View as
असफलता क्यों (Asafalta Kyun) 00:07:37 असफलता क्यों (Asafalta Kyun) Video Duration : 00:07:37 जब असफलता को स्वीकार नहीं किया, हिम्मत से आगे चले, हिम्मत से आगे बढ़े, तो वो सफल...

प्रेम रावत:

जब तुम छोटे बच्चे थे और चलना सीख रहे थे, तुम गिरे कि नहीं गिरे ? तुम्हारा उद्देश्य क्या था ? चलना। पर गिरे। फेल हुए कि नहीं हुए? असफल हुए या नहीं हुए? परंतु तुमने असफलता को कभी स्वीकार नहीं किया। फिर दोबारा खड़े हुए और आज क्या करते हो ? करने से पहले — कोशिश करने से पहले सोचते हो किसके बारे में ? असफलता । सफलता के बारे में नहीं, असफलता के बारे में। और जैसे ही सोचते हो सफलता के बारे में, करेंगे ही नहीं। पहले असफलता।

पर कोशिश तो करो! जैसे बच्चा करता है खड़ा होके और जब पहले वो कदम लेता है, उसको मालूम ही नहीं कि वो चल भी रहा है। बस— त, , , ! उसको दिशा का कोई ज्ञान नहीं है। उसके जीवन के अंदर उस समय ऐसी प्यास है चलने के लिए, ऐसी चाह है चलने के लिए, जो उसको किसी ने सिखाया नहीं है। क्योंकि वो समझता नहीं है अभी बात — जरूरी क्या है, जरूरी क्या नहीं है? वो चल देगा। चल देगा और अगर असफल भी हुआ, उसको स्वीकार नहीं करेगा। फिर खड़ा होगा। यह हिम्मत नहीं है तो क्या है? और जब इतनी छोटी-सी उम्र में तुम्हारे पास इतनी हिम्मत थी, आज तुम्हारी हिम्मत को क्या हो गया है ?

मतलब, तुम जीवित भी हो और तुमने जीवन को त्याग भी दिया है। अभी मौत नहीं आई है, पर जीवन को भी तुमने त्याग दिया है। ‘‘क्या होगा मेरा ? असफलता, असफलता, असफलता, असफलता!

तुम जीवित हो। जबतक तुम जीवित हो, तुम्हारे पर कृपा हो रही है। और क्या चाहिए तुमको ? और क्या चाहिए ? सब मतलब, यह तो — इसके बाद तो जो भी तुम इस दुनिया के अंदर करना चाहते हो, यह संभव है। कोई असंभव नहीं है। संभव है! परंतु सबसे पहले क्या चीज चाहिए ? तुम्हारा जीना होना बहुत जरूरी है। अगर तुम जीवित नहीं हो तो फिर सबकुछ असंभव है और तुम जीवित हो तो फिर सब संभव है। इसके लिए हिम्मत की जरूरत है। हिम्मत भी तुम्हारे अंदर है।

तो कुछ भी हो, कुछ भी हो, तुमको जीना है। जबतक ये स्वांस आ रहा है तुम्हारे अंदर, तुमको जीना है। और हारे हुए की तरह नहीं जीना है। जीते हुए की तरह जीना है। यह नहीं है कि तुम्हारी क्या उम्र है! यह भी एक असफलता का बहाना है।

