MC: ग्रैहम रिचर्ड्स
सवाल है “आप खुद से प्यार कैसे करें जब आप मानने लगें हैं कि आप बदसूरत हैं और एक विफलता ?”
प्रेम रावत:
अब, खुशकिस्मती से यह तथ्य नहीं, यह बस हमारी मान्यता है। मान्यता बदल सकती हैं।
मान्यता ऐसी होती है — और हां मैं एक बात कहता था। अगर मैं किसी के साथ बैठा हूं, कह सकता हूं, “सोचिये कि यहाँ एक गाय है, कोई दिक्कत नहीं; बस मान लीजिये कि यहाँ एक गाय है और यह गाय बहुत दूध देती है। बस मान लीजिये, ओके ?”
कोई परेशानी, नहीं ना ? पर अगर मुझे चाहिए चाय, असली चाय और कुछ दूध चाहिए। बात है कि इस मानी हुई गाय से असली चाय के लिए दूध नहीं मिलेगा। अब अगर मैंने मानी हुई चाय ली है, तो यह सोची हुई गाय थोड़ा सा दूध दे सकती है मेरी मानी हुई चाय के लिए, पर अगर मुझे असली चाय चाहिए तो ये काम नहीं करेगी।
‘मानने’ के बाद भी एक पड़ाव है, उसे कहते हैं 'जानना।' सच्चाई में जीना, और बस — क्योंकि कई लोग मुझसे कहते हैं जब मैं अपनी बात उनसे कहता हूँ कि “बस भी करिये; सच्चाई कहिये!” और बात ये है उनके डर के साथ वो लोग असल में सच्चाई से दूर हैं। वो लोग झूठ में जी रहे हैं।
आप जो चाहे वो मान सकते हैं। पर सच्चाई है क्या ? सच्चाई क्या है ? सच्चाई है कि अंधकार रोशनी से दूर नहीं होता।
पिछली बार जब आपने स्विच जलाया और अँधेरे कमरे में रोशनी की, कितनी देर लगी अंधकार को जाने में ? आपने लाइट बल्ब जलाया और बस हो गया। जजजजजजजजजजज...., जैसे जानते हैं एक ड्रेन ? बिलकुल नहीं, एकदम से, एकदम से!
अंधकार कभी रोशनी से दूर नहीं; रोशनी कभी अंधकार से दूर नहीं। जो ख़ुशी कभी उदासी से दूर नहीं और उदासी कभी भी ख़ुशी से दूर नहीं। ये साथ में रहते हैं।
जब आप बाथरूम में जाकर, दरवाजा बंद करते हैं, प्राइवेसी के लिए, आपको लगता है ये प्राइवेट है ? नहीं! आपका गुस्सा, आपका डर, आपका शक़, आपके साथ आये हैं। हालांकि आप अपने लिए बस या एयरोप्लेन में एक ही सीट बुक करते हैं, आपका गुस्सा, आपका डर, आपका शक़ हमेशा साथ में चलते हैं। हमेशा! हमेशा!
पर रहती है करुणा भी, रहती है समझ, रहती है कृतज्ञता। ये चीजें भी हैं क्योंकि ये सिक्के का दूसरा पहलू है।
आपको यह जानना है — अगर आपने सिर्फ अपनी बदसूरती का तज़ुर्बा किया है, फिर आपने सिक्का पलट कर नहीं देखा। आपको सिक्के को पलटना है। क्योंकि सिक्के की दूसरी तरफ कमाल की सुंदरता है।
सुंदरता क्या है ? क्या है सुंदरता ? कोई ऐसा जो सामान आकर का हो ? कोई फिल्म स्टार ? सुंदरता क्या है ? क्योंकि आप जानते हैं सच्चाई को, कितने फिल्मस्टार्स बेहद सुन्दर होते हैं, वो कई-कई घंटो तक खुद को शीशे में निहारते हैं कि “हे भगवान! क्या मैं हूं ये ? ये मैं हूं ? ये मैं हूं ?”
