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निराशा क्यों होती है (Niraasha Kyun Hoti Hai) 00:04:09 निराशा क्यों होती है (Niraasha Kyun Hoti Hai) Video Duration : 00:04:09 हमारी नासमझी ही हमारी निराशा का कारण है।

Title : निराशा क्यों होती है ?

कनुप्रिया: निराशा न सिर्फ एक पीढ़ी को, हर पीढ़ी में फैल रही है। क्या है यह निराशा का इतना प्रभाव कि उठने को ही नहीं आने दे रहा है ? सबकुछ होते हुए भी, सबकुछ ना होते हुए भी, निराशा एक है, जो है साथ में।

प्रेम रावत जी: एक छोटा बच्चा डॉक्टर के पास गया और बच्चे ने डॉक्टर से कहा कि ‘‘डॉक्टर साहब! मैं अपने को जहां भी छूता हूं, दर्द होता है।

कनुप्रिया: बहुत सही बात है!

प्रेम रावत जी: ‘‘मेरे घुटने में भी दर्द हो रहा है, मेरे सिर में भी दर्द हो रहा है, मेरे कान में भी दर्द हो रहा है, मेरी नाक में भी दर्द हो रहा है, मेरे दांत में भी दर्द हो रहा है, मेरे सिर के ऊपर भी दर्द हो रहा है, मैं यहां लगाता हूं फिर भी दर्द हो रहा है, सब जगह दर्द हो रहा है।’’

डॉक्टर ने जांच-बींच की और कहा, ‘‘तेरी उंगली टूटी हुई है। तू अपनी उंगली को जहां भी लगाता है, दर्द होता है।’’

तो यही बात हमारे साथ है। मतलब, मैं अपने को इस बात से जुदा नहीं कर रहा हूं। क्योंकि जो निराशा का कारण है, वो है हमारी नासमझ! और नासमझ एक ऐसी चीज है, जो हमारे साथ चलती है। जहां हम जाते हैं, हमारे साथ आती है। नासमझ यह थोड़े ही है कि किसी चीज को निकाल करके यहां रख दिया। ना! हमको यह समझना है कि समझ भी हमारे अंदर है और नासमझ भी हमारे अंदर है। अंधेरा भी हमारे अंदर है, प्रकाश भी हमारे अंदर है। जिसको आप प्रकट करेंगे, वही प्रकट होगा, जिसको आप प्रकट करेंगे।

गुस्सा करने में आपको कितने मिनट लगते हैं, कितने सेकेंड लगते हैं ?

क्योंकि गुस्सा भी आपके अंदर है। परंतु आपकी समझ क्या है ? झुंझलाए हुए हैं। सब के सब झुंझलाए हुए हैं। एक तिनका और अगर सिर पर पड़ जाए, खत्म! स्ट्रेस! स्ट्रेस! स्ट्रेस! स्ट्रेस! स्ट्रेस! सबके ऊपर!

होता क्या है ? लोग हैं, लगे हुए हैं, लगे हुए हैं, लगे हुए हैं, लगे हुए हैं...। चैन का कोई नाम नहीं ले रहा है। शांति का कोई नाम नहीं ले रहा है। जब उम्र ज्यादा हो जाएगी तो जितना कमाया, जितना कमाया, ये सब डॉक्टरों के पास जाएगा, सब डॉक्टरों के पास जाएगा। क्यों ?

फिर तबियत खराब होगी, फिर अस्पताल में ले जाएंगे और पड़े रहेंगे — अब ये चाहिए, अब ये चाहिए, अब ये चाहिए! अरे! मैं मर गया! अरे! मेरा यहां दर्द हो रहा है। अब यहां दर्द हो रहा है। चैन से तो जिंदगी गुजारी नहीं।

तो जब हमारी जिंदगी के अंदर कुछ इस प्रकार की चीजें होने लगती हैं, तो यह गलत दिशा है। और कम से कम मैं इस बात को समझता हूं और जो मैं कह रहा हूं, इस बात को आप लोग भी समझते हैं।

आप लोगों ने भी देखा है, क्या होता है ? बेपरवाही! इस जिंदगी के अंदर बेपरवाही!

