Text on screen : अगर इस संसार में सिर्फ सुख और शांति होगी तो वह संसार कैसा होगा ?
प्रेम रावत:
देखिए! बात यह है कि इस दुनिया के अंदर लड़ाई — अगर हम इतिहास को देखें तो इतनी ज्यादा नहीं हुई हैं। लोगों ने परिश्रम यही किया है कि शांति का वातावरण बने। जब मनुष्य खेती करने लगा, तब सारा चक्कर हुआ। क्योंकि अब खेती है। तो किसी ने हल चलाया, किसी ने पानी दिया, किसी ने बीज बोया — अब उसमें फसल तैयार है और कोई ऐसा है, जो ये सारी मेहनत नहीं करना चाहता है। और जब फसल तैयार हो गई तो उसको काट के ले गया। तब जाकर के लोगों ने ये सारा प्रबंध शुरू किया। तब से राजा बने, तब से लड़ाइयां चालू हुईं! किसकी जमीन है — उससे पहले किसी को क्या मतलब था, किसकी जमीन है ? सभी की जमीन है। जो जा रहा है, उसकी जमीन है। परंतु एक बार जब खेती होने लगी, तब लोगों के जीवन में ये हो गया कि नहीं, ये मेरी है, ये मेरी है, ये ये है, ये वो है! तो बात ये है कि ये सारी चीजें — इन पर लड़ना, इन पर झगड़ना!
अब सबसे ज्यादा लड़ाई होती है — ये मेरा है! अब ये ही बात नहीं है कि ‘‘यह मेरा है! यह मेरा विचार है और तुमको इस तरीके से होना चाहिए!’’ इस पर भी लड़ाई होती है। फिर शांत हो जाते हैं। और जब शांत हो जाते हैं, तब फिर दुबारा से निर्माण शुरू होता है, उन्नति होती है! यह तो मनुष्य को अच्छी तरीके से मालूम है कि शांति क्या लाती है और अशांति क्या लाती है ? इसमें दूरदर्शी होने की जरूरत नहीं है। जो है, अगर उसको देखा जाए! क्योंकि इस संसार में समस्या ज्यादा नहीं है। थोड़ी समस्या है। और मैं समस्याओं को छोटा नहीं बनाना चाहता। लोग भूख से मरते हैं। अब ये समस्या छोटी क्यों है मेरे हिसाब से ? क्यों है ? एक तो लोगों के हिसाब से बहुत बड़ी समस्या है! समस्या छोटी ये इसलिए है कि इस पृथ्वी पर इतना खाना उपजता है, उगाया जाता है कि वो सबको खिला सके। अगर पृथ्वी छोटी पड़ती खाना उगाने के लिए तो यह बहुत बड़ी समस्या होती। पर पृथ्वी इस चीज के लिए अनिवार्य है। और इतना खाना उगता है, परंतु वो खाना, ताकि चावल, गेहूं, इन चीजों का दाम control करने के लिए फेंका जाता है। वो ज्यादा जरूरी है लोगों के लिए पैसा, जिसको वो खा नहीं सकते हैं, जिसको वो पी नहीं सकते हैं। वो समझते हैं कि इसके होने से सबकुछ है और वो ये भूल जाते हैं कि एक ये दीवाल है, जब मैं पैदा हुआ और एक ये दीवाल है कि मेरे को जाना है, और जिस दिन मैं इस दीवाल तक पहुंचूंगा और इसके दूसरी तरफ जाऊंगा — एक कौड़ी पैसा मैं नहीं ले जा सकता हूं। और मेरे पेट में कोई ऐसी चीज नहीं है, जो पैसे को हजम कर ले। एक चीज नहीं है!
