प्रेम रावत:
आइंस्टाइन का नाम सुना है कभी ? बहुत बड़ा वैज्ञानिक, साइन्टिस्ट था वो।
उसने कहा है कि "जिस चीज की रचना हुई है, उसको खत्म भी होना पड़ेगा।"
तो ये सारे ब्रह्माण्ड की रचना हुई है और इस सबको खत्म होना पड़ेगा। इसमें पृथ्वी भी आ गई, इसमें सूरज भी आ गया, इसमें चन्द्रमा भी आ गया। सबकुछ, जो तुमको दिखाई देता है और नहीं दिखाई देता है ब्रह्माण्ड में, जब ऊपर की तरफ देखते हो — सब खत्म होगा! पानी भी खत्म होगा, हवा भी खत्म होगी, नमक भी खत्म होगा, धरती भी खत्म होगी। मतलब सबकुछ खत्म होगा! इसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। मैं नहीं कर सकता।
अविनाशी वो है कि ये सबकुछ खत्म हो जायेगा, फिर भी वह रहेगा। और अविनाशी न मर्द है, न औरत है, न उसके पैर हैं, न उसका सिर है, न उसको सिर की जरूरत, न उसको पैर की जरूरत, न उसको नाखून की जरूरत, न उसको आँख की जरूरत, न उसको कान की जरूरत। क्योंकि जितनी भी सृष्टियां आकर चली जाएं, वो रहेगा। जो था, जो है और जो रहेगा! जिसका कभी नाश नहीं होगा, उसे कहते हैं — अविनाशी
तुम्हारा दिमाग तो सिर्फ इतना ही बड़ा है। तुम्हारा दिमाग तो सिर्फ इतना ही बड़ा है और जिस दिन तुमको ढंग की चाय नहीं मिलती है, ये दिमाग परेशान हो जाता है। जिस दिन तुम्हारी दाल में थोड़ा-सा नमक ज्यादा हो जाता है तो ये दिमाग परेशान हो जाता है। ये अविनाशी को कैसे समझेगा ? ये अविनाशी को कैसे समझेगा परंतु कहा है कि वही अविनाशी तुम्हारे अंदर है।
और फिर लोग सवाल करेंगे, "अजी! वो अविनाशी हमारे अंदर है तो हमको पता क्यों नहीं लगता?"
एक किताब पढ़ रहा था मैं आज, तो उसमें एक कहानी थी। वो कहानी सुनाता हूं। तो कहानी है, अकबर और बीरबल की!
एक दिन अकबर कहता है बीरबल से कि "अगर भगवान सर्वव्यापक है तो दिखाई क्यों नहीं देता? पता क्यों नहीं लगता, कहां है? बताओ बीरबल!"
अब बीरबल को लगा कि गए! कैसे इसका जवाब दें। तो फिर बीरबल ने कहा, "जी! कुछ दिन की मोहलत दीजिए, हम मालूम करके आपको बताएंगे।"
तो बीरबल गया घर, सिर लटकाया हुआ, दुःखी! कैसे — उसका ये कहना है कि सर्वव्यापक तो है, पर अब इसको कैसे बताऊंगा अकबर को, कैसे दिखाऊंगा, कैसे बताऊंगा कि है ? कैसे उसको prove करूंगा? कैसे साबित करूंगा? अब उसके घर में उसके कुछ रिश्तेदार आए हुए थे और उनका एक लड़का था।
तो लड़के ने कहा, "चाचा बीरबल! क्या बात है, बड़े दुःखी नजर आ रहे हो?"
तो कहा, "मैं दुःखी तो हूं!"
कहा, "क्या हुआ?"
कहा, "हुआ ये कि बादशाह ने ये सवाल पूछा है कि अगर भगवान सर्वव्यापक है, भगवान जब हमारे अंदर है तो हमको दिखाई क्यों नहीं देता ? हमको पता क्यों नहीं है?"
तो लड़का बोलता है, आप चिंता मत कीजिए! कल जाइए आप ठाठ से और बादशाह से कहिए कि "अजी! इस सवाल का जवाब मैं क्या दूंगा, ये मेरा एक छोटा रिश्तेदार है, उम्र में छोटा है, यही आपको बता देगा।"
बीरबल ने कहा, "ठीक है!"
तो दूसरे दिन दोनों गए।
बादशाह हंसा! बीरबल फंसा! कहा, "बीरबल! हमारे सवाल का जवाब है तुम्हारे पास?"
कहा, "हुजूर! मैं क्या आपको जवाब दूंगा, ये तो मेरा रिश्तेदार है, अभी उम्र ज्यादा नहीं है इसकी, यही दे देगा।"
बादशाह बोला, "इतनी बड़ी बात का ये लड़का जवाब देगा ?" बादशाह ने कहा, "ठीक है, जवाब दो!"
