प्रेम रावत:
यह संसार जरूरतों के आधार पर चल रहा है। मनुष्य की साधारण जरूरतें हैं। भूख लगती है तो खाना चाहिए। प्यास लगती है तो पानी चाहिए। जब आदमी थक जाता है तो उसे विश्राम चाहिए। नींद आती है, सोने के लिए जगह चाहिए। इन जरूरतों के कारण संसार में कितना बिज़नेस होता है। मनुष्य ही इन जरूरतों को बनाता है। इन जरूरतों को पूरा करने के लिए हम पैसा देते हैं।
हमारी प्रवृत्ति है कि हम जीवन में एक साथ सबकुछ पा लेना चाहते हैं और अपने विचारों के साथ दुनिया में आगे बढ़ते हैं। कई बार हम अपने विचारों से दुनिया की हर एक चीज को पकड़ना चाहते हैं, परन्तु कुछ चीजें ऐसी हैं कि उनका सिर्फ अनुभव किया जा सकता है। एक साधारण उदाहरण है — जैसे भोजन। भोजन क्यों आवश्यक है ? रसोई क्यों आवश्यक है ? क्योंकि मनुष्य को खाने की जरूरत है। अगर मनुष्य को भूख नहीं लगती तो वह क्यों खायेगा ? जब मनुष्य को भूख लगती है तो उसे वह महसूस होती है। जब उसके शरीर को उन पदार्थों की जरूरत पड़ती है, जिनसे उसके शरीर का संचालन हो तो उसके लिए बनाने वाले ने मनुष्य में भूख भी बनायी। मनुष्य को भूख लगती है तो भोजन चाहिए। भोजन मिल सके, इसलिए मनुष्य ने रसोई की रचना की, ताकि वहां खाना बन सके।
मनुष्य का संगठन बल है — सोसाइटी। वही बोझ डालती है कि तुम्हारी भी कुछ जरूरतें हैं। सब लोग जरूरतों को पूरा करने के लिए हर दिन कुछ न कुछ करते रहते हैं। वे जरूरतें, जो मनुष्य की निजी जरूरतें हैं, उन्हें पूरा करने के लिए मनुष्य कभी परेशान नहीं होता है। परन्तु वे जरूरतें, जो सोसाइटी ने, जो इस दुनिया ने हमारे ऊपर डाल रखी हैं, उनको पूरा करने के लिए मनुष्य जरूर परेशान होता है। परन्तु क्या कभी आपने सोचा है कि आपकी असली जरूरत क्या है ? लोग अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए लगे हुए हैं, परन्तु यह कभी नहीं सोचते हैं कि "यह मेरा जीवन है, मैं जिंदा हूं, मेरे अंदर स्वांस आता है, मेरे अंदर स्वांस जाता है। परन्तु एक समय आएगा जब मैं जिंदा नहीं रहूंगा। मुझे नहीं मालूम कि वह समय कब आएगा, पर इतना जरूर मालूम है कि आएगा। और जबतक मैं जीवित हूं, मेरी असली जरूरत क्या है ? मेरी सारी जरूरतें तो कभी पूरी नहीं होंगी, परन्तु मैं अपने जीवन में अपनी असली जरूरत को तो पूरा करते जाऊं!"