ये पैसा है क्या ? मनुष्य का बनाया हुआ है। भगवान ने बनाया — प्रकृति ने बनाया सोना, मनुष्य ने लगाया उसका दाम! और जब दाम लगने लगा तो फिर वो अपने भविष्य को कोसता है कि उसके पास इतना क्यों है, मेरे पास इतना क्यों नहीं है ? ये सारी चीजें मनुष्य की बनाई हुई हैं। और मनुष्य ही इनको झेलता है, इन्हीं चीजों से दुखी होता है। अपने भविष्य को कोसता है कि ‘‘ऐसा क्यों हो रहा है मेरे साथ ? मैं क्यों नहीं अमीर हूं ? ये क्यों अमीर है ? मैं गरीब क्यों हूं ? भगवान ने ऐसा क्या बनाया ?’’ फिर धर्म की बात आ जाती है। ‘‘अरे! ये तो मेरे पिछले जन्मों का फल मिल रहा है मेरे को!’’ और ये सब चलता रहता है! परंतु सही बात तो ये है कि शांति हम सबके अंदर है। शांति कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो बाहर हो! वह हमारे अंदर है।
घट में है सूझे नहीं, लानत ऐसी जिंद।
तुलसी या संसार को, भयो मोतियाबिंद।।
Cataract — मोतियाबिंद! चीज जो है, वो दिखाई नहीं दे रही है साफ-साफ! यही होता है मोतियाबिंद से। और जब वो मोतियाबिंद निकल जाता है तो फिर साफ दिखाई देने लगता है कि जिस चीज की हमको जरूरत है, जिस शांति की हम तलाश कर रहे हैं, वह शांति हमारे अंदर है। जब मनुष्य उस शांति का अनुभव करने लगता है और वो जान लेता है कि ‘‘ये मेरी प्रकृति है, मैं ये हूं! मैं ये नहीं हूं, मैं ये हूं!’’
अब देखिए! एक समय था कि आईना नहीं था। आईना रूप जैसी कोई चीज नहीं थी। तो लोग अपने आपको उस तरीके से नहीं देख पाते थे, जिस तरीके से आज देख पाते हैं। या तो पानी में लोग अपनी परछाईं देखते थे। पर पानी की परछाईं तो आप जानते ही हैं, कभी इधर-उधर पानी हिल रहा है तो वो ठीक ढंग से दिखाई नहीं देगी। कोई चमकीली चीज! पर चमकीली चीज होने के लिए पैसा होना जरूरी था। अमीरों को ही उपलब्ध थी, गरीबों को ज्यादा उपलब्ध नहीं थी। अर्थात् लोग अपने चेहरे को नहीं जानते थे, नहीं पहचान पाते थे। और जब आईना आया तो अब तो सब लोग देखते हैं। अगर अपनी फोटो देखेंगे तो कहेंगे कि ‘‘ये तो मेरी फोटो है!’’ तो कैसे आपको मालूम ?
क्योंकि आप जानते हैं कि आपका चेहरा कैसा दिखता है! ठीक इसी प्रकार से जब मनुष्य अपनी प्रकृति को समझता है तो उसको समझ में आता है कि शांति मेरे से दूर नहीं है। मैं शांति से दूर नहीं हूं, शांति मेरे से दूर नहीं है। और मेरी प्रकृति में अशांति भी है। मेरी प्रकृति में लड़ना भी है! क्योंकि लड़ाई जो चीज है, वो बाहर से नहीं आती है, वो मनुष्य के अंदर से ही आती है। और शांति भी मनुष्य के अंदर से आती है। जब दोनों चीजों को वो पहचानने लगता है तो वो जानता है कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है ? और जबतक वो अपने आपको नहीं जानेगा, वो समझने की कोशिश करेगा कि अच्छा क्या है, बुरा क्या है — वो जो कुत्ता अपनी दुम को chase करता रहता है, फिरता रहता है, फिरता रहता है, उसकी हालत, वैसी मनुष्य की हो जाएगी। और होगा क्या ? शांति दूर रह जाएगी। जब मनुष्य जानता ही नहीं है कि ये अशांति का कारण भी मैं ही हूं और शांति का कारण भी मैं ही हूं तो वो दूसरों की तरफ देखेगा, लीडरों की तरफ देखेगा। और लीडर तो कर नहीं सकते। और करेंगे कैसे ? जब स्रोत उसका मनुष्य है, जब मनुष्य ही नहीं बदलने के लिए तैयार है, जब मनुष्य ही अपने आपको पहचानने के लिए तैयार नहीं है तो लीडर क्या करेगा ? चटनी किस चीज की बनाएगा ? क्या करेगा ? मतलब, क्या solution देगा किसी को ? Solution हमेशा एक ही रहा है — अपने आपको जानो! अपने आपको पहचानो! जबतक जानोगे नहीं, जबतक पहचानोगे नहीं, ये बात समझ में नहीं आएगी कि शांति आपसे दूर नहीं है। और उस दिन होगा क्या ? उस दिन होगा क्या ? उस दिन क्या बदल जाएगा ऐसा ? अगर ये भी मान के चलें कि चलिए! एक दिन ऐसा आएगा कि सब अपने आपको जानते हैं। उस दिन बदलेगा क्या ? पर बदलना किस चीज को है ? किस चीज की वजह से, बाहरी चीज की वजह से हमारे मन में अशांति होती है ? ये तो अंदर की ही बात है! तो इस दुनिया को बदलने की जरूरत नहीं है। इसका ये मतलब नहीं है कि सेलफोन गायब हो जाएंगे! ना। बाहर किसी चीज को बदलने की जरूरत नहीं है। किसी चीज को बदलने की जरूरत नहीं है।