आप हैं रखवाले, अगर महसूस करें खुद में और देखें। मैं इस पर जाता रहता हूं और ये कमाल का सवाल है, क्योंकि इससे मुझे अपनी किताब के लिए बहुत कुछ मिलेगा — इसलिए आपको खुद को जानना होता है।
सॉक्रटीज़ ने कहा — "खुद को जानें!” आपको खुद को जानना है। आपको खुद को क्यों जानना है ? क्योंकि तभी तो आप खुद की असल सुंदरता को महसूस कर पाएंगे। इसलिए आपको खुद को जानना चाहिए।
अरबों वज़ह हैं मेरे मुताबिक, इस धरती पर 7.5 अरब वज़ह हैं, खुद को जानने की, कि आपको खुद को जानना क्यों है ? क्योंकि अगर सब जानें तो मुझे लगता है दुनिया की स्थिति काफी अलग होती। अगर वो सुंदरता जो आपके मन में है, वो असल सुंदरता से भिन्न है।
आंखों को देखिये! इस कमाल को देखिये! ये बच्चे सुन्दर हैं, ये कुछ बढ़िया देखते हैं और हैरान होते हैं, बिल्कुल हैरान! और बिल्कुल, बेवकूफ माँ-बाप कहते हैं — “ये चाँद है।” उन्हें फ़र्क़ नहीं पड़ता। वो अपने बेवकूफ पिता के कहने से पहले ही चाँद से प्यार करने लगे थे या बेवकूफ माँ ने कि “ये चाँद है।” उन्होंने चाँद देखा, उसका नाम जाने बिना और उससे प्यार कर बैठे। ये है सुंदरता! और आपमें वो सुंदरता है, चाहे और कोई कुछ भी कहे। आप उनसे कहीं बुरे हैं, क्योंकि आप खुद को लगातार बताते रहते हैं कि मैं सुन्दर नहीं, मैं सुन्दर नहीं…।
ये सुंदरता एक दिन चली जायेगी। वही लोग, जिसे लोग आकर चूमते हैं, वो कहेंगे, “आह! ये क्या हुआ ?”
तो ये नहीं है, ये सुंदरता वाला हिस्सा नहीं — सुंदरता का हिस्सा यहाँ है, आपके हृदय में! आपमें!
बदलाव — बहुत से लोगों के लिए बदलाव एक ऐसी चीज है जिसे या तो लोग स्वीकार नहीं करना चाहते या उसके साथ बह जाते हैं। पर क्या हम सचमुच यह समझते हैं कि इसका क्या मतलब है, बदलाव क्या है ?
क्योंकि जिस तरह हमारा अस्तित्व है, जिस तरह हम जीते हैं हम उस बदलाव के साथ होते हैं। अगर वह स्वांस आया अच्छी बात है — हम जीवित हैं। अगर यह गया तो हम मौत के बहुत करीब हैं हम नहीं जानते हैं कि वह कब आएगी। और फिर अगर यह आया तो वह हमारे लिए फिर एक मौका है जीवित होने का। और अगर यह गया और वापस नहीं आया तो वह एक बहुत बड़ा बदलाव होगा— यही है सभी बदलावों की जननी।
पर यह हर समय, हर समय होता है, दिन-रात और हम इसे इस तरह नहीं देखते हैं। हम अपने जीवन को आंकड़ों के रूप में देखते हैं — 60 साल, 65 साल, 70 साल औसतन।
साक्षात्कार:
महिला: कितने दिन...
महिला: अरे बाप रे!
महिला: अब वो तो हमें मल्टीप्लाई करना पड़ेगा।
पुरुष: 18,000
पुरुष: 60 से 70 साल।
महिला: 70 years x 365 days + लीप ईयर काउंट so you add one day.
महिला: close to one lakh.
पुरुष: 50,000
पुरुष: 15 to 16,000
पुरुष: 15,000
पुरुष: 15 to 20,000 days.
पुरुष: 1,00,000 days.
महिला: I don't know...कितने हुए।
पुरुष: 20,000 days.
पुरुष: 25 to 30,000
महिला: 50,000
पुरुष: इतने ही अराउंड 50,000.
महिला: नहीं, इतना तो कभी calculate नहीं किया।
पुरुष: 100, 200, 250 करोड़।
पुरुष: Yah exactly same.
