ऐंकर : हर पल को खूब जीओ, ये तो सब कहते हैं, लेकिन हर पल को जी भर के कैसे जिया जा सकता है ? ये दूसरा सवाल है।
प्रेम रावत जी : अगर तुम हर पल को जीना चाहते हो तो ‘पल’ क्या है, इसको समझने की कोशिश करो! ‘पल’, इस ‘पल‘ में से — अगर इसको समझना चाहते हो कि ये ‘पल‘ क्या है, जो अभी-अभी, अभी आया तुम्हारे पास। अभी-अभी आया। गया! अब गया! और अभी-अभी आया है! तो इसको अगर समझना चाहते हो तो इस ‘पल‘ में से ‘बीते वाले पल‘ को निकाल दो! और ‘आने वाले पल‘ को भी इस ‘पल‘ से निकाल दो! तो जो बचेगा वो है तुम्हारा असली ‘पल‘।
- प्रेम रावत, मुंबई
ऐंकर : हर पल को खूब जीओ, ये तो सब कहते हैं, लेकिन हर पल को जी भर के कैसे जिया जा सकता है ? ये दूसरा सवाल है।
प्रेम रावत जी : अगर तुम हर पल को जीना चाहते हो तो ‘पल’ क्या है, इसको समझने की कोशिश करो! ‘पल’, इस ‘पल‘ में से — अगर इसको समझना चाहते हो कि ये ‘पल‘ क्या है, जो अभी-अभी, अभी आया तुम्हारे पास। अभी-अभी आया। गया! अब गया! और अभी-अभी आया है! तो इसको अगर समझना चाहते हो तो इस ‘पल‘ में से ‘बीते वाले पल‘ को निकाल दो! और ‘आने वाले पल‘ को भी इस ‘पल‘ से निकाल दो! तो जो बचेगा वो है तुम्हारा असली ‘पल‘।
- प्रेम रावत, मुंबई
एक चीज आपके पास पहले से ही है। उसका नाम है — शांति। जब आप खोजना शुरू करेंगे उसे बाहर नहीं, अंदर — उन चीजों को लेना शुरू करेंगे, जो आपके पास पहले से ही हैं तो आपको शांति भी उसमें जरूर मिलेगी। क्योंकि वो आपके अंदर पहले से ही है।
एक चीज आपके पास पहले से ही है। उसका नाम है — शांति। जब आप खोजना शुरू करेंगे उसे बाहर नहीं, अंदर — उन चीजों को लेना शुरू करेंगे, जो आपके पास पहले से ही हैं तो आपको शांति भी उसमें जरूर मिलेगी। क्योंकि वो आपके अंदर पहले से ही है।
इतिहास साक्षी रहा है, सदा से ऐसे मार्गदर्शक हुए हैं जिन्होंने लोगों को बताया है कि उनके भीतर की शांति को कैसे प्रकट किया जाए। 8 नवंबर श्री हंस जी महाराज के पावन जन्मोत्सव हंस जयंती के रूप में सम्पूर्ण विश्व में मनायी जाती है। श्री हंस जी महाराज प्रेम रावत जी के पिता और मार्गदर्शक थे।
सदियों से चली आ रही इस गुरु-शिष्य परंपरा में एक कड़ी और जुड़ चुकी है — श्री हंस जी महाराज और प्रेम रावत जी की। यह एक ऐसा विलक्षण कार्यक्रम है जो व्यक्तिगत शांति पाने में सहायक है। इस अनुपम कार्यक्रम के पुनः प्रसारण का आनंद लें।
एक झलक:
कितने लोग हैं, जिनको अच्छा लगता है, जब उनको छुट्टी मिलती है? {श्रोतागण हाथ उठाते हैं!}
तकरीबन-तकरीबन सबको अच्छा लगता है।
तो एक दीवाल है, जिससे तुम आए और एक दीवाल है, जिससे तुमको जाना है। तो सोचो! इस दीवाल से पहले तुम क्या थे ? इस दुनिया में सबसे ज्यादा चीज क्या है ? जानते हो ? धूल! धूल! ये पृथ्वी धूल की बनी है। ये जो पत्थर देखते हो, ये धूल को कम्प्रेस किया हुआ है, उसके पत्थर हैं ये! उससे पत्थर बनते हैं।
तो समझ लो सारा विश्व, सारा-सारा संसार, सारा यूनिवर्स धूल, धूल, धूल, धूल, धूल, धूल से बना हुआ है। तुम क्या थे इससे पहले ? धूल थे! और जब उस दीवाल से जाओगे तो जानते हो क्या होगा ? फिर धूल बन जाओगे।
तो बनाने वाले ने तुमको धूल होने से छुट्टी दी है। ये तुम्हारी छुट्टी है! यह जीवन तुम्हारा, यह तुम्हारी छुट्टी है! तो मैं तो सिर्फ यह कहना चाहता हूं — तुम अपनी छुट्टी का मज़ा ले रहे हो या नहीं ?
- श्री प्रेम रावत, नई दिल्ली, भारत