मन के बहुत तरंग है, छिन छिन बदले सोए, एक ही रंग में जो रहे, ऐसा बिरला कोय।"
समझ लो, किस चीज के पीछे भागना है। भागना तो तुमको है, भागना तो तुमको है, पर कहां भागोगे? किसके पीछे भागोगे? एक वो, जो तुम्हारे हृदय में विराजता हैं, उससे अपना संबंध बनाओगे, उससे अपना तार जोड़ोगे, तो वो चीजें, जो तुमको दुखी करती थीं, वो होंगी पर तुमको दुखी नहीं होना पड़ेगा। इसका ये मतलब नहीं है कि अगर तुम अपने पिता से प्रेम करते हो, तो तुम्हारे पिता इस संसार से कभी नहीं उठेंगे। नहीं। उठेंगे!ये तो इस संसार की रीत है,तुम्हारे मां बाप, तुम्हारे सामने ही जाएंगे। ना तो उनको दुख होगा कि तुम पहले चले गए, और वो दुख बहुत ही बड़ा दुख होता है।
तो भाई वो चीज़ें, जिनको तुम समझते हो कि ये तुमको दुखी करती हैं, और तुम उनको रोकने की कोशिश करते हो। उस रोकने में अपना सारा समय, जो अपना टाइम बर्बाद करते हो, उसमें अपना टाइम बर्बाद करने की तुमको जरूरत नहीं है, अगर तुम वो कनेक्शन उसके साथ बनाए रखो। वो चीजें होंगी। विद्वान कौन है? विद्वान कौन है? जिसके लिए सुख भी और दुख भी, वो दोनों की ही जो टेंपरेरीनेस है, उसको देखता है। ना सुख रहेगा ना दुख रहेगा। जब दुखी हो, तो जानो की थोड़ी देर इंतजार करो, सुख आएगा। जब सुख चल रहा है तो थोड़ी देर इंतजार करो, दुख आएगा। थोड़ी देर और इंतजार करो, सुख आएगा। थोड़ी देर और इंतजार करो, दुख आएगा। ये तो एक चक्कर है इस चरखे का, जो चलता रहता है, चलता रहता है, चलता रहता है।
तो मैं जीवन में उम्मीद को कैसे समझूँ ? मैं उम्मीद को कैसे पूरा करूँ ? बहुत आसान है। अब चार बिन्दु हैं और मैने इन चार बिंदुओं के बारे में सोवेटो में भी बात की थी।
खुद को जानने से शांति मिलेगी। और बाकी तीन बिंदु आपके जीवन की गुणवत्ता बढ़ाएंगे। आपको ख़ुशी देंगे।
तो दोबारा, पहला अंक है — खुद को जानना।
दूसरा अंक है — जीवन में कृतज्ञता होना।
तीसरा अंक होगा — दूसरे लोग क्या सोचते हैं, इसके बारे में मत सोचिये।
तो "हे भगवान!" जानते हैं, आपको समझना होगा, वो इंसान आपके बारे में नहीं सोच रहा। जानते हैं क्या सोच रहा है ? वो ये सोच रहा है कि बाकी लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं। वो आपके बारे में नहीं सोच रहे। और बस आप इस खेल में फंसे हुए हैं कि वो इंसान आपके बारे में क्या सोच रहा है। उन्हें फर्क नहीं पड़ता। उन्हें वाकई फर्क नहीं पड़ता। पर हम ये सब बना लेते हैं। तो जो भी...
और फिर चौथी चीज़ है — हर बार आप विफल हों, विफलता को अपनाइये नहीं। ये है उम्मीद के बारे में और लोग मुझसे पूछते हैं हर बार, "जब मैं विफल होता हूँ, मुझे उसे अपनाना नहीं? पर मैं विफलता को पूरे जीवन अपनाता आया हूँ। मैं कैसे न अपनाऊं उसे ?"