महिला: एक्चुअली calculation तो हमारी years की है डेज़ तो calculate किये नहीं।
मैं आपको अर्थशास्त्र का एक पाठ पढ़ाता हूं। अगर मैं आपसे कहूं कि आपको 25,550 रुपये मिलने वाले हैं, क्या ये बहुत सारे रुपये हैं ?
कुछ लोगों के लिए ये बहुत सारे रुपये हैं। कुछ लोगों के लिए ये बहुत सारे रुपये नहीं हैं। 25,550 रुपये में आप एक घर, एक गाड़ी, एक रेफ्रिजरेटर और एक वॉशिंग मशीन नहीं खरीद सकते हैं और बहुत दिनों तक अपना भोजन नहीं खरीद सकते हैं।
मेरा मतलब है, आज के जमाने में 25,550 रुपये बहुत ज्यादा नहीं हैं। और अगर आपके पास इतने ही रुपये हैं, बस यही हैं आपको और नहीं मिलने वाले हैं, तो मुझे लगता है कि आप काफी उदास हो जायेंगे क्योंकि ये ज्यादा दिन तक नहीं चलने वाले हैं। मेरा मतलब घूमना-फिरना तो भूल जाइए। हो सकता है आपको दुकान तक पैदल चलकर जाना पड़े। ऐशो-आराम की सारी चीजें तो भूल ही जाइए।
तो मैं आपसे क्यों बात कर रहा हूं 25,550 रुपये की ? इससे आपका क्या मतलब है ?
मतलब है, रुपये नहीं कुछ और। औसतन रूप से अगर मनुष्य 70 साल तक जीवित रहता है तो इस तरह आपको मिलते हैं 25,550 दिन! बस।
साक्षात्कार:
महिला: 25,550 दिन।
पुरुष: 70 years तो काफी कम हैं मतलब।
पुरुष: मैं generally ये expect करके चल रहा था कि मैं 30,000 दिन तो जीऊंगा।
महिला: Life is too short.
पुरुष: हां, वही मतलब।
पुरुष: Enough me यार! और भी चाहिए मुझे क्योंकि मेरे गोल बहुत हैं तो मुझे और बहुत सारे डेज़ चाहिए।
महिला: 25,550 तो सच में कम लग रहा है। सोचा नहीं था इतना कम परbut I think 75 years तो बहुत लगता है लेकिन 25,550 कम लग रहा है।
पुरुष: हम ऐसे नॉर्मल सोच रहे थे 80,000-90,000 बट ऐसा आपने बताया 70 years x 365 = 25,000 तो obviously.
पुरुष: बस इतने से ही दिन है 25,550 दिन। मुझे लगा 70 साल बहुत ज्यादा होते हैं।
आप जीवित हैं। और बहुत से लोगों के लिए ये कोई जमीन को हिला देने वाला संदेश नहीं है। तो जरा सोचिए इसके बारे में! अगर कोई आपसे कहे आप मरने वाले हैं। ये जमीन को हिला देने वाली खबर है। तो ये उल्टी बात क्यों है ? अगर एक डॉक्टर आपसे कहे आप सिर्फ दो महीने और जीयेगें तो लोग कहेंगे, हे भगवान!
जब हम जीवित होते हैं तो क्या हम इस बात को समझते हैं कि जीवित होने का क्या मतलब है ? या क्या ये बात तभी हमारे दिमाग में घुसती है जब इसकी संभावना समाप्त हो जाती है ?
