मेरे श्रोताओं को, मेरा नमस्कार। तो कुछ दिनों के बाद आपसे, फिर ये वीडियो बना रहा हूँ आपके लिए। मैं इंग्लैंड गया था, और वहां दो प्रोग्राम किये। और अब वापस आया हूँ, और फिर अब तैयारी हो रही है जर्मनी जाने की। वहां भी दो प्रोग्राम होंगे, उसके बाद कुछ और जगह हैं जहाँ इंतेज़ाम हो रहा है और मैं कोशिश कर रहा हूँ जितनी कर सकता हूँ कि आप तक यह वीडियो भी बनाता रहूँ और ये प्रोग्राम भी करता रहूँ, इधर-उधर जाना भी है।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह मौका है एक चीज को समझने का, एक बात को समझने का —जैसे ब्रह्मानंद जी ने कहा कि "मुझे है काम ईश्वर से, जगत रूठे तो रूठन दे" — तो वह कह रहे हैं कि मेरा संबंध किसी और से है। मैं यहां क्यों आया हूँ वो कारण जो दुनिया समझती है, वह मेरा कारण नहीं है।
अभी जब मैं इंग्लैंड में गया था तो यही बात मैंने लोगों के आगे रखी कि तीन चीजें हैं — एक वो है, जो था, है और रहेगा। तो एक तरफ तो वो है अविनाशी — अविनाशी का मतलब ही यह है उसका कभी नाश नहीं होता है। वो था, है और रहेगा। और एक तरफ आप हैं, जो नहीं थे, अब हैं और आगे नहीं रहेंगे। एक तरफ तो अविनाशी है, एक तरफ आप हैं और एक तरफ एक तीसरी चीज है, और वह क्या है ? वो है यह माया! वो है यह दुनिया — सारा इसमें सब कुछ आ गया। तो इसके लिए क्या कहें!
अब सारा का सारा चक्कर यहीं खत्म होता है — यहीं से चालू होता है, यहीं खत्म होता है। जो संत-महात्मा हैं वो कहते हैं कि “ये कुछ नहीं है” और जो दुनिया के लोग हैं कहते हैं “यही है सब कुछ और कुछ नहीं है।” पर इसकी क्या परिभाषा है — यह जो माया है इसकी क्या परिभाषा है! तो इसकी परिभाषा है, (किससे लें, पर किसी भी तरीके से आप लीजिए) इसकी परिभाषा यह है कि ये नहीं थी, ये नहीं थी। संत-महात्माओं की बात सुनें तो वह कह रहे हैं कि ये नहीं है और वह तो सबको मालूम है कि ये आगे भी नहीं रहेगी। तो जैसे वह अविनाशी है बिल्कुल उसका उल्टा यह माया है - ना थी, ना है, ना रहेगी।
अविनाशी - है, था, है और रहेगा और तुम - नहीं थे, हो और नहीं रहोगे। इसमें मौका पड़ता है कि तुम्हारा तार किससे बंधा है! अगर तार बंधा है माया से, कैसे ? ब्रह्मानंद जी कहते हैं -
कुटुम्ब परिवार सुत दारा, माल धन लाज लोकन की।
हरि के भजन करने से, अगर छूटे तो छूटन दे।।
मतलब, अगर मैं अपना तार उसके साथ जोड़ना चाहता हूँ , जो था, है और रहेगा। और अगर यह छूट भी जाए, जो झूठ है यह छूट भी जाए , झूठ छूट जाए - कोई बात नहीं, क्योंकि करना क्या चाहता हूँ मैं —
बैठ संगत में संतन की, करूँ कल्याण मैं अपना।
लोग दुनिया के भोगों में, मौज लूटें तो लूटन दे।।
क्योंकि यह है नहीं कुछ और इसी में कुछ ना होने में भी लोग मौज ले रहे हैं, आनंद ले रहे हैं — "मैं यह बन गया, मैं वो हो गया, मेरा ये आ गया, मेरा वो आ गया, देखो यह मेरा सर्टिफिकेट है, यह मेरा वो है, यह मेरा वो है।" अब सर्टिफिकेट का करोगे क्या ? हिंदुस्तान में, भारतवर्ष में अगर आप हिंदू हैं तो आपका दाह-संस्कार होगा। तो क्या अपने सर्टिफिकेट को साथ ले जाओगे) , तो वह जल जाएगा, वह तो राख हो जाएगा। कैसे हो गया!
प्रभु का ध्यान धरने की, लगी दिल में लगन मेरे।
प्रीत संसार-विषयों से, अगर टूटे तो टूटन दे।।
पर इस बात को, यह जो आखिरी पंक्तियां हैं इस पर जरा ध्यान दीजिए कि — धरी सिर पाप की मटकी, धरी सिर पाप की मटकी — अब इस मटकी में बहुत कुछ आ गया। इसमें अज्ञानता भी है — अज्ञानता — सबसे बड़ी तो अज्ञानता यही है कि हम समझते हैं कि यह सारी दुनिया कुछ है; जब यह दुनिया नहीं थी, ना है, ना रहेगी। पर कुछ लोग हैं जो कहेंगे, "नहीं, नहीं ऐसा नहीं है, ऐसा नहीं है।" क्या है, कैसा है? लोग कहते हैं — दो टाइम का खाना चाहिए, तीन टाइम का खाना चाहिए। ठीक है, तीन टाइम का आपको खाना चाहिए। आप मनुष्य हैं आपको पानी की भी जरूरत है, भोजन की भी आपको जरूरत है और छत की भी आपको जरूरत है।
एक समय था, एक समय था जब आप भोजन पाने के लिए बीज बो करके उसमें से जो फसल निकलती थी उसको काट के उसका अपना खाना बनाते थे। एक ऐसा समय था जब आप पानी पीते थे और वह पानी नलके से नहीं आता था, बोतल से नहीं आता था, वह झरने से या नदी से उससे पीकर आप अपनी प्यास बुझा लेते थे। आज अगर आपको भोजन चाहिए, तो कहां, कैसे-कैसे होगा ? घर में, माइक्रोवेव ओवन की जरूरत है, प्रेशर कुकर की जरूरत है, गैस की जरूरत है।
एक जमाना था आपको बीज की जरूरत थी। आज आपको बीज की जरूरत नहीं है खाना बनाने के लिए। आपको जरूरत है माइक्रोवेव ओवन की, आपको जरूरत है गैस की, आपको जरूरत है गैस-सिलेंडर की और अगर आपके घर में बिजली का है तो आपको जरूरत है जनरेटर की या बिजली की। पर मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूँ क्या आज भी पानी आपकी प्यास नहीं बुझाता है ?आज भी क्या पानी आपकी प्यास नहीं बुझाता है! जो खाना आप खा रहे हैं जिसको आप माइक्रोवेव में बनाते हैं या उसको आप गैस के चूल्हे पर बनाते हैं, कड़ाही में डालकर बनाते हैं, कैसे भी बनाते हैं, क्या वह धरती से नहीं उपजा है ?
