6 सितंबर को फ़ोकस 5 कार्यक्रम इस अनुस्मारक के साथ आगे बढ़ा कि जीवन का उद्देश्य फलना-फूलना है, न कि सिर्फ़ जीवित रहना। क्या फायदेमंद है, इस बात पर ध्यान केंद्रित करने का प्रोत्साहन देते हुए उन्होंने कहा कि जो व्यर्थ है उसे छोड़ दें, ताकि अपने भीतर जो सुन्दर और मनमोहक स्थिति है उस पर ध्यान आकर्षित करें। जहां कोई भय, संदेह या ईर्ष्या न हो वहां ध्यान केंद्रित करें।
श्री प्रेम रावत जी ने भगवान श्री कृष्ण के शब्दों का उल्लेख करते हुए कहा, "जीवन में जिसका सर्वाधिक स्मरण किया है, वही आपको अपने अंतिम क्षणों में याद रहेगा।" फिर प्रश्न पूछते हुए कहा कि, "क्या हमें कृतज्ञता याद है या हम केवल समस्याओं का समाधान खोजने की चेष्टा में लगे हैं ?"
यह मानते हुए कि पिछले कुछ वर्षों में कई लोग अपने प्रियजनों की हानि के साक्षी बने हैं, श्री प्रेम रावत जी ने दुख त्याग कर अपने प्रियजनों का जश्न मनाने का प्रोत्साहन दिया और यह भी कहा कि उन्हें यादों में जीवित रखें - अपने ह्रदय में उनका जश्न मनाएं। उन्होंने व्यावहारिक दृष्टिकोण जोड़ा कि आप उनके अस्तित्व का जश्न दुखी रह कर नहीं मना सकते।
अमारू में दूसरे दिन के सत्र में, 57 देशों से आये हुए 2,800 से अधिक प्रतिभागियों को श्री प्रेम रावत जी द्वारा आत्म-ज्ञान की तकनीकों को दोहराने का और उन्हें सुनने का अनूठा अवसर मिला।
श्री प्रेम रावत जी द्वारा आयोजित इस ज्ञान दोहराव कार्यक्रम के प्रारंभिक अंश में, विश्व भर से 2,000 अतिरिक्त प्रतिभागी और जुड़े। यह सत्र समकालिक हिंदी अनुवाद के साथ अंग्रेजी में प्रसारित किया गया था।
श्री प्रेम रावत जी के साथ "फोकस 5" की शुरुआत हुई। वास्तविकता क्या है और हमारे हृदय की आवश्यकता क्या है; उन्होंने इस विषय पर ध्यान केंद्रित करने का प्रोत्साहन दिया। संशय की प्रकृति पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि संशय कैसे चिंता और भय की ओर ले जाता है। उन्होंने व्यक्त किया कि हमें अपने हृदय को स्पष्ट रखना सीखना चाहिए अन्यथा संदेह होगा।
श्री प्रेम रावत जी ने स्वीकार किया कि जीवन हमेशा सरल नहीं होता है, किन्तु इस जीवन के लिए स्वयं को कृतज्ञता से भरना याद रखना चाहिए। जब तक हम जीवित हैं, तब तक सब कुछ ठीक है, और हम अपनी क्षमता पर भरोसा कर सकते हैं।
हमारा लक्ष्य : टेक्नोलॉजी और ऐसी चीजें जो हमें वास्तविकता से दूर ले जाती है, उन पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय हमें स्वयं के संपर्क में रहना चाहिए । श्री प्रेम रावत जी ने साझा किया कि "समय के चोर" के विरुद्ध सचेत होना ही एकमात्र सुरक्षा प्रणाली है क्योंकि जो समय वो हमसे चुरा लेता है - उसे हम दोबारा पा नहीं कर सकते।