साक्षात्कार:
महिला: Of courseअब मुझे लग रहा है कि हां इतना कम दिन है हमारे पास। इसको जितना, जितना ज्यादा जी लो उतना ही अच्छा है।
महिला: अगर आपको पता ही है कि definitely सिर्फ इतने ही दिन हैं then मेरे ख्याल से आपको किसी की हेल्प करनी चाहिए जो less fortunate हैं।
पुरुष: कोई टेंशन नहीं है। इस बात की टेंशन नहीं है दिन कितने गुजार दिये, जितने बचे हैं उन पर concentrate अपना।
महिला: छोटी-छोटी चीजों की वैल्यू पता लगनी शुरू हो जायेगी just क्योंकि तुमको पता है कि तुम्हारे पास अब कम टाइम है।
पुरुष: तो मेरे पास 25,550 दिन हैं तो मैं पूरी कोशिश करूंगा मैं उतने में ही अपना गोल अचीव करू लूं।
महिला: मायने तो यही है हर दिन को वैल्यू करेंगे और हार्ड वर्क करेंगे अपनी सारी ड्रीम्स को फुलफिल करेंगे।
महिला: मैं calculate करने लग जाऊंगी obviously कि मुझे क्या-क्या चीजें कितने-कितने टाइम तक क्या-क्या करना है और कितनी जल्दी मुझे क्या-क्या चीजें अचीव करनी है तो obviously मैं वो चीज अपने माइंड में calculate करने लग जाऊंगी।
पुरुष: मैं और ज्यादा livingly जीऊंगा। ऐसे अभी कोई फालतू चीजों में टाइम वेस्ट कर देता हूं। उससे ज्यादा मैं चीजों को पकड़कर और ज्यादा इंजॉय करूंगा each and every secondको मैं इंजॉय करना शुरू कर दूंगा।
मेरे दोस्तों आप क्या खरीदना चाहते हैं उन रुपयों से जो आपको मिल रहे हैं हर दिन 25,550 दिनों तक ?
मैं उससे खरीदना चाहता हूं — सच्चा आनंद। मैं अपने लिए संतुष्टि पाना चाहता हूं।
कल कैसा होगा ?
एक मायने में आज से अलग नहीं और बीते हुए कल से अलग नहीं। और अगर आप संतुष्ट हैं तो ये बिल्कुल अलग होगा। ये आज से अलग होगा। और ये बीते हुए कल से अलग होगा। और उसके पिछले दिन से अलग होगा और फिर भी हम गिन नहीं सकते 25,550 दिन। इससे आपको कोई फर्क नहीं पड़ता। ये है उपहार! बड़ा उपहार! बहुत बड़ा नहीं लेकिन बड़ा। 25,550!
प्रश्नकर्ता : अंकिता
हैलो! प्रेम रावत जी, मेरा नाम अंकिता है और मैं एक स्टूडेंट हूं। मैंने आपके प्रोग्राम को बहुत बार सुना है और इतनी बार सुनने के बाद मेरे मन में एक क्वेश्चन आया है, जो कि मैं आपसे पूछना चाहती हूं। लोग जॉब करते हैं, पढ़ाई करते हैं, सबकुछ करते हैं सिर्फ सक्सेस पाने के लिए। क्योंकि उनका मेन मोटिव होता है that is to only achieve success, at onceलोग सक्सेसफूल हो जाते हैं। पर तब भी उन्हें सैटिस्फैक्शन नहीं होती है। They are always dissatisfied. कई लोग होते हैं कि सक्सेसपन नहीं मिलती तो डिप्रेशन में चले जाते हैं। तो मेरा क्वेश्चन यह है कि ये सैटिस्फैक्शन, मतलब हमें जिन्दगी में ऐसी कौन-सी और कब ऐसी सक्सेस मिलेगी जिसमें हम कम्प्लीटली सैटिस्फ़ाइड रहेंगे ?
प्रेम रावत:
चार चीजें — किसी भी मनुष्य के जीवन में स्थापित हो जाएं तो सारा रूख बदल जाए। अब मैं ये चार चीजों के बारे में इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि ये हमारे स्केल में नहीं हैं। जो हम लाइन बनाते हैं, उसमें नहीं है। और लाइन हो या न हो; आप अमीर हों या न हों; आप सक्सेसफुल हों या न हों; इससे कोई मायने नहीं रखता। ये आपकी चार निज़ी चीजें आपके अंदर होनी चाहिए।
सबसे पहली बात कि मनुष्य अपने आपको जाने!
दूसरा — उसके जीवन में आभार होना चाहिए। आभार! तो इसका मतलब है कि आप अपने बच्चे को, जिसने शैतानी की है, जिसको आप डाँटना चाहते हैं — डाँटने से पहले आप यह सोचें कि ये जो बच्चा है आपका, आपके जीवन में है, क्या आपके हृदय में इसके प्रति आभार है या नहीं ?