इस स्वांस को न समझना, इस आशीर्वाद को न समझना — तो इसके साथ यही होगा। और सारी दुनिया कन्फ्यूज़ पड़ी है।

और मेरा यह कहना है कि वो, जो तुम्हारे हृदय के अंदर व्यापक है, वह ठीक करना चाहता है, परंतु उसको ठीक करने तो दो! और वह कहां से करेगा ठीक ? तुमसे करेगा ठीक!

Text on screen:

हमारी नासमझी ही हमारी निराशा का कारण है!

हमारी जीत हो (Hamari Jeet Ho) 00:01:16 हमारी जीत हो (Hamari Jeet Ho) Video Duration : 00:01:16 हमारी जीत हो! हम सक्सेसफुल हों! इसको हम जीत समझते हैं।

प्रेम रावत
हार-जीत! हार-जीत! हार-जीत! हमारी जीत हो! हम सक्सेसफुल हों! इसको हम जीत समझते हैं।
आशीर्वाद! आशीर्वाद देते हैं लोगों को! ‘‘तुम्हारी मनोकामना पूरी हो!’’
हृदय की नहीं, मन की कामना! मनोकामना मतलब, मन की कामना पूरी हो! मुझे कोई व्यक्ति समझा दे कि क्या ऐसा भी मन होता है, जिसकी सारी कामना पूरी हो चुकी हों ?

तीन बातें (Teen Batein) 00:07:13 तीन बातें (Teen Batein) Video Duration : 00:07:13 तीन चीजें — ये वही कर सकता है, जो अपने आत्मबल को समझता है।

प्रेम रावत:

एक समय था कि द्रौपदी को मालूम पड़ा कि कोई बहुत पहुंचे हुए संत आए हैं और उनके दर्शन करने के लिए जाना चाहिए। तो द्रौपदी तैयार हुई और गई और जो संत आए हुए थे, वो और कोई नहीं थे — वो थे वेद व्यास जी।

तो वो वेद व्यास जी के पास गई, कहा: ‘‘महाराज! मुझे आप बताइए, मेरा भविष्य क्या है ?’’

तो वेद व्यास जी हँसते हैं, उससे कहते हैं: ‘‘मेरे को मालूम है तेरा भविष्य क्या है। तेरी वजह से करोड़ों लोग मरेंगे, तेरी वजह से खून की नदियां बहेंगी।’’

द्रौपदी कहती है: ‘‘महाराज! मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से करोड़ों लोग मरें। मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से खून की नदियां बहें। कोई उपाय बताइए।’’

वेद व्यास जी — देखिए, उस समय वो लिख रहे हैं महाभारत! तो वो कह सकते हैं द्रौपदी को कि कोई उपाय नहीं है। यह तो होगा ही!

परंतु फिर भी — क्योंकि वो दयालु हैं, वो द्रौपदी से कहते हैं, ‘‘ठीक है! मैं तेरे को बताता हूं। अगर तू नहीं चाहती है कि तेरी वजह से करोड़ों लोग मरें, तेरी वजह से खून की नदियां बहें तो मैं तेरे को एक इलाज बताता हूं। तीन चीजें अगर तू करेगी तो ये कुछ नहीं होगा। खून की नदियां नहीं बहेंगी, करोड़ों लोग नहीं मरेंगे। तीन चीजें — सिर्फ तेरे को तीन चीजें करनी हैं।’’

कहा, ‘‘क्या ?’’

ध्यान से सुनिए! ध्यान से सुनिए! आप भी इसको अपना सकते हैं, पर ध्यान से सुनिए!

तो वेद व्यास जी कहते हैं, ‘‘एक, किसी का अपमान मत करना। किसी का अपमान मत करना। और अगर कोई तेरा अपमान करे तो गुस्सा मत होना।’’

सुन रहे हो न मेरी बात ?

‘‘एक — किसी का अपमान नहीं करना। दूसरा — अगर कोई तुम्हारा अपमान करे तो गुस्सा मत होना और तीसरी चीज — अगर किसी ने तुम्हारा अपमान भी किया और तुम गुस्सा भी हो गए तो तीसरी चीज क्या नहीं करनी है ? बदला मत लेना। ये तीन चीज अगर तू करेगी द्रौपदी तो तेरे कारण कोई नहीं मरेगा। तेरे कारण कोई खून की नदियां नहीं बहेंगी।’’