हां, जिस गाड़ी में उसको रखकर के आपके शहर तक लाया गया वह जरूर हो सकता है वह आधुनिक ट्रक हो, परन्तु बीज तो वही है। धरती भी वही है और किसान जब उस बीज को बोता है तो बिना पैसे डाले वो बीज उत्पन्न होता है। तो आपको अगर भिंडी खानी है तो भिंडी वैसे ही पैदा होती है जैसे हजार साल पहले, दो हजार साल पहले। टमाटर वैसे ही होते हैं जहाँ हजारों साल पहले जैसे वह उगते थे।
और बीज की जरूरत है, धरती मुफ्त में उन टमाटरों को उगाती है, पर अब वह नहीं रहा। अब अगर आपको टमाटर चाहिए तो आप खेत में नहीं जाएंगे, आप जाएंगे सुपर मार्केट में और वहां टमाटर को दबाएंगे, देखेंगे कि अच्छे हैं या नहीं और उसके लिए क्या देंगे ? पैसा देंगे, जो धरती ने मुफ्त में उगाया है उसके लिए आप पैसा देंगे, क्योंकि आपके पास टाइम नहीं है टमाटर उगाने का। क्योंकि आपके पास टाइम नहीं है भिंडी उगाने का। क्योंकि आपके पास टाइम नहीं है आलू उगाने का। क्योंकि आपके पास टाइम नहीं है प्याज उगाने का, तो कितनी बड़ी इंडस्ट्री बन गई है, क्योंकि आपके पास टाइम नहीं है।
आपके पास बीमार होने का टाइम है। डॉक्टर अगर बोल दे कि आपको बहुत भयंकर बीमारी हो रखी है, अस्पताल में भर्ती करना पड़ेगा उसके लिए आपके पास टाइम है, परंतु तंदुरुस्त रहने के लिए आपके पास टाइम नहीं है, तो कुछ उल्टा नहीं हो गया यहां ? नहीं, पूछ रहा हूँ मैं — आप समझते हैं कि ये सब ऐसे ही होना चाहिए! कोई बात नहीं मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि मतलब, यही कह रहा हूँ मैं कि आपकी समझ में कुछ उल्टा नहीं हो गया! मेरे को तो लगता है कि कुछ उल्टा-सीधा हो गया, क्योंकि धरती तो वही है और उसी धरती के आज दाम क्या हो गए हैं, पूछो मत। आपको किस चीज की जरूरत है ? आपको साफ हवा की जरूरत है। आपको किस चीज की जरूरत है! आपको पानी की जरूरत है, आपको भोजन की जरूरत है, आपको छत की जरूरत है, क्योंकि आप ज्यादा गर्म जगह नहीं रह सकते और ज्यादा ठंडी जगह नहीं रह सकते इसलिए आपको उन चीजों की जरूरत है जिससे कि आपको ज्यादा गर्मी ना लगे, जिससे ज्यादा ठंडी न लगे।
कोई बात नहीं, ये सब कुछ उल्टा हो रहा है, सब लोग देख रहे हैं और किसी से चर्चा भी इस बात की करो तो कहेंगे, "मैं क्या कर सकता हूँ !" ठीक बात है भाई, तुम क्या कर सकते हो —तुम क्या कर सकते हो! उलटी गंगा बह रही है, तुम क्या कर सकते हो! जो होना चाहिए वह नहीं हो रहा है, तुम क्या कर सकते हो! तुम क्या कर सकते हो — एक दिन तुम नहीं थे, एक दिन तुम्हारा जन्म हुआ, आज तुम जीवित हो, एक दिन ऐसा आएगा कि तुमको जाना पड़ेगा, तुम कर ही क्या सकते हो! और जो कर सकते हो, वो तभी कर सकते हो जब तक तुम जीवित हो। जब तुम्हारा जीवन खत्म हो जाएगा, उसके बाद तुम क्या कर पाओगे! कुछ नहीं कर पाओगे। तो क्या कहा है कि —
धरी सिर पाप की मटकी —
ये सारी चीजें, ये अज्ञानता जो है सारी इस मटकी में भरी पड़ी है यही है पाप, सबसे बड़ा पाप तो यह है,
उसको पहचाना नहीं। किसको पहचाना नहीं ? जो अंदर बैठा है उसको पहचाना नहीं। तो —
धरी सिर पाप की मटकी, मेरे गुरुदेव ने झटकी —
झटका दिया उसको, तोड़ी नहीं। यह संकेत किया कि काहे के लिए ये सिर पर रखी हुई है तैंने। ये अज्ञानता, ये जो मटकी है, काहे के लिए सिर के ऊपर रखी हुई है तो —
धरी सिर पाप की मटकी, मेरे गुरुदेव ने झटकी |
वो ब्रह्मानंद ने पटकी
पटक दिया उसको। क्योंकि जब वो, उसमें झटका उसको लगा कि "हां, यह सच नहीं है, ये क्यों रखी हुई है मैंने अपने सिर पर। तो मैं झूठ भी जान सकता हूँ ; मैं सत्य भी जान सकता हूँ । मैं ज्ञान में भी रह सकता हूँ ; मैं अज्ञानता में भी रह सकता हूँ । मैं उजाले में भी रह सकता हूँ ; मैं अंधेरे में भी रह सकता हूँ । क्यों, रह सकता हूँ या नहीं!
कमरे में जब रात को सोने के लिए जाते हैं तो अंधेरा कर लेते हैं। अंधेरे में तो रह सकते हैं, पर मैं उजाले में भी रह सकता हूँ जब मेरे को सब कुछ दिखाई देगा और मैं अंधेरे में भी रह सकता हूँ जिसमें मेरे को कुछ नहीं दिखाई देगा। मैं क्या करना चाहता हूँ अपनी जिंदगी में! तो,
वो ब्रह्मानंद ने पटकी
हां सच बात है इसको मेरे सिर पर नहीं रखना है मैंने।
वो ब्रह्मानंद ने पटकी अगर फूटे तो फूटन दे
अगर टूटती है, टूटने दे, कोई बात नहीं। ऐसा अगर हमारी जिंदगी के अंदर हो जाए तो कितना सुंदर रहेगा। यह याद रहे कि —
मुझे है काम ईश्वर से, जगत रूठे तो रूठन दे
सब आ गए इसमें।
कुटुम्ब परिवार सुत दारा, माल धन लाज
और किनकी ? लाज लोकन की। अरे! लोग क्या कहेंगे, लोग क्या कहेंगे, लोग क्या कहेंगे, लोग क्या कहेंगे, लोग क्या कहेंगे, लोग क्या कहेंगे!
