Text on screen:
क्या हम लाइफ की सिम्पलिसिटी को भूल गये हैं ?
प्रेम रावत:
क्रिएटिव सबसे ज्यादा आप तभी बनेंगे जब आप सिम्पल होंगे। क्योंकि हम सिम्पल नहीं हैं — क्योंकि हम सिम्पल नहीं हैं, तो यह समझिए कि दो चीजें हैं जो आपस में रगड़ रही हैं — एक तो हृदय है जो जीना चाहता है, जो आनंद लेना चाहता है, जो शांति का अनुभव...। और दूसरी तरफ — ये सारा कूड़ा जो हमारे कमरे में पड़ा हुआ है, जो सड़ रहा है, बास आ रही है। तो एक तरफ तो इच्छा है कि मैं इस कमरे में रहूं और दूसरी तरफ जो बास है वो कह रही है बाहर निकल। तो रगड़ रहा है आदमी, अपने से ही रगड़ रहा है।
साधारणता में, सरलता में, जिसको चित्र नहीं बनाना आता, वो कोशिश करेगा, कोशिश करेगा, कोशिश करेगा। देखिए! एक चीज मैंने, इसको मैंने देखा है। अगर आप छोटे बच्चे को कहो कि तुम ऐक्टिंग करो कि तुम सो रहे हो। तो वो जानते हैं क्या करेंगे ? अपनी आंख को बड़ी जोर से बंद करेंगे कि वो सो नहीं रहे हैं। उनको अहसास नहीं है कि मैं कैसा दिख रहा हूं। तो अपनी आंख को बंद करेंगे — ऐसे-ऐसे-ऐसे करेंगे। परंतु जो सो रहा है, बच्चा भी सो रहा है, तो वो ऐसा-ऐसा नहीं करेगा। उसकी आंख स्वाभाविक तरीके से बंद होगी। एक तरफ हम कोशिश कर रहे हैं अच्छा बनने के लिए। पर उसमें सरलता नहीं है। सरलता जब होगी, इसका मतलब है जो होना है वो हो रहा है। हम उस चीज को जान रहे हैं। सच में हमको नींद आ रही है, हम सोने की एक्टिंग नहीं कर रहे हैं। तो वो होना चाहिए। ये जीवन एक्टिंग के लिए नहीं है। अब फिल्म स्टार को एक्टिंग करनी है वो तो करनी है।
एंकर : ये उसका प्रोफेशन है।
प्रेम रावत : उसका प्रोफेशन है। परंतु ये एक्टिंग के लिए नहीं है। हमको एक्ट नहीं करना है कि हम इंटेलीजेंट हैं — या तो हैं या नहीं हैं। अब अगर एक्टिंग करने लगेंगे कि हम इंटेलीजेंट हैं जब हम इंटेलीजेंट नहीं हैं, तो फिर गड़बड़ होगी। तो इसलिए जीवन को स्वीकार करना सीखो।
एंकर : सहजता में जीना सीखो।
प्रेम रावत : सहजता में जीना सीखो। स्वीकार करना सीखो। तो इसमें आपको एक सहजता मिलेगी, एक सरलता मिलेगी। एक सिम्पलिसिटी मिलेगी। और यह आपके जीवन के अंदर एक अनोखा आनंद लायेगी, क्योंकि आप जिसको इम्प्रेस करने की कोशिश कर रहे हो, वो कभी इम्प्रेस होगा नहीं।
एंकर : जी।
प्रेम रावत : उसको — जैसे ही वह इम्प्रेस होने लगेगा उसको ईर्ष्या होगी। और जैसे ही ईर्ष्या होने लगेगी, वो फिर आपसे द्वेष करना शुरू कर देगा, बजाय आपको स्वीकार करने के। किसी को इम्प्रेस करने की जरूरत नहीं है। अगर किसी को इम्प्रेस करना है तो अपने आपको इम्प्रेस करना है।
Text on screen:
क्रिएटिव सबसे ज्यादा आप तभी बनेंगे, जब आप सिम्पिल होंगे।
प्रेम रावत:
मैं एक सवाल पूछता हूं आपसे। अगर कोई आपको गिफ्ट दे — अगर कोई आपको उपहार दे और आप उस उपहार को स्वीकार न करें तो वह उपहार किसका हुआ ? देने वाले का या लेने वाले का ?
उसी का है, जिसने दिया। आपका नहीं है। वो उपहार तभी आपका होगा, जब आप उसको स्वीकार करेंगे।
तो आपको बनाने वाले ने यह जिंदगी दी। अगर आपने स्वीकार नहीं की तो यह किसकी हुई ?
उसी की हुई। आपकी नहीं हुई। अपनी जिंदगी को जीने के लिए इस जिंदगी को स्वीकार करना बहुत जरूरी है।
किसकी है यह जिंदगी ?