महिला एंकर : बच्चे के प्रति!
प्रेम रावत:
Are you thankful for your child ? किसी से आप लड़ने जा रहे हैं। आप भी जीवित हैं, वो भी जीवित है। क्या आपके जीवन में आपके जीने का आभार — इसका अनुभव करते हैं या नहीं ? आभार! To be thankful! इस जीवन के अंदर!
तीसरी चीज है कि आप अपने जीवन में असफलता को कभी स्वीकार न करें। आप अपने जीवन में असफलता को कभी स्वीकार न करें। असफलता हो — मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप कभी असफल न हों। नहीं। आप असफल तो होंगे। सफल भी होंगे, असफल भी होंगे। परंतु जब आप असफल हों तो उस असफलता को कभी स्वीकार न करें।
उदाहरण देता हूं मैं। जब आप, सभी लोग, सारे श्रोता जब आप बच्चे थे और आपने चलना सीखा, तो आप खड़े हुए। सबसे पहले खड़े हुए! फिर आपने थोड़े हिलकर के कदम लिए और आप गिर गए। असफल हुए। तो आप बैठ गए ? फिर खड़े हुए। तो आपके अंदर एक समय था कि ऐसी प्रेरणा थी कि असफल होते हुए भी आपने असफलता को कभी स्वीकार नहीं किया और फिर खड़े हुए और फिर खड़े हुए, और फिर खड़े हुए, और फिर खड़े हुए। और एक दिन आपने चलना सीख लिया। जब आपने बाइसकिल चलाना सीखा, साइकिल चलाना सीखा, आप गिरे, पर आपने कभी उस असफलता को स्वीकार नहीं किया। तो ये सफल होना और असफल होना, अपने में एक बात है और उस असफलता को स्वीकार करना अपने में दूसरी बात है। और आप अपने जीवन के अंदर असफलता को स्वीकार न करें।
और चौथी चीज — आपके बारे में कोई क्या सोचता है, इससे आपको मतलब नहीं होना चाहिए।
पुरुष एंकर : बहुत अच्छी आपने यह बात बोली।
प्रेम रावत : तो ये चार चीजें अगर मनुष्य के जीवन में हो जाएं...
महिला एंकर : यही नहीं हो पाता। कोई आपके बारे में क्या सोचता है, इससे बहुत फर्क पड़ता है।
पुरुष एंकर : हमारा ज्यादा वक्त इसी में निकल जाता है कि लोग हमारे बारे में क्या सोच रहे हैं।
प्रेम रावत:
जो आप सोच रहे हैं, वो आप सोच रहे हैं और जो आपको मालूम है, वो उसको नहीं मालूम है, जिसके बारे में आप सोच रहे हैं कि वो मेरे बारे में क्या सोच रहा है। तो वो क्या सोच रहा है ? वो सोच रहा है — किस फिल्म को देखने जाएं ? क्या खाएं ? आपके बारे में थोड़े ही सोच रहा है ? वो अपने सोच में मस्त है! परंतु आप बैठे-बैठे ये सोच रहे हैं कि वो मेरे बारे में क्या सोच रहा है, जबकि आपको नहीं मालूम कि वो नहीं सोच रहा है। परंतु फिर भी, क्योंकि आप हैं। आप कह रहे हैं, ‘‘अच्छा, मैं — ये सोच रहा होगा। ये सोच रहा होगा। क्योंकि, मैं होता तो मैं ये सोचता।’’ परंतु ये सबकुछ हो नहीं रहा है। ये सिर्फ एक इमेजिनेशन है आपके दिमाग में कि ऐसा होगा, ऐसा होगा, ऐसा होगा, ऐसा होगा। परंतु ये सारी चीजें दरअसल में नहीं होती हैं।
सफलता की जो लाइन है, जो दर्ज़ा है, वो हमसे शुरू होना चाहिए। किसी और से नहीं। तो ये चीजें अगर हम जरा ध्यान में रखें और अपने हृदय में हमेशा आभार! हर एक चीज की — हमारी माता हैं, हमारे पिता हैं, हमारे भाई हैं, हमारे बंधु हैं। अपने जीवन में जो कुछ है — जो कुछ नहीं है, नहीं। जो कुछ है, उसके लिए आभार है या नहीं ?