तो लड़का बोलता है, "आप बादशाह हैं। हिन्दुस्तान के राजा हैं। आपको इतनी भी कद्र नहीं है कि आपके दरबार में एक मेहमान आया है और आप उसकी जरा ज़र्रानवाज़ी करें!"
तो अकबर को लगा कि बाप रे बाप! तुरंत उसने आज्ञा दी — अच्छा! क्या चाहिए, क्या चाहिए ? क्या चाहिए?
कहा, "ज्यादा नहीं, दो गिलास के — दो दूध के गिलास मंगवा दीजिए!"
दो गिलास लेकर के सिपाही आये और उसके आगे रख दिया।
अब बादशाह कहता है, "जल्दी, जल्दी पीओ आप और हमारे सवाल का जवाब दो!"
कहा, एक मिनट! लड़का बैठा, उस दूध के गिलास में अपनी उंगली डालता है। एक गिलास में एक उंगली और एक गिलास में एक उंगली और उसको ऐसे-ऐसे करने लगता है {उंगली के इशारे से समझाया}। अब घंटा भर बीत गया! बैठे-बैठे बादशाह देख रहा है और उसको लग रहा है कि क्या कर रहा है ये ? दो घंटे बीत गये!
अकबर बोलता है, "मेरे सवाल का जवाब कब दोगे?"
कहा, "धीरज रखिए! अभी तो दो ही घंटे बीते हैं, अभी धीरज रखिए!"
तीन घंटे बीत गये। चार घंटे बीत गये। अब बादशाह से रहा नहीं गया तो कहा, "भाई! क्या कर रहे हो? ये उंगली डाली हुई है दूध के गिलास में। क्या कर रहे हो?"
कहा, "बादशाह! एक बात बताइए, इस दूध में मक्खन है?"
कहा, "हां! है!"
कहा, "मैं मक्खन निकाल रहा हूं!"
बादशाह ने कहा, "ऐसे मक्खन नहीं निकलेगा। ऐसे मक्खन नहीं निकलेगा! इस दूध को जमाना पड़ेगा, तब ये दही बनेगा। दही को फिर बिलोना पड़ेगा, तब जाकर के मक्खन निकलेगा!"
लड़का बोलता है, ठीक इसी तरीके से वो है, पर उसको निकालने के लिए विधि की जरूरत है। अगर तुमको वो विधि नहीं मालूम है तो तुम नहीं जान पाओगे, नहीं समझ पाओगे।
तो अपने आपको जानना — अपने आपको जानना, मतलब आत्मज्ञान!
बिना अपने आपको जाने, बिना आत्मज्ञान के मनुष्य भटक रहा है और भटकेगा।
प्रेम रावत:
मनुष्य के लिए सुख की कोई सीमा नहीं है, दुःख इतना भी, उसको परेशान कर देता है। हर एक चीज के अंदर, हर एक चीज के अंदर सुख भी है, दुःख भी है।
तुम्हारे जीवन में सबकुछ है। तुम्हारे जीवन में सबकुछ भी है और कुछ भी नहीं है। दोनों ही हैं। तुम जब अपने कमरे में जाते हो और कुण्डी बंद करते हो अपने दरवाजे में — आज के बाद याद रखना, तुम अकेले नहीं हो उस कमरे में। कितने हैं उस कमरे में भरे हुए! तुम भी हो, अविनाशी भी है, जीवन भी है और मृत्यु भी है। उस कमरे में सब हैं — ज्ञान भी है, अज्ञान भी है, अंधेरा भी है, उजाला भी है।
अगर उस कमरे को बंद कर दो तुम और सौ ताले लगा दो दरवाजे पर और जैसे ही तुम लाइट बंद करोगे, क्या होगा ? अंधेरा हो जायेगा। नहीं ? कहां से आया अंधेरा ? जब दरवाजा पहले से ही बंद था तो आया कहां से अंधेरा ? क्योंकि वो तुम्हारे दरवाजे बंद करने से पहले ही से अंदर आ रखा था, तुम्हारे साथ ही आया। धर्म भी तुम्हारे साथ है, अधर्म भी तुम्हारे साथ है। सारी चीजें — जहां तुम जाते हो, सब हैं। फ़र्क इतना है, फ़र्क इतना है कि अगर तुम जानते हो कि ये सब साथ हैं तो उसको अपने सीने से लगाओ, जिसको तुम चाहते हो। प्रेम भी तुम्हारे साथ आया है और नफरत भी तुम्हारे साथ आई है। नफरत को तो तुम गले लगाना जानते हो। जानते हो कि नहीं ? नफरत करने में तुमको कितनी देर लगती है ? कितनी देर लगती है ? {चुटकी बजाने जितना समय} परंतु प्रेम को गले लगाना अभी सीखा नहीं।
मक्खन है, पर ऐसे नहीं निकलेगा। घंटे-घंटे बैठे रहो, करते रहो, करते रहो, करते रहो, करते रहो...। ऐसे नहीं निकलेगा। इसकी विधि चाहिए।
अगर तुम जीना सीखना चाहते हो तो प्रेम को गले लगाना सीखो, नफरत को नहीं। ज्ञान को अपने पास बुलाना सीखो, अज्ञानता को नहीं। अभी तो ये सीखा है — अज्ञानता क्या है ? कैसे उसको नजदीक लाया जाये। अपने जीवन में अगर प्रकाश चाहते हो तो प्रकाश को कैसे निकाला जाये ? क्योंकि दोनों हैं! अंधेरा भी है और प्रकाश भी है। अपने जीवन में प्रकाश को लाना सीखो!
