आज इस दुनिया के अंदर जहाँ भी देखो, हर एक चीज़ में मनुष्य ने दीवार डाल दी — "तुम गोरे हो, तुम काले हो। तुम स्त्री हो, तुम पुरुष हो। तुम बच्चे हो, तुम बूढ़े हो। तुम पढ़े-लिखे हो, तुम अनपढ़ हो।" परन्तु असलियत में कोई अंतर नहीं है। हम सब एक ही हैं। एक ही चीज़ से जीवित हैं। यह स्वांस आती है, जाती है। चाहे बूढ़े हैं या जवान हैं, चाहे पढ़े-लिखे हैं, चाहे अनपढ़ हैं, चाहे अमीर हैं, चाहे गरीब हैं। वही स्वांस सबके अंदर आ रही है, जा रही है।
सबके पास हृदय है और वह हृदय एक ही चीज़ की पुकार कर रहा है कि "इस जीवन के अंदर शांति होनी चाहिए। किसी तरीके से यह जीवन सफल हो। मैं अपने जीवन में असली शांति का अनुभव कर सकूं।"
दुनिया के अंदर सभी की यही ख़्वाहिश है। जब तक उस चीज़ का अनुभव नहीं हो जाता, तब तक सारी कहानी अधूरी है। इसका निर्णय कौन लेगा कि जीवन में शांति संभव है या नहीं ? यह अनुभव की बात है। आपको ही अपने जीवन में निर्णय करना है कि आपको शांति हो गई है या नहीं हुई है, आपके जीवन में शांति है या नहीं है। इसके बारे में कोई दूसरा व्यक्ति निर्णय नहीं ले सकता है।
लोग भूल जाते हैं कि हमारे हृदय की ख्वाहिश क्या है? वह चीज़ जो आपके चेहरे पर आज मुस्कान लाती है, वह चीज़, जो आपको हर दिन प्रेरित करती है कि आप अपना जीवन सफल करो, उस चीज़ को पहचानो। उस चीज़ को अपने जीवन में आने दो। उस शांति को अपने जीवन में आने दो। जब तक नहीं आने देंगे, तब तक आप क्या हैं और आपकी सम्भावना क्या हैं, आपको पता नहीं लगेगा। आप नहीं जान सकेंगे कि "आप क्या हैं?" जिस शक्ति ने सारे संसार की रचना की है, आपको उसी शक्ति ने बनाया है।
लोग समझते हैं कि "शांति पाने के लिये सबकुछ छोड़ना पड़ेगा" — नहीं, ऐसी बात नहीं है। इस दुनिया के अंदर रह करके, इस समाज के अंदर रह करके आप शांति का अनुभव कर सकते हैं — ऐसी है "शांति!" क्योंकि वह आपकी निजी बात है। आपके अंदर की बात है। अगर कहीं से अँधेरा निकालना है, तो वहां ज्योति की जरूरत है, प्रकाश की जरूरत है। आपको अपने जीवन के अंदर जो कुछ भी करना है, कीजिये, परन्तु एक काम और कीजिये — अपने अंदर की प्यास को भी जरूर बुझाइये। किसी चीज़ को छोड़ने की जरूरत नहीं है, त्यागने की जरूरत नहीं है। आप जो भी हैं, आप धन्य हैं, क्योंकि आप जीवित हैं।
- प्रेम रावत
इस संसार के अंदर जो कुछ भी मनुष्य करता है, वह अपने सुख-शांति के लिए करता है। उसकी धारणाएं हैं कि अगर मैं यह हासिल कर लूंगा या अगर मुझको यह मिल जायेगा तो इससे मेरे जीवन में सुख मिल जायेगा, जीवन में शांति हो जाएगी। सारी दुनिया के लोग इसी चक्कर में इधर-उधर भाग रहे हैं — कोई पुत्र के पीछे भागता है, कोई अपने बिज़नेस के पीछे भागता है। कोई किसी चीज़ के पीछे भागता है, कोई किसी चीज़ के पीछे भागता है।
एक तो यह बात जानना जरूरी है कि अगर मनुष्य जो कुछ भी कर रहा है, वह अपने सुख-शांति के लिए कर रहा है, तो उसके अंदर सुख-शांति की जो चाहत है, जो इच्छा है वह कहाँ से आयी? वह इच्छा किसने पैदा की? यह चीज़ हमने अपनी ज़िन्दगी में सीखी है या स्वाभाविक है? कुछ चीज़ें स्वाभाविक होती हैं और कुछ चीज़ें सीखी हुई होती हैं। कई चीज़ों को सीखने के लिए हमें स्कूलों, महाविद्यालयों, बड़े-बड़े शिक्षण संस्थानों में जाना पड़ता है। वहां सीखने के बाद हमारी इच्छाएं, कामनाएं, आकांक्षाएं उत्पन्न होती हैं। कई बड़े-बड़े विज्ञापन और पोस्टर देखते हैं, हमको दोस्तों ने कुछ बताया, हमको मित्रों ने बताया, तो हमने सीख लिया, हमारी इच्छाएं उत्पन्न हो गईं । परन्तु कुछ ऐसी इच्छाएं होती हैं, जिन्हें हमें सीखना नहीं पड़ता, बल्कि स्वाभाविक होती हैं। जैसे भूख का लगना स्वाभाविक है। इसके लिए हमको कहीं जाकर सीखना नहीं पड़ता। जब खाने की जरूरत पड़ती है, तो यह शरीर हमें बताता है कि — "खाना खा लो!"