अगर स्वीकार किया, तुम्हारी है। पहले जिंदगी स्वीकार करो, क्योंकि वो देने वाला दे रहा है। उसका नाम ही दाता है, वो सबको देता है। वो तुमको स्वांस रूपी ये चीज दे रहा है, इससे बड़ा धन कोई नहीं है। इससे बड़ा धन कोई नहीं है!
प्रश्नकर्ता:
मैं अपने आप में तो खुश रह सकता हूं, क्योंकि मुझे अपने आपसे — और मैं अपने आपको समझता हूं, अपने आपको जानता हूं और अपने आपसे कैसा व्यवहार करना है यह भी मुझे मालूम है। लेकिन जो दूसरा कारण, जब दुःख का बनता है और वो दुःख का कारण है, मेरे इर्द-गिर्द की जो परिस्थितियां हैं, उनको हम कैसे नियंत्रित करें ? जो दुःख मुझे एक्सर्टनल या सोसाइटी या अन्य किसी स्रोत से या अन्य किसी जगह से प्रभावित करता है या किसी क्षण तक प्रभावित करता है, उसका समाधान कैसे होगा ?
प्रेम रावत:
आपके घर में मच्छर आ रहे हैं, मक्खियां आ रही हैं। तो आप सबसे पहले क्या देखेंगे ? आपका घर है, दीवाल हैं, किवाड़ हैं, खिड़कियां हैं। सबसे पहले आप क्या देखेंगे ? अगर मक्खियां आ रही हैं — दरवाजा बंद है या नहीं ? खिड़कियां बद हैं या नहीं ? अगर खिड़कियां खुली हुई हैं सारी तो मक्खी मच्छर तो आएंगे। हो सकता है, खिड़की हमने खोली हो कि फ्रेश हवा, शुद्ध हवा हमारे कमरे में आए। परंतु उसका एक कॉन्सीक्वेन्स भी है कि हवा भी आएगी तो मक्खी भी आएगी, मच्छर भी आएंगे और धूल भी आएगी।
तो सबसे पहले हमको ये देखना है कि हम क्या चाहते हैं ? अगर हम उन मक्खी और मच्छरों से बचना चाहते हैं और वो मक्खी-मच्छर हैं — ‘समस्याएं’। जो थोड़ी-थोड़ी समस्याएं आती हैं या कोई ऐसी चीज कर देता है, जिससे कि हमको दुःख होता है या हम किसी का दुःख नहीं सहन कर पा रहे हैं — ये हैं वो मक्खी और मच्छर! खिड़की बंद करने की जरूरत है।
क्योंकि कोई भी मनुष्य अपने जीवन में एक दीया हो। दीया उजाला देता है। दीया यह नहीं देखता है कि मैं किस पर उजाला दे रहा हूं। उसके पास अगर चोर आएगा, उसके लिए भी उजाला हो जाएगा और अगर कोई संत आएगा, उसके लिए भी उजाला हो जाएगा। ये जितने हमारे फ़र्क हमने बनाए हुए हैं, दीये का इससे कोई लेना-देना नहीं है। उसका काम है — प्रकाश देना।
जैसे सूर्य उदय होता है और वो सारे संसार के अंदर उजाला पैदा करता है। वो यह नहीं देखता है, यह चोर है, यह अच्छा आदमी नहीं है, यह नहीं करूंगा, यह नहीं करूंगा। ये सब हम करते हैं। जबतक हम अपने में यह नहीं जान लेंगे कि मेरा स्रोत, मेरे शांति का स्रोत मेरे अंदर है और जब वो स्रोत, उससे मैं अपना कनैक्शन जोड़ूंगा और वो बाहर आएगा तो मैं — सबके लिए एक ऐसा मेरा माहौल हो जाएगा कि मैं सबमें खुशी बांटने के लिए तैयार हो जाऊंगा।
देखिए! दो प्रकार के लोग होते हैं — एक तो वो, जिनके साथ आप एक मिनट भी नहीं बिता सकते हैं और एक वो, जो आपके जीवन में थोड़ी स्माइल ले आते हैं, थोड़ी खुशी ले आते हैं। हां, अगर हम वैसे होने लगें, हर एक व्यक्ति वैसे होने लगे कि वो थोड़ा-सा सुकून ले आए, थोड़ी-सी मुस्कान ले आए। अब ये नहीं है कि वो सारा माहौल बदल देगा, ये नहीं है कि सारी जो समस्याएं हैं, उनको अपने कंधों पर ले लेगा। नहीं। वो सिर्फ एक छोटी-सी चीज करे।
अब एक दिन मैं जा रहा था कार से तो मैंने देखा कि एक बस, जो खड़ी हुई थी, वो चलने लगी। एक बेचारा बहुत ही वृद्ध आदमी उस बस के पीछे धीरे-धीरे भागने लगा। और वो बस उसकी थी, परंतु वह छूट गया। और बस धीरे-धीरे तेज़ चलने लगी और उस बेचारे ने भागने की कोशिश की, पर बहुत ही वृद्ध था, वो भाग नहीं सका। मैं सोच रहा था कि मैं ड्राइवर से कहूं कि वो बस के ड्राइवर के पास जाए और उससे कहें। इतने में एक व्यक्ति अपनी मोटर साइकिल से आया और उसने बस को थपथपाया और ड्राइवर से कहा — ‘‘तेरा एक पैसेंजर छूट गया है!’’