आधे से ज्यादा तुम अपनी जिंदगी बदल सकते हो, तीन सेकेण्ड में। तीन सेकेण्ड में! तीन सेकेण्ड में ? सिर्फ तीन सेकेण्ड में। करने से पहले सोचो! सिर्फ तीन सेकेण्ड! क्या करने जा रहे हो ? बस! तीन सेकेण्ड! तीन सेकेण्ड! उसके बाद करो, जो तुमको करना है। पर तीन सेकेण्ड सोचो! क्योंकि गुस्सा भी तुम्हारे साथ है और क्षमा भी तुम्हारे साथ है। तीन सेकेण्ड में तुम चुन सकते हो — गुस्सा चाहिए या क्षमा ? क्षमा प्यार लाएगी। प्यार उजाला लाएगा। उजाला आनंद लाएगा। तीन सेकेण्ड में। और क्योंकि तुम करते पहले हो, सोचते बाद में हो, इसीलिए तुम्हारे जीवन में दुःख रहता है।
है क्या ? ये संसार का स्वभाव है।
चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय।।
तो तुम कितने बड़े घुन हो, जो बच जाओगे ? अरे! जब वो घुन — जब उसके जीवन के अंदर गेहूं की बोरी आती है। जब घुन कहीं चलते-चलते, चलते-चलते, चलते-चलते पूरी बोरी के पास पहुंचता है कि गेहूं ही गेहूं हैं उसके अंदर, जरा विचार करो, कितना उसको आनंद मिलता होगा।
‘‘हे भगवान! तैंने मेरी सुन ली! इस बोरी में तो गेहूं ही गेहूं है! बैठ के खा-खाकर के मोटा हो जाऊंगा!’’
उसको क्या मालूम कि इस बोरी में जो गेहूं है, उसका आटा बनना है। उसको चक्की में डाला जाएगा और बच्चू! तू भी उस चक्की में पिसेगा! वो घुन क्या खोज रहा है अपने जीवन में ? गेहूं को खोज रहा है और गेहूं बिखरे हुए नहीं, सब एक ही पोटली में मिल गए उसको। इससे बड़ी चीज क्या हो सकती है, उसके लिए ? परंतु जो उसका ख्वाब होगा — छोटे-से घुन का ख्वाब! गेहूं मिल जाए। ऐसा मिल जाए, इधर-उधर भटकना न पड़े। वो सब उसको मिल गया। परंतु उसको ये नहीं पता कि चक्की में पीसना है।
जो कुछ भी हम करते हैं, इसमें दोनों ही गुंजाइशें हैं — अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। अगर हम सोच के काम करेंगे, विचार के काम करेंगे, ये जानकर के काम करेंगे कि हमारी प्रकृति है भूलने की। ये हमारी प्रकृति है भूलने की और मेरे को कोशिश करनी है कि मैं भूलूं न। उस चीज को मैं नहीं भूलूं, जो मेरे लिए जरूरी है। अगर ये याद रहेगा, तुम्हारी जिंदगी के अंदर अपने आप परिवर्तन आएगा। अपने आप परिवर्तन आयेगा!
क्यों ?
जो कुछ भी तुम कर रहे हो, वो उस आनंद के लिए है, क्योंकि ये भी तुम्हारी प्रकृति है। तुम दुःख को नहीं सह सकते हो। याद है, यही मैं कह रहा था शुरुआत में ? तुम दुःख को नहीं सह सकते हो, परंतु सुख की सीमा तुम्हारे में है ही नहीं! अपार सुख तुम सह सकते हो! कोई ऐसे मंदिर में नहीं जाता है कि ‘‘हे भगवान! बहुत ज्यादा सुख दे दिया। अब थोड़ा कम कर दे!’’ मनुष्य के लिए सुख की कोई सीमा नहीं है, दुःख इतना भी, उसको परेशान कर देता है। हर एक चीज के अंदर, हर एक चीज के अंदर सुख भी है, दुःख भी है। पर तुमको — तुमको चुनना है, क्या तुमको चाहिए अपने जीवन में ? सुख चाहिए या दुःख चाहिए ? जिस दिन दुःख चाहिए, दुःख मौजूद है। जिस दिन सुख चाहिए, सुख भी मौजूद है।
प्रेम रावत:
प्रश्न यह है कि तुमने अपनी जिंदगी का क्या प्रबंध किया है ? और मैं ये क्यों कह रहा हूं ? मैं इसलिए कह रहा हूं कि — एक बात पर ध्यान दिया जाय!