कुटुम्ब परिवार सुत दारा, माल धन लाज लोकन की।
हरि के भजन करने से, अगर छूटे तो छूटन दे।।
इससे अगर मेरे को मुक्ति मिल जाए, क्योंकि जब मुक्ति की बात आती है, स्वतंत्रता की बात आती है तो सबको बड़ा अच्छा लगता है। पर कभी आप लोगों ने यह नहीं सोचा कि कौन-सी ऐसी चीजें हैं, जो आप से स्वतंत्रता को चोरी कर रही हैं, अलग कर रही हैं। क्यों अच्छा लगता है ? जब आनंद की बात आती है, तो क्यों अच्छा लगता है! क्योंकि जब आनंद में नहीं हैं तो आनंद में होने की इच्छा होती है।
जब स्वतंत्र नहीं हैं तो स्वतंत्र होने की इच्छा जरूर होती है, अच्छा लगता है। और मैं आया ही क्यों हूँ इस संसार के अंदर — इस बात को जानना, इस बात को समझना कि “मैं आया क्यों हूँ इस संसार के अंदर।” अगर मैं नाता जोड़ता हूँ उससे जो नहीं है, नहीं थी, नहीं है, नहीं रहेगी, तो मेरे को मिलेगा क्या! कुछ नहीं।
खाली हाथ मैं आया था, खाली हाथ मैं जाऊंगा। अरे नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, ये तो पहले ही किसी ने कहा है "खाली हाथ आया था और खाली हाथ जाना पड़ेगा।" क्यों खाली हाथ आए थे, खाली हाथ क्यों जाना पड़ेगा ? क्योंकि कुछ रखा ही नहीं है। ये माया में पड़े रहे और माया में कुछ है ही नहीं। क्या परिभाषा है उसकी — ना थी, ना है, ना रहेगी। और अगर उसके साथ, किसके साथ ? जो था, जो है और जो रहेगा, जो अविनाशी है, अगर उसके साथ तार जुड़ा — खाली हाथ आए जरूर थे, पर खाली हाथ जाना नहीं पड़ेगा। यह सोचने की बात है, यह समझने की बात है। ये समझ गए अगर तो बहुत कुछ समझ जाएंगे। फिर यह जीवन जिस तरफ जा रहा था उससे मुड़कर उस तरफ जाएगा जहां आनंद है, जहां इस जीवन का असली मकसद समझ में आए, मनुष्य अपने आपको धन्य कर पाए और आनंद ले।
खाली हाथ आए थे, पर खाली हाथ जाने की जरूरत नहीं है। मुझे आशा है कि ये बात आपको अच्छी लगी होगी, क्योंकि अगर अच्छी लगी तो यह संभव है। वहां से उस तार को निकाल कर — जो करना है इस संसार के अंदर मैं ये नहीं कह रहा कि नहीं करना है, परंतु जो आनंद का तार आपने इस दुनिया के साथ जोड़ा हुआ है उससे मिलेगा नहीं कुछ। उसको तो, कम से कम उस तार को तो लगाओ उसमें जो था, है और रहेगा। क्योंकि मेरे साथ यह चक्कर है, सबके साथ यह चक्कर है जो इस दुनिया के अंदर जीवित हैं - कि नहीं थे, हैं और नहीं रहेंगे। अब अगर यह उल्टा-सीधा होता, थोड़ा इधर-उधर होता, तो ठीक है हम कह सकते थे कि कोई बात नहीं, कोई बात नहीं — अगर यह ऐसा होता कि हम नहीं थे, हैं और रहेंगे, हमेशा रहेंगे; कोई बात नहीं, दुनिया में मजा लूटो।
परंतु सच्चाई यह है कि नहीं थे, हैं और नहीं रहेंगे। तो तार किसके साथ जुड़ना चाहिए उसके साथ जुड़ना चाहिए जो था, है और रहेगा। और जो है ही नहीं, जो थी ही नहीं, है ही नहीं और रहेगी भी नहीं उसके साथ अगर तार जोड़ेंगें , तो निराशा तो इस जीवन में उससे मिलेगी। मैं कोशिश करूंगा कि फिर आप लोगों के लिए वीडियो जल्दी बनाकर भेजूं।
तब तक के लिए सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
जो आप हैं, जैसे आप हैं, इस पृथ्वी पर ऐसा न कभी कोई था और न कभी कोई होगा। आप जिस प्रकार रोते हैं वह आपका रोना है। जब आप हंसते हैं तो जिस प्रकार आप हंसते हैं, वह आपका हंसना है। ये जो सिग्नेचर आप हैं यह फिर कभी नहीं होगा। आप जैसे बहुत हैं, पर आप जैसा कोई नहीं है।
हमारे सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार! और मैं ये ब्रॉडकास्ट हिन्दुस्तान से कर रहा हूं। कुछ दिन पहले मैं आया हिन्दुस्तान। आप लोगों ने जो हंस जयंती की ब्रॉडकास्ट हुई थी उसमें आपने देखा होगा। तो मेरे आने का यहां क्या मकसद है, बहुत समय बीत गया था, नहीं आ पाया मैं। और कोरोना वायरस की वजह से सबकुछ लॉकडाउन था। तो जहां भी मैं जा सकता हूं वहां मैं कोशिश करता हूं जाने की। और मेरा यह कोई अभिप्राय नहीं है कि मैं कुछ ऐसा करूं जिससे कि लोग बीमार हों और बीमारी फैले। यह मैं नहीं करना चाहता। परंतु फिर भी मैं चाहता हूं कि लोग इस बात को समझें कि यह जीवन क्या है! क्योंकि यह गाड़ी तो चल रही है।
देखिये, मैं आपको एक उदाहरण देता हूं। और उदाहरण कुछ इस प्रकार है कि आप एक रेलगाड़ी में बैठे हैं और आप जहां भी बैठे हैं एक खिड़की है और खिड़की से आप बाहर देख रहे हैं। तो गाड़ी चलने लगती है। जब चलने लगती है तो आप देखते हैं कि सबकुछ बाहर चल रहा है। पेड़ आ रहे हैं, जा रहे हैं। गाड़ियां आ रही हैं, जा रही हैं। जानवर हैं, आ रहे हैं, जा रहे हैं। कहीं जंगल है, कहीं पुल है, कहीं नदी है। सब आ रहे हैं, जा रहे हैं। आ रहे हैं, जा रहे हैं। आ रहे हैं, जा रहे हैं। और आप बैठे हुए हैं और खिड़की वैसी की वैसी है, जो आपके आगे लगी हुई है और आपको ऐसा लगता है कि आप नहीं चल रहे हैं, सबकुछ चल रहा है। परंतु असलियत यह है कि आप चल रहे हैं और कुछ नहीं चल रहा है। वो जो पेड़ आ रहे हैं, जा रहे हैं। वो कहीं नहीं जा रहे हैं, वो वहीं के वहीं हैं। आप चल रहे हैं। आप आ रहे हैं। आप जा रहे हैं।
यह जो मनुष्य का दृष्टिकोण है। जब वो देखता है कि क्या चीज चल रही है और क्या चीज नहीं चल रही है। तो वो अपने आपको नहीं देख रहा है कि वो चल रहा है। वो जा रहा है। वो देखता है कि नहीं और लोग चल रहे हैं। और चीजें बदल रही हैं। मैं नहीं बदल रहा हूं। मैं वैसे का वैसा ही हूं। ये नहीं है, बदल आप रहे हैं। आपका दृष्टिकोण कह रहा है कि आप नहीं बदल रहे हैं, परंतु बदल आप रहे हैं और चीजें वैसी की वैसी हैं। पेड़ सौ साल तक, दो सौ साल तक जी सकते हैं। उससे भी ज्यादा जी सकते हैं। हजारों साल तक जी सकते हैं। पहाड़ हैं। वैसे सबकुछ बदल रहा है, पर जिस रफ्तार से आप बदल रहे हैं, आपको नहीं लगता है कि चीजें बदल रही हैं, परंतु सबसे ज्यादा रफ्तार बदलने की आपकी है।
तो क्या बदल रहा है ? यह स्वांस आता है, जाता है। आपका यह जीवन है। आपके कितने संबंध हैं। लोगों के साथ आपकी दोस्तियां हैं, आपके परिवार के साथ आपके संबंध हैं। कोई आपका बेटा है, कोई आपका चाचा है, कोई आपका मामा है। कोई कुछ है, कोई कुछ है, कोई कुछ है, कोई कुछ है। कोई आपका पड़ोसी है। ये सबंध के तार आपने बनाये हुए हैं और इन्हीं तारों को लेकर के सवेरे से लेकर शाम तक आप जीते हैं। यही आपकी चिंता का माध्यम है कि ये लोग हमारी तरफ देखते हैं, क्या सोचते हैं, क्या कहेंगे!