ड्राइवर ने बस रोकी और वो वृद्ध आदमी उस पर चढ़ गया। और मैंने देखा कि मोटर साइकिल वाले ने अपनी मोटर साइकिल को रोककर के, बस में चढ़कर के उस वृद्ध आदमी से ये नहीं कहा कि ‘‘तूने थैंक्यू नहीं कहा ?’’ ना। वो चला गया।
मैंने सोचा कि हम एंजेल्स की बात करते हैं। मैंने अभी-अभी एक एंजेल को मोटर साइकिल में देखा और उसने... अब बेचारा वो कहां जा रहा था ? लोग उसकी इंतजार करेंगे। कितने लोगों के लिए उसने एक बहुत ही मुश्किल बात को सरल बना दिया। वो आया। कहां से आया ? पता नहीं। और कहां गया ? मैं देखता रहा, कहां गया ? कहीं चला गया वो। उसके पर नहीं थे और वो देखने में भी कोई ऐसा नहीं लगता था कि विशेष आदमी हो। परंतु वो मनुष्य था। और उस मनुष्य के रूप में वो एंजेल आई — वो था और उसने एक बहुत छोटा-सा काम किया — ‘‘ठक-ठक! तेरा पैसेंजर छूट गया।’’ और चला गया।
ये हम सब कर सकते हैं। हम ये सब कर सकते हैं। यह मानवता है। और जब मनुष्य अपने आपको ही नहीं जानता है तो उसकी मानवता क्या है, वो नहीं समझ पाता है। और ये समझना बहुत जरूरी है।
- प्रेम रावत
The Diamond Necklace
Oftentimes, we tend to anguish over acquiring what we don't have and forget to appreciate the things we do have.
Text on screen:
एक मनुष्य होने के नाते, मैं समाज में कैसे कंट्रीब्यूट कर सकता हूं ?
कनुप्रिया:
एक भारतीय होने के नाते, आज मैं अगर अवेयर हूं, मैं अगर थोड़ा-सा जागरूक हो रहा हूं — आपने कहा कि, मैं कितना कूल हूं, खुद ही पहचान लूं अगर मैं जान रहा हूं ये तो मुझे क्या कंट्रीब्यूट करना है कि वो सीढ़ी मैं बना पाऊंगा। ये कुछ जरूर पूछना चाहूंगी मैं ।
प्रेम रावत जी:
देखिए! यह तो बहुत सरल-सी बात है। यह बात है — अगर हम यह जान जाएं कि हमारे पास भी कुछ देने के लिए है और हमारे पास गुंज़ाइश है कुछ लेने के लिए। कुछ लें, कुछ दें। बस!
यह नहीं है कि ‘‘बस, हम तो सिर्फ देंगे, हम लेंगे नहीं! हमको कोई चीज विदेश की नहीं चाहिए।’’
अच्छा, यह आपका फाउंटेन पेन कहां से आया ? आपका फोन कहां से आया ? आपकी बस कहां से आयी ? आपका हवाई जहाज कहां से आया ? आपकी पैंट कहां से आयी ? आपकी शर्ट कहां से आयी ? आपके चश्में कहां से आए ? आपका टूथपेस्ट कहां से आया ?
कोई जवाब नहीं दे रहा है।
कनुप्रिया: बिल्कुल! तो जो अच्छाई हमारे पास है...
प्रेम रावत जी:
नीम की बात नहीं कह रहा हूं मैं, टूथपेस्ट की बात कर रहा हूं। नीम तो आया हिन्दुस्तान से, टूथपेस्ट आया विदेश से।
हैं जी ?
तो ये सारी चीजें ग्रहण करने के लिए तो कोई प्रॉब्लम नहीं है, परंतु शादी-ब्याह होगा और उसमें क्या बजाएंगे ?
वो ट्रमबोन! वो कहां से आया ?