बात ये है, जब आप बचपन में चलना सीख रहे थे, आप कई बार गिरे। कई बार, क्योंकि ये एक अजीब स्थिति है। आप, आप सीखना ... आप सीखना चाहते थे कि कैसे चलें। बिलकुल, आप पढ़ नहीं सकते और आपको अपनी माँ की आवाज़ पसंद है पर समझते नहीं हैं कि वो क्या कह रही है। और आप यहां हैं। आपको वो करना है जो आपने पहले कभी नहीं किया। और आपको कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। आप नहीं जा सकते अपने iPad पर या YouTube पर और लिखने की कोशिश करें "मुझे चलना सिखाइये"। क्योंकि आपको तो लिखना भी नहीं आता। और अब ये आपके ऊपर है। तो आप उठते हैं, हिलते हुए, काफी ज्यादा, क्योंकि अब तक आपकी टांगें, ये मांसपेशियाँ चलने लायक नहीं हुई हैं। आप उठते हैं और हिल रहे हैं, आप कदम लेने की कोशिश करते हैं और गिर जाते हैं।
और अगर यही आपको आज करना होता, आप कहते, "कोशिश की, मुझसे नहीं हुआ। मुझे उस बारे में बात नहीं करनी।"
है न ? बस, रुक जाते। विफलता स्वीकार लेते। ख़त्म। दरवाज़ा बंद।
"मुझे याद मत दिलाइये। ये बुरा दिन है, बहुत खराब दिन। मुझे याद नहीं करना। सफलता नहीं मिली।"
क्योंकि आपने विफलता को नहीं स्वीकारा, आपको उम्मीद नज़र आई और आप उठे और आपने फिर कोशिश की। फिर भी नहीं हुआ। आप फिर विफल रहे, पर फिर भी उसे नहीं अपनाया। आपके पास क्या बचा था ? जब आप विफलता को नहीं अपनाते, आपके पास क्या बचेगा ? बचेगी सिर्फ उम्मीद। और इस पूरे वक्त, क्योंकि आपने उम्मीद को अपनाया और विफलता को ठुकराया।
जैसे ही आप विफलता से "विफल" हटा लेते हैं, विफल खुद में इतना ताकतवर शब्द नहीं है, पर अगर विफलता और विफल को साथ रखते हैं तो वो सबकुछ है। सबकुछ है!
पर आप असफल होंगे, क्योंकि जीवन में हर काम के लिए अनुदेश नहीं है। जीवन में ऐसी बातें होंगी आपके साथ और आपके आस-पास जिनका आप सामना करेंगे, जो आपने पहले नहीं देखीं हैं। और या तो आप जल्दबाज़ी में हों, वो फैसला लेते हैं या फिर बिना जानते ही आप फैसला ले सकते हैं, जो गलत हो और आप विफल हो जाएं। और विफल हुए, और ये ठीक है दुनिया में कुछ नहीं बदला। दुनिया में किसी ने कुछ नहीं कहा। नहीं, कुछ नहीं बदला। उठिये और चलिए, ये आप पर है या वहीं रहिये, ये भी आप पर है।
— प्रेम रावत
प्रेम रावत
हम यह सोचें कि हमको यह जो जीवन मिला है, ये किस तरीके से हम इसको पूरा कर सकें, किस तरीके से इसको सफल कर सकें।
परंतु इस बारे में ज्यादा लोग नहीं सोचते हैं। सोचते ये हैं लोग कि हमारी उन्नति कैसे हो ? जब उन्नति पहले से ही हो रखी है पर समझ नहीं पा रहे हैं, देख नहीं पा रहे हैं, जान नहीं पा रहे हैं, तो उन्नति होगी कैसे?
भगवान से आशीर्वाद मांगते हैं लोग, पर भगवान ने जो आशीर्वाद पहले से ही दिया है, उसको स्वीकार करने के लिए कोई तैयार नहीं है, तो फिर आशीर्वाद का फल क्या होगा ? क्योंकि आनंद चाहिए मनुष्य को। किसी भी रूप में उसको आनंद चाहिए। परंतु अगर उसके जीवन के अंदर सबकुछ है, और आनंद नहीं है तो उसको यही लगेगा कि मेरी जिंदगी सूनी है। सूनी है!
सारी आशाओं का कुंआ, जब मनुष्य के अंदर पहले से ही है, तो यह कैसे संभव है कि मनुष्य निराश हो जाए? आदमी समझे, सोचे, देखे, अनुभव करे कि जिस चीज की उसको जरूरत है, जिस चीज की उसको प्यास है, जिस चीज की उसको चाह है सबकुछ उसके पास है।
Text on screen : तनाव में आकर आज बहुत से युवा आत्महत्या कर लेते हैं, इसे कैसे रोका जा सकता है ?