इस संसार में सुनाने वालों की कमी नहीं है। सब सुनाते हैं, "खाली हाथ आये थे और खाली हाथ जाना है।" अगर ऐसा ही है तो फिर बनाने वाले ने हाथ ही क्यों दिए ? जब खाली हाथ आये थे और खाली हाथ जाना है, तो इन सबका का क्या फायदा ? इस शरीर का क्या फायदा ? सच्चाई क्या है ? एक समय था कि कुछ नहीं था और एक समय आएगा कि कुछ था, जो अब है और एक समय आएगा कि कुछ नहीं रहेगा। अपनी असली जरूरत को पूरा कीजिये और आपकी असली जरूरत क्या है, यह आप अपने हृदय से पूछिए, क्योंकि अनुभव का कोई विकल्प नहीं होता।
जहां घना जंगल होता है, वहां सूर्य की रोशनी नहीं पहुंच पाती है, क्योंकि पेड़ रोशनी को रोक लेते हैं और अंधेरा ही अंधेरा हो जाता है। हमारे विचार, हमारे ख्याल भी उसी वृक्ष की तरह हैं, जिसने सारी रोशनी रोकी हुई है। जब हम अपने विचारों या कल्पना के जंगल से बाहर निकलेंगे, तब रोशनी दिखाई देगी। जीवन-यात्रा में जो बोझ हमने अपने कंधों पर उठाया हुआ है, यह छोटा-मोटा बोझ नहीं है। जो हमने अपनी विचारों की दुनिया बनाई हुई है, क्या सचमुच में इससे निकलकर के हम ऐसी जगह आ सकते हैं जहां ज्ञान की रोशनी हो ?
अगर किसी पक्षी को छोटे पिंजरे से निकाल करके बड़े पिंजरे में डाल दिया जाए, तो क्या उस पक्षी को स्वतंत्रता मिल गयी ? जब तक हम अपने आपको जानेंगे नहीं, तब तक हम स्वतंत्र नहीं हो सकते। हम सब अपने आपको मानते हैं कि हम तो स्वतंत्र हैं! पर किस चीज से स्वतंत्र हैं ? स्वतंत्रता है कहां ? ऐसी स्वतंत्रता जो ख्यालों में नहीं हो, कल्पना में नहीं हो। क्योंकि 'परम स्वतंत्रता' की सचमुच कोई सीमा नहीं है। इस जीवन को सफल करने के लिए एक ऐसी स्वतंत्रता की जरूरत है, जो सबके हृदय में व्याप्त है। वह है असली स्वतंत्रता! ऐसी स्वतंत्रता, जिसे कोई छीन नहीं सकता है।
अज्ञानता ने आपका हाथ पकड़ा हुआ है। वह अज्ञानता ही आपको सताती है, वह अज्ञानता ही आपको अशांत करती है। क्या आप जानते हैं कि आपका असली स्वरूप क्या है ? यह चेहरा आपका असली स्वरूप नहीं है। उम्र के साथ यह चेहरा बदलता रहेगा। जो आँखें बचपन में अच्छा देख लेती थीं, वे देख नहीं सकेंगी। कानों के साथ भी यही होगा। जो अच्छा सुनाई देता था, वह भी धीरे-धीरे खत्म हो जायेगा। पर असली चीज क्या है ?
सबसे बड़ी अज्ञानता यह है कि आपके अंदर स्थित जो चीज है, आप उस तक नहीं पहुंच पाते हैं। हमारे अंदर जो तराजू का पलड़ा है, उसमें एक तरफ तो हृदय है, आनंद है और दूसरी तरफ सारी दुनिया है। एक तरफ सत्य है, दूसरी तरफ असत्य है; एक तरफ ज्ञान है , एक तरफ अज्ञान है; एक तरफ परम स्वतंत्रता है, दूसरी तरफ माया-मोह रूपी पिंजरा है। एक तरफ दुनिया की जगमगाहट है, चाहे वह कितनी ही नकली क्यों न हो, परंतु फिर भी मनुष्य को फंसा लेती है। तराजू के दूसरे पलड़े में है सिर्फ हृदय, जिसकी भाषा सब लोग नहीं समझते हैं। उसमें सिर्फ आनंद और वह कृपा महसूस होती है। यह हृदय आपका ही एक हिस्सा है। यह आपसे अलग नहीं है। जिस दिन इस हृदय की पुकार को सुनना शुरू करेंगे, उस दिन मालूम पड़ेगा कि स्वतंत्रता क्या होती है। तब जीवन में असली आनंद आएगा।
वह एक ऐसी स्वतंत्रता है कि उसे कोई छीन नहीं सकता है। वह एक ऐसी शांति है कि चाहे कितना भी भयानक युद्ध हो, उसे कोई भंग नहीं कर सकता है। चाहे कैसा भी संकट आये, एक ऐसी सच्चाई है कि कोई भी इस संसार के अंदर उस सत्य को झूठ नहीं बना सकता है। उस अच्छाई को समझ करके जियो। उस शांति का अनुभव करके जियो, चाहे कैसी भी परिस्थिति हो।
जीवन में असली स्वतंत्रता को पहचानिये। आपका हृदय रूपी पक्षी उड़ना चाहता है, उस अनंत आकाश में! पल दो पल के लिए नहीं, जीवन भर के लिए वह उस स्वतंत्रता को महसूस करना चाहता है, जहां चिंताएं नहीं, बल्कि सिर्फ आनंद ही आनंद हो! अगर आपने उसकी पुकार को अनसुना कर दिया तो यह जीवन भी सुना-सुना रहेगा। क्या हम विचार करते हैं कि यही मौका है, यही अवसर है ?