मान के चलें कि एक हवाई जहाज ऊपर से जा रहा है। और जहां सामान रखा जाता है हवाई जहाज में, वहां एक बहुत बड़ा बक्सा रखा हुआ है। उस बक्से में भरे हुए हैं पत्थर! और संदूक हवाई जहाज से हट गया है और गिर रहा है। और किस रफ्तार से गिर रहा है ? दो फीट प्रति सेकेंड — प्रति सेकेंड की स्पीड से वो गिरेगा। अंग्रेजी में ‘‘two feet per second, per second.’’ तुम्हारे लिए क्या ? तुम तो अपने जीवन में व्यस्त हो, वो बक्सा गिर रहा है। वो बक्सा गिर रहा है और वो तभी रुकेगा — कब रुकेगा ?
कब रुकेगा वो बक्सा ? मालूम है तुमको ?
जब वो इस पृथ्वी पर आकर टकरायेगा।
और तुम कहां हो ? कहां हो तुम ? कहां हो तुम ? कहां हो ? नहीं मालूम ?
पृथ्वी पर हो। कैसा लगा तुमको, जब मैंने बोला कि वो डब्बा गिर रहा है ?
इस पृथ्वी पर सात बिलियन लोग हैं। और जो-जो जिंदा है, सबके नाम का बक्सा गिर रहा है। अरे! तुम्हारा नाम लिखा है उस पर। वो इधर-उधर नहीं टकरायेगा। वो ठीक तुम्हारे सिर पर फूटेगा। प्रबंध कर लिया है इसका कि ये होगा ? प्रबंध कर लिया इसका ?
ये जानने के बाद तुमने अपने जीवन में क्या प्रबंध किया है ?
अगर तुम अपने जीवन में आनंद चाहते हो तो उसका भी तुमको प्रबंध करना पड़ेगा। अगर तुम अपने जीवन में सुख चाहते हो तो उसका भी तुमको प्रबंध करना पड़ेगा।
कई लोगों ने जीवन की तुलना की है कई चीजों से।
कुछ लोग बोलते हैं कि "यह जीवन जो है यह नदी के समान है, बह रहा है।"
कोई बोलता है कि "यह जीवन नौका के समान है।"
कोई बोलता है कि "यह जीवन जैसे संगीत का कोई instrument होता है, यंत्र होता है उसके समान है।"
कोई बोलता है कि "यह जीवन एक पतंग के समान है।"
सुनो! अगर यह जीवन नौका के समान है तो नौका वालों, इस नौका को डूबना नहीं चाहिए। अगर यह नौका डूब गई तो गड़बड़ होगी।
अगर यह जीवन नदी के समान है — डूब मत जाना। डूब मत जाना!
अगर यह जीवन — जैसे साज़ का कोई यंत्र है, ऊटपटांग मत बजाना। लय से, स्वर ठीक होना चाहिए। ये नहीं है कि अंधाधुंध — टें, टें, टें, टें, टें.... नहीं।
यह जीवन कोई थ्यौरी नहीं है भाई! यह जीवन कोई किताब नहीं है। यह जीवन किसी का आइडिया नहीं है। यह तो जीती-जागती चीज है। और जब तक इस जीवन को पूरा नहीं करोगे, तब तक भटकते रहोगे। कभी इधर जाओगे, कभी उधर जाओगे। कभी ये मन उधर भागेगा। कभी इधर जायेगा, कभी उधर जायेगा, कहीं-कहीं जायेगा, क्या-क्या करेगा — पता नहीं। अब ये दुनिया का सारा चक्कर है। ये दुनिया का सारा चक्कर है। परन्तु जो इससे आगे निकलकर के यह समझ लेता है कि यह जीवन एक थ्यौरी नहीं है, यह कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसको मैं डब्बे में बंद करके रख दूं कहीं। यह तो ऐसी चीज है जो जीती-जागती है। यह तो सचमुच में उपहार है। और मैं अपने जीवन का पूरा-पूरा फायदा उठाऊं। पूरा-पूरा! आधा नहीं, चौथाई नहीं। पूरा-पूरा फायदा उठाऊं। ये मेरे हृदय की इच्छा है। क्या तुम्हारे हृदय की ये इच्छा नहीं है ? कौन ऐसा आदमी है इस संसार के अंदर जिसकी ये इच्छा न हो कि वह अपने जीवन को सफल बनाये ?