अगर आपके पास एक मोटर साइकिल है और मोटर साइकिल का स्पार्क, प्लग खराब हो गया और आपकी मोटर साइकिल नहीं चल रही है। तो आप मेरे को बताइए कि उस मोटर साइकिल को ठीक करने के लिए क्या करना पड़ेगा ? उसका रंग बदलना पड़ेगा ? रोड बदलने पड़ेंगे ? साइन बदलने पड़ेंगे ? गैस टैंक बदलना पड़ेगा ? टायर बदलने पड़ेंगे ? नहीं। स्पार्क-प्लग बदलना पड़ेगा। वो बदल दीजिए, सब ठीक है! आपके पास एक टार्च है! फ्लैश लाइट है, टॉर्च है! उसमें एक बल्ब है। बल्ब खतम हो गया। तो क्या करना चाहिए आपको ? नई बैटरी ? बाहर उसको दूसरे रंग में रंग दें ? नहीं। बल्ब नया लाइए, लगाइए! वो जलने लगेगा! यही बात मनुष्य के साथ भी है। वो अपने आपको जाने, अपने आपको समझे तो फिर ये सारी चीजें — इनको बदलने की जरूरत नहीं है। ये तो — मनुष्य का काम है आविष्कार करना! वो चीज ही ऐसी तिकड़मी है। मतलब, आप देखिए कि रोटी बेलना। एक चीज है, जो हिन्दुस्तान में बहुत तादाद में होता है। तो रोटी बेलना — उसके लिए बेलन चाहिए, उसके लिए एक फ्लैट जगह चाहिए! उसके लिए आटा चाहिए! आटा को गूंधना है! सबका अपना—अपना तरीका है। सबका अपना-अपना — मैंने देखा है। सबका अपना-अपना तरीका है। कोई बड़ी स्टाइल से बेलता है — कोई ये करता है, कोई वो करता है। रोटी बनाने वाले भी ऐसे हैं कि कई बार तो उसको उछालते हैं और उसको पकड़ते हैं। फिर करते हैं। सबका अपना-अपना तरीका है। क्योंकि चीजों को थोड़ा-सा बदलना, थोड़ा-सा आसान बनाना, ये तो मनुष्य के दिमाग में एक कीड़ा है। ये तो वो करते आया है और करते आएगा। पर इससे न कोई खराबी है, न कोई अच्छाई है। क्योंकि स्रोत शांति का वो है। वो चीजें नहीं! मतलब, जिसको खाना बनाना नहीं आता है, उसको आप अच्छी से अच्छी चीजें दे दें, इसका मतलब नहीं है कि खाना स्वादिष्ट बनेगा। परंतु जिसको आता है, अगर उसको इधर-उधर की भी चीज मिल जाएगी, वो उसी को लेकर के — तिकड़मी क्योंकि है मनुष्य, बढ़िया चीजें बना लेगा। तो ये अंतर है।
ये जो चीज — ध्यान जो है शांति के बारे में हम दुनिया की तरफ डालते हैं, बाहर की चीजों की तरफ डालते हैं। क्योंकि हम ये समझते हैं कि जो कुछ भी बाहर हो रहा है, वही हो रहा है। परंतु वो बाहर तो बाहर है। और जड़ इसकी है मनुष्य के अंदर! और जबतक वो नहीं समझेगा, तबतक ये कुछ भी हो! कुछ भी हो! अब क्या आविष्कार होना खराब बात है ? बिल्कुल नहीं। क्या सेलफोनों को अच्छा नहीं होना चाहिए ? बिल्कुल अच्छा होना चाहिए! क्या सेलफोन इस समय बहुत बड़े हैं ? बिल्कुल बड़े हैं! आप अपने जैकेट में डालिए तो जैकैट ऐसे नीचे हो जाने लगती है। सेलफोनों को मालूम नहीं है — कब शांत होना चाहिए, कब शांत नहीं होना चाहिए! परंतु ये सारी चीजें — इनसे कोई तुक नहीं है, इससे कोई वास्ता नहीं है शांति का। शांति का वास्ता है तो सिर्फ एक चीज से है, वो मनुष्य से है। और शांति उसके अंदर है और आज है! तो ये प्रश्न कि ‘‘भविष्य में अगर ऐसा कभी हो!’’ नहीं, ये तो है! ये तो अभी है! परंतु ये प्रगट नहीं हो रहा है। और प्रगट इसलिए नहीं हो रहा है, क्योंकि ध्यान नहीं है उस तरफ। और थोड़ा-सा भी ध्यान उस तरफ जाए तो सबकुछ बदल सकता है।
हर एक मनुष्य के अंदर एक हृदय है। और हृदय क्या कहता है मनुष्य से ? हृदय कहता है मनुष्य से कि मुझे आजादी दे। क्योंकि जिंदगी के अंदर कुछ ऐसी सलाखें हैं, जो वो लोहे की सलाखों से ज्यादा मजबूत हैं। और कैसी सलाखें हैं वो ? वो सलाखें हैं अज्ञानता की, वो सलाखें हैं संशय की। हम अपने जीवन में, हम अपने को समझते हैं कि हम आजाद हैं। पर अगर हम अज्ञानता के पिंजरे में बंधे हुए हैं, सशंय के पिंजरे में बंधे हुए हैं। तो यह हृदय रूपी चिड़िया जो उड़ना चाहती है यह कैसे उड़ेगी ?
