एक झलक:
ज्ञान की विधि है हमारे पास। अंदर जाने की विधि है हमारे पास और यह तब काम करती है जब छल-कपट को त्याग करके, छल-कपट को त्याग करके मनुष्य श्रद्धा से, प्रेम से, प्रेम से जब आता है तब उसको समझ में आती है कि ये अंदर जाने की विधि क्या है और ये काम करती है।
दिन हो, रात हो — हम एक दिन की बात नहीं कर रहे, हम दो दिन की बात नहीं कर रहे, हम एक महीने की बात नहीं कर रहे हैं। हम कर रहे हैं बात तुम्हारे सारे जीवन की। तुम्हारे आखिरी स्वांस तक की बात हो रही है यहां। जिस चीज का हम अनुभव कराते हैं — हम कहते हैं कि तुम उसका अनुभव, उसका आनंद आखिरी स्वांस तक ले पाओगे। ये है वो चीज!
- श्री प्रेम रावत
एक झलक:
लोग समझते हैं कि अगर लड़ाइयां बंद हो गयी तो शांति हो जायेगी।
कौन सी लड़ाई ?
कितनी लड़ाइयां हैं ?
आप जानते हैं कितनी लड़ाइयां हैं ?
अरे! देश लड़ते हैं, यह भी लड़ाई है। परिवार लड़ते हैं, यह भी लड़ाई है। एक और भी लड़ाई है। अभी तक तो आपने देखा होगा और आप समझते होंगे कि लड़ने के लिए दो चाहिए। यह बात बिल्कुल गलत है, लड़ने के लिए एक ही बहुत है। क्योंकि मनुष्य ऐसा है कि वह अपने आप से लड़ सकता है। और जो लड़ाई मनुष्य अपने आप से लड़ता है, वो बहुत ही गंभीर लड़ाई है। वो सबसे बुरी लड़ाई है। उस लड़ाई से जीतना बहुत मुश्किल है।
बताऊं क्यों ?
क्योंकि जब खुद ही से लड़ रहे हैं तो जीतोगे तो दूसरा हारेगा। तुम्हीं जीतोगे और तुम्हीं हारोगे। वो लड़ाई जिसमें जीतना मुश्किल नहीं है, क्योंकि अगर तुम्हीं जीत गये तो तुम्हीं हार जाओगे। तुम्हीं हो।
और वो लड़ाई चलती है कब ?
दिन और रात! दिन और रात वो लड़ाई चलती है।
और उसमें क्या मारा जा रहा है ?
ये स्वांस मारा जा रहा है। जो स्वांस, जो सबसे, सबसे, सबसे बड़ा प्रसाद है, बड़ा आर्शीवाद है, वो मारा जा रहा है।
- प्रेम रावत, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, नई दिल्ली
31 जुलाई 1966 को प्रेम रावत जी ने अपने दिवंगत पिता के शांति प्रयास को जारी रखने की जिम्मेदारी संभाली। इस ऐतिहासिक अवसर की 53वीं वर्षगांठ पर इंदिरा गाँधी इंडोर स्टेडियम, दिल्ली में हुए प्रोग्राम की वीडियो एवं ऑडियो रिकॉर्डिंग का आनंद लें। जन्म और मृत्यु के बीच जीवनदायनी अनमोल स्वांस के बारे में प्रेम रावत जी का अद्वितीय दृष्टिकोण सुनें।
31 जुलाई 1966 को प्रेम रावत जी ने अपने दिवंगत पिता के शांति प्रयास को जारी रखने की जिम्मेदारी संभाली। इस ऐतिहासिक अवसर की 53वीं वर्षगांठ पर इंदिरा गाँधी इंडोर स्टेडियम, दिल्ली में हुए प्रोग्राम की वीडियो एवं ऑडियो रिकॉर्डिंग का आनंद लें। जन्म और मृत्यु के बीच जीवनदायनी अनमोल स्वांस के बारे में प्रेम रावत जी का अद्वितीय दृष्टिकोण सुनें।
एक झलक:
जबतक तुम अपने आपको नहीं जानोगे कि तुम कौन हो, तुम्हारी क्या शक्तियां हैं, ‘‘भगवान! मेरे लिए ये कर दे! भगवान! मेरे लिए ये कर दे! भगवान! मेरे लिए ये कर दे!’’ इनसे नहीं। ये जानो, उस भगवान ने तुम्हारे लिए पहले से ही क्या कर दिया है। तुमको ये स्वांस दिया है।
अपने आपको कभी ये मत समझना कि तुम भाग्यशाली नहीं हो, क्योंकि वो स्वांस — जबतक तुम्हारे अंदर वो स्वांस आ रहा है, जा रहा है, उस परमेश्वर की तुम पर कृपा है! और तबतक, जबतक ये स्वांस आ रहा है, जा रहा है, यम भी तुम्हारा बाल बांका नहीं कर सकता।
- प्रेम रावत - रांची, झारखण्ड
एक झलक:
जबतक तुम अपने आपको नहीं जानोगे कि तुम कौन हो, तुम्हारी क्या शक्तियां हैं, ‘‘भगवान! मेरे लिए ये कर दे! भगवान! मेरे लिए ये कर दे! भगवान! मेरे लिए ये कर दे!’’ इनसे नहीं। ये जानो, उस भगवान ने तुम्हारे लिए पहले से ही क्या कर दिया है। तुमको ये स्वांस दिया है।
अपने आपको कभी ये मत समझना कि तुम भाग्यशाली नहीं हो, क्योंकि वो स्वांस — जबतक तुम्हारे अंदर वो स्वांस आ रहा है, जा रहा है, उस परमेश्वर की तुम पर कृपा है! और तबतक, जबतक ये स्वांस आ रहा है, जा रहा है, यम भी तुम्हारा बाल बांका नहीं कर सकता।
- प्रेम रावत - रांची, झारखण्ड