खैर! महाभारत की कथा सुनी होगी! भइया! वो कथा नहीं है। यह महाभारत तो अब हो रही है। वो कोई कहानी नहीं है। यह तो यहां हो रही है और तुम हो, तुम पर निर्भर है, तुम पर निर्भर है। वो सिर्फ कहानी नहीं है, वो तो असली चीज है और इस कहानी के बीच में अगर तुम तीन चीज कर सके — किसी का अपमान नहीं करो। कोई तुम्हारा अपमान करे तो गुस्सा मत हो और अगर गुस्सा हो भी जाओ तो बदला मत लो। अगर ये तीन काम तुम कर सके तो यह दूसरी महाभारत बनेगी, जिसमें लड़ाई नहीं है — सिर्फ ज्ञान है, जिसमें आनंद है, जिसमें सब लोग मिलके रहते हैं।

महाभारत भी तुम्हारा भविष्य है और एक और भविष्य है तुम्हारा, जिसमें तुम शांति से, आनंद से, अपनी जिन्दगी गुजार सकते हो। यह भी संभावना है। तुमको यह चूज़ करना पड़ेगा कि तुम क्या चाहते हो ? लड़ाई चाहते हो या शांति चाहते हो ? जबतक तुम अपनी जिन्दगी के अंदर यह संकल्प नहीं करोगे कि तुमको क्या चाहिए, यह महाभारत की लड़ाई एक ही दिन नहीं, दूसरे दिन भी होगी, तीसरे दिन भी होगी, चौथे दिन भी होगी, पांचवे दिन भी होगी। जब से उठोगे तब से और शाम तक यह महाभारत की लड़ाई होती रहेगी तुम्हारे हर दिन, जबतक तुम्हारा यह स्वांस पूरा नहीं होता है।

तीन चीजें! पर ये वही कर सकता है, ये वही कर सकता है — जिसकी भुजाओं में नहीं, जो अपने आत्मबल को समझता है। एक बल यह है, एक बल यह है {भुजाओं का बल} और एक बल अंदर का है। यह बल {भुजाओं का बल} तो तुम उठक-बैठक करके बना सकते हो, परंतु फिर भी एक ऐसा समय आएगा कि यह बल तुम्हारा काम नहीं करेगा।

परंतु अंदर का जो बल है, आत्मा का जो बल है, अगर उसमें तुम ताकतवर हो तो वो ऐसा बल है कि तुमको बलवान बनाएगा कब तक ? जबतक तुम आखिरी स्वांस नहीं ले लेते। वो है असली बल! वो है असली बल! मैं कहता हूं उस बल में बलवान बनो। जिस बली के पास वो बल है, वो नफरत के बाण नहीं चलाता है, वो दया के बाण चलाता है।

जीवन की किताब (Jeevan Ki Kitaab) 00:07:22 जीवन की किताब (Jeevan Ki Kitaab) Video Duration : 00:07:22 जब समय का ख्याल आता है तब अहसास होता है कि समय कितनी तेजी से चल रहा है।

प्रेम रावत:

एक किताब है, यह किताब खुली तब, जब तुम पैदा हुए। यह किताब जब इसका पहला कवर, पन्ना नहीं, कवर जो पहले होता है, वो जब खुला — वो कब खुला, जब तुम पैदा हुए। और उसके बाद हर दिन तुमको एक नया पन्ना मिलता है। अब इस पर लिखो। कुछ न लिखो, तब भी यह पलटेगा। इसने तो पलटना है और यह पलटता रहेगा, पलटता रहेगा, पलटता रहेगा, पलटता रहेगा, पलटता रहेगा। कब तक ? जब तक आखिरी पन्ना पलट नहीं जाता और वह आखिरी पन्ना कब है ? जब यह स्वांस का आना-जाना बंद हो जायेगा। यह है फाइनल।

इसके बाद तुम्हारा कोई नाता नहीं है। इस सारे संसार से सारे रिश्ते तुम्हारे टूट जायेंगे। तुमको कोई जलाये। तुम ‘पें’ नहीं करोगे। कई लोग हैं, जब वो डाक्टर की सूईं देखते हैं, उनको बड़ा डर लगता है और जब यह स्वांस आना-जाना बंद हो जायेगा तो वो चाहे हजारों सूईं लगा दें, तुमको कुछ नहीं होगा। कोई डरेगा नहीं। आग लगा दे, कोई डर नहीं। कहां गये ?