- प्रेम रावत
प्रेम रावत:
यह जीवन रूपी रेलगाड़ी ऐसी अद्भुत रेलगाड़ी है जो कभी रुकती नहीं है। निरंतर चलती रहती है! इसमें यात्री चढ़ते-उतरते हैं, परंतु यह यात्रियों के लिए नहीं रुकती है। हर सेकंड लगभग चार यात्री इस रेलगाड़ी पर चढ़ते हैं और दो यात्री इससे उतरते हैं अर्थात इस संसार के अंदर हर सेकंड चार व्यक्तियों का जन्म होता है और दो व्यक्ति कूच करते हैं। यह रेलगाड़ी कहीं रुकती नहीं है, इसलिए एक बार जब इस रेलगाड़ी में चढ़ गए तो चढ़ गए और जब आप उतरेंगे तो उतर जायेंगे। आपकी मंजिल क्या है ? कहां पहुंचेगी यह रेलगाड़ी ? यह दिन-रात चलती रहती है, परंतु जाती कहीं नहीं है।
अद्भुत है यह रेलगाड़ी और इसमें यात्री बैठे हैं! कोई कुछ करता है, कोई कुछ करता है, कोई कुछ समझता है और कोई कुछ समझता है। सभी यात्रियों ने अपना सामान ऐसे बाँधा हुआ है, जैसे कहीं जायेंगे, पर जहां आपको जाना है, वहां आपको इन सब की जरूरत ही नहीं है।
हम सब इस जीवन रूपी रेलगाड़ी में बैठे हुए हैं और यह रेलगाड़ी लगातार चल रही है। क्या आपको नहीं लगता है कि आप रेलगाड़ी में बैठे हुए हैं ? क्या आपको नहीं लगता है कि आप चल रहे हैं ? इसका एक प्रमाण है। अपने स्वांस को देखिये, यह चल रहा है! यह स्वांस जो आ रहा है और जा रहा है, यह है इस जीवन की रेलगाड़ी। यह आपके सफर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है! इस स्वांस को व्यर्थ मत होने दीजिये। बनाने वाला यह स्वांस मुफ्त में देता है तो इसका यह मतलब नहीं है कि इस स्वांस की कोई कीमत नहीं है। अगर यह स्वांस मुफ्त में है तो इसलिए है कि कोई इसकी कीमत अदा नहीं कर सकता। संसार के अंदर कितना भी धन हो, कोई इस स्वांस को खरीद नहीं सकता। इस स्वांस का आना-जाना ही आपके ऊपर भगवान की कृपा है! यह है भगवान का चमत्कार, जो आपके ऊपर हर क्षण हो रहा है, परंतु आप इसे समझ नहीं पा रहे हैं। आप कभी इधर देखते हैं, कभी उधर देखते हैं, पर अपने घट की तरफ नहीं देख रहे हैं।
जो स्वांस जा रहा है, वह वापिस कभी नहीं आएगा। क्या आपको मालूम है कि आज आपके कितने स्वांस निकल गए ? यह सबसे महत्वपूर्ण चीज है। यही एक चीज है, जो भूलनी नहीं है। अन्य सारी चीजें तो आप दे भी सकते हैं और ले भी सकते हैं, पर यह ऐसी चीज है जो न कोई आपको दे सकता है और न कोई आपसे ले सकता है। जो दे रहा है, वह दे रहा है। उसको स्वीकार कीजिये। अपने जीवन को सफल बनाइये, चाहे आपको कुछ भी करना पड़े। एक दिन इस स्वांस का आना-जाना बंद हो जायेगा, क्योंकि यह तो यात्रा है और चल रही है। इसका यही मौका है। जिस दिन यह स्वांस चलना बंद हो जायेगा उस दिन आप भी खत्म हो जायेंगे। आपने बड़े-बड़े प्लान बनाये हुए हैं, पर क्या इस जीवन रूपी रेलगाड़ी की यात्रा करने का भी कोई प्लान बनाया है ?