क्या हो रहा है ? सवेरे उठते हैं। नौकरी की तरफ जाते हैं। नौकरी करता है, उसको सपोर्ट करने के लिए परिवार है। उनकी बीवी है वो उठती है, नाश्ता बनाती है, चाय बनाती है, बच्चों को तैयार करती है। और यही चलता रहता है, चलता रहता है, चलता रहता है, चलता रहता है। चल रहा है और इसी के अंदर, इसी के — जैसे नदी बह रही है इसी के अंदर सब लोग बह रहे हैं। और कहां जा रहे हैं! क्या हो रहा है ? किसका जीवन है ? क्या जीवन है ? और बातें — बड़ी-बड़ी बातों में लोग लग जाते हैं। क्या होगा, अगले कर्म में क्या होगा ? स्वर्ग कैसा है! नरक कैसा है! ये कैसा है! वो कैसा है ?
परंतु बहुत कम लोग हैं जो इस चीज पर ध्यान देते हैं कि अब क्या हो रहा है ? ये जो मेरा स्वांस चल रहा है, जो मैं जीवित हूं, ये क्या है ? जीवित होना क्या है ? संबंधों के बारे में तो आपको मालूम है और ये सब चीजें कैसे, क्या होना चाहिए, ये तो सबकुछ, इस पर लोग लगे रहते हैं। क्या ? लोगों की क्या इच्छा रहती है ? कल क्या होगा मैं जान जाऊं, कल क्या होगा मैं जान जाऊं! इसका सारा प्रबंध करते हैं क्या होगा, क्या प्लान बनाते हैं, बड़े-बड़े प्लान बनाते हैं और जो लोग रईस हैं जिनके पास सेक्रेटरी के बाद सेक्रेटरी हैं कि भाई! ये होगा, ये प्लान है और इसी तरीके से होना है, इसी तरीके से होना है और किसी — और कोई चीज नहीं हो सकती है। ये प्लान जो हमने बनाया है इसको पूरा करना है। हजारों, हजारों, हजारों डॉलर लोग खर्च करते हैं।
अभी देखा जाये तो बहुत कुछ बदल गया है। अमेरिका में प्रेसीडेंट बदल गया है। अभी बदला नहीं है पर जो नया प्रेसीडेंट आयेगा, लोगों ने वोट दी है। जो पुराना प्रेसीडेंट है वो जाना नहीं चाहता। क्यों नहीं जाना चाहता ? उसकी अपनी सोच है, उसकी अपनी — उसका प्लान दूसरा था। उसका प्लान था कि मैं दो टर्म के लिए प्रेसीडेंट बनूंगा, वो हो गये आठ साल। चार साल पहली टर्म, चार साल दूसरी टर्म। ये मेरे को मिलेगी। सब मेरे से प्रसन्न हैं। मैं सबसे बढ़िया काम करता हूं। सबसे बढ़िया चीज है। सबकुछ है, मैं गलती तो कर ही नहीं सकता। ये उसके दिमाग में बैठा हुआ है। और ये बात स्वीकार करना उसके प्लान में नहीं था कि मैं हार जाऊंगा और कोशिश कर रहा है। कोर्ट में जा रहा है, कचहरी में जाएगा कि फ्रॉड हुआ, ये हुआ, वो हुआ। क्यों ? क्योंकि उसने एक प्लान बनाया था।
लोग हैं एक प्लान बनाते हैं। मैं औरों की बात क्या करूं मैं खुद की बात करता हूं। कई बार ऐसा हुआ है कि पहुंचे कहीं, कार खराब है। पहुंचे, जाना है कहीं हेलीकॉप्टर खराब है। कहीं जाना है, हवाई जहाज खराब है। कहीं जाना है, जा नहीं सकते हैं। रोड टूट गया, ये हो गया, वो हो गया, रोड बंद है। तो क्या करें, अब जाना है, कहीं पहुंचना है प्लान बनाया हुआ है और वहां नहीं जा सकते।
तो प्लान तो हम लोग बनाते हैं। और उस प्लान को पूरा करने के लिए पूरी मेहनत करते हैं। और सारी मेहनत इसी में जाती है। जब ये कोरोना वायरस आया तो इसकी प्लानिंग क्या थी ? कुछ नहीं, किसने प्लानिंग की थी इसकी, कुछ नहीं। आया है, सारे संसार में इसने तहलका मचा दिया, क्योंकि इसकी कोई प्लानिंग थी ही नहीं। प्लानिंग क्या थी कि वो मिसाइल भेजेगा। दूसरा देश मिसाइल भेजेगा, वायरस नहीं, मिसाइल भेजेगा। वो अपने सिपाहियों को भेजेगा। उनको रोकना है, ये करना है, वो करना है। अमेरिका है, बड़े-बड़े देश हैं, नेवी हैं, आर्मी हैं, मरीन्स हैं, सील्स हैं। दुश्मन आयेगा, वहां से आयेगा, वहां से आयेगा, वहां रडार लगायेंगे। ये करेंगे, वो करेंगे। ये सारा प्रबंध कर रखा था।
पर इसकी क्या प्लानिंग थी, जहां प्लानिंग थी ही नहीं वहां से ये आ गया, कोरोना वायरस, सबकी प्लानिंग खराब हो गयी। क्या करें, इतना शक्तिशाली देश अमेरिका और गलत वजह से नंबर वन हो रखा है। कोरोना वायरस की वजह से नंबर वन हो रखा है। कैसे संभव है ? इतनी बड़ी-बड़ी खुफिया ऐजेंसीज। इतने बड़े-बड़े इंटेलीजेंस और ये सबकुछ। और ये आया, ये किसी को मालूम ही नहीं ये आ रहा है।