और लोग कहते हैं, ‘‘जी! हमारी याद्दाश्त चली गई।’’ जैसे-जैसे... तुम्हारी याद्दाशत कहीं नहीं गई। तुमको अभी भी अपना बचपना याद है। तुमको अपने कपड़ों के बारे में याद है कि कैसे-कैसे कपड़े तुमने पहने। तुमको स्कूल के बारे में याद है। तुम्हारे... सबकुछ वहीं का वहीं है। बात यह है कि यह जो भूलने की बात होती है मनुष्य की, यह एक बहुत बड़ी ट्रिक है। और ट्रिक यह है कि तुम जब इस उम्र के हो गये हो तो बहुत सारी चीजें तुमको याद करनी पड़ती हैं। जब तुम छोटे थे, तुमको बहुत कम याद करने की जरूरत थी। तो याद करने में आसानी रहती थी कि ‘‘यहां ये है। वहां ये है।” अब ‘‘उसको फोन करना है, वहां ये जाना है, ऐसा करना है, वैसा करना है।’’ ये तो इतनी सारी चीजें हैं कि दिमाग तो अपने आप — चाहे तुम 18 साल के भी हो, पर अगर इतनी चीजें हो जाएंगी तो तुमको याद नहीं रहेंगी। चाहे किसी भी —यह मैं मनगढ़त नहीं कह रहा हूं। यह वैज्ञानिक फैक्ट है। यह वैज्ञानिक बात है। इस पर रिसर्च की है विज्ञान के लोगों ने, साइंसटिस्ट ने और इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि कुछ होता-जाता नहीं है। सब वैसा का वैसा ही है।

तो अब शरीर है। अब लोग कहते हैं, ‘‘जी! हमको चलने में दुख होता है...या…।’’

तो कोई बात नहीं। आनंद लेने के लिए, इस जीवन का आनंद लेने के लिए मील, दो मील, तीन मील चलने की जरूरत नहीं है। कहीं भी हो तुम, अपने खाट पर ही बैठे हो, तो जो अंदर का आनंद है, इसको तो तुम ले सकते हो।

इसमें कोई शॉर्टकट नहीं है। यह उनके लिए है, जो आँखें खोल करके — यह उनके लिए है, उस बच्चे के लिए है, जो असफलता को स्वीकार करना ही नहीं चाहता है। न वो सीखना चाहता है उस असफलता को, न उसको स्वीकार करना चाहता है। जितनी बार वो गिरेगा, उसको कोई गम नहीं है। वो फिर खड़ा होगा, फिर चलेगा और एक दिन ऐसा आएगा कि चलना उसके लिए बहुत आसान हो जाएगा। वही चीज, जो असंभव थी — क्योंकि जब वो पहले-पहले सीखता है न, तो उसके पैर काबिल नहीं हैं उसका वजन उठाने के लिए। धीरे-धीरे उसकी जो मसल्स हैं, इनको स्ट्रांग होना पड़ेगा। और जो बैलेंस है, वो उसके पास नहीं है, पर धीरे-धीरे उन सारी चीजों को वो सीखता है। और जब सीख लेता है तो वो चलना शुरू करता है।

अब हम बड़े हो गए हैं, परंतु वो चीजें, हमारे लिए वो कानून, अभी बदला नहीं है। जिस भी चीज में हमने असफलता को स्वीकार कर लिया, उसमें हम असफल जरूर होंगे। पर जब असफलता को स्वीकार नहीं किया, हिम्मत से आगे चले, हिम्मत से आगे बढ़े, तो वो सफलता भी जरूर मिलेगी। ये बात है। ये बात है!

असफलता को कभी स्वीकार न करें।

पर्यावरण (Paryavaran) 00:02:05 पर्यावरण (Paryavaran) Video Duration : 00:02:05 अब तक तो सिर्फ यह है कि ‘‘यह मेरा देश है!’’ नहीं। ‘‘यह मेरी पृथ्वी है!’’

Text on screen:संसार में पर्यावरण को बचाने की जागरूकता कैसे आ सकती है?

प्रश्नकर्ता :

संसार भर में आज प्रकृति से हमारी छेड़छाड़ और ग्लोबल-वार्मिंग एक बहुत बड़ा मुद्दा है। हम पर्यावरण को बचाने की बात तो बहुत करते हैं, लेकिन असल में शायद इसके प्रति हम जागरूक नहीं हैं। इस धरती को रहने के लिये और भी बेहतर और पर्यावरण को बचाने के लिये हमें क्या करने की जरूरत है ?