हम ऐसी स्वतंत्रता की बात कर रहे हैं कि जेल के अंदर बैठे भी आदमी उस असली स्वतंत्रता का अनुभव कर सके। ऐसी शांति जो किसी और चीज के ऊपर निर्भर नहीं है जो अपने में ही पूरी है। ऐसी शांति!
- प्रेम रावत
प्रश्नकर्ता : हमने शांति को defined किया, मानवता को defined किया, एक आदमी, जो दिन में 150 रुपये कमाता है सारे दिन extreme conditions में काम करता है, उसके लिए शांति और मानवता हम कैसे define करेंगे ?
प्रेम रावत जी : पैसा भी मनुष्य ने बनाया है और पैसे का अभाव भी आज मनुष्य बना रहा है। इस पृथ्वी से सारा धन निकलता है। हीरे-जवाहरात कहां से निकलते हैं ? किसी के safe से निकलते हैं या धरती से निकलते हैं ? वो भी धरती से निकलते हैं। तो ये तो रही बात Inequality की। परंतु हमको अच्छी तरीके से मालूम है कि भूखे पेट से — इसके लिए कहा भी है कि —
बिन भोजन भजन न होय गोपाला।
ये लो अपनी कंठी माला।।
तो शांति जरूरी है और जो concerns आपने कही, ये भी जरूरी हैं। जो concerns हमारी भौतिक concerns हैं, इसके लिए society है। इसके लिए government है, इसके लिए systems हैं और उनके बावजूद भी ये नहीं हो रही है। और मैं ये कह रहा हूं कि जबतक मनुष्य अपने आपको नहीं पहचानेगा तो वो मानवता को — मानवता को, humanity को कैसे establish करेगा ? मानवता के लिए मानव को समझना बहुत जरूरी है! बिना मानव अपने आपको समझे, कैसे मानवता को स्थापित करेगा ? ये संभव नहीं है!
तो इसलिए मेरी कोशिश, मेरी कोशिश आज से नहीं, दो साल से नहीं, तीन साल से नहीं — 50 साल से ऊपर मेरी यही कोशिश रही है कि मनुष्य अपने आपको समझे, क्योंकि मैंने देखा है कि जब मनुष्य अपने आपको समझने लगता है तो उसके माहौल में ऐसा परिवर्तन होता है और सुंदर परिवर्तन होता है। ये बात मैं क्यों कह रहा हूं ? मेरे शब्द खाली नहीं हैं।
हमारा एक प्रोग्राम है, जो कि universities में भी है, libraries में भी है, जो veterans लड़ाइयों से वापिस आ रहे हैं, उनके लिए भी है। और सबसे बड़ी बात है कि वो जेलों में भी है। साउथ अफ्रीका में हर एक single जेल में है वो। हर एक जेल में है वो प्रोग्राम — पीस एजुकेशन प्रोग्राम!
उससे होता क्या है ? उससे होता क्या है ?
