल मुकाम जो
मिल जाये यहीं कहीं, मुमकिन है
रंग इश्क का रंग देता है रूह को
चाहे फासलें भी हों, मुमकिन है
जो मिले वो अपना रहे, सदियों तक रहे, मुमकिन है
मोती-सी हूं मैं अगर, मुमकिन है तो यहां, मंजर प्यार भरा मुमकिन है . . .
पुरुष: हर एक कौम के लिए शांति आजकल बहुत जरूरी है। हर-एक भागम-भाग में लगा हुआ है। कोई अपने बारे में नहीं सोच रहा।
पुरुष: Success means peace, peace in your life. If you are living peacefully, तो आप अच्छे से आराम से रह रहे हो।
पुरुष: बगैर शांति के कुछ भी नहीं है, जीवन अधूरा है।
महिला: अगर हरेक मुहल्ले में से कोई भी समझदार होता है, तो वो सबको समझा सकता है, तो इससे पूरे विश्व में, संसार में शांति रहेगी।
प्रेम रावत:
जहां हृदय खुश है, शांत है, अंदर शांति है, वहां स्वर्ग है।
संगीत –
देखो जुगनू को अंधेरों में, रोशनी कैसे मिल जाती है
आसमां की गोदी से चलकर, ये घटाएं कहां जाती हैं
जो वो आसमां ए रूका बस वहां
जो ये मुमकिन तो सब मुमकिन है
मुमकिन है, मुमकिन है, मुमकिन है, मुमकिन है . . .
पुरुष: जिंदगी में कभी भी आशा नहीं छोड़नी चाहिए। कभी भी कोई नेगेटिव फीलिंग को अंदर ना आने देना, वही पीस है।
महिला: जब आप मेंटल पीस में होंगे तब आपको पता चलेगा क्या चीज सही है और क्या चीज गलत है। तभी आप डिसीज़न ले पायेंगे।
पुरुष: पीस अंदर, अंदर पड़ी है आपके, बाहर नहीं है। जो बाहर ढूंढेगा उसको नहीं मिलने वाली।
प्रेम रावत:
संभावना क्या हो सकती है ?
संभावना तो यह है कि तुम यह जीवन सुख और चैन से जीयो। दिन और रात शांति का अनुभव करो। ना एक दिन और की आशा हो, ना एक दिन कम की निराशा हो। और चैन, सुकून, शांति से यह जीवन बीते, यह संभावना है।
संगीत –
बूंदें गिरती हैं जो छम से, फिर जाने कहां जाती हैं
तितलियां उड़ती हैं साथ में, लेकिन कुछ आगे निकल जाती हैं
गर सोच से आगे हम चलें, नामुमकिन भी तो मुमकिन है
मुमकिन है, मुमकिन है, मुमकिन है, मुमकिन है...
मुमकिन है, मुमकिन है, मुमकिन है...।
Text on screen: शांति मुमकिन है . . .