प्रेम रावत:

इस विश्व को हम अपना घर नहीं समझते हैं। जब हमारा घर होता है, उसको सजाते हैं, फोटो लगाते हैं। यह नहीं है कि हथौड़े को लेकर के फिर दीवाल में लगाते रहते हैं और दीवालें तोड़ना शुरू कर देते हैं, किवाड़ तोड़ना शुरू कर देते हैं, छत तोड़ना शुरू कर देते हैं। नहीं। हर एक चीज को संवार के रखते हैं। नये-नये रंग लगाते हैं। डेकोरेशन करते हैं, ताकि वो अच्छा लगे। जिस दिन हम इस सारे संसार को अपना घर समझना शुरू कर देंगे, ग्लोबल-वार्मिंग इश्यू नहीं रहेगा। परंतु हम समझते हैं, ‘‘यह किसी और का घर है।’’ हमारा घर ये है और हम अपने ही घर को तोड़ने में लगे हुए हैं। ये ‘नासमझ’ की बात है। और ये बहुत, बहुत ही इम्पौरटेंट इश्यूज़ हैं। क्योंकि ये सब —सबके ऊपर इसका असर होगा। परंतु जिस दिन हम इस सारे वर्ल्ड को एक्सेप्ट कर लेंगे, सारी...सारी इस पृथ्वी को एक्सेप्ट कर लेंगे कि ‘‘यह मेरी पृथ्वी है।’’ अब तक तो सिर्फ यह है कि ‘‘यह मेरा देश है!’’ नहीं। ‘‘यह मेरी पृथ्वी है!’’ उस दिन हम संकोच करेंगे कूड़ा डालने में। उस दिन संकोच करेंगे हम इस पृथ्वी को हानि पहुंचाने में।

सोशल मीडिया (Social Media) 00:04:04 सोशल मीडिया (Social Media) Video Duration : 00:04:04 चक्कर यहां गेगा बाइट का नहीं है, चक्कर यहां अपने आपको न जानने का है।

सोशल मीडिया की आदत से कैसे बचें ?

प्रश्नकर्ता:

आज हम सब मोबाइल फोन और सोशल मीडिया के आदी हो गये हैं। हमारा ज्यादा से ज्यादा समय इसी पर लगता है। सोशल मीडिया के इस एडिक्शन से, इस लत से हम कैसे बच सकते हैं ?

प्रेम रावत:

एक एडिक्शन सोशली एक्सेप्टेबल है, एक एडिक्शन सोशली एक्सेप्टेबल नहीं होता है। जो सोशली एक्सेप्ट नहीं होता है, उसके लिए सबकुछ करने के लिए तैयार हैं, जो एडिक्शन सोशली एक्सेप्टेबल होता है, उसके लिए कोई परवाह नहीं करता है। परंतु लोग यह भूल जाते हैं कि दोनों ही एडिक्शन हैं। दोनों ही एडिक्शन हैं और दोनों ही मनुष्य के लिए खराब हैं।

ये टेक्नोलॉजी भी मोडरेशन में होनी चाहिए। खाना भी मोडेरेशन में खाना चाहिए, एक्सरसाइज़ भी मोडेरेशन में होनी चाहिए। हर एक चीज मोडरेशन में होनी चाहिए। इस सोसाइटी में, इस बाहर की दुनिया में सब चीजें मोडरेशन में होनी चाहिए। तो बात यह आ जाती है कि — क्योंकि यह सोशली एक्सेप्टेबल है, इसके जो कान्सिक्वेंसेज़ हैं, अभी ज्यादा नहीं लोगों के आगे सामने आए हैं।

अस्पतालों में वो चीजें बढ़ गई हैं, जो लोग आते हैं इमरजेंसी में, क्योंकि सिर पर चोट लग गई। क्यों लग गई ? क्योंकि वो अपना यहां ऐसे कर रहे थे और आगे चल रहे थे और गिर गये या खम्भे के साथ टकरा गए। ये सारी चीजें हो रही हैं। परंतु अभी हमने इस एडिक्शन को डिफाइन नहीं किया है। सबसे बढ़िया चीज तो यह होगी कि हम इसको अपनी समझ से करें। अर्थात् प्रेशर से नहीं! क्योंकि बात यह है — सबसे बड़ी चीज इसमें एक गेगा बाइट का डाटा नहीं है। सोशल एक्सेप्टेन्स! ये बीमारी सोशल एक्सेप्टेन्स की है। एक गेगा बाइट की नहीं है, दो गेगा बाइट की नहीं है, तीन गेगा बाइट की नहीं है। हर एक मनुष्य सोशली एक्सेप्टेन्स चाहता है। पर क्यों चाहता है ? क्यों चाहता है ?