तो हम कितनी कोशिश करते हैं कि जो हमने प्लान बनाया है, वो सिद्ध हो, वो पूरा हो। परंतु अगर ये स्वांस का आना-जाना बंद हो जाये तो क्या प्लान बनायेंगे। क्या प्लान बचेगा ? कुछ नहीं बचेगा, न कोई संबंध बचेंगे। न कोई चाचा रहेगा, न कोई मामा रहेगा। वैसे तो जब कोई चला जाता है तो उसकी फोटो पर हार पहना देते हैं। उसकी फोटो लगाते हैं, उस पर हार पहना देते हैं। अगरबत्ती जलाते हैं। वो तो गया। न वो सूंघ सकता है। न वो खा सकता है। न वो आ सकता है। न वो जा सकता है, वो गया। अब कुछ नहीं होगा, उसके लिए सबकुछ समाप्त। क्या हम सोचते नहीं हैं इस बारे में। हम सोचते हैं कि स्वर्ग जायेंगे जी।
अब एक पंडित जी थे। वो आये ऑस्ट्रेलिया तो उनसे मैं मिला, तो मैंने कहा कि “पंडित जी आपने देवी-देवताओं को देखा।” क्योंकि देवी-देवता बादलों के ऊपर रहते हैं और वो जब हिन्दुस्तान से ऑस्ट्रेलिया गये, तो वो बादलों के ऊपर से गुजरे तो मैंने कहा कि “आपने देवी-देवताओं को देखा”, उन्होंने कहा, “नहीं देखा।”
तो कहां हैं वो जब बादलों के ऊपर से हवाई जहाज जाता है तो वो दिखाई तो देते नहीं हैं। क्या है ये ? कहां है वो स्वर्ग! कहां है वो नरक! कितना गहरा-गहरा गड्ढा खोदते हैं, जमीन में लोग। तेल निकलता है, पानी निकलता है। और क्या कि “जी, वहां नरक है, पाताल है, ये है, वो है।” इसी में सब लगे हुए हैं, परंतु असलियत क्या है!
असलियत यह है कि तुम जिंदा हो। कल क्या होगा वो असलियत नहीं है। कौन तुम्हारा चाचा है, कौन तुम्हारा मामा है, कौन तुम्हारा भाई है, कौन तुम्हारी बहन है, यह असलियत नहीं है। असलियत यह है कि यह तुम्हारे अंदर स्वांस आ रहा है और तुम्हारे अंदर स्वांस जा रहा है। इसको जानो, इसको समझो कि यह क्या है! उसके बाद सबकुछ, कोई फिक्र की बात नहीं है। तुम स्वर्ग का सपना देखना चाहते हो, खूब आंख बंद करके स्वर्ग का सपना देखो। कोई बात नहीं। तुम नरक का सपना देखना चाहते हो, खूब आंख बंद करके नरक का सपना देखो कोई बात नहीं। परंतु अपने आपको जानो, अपने आपको पहचानो, अपने आपको समझो। क्योंकि मनुष्य के अंदर यह प्यास है। वो अपने आपको समझना चाहता है।
जब बच्चा होता है तो धीरे-धीरे आप बच्चे को देखिये। पहले उसको चलना नहीं आता है। लोगों को वो पहचानता नहीं है। जो उसको समय मिलता है, अधिकतर वो सोता है। धीरे-धीरे-धीरे करके वो पहचानने लगता है। ये मां है, ये पिता है, ये भाई है, ये बहन है। धीरे-धीरे-धीरे करके दूध से, जो मां का दूध उसको मिलता है उससे वो, उसको कम करने लगती है मां और उसको खाना खिलाने लगती है। धीरे-धीरे-धीरे करके उसको अहसास होने लगता है कि क्या भूख है ? क्या प्यास है ? क्या सोना है ? क्या जगना है ? धीरे-धीरे करके वो इधर-उधर देखने लगता है। और उसमें एक प्यास, उस मनुष्य में एक प्यास धीरे-धीरे-धीरे-धीरे बहुत ही धीरे-धीरे चालू होती है कि मैं अपने आपको जानूं। बड़े रूप से नहीं। बड़े सूक्ष्म रूप से चालू होती है कि मैं अपने आपको जानूं।
क्या मेरे को पसंद है, क्या मेरे को पसंद नहीं है! कौन-सा रंग मेरे को पसंद है, कौन-सा रंग — पहले मेरा कुछ नहीं था। पहले मेरा कुछ नहीं था। अब मेरे-मेरा होने लगा है। धीरे-धीरे वो जानना चाहता है कि मैं कौन हूं! कौन-सा गाना मेरे को पसंद है! कौन-सी कहानी की किताब मेरे को पसंद है! कौन-सा रंग मेरे को पसंद है! कौन-सा खिलौना मेरे को पसंद है! मेरे को! मेरे को! उसकी जो दुनिया है, जब वो बच्चा था उसको यह नहीं मालूम था कि दुनिया भी होती है। और अगर उसकी कोई दुनिया थी तो वो उस मां के, मां उसके बीच में थी। और उसके चारों तरफ उसकी दुनिया थी। और अब वो दुनिया बनाने लगा है। और उसके बीच में वो है। धीरे-धीरे, धीरे-धीरे करके मैं कौन हूं! मैं कौन हूं! मेरे को क्या पसंद है! कौन मैं ?