प्रकृति ने पहले से ही ऐसा प्रबंध कर दिया है क्योंकि उसको मालूम था कि हो सकता है, आदमी काम में इतना फंस जाये कि उसे अपने शरीर का भी ख्याल न रहे। इसलिए उसने भूख बना दी। जब भूख लगती है तो खाने की इच्छा पैदा होती है और आदमी खाने को ढूंढ़ता है। यह स्वाभाविक चीज़ है। इसको सीखना नहीं पड़ता। जब प्यास लगती है तो आदमी पानी पीता है। क्या असली सुख-शांति की चाहत स्वाभाविक है या सीखी हुई है? यह स्वाभाविक प्यास है। यह अंदर की प्यास है। बाहरी समस्याओं का हल बाहर मिलता है। उसी प्रकार अंदर की चाहत, हृदय की प्यास, असली सुख-शांति को पाने की प्यास का हल आपको अपने अंदर ही मिलेगा, बाहर नहीं।
जिस प्रकार अगर हमको पानी की जरूरत है, पानी की प्यास है तो हम पानी को उस चीज़ में ढूंढेंगे, वहां ढूंढेंगे, जहां पानी का स्रोत है — जैसे नलका, कुआँ, नदी या झरना हो। उसी प्रकार यह समझना जरूरी है कि जिस चीज़ को हम ढूंढ रहे हैं, जिस सुख को हम अपनी ज़िन्दगी के अंदर चाहते हैं, वह कहाँ है? वह चीज़, वह सुख हमारे अंदर है। परन्तु उसको हम ढूंढ कहाँ रहे हैं? उसे हम बाहर ढूंढ रहे हैं।
हम सोचते हैं कि अगर हमारी तरक्की हो जाएगी, तो हमको सुख-शांति मिल जाएगी। परन्तु यह वह सुख नहीं है, जिसकी हमारे हृदय को तलाश है। वह सुख अलग है। अगर हम यही कहते रहेंगे कि मुझको पारिवारिक सुख मिल जायेगा तो मेरे हृदय में तसल्ली हो जाएगी — यह बात गलत है। बाहरी सारे सुखों के बावजूद भी एक ऐसा सुख है, जिसको जाने और समझे बिना मनुष्य का जीवन अधूरा है! आतंरिक सुख की चाहत का बीज बनाने वाले ने आपके हृदय में डाला है कि खोजो, ढूंढो, पता करो, जानो और पहचानो कि असली सुख और शांति कहाँ है?
शांति की जरूरत हृदय को हर दिन है, हर क्षण है। लोग शांति की बात करते हैं, कहते हैं, "विश्व में शांति होनी चाहिए।" हम कहते हैं कि विश्व में शांति नहीं आपके हृदय के अंदर शांति होनी चाहिए। विश्व में है कौन? मनुष्य ही तो हैं।
- श्री प्रेम रावत के संदेश पर आधारित एक लेख
प्रेम रावत:
कितने ही बीज हैं, जो काफी समय से बारिश का इंतज़ार करते हैं। रेगिस्तान में जमीन में बीज पड़े रहते हैं और वे बारिश की इंतज़ार करते हैं। जब बारिश होगी, तब वह बीज उगेगा। उसी प्रकार जब हमारे पास कोई ऐसा व्यक्ति आये, जो अनुभव की बात कहे, हम तैयार रहें।
अनुभव के संबंध में एक दृष्टांत है —
एक राजा था। उसके दरबार में कोई आम लाया। उस राजा ने अपनी जिंदगी में कभी आम नहीं खाया था। इसलिए उसने पूछा, "यह क्या है ?"
जो व्यक्ति आम लाया था, उसने कहा कि, "महाराज! यह आम है। यह बहुत ही अच्छा फल है, आप इसे खाकर देखिये।"
राजा ने कहा, "मुझे नहीं खाना है। मेरे दरबार में जो लोग बैठे हैं, इनको खिलाओ। ये खाकर मुझे बताएंगे कि यह आम कैसा है?"
एक ने खाया और उसने कहा, "महाराज! यह बहुत मीठा है।"
राजा ने कहा, "मुझे अभी समझ में नहीं आया कि आम क्या है।"
उसने अपने प्रधानमंत्री को दिया कि तुम खाओ। उसने भी खाया, उसने कहा, "महाराज! यह तो बहुत बढ़िया है। यह तो नरम है, मीठा है और इसमें रस भी है।"
कहा, "अभी भी मुझे समझ में नहीं आया।"
उस दरबार में एक विद्वान सज्जन को आम मिला तो वे खाने के बजाय सीधा राजा के पास ले गए और कहे कि, "राजा! इसको आप खाइये। जबतक आप नहीं खायेंगे, तबतक दूसरों के खाने से आपको कुछ पता नहीं लगेगा कि यह क्या चीज है ? यह व्यक्तिगत अनुभव की बात है।"
तब राजा ने उस आम को चखा और चखने के बाद वह कहता है कि "हां! अब समझ में आ गया कि आम क्या होता है।"
उसी प्रकार आज इस संसार में शांति की चर्चा करने वाले बहुत लोग हो चुके हैं, परन्तु जबतक आप शांति का स्वयं अनुभव नहीं कर लेंगे, तबतक यह सिर्फ एक शब्द मात्र है। हमको शांति का अनुभव करने की जरूरत है। चाहे हमारे पास कितना भी पैसा हो, परन्तु आंतरिक शांति के अभाव में हम गरीब के गरीब हैं। जबतक हमारे अंदर सब कुछ खाली है, तबतक हमारे लिए कुछ भी नहीं है। जिस दिन हमारे अंदर शांति का अनुभव हो जायेगा, हमें शांति-शांति चिल्लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।