यह नहीं पूछ रहा है वो। वो चाहता है कि उसके फ्रैण्ड्स हों और सब उसको एक्सेप्ट करें, परंतु वो यह नहीं पूछ रहा है क्यों ? और मेरे पास उसका जवाब है। क्योंकि वो अपने आपको नहीं जानता है। क्योंकि वो अपने आपको नहीं जानता है, इसलिए वो चाहता है कि और लोग उसको जानें। और...और लोग जो कॉमेन्ट करेंगे उस पर, वो अपने आपको जानेगा, उन लोगों के कॉमेन्ट्स के द्वारा। पर वो अपने आपको नहीं जान पायेगा।

तो डिसीज़ यहां और यह प्रॉब्लम यहां, एक गेगा बाइट की नहीं है, डिसीज़ है सोशल एक्सेप्टेन्स की। सोशल एक्सेप्टेन्स लोगों को हमेशा चाहिए थी। यह नई चीज नहीं है। यह तो नया तरीका है उसी बीमारी को पकड़ने का। उसी बीमारी को इस्तेमाल करने का।

समाज तो बहुत पहले से ही बंटा हुआ है। फौजी लोग एक तरह की सूट पहनते हैं, पुलिस वाले एक तरह की सूट पहनते हैं। ये सारी चीजें — और सोशल एक्सेप्टेन्स। अब आप कहीं भी चले जाइए, किसी भी आर्मी के घर में चले जाइए, किसी सोल्जर के, आपको एक फोटो मिलेगी सोल्जर की, जिसमें खूब अच्छी तरीके से अपना कैप पहना हुआ है, अपनी वर्दी पहनी हुई है। अमेरिका में भी यही होता है। इंग्लैण्ड में भी यही होता है। सब जगह यही होता है। पर यह इसलिए है — सोशल एक्सेप्टेन्स औरों की चाहिए, क्योंकि अपने आपको नहीं जानते हैं। जिस दिन अपने आपको समझना शुरू कर देंगे, यह बात सम हो जाएगी और फिर लोग औरों की तरफ नहीं देखेंगे। और यह जो टेक्नोलॉजी है, जिससे मैसेजेस लोगों को मिल सकती है, वो अपने दौर पर पहुंच जाएगी। परंतु चक्कर यहां गेगा बाइट का नहीं है, चक्कर यहां अपने आपको न जानने का है।

एक पल (Ek Pal) 00:02:45 एक पल (Ek Pal) Video Duration : 00:02:45 याद रहे कि वो चीज़ जो मुझे जिन्दा रखती है, हर स्वांस के साथ मेरे अंदर आ रही है।

प्रेम रावत:

आप तो प्लानिंग करते हैं एक हफ्ते की, एक महीने की, दो महीने की, एक साल की। अजी छोड़िये। आप एक पल की प्लानिंग करिये। अगर कर सकते हैं तो और पल के बारे में आप क्या जानते हैं जी ? कुछ नहीं! सिर्फ आया और गया। चिंता करते हैं आप कल की। ऐं ? कल क्या होगा और कल क्या हो गया ? ये दो चिंता लगी रहती हैं। और सारा जीवन कहाँ है ? एक पल-पल में।