प्रेम रावत:
यह बहुत ही गंभीर सवाल है। क्योंकि अगर आप गुब्बारे में फूंक मारते रहेंगे, मारते रहेंगे, मारते रहेंगे, मारते रहेंगे, आपको अच्छी तरीके से मालूम है कि उस गुब्बारे के साथ क्या होगा। फफ्फ! सोसाइटी दो आँसू बहाने के लिए तो तैयार है, पर ये समस्या के बारे में कुछ करने के लिए तैयार नहीं है। सक्सेस की फूंक ऐसी मार दी है लोगों के पीछे, ऐसी — और उन बच्चों के पीछे, शुरुआत से — तुझे कुछ बनना है, तुझे कुछ बनना है, तुझे कुछ बनना है, तुझे कुछ बनना है, तुझे कुछ बनना है।
जब आप कह रहे हैं, ‘‘तुझे कुछ बनना है’’ तो उसका तो — एक बात तो स्पष्ट हो गयी उसके दिमाग में कि मैं कुछ हूं नहीं। तो जब यह बात किसी बच्चे के दिमाग में स्पष्ट हो जाती है कि ‘‘मैं कुछ हूं ही नहीं, मेरे को कुछ बनना है तो जब वो चीज, जो मेरे को बनने के लिए चाहिए, वो खतम हो गयी तो मैं भी खतम हो गया।’’
ये बीमारी बच्चों की नहीं है। ये बीमारी हमारी सोसाइटी की बनाई हुई है। और जब एक भी बच्चा अपनी जिंदगी को खतम करने के लिए मजबूर होता है तो ये तो wakeup call है सारी सोसाइटी के लिए। और न सिर्फ हिन्दुस्तान की सोसाइटी के लिए, सारे संसार की सोसाइटी के लिए! बच्चों का काम खुदकुशी करना नहीं है। बच्चों का काम है — इस जीवन को enjoy करना! उनको प्रेरित करना इस जीवन के बारे में, जो वो बचपना खो चुके हैं —बुजुर्ग लोग — ये तो उल्टी गंगा बह रही है यहां। तो सक्सेस, सक्सेस, सक्सेस, सक्सेस, सक्सेस! और मैं सबसे कहता हूं — तुम पहले से ही सक्सेसफुल हो! ये चीजें तुमको सक्सेसफुल नहीं बनाएंगी। तुम्हारा सक्सेस तुमसे शुरू होता है। और तुम्हारा सक्सेस एक फूल के माफ़िक है। एक फूल के माफ़िक है! इसको पानी दो, अपने आप खिलेगा। उसकी पत्तियों को खींचने से फूल नहीं खिलेगा और चाहे कितनी भी कोशिश कर लो! उस फूल को खिलने दो। ये सक्सेस की बीमारी बहुत ही खराब है। सक्सेस तो पहले से ही है।
जिस दिन आपने स्वांस लिया, आप सक्सेसफुल हुए। और जबतक आपके अंदर स्वांस आ रहा है, जा रहा है, आप सक्सेसफुल हैं। पर मां-बाप हैं — ‘‘तू मेरी बेटी है।’’ और मैं तो ये कहूंगा आपसे — क्योंकि ये बड़ी निजी बात है मेरी। पर मेरे साथ ये हुआ। और मैंने साफ-साफ कहा — चाहे कुछ भी हो, कुछ भी हो — बुरा समय आए, अच्छा समय आए, कुछ भी हो — बेटी! तेरा-मेरा जो संबंध है — तू भी प्रण कर, मैं भी प्रण करता हूं कि ‘‘कुछ भी हो, हम इस संबंध को बदलने नहीं देंगे। चाहे कुछ भी आए।’’ तो ये कहां गया ?
मां, बेटी! बाप है, अपने जीवन में संघर्ष कर रहा है! और वो नहीं चाहता कि मेरी बेटी भी ये संघर्ष करे। तो उसके अंदर फूंक क्या मार रहा है ? उल्टी फूंक मार रहा है। ‘‘सक्सेसफुल! मेरे जैसा मत बनना! मेरे से ज्यादा मेहनत करना!’’ मेहनत करने से नहीं — वो लोग सक्सेसफुल हैं, जो इस सारी जिंदगी को दोनों हाथों से बटोरते हैं, समेटते हैं। वो करना नहीं सिखाया।
आत्महत्या करने के लिए कितना अंधेरा चाहिए! कितना अंधेरा चाहिए! ये देखिए आप कि आदमी कोई — मैंने बहुत सोचा इस बारे में कि आदमी को जीने में और मरने में कोई अंतर नहीं आ रहा है। मतलब, बत्ती इतनी बुझ गई है, इतना अंधेरा हो गया है कि वो मोमबत्ती, जो जलनी चाहिए, वो बुझ गई है। हम सबको कोशिश करनी चाहिए कि वो मोमबत्ती कभी न बुझे। कभी न बुझे! और जबतक सभी मिलकर के उनकी मदद नहीं करेंगे — स्कूल तो बना देते हैं। स्कूल तो बना देते हैं, पर उस स्कूल में पढ़ाया क्या जा रहा है ? बच्चों की समझ में भी आ रहा है या नहीं ? इम्तिहान के पेपर तो बना देते हैं, पर वो बेचारे पास कैसे होंगे ? क्या पढ़ाया जा रहा है बच्चों को ?