Title on screen: खुशी असल में है क्या ?
ऐंकर: हैपिनेस की बात होती है। शांति की, पीस की बात होती है। और इसीलिए शायद हमारे देश में कुछ स्टेट के गवर्नमेंट भी आगे आते हैं।
हैपिनेस डिपार्टमेंट तक बना दिया। डिपार्टमेंट बना देने से क्या कोई खुश हो सकता है ? या उसके लिए कुछ और करने की जरूरत है हमको ?
प्रेम रावत जी: बात यह है कि हम हैपीनेस को समझते ही नहीं हैं। अब बना दिया डिपार्टमेंट। हैपीनेस डिपार्टमेंट बना दिया। वो एक्शन लेगा। कुछ करेगा। सबसे पहले यह बात समझने की होनी चाहिए कि हैपीनेस सब्जेक्टिव है या ऑब्जक्टिव है ? सब्जेक्टिव का मतलब — ये आपके एहसास करने की बात है। ऑब्जेक्टिव है — नहीं, इसका एक फॉर्मूला है। तो अगर हम हैपीनेस को ऑब्जेक्टिव बना दें, जबकि वो सब्जेक्टिव है। कोई आदमी है, वो खुश है या नहीं है ? उसके पास पैसे नहीं हैं। वो खुश है या नहीं है ? कैसे पूछेंगे आप?
मैंने देखा है छोटे बच्चों को रोड पर, उनके — जूते नहीं हैं उनके पास और एक बाइसिकल का चक्का लेकर के एक लकड़ी के साथ — उसको चला रहे हैं और उनकी स्माइल है इतनी बड़ी। वो हैपी हैं या नहीं ? खुश हैं या नहीं ? तो हमारे दिमाग में एक बात डाल दी गई है कि तुम तब खुश होगे, जब तुम्हारे पास जॉब होगा, जब तुम्हारे पास पैसा होगा, जब तुम्हारे पास कार होगी, जब तुम्हारे पास ये होगा, वो होगा। अब लोग हैं, कई लोग हैं, जो बड़े खुशी से शादी करते हैं। इतनी बड़ी स्माइल! बैंड बज रहा है, बाजा बज रहा है। सब नाच रहे हैं। चार महीने के बाद, पांच महीने के बाद वो स्माइल जो है, यहां आ गई।
ऐंकर: स्क्वीज़ हो जाती है।
प्रेम रावत जी: क्या हुआ ? क्या हुआ ? अगर आप अपनी खुशी और चीजों पर निर्भर रखेंगे तो यही होगा। यही होगा! क्योंकि खुशी, असली खुशी, असली हैपीनेस अंदर से आती है। जब कोई चीज सेट हो, जब कोई चीज ठीक हो अंदर से तो ये बहुत जरूरी है इस बात को जानना कि एक तो हमारे जीवन के अंदर हमको आभार का अहसास होना चाहिए।
और दूसरी चीज, हम ये न सोचें कि दूसरा मेरे बारे में क्या सोच रहा है। एक, फिर तीसरी चीज, हम अपने आपको जानें। अपने आपको पहचानें। और हमारे जीवन के अंदर हमेशा आशा रहनी चाहिए। ये हैं बेसिक फंडामेंटल्स! और गवर्नमेंट इसके बारे में क्या कर सकती है ? नहीं। मनुष्य को करना पड़ेगा। हमारी रिलॉयबिलिटी कि गवर्नमेंट हमारी प्रॉब्लम्स सॉल्व करेगी, इतनी हो गई है, इतनी हो गई है और अगर हम रिपोर्ट-कार्ड देखें — देखिए! अगर आपका बच्चा स्कूल जाता है तो वो कैसा पढ़ रहा है ? पास हो रहा है या नहीं हो रहा है ? ये आप रिपोर्ट-कार्ड से देखते हैं। उसके दिमाग में आया भी है या नहीं आया? हम गवर्नमेंट का रिपोर्ट-कार्ड बनाते हैं ?