स्कूल जब जाता है वो। सब उसके दोस्त नहीं हैं। सब उसके दोस्त नहीं हैं। जिनको वो पसंद करता है उनसे वो दोस्ती करने लगता है। खाने में उसको क्या पसंद है। किस चीज को वो पसंद करता है। धीरे-धीरे-धीरे करके वो हुआ बीच में और वो अपनी दुनिया को बनाने लगता है। परंतु सबसे बड़ी बात है कि वो ये जानना चाहता है कि मैं कौन हूं! क्योंकि जबतक वो यह नहीं जानेगा कि मैं कौन हूं, तो जितने भी उसके रिश्ते-नाते हैं, चीजों से नाते हैं, लोगों से नाते हैं, बातों से नाते हैं। वो कैसे उनको बो पायेगा अगर उसको यह नहीं मालूम कि वो कौन है! तो उसको भी प्यास लगती है, अपने आपको जानने की, अपने आपको समझने की। परंतु इस दुनिया के अंदर अपने आपको जानने के लिए कोई साधन नहीं हैं।
स्कूल तो भेज देते हैं कि वहां जाओ अ, आ, इ, ई सीखो। एक, दो, तीन, चार सीखो। ये सीखो, ज्योमेट्री सीखो, हिस्ट्री, इतिहास को सीखो। ये सारी चीजें सीखो, परंतु अपने आपको जानने के लिए कोई साधन नहीं है। कोई, कोई प्लान नहीं है। कोई स्कूल नहीं है। कोई कुछ नहीं है। तो कैसे आदमी अपने आपको जाने। कैसे वो ये सारी चीजें समझे।
तो सबसे पहले क्या समझना है उसको ? उसको समझना है कि मेरे अंदर एक प्यास है जो अपने आपको जानने के लिए है। जो भी मैं कर रहा हूं, जो भी, इधर भागता हूं, उधर भागता हूं, ये करता हूं, वो करता हूं, वो जो प्यास है मेरे अंदर, दरअसल में वो जो मेरे अंदर स्वर्ग है, मैं उसको जानना चाहता हूं। जो मेरे अंदर नरक है, उससे मैं बचना चाहता हूं। सबसे बड़ा नरक मनुष्य के अंदर है। सबसे बड़ा स्वर्ग मनुष्य के अंदर है। एक चीज से बचना है। एक चीज को गले मिलना है। एक चीज को स्वीकार करना है, एक चीज को नहीं।
जब मनुष्य के लिए ये हो जाता है कि अब क्या होगा ? दुविधा में पड़ जाता है तो जो अंदर से उसको दर्द होता है। जो अंदर से वो दर्द महसूस करता है। जिसके लिए कोई गोली नहीं है। जिसके लिए कोई डॉक्टर नहीं है, उससे उसको बचना चाहिए। और वो जो स्वर्ग है, वो जो आनंद है, जो परमानंद है, उसको उससे गले मिलना चाहिए। उसको स्वीकार करना चाहिए। और जबतक यह नहीं होगा, इन दोनों चीजों का अनुभव नहीं होगा उसको कि जिस चीज से बचना है वो वो है और जिस चीज से गले मिलना है, जिसको स्वीकार करना है वो ये है। तबतक वो कैसे समझेगा कि वो है कौन! क्या है वो ?
आंख बंद करके नहीं आंख खोल करके उसको देखना है कि वो है कौन! उसकी प्रकृति क्या है! इस शरीर की प्रकृति क्या है ? इस शरीर की प्रकृति है कि आज जिंदा हो, कल भी जिंदा हो, परसों भी जिंदा हो पर इसका मतलब यह नहीं है कि तुम हमेशा जिंदा रहोगे। मनुष्य को यही लगता है कि वो हमेशा जिंदा रहेगा। पर ये होना नहीं है। होना ये है कि जो उसको मिला है, सारी चीजें। जैसे मैं पहले कह रहा था कि वो गाड़ी में बैठा हुआ है, रेलगाड़ी में। रेलगाड़ी चल रही है, वो समझता है कि नहीं वो नहीं चल रहा है बाकी सबकुछ चल रहा है। परंतु असलियत यह नहीं है। चल वो रहा है, क्योंकि वो उस गाड़ी में बैठा है और सारी चीजें नहीं चल रही हैं। ये दृष्टिकोण, इस चीज की सफाई, इस चीज को समझना मनुष्य के लिए बहुत जरूरी है।
यही, अब यह बात पहले सुनी हुई हो, कोई बात नहीं। फिर भी सुनना जरूरी है, समझना जरूरी है क्योंकि ये बात एक समय में समझ में नहीं आती है। बार-बार दोहराने से भी समझ में नहीं आती है, जितनी बार इसको दोहराया जाये। थोड़ा-थोड़ा-थोड़ा करके जो ये जाती है, इस खोपड़ी में, इस अक्ल में फिर इसका कुछ बनने लगता है कि “हां सचमुच में यह बात सही है।” क्योंकि ऐसी कोई चीज नहीं है बाहर जो हमको हमेशा याद दिलाये कि भाई, तेरे अंदर स्वांस आ रहा है, जा रहा है।
ये दुनिया, इसके लिए संत-महात्माओं ने क्या कहा है ये दुनिया ऐसी है कि ध्यान भगाती है। भागता रहता है, भागता रहता है मनुष्य। और जहां इसके अंदर की बात आती है, वो समझता ही नहीं है। अंदर क्या है ? कुछ नहीं है, ये क्या बात कर रहे हैं! जो कुछ है बाहर है। बाहर, बाहर बिज़नेस है, बाहर ये है, बाहर वो है। और जब आदमी स्वांस नहीं लेता है, जब चला जाता है इस संसार से तब उसको कहो कि अब क्या रह गया। क्या समझा ? समझाने के लिए तो कुछ रह नहीं गया उसके लिए। समझ में उसको कुछ आयेगा नहीं। जब वो जिंदा था तब भी वो समझ नहीं पाया। और अब जब चला गया है, तब भी नहीं समझ पाएगा। और बात यह है कि अगर समझ नहीं पाया तो उसका यहां आना और जाना दोनों बराबर है। आना, न जाना। जब जाना ही नहीं उसने। आया और चला गया। कुछ हाथ नहीं लगा। कुछ नहीं खरीदा। कुछ सौदा नहीं किया। कुछ स्वीकार नहीं किया। लगा रहा, लगा रहा। खाली हाथ आया और खाली हाथ चला जायेगा।
सिकंदर ने अपने जो उसके जनरल थे उनको कहा कि जब मैं मरूं — जब वो समय आया उसका। बीमार तो वो हो ही गया था। हिन्दुस्तान से ही बीमार हो गया था वो, वापस गया। जब मरने की बात आयी तो उसने कहा कि “मेरे हाथ बाहर होने चाहिए मेरे कफन से ताकि लोग देख सकें कि मेरे हाथ में कुछ नहीं है।’’ कि मेरे हाथ में कुछ नहीं है। कि मैं आया और एक तरफ मैंने क्या-क्या नहीं किया। कहां, कहां मैं नहीं गया! परंतु वो सब चीजों के होने के बावजूद भी मैं अपने साथ कुछ नहीं ले जाऊंगा। मैं चाहता हूं कि जब मेरा शरीर पूरा हो लोग मेरे से तब भी सीखें। क्या सीखें कि “मैं खाली हाथ आया था और खाली हाथ इस संसार से जाऊंगा।’’ चाहे कोई कुछ भी कर ले। बड़ी से बड़ी बात कर ले।