जिस बात की यहां चर्चा हो रही है, वह किसी कागज के पन्ने पर स्याही से नहीं लिखी है। यह आपके हृदय रूपी कागज पर लिखी हुई है, आपके अंदर लिखी हुई है। यह किसी मनुष्य की कृति नहीं है। यह कृति है आपके बनाने वाले की, जिसने सारे संसार की रचना की है। इस संसार के रचयिता ने अपने हाथों से आपकी हृदय की पुस्तक में कुछ लिखा है। बात यह है कि हम जीवन में अन्य पुस्तकों को तो खूब पढ़ते हैं, पर हृदय की पुस्तक को पढ़ने की कभी कोशिश नहीं करते।
इस हृदय की पुस्तक में नया लिखा हुआ है ? इस पुस्तक में लिखा हुआ है उन समस्याओं का हल, जिन्हें गवर्नमेंट हल नहीं कर सकती, जिन्हें कोई आर्मी या एयरफोर्स हल नहीं कर सकता, कोई वैज्ञानिक हल नहीं कर सकता। वह समस्या क्या है ? वह समस्या है मनुष्य के अंदर की अशांति। वह सबसे बड़ी समस्या है! किसी को धनवान बनाना आसान है, किसी को निर्धन बनाना आसान है, पर किसी के हृदय में शांति पैदा करना यह आसान काम नहीं है। इसमें आपको स्वयं भाग लेना पड़ेगा। यह आपकी जिंदगी का प्रश्न है।
अगर किसी पुस्तक को खोलो तो वह अक्सर एक तरफ मोटी और दूसरी तरफ पतली होती है। फिर पन्ने पलटते रहो तो पतला वाला हिस्सा मोटा हो जायेगा और मोटा वाला हिस्सा पतला हो जायेगा। एक-एक करके उस पुस्तक के सारे पन्ने इधर से उधर हो जायेंगे। यह जीवन भी एक ऐसी ही पुस्तक है, जिसके पन्ने एक तरफ से दूसरी तरफ तो पलटे जा सकते हैं, पर दूसरी तरफ से वापस पीछे नहीं पलटे जा सकते। इस जीवन की पुस्तक में जो कुछ भी लिखा है, अगर उसे पढ़ना है तो बड़े ध्यान से पढ़ना चाहिए। क्योंकि इसमें जो लिखा है, वह दुःख के लिए नहीं, बल्कि सुख पाने के लिए लिखा है। उस परम आनंद, परम शांति के लिए लिखा है, जो पहले से आपके अंदर मौजूद है, पर आप उससे अनभिज्ञ हैं।
प्यास भी हमारे हृदय के अन्दर है और शांति भी हमारे हृदय के अंदर है। लोग पूछते हैं कि "हृदय क्या होता है ?” वह हमारे ही पास है और हमें नहीं मालूम है। आप जरा आंखें खोलें तो प्रश्न उठेगा कि कौन-सी ऐसी चीज है, जिसने आपको शांति पाने के लिए प्रेरित किया है ? वह है आपका हृदय। हृदय अंदर से प्रेरित करता है कि अपने जीवन को सफल बनाओ। अपने अंदर जो शांति है, उसका अनुभव करो ताकि यह जीवन आनंद से भर उठे — असली आनंद से, नकली आनंद से नहीं। ऐसा आनंद नहीं, जो आज है और कल नहीं रहेगा। ऐसा आनंद कि जब भी जरूरत पड़े, तो अपने अंदर जाकर, उस फव्वारे के नीचे बैठकर, उसके शीतल जल में स्नान किया जा सके। ऐसी जगह मिल जाये तो बस आनंद ही आनंद है। यह सबकुछ मनुष्य के अंदर है। कोई ऐसी चीज नहीं है, जिससे आपके बनाने वाले ने आपको वंचित किया हो।