प्रेम रावत:
अगर मनुष्य को देखा जाए तो हर एक मोड़ पर मनुष्य हार मान लेता है। वो कहता है कि मैं अब आगे नहीं जा सकता। भगवान से प्रार्थना करता है, मंदिरों में जाता है, मन्नतें मांगता है। क्या-क्या नहीं करता है ? क्योंकि वो समझता है कि वो आगे नहीं चल सकता। जीवन में समस्याएं आती हैं और जितनी बड़ी समस्या होती है, उतना ही वो अपने आपको छोटा पाता है।
पर एक बात मैं कहना चाहता हूं और वो बात ये है कि एक समय था, जब एक व्यक्ति, जिसको भगवान के बारे में नहीं मालूम था। दुनियादारी के बारे में नहीं मालूम था। कौन-सा हवन करूं, कौन-सा यज्ञ करूं — कुछ नहीं। वो किसी गुरु के पास जाकर के सत्संग नहीं सुन सकता था। वो किसी inspirational speaker के पास जाकर के कोई उसका लेक्चर नहीं सुन सकता था।
पर उसके जीवन के अंदर एक ऐसा मौका आया, जिसको पूरा करने के लिए उसकी सारी शक्ति लगी। और कितनी ही बार — एक बार नहीं, दो बार नहीं, तीन बार नहीं, चार बार नहीं। कितनी ही बार वो कामयाब नहीं रहा। परंतु फिर भी उसने हार नहीं मानी। वो कौन था ? हम सब थे। और बात कर रहा हूं मैं उस समय की, जब आप छोटे बच्चे थे। चलना सीख रहे थे। कितनी बार गिरे आप ? आपने कोशिश की खड़ा होने की, कदम लेने की और गिर गये। असफलता हर कदम में थी। टांगें — इनमें बल नहीं था कि तुम्हारा वजन उठा सके। तो जब बच्चे को देखते हो, जब खड़े होने की कोशिश करता है तो वो हिलता है। क्योंकि उसके पैर अभी इतने मजबूत नहीं हैं और असफलता हर कदम में। परंतु वो कभी अपनी हार को नहीं मानता है।
आप जितने भी यहां बैठे हुए हैं, आपके साथ यही हुआ है। अब आपको याद हो या न हो, पर हुआ। और असफलता हर एक कदम में — उठे, कोशिश की, गिरे! कई बार रोये भी!
मां ने कहा, "बेटा! उठ! कोशिश कर! अच्छा बच्चा है, अच्छी बच्ची है।"
वो समझ में नहीं आया, क्या कहा, पर कोशिश की। हार नहीं मानी। हार नहीं मानी तो फिर उठने की कोशिश की। फिर असफलता मिली। फिर कोशिश की। फिर असफलता मिली! फिर एक दिन उन सारी असफलताओं के बावजूद — क्योंकि आपने हार नहीं मानी, उसका परिणाम क्या हुआ ? उसका परिणाम हुआ कि एक दिन आपने एक कदम लिया और आप नहीं गिरे! फिर दूसरा कदम लिया और आप नहीं गिरे। फिर तीसरा, फिर चौथा, फिर पांचवां, फिर छठा! और आपने क्या हासिल कर लिया ? आपने चलना हासिल कर लिया। और जिस दिन आपने चलना हासिल कर लिया, उस दिन आपने अपने आपको एक ऐसा तोहफा दिया, ऐसी कामयाबी पायी कि आपने संसार में एक ताला ऐसा खोल दिया कि अब आपके पास स्वतंत्रता थी कि आप जहां जाना चाहें, आप जा सकते हैं।
और इसका मूल कारण क्या था ? असफलता या हार न मानना! असफलता तो थी! जैसे ही पहली बार कोशिश की — भड़ंक! दूसरी बार कोशिश की — भड़ंक! उसके बाद ऐसी भी हालत आयी कि एक कदम लिया और फिर — धड़ाम, फिर खत्म! तो ये तुम्हारे साथ हुआ ?