बात यह है कि यह सबको मालूम है कि यह होना है। जब हम छोटे होते हैं, चार साल, पांच साल, छः साल के तो इस तरफ हमारा ध्यान नहीं जाता है। व्यस्त हैं, खेलने में, कूदने में, सीखने में, खिलौनों में। फिर थोड़े बड़े होते हैं, स्कूल जाते हैं, उसी में इतना व्यस्त हो जाते हैं कि इसके बारे में हम सोचते भी नहीं हैं। उसके बाद जवान होते हैं, तो जवानी का नशा चढ़ता है। और जब जवानी का नशा चढ़ता है उसमें मरने की तो बात ही नहीं है। उलटा, मतलब उलटा। लोग ऐसे-ऐसे मोटर साइकिल चलाते हैं या ऐसे-ऐसे कार चलाते हैं, तेज चलाते हैं, ये करते हैं, वो करते हैं। कोई कहीं से कूद रहा है, कोई कहीं से कूद रहा है। मतलब, ध्यान ही नहीं है। हो ही नहीं सकता है। एक समय आता है और यह अहसास होने लगता है कि यह पुस्तक जो है न, इसका आखिरी पन्ना है।

तब समय का ख्याल आता है। जब समय का ख्याल आता है तब अहसास होता है कि समय कितनी तेजी से चल रहा है। और आते-आते-आते-आते-आते आते, जैसे ही, और जैसे ही पन्ने पलटते हैं और किताब का अंत आने लगता है, उतना ही समय ऐसा लगता है कि और तेज भाग रहा है, और तेज भाग रहा है, और तेज भाग रहा है, और तेज भाग रहा है।

अच्छा-अच्छा,... ये मनुष्य की बात है क्योंकि समय तो उसी रफ्तार से चलता है। न वो ज्यादा तेज चलता है, न वो धीरे चलता है। वो एक ही रफ्तार से चल रहा है परंतु मनुष्य ही एक ऐसा है जिसको यह अहसास होता है कि अब धीरे धीरे चल रहा है, अब तेज चल रहा है। अब ये चल रहा है, अब वो चल रहा है। तो मतलब, मनुष्य की हालत यह है कि वो किसी भी इस संसार के दायरे में स्थायी नहीं है। कोई ऐसी चीज नहीं है उसके संसार के अंदर जिससे कि वो नाप सके कि मैं अब इतनी दूर हूं, यहां से मैं इतनी दूर हूं, मैं यहां से अब इतनी दूर हूं। अब यहां से इतनी दूर हूं। ना!

यह तो वो वाली बात हो गयी कि जैसे ही वो उस किताब के अंत में आने लगता है तो उसको लगता है कि इसमें तो ज्यादा पन्ने ही नहीं बचे। और जितने पन्ने निकल गये, उसको वो गिन ही नहीं सकता। उसकी कोई कदर ही नहीं है। उसको ये नहीं है कि मैं कितना भाग्यशाली हूं कि मेरे को 70 साल मिले, 80 साल मिले, 40 साल मिले, 50 साल मिले, 60 साल मिले। ध्यान ही नहीं है। क्या देखता है उसमें भी ? कितने बचे हैं ?

तो जो कितने हैं, इस चीज को जानता ही नहीं है वो धनवान कैसे बनेगा ? क्योंकि उसके लिए जितना आये, उतना ही कम है।

जिस दिन तुम इस संसार को छोड़ के जाओगे, इसमें सबसे बड़ी चीज क्या है ? रोना तो तुमको आता है न कि तुमको बच्चे छोड़ने पड़ेंगे! अपनी बीवी को छोड़ना पड़ेगा या अपने पति को छोड़ना पड़ेगा या अपने मित्रों को छोड़ना पड़ेगा! कोई है ऐसा इस संसार के अंदर — कोई है ऐसा इस संसार के अंदर, जो सचमुच में, सचमुच में ये कहे कि दुःख मुझे सबसे बड़ा इसका, इस संसार से जाने का ये है कि "मेरे को अपने आपको छोड़ना पड़ेगा!"

क्योंकि उसने समझ लिया है। उसको, उसके अंदर से संतुष्टि है। बाहर से नहीं, अंदर से संतुष्टि है। और अगर ऐसा हो गया तो फिर उसके लिए वाह-वाह है।

Text on screen:

हर दिन तुमको एक नया पन्ना मिलता है

अब इस पर लिखो चाहे कुछ न लिखो

यह पलटता रहेगा। कब तक ?