हृदय के अंदर राजनीति नहीं चलती है। हृदय के अंदर गवर्नमेंट की नहीं चलती है। हृदय के अंदर कोई अमीर नहीं है, हृदय के अंदर कोई गरीब नहीं है। हृदय के अंदर कोई छोटा नहीं है, हृदय के अंदर कोई बड़ा नहीं है। हृदय के अंदर सिर्फ हृदय है और उसके अंदर अपार शांति है, उसके अंदर अपार आनंद है! सबके हृदय के अंदर वह आनंद भरा हुआ है! जब हम उस आनंद तक पहुंच जायेंगे, तब हृदय की प्यास मिटेगी। उससे पहले नहीं। हृदय की प्यास किताबों से नहीं मिटेगी। हृदय की प्यास बातों से नहीं मिटेगी। यह बात सभी मनुष्यों के लिए सामान रूप से लागू है। आप यह जानते तो हैं, पर पहचानते नहीं हैं। आपको मालूम है कि आपका जीवन अमूल्य है, परन्तु आप इसे पहचानते नहीं हैं। जिस दिन पहचानने लगेंगे, उस दिन जीवन धन्य हो जायेगा। प्रश्न है कि हम पहचानेंगे कैसे ?
आप उस आनंद को ढूंढिए, खोजिये जैसे भी हो हृदय की पुस्तक को पढ़ना आना चाहिए। यह संभव होना चाहिए, क्योंकि तभी आप जीवन का असली मजा ले सकेंगे। अगर आपको सफलता न मिले तो इस हृदय की पुस्तक को पढ़ने में आपकी मदद हो सकती है। आपका हृदय आपसे क्या कह रहा है ? दुनिया की सारी बातें तो सुन लीं, पर अगर आप अपने हृदय की बात नहीं सुन पाए तो अपने आपको कभी समझ नहीं पाएंगे। वह पुकार जो आपके अंदर से आ रही है, जब तक उसे नहीं समझ पाए तो यह जीवन कैसे सफल होगा। अगर सबसे मित्रता कर ली, पर अपने से अजनबी बने रहे, तो फिर तो वही हाल हो जायेगा कि खाली हाथ आये थे और खाली हाथ इस संसार से जाना पड़ेगा।
हर एक मनुष्य का हृदय है और हर एक मनुष्य के हृदय में वह आनंद समाया हुआ है। जब बात हृदय से आती है, जब बात अनुभव से आती है, तभी बात स्पष्ट होती है। तब अज्ञानता का अंधेरा दूर होने लगता है। क्योंकि जो हृदय की चीज है, जो हृदय की बात है, जो आनंद की बात है, उससे आदमी की अज्ञानता दूर होती है। उससे आदमी के संशय दूर होते हैं। उससे आदमी के प्रश्न समाप्त होते हैं। एक तो वह चीज है, जिसे पढ़ने से आदमी के प्रश्न बढ़ते हैं और एक वह चीज है जिसको समझने से आदमी के प्रश्न काम होते हैं। विचार कीजिये कि अपने जीवन में आप क्या अपनाना चाहते हैं?