वो लोग, वो लोग, जो जेल में बंद हैं और एक साल के लिए नहीं, दो साल के लिए नहीं, तीन साल के लिए नहीं, कई ऐसे लोग हैं, जिनको जिंदगी का sentence मिला हुआ है, Life sentence मिला हुआ है — जब वो आते हैं जेल में तो सबसे पहले उनको यही लगता है कि सोसाइटी का fault है, गवर्नमेंट का fault है, पुलिस का fault है, उनकी फैमिली का fault है, उनके दोस्तों का fault है कि वो जेल में हैं। जब वो अपने आपको समझने लगते हैं, तब जाकर के असली परिवर्तन उनके जीवन में आता है कि इसका रिस्पॉन्सिबल और कोई नहीं, मैं हूं। और जब वो बदलना शुरू करते हैं तो उनके जीवन के अंदर जेल में भी रहकर के सुकून उनको मिलता है। तो जब जेल में रहते हुए उनके जीवन के अंदर शांति आ सकती है।
If they can feel peace in the middle of a prison, then imagine what is possible in the world outside that prison, change, change, change, change for the better, for the better. And that's the betterment of mankind, of mankind. How? By lighting individual candles. You can light a whole city. So, I hope that helps.
प्रेम रावत:
आप कौन हैं ? आप कौन हैं ? जब तुम मां के गर्भ से निकले, तब तुम्हारा नाम क्या था ? कुछ भी नहीं था। अभी रखा नहीं गया था। अभी कागज पर नहीं लिखा गया था। अभी किसी ने सोचा भी नहीं था। अभी लोगों को हो सकता है, ये भी नहीं मालूम था कि तुम लड़के हो या लड़की हो, तो नाम पहले रखने से क्या फायदा ? अगर तुम जीवित थे और तुम्हारा कोई नाम नहीं था और फिर भी तुम जीवित थे ? बिना नाम के जीवित थे ? तो तुम्हारा जो नाम है उससे और तुम्हारे से क्या लेना-देना ? कुछ लेना-देना नहीं।
दूसरी चीज, ये शरीर किसका है ? ये तुम्हारा है ? ये तुम्हारा है ? किसका है ? बनाने वाले का है ?
मतलब, अपने आपको समझना — मैं कौन हूं, क्या हूं। ये शरीर इन तत्वों का बना है, उन्हीं चीजों का बना हुआ है, जिसको तुम सबेरे-सबरे धोने की कोशिश करते हो। उसी मिट्टी का बना हुआ है, जिससे तुमको इतनी नफरत है। उन्हीं चीजों का बना हुआ है और जब ये शरीर खत्म होगा तो उन्हीं चीजों में जाकर के मिल जायेगा।
लोग कहते हैं न, ‘‘हां! फिर जब आदमी मरता है तो फिर ऊपर जाता है। अच्छा कर्म किया है तो ऊपर जाता है, बुरा कर्म किया है तो नीचे जाता है।’’
तो मैं पूछता हूं कि जब तुम्हारा जन्म हुआ तो तुम्हारा वजन अगर पांच पाउंड का था, सात पाउंड का था तो इस पृथ्वी का वजन सात पाउंड बढ़ा ? और अगर तुम्हारा वजन दो सौ पाउंड है और जब तुम मरोगे तो इस पृथ्वी का वजन दो सौ पाउंड कम होगा ? हां या नहीं ?
बात यह है, तुमने पहले कभी सोचा नहीं इस बारे में। तो अगर इसका वजन वैसे का वैसे ही रहेगा — मतलब, मनुष्यों के आने-जाने से नहीं बदलेगा तो क्या हो रहा है ? कोई कहीं से आ नहीं रहा है और कोई कहीं जा नहीं रहा है। सब यहीं अटके हैं। और उसी से लौकी बनती है, उसी से कद्दू बनता है, उसी से तुम बनते हो! ये है सच्चाई!
चक्कर क्या है ?