फिर क्या हुआ ? उसके बाद तो तुमको पता लग गया — भगवान कौन है, क्या है, कहां रहता है। वो ऊपर रहता है, ये होता है, वो होता है। पाठ है, पूजा है, पंडित हैं! और हार माननी शुरू कर दी! एक तरफ ज्ञानी बने। और ज्ञानी कैसे बने ? जैसे ही ज्ञानी बने, पहले अज्ञान के कुएं में छलांग मारी। मारी कि नहीं मारी ? उस बच्चे का अज्ञान देखो! उसे न मालूम है, न परवाह है। उसे न मालूम है, न परवाह है, परंतु एक चीज उसने हासिल की, तुमने हासिल की! तो आज जो तुम्हारे जीवन में असफलता आती है — कभी भी आती है तो तुम हार क्यों मान लेते हो ? जब तुमको मालूम है कि तुम्हारे जीवन में एक ऐसा हादसा हुआ है, जिसमें तुमने कभी हार नहीं मानी और हार न मानने की वजह से, उसकी सफलता तुम्हारे जीवन भर साथ है। ये सच्चाई है! ये कहानी नहीं है।
ये कामयाबी — क्या सबकुछ इतना बदल गया है कि वो कामयाबी आज संभव नहीं है तुम्हारे जीवन में ? पर किन बातों में फंस गये हो ? क्या है तुम्हारी सोच ?
संसार के अंदर अगर देखा जाये तो हर एक मनुष्य को किसी न किसी चीज की तलाश है। खोज रहे हैं लोग! खोज रहे हैं लोग पर प्रश्न ये उठता है कि किसको खोज रहे हैं ? क्या वो चीज है जिसको खोजा जा रहा है ? किसकी खोज है ?
कबीरदास जी का एक भजन है कि —
पानी में मीन पियासी, मोहे सुनि-सुनि आवे हाँसी।
पहले एक बात स्पष्ट हो जाये कि वो किस मीन की बात कर रहे हैं ? कौन है वो मीन ? कौन है वो मीन ?. . .
भजन :
पानी में मीन पियासी, पानी में मीन पियासी
मोहे सुनि-सुनि आवे हाँसी, मोहे सुनि-सुनि आवे हाँसी . . .
प्रेम रावत:
कौन है वो मीन ? कौन है वो पानी ? तुम हो वो मीन। तुम्हारी बात हो रही है। ये भजन कबीरदास जी ने तुम्हारे लिये लिखा है—
भजन :
पानी में मीन पियासी, पानी में मीन पियासी
मोहे सुनि-सुनि आवे हाँसी, मोहे सुनि-सुनि आवे हाँसी . . .
प्रेम रावत:
आतमज्ञान बिना नर भटके, क्या मथुरा क्या काशी।
कैसे ?
मृग-नाभि में है कस्तूरी, बन-बन फिरे उदासी।।
तुम कभी उदास हुए हो अपनी जिंदगी के अन्दर ?
भजन :
आतमज्ञान बिना नर भटके, क्या मथुरा क्या काशी।...
मृग-नाभि में है कस्तूरी, बन-बन फिरत उदासी।।
प्रेम रावत:
मृग भी तुम हो और ये है वो वन। ये संसार है वो वन। तुम हो वो मृग। तुम्हारे ही अन्दर वो कस्तूरी है।
मृग-नाभि में है कस्तूरी, बन-बन फिरे उदासी।।
वन में फिरता है चेहरा लटकाए। क्या होगा ? क्या हाल होगा मेरा ? क्या करूंगा मैं ? चिंता लगी रहती है चिंता! सबको चिंता खाती रहती है, खाती रहती है, खाती रहती है, खाती रहती है।
आतमज्ञान बिना नर भटके,
क्या मतलब हुआ ? तुमको आत्मा का ज्ञान है ? बात आत्मा की नहीं है, बात है आत्मज्ञान की। क्योंकि बिना ज्ञान हुए तुम समझ नहीं पाओगे कि क्या, क्या है। तुम कौन हो ? जो तुम अपने आपको समझते हो तुम वो नहीं हो। जो तुम अपने आपको समझते हो तुम वो नहीं हो! तुम क्या हो ? इसको समझने के लिए तुम्हारे अंदर स्थित जो चीज है जब तक तुम उसको नहीं समझोगे तो तुम समझ नहीं पाओगे कि क्या है।
भजन :
जल बिच कमल, कमल बीच कलियाँ, ता पर भँवर लुभासी।
सो मन बस तिरलोक भयो सब, यती सती संन्यासी।
आतमज्ञान बिना नर भटके, क्या मथुरा क्या काशी।।
तो फिर बात आती है कि —
जल बिच कमल, कमल बीच कलियाँ, ता पर भँवर लुभासी।
भंवर कौन है ? हम सब लोग हैं। भौंरा है उस कमल के आगे-पीछे, आगे-पीछे, आगे-पीछे दौड़ रहा है।
जल बिच कमल, कमल बीच कलियाँ, ता पर भँवर लुभासी।
सो मन बस तिरलोक भयो सब, यती सती संन्यासी।
इसमें सब आ गये। सबका मन भाग रहा है। विषयों में भाग रहा है। सब भाग रहे हैं। सब भाग रहे हैं, सब दौड़ रहे हैं। सब खोज रहे हैं। जैसे भौंरा खोजता है न कि कहां है वो मीठा-मीठा जो पानी है उस कमल के अंदर, उसको ढूंढता है। कमल कभी इधर जाता है, कभी उधर जाता है। भौंरा जो है उस कमल के अंदर, जो वो मीठा — उस फूल के अंदर जो मीठा-मीठा शहद है उसका, उसको पाने के लिए कभी इधर जाता है, कभी उधर जाता है, कभी इधर जाता है, कभी उधर जाता है। और तुम्हारा भी यही हाल बताया है। तुम भी, उस माया रूपी पानी का तुमको स्वाद लग गया। अब जहां वो मिले वहीं तुम जाते हो। वहीं तुम भंवराते हो, वहीं तुम नखरे करते हो, सबकुछ वहीं होता है। और ऐसे ही मन तीनों लोकों में घूमता रहता है, घूमता रहता है, घूमता रहता है, घूमता रहता है। और उसमें कौन आ गया ?