आप जहां खड़े हुए हैं, वहां से आप देख रहे हैं और बस चल रही है। और कुछ नहीं चल रहा — बस चल रही है। पेड़ वहीं के वहीं खड़े हुए हैं, रोड वहीं का वहीं है और बस चलती हुई दिखाई दे रही है। इसका क्या मतलब हुआ ? आप बस में नहीं बैठे हैं। और अगर सबकुछ और चलता हुआ दिखाई दे रहा है — पेड़ जा रहे हैं इधर-उधर, रोड जा रही है इधर-उधर, पर बस वहीं की वहीं है। यह अच्छी बात है। इसका मतलब है आप बस में बैठे हुए हैं। कहने का मतलब — लोग कहते हैं कि “टाइम कितना जल्दी निकल जाता है, मालूम भी नहीं पड़ा।” लोग देखते हैं अपने आपको, कहते हैं “टाइम कहां गुज़र गया, कुछ नहीं मालूम।” इसका क्या मतलब हुआ ? इसका मतलब यह हुआ कि आप खड़े हुए हैं और जो टाइम की बस है वो निकल रही है। वो जा रही है। वो चलती दिखाई दे रही है। और आप खड़े हुए हैं, वो गयी निकल।

याद रहे, याद रहे कि वो चीज़ जो मुझे जिन्दा रखती है, हर स्वांस के साथ मेरे अंदर आ रही है। हर स्वांस के साथ, वो चीज़ आ रही है और जा रही है, और हर पल, हर क्षण वो मुझे छू रही है।

 

दिल क्या चाहता है (Dil Kya Chahta Hai) 00:07:31 दिल क्या चाहता है (Dil Kya Chahta Hai) Video Duration : 00:07:31

प्रेम रावत:

आप उन्नति करना चाहते हैं। आप ब्राइट फ्यूचर चाहते हैं। और आपको अच्छी नौकरी मिले। और आपको अच्छा जॉब मिले, ताकि आप खूब धन कमा सकें, फिर मज़ा ही मज़ा होगा, क्योंकि पैसा ही पैसा होगा! होता क्या है ?

साक्षात्कार:

पुरुष: Before the job hobbies were different, घूमना काफी पसंद था, क्रिकेट खेलता था नॉर्मली, दोस्तों के साथ ज्यादा टाइम स्पेंड होता था।

पुरुष: तब मेरी हॉबीज़ बहुत डिफरेंट थी now they are totally different.

पुरुष: दोस्त हैं काफी जो लोग बोलते हैं कि भाई, तू बड़ा आदमी बन गया है, बिज़ी हो गया है। ऐसा कुछ नहीं है। लाइफ के साथ होता है। कम हो गये हैं दोस्त थोड़े।

पुरुष: हमें जॉब भी देखनी पड़ती है, साथ-साथ अपनी पर्सनल लाइफ भी मेंटेन करनी पड़ती है, तो बैलेंस बना के चलना पड़ता है।

महिला: जब तक पढ़ाई किया तब तक तो इतना स्ट्रगल नहीं था। बट एक अच्छी लाइफ पाने के लिये जब हम जॉब ज्वॉइन करते हैं तो स्ट्रगल्स ऑटोमेटिकली बढ़ जाती है।

प्रेम रावत:

होता क्या है कि एक आदमी है, ग्रेजुएट किया, अच्छी जॉब, नौकरी ढूंढी, कंपनी के पास गये तो कंपनी ने कहा कि ठीक है, आप हमको अपनी एक्सपर्टीज़ ऑफर कीजिए, हम आपको पैसा ऑफर करेंगे। क्योंकि आपके हैं सपने, जो आप पूरा करना चाहते हैं।

साक्षात्कार:

पुरुष: मैं तो अपने आप को बी एम डब्लू में देखना चाहता हूं पांच साल बाद। अब एनी हाउ वो कैसे अचीव होता है that’s depend on.

महिला: फैमिली, बंगलो, कार एक्सट्रा, एक्सट्रा ।

महिला: मेरे लिये तो अभी सबसे बड़ी खुशी मेरा बेबी है। तो आप कितने भी थक के जाओ घर पर तो जब वो देखते हो तो लगता है हां, this is the best part of my life.