चक्कर है कि यह एक संगम है। हर एक व्यक्ति जो यहां बैठा है, यह एक संगम है। इस संगम में, इस संगम में एक वो यंत्र है, जो अनुभव कर सकता है और इसी यंत्र में बैठा है वो, जो अविनाशी है। तो, एक तो तुम अनुभव कर सकते हो और एक, इस यंत्र में बैठा है अविनाशी! यंत्र का नाश होगा, अविनाशी का नाश नहीं होगा। परंतु ये दोनों एक जगह, एक समय में आए हुए हैं। इसका क्या मतलब हो सकता है ? क्या यह संभव है कि इसका मतलब ये हो कि इस यंत्र के द्वारा तुम उस अविनाशी का अनुभव कर सको। इसलिए तुम हो! और अगर तुमने उसका अनुभव किया तो स्वर्ग तुम्हारे लिए यहीं बन जाएगा।
एक बार एक कछुए का बाप और कछुए की माँ दोनों खड़े हुए थे और अपने बच्चे — छोटे-से कछुए को देख रहे थे। वो छोटा-सा कछुआ पेड़ के ऊपर चढ़ता, बड़ी मेहनत से, बड़ी कोशिश से और टहनी के ऊपर जाता, बड़ी कोशिश से, बड़ी मेहनत से और फिर कूदता। और जैसे ही कूदता तो धक! जाकर जमीन पर गिरता। फिर वो जाता, फिर पेड़ पर चढ़ता, बड़ी मेहनत से —छोटा कछुआ, छोटा-छोटा कछुआ! फिर जाता है, टहनी के ऊपर जाता, जाता, जाता, जाता बड़ी कोशिश, बड़ी मेहनत से और फिर टहनी से कूदता और धक!
माँ, बाप कछुए से बोलती है, ‘‘मेरे ख्याल से इसको बता देना चाहिए कि ये चिड़िया नहीं है।’’
क्योंकि वो छोटा कछुआ यही सोच रहा था कि वह चिड़िया है। उड़ने की कोशिश कर रहा था, परंतु वो उड़ नहीं पायेगा।
क्या मनुष्य को भी ये बताना पड़ेगा, बताना चाहिए कि वो ये संगम है ? और क्या वो यह समझे कि वो ये संगम है और स्वर्ग यहां है ?
लोग लगे रहते हैं — कोई दान कर रहा है, कोई पुण्य कर रहा है। कोई कुछ कर रहा है, कोई कुछ कर रहा है। कोई कुछ कर रहा है, कोई कुछ कर रहा है। सब स्वर्ग जाने के लिए कर रहे हैं। कहां जाएंगे ?
‘‘स्वर्ग जाएंगे जी! स्वर्ग जाएंगे जी! स्वर्ग जाएंगे जी...!’’
हम उन लोगों को एक advice देते हैं, एक सलाह देते हैं। जब तुमको इतनी लगी हुई है जाने की — जाओ! मतलब, इंतजार क्यों कर रहे हो ?
इसीलिए कहा है कि अगर अपने आपका ज्ञान नहीं है, आत्मज्ञान नहीं है —
आतमज्ञान बिना नर भटके, भटकते रहोगे। तुम क्या हो, तुम समझ नहीं पाओगे। तुम संगम हो, ये नहीं समझ पाओगे। तुम्हारे अंदर वो अविनाशी बैठा है, ये समझ नहीं पाओगे। समझ नहीं पाओगे। लगे रहोगे खुश होने में और खुशी का भंडार तुम्हारे अंदर है। खुशी का भंडार तुम्हारे अंदर है।
कितनी सुंदर बात है कि जगह-जगह जाकर मैं जब लोगों को ये बात सुनाता हूं, लोगों को बड़ी अच्छी लगती है, क्योंकि ये बात सरल है, साधारण है और ये कहानी तुम्हारी है, ये कहानी हमारी है। जब तक हम जीवित हैं, इस कहानी को हम समझें, इस मिलन को, इस संगम को हम समझें। ये कहानी तुम्हारी ऐसी हो सकती है कि आनंदमय हो और तुम्हारा जीवन सफल हो सकता है। जीवन सफल करना, उसी को कहते हैं। और जिस दिन जीवन सफल होगा, उस दिन तुम्हारे लिए स्वर्ग ही स्वर्ग है। नरक भी यहां है, स्वर्ग भी यहां है।
अगर मैं आपको कहूं कि पहला कदम आपका आगे नहीं होगा।
ये सब सोच रहे हैं कि आगे कदम लेना है। आगे कैसे बढ़ेंगे ?
आगे नहीं लेना है, अंदर की तरफ लेना है। क्योंकि Peace — जो शांति आपको चाहिए, वह आपके अंदर है। अभी भी है। और जब आप गुस्सा होते हैं न, तब भी है और जब आप अपने को कोसते हैं किसी वज़ह से, तब भी है। और जब आप खुश होते हैं, तब भी है। जब आप दुःखी होते हैं, तब भी है और आपके अंदर है।
और पहला कदम है, सबसे पहला कदम है कि — इस बात को आप जानिए कि आपके अंदर शांति है। क्योंकि अभी तक जो कुछ सिखाया गया है आपको, वो ये है कि जो आप — जिस चीज की आपको जरूरत है, वह आपके पास नहीं है।
खिलौना जो आपको चाहिए था, वो कहां है ?