सब आ गये — यती, सती, सन्यासी।
विधि हरि हर जाको ध्यान धरत हैं,
निश दिन — हर एक दिन।
मुनिजन सहस अठासी।
सोई हंस तेरे घट माहीं,
तेरे, तेरे, तेरे — हर एक व्यक्ति के लिए कहा है।
सोई हंस तेरे घट माहीं, अलख. . .
जिसकी कोई परिभाषा नहीं है। जिसके बारे में तुम किताब नहीं लिख सकते। वही अलख पुरुष अविनाशी। तुम बताओ, तुम किस चीज को जानते हो जो अविनाशी हो ? जहां तक तुम देख सकते हो, चंद्रमा को देखते हो, सूरज को देखते हो, तारों को देखते हो, पेड़ों को देखते हो, धरती को देखते हो, आकाश को देखते हो, इन सबका नाश होना है। ये मैं नहीं कह रहा हूं। ये सबका नाश होना है। ये सारे वैज्ञानिक कहते हैं कि इन सबका नाश होगा, क्योंकि जो बना है उसका नाश जरूर होगा। परंतु ऐसी चीज जो बनी नहीं, जो अविनाशी है, जिसका कभी नाश नहीं होगा, तुम जानते हो ऐसी चीज ? क्योंकि वो चीज जिसकी दुनिया को तलाश है, जिसकी तुमको तलाश है, जिसकी हर एक व्यक्ति को तलाश है, वो तुम्हारे घट के अंदर ही बैठा है।
भजन :
है घट में पर दूर बतावें, दूर की बात निरासी।
MC: ग्रैहम रिचर्ड्स:
और ये भी सवाल पूछा गया था, “अगर आपके लिए माफ करना मुश्किल है तो बाकियों को माफ करना और भी कठिन है ? इसे उस तरफ मोड़ना, जिस व्यक्ति को आप सबसे अच्छी तरह जानते हैं, जिसे आप सबसे ज्यादा परखते हैं। आप खुद को कैसे माफ करें ?”
प्रेम रावत:
देखिये! ये एक बढ़िया सवाल है, क्योंकि ये इतना जरूरी है खुद को माफ कर पाना और मैं कहूंगा ‘आपको और किसी और को’ बात में नहीं लाते। बात करें सिर्फ माफ करने की। ‘ये क्या है ?’
और कई लोग सोचते हैं “माफी देने से, निचले स्तर को बढ़ावा मिल जाएगा। किसी की गलती को बढ़ावा मिल जाएगा।” ये माफी देना नहीं है। “माफ करना” होता है उस चीज से नाता तोड़ना, जो आपको नीचे धकेल रहा है।”
तो अब जो भी और जानते हैं किसी ने आपके साथ बहुत बुरा किया और वो काफी लम्बे समय पहले हुआ था। पर, उस व्यक्ति का आप पर अब भी असर है। उनकी आप पर पकड़ है। पूरी तरह से। क्योंकि हर रोज जब आप उठते हैं, तो शायद, एक अकेले पल में आप उसे गाली देते हैं; आप उसके बारे में सोचते हैं। वह व्यक्ति आप से अब भी जुड़ा हुआ है। और माफी कह रही है “और नहीं! आपका मुझ पर नियंत्रण नहीं है। मुझे जीवन चाहिए। मुझे मेरा जीवन दें। और मैं आपको हक़ नहीं देता, इसके बाद मुझे डराने का।” ये होता है माफ करना।
तो ऐसा नहीं, वो ऐसा कहती है कि “ओह, हां! मैं तुम्हें जानती हूं।” हां, मेरा मतलब, मेरे हिसाब से ये है। मेरा मतलब, मेरे साथ एक बार बहुत बुरी चीज हुई। और फिर हर बार मैं उसके बारे में सोचता ये होता कि, "हे भगवान, हे भगवान, हे भगवान!”