अब देखिए! एक मैं documentary देख रहा था, उसमें साफ है। तो एक country है। उसमें level of education इतना ऊंचा नहीं था। तो उन्होंने कहा, कुछ करना चाहिए। तो उन्होंने कहा, ‘‘ठीक है! बदल देंगे!’’ बदल दिया उन्होंने। क्या बदल दिया ? गृह-कार्य खतम! मैंने कहा, ‘‘ऐऽऽऽ! ऐंऽऽऽ! ऐंऽऽ! गृह-कार्य खतम!’’ और स्कूल के जो घंटे हैं, वो बहुत ही कम कर दिए। बहुत ही limited, बहुत ही कम! और emphasis — जाओ, खेलो!
हुआ क्या ?
बच्चे दिल भर के खेलते थे। और जब स्कूल में आते थे तो उनके लिए ये नहीं है कि यहां भी खेलते रहेंगे। नहीं। खेल वहां हो गया, अब पढ़ेंगे! ध्यान देने लगे। लेवल ऑफ एजुकेशन उसका आया। और फिर उनको मालूम है अच्छी तरीके से कि ध्यान दे दिया, अब फिर जाकर के खेलेंगे। ये हम एक दूसरे से क्यों नहीं सीख पाते ? मतलब, ये तो facts हैं! affection नहीं है, ये तो facts हैं। वो चीजें, जिससे सबका भला हो — काहे के लिए हम implement नहीं कर पाते हैं ? ऐसी-ऐसी चीजें implement करने के लिए हम तैयार हैं, जिसमें सिर्फ चंद का फायदा हो। पर ऐसी चीजें नहीं, जिसमें सबका फायदा हो।
तो ये समस्या बहुत ही गंभीर समस्या है! और एक बच्चे का आत्महत्या करना, बहुत ज्यादा है! एक का भी नहीं होना चाहिए! ये उम्र नहीं है उन चीजों की। अंधेरे की उम्र नहीं है, ये उजाले की उम्र है। और अगर जिस सोसाइटी में ये हो रहा है, तो ये समझिए कि उस सोसाइटी में भी मोमबत्तियां बुझ रही हैं। किसी के पास वो मोमबत्ती जलाने के लिए जली हुई मोमबत्ती नहीं है। कितना जरूरी है कि जलती हुई मोमबत्ती हो, ताकि और लोग भी उससे जला सकें। और ये बहुत ही, बहुत ही जरूरी बात है कि — जब — देखिए! आशा एक ऐसी चीज है कि जब आशा हमारी जिंदगी से चली जाती है तो अंधेरा बहुत गंभीर हो जाता है। और आशा हमारी जिंदगी से कभी नहीं जानी चाहिए। आशा की हमको जरूरत है। क्योंकि जब आशा चली जाती है तो निराशा बैठ जाती है। जब निराशा बैठ जाती है तो अंधेरा हो जाता है। जब अंधेरा हो जाता है तो फिर दिखाई नहीं देता है, कहां जा रहे हैं ? और ऐसी ठोकर कि जब जिंदगी और अंधेरे में भी कोई अंतर नहीं दिखाई देता है तो फिर सबकुछ खतम!
प्रेम रावत:
किस चीज से तुम्हारा संबंध है ? किस चीज से तुम्हारा तार जुड़ा हुआ है ? उस चीज से अगर तुम्हारा तार जुड़ा हुआ है, जो सत्य है, जो तुम्हारे अंदर है, जो अविनाशी है तो फिर चाहे कुछ भी हो बाहर, कुछ भी हो बाहर, कुछ नहीं होगा तुमको। क्योंकि तुम्हारा धैर्य अंदर से आयेगा। अपने अंदर उन चीजों को प्रोत्साहन दो, जो अच्छी चीजें हैं, जो सुंदर चीजें हैं, जिनसे आनंद मिलेगा। हृदय को आनंद मिलेगा।
तो शांति का अनुभव तो हर एक व्यक्ति कर सकता है। हर एक व्यक्ति कर सकता है, चाहे किसी भी परिस्थिति में क्यों न हो।
‘‘लोग तो कोसते हैं अंधेरे को, पर अंधेरे को कोसने से उजाला नहीं होगा। दीया जलाने से उजाला होगा।’’
अपने अंदर का दीया कभी जलाया ?
अपने अंदर का दीया जलाओ! अपने अंदर का तुम दीया जलाओगे तो फिर अंधेरे से डरने की क्या जरूरत रहेगी ?
जबतक स्वांस चल रहा है, अभी भी कुछ है। और जो है, वो सबसे शक्तिशाली है। उसको चोर नहीं चुरा सकता। उसको बॉउन्ड्रीज़ अलग नहीं कर सकती। उसको बड़े से बड़े देश, उसको नहीं ले सकते। वो तुम्हारा है, तुम्हारा रहेगा। जबतक ये स्वांस चल रहा है, वो तुम्हारा धन है। असली धन! असली धन वो है!