प्रेम रावत जी:
मेरे श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
चाह गयी चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह,
जिनको कछू न चाहिये, सोई शाहंशाह।
मैंने सोचा कि आज का जो यह कार्यक्रम है इस दोहे से चालू करता हूं। क्योंकि सभी को चिंता लगी हुई है, "क्या होगा; क्या नहीं हो रहा है; यह हो जाएगा; वह हो जाएगा!" परंतु जिसको चिंता नहीं है, जिसको कुछ नहीं चाहिए उसके लिए सबकुछ है, उसके लिए सबकुछ है।
सबसे बड़ी बात यही आती है कि आपके जीवन में यह जो आपको जीवन मिला है, यह जो समय है इसमें आप चाहतों पर लगे हुए हैं और चाहत क्या है आपकी ? सबसे बड़ी चाहत आपकी यह है कि जो औरों की चाहत है — सुनिए, सुनिए इस बात को। सबसे बड़ी चाहत आपकी यह है कि जो औरों की चाहत है आप उसको पूरा करें। जो और लोग आपके जिंदगी के अंदर चाहे वह आपके भाई हों; बहन हों; आपके मित्र हों; आपके माता हों; पिता हों; आपके रिश्तेदार हो; आपके बॉस हों; आपके, कहीं कोई भी हो जो उनकी, जो वो लोग, जो बाहर के लोग हैं और लोग हैं जो तुमसे अपेक्षा करते हैं तुम उस अपेक्षा को पूरा करने में लगे हुए हो। और होता क्या है ? होगा यही कि यही करते-करते, करते-करते, करते-करते, उनको खुश करते हुए सारा समय पूरा हो जाएगा और जब वह समय पूरा हो जाएगा तब कहेंगे कि मैं अपने आपको तो खुश नहीं कर पाया सबको खुश करने की कोशिश की, कोई खुश हुआ नहीं और अब समय सारा निकल गया है खाली हाथ आया था और खाली हाथ ही मैं यहां से जा रहा हूँ।
मैं चाहता हूं कि “यह ना हो।” सबसे बड़ी बात है कि “यह ना हो, हो तो वह हो, जो हो रहा है, जो होगा!” अभी इस कोरोना वायरस को लेकर सबको यह है कि "क्या होगा, क्या होगा, क्या होगा ?" जब यह कोरोना वायरस का जो सारा सिलसिला है जब यह खत्म हो जाएगा तब सबका ध्यान जाएगा — "क्या हुआ, क्या हुआ, क्या हुआ, क्या हुआ!" तो अभी लगा हुआ है कि “क्या होगा?” फिर जाएगा "क्या हो गया, क्या हो गया, क्या हो गया, क्या होगा ?" इन्हीं पर सबका ध्यान जाएगा। तो अभी "क्या होगा" फिर "क्या हो गया!" इसी में सभी लोग रहेंगे और "क्या हो रहा है" — इस पर किसी का ध्यान नहीं जाएगा।
तो समझने की बात है, समझने की बात है कि कैसे, किस प्रकार हम उस चीज तक पहुंच जायें “जो हो रहा है।” “जो हो रहा है” वही सबकुछ हो रहा है — वहीं आनंद है, वहीं सचमुच का आनंद है “जो हो रहा है।” क्या हो रहा है ? यह स्वांस आ रहा है, जा रहा है — यह हो रहा है। “क्या हो गया” वहां नहीं, “क्या होगा” वहां भी नहीं, पर “क्या हो रहा है” वहीं सबकुछ है और जबतक हम अपनी जिंदगी में इस बात को नहीं समझ लेंगे कि वह चीज कितनी जरूरी है — “जो हो रहा है” तबतक हमारा ध्यान कहीं और रहेगा।
बात तो ध्यान की है। ध्यान कहां था ? किस चीज को देख रहे थे ? क्या कर रहे थे ? अगर आप जा रहे हैं, बस में जा रहे हैं, कार में जा रहे हैं, कहीं भी जा रहे हैं और बहुत सुंदर-सी चीज है। पर, वह चीज जो है, जो सुंदर चीज है, वह कार के एक तरफ थी और आप कार के दूसरी तरफ देख रहे थे। कार की खिड़कियों से दूसरी तरफ देख रहे थे। जो चीज सुंदर थी, वह एक तरफ थी और जो आप देख रहे थे, वह दूसरी तरफ थी। किसी ने कहा — "तुमने वह देखा कि कितनी सुंदर थी ?" तुमने कहा — "नहीं!"
क्यों ? क्योंकि ध्यान कहीं और था।
ठीक इसी प्रकार ध्यान हमारा कहां चला जाता है ? किस चीज पर ध्यान दे रहे हैं ? उस पर ध्यान दे रहे हैं "जो है" या उस पर ध्यान दे रहे हैं "जो होगा ?" जो होगा वह इसलिए तो होगा, क्योंकि "वह है नहीं।" जो होगा वह इसलिए होगा क्योंकि "है नहीं।" और जो है उसको "हो गया" की क्या जरूरत है — "वह तो है!" और वह जो समय है "जो है" उसमें सबकुछ है। वह अविनाशी उसी में है, जो वह समय है। उसमें नहीं है "जो होगा" या "हो गया।"
तुम्हारी जिंदगी का खेल — कई लोग हैं — प्रश्न आ रहे हैं, प्रश्नों के उत्तर मैं दूंगा। पर, पढ़ रहा था मैं प्रश्नों को, तो यही बात — अब कई लोग हैं जिनको अभी भी डर है। मैंने कितनी बार समझाया, मैं समझाता रहूंगा कि डरने की कोई बात नहीं है। डरो मत! इस समय सतर्क रहने की, सावधान रहने की बात है। हाथ धोओ, हाथ धोओ, लोगों से संपर्क मत करो यह समझो कि सभी को यह बीमारी है। बाहर जो लोग हैं जिनको तुम नहीं जानते, सभी को यह बीमारी है उनसे दूर रहो। 6 फीट दूर रहो, हाथ धोओ, साफ-सुथरे रहो और इतना परहेज करना है ताकि "कोई तुमको यह ना दे या अगर तुमको है तो तुम किसी को मत दो!" इतना ही परहेज करना है। यह तो किया जा सकता है।
यही समझने की बात है कि इस समय सिर्फ यही नहीं हो रहा है एक चीज और भी हो रही है। यह जो कोरोना वायरस है यह तो है, परन्तु एक चीज और भी हो रही है। जो हो रही है वह बहुत सुंदर चीज है और वह है कि — तुम जीवित हो। तुम्हारे अंदर यह स्वांस आ रहा है, तुम्हारे अंदर यह स्वांस जा रहा है। तुम इसका आनंद उठा हो। तुम इसका आनंद ले सकते हो।
प्रश्न होता है, प्रश्न उठता है कि "क्या तुम वह कर रहे हो, इसका आनंद ले रहे हो, इस जीवन का — कोरोना वायरस का नहीं, इस जीवन का!"