फिर मैंने कहा, “उस दुष्ट का अब भी मुझ पर नियंत्रण है। मैं तो उसके देश में भी नहीं हूँ। मैं उसे अपने ऊपर नियंत्रण नहीं होने दूंगा।” और मैंने कहा, “बस! ख़त्म!”
ये है माफ करना। माफ करना ताकतवर होता है। ये कहता है – “नहीं! मेरा जीवन मेरे पास है। बहुत धन्यवाद!”
वापिस – वापिस आ रहा है। क्योंकि अगर नहीं आये, फिर वो बेड़ियाँ रहेंगी और वो आपके साथ क्या करेंगी, ये बेड़ियाँ क्या करती हैं, ये पंजे जो आप में गड़े हैं। ये आपको गुस्सा दिलाते हैं। इससे गुस्सा आता है; डर आता है; ये आपको सोचने नहीं देता; ये आपको आगे बढ़ने से रोकता है; ये सराहना को रोकता है।
आप डर में जीते हैं। आप सिर्फ और सिर्फ डर में जीते रहते हैं और वो व्यक्ति तो जा चुका है, पर वो पंजे गड़े हुए हैं और वो कह रहे हैं, “और नहीं। धन्यवाद!”
और जब आप माफी को इस तरह देखते हैं, इसका एक बिल्कुल अलग मतलब निकलता है। क्योंकि अब तक तो ऐसा था जैसे कि — “ओह! मैंने माफ कर दिया, और जानते हैं ठीक है! अच्छा ये क्या किया तुमने।”
पर जानते हैं, ऐसी चीजें होती हैं आपके साथ जीवन में, जो अगर आप बात करें दूसरों के काम को अपनाने की, तो ऐसा नहीं होगा, बिल्कुल भी नहीं! ऐसा बिल्कुल नहीं होगा। क्योंकि आप उनमें से कुछ चीजें नहीं मान सकते, वो इतनी बुरी होती हैं। और आप खुद को शिकार नहीं बनने दे सकते, क्योंकि कुछ चीजें ऐसी है, जो आप स्वीकार कभी नहीं कर पाएंगे कि "हां! ये ठीक है!" पर ये आप पर है कि उस व्यक्ति के पंजे और उस घटना का अब भी आप पर पकड़ रहे या नहीं। क्योंकि अगर आप नहीं करते तो इस्तेमाल करें, माफी की तलवार को और आज़ाद हो जाएं।
तो मैं माफी को ऐसे देखता हूँ। ऐसे नहीं कि — "हां! ये तुमने किया!" क्योंकि कुछ बातें बहुत बुरी होती हैं। और आप देखते हैं उन्हें होता हुआ देखें, इतनी जगह पर।
एक और तरीका समझने का है, एक दिन बुद्ध चल रहे थे और कई लोग उन्हें भला-बुरा बोल रहे थे। उनके भक्त जो उनके साथ थे, वापिस आ गए और उन्होंने कहा — “बुद्ध, वो लोग इतनी बुरी चीजें कर रहे थे, बुरी बातें कह रहे थे, आपको इससे फर्क़ नहीं पड़ता ?”
और बुद्ध ने कहा — “ओके, देखिये! ये कटोरा देखा! ये किसका है ?”
वो उनका ही था।
उन्होंने कहा — “हां! ये आपका है।”
तो उन्होंने कटोरे को अपने भक्त की तरफ सड़का दिया।
उन्होंने कहा — “अब ये किसका कटोरा है ?”
भक्त ने कहा — “अब भी ये आपका ही है।”
उन्होंने थोड़ा और सड़काया, अब ये किसका कटोरा है ? और अब किसका कटोरा है ? अब बताओ ? वो ये करते रहे और अंत में कटोरे को अपने भक्त की गोद में रख दिया।
उन्होंने कहा — “अब ये किसका कटोरा है ?”
उसने कहा — “बुद्ध! आप ही का है।”
उन्होंने कहा — “बिल्कुल, बिल्कुल! मुझे नहीं मानना। जिस दिन मैं मानूंगा, ये मेरा बन जाएगा। पर अगर मैं नहीं मानूंगा, वो तब भी उनका है।”
आप जानते हैं, मैं समझता हूँ, मेरा मतलब कभी-कभी ये कहानियां कहनी आसान होतीं हैं, बल्कि जीवन में उतारने से। पर, अंत में अगर आप अलग होने लगें, तो फिर शायद रस्सी इतनी मोटी हो जाए कि एक दिन आप काट न पाएं। पर कम से कम आप काटना शुरू तो करें। इसे समझना शुरू करें कि आपमें ताकत है रस्सी को काटने की। माफ करने का यही मतलब होता है… कि अंत में एक दिन आप रस्सी को कमजोर करेंगे और फिर ये कट जायेगी।
पर आपको शुरू करना होगा। आपको इसे समझना होगा।