जब तक इस स्वांस का आना-जाना बंद न हो जाए।

आरम्भ (Aarambh) 00:01:28 आरम्भ (Aarambh) Video Duration : 00:01:28 जैसे भी मिले शांति को ढूंढों और उसका अनुभव करो।

प्रेम रावत

एक समय था कि — मनुष्य सिर्फ अपने जीवन के अंदर एक सपना देखता था उड़ने का। आज उड़ान भरने में कोई देर नहीं लगती।

हल निकाला है मनुष्य ने। हर एक चीज का हल...।

संसार बदल रहा है, धीरे-धीरे करके जो लोग हैं वो बदल रहे हैं। उनके सोचने का तरीका अलग है। इसका ये मतलब नहीं है कि उनके हृदय में प्यास नहीं है। जैसे भी मिले शांति को ढूंढों और उसका अनुभव करो

जिम्मेवारी समझने के लिये कहां से शुरुआत होनी चाहिए ?

मैं बताता हूं। जिम्मेवारी को समझने के लिये शुरुआत तुमसे होनी चाहिए। ये समझो कि एक नई शुरुआत है।

क्या सीखें, क्या सिखाएं (Kya Seekhein, Kya Sikhaen) 00:06:46 क्या सीखें, क्या सिखाएं (Kya Seekhein, Kya Sikhaen) Video Duration : 00:06:46 हम लोगों को मैनर्स सिखाते हैं। मैनर्स सिखाने चाहिए, परंतु किस ढंग से सिखाने चाहि...

आज के समय में बच्चों को क्या सिखाया जाये ?

कनुप्रिया:

हमारी दो पीढ़ियां बैठी हैं। सवाल सबसे बड़ा आज — बहुत सारे सवालों को जोड़ के मैं एक सवाल दे रही हूं आपको कि आजकल घर-घर में हर कोई यह चाहता है कि मेरी बात मानी जाए और दो पीढ़ियों के बीच जो दूरी बढ़ती जा रही है, वो हमेशा से रही है, हम मानते हैं। लेकिन अब कुछ ज्यादा ही हो गया है और मुझे लगता है, ज्यादातर — जितने पैरेन्ट्स अगर यहां हैं, उनको यह समस्या आ रही है कि वो अपने बच्चों को क्या सिखाएं ? और जो वो सिखाना चाहते हैं, क्या वो सीख पा रहे हैं या नहीं ? इसको कैसे दूरी को कम करें ?

प्रेम रावत:

देखिए! जहां तक ट्रेडिशन्स की बात है — ट्रेडिशन एक ऐसी चीज है कि जो अपने आप टूटती है। एक जनरेशन में, एक पीढ़ी में — एक पीढ़ी के लोग एक तरीके से काम करते हैं, पर जो दूसरी पीढ़ी आती है, उसको वो दूसरी तरीके से...।

मैं आपको उदाहरण दूंगा, अभी रेडियो में भी मैं इन्टरव्यू दे रहा था, उसमें भी यही बात आई थी। तो एक समय था कि लोग सचमुच में अपने बुजुर्गों को प्रणाम करते थे। मतलब, कोई बुजुर्ग आया तो उसको सचमुच में प्रणाम करते थे। अब धीरे-धीरे करके वो प्रणाम की प्रथा बदल गई है। अब क्या हो गया है ? पहले हुआ कि सिर्फ पैर छुए! वो प्रथा भी धीरे-धीरे बदल गई है। अब घुटने छूते हैं। बस! तो ये ट्रेडिशन तो बदलते रहेंगे ।

बात यह है कि सबसे पहले तो हमको यह समझना चाहिए कि क्या सिखाएं ? क्या लोगों को सीखना चाहिए?

ये बात लोगों को स्पष्ट नहीं है। आदर — हम बच्चों को सिखाते हैं। पहले जब बच्चे छोटे होते हैं, कहते हैं, ‘‘थैंक यू!’’ बच्चे को किसी ने कुछ दिया तो बच्चे से कहते हैं, ‘‘थैंक यू बोलो!’’ वो काहे के लिए बोले थैंक यू ? परंतु हम लोगों को मैनर्स सिखाते हैं।

मैं नहीं कह रहा हूं कि मैनर्स नहीं सिखाने चाहिए। सिखाने चाहिए, परंतु किस ढंग से सिखाने चाहिए ? ताकि उसकी समझ में आए या न आए ? तो जबरदस्ती जब होती है — ‘‘प्लीज़ कहो! प्लीज़ नहीं कहोगे तो मैं नहीं दूंगी।’’ तो वो क्यों कहता है प्लीज़ ?