बाजार में है। वो तो जाकर लेना पड़ेगा।
एज़ुकेशन जो आपको चाहिए थी, वो कहां है ?
वो स्कूल में है। स्कूल में आपको जाना पड़ेगा।
परंतु शांति की जहां बात है, वो बाहर नहीं है, वह आपके अंदर है। और जिस दिन आप यह जान जाएंगे कि — एक, शांति आपके अंदर है और दूसरी, शांति आपकी जरूरत है, चाहत नहीं। क्योंकि चाहत आपकी बदलती रहती है। इसीलिए आपके क्लॉज़ेट में ऐसी चीजें हैं, जो एक दिन आपने खरीदी और आज आप उनको इस्तेमाल नहीं करते हैं। क्योंकि आपकी चाहत बदलती रहेंगी। परंतु जिस दिन आप पता कर लेंगे कि शांति आपकी जरूरत है, उस दिन...
क्योंकि आज लोग यही कर रहे हैं, "मैं खोज रहा हूं। मैं शांति को खोज रहा हूं।"
तो ये रूमाल मेरे जेब में है। अब ये रूमाल को कहां ढूंढ़ूं मैं ? और कितना ढूंढूं ? कहां ढूंढ़ूं ?
मैं चाहे सारे संसार की यात्रा कर लूं, परंतु ये नहीं मिलेगा मेरे को संसार में। क्योंकि मेरी जेब में है और जेब में ढूंढ़ूंगा तो तुरंत मिलेगा। तो यही बात है। तो लोग खोज रहे हैं। मैं कह रहा हूं, खोज रहे हो तो खोजते रहो। खोज लो! आज तक किसी को मिली नहीं खोजने से, क्योंकि वो तुम्हारे अंदर है।
- प्रेम रावत
मैं कौन हूं ? मैं हूं, ये मेरे को मालूम है, क्योंकि मैं स्वांस लेता हूं, मैं सोच सकता हूं, मैं देख सकता हूं। सुख और दुःख का मैं अनुभव कर सकता हूं।
ये सारी चीजें जो मेरी जिंदगी के अन्दर होती रहती हैं, ये क्यों ? क्योंकि मैं जीवित हूं। मुझे मालूम है कि अगर मैं जीवित नहीं रहता तो न मेरे को सुख का अनुभव होगा, न दुःख का अनुभव होगा।
हम अपने बारे में भूल जाते हैं कि हम कौन हैं ? मैं यहां क्यों हूं ? क्या कर रहा हूं ? क्या मैं हासिल कर सकता हूं अपने जीवन के अन्दर ?
ये है स्टेज। ये है स्टेज और स्टेज में — स्टेज के ऊपर आप हैं। और आप क्या करेंगे, क्या है आपका हिस्सा ? नाचने का है ? गाने का है ? एक्टिंग करने का है ? नहीं, एक्टिंग करने का है ? क्या करने का है ? audience कौन-सी है ? कौन हैं audience में बैठे लोग ? दुनिया कहेगी कि दुनिया है। संसार बैठा हुआ है। संसार नहीं बैठा है। कुछ लोग समझते हैं कि संसार बैठा है audience में और संसार को please करना है। संसार clap करेगा। अगर हम अच्छी एक्टिंग करें, अच्छा गाना गाएं तो संसार clap करेगा। संसार रूपी अगर कोई है तो वो अंधा है, वो कुछ नहीं देख सकता। और बहरा है, कुछ नहीं सुन सकता। और गूंगा है, कुछ नहीं बोल सकता। और न उसके हाथ हैं।
तो कौन बैठा है audience में ?
मैं आपको बताता हूं, कौन बैठा है audience में। audience में बैठा है आपका हृदय। आपका अपना हृदय जिसको प्यास है अपने बनाने वाले को देखने की। अपने अन्दर स्थित, अपने अंदर स्थित जो परमात्मा है उसको जानने की, उसका अनुभव करने की। और अगर वो प्रकट हो जाए इस show में तो आपका हृदय आपको applaud करेगा।
घट घट मोरा सांइया, सूनी सेज ना कोय।
बलिहारी उस घट की, जिस घट प्रगट होय।।
जब इस ड्रामे में जिसमें tragedy भी है — मैं नहीं कहता tragedy नहीं है, tragedy है, अज्ञान है, crises है, रोना है, सबकुछ है। पर एक possibility, एक संभावना और है। और वो संभावना है कि इस play में वो, जो अविनाशी हंस हमारे अन्दर बैठा है वो प्रकट हो। अगर वो हो गया, आपने जान लिया, आपने पहचान लिया तो बात ही दूसरी है।
एक joke है, चुटकुला है कि एक बुड्ढा आदमी रोड के पास बैठा हुआ रो रहा था। रो रहा था, रो रहा था, रो रहा था, किसी ने पूछा — क्यों रो रहा है ?