प्रेम रावत:
एक बक्सा है। उस बक्से के अंदर अनमोल चीज रखी है और बक्से में ताला लगा है।
पहले आप यह बात समझ लें कि यह बक्सा कौन सा बक्सा है ? मैं किस बक्से की बात कर रहा हूँ ? यह साधारण बक्सा नहीं है। जिस बक्से की मैं बात कर रहा हूँ, वह है – यह मनुष्य शरीर और इस मनुष्य शरीर में कुछ रखा हुआ है।
बाहर से एक बक्सा ऐसा है, जो साधारण है। एक बक्सा है, जो चांदी से जड़ा हुआ है। एक बक्सा है, जो सोने से जड़ा हुआ है। एक बक्सा है, जिसमें कारीगरों ने तरह-तरह का काम किया है। एक बक्सा है, जिसमें किसी ने काम नहीं किया है, कच्ची लकड़ी का बना हुआ है। कोई बात नहीं। बक्से के बाहर जो कुछ है, मैं उसकी बात नहीं कर रहा हूँ। मैं उस चीज की बात कर रहा हूँ, जो इस बक्से के अंदर है।
इस मनुष्य रूपी बक्से के बारे में भी समझ लीजिये कि इस बक्से के कुछ नियम हैं। यह बक्सा भी प्रकृति के नियमों में बंधा हुआ है। एक दिन यह बक्सा बना और एक दिन यह बक्सा नहीं रहेगा। जबतक यह बक्सा है, तबतक इसके अंदर रखी हुई चीज उपलब्ध है। जिस दिन यह बक्सा नहीं रहेगा, उस दिन वह अंदर रखी हुई चीज भी नहीं मिलेगी। पर जबतक यह बक्सा है, इसके अंदर एक ऐसी चीज रखी हुई है, जो अनमोल है। चाहे किसी ने इस पर कुर्ता पहन रखा हो या किसी ने सूट पहन रखा हो, किसी ने टाई पहन रखी हो, किसी भी तरीके से इसको सजाया हुआ हो। इस बक्से के अंदर जो चीज रखी हुई है, मेरा मतलब उससे है।
आजतक तो लोग बक्से के बाहर क्या है, इस बारे में सोचते आये हैं। बक्सा कैसा होना चाहिए, लोगों ने इसके लिए रीति-रिवाज बनाये हैं। किस तरीके से इस बक्से को रखना चाहिए ? इन्हीं नियमों को बनाते-बनाते बड़े-बड़े देश बन गए; बड़े-बड़े धर्म बन गए; बड़े-बड़े कानून बन गए – इस बक्से के कारण। अगर यह बक्सा नहीं होता तो कानून बनाने की कोई जरूरत नहीं होती, देशों की कोई जरूरत नहीं होती, इसको सजाने की कोई जरूरत नहीं होती, कोई अमीर नहीं होता और कोई गरीब नहीं होता।
बक्सा हैं आप और अनमोल चीज है आपके अंदर। अज्ञानता का ताला लगा हुआ है। ज्ञान की चाबी मेरे पास है। अगर किसी को चाहिए तो मैं उसे दे सकता हूँ। मैं बात कर रहा हूँ 'शांति' की, मैं बात कर रहा हूँ 'सच्ची खुशी' की। अगर मनुष्य को कुछ भी करना नहीं आता हो, तब भी वह अपने हृदय में उस सच्ची खुशी का अनुभव कर सके तो इतना ही पर्याप्त है! इसके बाद जब संतोष हो गया, जब हृदय में शांति का अनुभव मनुष्य ने कर लिया तो यह मनुष्य के लिए सबसे बड़ी चीज है।
प्रेम रावत:
इस संसार में हम सभी आनंद चाहते हैं। दुनिया हमें बताती है कि जीवन में आनंद कैसे मिलेगा ? यह दुनिया हमें हमारी चाहतों के बारे में बताती है कि हमारी यह भी चाहत है, वह भी चाहत है। पर सचमुच में हमारी असली चाहत क्या है। हम अपना जीवन किस प्रकार सफल कर सकते हैं ?