अब देखिए! हिन्दुस्तान के अंदर कोई भी गलती कर दीजिए आप। आपको सिर्फ एक चीज कहने की जरूरत है।

क्या ?

सॉरी! सॉरी! सॉरी! जैसे यह भगवान का नाम है — सॉरी! आपने भगवान का नाम ले लिया, अब आप सब चीजों से रहित हो गए। आप सब पापों से मुक्त हो गए हैं। समाज को समझना चाहिए कि वो किस तरीके का समाज चाहता है। सोसाइटी को समझना — यह सोसायटी की प्रॉब्लम्स हैं। सोसाइटी को समझना चाहिए कि वो किस प्रकार की सोसाइटी चाहती है। और जबतक ये नहीं होगा, तबतक लोगों के अंदर वो प्रेरणाएं नहीं भरी जाएंगी कि अपने आपको जानो! अपने आपको समझो! अपने जीवन के अंदर आनंद लाओ! ये तुम्हारे उद्देश्य होने चाहिए।

नहीं, नहीं, नहीं! पढ़ते रहो, पढ़ते रहो, पढ़ते रहो, पढ़ते रहो, पढ़ते रहो...! चार बजे उठ के पढ़ो। हमारे साथ यही होता था। चार बजे उठ के — अब नींद आ रही है। और अगर किसी ने देख लिया खेलते हुए — क्या कर रहे हो ? तो बच्चे हैं।

देखिए! कई चीजें हैं, जो दुनिया में हो रही हैं और सब लोगों को मालूम नहीं हैं। नार्वे एक कंट्री है। स्कैण्डिनेवियन कंट्री है और नार्वे का जो एजुकेशन स्टेटस था, वो बहुत low था। बहुत low! तो नार्वे के लोगों ने कहा कि किस तरीके से हम अपना एजुकेशन अच्छा बनाएं, ताकि हमारा जो स्टेटस है, एजुकेशन स्टेटस, वो ऊपर तक पहुंचे। मैं जो कहने जा रहा हूं, वो आपको बड़ा अजीब लगेगा। तो उन्होंने क्या किया ? गृह-कार्य खत्म कर दिया! होमवर्क खत्म! और बजाय सबेरे से लेकर के दोपहर तक स्कूल चले, उसको उन्होंने सिर्फ दो घंटे का बना दिया। और घंटों में क्या करना है ? खेलो!

तो हुआ यह कि जब बच्चे सबेरे आते थे तो उनका मन तो है नहीं पढ़ने का। मन उनका है खेलने का। तो बैठे तो हैं पर मन — वो तो वो वाली बात हो गई कि —

मन तो कहीं और दिया और तन साधन के संग।

तो बैठे तो हैं क्लास रूम में, पर मन क्या कर रहा है ? बाहर बॉल खेल रहा है। तो जब ये बदल दिया उन्होंने तो सिर्फ थोड़ा-सा समय बचा, जिसमें उनको पढ़ना है। तो खेल-कूद करके अपनी तबियत पूरी कर ली और जब क्लास रूम में आए तो एकदम ध्यान दे रहे हैं। सारा का सारा नार्वे का नक्शा बदल गया एजुकेशन का। वो नम्बर 6 या 7 थे, नम्बर 1 में आ गए! परंतु ये सारी चीजें, क्या हमारा समाज इन चीजों को अपनाएगा, ये जो आधुनिक तरीके हैं, जो सक्सेसफुल हैं ? इसीलिए मैं कहता हूं कि हम सबको मिलना चाहिए। हम सब मिलकर के एक नई सीढ़ी बनाएं, जो सफलता की सीढ़ी हो। सबके लिए!

Text on screen:

सोसाइटी को समझना चाहिए

कि वो किस प्रकार की सोसाइटी चाहती है!

और जबतक यह नहीं होगा, तब तक लोगों के अंदर वो प्रेरणाएं

नहीं भरी जाएंगी कि अपने आपको जानो!

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