जो हर रोज मैं दो वीडियो बनाता हूं — एक हिंदी में, एक अंग्रेजी में। तो अंग्रेजी की जो अभी मैंने बनाई है वीडियो, उसमें मैंने दो सवाल पूछे लोगों से। वह मैं आप से भी पूछता हूँ कि — आप अपने आप से, अपने आप से कंफर्टेबल (comfortable) हैं या नहीं, जो आराम की बात होती है कि हां! मैं अपने आप में ठीक हूं। आप अपने आप से कंफर्टेबल हैं या नहीं ? क्योंकि अगर नहीं हैं तो फिर वही वाली बात हो गई कि फिर आप किसके साथ कंफर्टेबल हो पाएंगे ? किसी के साथ नहीं। अगर आप अपने साथ कंफर्टेबल नहीं हैं तो किसी के साथ कंफर्टेबल नहीं हो पाएंगे।
और दूसरा सवाल कि यह जो समय है, यह जो समय है — यह तो खत्म होगा, यह तो पूरा होगा। कोरोना वायरस जो है — यह जो एक हिस्सा है, यह तो खत्म होगा। इसके बाद आप किस तरीके से रहेंगे ? आपने अपने जीवन में क्या सीखा है ? कुछ सीखा ? क्या आप उस सीख को अपने जीवन में आगे बढ़ाएंगे ? कुछ आपने जाना ? यह जो समय है, जो लॉकडाउन का समय है इसमें आप विचार कर रहे हैं तो क्या विचार किया आपने ? क्योंकि यह बात है कि सचमुच में यह दुनिया, एक दूसरी दुनिया बन सकती है जिसमें लोग शांति की बात करें, एक-दूसरे से मिलकर रहें। हर एक व्यक्ति में कितनी शक्ति है — यह इस समय मालूम पड़ रहा है। हर एक व्यक्ति जो लॉकडाउन में है, उसका जो दान है वह कितना जरूरी है — इस समय पता लगता है।
तो समझने की बात है, सोचने की बात है और अपने जीवन को सचमुच में सफल बनाने की बात है। क्योंकि यह जो कुछ भी हो रहा है, यह तो खत्म होगा पर हमको अपना जीवन सफल बनाना है उससे पहले कि यह सारा खेल जो है, यह जीवन का खेल खत्म हो।
सोचिये आप इन प्रश्नों के बारे में। और आगे "क्या होगा", वह नहीं "क्या हो रहा है" — उस पर भी ध्यान देना शुरू कीजिए, क्योंकि आनंद वहां है। क्योंकि सृष्टि को रचाने वाला, रचने वाला वह उस जगह है जो हो रहा है, तुम्हारे अंदर है, अब है। उसको जानो; उसको पहचानो और अपने जीवन को सफल बनाओ!
सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
प्रेम रावत जी:
सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
आज मैं एक दोहे से चालू करना चाहता हूं वह दोहा है कि —
कर्म कुहाड़ा अंग वन, काटत बारंबार।
अपने हाथों आप को, काटत है संसार।।
तो कहने का अभिप्राय इस दोहे का यही है कि मनुष्य आज जिस हालत में है वह उसी की बनाई हुई है। अपने आप को ही वह नुकसान पहुंचा रहा है। अब कई लोग हैं जो कहेंगे कि "ऐसा तो नहीं है जी! यह कोरोना वायरस जो आया, यह तो हमने नहीं बनाया। यह तो कहीं और से आया है।" ठीक बात है, पर यह भी विचारने की बात है कि जिस माहौल में रह करके हम परेशान हो रहे हैं, इस कोरोना वायरस की वजह से यह किसने बनाया ? जो गरीब लोग हैं उनके लिए और भी मुश्किल है। यह बड़े-बड़े शहर जो बन गए जिनमें रहने के लिए ठीक ढंग से इंतजाम नहीं है लोगों का, यह किसने बनाया ? तो यह तो मनुष्य ने ही बनाया है। यह तो हम लोगों ने ही बनाया है और यह जब बन गया और इसमें फिर — जब मकान लोगों ने बनाए, मकान लोगों ने खरीदे; मकानों में लोग रहते हैं। परंतु जब यह हो गया कि “नहीं तुमको रहना ही है यहां” तो वही मकान — जो अच्छा मकान है; यह मेरा मकान है; यह सब बढ़िया है; यह ठीक है; वह ठीक है। वही मुश्किल की बात बन गयी।
तो हम लोगों को थोड़ा-सा समझना चाहिए कि "यह हुआ क्यों है!" और सबसे बड़ी बात अगर हम उस तरफ जायें भी ना कि "यह हुआ क्यों है; क्यों हुआ है यह सबकुछ!" फिर भी हमको किस प्रकार रहना है हम क्या करें ऐसी परिस्थितियों में?
मैंने पहले ही कहा है कि डरने से तो कुछ होगा नहीं, हिम्मत से काम लेना है। और सबसे बड़ी चीज जो एक फैक्ट (fact) है, जो एक बात है, असलियत है, वह यह है कि “आपको आपके साथ रहना है, आपको आपके साथ रहना है!” प्रश्न सबसे बड़ा — प्रश्न तो मेरे पास बहुत आ रहे हैं, पर सबसे बड़ा प्रश्न मेरा सबसे यह है कि "क्या आप अपने साथ रह सकते हैं?" और किसी के साथ की बात नहीं कर रहा हूं — अपने साथ क्योंकि —
चलती चक्की देख कर, दिया कबीरा रोए।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए।।
यह चक्की जो है यहां चल रही है; चल रही है; चल रही है; चल रही है; चल रही है। यह जो कानों के बीच की आवाज़ है, यह बंद ही नहीं हो रही है। तो कोई कुछ सोच रहा है; कोई कुछ सोच रहा है; कोई कुछ सोच रहा है; यह क्या होगा; क्या होगा। लोग ऐजटैटड (agitated) हैं, गुस्सा आ रखा है लोगों को। जहां शांत होना चाहिए क्योंकि जो मनुष्य अपने साथ नहीं रह सकता वह किसी और के साथ क्या रहेगा। जो मनुष्य — जिसको उसकी संगत पसंद नहीं है, खुद की संगत पसंद नहीं है वह और किसी के साथ क्या रहेगा!
और फिर मन है, मन चंचल है और मन कहता है, "नहीं मैं यहां जाना चाहता हूँ, मैं वहां जाना चाहता हूँ।" वह सब जगह, जो तुम जाना भी नहीं चाहते होगे अगर तुमको स्वतंत्रता हो तो! परंतु नहीं है तो फिर विचार आते हैं कि "वहां भी जाना चाहिए; वहां भी जाना चाहिए, वहां भी जाना चाहिए, यह भी करना चाहिए, वह भी करना चाहिए!" यह सारी चीजें इनसे परेशान होने की आपको कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि विचारिये कि जब आप अपनी संगत से ही परेशान हैं तो फिर कैसे काम चलेगा, फिर कैसे काम चलेगा? फिर यह जिंदगी क्या हो गयी ? फिर कैसे आगे बात चलेगी ?
जो औरों की चीज को देख करके कि "उसके साथ यह है, उसके साथ यह है, उसके साथ यह है, और मेरे साथ क्या है, मेरे पास क्या है?" — मैं उसी बात की चर्चा कर रहा हूं कि जो मेरे को एक प्रश्न किसी ने लिखकर दिया कि "मेरे दोस्त जो हैं उनके पास लैटेस्ट गैजेट रहते हैं, नए फोन रहते हैं, यह रहता है, वह रहता है और मेरे पास ये सब चीजें नहीं हैं मेरे को जलन होती है, मेरे को ईर्ष्या होती है!"
पर जो तुम्हारे पास है क्या तुम उसको जानते हो, वह क्या है ? वह है सुख और शांति जो तुम्हारे अंदर है। तुम उसको क्यों नहीं लैटेस्ट गैजेट कहते हो, वह तो बिलकुल ही लैटेस्ट गैजेट है। सबसे बढ़िया चीज है वह। उसको देखो, उसको अपनाओ। और जब उसको अपना सकोगे तो तुममें वह हिम्मत आएगी कि तुम किसी भी चीज का संघर्ष कर सकते हो, किसी भी चीज से और तुमको हार मानने की जरूरत नहीं पड़ेगी अपने जीवन में। क्योंकि जब मनुष्य अपने आपको जानता है तो उसको मालूम है कि मैं कौन हूं और उसमें फिर वह शक्ति आती है जानने से, समझने से कि "हां मेरे अंदर वह चीज विराजमान है, जो सब जगह व्यापक है। जो सब जगह है। वह मेरे अंदर भी है।” फिर उसको इस बात का दुख नहीं होता है कि मेरे को इस संसार से जाना है। जाने-आने का चक्कर तो इस संसार के अंदर हमेशा लगा ही रहता है। बात यह है कि क्या हर दिन जो बीत रहा है उसमें आप कुछ सीख रहे हैं ? उसमें कुछ समझ रहे हैं ? एक कहानी है और मैंने सुनाई है पहले भी।
तो भगवान राम के समय की कहानी है। सभी देवी-देवता भगवान राम के पास आए और कहा — "प्रभु अब समय हो गया है जिस चीज के लिए आप आए थे वह सारी चीजें पूरी हो गई हैं। रावण का वध हो गया है, दानवों का नाश हुआ है और सब कुछ ठीक है इस समय और आप जिस काम के लिए इस पृथ्वी पर आए थे वह काम पूरा हो गया है आपका। अब आइए वापस और बैकुंठ में आइए और सब कुछ ठीक है। जो आपका असली, जो आपका मकान है, घर है उसको आप सम्भालिये, वहां आ जाइये आप।"
तो भगवान राम ने कहा, "ठीक है मैं आने के लिए तैयार हूँ और मैं इससे सहमत हूं। जिस चीज के लिए मैं आया था वह सब हो गया और लव-कुश मेरा सिंहासन संभालेंगे, वह आगे चलाएंगे और मेरा काम हो गया मैं आने के लिए तैयार हूं।"
तो तुम यमराज को बोलो कि वह मेरे को लेने के लिए आ जाये। तो सभी देवी-देवता यमराज के पास गए कि भगवान राम का समय अब पूरा हो गया है उनको लेने के लिए जाओ और वह वापस बैकुंठ जाएंगे।
यमराज ने कहा — "मैं नहीं जा रहा भगवान राम को लेने के लिए और इसलिए नहीं जा रहा कि वहां हनुमान है और वह हनुमान जो हैं वह मेरे को भगवान के नजदीक थोड़े ही आने देंगे, तो मैं नहीं जा रहा।"
सभी देवी-देवता बड़े परेशान हुए कि क्या होगा अब! तो फिर गए भगवान राम के पास और कहा — "भगवान! हमने तो यमराज को कहा कि वह आपको आएं, ले जाएं। पर यमराज ने मना कर दिया कि जबतक हनुमान है, मैं नहीं आऊंगा।"
तो भगवान राम ने कहा — "ठीक है! तुम यमराज को कहो कि मैं हनुमान को ऐसी चीज में लगा दूंगा कि वह व्यस्त रहेगा और वह उनसे लड़ाई नहीं कर पाएगा, उनसे कुछ कह नहीं पाएगा, वह वहां होगा भी नहीं। मैं ऐसी कोई चीज दे दूंगा हनुमान को करने के लिए।
तो भगवान राम ने अपनी अंगूठी ली और उसको एक, जहां वह लेटे हुए थे, बैठे हुए थे वहां एक दरार थी उस दरार के अंदर डाल दिया, क्रैक (crack) के अंदर डाल दिया। और हनुमान को बुलाया कि "हनुमान मेरी अंगूठी जो है इस क्रैक में चली गई है जरा लाना वापिस!"
तो हनुमान ने एक छोटा-सा रूप लिया और उस रिंग के पीछे, उस अंगूठी के पीछे वह चल दिया। अब चलते-चलते, खोजते-खोजते,खोजते-खोजते,खोजते-खोजते वह पाताल लोक में पहुँचा। पाताल लोक में पहुँचा, तो उसने देखा कि वहां सभी जो पाताल के वासी थे वहां हैं और एक बड़े-बड़े कमरे बने हुए हैं। जब हनुमान को देखा पाताल के लोगों ने तो कहा — "आइये, आइये आप! आये हैं आप! कहिये हम आपकी कैसे सेवा कर सकते हैं ?"
कहा — "भाई! मैं भगवान राम की अंगूठी लेने के लिए आया हूं, वह कहीं उस दरार में गिर गई, तो यहां पहुंच गई होगी।"
कहा — “हां,हां! आप उस कमरे में जाइये, पहले वाले कमरे में जाइये और देखिये वहां आपको अंगूठी मिल जायेगी।”
जब वह — हनुमान जी गए और उन्होंने वह खोला, दरवाजा खोला तो देखा एक अंगूठी नहीं, हजारों-हजारों अंगूठियाँ वहां पड़ी हुईं। तो हनुमान ने कहा — 'मेरे को तो एक अंगूठी चाहिए। पर यहां तो हजारों-हजारों अंगूठियाँ और एक-सबके सब वैसे ही हैं। मेरे को तो एक चाहिए, तो वह कौन-सी है ?
तब पाताल वासियों ने कहा — "जी यह तो होता ही रहता है। यह तो हर समय जब भगवान आते हैं तो वह अपनी अंगूठी यहां गिराते हैं और आप अंगूठी को लेने के लिए आते हैं और यही चर्चा होती है कि यह काहे के लिए?"
कहा — "दूसरे जो कमरे हैं वह काहे के लिए हैं ?"
कहा — "वह और अंगूठियों के लिए हैं। यह तो होता ही रहेगा, होता ही रहेगा, होता ही रहेगा, होता ही रहेगा।"
मेरे को यह कहानी पसंद है। परन्तु मैं एक प्रश्न भी पूछता हूं इस कहानी को सुनाने के बाद और प्रश्न मेरा यह है कि "ठीक है यह जो कुछ भी हो रहा है, यह होता रहेगा, होता रहेगा, होता रहेगा, हो या ना हो वह बात अलग है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि आपने इससे सीखा क्या ? यह जो हो रहा है इससे आपने सीखा क्या ?"
एक तो वह वाली बात है कि खुद ही मनुष्य मरीज बन गया, "अजी! मेरे से कुछ नहीं होगा। मैं तो यहां बैठा हुआ हूं, यह हो रहा है, यह ठीक नहीं है, वह ठीक नहीं है, ऐसा है, वैसा है।" फिर सीखा क्या ?
सीखा यह, सीखने की बात जो असली वह यह है कि जो मनुष्य को अहंकार होता है कि "मैंने यह काबू में कर लिया, मैंने यह काबू में कर लिया, मैंने यह कर लिया, मैंने वह कर लिया; मैंने यह देख लिया; मैंने वह देख लिया — वह कुछ नहीं हुआ है। वह सब व्यर्थ है। वह सब गलत है। क्योंकि असली चीज जो है वह यह है कि "तुम जीवित हो, तुम्हारे अंदर स्वांस आ रहा है, जा रहा है।" यह चीज है असली और कोई चीज नहीं है।
यह कोरोना वायरस भी एक दिन चली जाएगी। एक दिन ऐसा भी आएगा कि तुम भी यहां नहीं रहोगे। एक दिन ऐसा भी आएगा कि यह सारी सृष्टि, यह जो पृथ्वी है यह भी यहां नहीं रहेगी। चंदा भी जाएगा, सूरज भी जाएगा। सितारे भी जाएंगे। सबकुछ जाएगा। कल नहीं, परसों नहीं, अरबों साल की बात कर रहा हूं मैं। परंतु आज का सत्य, तुम्हारा जो सत्य है वह असली सत्य क्या है कि तुम्हारे अंदर यह स्वांस आ रहा है, जा रहा है। यह सीखना है कि इसका आदर कैसे किया जाए, इसका सत्कार कैसे किया जाए और अपने जीवन को सफल कैसे बनाया जाए। यह सीखने की बात है। अगर यह सीख लिया, यह जान लिया तो सबकुछ जान लिया। और यह नहीं जाना, तो कुछ नहीं जाना। यह सीख लिया, यह समझ लिया तो सबकुछ सीख लिया। और यह नहीं समझा, यह नहीं सीखा तो कुछ भी नहीं सीखा।
आप कुशल-मंगल रहिये! आनंद से रहिये! अपने साथ रहना सीखिए! चिंता में नहीं, आनंद में, क्योंकि जो मन है यह चिंता की तरफ ले जाता है। हृदय है वह आनंद की तरफ ले जाना चाहता है। आनंद की तरफ जाइये। आनंद से रहिए और सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
प्रेम रावत जी:
सभी श्रोताओं को मेरा नमस्कार!
आज मेरे को यह मौका मिला है आपलोगों तक इस वीडियो के द्वारा मेरा संदेश आप तक पहुंचें। तो मैं यही कोशिश करता हूँ कि जो कुछ भी मेरे हृदय में है आप तक मैं पहुंचाऊं। इन परिस्थितियों में लोग सचमुच में बहुत दुखी हैं, क्योंकि क्या करें? ये तो वो वाली बात हो गयी कि "मरता क्या नहीं करता!"
एक तरफ तो गवर्नमेंट है, कह रही है कि "ये मत करो, वो मत करो, घर में बैठे रहो!" ये लोगों की आदत नहीं है। आजकल तो ये रिवाज़ है कि बाहर जाएं, लोगों से मिलें, ये करें, वो करें। परंतु एक बात है सोचने कि आपको — ठीक है परिस्थितियां ठीक नहीं हैं, यह कोरोना वायरस है और ये सबकुछ है। आइसोलेशन जो है कि आप और लोगों से दूर रहें ताकि आप बीमार न पड़ें।
यह बहुत गंभीर बात है और सीरियस बात है। इस बात को गंभीर तरीके से लेना चाहिए। परंतु हम क्या करें ? अब एक तरफ तो जो कुछ भी हमसे कहा जा रहा है — डरने की बात है, डराने की बात है, ये मत करो, वो मत करो! नहीं तो ये हो जायेगा, नहीं तो वो हो जाएगा।
तो ये मैं कहने के लिए वीडियो नहीं बना रहा हूं। मैं यह कहने के लिए बना रहा हूँ कि आपके पास एक चीज है, आपका हृदय है, आपके अंदर एक चीज है, जो बहुत ही सुन्दर है और चाहे कोई भी बाहर परिस्थिति हो और दुःख देने वाली हो, परन्तु आपके अंदर जो चीज है, वह सुख देने वाली है, वह सुंदरता को पसंद करती है। जो — कैसी सुंदरता ? दुनिया की सुंदरता नहीं, वह आपके अंदर स्थित जो चीज है, जिसे हृदय कहते हैं। उसके अंदर वास करने वाली मधुर, वो चीज, जिसका सेवन करने से मनुष्य का हृदय और गद्गद होता है। जिसको एक्सपीरियंस करने से, जिसको महसूस करने से मनुष्य और खुश होता है और उसकी ख़ुशी दिमागी ख़ुशी नहीं है। पर वह ख़ुशी हृदय की ख़ुशी है। वह आपके अंदर है, वह सब मनुष्यों के अंदर है। चाहे कोई भी हो, कैसा भी हो, कुछ भी करता हो उसका बाहर की चीजों से कुछ भी लेना-देना नहीं है। उसका — तुम अंदर तक पहुंच सकते हो या नहीं उससे सबकुछ लेना-देना है।
मैं आजकल लोगों से कहता हूँ कि तीन चीजें करो — अगर तुम अपनी जिंदगी में कुछ नहीं कर सकते हो, तो कम से कम तीन चीजें करने की कोशिश करो। एक तो "अपने आपको जानो।" जिसका बहुत ही बड़ा महत्व है। क्योंकि जो अपने आपको नहीं जानता, उसको क्या मालूम कि वह कौन है, क्या है, काहे के लिए यहां आया है! न जानने के कारण उसके हजारों क्वेश्चनस हैं, उसके हजारों प्रश्न उठेंगे कि — मैं यहां क्या कर रहा हूँ; ऐसा कैसे हो रहा है मेरे साथ; ये कैसे हो रहा है; ये क्यों हो रहा है; ये क्यों हो रहा है; ये अच्छा क्यों है; ये बुरा क्यों है! ये सारे प्रश्न होंगें।
अगर अपने आपको नहीं जानते हैं, तो यही सबकुछ होगा, पर अगर अपने आपको आप जानते हैं, तो फिर इन चीजों से हटकर दुनिया की जो सारी चीजें हैं, जो हमेशा बदलती रहती हैं, इनसे हटकर एक और चीज है, जो आपके अंदर है, उसको आप जान सकते हैं।
तो एक, ‘अपने आपको जानिए!’ दूसरा, ‘सचेत होकर, (conscious), सचेत होकर के आप अपनी जिंदगी जीयें।’ ये नहीं है कि आँखें बंद कर ली; क्या हो रहा है; क्या नहीं हो रहा है किसी को नहीं मालूम। लोग करते हैं, आँखें बंद कर लेते हैं — ये दुःख की बात है; ये बुरा है; ये ऐसा है; ये वैसा है; मैं इसके बारे मैं कुछ जानना नहीं चाहता हूँ; मेरे को इसके बारे में कुछ मत बताओ; ये सब नकली है। लोगों के बहाने हैं — ये सब नकली है, ये अंदर की बात कुछ नहीं है;ये सबकुछ नहीं होता है।
कहानी आती है एक लोमड़ी की! एक बार एक लोमड़ी कहीं जा रही थी, तो उसने देखा कि एक टहनी पर अंगूर लगे हुए हैं, तो उसको भूख लगी।
कहा कि, "अंगूर खाऊंगी मैं, अच्छे होंगे!"
तो कूदी, तो अंगूर जहाँ लगे हुए थे, वो जगह थोड़ी ऊंची थी। तो वह कूद नहीं पायी।
फिर उसने कोशिश की कूदने की, फिर कूद नहीं पायी। फिर कूदने की कोशिश की, तो कूद नहीं पायी।
तो उसने कहा, "ना! ये अंगूर खट्टे हैं! यह अच्छे नहीं है, मेरे को नहीं चाहिए!”
तो यह बात हो जाती है लोगों की — जब नहीं पहुंच पाते है उस जगह, तो ये सब जो आप कह रहे हैं, जो मैं कह रहा हूँ कि, “ये सारी चीजें हैं!”
तो लोग कहते हैं, “ये हैं ही नहीं!” पर है!
और जबतक हम आँख नहीं खोलेंगे अपनी, क्योंकि ये आँख दुनिया को देखती है। अंदर की आँख, जो अंदर हो रहा है उसको देखेंगी। तो जब हम देख लेंगे उसको; जान लेंगें; तब हमारी जिंदगी के अंदर दूसरा रंग आएगा।
तो एक, "अपने आपको जानो, दूसरी, अपनी — ये जो जीवन है इसको सचेत होकर के, चेतना के साथ इसको बिताओ और तीसरी चीज — इस हृदय के अंदर आभार होना चाहिए — Gratitude, आभार!"
अगर ये तीन चीजें आपकी जिंदगी के अंदर हो गयीं, तो फिर वाह-वाह है! फिर आप ये नहीं कहेंगे कि, "मैं यहां क्यों हूँ ?"
फिर आप ये कहेंगे, "लाख-लाख शुक्रिया है कि मेरे को यह जीवन मिला!"
तब कोई भी परिस्थिति हो, बाहर कुछ भी हो रहा है — चाहे जंग लड़े जा रहे हैं; लड़ाईयां लड़ी जा रही हैं; कोरोना वायरस है; कोरोना वायरस नहीं है; आइसोलेशन है; आइसोलेशन नहीं है; कुछ भी हो रहा है। ऐतिहासिक समय है ये! ऐतिहासिक समय!
देखिये! ये बीस-बीस (2020) की बात हो रही है और कितनी टेक्नोलॉजी है, कितना घमंड था लोगों को, टेक्नोलॉजी, टेक्नोलॉजी, टेक्नोलॉजी, टेक्नोलॉजी,टेक्नोलॉजी!
"देखो! ऐसा फ़ोन है मेरे पास, ये मेरा ये कर देगा, ये-ये कर देगा,ये-ये कर देगा,ये-ये कर देगा!"
और मैं हमेशा ये कहता आया हूँ, ये सारी टेक्नोलॉजी, वेक्नोलॉजी तुम्हारे असली काम नहीं आएगी। असली काम जो तुम्हारा है, जो तीन चीजें अगर तुम कर पाए — एक, अपने आपको जानो, और दूसरा सचेत होकर इस जिंदगी को जियो, और तीसरा आपके हृदय में आभार भरे! ये तीन चीजें — इनको करने के लिए इन टेक्नोलॉजीज़ की जरूरत नहीं है। इन चीजों को पूरा करने के लिए आपको अंदर की तरफ मुड़ने की जो टेक्नोलॉजी है उसकी जरूरत है। और अगर ये आपने कर दिया, ये तीन चीजें अगर आपने कर दिया अपनी जिंदगी के अंदर तो फिर सब वाह-वाह हो जायेगी।
तो जैसा मैं कह रहा था, टेक्नोलॉजी में अब ये है, वो है, मेरे पास ये है; ये कर देंगें; वो कर देंगें और ये हो जाएगा और 5G आएगा और 6G आएगा और 7G आएगा। क्या-क्या नहीं होगा। सारी चीजें ये — कर लो, कर लो। 5G को बुला लो, क्या करेगा वो ? 5G को बुला लो, 6G को बुला लो, किसी G को बुला लो, क्या करेगा वो ? लोग मरेंगें। अमेरिका में कितने मर रहे हैं; स्पेन में कितने मर रहे हैं; इटली में कितने मर रहे हैं; ईरान में कितने मर रहे हैं, अभी और भी मरेंगे। क्योंकि इस टेक्नोलॉजी का तुमसे — तुम इस संसार के अंदर ज्यादा दिन नहीं हो। जैसे मैं पहले कहता ही आया हूँ कि यह जो समय हमारे पास है, यह ज्यादा नहीं है।
अगर हम सौ साल भी जीये तो 36000 — छत्तीस हजार पांच सौ दिन बनते हैं। तो ज्यादा नहीं बने हैं। जितने भी दिन हैं, एक-एक दिन अगर स्वीकार कर लिया हमने तो हमारी वाह-वाह होगी, हृदय से वाह-वाह होगी। आनंद में, क्योंकि उसका नाम क्या है, सत् चित् आनंद! सत् क्यों - कैसा सत्य ? जिसमें हम अपनी चेतना को, चित् को लगा सकें। क्यों लगा सकें ? क्यों करें ये सबकुछ ?
इसलिए कि उससे फिर हमारे जीवन में आनंद ही आनंद संभव है। उस आनंद के लिए, उस सच्चे आनंद के लिए हम ये कर सकते हैं। अगर हमको वह आनंद चाहिए, जैसे कबीरदासजी ने कहा है —
जल बिच कमल, कमल बिच कलियां, जा में भंवर लुभासी।
सो मन तिरलोक भयो सब, यती सती संन्यासी।।
लोग सब भ्रमण कर रहे हैं, सब घूम रहे हैं। कोई यहां जा रहा है, कोई वहां जा रहा है, कोई वहां जा रहा है, कोई वहां जा रहा है। और यह भी एक, कोरोना वायरस भी एक भौंरा है उसमें और वो भी भर्र-भर्र-भर्र कर रहा है, वो भी भौं-भौं-भौं कर रहा है। और उसी में सारे लगे हुए हैं आज। किसी को ये होश ही नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है। लोग मूवीज़ बनाते थे, फिल्म बनती थी, ऐसा हो गया, वो हो जायेगा, ऐसा हो जाएगा, ऐसा हो जाएगा। पर किसी को यह नहीं था कि असली में होगा। अब हो गया।
हम भी अभी, दो दिन पहले, हम भी भ्रमण कर रहे थे। अब कहीं नहीं जा सकते और हमने उचित नहीं सोचा कि हम कहीं जाएं और लोग हमको मिलने के लिए आएं और फिर इससे कोरोना वायरस और फैले। तो हम नहीं चाहते थे। तो हम गए हुए थे बार्सिलोना में, बार्सिलोना में फिर मैड्रिड गए, मैड्रिड में बुक लॉन्च की नई वाली। उसके बाद हम बार्सिलोना वापिस आये फिर वहां कुछ प्रोग्राम किये तब सबकुछ नार्मल था। उसके बाद ऑस्ट्रिया गए, ऑस्ट्रिया में भी प्रोग्राम किये। फिर हमने सोचा कि अब यूरोप में तो जगह बंद होने लगी तो हमने सोचा कि चलते हैं, साउथ अमेरिका चलते हैं, तो हम ब्राज़ील पहुंचे और जैस ही ब्राज़ील पहुंचे, तो वहां दो दिन के लिए थे उसके बाद हमको जाना था अर्जेंटीना। तो जैसे ही अर्जेंटीना — जैसे ही अगले दिन चलना था उससे पहले ही उन्होंने कह दिया "नहीं! कोई नहीं आ सकता अर्जेंटीना में!"
तो उन्होंने कहा, फिर प्रोग्राम भी नहीं होंगें, तो हम क्या करें ? तो कुछ दिन ब्राज़ील में ही रहे। अर्जेंटीना से फिर उरुग्वे जाना था। तो वहां भी नहीं जा सके। फिर हमने सोचा, "चलो अफ्रीका चलते हैं!" तो अफ्रीका चलने के लिए तैयार हुए तो फिर वहां भी यही हो गया कि "नहीं! हम किसी को नहीं चाहते है कि कोई यहां आये!"
तो फिर हम यहां अमेरिका आये और दो दिन पहले वापिस घर में आये और अब कहीं नहीं जा रहे हैं। घर ही में हैं। तो हमने यही सोचा कि, "भाई! वीडियो बनाकर कम से कम लोगों तक हमारा सन्देश पहुंचे तो अच्छा रहेगा। अगर प्रोग्राम नहीं कर सकते हैं तो कोई बात नहीं, पर कम से कम लोग अपने घर में तो बैठे हुए हैं, तो वहां टेक्नोलॉजी है तो उसकी वजह से ये सब जा सकता है।
परन्तु हमारा विश्वास मनुष्यों पर है; हमारा विश्वास इस स्वांस पर है; हमारा विश्वास इस बात पर है कि मनुष्य के अंदर जो शक्ति है, वह असली शक्ति है और कोरोना वायरस आये, कोरोना वायरस नहीं आये, इससे हमको मतलब नहीं है। सावधान जरूर हैं हम और सभी को सावधान होना चाहिए। ताकि ये ज्यादा नहीं फैले। क्योंकि जो लोग हैं, इससे मर भी सकते हैं और यह अच्छी चीज नहीं है। ये हुई है, इससे प्रदूषण कम हुआ है कई जगह। जो छोटे-छोटे बच्चे हैं, उनके लिए अच्छा हुआ है क्योंकि यह उनको ज्यादा तकलीफ नहीं देती है और उनके लिए प्रदूषण भी कम हुआ है तो उनके लिए तो अच्छा है।
तो मैं कोशिश करूँगा कि जितनी भी मैं यह वीडियो बना सकूँ और आपलोगों तक यह पहुँच सके, आपलोग देख सकें इसको और अगर कोई प्रश्न आप मेरे से पूछना चाहते हैं या मेरे तक कोई चीज आप चाहते है, लिखित तो आप premrawat.com में वो अपने प्रश्न भेज सकते हैं, वो मेरे तक पहुंचेंगे। या फिर timeless today उसके द्वारा भी वो प्रश्न मेरे तक पहुँच जाएंगे।
तो मैं तो यही कोशिश करूँगा कि आप तक मेरा सन्देश पहुंचें और पहुंचें या न पहुंचें। कम से कम आप सुरक्षित रहें, आनंद में रहें और अच्छी तरीके से रहें, तो अगली वीडियो तक आपसे फिर मुलाकात होगी।
सभी को मेरा नमस्कार!
प्रेम रावत:
सबको नमस्कार! मैं हूं प्रेम रावत। और जी हां! मुझे लगा कि इस वक़्त आपको, सभी को सम्बोधित करूं।
हम कोरोना वायरस में फंसे हुए हैं! और बहुत लोगों के लिए यह बेहद मुश्किल समय है और अगर किसी भी तरह से मैं भार कम कर सकूं, ये परेशानी, आपकी चिंता, तो जी हां, हम सभी चिंतित हैं। लेकिन अगर किसी तरह मैं वो भार कम कर पाऊं, जो लोग महसूस कर रहे हैं, तो बहुत अच्छा लगेगा।
तो क्या हो रहा है ? अब एक छोटा, छोटा-सा वायरस फैल रहा है और बहुत सारी बातें हैं; लोगों के कई विचार भी हैं; बहुत सारी गलत जानकारी भी है; अच्छी जानकारी भी है; बुरी जानकारी भी है……और देखा जाये तो स्पष्टता बिलकुल नहीं है। इस बारे में जानकारी नहीं है कि सच्चाई क्या है।
अब क्या कुछ बदला है ? देखिये! एक तरह से सबकुछ बदल गया है। लेकिन, हर व्यक्ति सुरक्षित महसूस करना चाहता है। सबको अच्छा महसूस करना है; आजादी महसूस करना चाहता है! तो उस तरह से कुछ भी नहीं बदला, क्योंकि इसमें तो जब सबकुछ ठीक था, जब कोरोना वायरस की परेशानी नहीं थी, लोग तब भी यही सोच रहे थे!
लेकिन आज, क्योंकि बोझ हमारे ऊपर है और अब है कि ये डर — ये डर आ गया है और बिलकुल आप डर को बढ़ने दे सकते हैं और ये डर भी यही चाहता है। लेकिन मैं आपको कुछ याद दिलाना चाहता हूं।
आपके भीतर कुछ कमाल का है, इसे कहते हैं “हिम्मत।” इस मुश्किल समय में, इस चिंतित करने वाले समय में हमें इस्तेमाल करनी चाहिए, अपनी हिम्मत, डर नहीं, इस वक़्त से निकलने के लिए। हमें वह रोशनी चाहिए, जो हमारे हृदय के भीतर चमकती है ताकि अँधेरे जंगल में उजियाला हो पाए।
हमें हर रोज एक उद्देश्य की भावना के साथ जीना होगा, स्पष्टता की भावना, समझ की भावना। भावना जो होगी, संदेह नहीं, पर स्पष्टता, और मैं इस बारे में हमेशा बात करता हूँ। लेकिन इस समय में हमारे भीतर के गुणों को हर रोज चमकना ही होगा, हर रोज!
ये इसके बारे में नहीं कि, जानते हैं “आज जरूरी नहीं।” नहीं, आज जरूरी है। अचानक से ही, पूरी दुनिया में हो गया है एक बंद, हर जगह एक बंद है। देखिये जैसे — तो आप क्या करेंगे? आप क्या सोचते हैं ?
और बहुत ज्यादा गलत जानकारियां हैं — टेलीविज़न पर, सोशल मीडिया में और ऐसे ही बाकी जगह पर। लेकिन आपके भीतर एक सत्य है — और आपको उस सत्य को बाहर आने देना है आपके भीतर एक सच्चाई है और आपको उस सच्चाई को बाहर आने देना है।
इसके विपरीत, मैं कहूंगा, सबकुछ अलग-सा है — क्योंकि इतना कुछ हो रहा है, जैसे एक परेशान करने वाली बात, ये कोरोना वायरस — और हमें सबसे अलग रहना है और ध्यान रखना है कि हम स्वस्थ रहें, लेकिन हमें स्वस्थ रहना ही है। सिर्फ शरीर से नहीं, लेकिन हमें यहाँ से भी स्वस्थ रहना है, दिमाग से।
ये सभी मुद्दे बहुत जरूरी हैं; जैसे कि “हम ये कैसे करेंगे ? हम कैसे अच्छाई को लेकर इसे पूरी तरह से बाहर आने दें ? हम इन मुश्किल हालातों में कैसे मजे करेंगे ?”
कभी-कभी जानते हैं, आपको बस पीछे हटना होता है और खुद से कहिये कि “ये सब किसलिए है ? मैं यहां हूँ, मैं इस पहेली का छोटा-सा हिस्सा हूं।” बिलकुल, आप बाकी लोगों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते, इसलिए आप नहीं चाहते कि आप बाकी लोगों में संक्रमण फैला दें और इसका सबसे अच्छा तरीका है कि दूर रहें, निर्देश दिए जा रहे हैं और इसमें कई बातें बिलकुल सही हैं।
आप किस पर निर्भर हैं ? देखिये! पहले तो आपको अपने भीतर देखना होगा। आपको खुद पर निर्भर रहना होगा, आपका हृदय, आपकी समझ, स्पष्टता के लिए चाह, खुश होने की उम्मीद, आपको इस पर निर्भर रहना ही होगा — आपको इसे अपनाना होगा कि यह एक बुनियादी सी चीज है!
डर में डूबना बिलकुल नहीं। लेकिन डूबना जैसे “हे भगवान! मेरे साथ क्या होने वाला है।” अब, आपको चिंता होनी चाहिए — लेकिन इस तरह से कुछ बहुत ही सुन्दर आपके हृदय द्वारा कहा भी जा रहा है, आपके द्वारा।
आपको इसमें खुद को शामिल करना है। खुद को अलग न करें, आपको खुद को इसमें शामिल करना है। आपको यहां उस सुंदरता को शामिल करना है, जो आपके हृदय के भीतर है।
क्योंकि क्या होने वाला है ? जानते हैं, हमने देखा, हमने चाइना की संख्या देखी है और यहीं से महामारी शुरू हुई है। लेकिन गौर से देखें तो उन्होनें बीमारी को रोका और उसे नियंत्रित कर पाए — उस वक़्त तक जबकि आज चलिए जो संख्या है लोगों की, जो मृत हो चुके हैं, नए लोग बीमार हो रहे हैं, वो संख्या कम है!
“क्या हम ये कर सकते हैं; क्या हम ये जंग जीत सकते हैं ?” हां हम ये जंग जीत सकते हैं। बात बस यही है अच्छा होता कि इतनी ज्यादा संख्या नहीं होती, जानते हैं कि मृत लोगों की संख्या, जो बढ़ती ही जा रही है!
लेकिन हम इंसानो को एक साथ रहना होगा; हमें एक साथ आना है और हमें एक अलग तरह से साथ में आना है, हमें मिलकर काम करना है — बस अपने ही साथ रहकर। आइसोलेशन में भी हमें पूर्ण होना है, हमें पूरा होना है और बेवकूफी भरी चीजें नहीं करनी हैं।
लेकिन इसी वक़्त, क्या इंसान इस दौर में जीतेंगे, इस जंग को ? और हां, हां जानते हैं, हां, हमें जीतना ही है; जीतना ही है। हमें आगे जाना है और हम कैसे जीत सकते हैं — समझदार होकर, स्पष्ट होकर, संदेह के बिना, गुस्से के बिना, उलझन के बिना, एक-दूसरे पर आरोप लगाए बिना। ये वक़्त है…
यह जो वायरस है, (जो जीवित वस्तु नहीं, बस चर्बी में लिपटा हुआ थोड़ा आर एन ए है।) इसने दुनिया में जो कुछ भी किया है वह सच में कमाल का है।
यह हमें बुला रहा है, अफसोसजनक और हानिकारक ढंग से कि हम साथ में आएं — हम सभी दुनिया भर में एक-दूसरे की मदद करें, अच्छी खबर फैलाएं, (अफवाह नहीं फैलाएं, गलत जानकारी नहीं फैलाएं), पर ये खबर देना कि “हिम्मत रखें! स्पष्टता रखें, अपने भीतर की अच्छाई का इस्तेमाल करें।”
और बस ऐसा ही करके मुझे लगता है कि हम इससे जीत सकते हैं और हम ये जंग सच में जीत सकते हैं। सच में जीतना और इससे हारेंगे नहीं, इसके सामने झुकेंगे नहीं, इससे चोट नहीं खाएंगे, पर साथ में आएंगे!
और यही वक़्त है खुद पर निर्भर करने का; करना, गलत बातें नहीं, पर जैसे निर्देश दिए गए हैं जानते हैं “आइसोलेट; घर पर रहें! बीमारी बाकी लोगों में न फैलाएं; दूरी बनाये रखें” — ये आसान निर्देश मानिये।
पर इसी वजह को देखते हुए, अपने हृदय पर ध्यान दें, खुद से मिलें, समझदारी लेकर आएं — और बस स्पष्टता से, स्पष्टता के जरिये देखें कि क्या चल रहा है, “हां! मैं जीवित हूँ और मेरी उम्मीदें नहीं बदली हैं!”
तो चाहे जो भी हो! और लोग जानते हैं उनके विचारों से “ये कैसे होगा और हम वो कैसे करेंगे!” और डॉक्टर्स, सच में साथ आ रहे हैं; मेडिकल स्टाफ एक साथ आकर लोगों की मदद कर रहा है। और हमें भी उनकी मदद करनी है। हमें एक-दूसरे की मदद करनी ही है।
यह वक़्त है कि इंसानियत काम करे और हम इंसान — उन सभी अच्छाइयों का अभ्यास करें, जो इंसानो में होती हैं। और एक-दूसरे के काम आएं, एक-दूसरे को कोमलता दिखाएं, एक-दूसरे को समझ दिखाएं, वक़्त है एक-दूसरे को समझने का, एक-दूसरे को संवेदना दिखाने का। यह वक़्त है स्पष्ट सोचने का। यह समय है हिम्मत का।
और अगर हम ऐसा कर पाएंगे तो मुझे लगता है हम बदलाव ला सकते हैं। अपने लिए, हर दिन जब हम जिंदा हैं। कोरोना वायरस के बिना भी, क्योंकि हमें अपनी दुनिया को बनाना है। कोरोना वायरस हो या न हो, हमें स्पष्टता में रहना है।
तो, उम्मीद है कि जितनी चीजें भी मैंने कहीं, आपको कुछ तो ठीक लगी होंगी और आप इसे हृदय तक ले जाएंगे। डरने की कोई भी जरूरत नहीं है, क्योंकि डर कुछ नहीं करता है, जानते हैं वह बस आपको झुका देता है।
आपको अभी चाहिए हिम्मत! परेशानी की जटिलता को समझिये; परेशानी की गंभीरता को समझिये, पर डर को बढ़ावा देने के बजाय स्पष्टता को बढ़ाइए; हिम्मत को बढ़ावा दें; समझ को बढ़ावा दें; संदेह को नहीं। और यहीं बातें हर रोज के जीवन में फर्क़ ला सकती हैं, जिन्हें हम जी रहे हैं।
अब, मुझसे जितना हो पायेगा, उतना संवाद करूँगा आपके साथ — और मेरी यह पहली कोशिश है मैं ये कर रहा हूँ। जानते हैं, बहुत ही आसान तरीके से मैंने अपना ट्राईपॉड सेट किया है; मैंने पाना आइफ़ोन इस पर लगाया है और ये ऐसे ही रिकॉर्ड हुआ है। मेरे पास अतिरिक्त लाइट्स नहीं है; मैं इस कमरे में हूं और ये बैकग्राउंड भी काफी सादा है।
मेरे लिए, पृष्टभूमि की अहमियत नहीं। जानते हैं, लाइटिंग से फर्क़ नहीं पड़ता — जबतक मैं आप तक पहुंचकर कुछ संतोष दे सकूं, कुछ समझ दे सकूं, आपको कुछ स्पष्टता दे सकूं। ताकि ये समय कुछ बेहतर हो पाए। जानते हैं क्योंकि ये मुश्किल समय है। इसमें कोई शक़ नहीं है।
और डर में जीना नहीं — लेकिन जीयें हिम्मत से, स्पष्टता के साथ, समझदारी के साथ। और हां, और हां, हम जीतेंगे, बिलकुल हम जीतेंगे, हम जीतेंगे।
मैं भी इससे प्रभावित हुआ हूँ बिलकुल वैसे ही, जैसे बाकी लोग। मैं यूरोप गया था। मैंने किये थे वहां पर कुछ इवेंट्स और फिर यूरोप एक लॉकडाउन में होने वाला था तो, मैंने सोचा कि चलिए, अब मैं साउथ अमेरिका में थोड़ा-सा वक़्त बिताऊंगा, क्योंकि उस वक़्त कोरोना वायरस के सिलसिले में वहां ज्यादा नहीं हो रहा था।
मैं ब्राज़ील में चला गया और मैं ब्राज़ील में ही था और फिर अगले दिन मुझे शायद अर्जेंटीना जाना था, पर अर्जेंटीना में भी लॉकडाउन लग गया।
फिर कुछ भी ना मीटिंग्स, ना कुछ और। और मैं उरुगुए नहीं जाना चाहता था, क्योंकि वहां पर भी मीटिंग करनी पड़ती मुझको और इस चीज को और फैलाऊं।
ऐसी कई सारी चीजें यहां पर हो रही हैं। और फिर, अंत में मुझे ज्यादा वक़्त पहले नहीं, मैं अमेरिका में आया और मैं अब तक घर नहीं गया हूँ। तो मैं अब भी 2000 मील दूर हूँ अपने घर से। पर मैं अमेरिका में हूँ। और मुझे उम्मीद है कि मैं घर जल्दी जा पाउँगा।
और हां, बिलकुल! बिलकुल! मैं अपने आपको अलग रखने वाला हूँ, पर इसका यह मतलब नहीं कि मैं आपसे बात नहीं कर सकता, इसका यह मतलब नहीं कि मैं संदेश नहीं दे सकता आपको, चाहे आप जहाँ भी हों।
और शायद, शायद मैं एक फर्क़ ला पाऊं और जितना भी हो पायेगा मैं उतना वक़्त आपके लिए उपलब्ध करूँगा। मुझे उम्मीद है कि ये ब्रॉडकास्ट आप तक पहुंचेंगे और आप मजे से सुनेंगे और आपका समय अच्छा बीतेगा। सच में!
धन्यवाद! आपसे फिर मिलूंगा।