आये थे सो जायेंगे, राजा रंक फकीर।
एक सिंहासन चढ़ चला एक बांधे जंजीर।।
यही होगा। सभी के साथ यही होगा। तो बात ये होती है कि ये जो शरीर मिला है। जो समझने की बात है कोई समझे, अपने आपको जाने। अपने आपको पहचाने कि मैं ये सिर्फ हड्डी, मांस, खून, खाल यही नहीं हूं। ये सारी चीजें जो आयी हैं, इनकी वजह से और इस स्वांस की वजह से और वो जो मेरे अंदर बैठा है, उसकी वजह से मैं कुछ हूं। और मैं अपने जीवन में शांति हासिल कर सकता हूं। मैं अपने जीवन में उस परमानंद का अनुभव कर सकता हूं।
अब लोग हैं, ये परमानंद का अनुभव करने की क्या बड़ी बात है! अच्छा, आप पार्टी में जाते हैं। देखिये, शादी-ब्याह होंगे। समय आ रहा है लोग शादी-ब्याह करेंगे। तो पार्टी क्यों देते हैं ? सारे रिश्तेदारों को क्यों बुलाते हैं ? सभी लोगों को क्यों बुलाते हैं ? खाना क्यों खिलाते हैं उनको! खाना क्यों खिलाते हैं ? शादी तो जिन्हें करनी है वो हैं मिया और बीवी और वो हाथ मिलाकर भी शादी कर सकते हैं। सात हाथ मिलाया, हाथ में हाथ डाला, सात जन्म तक मैं तेरे साथ रहूंगा। तू मेरी बीवी है और बीवी कहे, तू मेरा पति है। हो गयी दोनों की शादी। तो औरों की क्या जरूरत है ? ना, सबको बुलाते हैं सब आते हैं। क्यों आते हैं ? नाचते हैं। क्यों नाचते हैं ? क्यों नाचते हैं, काहे के लिए नाच रहे हो ? मजा आता है, आनंद आता है। पार्टी हो रही है, आनंद के लिए।
संत महात्माओं का कहना है कि एक पार्टी और हो रही है और वो है परमानंद की पार्टी। उसमें आनंद की बात नहीं, परम आनंद की पार्टी है वो। और वो पार्टी क्यों है ? क्योंकि तुम जिंदा हो। तुम्हारे अंदर ये स्वांस आ रहा है, जा रहा है इस पार्टी में भी भाग लो। इस पार्टी में भी नाचो। इस पार्टी में भी आनंद उठाओ।
तो भाई, खैर ये ब्रॉडकास्ट आज हो रही है। और यहां, ये मेरे को मौका मिला हिन्दुस्तान आने का बड़ी अच्छी बात है। और लोगों को कुछ यह अहसास होता है कि भाई, मैं आया और मेरे को भी अहसास होता है कि अच्छी बात है, मैं आ सका हिन्दुस्तान। और अब क्या-क्या होगा आगे, वो तो देखना पड़ेगा, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से कोई बीमार हो। तो अब जब लोग इकट्ठा होंगे तो ये बीमारी फैल सकती है। तो क्या हम कर सकते हैं और क्या नहीं करेंगे, इस चीज का — अभी चर्चा इस चीज की होगी और उसी के अनुसार प्रोग्राम बनाया जायेगा। क्योंकि हम नहीं चाहते कि किसी भी रूप से कोई ऐसी चीज हो कि लोगों को और ये बीमारी फैले।
और इस चीज का ध्यान सभी रखें। हाथ धोना है। हाथ धोओ, अच्छी बात है। मास्क पहनो ताकि ये बीमारी न लगे। अब लोग हैं मास्क पहनना नहीं जानते। कोई किसी का मास्क यहां आ रहा, किसी का यहां आ रहा है, किसी का यहां। नहीं, इसको ढंग से पहनो। और लोगों से 6 फीट का जो अंतर है वो बनाकर रखो। ध्यान दो, ध्यान दो ताकि ये बीमारी तुमको परेशान न कर सके। सभी लोग अपना ख्याल रखें और फिर मैं आगे ब्रॉडकास्ट करूंगा।
सभी को मेरा नमस्कार।
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जो आप हैं, जैसे आप हैं, इस पृथ्वी पर ऐसा न कभी कोई था और न कभी कोई होगा। आप जिस प्रकार रोते हैं वह आपका रोना है। जब आप हंसते हैं तो जिस प्रकार आप हंसते हैं, वह आपका हंसना है। ये जो सिग्नेचर आप हैं यह फिर कभी नहीं होगा। आप जैसे बहुत हैं, पर आप जैसा कोई नहीं है।
(प्रेम रावत) हमारे सभी श्रोताओं को हमारा नमस्कार। धीरे-धीरे चीजों में परिवर्तन आ रहा है। धीरे-धीरे मौसम में परिवर्तन आ रहा है। कल मैंने देखा कि यहां हवा में थोड़ी-थोड़ी ठंडी चालू हो गयी है। और ये सारे परिवर्तन आयेंगे। पहले भी आये थे। अब भी आ रहे हैं। और आगे भी आयेंगे। मैं एक चीज की चर्चा कर रहा हूं आजकल। और बात यह है कि कोई भी चीज है उसको हमारे देखने का तरीका, हमारा नज़रिया कैसा है! हम उस चीज को किस प्रकार देखते हैं। क्या, कोई भी चीज होती है
कबीरा कुंआ एक है, पानी भरे अनेक। भांडे का ही भेद है, पानी सबमें एक।
एक ही कुंआ है। एक ही कुंए के पास आते हैं। एक ही कुंए से सब लोग पानी भरते हैं। पानी वही है। हां, भांडे अलग-अलग हैं। किसी ने किसी तरीके से सजाया हुआ है। किसी ने किसी तरीके से सजाया हुआ है। किसी ने किसी तरीके से सजाया हुआ है। सबके अलग-अलग हैं, पर पानी सबमें एक ही है। यही बात है समझने की कि ये जो है, ये भांडा ये सब अलग-अलग हैं। पर इसके अंदर जो बैठा है वो एक ही है। वो सबके लिए एक है। और बात उसी से शुरू होती है, उसी से शुरू होती है।
अब लोग हैं घबरा जाते हैं। अभी मैं पढ़ रहा था किसी ने चिट्ठी लिखी कि “मेरा भाई भी बीमार है। मेरा दूसरा भाई भी बीमार है और मैं क्या करूं ?”