इस संसार में बनाने वाले ने मनुष्य को उपहार में बहुत कुछ दिया है। उसने हमें आँखें दी हैं, इन आंखों से हम देख सकते हैं। पर हम क्या देखते हैं इन आँखों से, यह हम पर निर्भर करता हैं। इन आँखों से हम सुंदर चीजों को भी देख सकते हैं और बुरी चीजों को भी देख सकते हैं। कानों से हम सुन सकते हैं, पर हम क्या सुनते हैं, यह हम पर निर्भर करता है। इस शरीर में स्वांस आता है, स्वांस जाता है और हमें फिर एक दिन का मौका मिलता है। इस मौके का लाभ उठाना हम पर निर्भर करता है।
एक कहानी प्रचलित है। एक धोबी था। वह बहुत गरीब था। एक दिन सोने की वर्षा हुई। उस दिन वह अपने घर पर था। उसने देखा कि घर में हर जगह सोने की वर्षा हो रही है। उसने सोचा कि अगर घर में सोने की वर्षा हो रही है तो घाट पर भी सोने की वर्षा हो रही होगी और घर में तो कोई आएगा नहीं क्यों न मैं पहले घाट पर जाऊं वहां पर पहले सोना एकत्र कर लूं। इसी ख्याल के साथ वह घाट पर पंहुचा। जबतक वह घाट पंहुचा, तब तक लोगों ने सारा सोना उठा लिया था। उसने सोचा कोई बात नहीं, मेरे घर में तो सोने की वर्षा हुई है। जैस ही वह अपने घर पंहुचा, उसने पाया कि वहां भी सारा सोना लोगों ने समेट लिया था। तभी से यह कहावत बन गयी, "न घर का रहा न घाट का।"
उस धोबी को जो मौका मिला, वह समय रहते उसका लाभ नहीं उठा सका। कहीं हमारे साथ भी ऐसा न हो जाए। हमारी एक-एक स्वांस में आनंद रुपी अनमोल खजाना भरा है। यह बनाने वाले की तरफ से मनुष्य के लिए उपहार है, पर हम अज्ञानतावश उसे ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं और संसार की अन्य वस्तुओं में उस आनंद को पाने का प्रयत्न कर रहे हैं।
क्या हम सबके हृदय में सचमुच कोई ऐसी चीज विद्यमान है जो हमें सुख और आनंद की ओर ले जाए ? अगर यह सत्य है तो इस संसार के अंदर हम चाहे कुछ भी कर लें, पर जबतक हमारे हृदय में संतुष्टि नहीं होगी, तब तक कोई लाभ नहीं है। एक सरल उदाहरण है कि अगर किसी व्यक्ति के जूते में कंकड़ गड़ रहा है और कंकड़ की वजह से पैर में दर्द का अनुभव हो रहा है! ऐसा व्यक्ति चाहे किसी भी डॉक्टर के पास चला जाए, पर जबतक वह अपने जूते से कंकड़ को नहीं निकाल लेगा, तबतक उसका दर्द खत्म नहीं हो सकता। हम लोगों ने भी अपनी जिंदगी के अंदर बहुत बड़े-बड़े कंकड़-पत्थर डाल रखें है और हृदय की बात कोई नहीं सुनना चाहता है। भगवान ने मनुष्य को हृदय दिया है, क्योंकि उसे इसकी जरूरत थी। अगर सभी चीजें मनुष्य अपनी बुद्धि से ही पकड़ सकता, तो फिर हृदय की कोई जरूरत नहीं होती। मनुष्य अपने हृदय से सिर्फ एक चीज को पकड़ सकता है वह है परम आनंद! कार चलाने के लिए हृदय की नहीं दिमाग की जरूरत होती है उसी प्रकार परमसुख को आप बुद्धि से नहीं समझ सकते, हृदय से समझ सकते हैं। जब हृदय मिला है तो उसका भी इस्तेमाल कीजिये।
हमारे भीतर एक महत्वपूर्ण तत्त्व है और वह है परम आनंद! उस परमसुख शांति और आनंद का स्वयं अनुभव किया जा सकता है। अगर आप जीवित हैं तो इसका सहज ही आनंद उठा सकते हैं उसे खोजने की जरूरत नहीं है। ढूंढने से वह मिलेगा नहीं, क्योंकि वह परमसुख पहले से ही आपके अंदर है, अर्थात आपके पास है।