ऐंकर: ना।
प्रेम रावत: कितनी प्रोमिसेज़ की और कितनी प्रोमिसेज़ रखीं।
ऐंकर: नो चेकिंग बैलेंस।
प्रेम रावत: कहां है रिपोर्ट-कार्ड ? सोसाइटी ने कहा, हम तुमको ये देंगे, ये देंगे, ये देंगे, ये देंगे! कहां है रिपोर्ट-कार्ड ? और अगर रिपोर्ट-कार्ड आज बनाया जाये तो मैं आपको गारंटी देता हूं कि सारीकी सारी चीजें फेल होंगी। एक भी पास नहीं होगा उसमें से।
क्योंकि वर्ल्ड-लीडर्स आते हैं, उन पर हम रिलॉय करते हैं कि ये शांति लाएंगे। लाया कोई ? तो कब छोड़ेंगे हम ये आदत ? उन पर रिलॉय मत करें, अपने पर रिलॉय करें। अगर आपको सचमुच में सफाई चाहिए अपने देश में तो यह आप पर निर्भर है। आप गंदा न करें। क्योंकि मैं देखता हूं। देखता हूं! लोग जो सोचते भी नहीं हैं और कूड़ा फेंकते हैं। सोचा भी नहीं। मतलब, एक सेकेंड भी नहीं सोचा। ये कहां जाएगा ? मैनुफैक्चर्स बना रहे हैं चीजें, उनको पैकेजेज़ में डाल रहे हैं और कूड़ा इकट्ठा हो रहा है। कहां ? कब लेगा मनुष्य अपनी जिम्मेवारी अपने पर ? और जबतक ये नहीं होगा, कोई खुश नहीं हो सकता।
प्रेम रावत:
जो आपके अंदर है, उसको आप समझिए। जो आपके हृदय के अंदर शांति बसी हुई है, उसको एक्सपीरियंस कीजिए, उसका अनुभव कीजिए।
अगर अंदर मजबूती है, आपके अंदर मजबूती है तो बाहर चाहे तूफान आये, न आये — क्योंकि तूफान तो जरूर आएगा, पर आपका घर भूसे का बना है या सीमेंट का बना है ?
अगर भूसे का बना है तो हवा आएगी, उड़ा के ले जाएगी। और जिसने अपने अंदर शांति का अनुभव किया है, जिसने अपने अंदर दया का अनुभव किया है, जिसने अपने अंदर समझ का अनुभव किया है, उसका घर भूसे का नहीं है। उसका घर कोई भी तूफान आए, वो कहीं नहीं जाएगा।
कनुप्रिया:
यही सवाल लोगों के भी हैं कि विचार जो चल रहे हैं, चलते जाते हैं, चलते जाते हैं। पॉज़िटिव भी आता है, सही भी आता है, सकारात्मक भी और साथ ही साथ नकारात्मक भी, नेगेटिव भी उतना ही आ जाता है। ये जो लगातार चलती एक बातचीत है हमारे दिमाग में विचारों की, उसको उस सकारात्मक तक फोकस कैसे करें ? क्योंकि वह तो एक आएगा और जो नेगेटिव थॉट है, उसकी तादाद बहुत तेजी से आती है।
प्रेम रावत:
बिल्कुल! ये तो — इसको संशय कहते हैं। संशय जब आने लगता है मनुष्य के अंदर, क्योंकि वो जब कमजोर पड़ने लगता है तो उसके अंदर संशय आने लगता है।
आपने देखा होगा, माता-बहनें चक्की चलाती हैं। चक्की चल रही है, चल रही है, चल रही है।
अब कहीं वो — जो माताएं या बहनें हैं, कोई भी चक्की चला रहा है, वो कहे, ‘‘ये इधर क्यों घूम रही है ? इसको ऐसे क्यों नहीं घुमाते हैं ?’’