वो हिन्दुस्तानी है ? ना! वो भी विदेश से आया।
ड्रम बजाएंगे, वो कहां से आया ? विदेश से।
हिन्दुस्तानी क्या है ? वो हिन्दुस्तानी नहीं है, पर तबला — ये सारी चीजें। वो तो ज्यादा बजता नहीं है, शादी-ब्याह में जब बारात चलती है।
तो समझने की बात है — कुछ लें, कुछ दें। और हर एक व्यक्ति, जो दिया जाए उसको देखने के लिए, उसको स्वीकार करने के लिए, उसको जानने के लिए राज़ी हो। और जो दिया जाए, वो ऐसा दिया जाए, ताकि औरों का भी भला हो। वो चीजें नहीं दी जाएं, जिनका कोई सिर-पैर ही नहीं है। पर वो चीजें दी जाए, जिससे सबका भला होगा। सबका! सबका!
तभी सब मिलकर के — क्योंकि अब समय आ गया है दरारों को बंद करने का। दरारों को बढ़ाने का नहीं, दरारों को बंद करने का। सब मिलकर के जब करेंगे, नई सीढ़ी बनेगी और इस सीढ़ी के ऊपर सब चढ़ेंगे, सिर्फ युवा ही नहीं। सिर्फ युवा ही नहीं! क्योंकि लोग फिर वही बात करते हैं, युवा पीढ़ी की बात करते हैं।
हम कहते हैं, क्यों जी ? सिर्फ युवा ही क्यों ?
क्योंकि सब लोग अपनी जिम्मेवारी उनके सिर पर थोपना चाहते हैं। नहीं, हम सबको जिम्मेवार होना चाहिए, सबको जिम्मेवार होना चाहिए। समय ज्यादा दूर नहीं है। धीरे-धीरे लोग अस्सी, नब्बे, सौ साल जीना शुरू कर देंगे तो फिर युवा क्या रह जायेंगे, अगर युवा का ही इंतजार करते रहेंगे तो ?
सबको मिलकर के — सब एक हैं। सब मनुष्य हैं! जबतक ये स्वांस तुम्हारे में आ रहा है, जा रहा है, तुम पर भगवान की कृपा है। उठो और इस जिंदगी को स्वीकार करो! इस कृपा को स्वीकार करो अपने जीवन में, ताकि हम सभी इस पृथ्वी के वासी सब एक होकर के — एक होकर के अपनी, सबकी-सबकी तकदीर बदल सकें।
Text on screen:
इस पृथ्वी के वासी सब एक होकर के
अपनी और सबकी तकदीर बदल सकते हैं।
Title : दो मेंढक
पहला मेंढक : हैलो! तुम यहां घूमने आये हो ?
दूसरा मेंढक : हां, भाई! मैं तो बस यहां से गुजर रहा था तभी अचानक बारिश आ गई।
पहला मेंढक : अरे परेशान मत हो दोस्त, तुम सही जगह आये हो। मैं तो यहां इस तालाब में रहता हूं। आओ देखो!
पहला मेंढक : तो देखा तुमने! कितना बड़ा है मेरा तालाब।
दूसरा मेंढक : हूं!
पहला मेंढक : अच्छा, तुम कहां रहते हो ?
दूसरा मेंढक : मैं तो एक समुंदर में रहता हूं।
पहला मेंढक : समुंदर! हूं... वो कितना बड़ा होगा ?
दूसरा मेंढक : हूं... बहुत बड़ा।
पहला मेंढक : क्या तुम्हारा समुंदर इतना बड़ा है ?
दूसरा मेंढक : नहीं, इससे बड़ा।
पहला मेंढक : तो क्या तुम्हारा समुंदर इतना बड़ा है ? इतना बड़ा ? इतना बड़ा ?
पहला मेंढक : तो क्या वो इससे भी बड़ा है ?
दूसरा मेंढक : समुंदर इससे बहुत बड़ा होता है, मेरे दोस्त।
पहला मेंढक : मैं नहीं मानता। इतने सालों से मैं यहां रह रहा हूं, मगर मैंने तो आजतक कोई ऐसी जगह देखी नहीं, जो मेरे तालाब से बड़ी हो। ऐसा हो ही नहीं सकता कि इससे भी बड़ी कोई जगह हो।
दूसरा मेंढक : हूं... तो ठीक है चलो मेरे साथ। आओ मैं तुम्हें दिखाता हूं कि समुंदर कैसा होता है।
पहला मेंढक : ओह! माफ करना मेरे दोस्त। आजतक मैं यही सोचता रहा कि मेरा तालाब सबसे बड़ा है। मगर मुझे अब अहसास हुआ कि मैं गलत था।
कहानी का सार यही है कि हम अपनी धारणाओं की दुनिया में एक छोटे तालाब की तरह रहते हैं और सोचते हैं कि इस दुनिया से बेहतर और कुछ नहीं है। जब कोई बताता है कि इसके अलावा एक दूसरी दुनिया भी है, तो उस पर यक़ीन करना मुश्किल हो जाता है।