कहा कि मेरी अभी-अभी नई शादी हुई है और वो भी बहुत जवान लड़की से और बहुत खूबसूरत है वो।
तो आदमी ने कहा — भाई इसमें रोने की क्या बात है ? तेरे को तो खुश होना चाहिए।
कहा — भाई, यही नहीं, मेरा अभी नया-नया घर बना है और बहुत ही अच्छा घर है, बहुत ही सुन्दर घर है। सब जगह marble है, granite है, air-conditioned है। बहुत ही सुन्दर घर बना है।
कहा — तेरे को तो खुश होना चाहिए।
कहा — यही नहीं, मैंने अभी-अभी नई कार खरीदी है और बहुत ही बढ़िया कार है।
तो आदमी ने कहा कि भाई, ये सारी चीजें तेरे पास हैं, तो तेरे को बहुत ही खुशी होनी चाहिए। तू रो क्यों रहा है ?
तो बुड्ढा कहने लगा कि मेरे को मालूम नहीं कि मैं रहता कहां हूं। मैं ये भूल गया कि मैं रहता कहां हूं।
ये तो वो वाली बात हो गयी कि कोई आकर कहे कि मेरी याददाश्त बहुत तेज है, ये तो एक बात मेरे को मालूम है और दूसरी चीज मैं भूल गया।
तो क्या याद रखा ? क्या याद है कि तुम भी कुछ हो ?
सारी technologies हैं, जहां technology की बात है, technology से हमको बहुत प्रेम है। I love technology, latest, greatest everything, read up magazines हैं। परन्तु एक ऐसी भी तो technology होगी, जो मेरे को मेरे तक पहुंचाए। जिस technologies की मैं आज बात कर रहा हूं, जो बाहर की technologies हैं, ये तो बदलती रहेंगी। ये तो बदलती रहेंगी।
एक technology जो इस स्वांस तक मिला दे। एक technology जो उस चीज तक मिला दे, जो हमारी जिंदगी के अन्दर सबसे जरूरी है। जिसके बिना हमको नहीं मालूम कि हम रहते कहां हैं। सबकुछ होने के बावजूद भी हम भूल गए कि हम रहते कहां हैं। हम हैं कौन। और अगर यही होता रहेगा हमारी जिंदगी के अन्दर, तो हम अपनी जिंदगी के अन्दर दिशा कैसे पा सकेंगे ?
तो इस जीवन के अन्दर — इस जीवन के अन्दर, अगर हम किसी चीज को समझ सकते हैं, तो उस चीज को समझें कि हमको उस बनाने वाले ने क्या दिया है। इस स्वांस के अन्दर क्या छिपा है। इस जीवन के अन्दर क्या छिपा है।
बहुत सारे जवान लोग हैं वो कहते हैं कि हमारा टाइम नहीं है अभी। हमारा टाइम है, मस्ती लेने का। जब बुड्ढे होंगे, तब इन चीजों के बारे में सोचेंगे। ये आपका प्लान है या उसका प्लान है ? ये आपका प्लान है ? आपके प्लान में — इतने समय से इतने समय तक आप ये करेंगे, इतने समय से इतने समय तक आप मस्ती करेंगे, इतने समय से इतने समय तक आप ये करेंगे। इसके बाद आप वृद्ध होंगे। इसके बाद आप retirement लेंगे। इसके बाद आप इस संसार से जाएंगे। ये आपका प्लान है, क्योंकि वहां एक department है और उसका अपना प्लान है और जो उसका प्लान है, वही होता है। जो आपका प्लान है वो नहीं होगा। अरे! मस्ती करनी है अगर इस संसार के अन्दर, तो करो पर ऐसी मस्ती करो कि जिसमें सचमुच मस्त हो जाओ। सचमुच मस्त हो जाओ। और वो मस्ती बाहर की नहीं है। वो मस्ती है तुम्हारे अन्दर! वो सुख!
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय।
जो सुख साधु संग में, वो बैंकुंठ न होय।।
ये है! ये है वो बात! असली सुख की बात कर रहे हैं। असली आनन्द की बात कर रहे हैं।
- प्रेम रावत: