Voiceover:
मुझे तो आप बखूबी जानते ही होंगे! क्योंकि इस दुनिया में आज मैं ही तो हूं, जो अलग-अलग रूपों में छाया हूं।
सही पहचाना!
मैं आपका दिल अजीज़ अंधेरा हूं। आप से तो मेरा बहुत पुराना याराना है। आज संसार में जो अज्ञानता, भ्रष्टाचार, आतंकवाद फैला है ये मेरे ही तो अंग हैं। और इन सबसे जब आप अशांत होते हैं तब मेरा मकसद पूरा होता है।
वैसे आप मुझे दूर हटाने की कोशिश तो बहुत करते हैं लेकिन छोड़िए जनाब! आपकी सब मेहनत बेकार है, क्योंकि मैं इस कदर आपकी जिंदगी पर घर कर चुका हूं कि मुझे कोई नहीं हटा सकता। आज सारे संसार पर धीरे-धीरे मेरा कब्जा होता जा रहा है। आप मजबूर हैं मुझे बर्दाश्त करने के लिए। मैं ऐसे ही आपको अशांत करता रहूंगा क्योंकि आपके पास कोई तरीका नहीं है। मैं यूं ही आप पर हावी रहूंगा। मुझको कोई नहीं हटा सकता, कोई नहीं हटा सकता, कोई नहीं हटा सकता, कोई नहीं हटा सकता....!
प्रेम रावत:
बत्ती जलाओ, अंधेरा मिटाओ। जब प्रकाश होगा तो तुम देख पाओगे! जब तुम देख पाओगे तो तुम्हारे संशय अपने आप दूर होंगे।
प्रेम रावत:
हम आज इस संसार को देखें तो जरूरतों के बल पर यह चल रहा है। भूख लगती है, खाना चाहिए। प्यास लगती है, पानी चाहिए। विश्राम चाहिए। नींद आती है, सोने की जगह चाहिए और इन कुछ जरूरतों को लेकर के सारे संसार के अंदर कितना बिज़नेस होता है।
ये जो दुनिया चल रही है आज, ये इसलिए चल रही है कि मनुष्य की कुछ जरूरतें हैं और उनको पूरा करना है। और जो संसार के अंदर लोग हैं जरूरतों को पूरा करने के लिए, हर दिन कुछ न कुछ करते रहते हैं, करते रहते हैं, करते रहते हैं, करते रहते हैं।
वो जरूरतें जो मनुष्य की निजी जरूरतें हैं, उनको पूरा करने के लिए मनुष्य कभी परेशान नहीं होता है। परंतु वो जरूरतें जो सोसायटी ने, जो इस दुनिया ने हमारे ऊपर डाल रखी हैं, थोप रखी हैं, उनको पूरा करने के लिए मनुष्य परेशान जरूर होता है।
भागता है, ये करता है, वो करता है।
जब तक मैं जीवित हूं, मेरी असली जरूरत क्या है ? नकली नहीं! इस संसार की दी हुई जरूरतें नहीं। मेरी असली जरूरत क्या है ? मेरा हृदय क्या मान रहा है, किस बात को जरूरत मानता है। मैं अपने जीवन में कम से कम जो यहां आया हूं, अपनी असली जरूरत को तो पूरा करके जाऊं। सारी जरूरतें मेरी कभी पूरी नहीं होंगी। तो जब सारी जरूरतों को पूरा नहीं कर पायेगा, तो कम से कम एक main जरूरत तो जरूर होगी जिसको पूरा कर सकता है
Text on screen:क्या है असली जरूरत ?
प्रेम रावत:
जो कुछ भी हम सुनते हैं, क्या हम जो सुनते हैं, उसको समझते भी हैं ? उस पर अमल भी करते हैं या नहीं? क्योंकि सिर्फ सुनना पर्याप्त नहीं है। किसी चीज को सुन लिया, किसी ने कुछ कह दिया कि —
"भाई! तुम्हारा जीवन, जो तुमको मिला है, वो बड़े भाग्य से मिला है। और यहां जो तुम हो, जबतक तुम जीवित हो, तुम इसका पूरा-पूरा फायदा उठाओ!"
ये तो कितनी बार हमलोगों ने सुना होगा! एक बार नहीं, हजारों बार सुना होगा। पर इसमें अमल कितने लोग करते हैं ?
जैसे ही घर पहुंचेंगे, तो घर की सारी समस्याएं तुम्हारा इंतजार कर रही हैं। उनको कहां जाना है ? वो कहां जाएंगी ? और चंद मिनटों के बाद तुम उन्हीं चीजों में लग जाओगे, जो तुमको दुःख देती हैं, जिसकी वजह से तुम अपने आपको भाग्यशाली नहीं समझते हो। तुम समझ पाओ कि ये स्वांस तुम्हारे अंदर जो आ रहा है, जा रहा है, ये क्या है, जिसकी वजह से तुम जीवित हो।
एक बात मैं किसी से कह रहा था — सारी दुनिया स्वर्ग और नरक के चक्कर में पड़ी हुई है, "ये करोगे, वो करोगे तो नरक में जाओगे, ये करोगे, वो करोगे, स्वर्ग में जाओगे।" तो कहां जाएंगे, इसकी सबको पड़ी हुई है। पर कहां से आए, यह कोई नहीं पूछता। कहां जाएंगे — "ये करो, वो करो!" कहां से आए? यह किसी को नहीं मालूम, कहां से आए।
अब बात बताने के लिए लोग बोल देते हैं, "तुम पिछले जन्म में हाथी थे, तुम पिछले जन्म में घोड़ा थे, तुम पिछले जन्म में कीड़े थे, तुम पिछले जन्म में कॉकरोच थे, तुम पिछले जन्म में ये थे, वो थे।" सबूत किसी के पास नहीं है। क्योंकि वो भी ये न बोलते, अगर तुम उस — जो एक चीज है, जो तुम्हारे में एक ताकत है झूठ और सच की, अगर तुम उसको इस्तेमाल करते तो फिर कोई नहीं बक-बक करता।
मतलब, जहां जाओ, उसकी बात नहीं है। बात वो है कि एक जगह है, जहां अगर तुम नहीं गए तो तुम चाहे कहीं भी चले जाओ, तुम कहीं नहीं गए।
और क्या होगा तुम्हारे साथ?
दो दीवाल हैं। एक दीवाल से निकल के आए और दूसरी दीवाल से जाना है। और उसके बीच में है तुम्हारी जिंदगी। कहां से आए ? किसी को नहीं मालूम। और जब दूसरी दीवाल के अंदर घुसेंगे, कहां जाएंगे ? यह किसी को नहीं मालूम। ये दो दीवाल हैं! इसके बीच में है तुम्हारा खेल! उस दीवाल के उधर नहीं है और इस दीवाल के उधर नहीं है। इस दीवाल के इधर है और इस दीवाल के इधर है। इसमें तुम हो। तुम्हारे रिश्ते, तुम्हारे दोस्त, तुम्हारा सुख, तुम्हारा दुःख, तुम्हारी चिंताएं, सब इसके बीच में हैं।
यह जो समय मिला है, तुम कहां लगे हुए हो ? इन दो दीवालों के बीच की सोचने के लिए नहीं। कहां जाता है मनुष्य का ध्यान ? इस दीवाल के उस तरफ क्या है ? फायदा क्या हुआ ? फायदा क्या हुआ ? फायदा क्या हुआ ? क्योंकि वो तो होना ही है। वो तो होकर रहेगा। उसको टालने के लिए तो बहुत लगे हुए हैं पर वो कभी टलेगी नहीं। जब यह हो गया कि तुम इस दीवाल के इस तरफ आए तो अब उस दीवाल के उस तरफ तुमको जाना है। यहां जो जवान लोग बैठे हैं, उनको यह बात समझ में नहीं आती है।
जवान हैं न ? "नहीं। अभी तो सारी जिंदगी है आगे।"
देखो! जब तुम पैदा होते हो, तुमको कोई ध्यान नहीं है, तुम कौन हो, क्या हो, क्या करते हो, क्या करना है, क्या है, क्या नहीं है ? एक-एक मिनट के आधार पर तुम जीते हो। सबकुछ ठीक है, सबकुछ ठीक नहीं है। भूख लगी है — ऐं! तकलीफ है, क्योंकि डाइपर किसी ने चेंज नहीं किया है तो — ऐंऽ! नींद आ रही है, सो नहीं रहे हैं तो — ऐंऽऽ! उससे मां को पता लग जाता है कि कोई चीज ठीक नहीं है। त,त,त,त,त,त सुला देती है! सोना क्या है ? जागना क्या है ? कुछ नहीं मालूम। यही चक्कर चलता रहता है, चलता रहता है, चलता रहता है, चलता रहता है।
इसमें लगभग समझो — 10 साल लग जाएंगे। फिर अगले 10 साल में सब चक्कर होगा। उसी अगले 10 साल में “टीन एजर” बनोगे। सिर्फ 10 साल में। उसी 10 साल — जैसे पहले 10 साल, वैसे ही दूसरे 20 साल में और 10 साल में तुम “टीन एजर” बनोगे और “टीन एजर” से बाहर भी निकलोगे। नाइनटीन! बस! फिर ट्वेंटी।
फिर अगले 10 साल में, सिर्फ दस साल में — दस साल की बात हो रही है। पहला दस साल, दूसरा दस साल, तीसरा दस साल — सारी दुनियादारी के चक्कर में पड़ोगे। शादी! कोई जब 30 का होने लगता है — ऐंह! उससे पहले ही ये सबकुछ होता है। नौकरी लग जाती है, ये ..! क्योंकि नौकरी लग जाए, फिर शादी भी अच्छी होगी। ग्रेजुएट भी उसी में होना है। अगर कोई डिग्री लेनी है कॉलेज से, वो भी उसी में होगी। ये सबकुछ कर-करा-करके सारी अच्छी तरीके से तुम अगले उस दस साल में फंस जाओगे।
फिर अगले दस साल में तुम क्या करोगे?
फंसे रहोगे। पहले दस साल में उस चक्कर से तुम, निकलने की तुम्हारी इच्छा भी नहीं थी। अगले दस साल में उससे भी तुम्हारी निकलने की इच्छा नहीं थी। अगले दस साल में उससे भी निकलने की इच्छा नहीं थी, परंतु ये जो होंगे अगले, तुम्हारी इच्छा होगी — कैसे निकलें ? फिर ध्यान जाएगा तुम्हारा रिटायरमेंट की तरफ, जो अगले दस साल में होना है। रिटायर भी होना है और होगा क्या ? पहले मंदिरों का चक्कर काटते थे, अब अस्पतालों का चक्कर काटोगे —
"उंह! ये हो गया, वो हो गया! डॉक्टर साहब! ठीक कर दो!"
यही होना है सबके साथ। चाहे कोई अमेरिका में हो, चाहे कोई हिन्दुस्तान में हो, चाहे कोई ऑस्ट्रेलिया में हो, चाहे कनाडा में हो; चाहे कोई साउथ अमेरिका में हो, चाहे कोई अफ्रीका में हो। त,त,त,त,त,त,...धड़क, धड़क, धड़क,धड़क, धड़क, धड़क!
तो तुम जब सोचते हो कि तुम्हारे पास बहुत टाइम है तो जरा सोचो कितना टाइम है। ज्यादा टाइम नहीं है। और इसी में करना है, जो कुछ करना है। इसी में समझना भी है, अपने हृदय को भरना भी है, अपने आपको समझना भी है।
तो उसके प्रति तुम क्या कर रहे हो ?
नहीं करोगे तो उस दीवाल से तो निकलना है। ये तो सबका भाग्य है।इसके लिए हमको पंडित-वंडित की जरूरत नहीं है समझने के लिए। ये तो निकलना है। उस दीवाल से तो निकलना है। ये तो हम प्रीडिक्ट कर सकते हैं। ये तो हम भविष्यवाणी कर सकते हैं कि सबको उस दीवाल से निकलना है।
अब रही धारणाओं की, तो धारणाओं के पीछे हम क्या-क्या नहीं समझा सकते हैं तुमको ? जब कोई पैदा होता है तो इस पृथ्वी का बोझ नहीं बढ़ता है, जब कोई आदमी मरता है तो इस पृथ्वी का बोझ कम नहीं होता है। तो इसका मतलब क्या हुआ ? यहीं से तुम्हारा शरीर है और यहीं तुम्हारा शरीर जाकर इन्हीं पदार्थों में, जिनसे तुम्हारा शरीर बना है, उन पदार्थों के साथ मिल जाएगा।
गुब्बारा देखा है कभी ?
उसमें हवा भरो, वो फूल जाएगा। नहीं ?
जबतक वो गुब्बारा फूला हुआ है, तो उसके अंदर की जो हवा है, वो उस बाहर की जो हवा है, उससे बहुत नजदीक है, परंतु विभिन्न है। और जिस दिन वो गुब्बारा फूटेगा, गुब्बारा फिचिक और हवा, उसी हवा के साथ मिल जाएगी, जिस हवा को तुमने भरा।
यह तो जो कुछ भी हम कर रहे हैं, जिस पर हमको इतना घमंड है, जिसको हम टेक्नोलॉजी कहते हैं — घिसीपीटी बात है। क्योंकि मनुष्य कंट्रोल करना चाहता है। हर एक चीज को कंट्रोल करना चाहता है। मौसम को कंट्रोल करना चाहता है, सूरज को कंट्रोल करना चाहता है, पृथ्वी को कंट्रोल करना चाहता है, नदियों को कंट्रोल करना चाहता है।
यह कंट्रोल करने की भावना आई कहां से उसमें ?
ये सब एक ही चीज का परिणाम है। क्योंकि तुम भी अपनी फैमिली को कंट्रोल करना चाहते हो। तुम भी अपने दोस्तों को कंट्रोल करना चाहते हो। और तुम्हारे आसपास जितने लोग हैं, तुम सबको कंट्रोल करना चाहते हो।
जब तुम मूवी देखने के लिए जाते हो, फिल्म देखने के लिए जाते हो, पिक्चर देखने के लिए जाते हो — लाइन जब ज्यादा लम्बी होती है, तुम्हारे दिल में इच्छा नहीं होती है कि तुम्हारे पास कुछ ऐसा हो और लाइन(खत्म)।
हर एक चीज को तुम कंट्रोल करना चाहते हो। क्यों कंट्रोल करना चाहते हो तुम ? कभी सोचा ? पर कंट्रोल करना चाहते हो। पर यह नहीं मालूम कि क्यों कंट्रोल करना चाहते हो।
तुम इसलिए कंट्रोल करना चाहते हो कि तुम अपने आपको नहीं समझते। और अगर तुम अपने आपको समझ जाओ, तुम अपने आपको जान जाओ कि तुम्हारे अंदर की चीज क्या है — उस ज्ञान द्वारा अपने स्थित जो शक्ति तुम्हारे अंदर विराजमान है, उसका तुम अनुभव करो तो तुम समझने लगोगे कि तुम असली में कौन हो।
प्रेम रावत
कई लोग हैं, जो धर्म को नहीं मानते हैं। कई लोग हैं, जो भगवान को भी नहीं मानते हैं। पर इसका मतलब ये नहीं है कि वो शांति का अनुभव नहीं कर सकते।
लोग समझते हैं कि ‘‘नहीं, ऐसा करो, ऐसा करो, ऐसा करो, तब जाकर के ये सबकुछ होगा।’’
नहीं। शांति तो सबके अंदर है, परंतु उसको हमने मौका नहीं दिया है, उभरने का। उसको मौका नहीं दिया है, जानने का।
शांति है मनुष्य के अंदर। शांति है वो चीज, जो कि मनुष्य अपने आपको पहचाने। अपने आपको पहचाने कि — मेरी ताकत क्या है और मेरी कमजोरियां क्या हैं। शांति वो है, जब मनुष्य के अंदर, वो जो तूफान आते रहते हैं, उनसे निकलकर के, वो उस चीज का अनुभव करे, जो उसके अंदर है।
हम उस ताकत को, उस शक्ति को, जिसने सारे विश्व को चला रखा है इस समय, वह हमारे अंदर भी है और वो — उसका अनुभव करना, साक्षात अनुभव करना — मन से नहीं, ख्यालों से नहीं, साक्षात अनुभव करना — उससे फिर शांति उभरती है। क्योंकि वो उस चीज का अनुभव कर रहा है, जिसका कि वो एक हिस्सा है और जिसकी कोई हद नहीं है। इन्फीनिट! जिसका कभी नाश नहीं होगा, वो भी उसके अंदर है। और जबतक वो उसका अनुभव नहीं कर लेगा, वो अपने आपको पहचान नहीं पाएगा पूरी तरीके से कि वो है क्या ?