और फिर इधर से करने लगे, ‘‘नहीं, इसको ऐसे ठीक रहेगा। नहीं, ये ऐसे ठीक रहेगा। नहीं, ये ऐसे ठीक रहेगा।’’ तो ऐसे करते रहेंगे तो आटा तो मिलेगा नहीं। जब भूख लगेगी, आटा तो मिलेगा नहीं।
यही हाल इस दुनिया का है। कोई कहता है, ‘‘ऐसे करो!’’ कोई कहता है, "ऐसे करो!" कोई कहता है, "ऐसे करो!" कोई कहता है, "ऐसे करो!"
और लोग हैं, जो कहते हैं, "कैसे करें ? ऐसे करे ? ऐसे करें ? कैसे करें ?"
"ऐसे नहीं होना चाहिए! नहीं, ऐसे करो! नहीं, ऐसे करो! नहीं, ऐसा करो! नहीं, ऐसा करो!"
जबतक तुम अपने आपको नहीं जानोगे, यह चक्की किस तरीके से चलनी चाहिए, कौन समझाएगा तुमको ?
यह तुम्हारे ऊपर निर्भर करता है कि यह तुम्हारे — संभावना यह है कि तुम्हारा यह जो जीवन है, इसको तुम सुख और शांति से बिता सकते हो। यह संभावना है और इसका पहला फैसला तुमको लेना पड़ेगा। कोई और नहीं ले सकता।
क्या चाहते हो तुम ? जलन करते हो, ईर्ष्या करते हो ? करते हो ?
तुम्हारे जीवन के अंदर महाभारत हो न हो, छोटी-छोटी महाभारत तुम्हारे परिवार में होती रहती है। क्या परिवार का यही मतलब होता है ?
"बुजुर्ग हो। बुजुर्ग हो तो बात करना सीखो, हुक्म चलाना नहीं — तू ऐसा नहीं करेगा!"
अरे! बात करना सीखो! बैठाओ! पहले समझाओ! बात करो! उसकी सुनो! अपनी कहो, फिर उसकी सुनो!
कई लोग आते हैं मेरे पास कि "जी! परिवार में ये सारी चीजें — झगड़ा बना रहता है। कैसे सुलझाया जाए ?"
मैं सोच रहा था इसके बारे में। जब लड़का-लड़की में प्यार होता है — पहला-पहला प्यार! पहला-पहला प्यार!
क्या करते हैं ?
बात करते हैं। तत...तत...तत..तत...तत! उससे — आइसक्रीम से पहले, कुल्फी से पहले बात होती है।
"कैसे हो ? क्या है ? कैसा रहा तुम्हारा दिन ?"
और अगर लड़की कहे, ‘‘मैं तो परेशान हूं।"
"क्या परेशानी है ?"
नहीं ? मैं गलत कह रहा हूं ? शादी के बाद ? बात-वात सब खत्म!
"मेरी रोटी कहां है ? तैंने — मेरे को करारी रोटी नहीं चाहिए थी, तैंने ज्यादा सेंक दी। इसमें नमक ज्यादा डाल दिया।"
अगर यही बात तुम तब करते तो तुम्हारा आगे झंझट ही नहीं चलता। वो तुम्हारी गर्ल-फ्रैण्ड कब का तुमको छोड़-छाड़ के भाग जाती। परंतु तुम भी ऐसे निकले — मीठी-मीठी बात! अपना उल्लू सीधा करने के लिए और अब शादी हो गयी और मीठी बात सब खत्म।
अरे! वो मीठी बात लाओ!
पति घर आता है। छः घंटे, सात घंटे की नौकरी करके, उसको लिस्ट मत थमाओ!
उससे पूछो, "‘उसका दिन कैसे गया ?"
तुमको कुछ करने की जरूरत नहीं है। सिर्फ सुनने की जरूरत है। सुनने की ताकत लोगों में खत्म हो गयी है। सुनो! तुमको हां मिलाने की जरूरत नहीं है। तुमको हां कहने की जरूरत नहीं है। तुमको ना कहने की जरूरत नहीं है। सिर्फ सुनने की जरूरत है।
Text on screen:
जब तक तुम अपने आपको नहीं जानोगे,
यह जीवन किस तरीके से चलना चाहिए,
कौन समझायेगा ?