तो देखिये, दुखी होने की बात तो ये है। परंतु दुख से ही सारा काम नहीं होगा। दुख से ही सारा काम नहीं होगा, हिम्मत से भी काम लेना है। तो दुखी होना कि “हां, ये अच्छा नहीं हो रहा है कि मेरा भाई बीमार है या मेरा दूसरा भाई भी बीमार है।” परंतु अगर तुम भी बैठ जाओगे, तुम भी रोने लगोगे तो उनका क्या होगा ? क्योंकि जब किसी के जीवन के अंदर दिक्कत आती है तो उसको और दिक्कत वाले नहीं चाहिए। उसको ऐसा व्यक्ति चाहिए जो खुद परेशान न हो ताकि वो उनको हिम्मत दे सके, उनकी मदद कर सके। और जो मदद कर सकता है उसकी उनको जरूरत है। समझने की बात है।
तो लोगों के सामने समस्याएं आती हैं लोग घबराने लगते हैं अब क्या होगा ? पर एक के साथ तुमने अपना तार नहीं जोड़ा, वो क्या ? जो था, जो है, जो रहेगा। और जो वो है, क्या वो भी ये सोचता है कि आगे क्या होगा ? उसके लिए तो सबकुछ है। तुम्हारे लिए, अगर तुम उसको पहचान लो अपने जीवन में तो तुम्हारे लिए भी सबकुछ है। क्योंकि तुम्हारे लिए वो है चौबीसों घंटे तुम्हारे अंदर वो है। क्योंकि वो है तुम जीवित हो और जिस दिन वो नहीं रहेगा तुम भी नहीं रहोगे। क्या उससे नाता जोड़ा ? क्या उससे जो नाता जुड़ना है, क्या उस नाते को तुम समझे ?
तीन चीजें हैं। और इनके बारे में मैं आगे वीडियो में आपसे चर्चा करूंगा। एक तो वो है जो अनंत है — जो था, जो है, जो रहेगा। दूसरे हैं आप — जो नहीं थे, अब हैं और आगे नहीं रहेंगे। नहीं थे, हैं और आगे नहीं रहेंगे। अब लोग हैं “हां जी हम तो, हम तो थे, पहले थे हम, थे!”
आपने कभी अखबार पढ़ा है ? अखबार में एक हिस्सा होता है उसे कहते हैं — Obituaries तो उसमें लिखा जाता है कि फलां-फलां चले गये। फलां-फलां चले गये। फलां-फलां चले गये। श्री राम दयाल शर्मा हमको छोड़कर चले गये। श्री पंकज श्रीवास्तव चले गये। फलां-फलां के बारे में हम आपके परिवार आपको बहुत मिस कर रहे हैं। चले गये। चले गये। चले गये। चले गये। चले गये। तो जाने वालों का तो सारा एक वो बना हुआ है, पेज। फलां-फलां चले गये। फलां-फलां चले गये। फलां-फलां चले गये। फलां-फलां चले गये। पर कभी आपने अखबार में वो वाला पेज देखा है कि वो फलां-फलां वापस आ गये। वो फलां-फलां वापस आ गये। वो फलां-फलां वापस आ गये। श्रीवास्तव जी वापस आ गये। अब उनका नाम ये है। वो नहीं मिलेगा आपको। क्यों ? क्यों नहीं मिलेगा ? गये। कहां गये ? किसी को नहीं मालूम। कहां गये, किसी को नहीं मालूम। पर इन तीन चीजों के बारे में चर्चा करना चाहता हूं मैं। और इसके बारे में और भी चर्चा करूंगा — जो था, जो है, जो रहेगा।
पहला — था, है, रहेगा। उसका कभी नाश नहीं होता है। एक आप हैं — जो नहीं थे, हैं, हैं पर आगे नहीं रहेंगे। ये भी समझने की बात है। और तीसरा, तीसरी बात है इस माया की। जिसके पीछे आप लगे हुए हैं — देखिये तीन चीजें जो हो गयीं। एक तरफ तो वो है जो था, जो है, जो रहेगा। और बीच में हैं आप — जो नहीं थे, हैं, नहीं रहेंगे। और तीसरी चीज क्या है इसके बीच में आप हैं — जो नहीं थी, जो नहीं थी। और संत महात्माओं का कहना है — जो नहीं है। सबसे बड़ी बात — जो नहीं है। और तीसरी — नहीं रहेगी। और आप पड़े हुए हैं उसके पीछे जो नहीं थी, जो नहीं है, जो नहीं रहेगी। और पड़ना चाहिए आपको किसके पीछे — जो था, जो है, जो रहेगा। क्योंकि आप नहीं थे, अब हैं और आगे नहीं रहेंगे। पर उसके पीछे नहीं पड़े। पड़े किसके पीछे? जो नहीं थी, नहीं है, और नहीं रहेगी। इसीलिए उसको माया कहा। ये माया है। ये सब माया का खेल है।
तिजोरी में सोना पड़ा है। लाला क्या सोचता है कि “ये मेरा है।” ये तुमसे पहले किसी और का था, आज तुम्हारा है, कल तुम्हारा नहीं रहेगा। नहीं रहेगा। सारी चीजों के बारे में अगर देखा जाये। यही सब जगह हो रहा है। ये तुम्हारा था! नहीं, ये तुम्हारा नहीं था, इससे पहले किसी और का था, अब तुम्हारा है और आगे नहीं रहेगा। जबतक तुम हो तुम्हारा असली में है क्या ? ये माया या वो जो था, है और रहेगा। और उसको जान लो, उसको समझ लो, तो तुम्हारे जीवन में आनंद ही आनंद है। और उसको नहीं समझ पाए, उसको नहीं समझ पाए तो भटकते रहोगे। खोजते रहोगे क्या चीज तुमको खुशी लाती है ? क्या चीज तुम्हारे जीवन के अंदर तुमको खुश करेगी ? और तुम लग जाओगे पीछे जैसे रोमांस होता है और जब उम्र हो जायेगी तो कैसा रोमांस! तुम समझते हो जब यम आता है लेने के लिए तो वो भी देखेगा कि “हां, दोनों रोमांटिक हैं जरा बीस मिनट और छोड़ देते हैं।” ना, उसके लिए तो एक भजन है —
हंसा निकल गया पिंजरे से, खाली पड़ी रही तस्वीर।
और यमदूत के लिए क्या है —
जब यमदूत लेन को आवे, तनिक धरे नहीं धीर।
मार-मार के प्राण निकाले, बहे नैन से नीर।
हंसा निकल गया पिंजरे से खाली पड़ी रही तस्वीर।
वो थोड़ी देखेगा। ये है, वो है, ये रिश्ता है, वो रिश्ता है, ये नाता है, वो नाता है। ना, कुछ नहीं।
तो समझने की बात है। हिम्मत लेने की बात है। हिम्मत से काम करने की बात है। और उसको पहचानने की बात है — जो था, जो है, और जो रहेगा।
अपना ख्याल रखें, आनंद से रहें। इस कोरोना वायरस बीमारी से बचें।
और सभी लोगों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!