पुरुष: मैं अपने आप को पांच साल बाद इस कम्पनी में एक ऐसी पोजीशन पर देखता हूं, जहां पर मैं एक टीम को लीड कर रहा हूंगा।

महिला: मैं अपने आप को एक इंडिपेंडेंट सक्सेसफुल वूमेन बनाना चाहती हूं।

प्रेम रावत:

आप अपना समय, अपना दिमाग, अपना एफर्ट उस कंपनी को देंगे और वो कंपनी आपको देगी पैसा, ताकि आप अपने ड्रीम्स को पूरा कर सकें। कॉन्ट्रैक्ट साइंड! आपके मुँह में स्माइल! यस!

साक्षात्कार:

महिला: जॉब से मेन फायदा है हमारी जो बेसिक नीड्स होती हैं हमें लाइफ में आगे बढ़ने के लिये, हमारी खुशियों को पाने के लिये, जॉब से हमारी वो चीजें फुलफिल होती हैं।

पुरुष: थोड़ा बहुत प्रेशर है जॉब का, बट वही है कि कलीग्स का साथ है और बॉस का हेल्प है तो सबकुछ हो जाता है इज़ीली।

पुरुष: जब भी कोई अपना जॉब स्टार्ट करता है तो वो ये सोचता है कि मैं आगे चलके एक सक्सेसफुल एम्पलॉयी बनूंगा, बट जैसे-जैसे वो जॉब करता है तो उसको समझ में आता है कि यह इतना आसान नहीं है।

प्रेम रावत:

होगा ये कि कंपनी कहेगी, ‘‘आप हमको अपना 100% दीजिए!” पहली सेमिनार, जो आप अपनी कंपनी के लिए अटेंड करेंगे, उसमें आपको यही समझाया जायेगा —  you must give a hundred percent. किसी ने मैथ पढ़ी है ? अगर 100% गया कम्पनी के पास, आपके लिए क्या बचा?

साक्षात्कार:

पुरुष: ऑलमोस्ट 10 अवर्स हम शिफ्ट देते हैं ऑफिस में तो टाइम मिलता नहीं है।

पुरुष: जैसे कि छुटटी के लिये भी कभी-कभी जेन्यवन होता है लेकिन they don’t allow us to take the leaves.

पुरुष: अगर हम काम कर हैं तो हमें अपना 100% तो देना ही पड़ेगा। 

महिला: हमसे तो उनकी जो भी रिक्वाइर्मन्ट होती है, any how we have to fulfill.

महिला: दूर से हम बाहर के लोगों को देखते हैं तो ऐसा लगता है उनकी लाइफ़ हमसे, हमारी लाइफ़ से इज़ी है। बट पर्सनली अगर उनसे मिलो तो वो भी अपनी लाइफ़ से, अपनी जॉब से कहीं न कहीं वो भी दुखी हैं।

प्रेम रावत:

आदमी टायर्ड होता रहता है, टायर्ड होता रहता है, टायर्ड होता रहता है, टायर्ड होता रहता है और कंपनी कहती रहती है, ‘‘hundred percent please, hundred percent please, hundred percent please, hundred percent please!” अब उसके पास सिर्फ निन्यानबे बचा है देने के लिए, उसके बाद फिर अस्सी बचा है देने के लिए, उसके बाद फिर सत्तर बचा है देने के लिए और फैमिली के लिए जीरो! और फैमिली उससे अलग होने लगती है, एलीनेट होने लगती है। वो अपने से एलीनेट होने लगता है और फिर कंपनी को क्या जरूरत है ऐसे आदमी की ?

साक्षात्कार:

महिला: Actually I am a mother तो मेरे को वो प्रॉब्लम होती है weekend पर but I can’t do anything because मेरे को करना होता है।

पुरुष: वो लाइफ बैलेंस थोड़ा बिगड़ जाता है बिकॉज़ हम बिजी रहते हैं जॉब्स में।

महिला: हम अपनी पर्सनल लाइफ में स्पेस नहीं कर पाते, फैमिली को टाइम नहीं दे पाते।

पुरुष: कभी-कभी तो मन भी करता है कि अब तो छोड़ देना था।

पुरुष: बॉस के ऊपर भी प्रेशर होता है तो उसको दूसरों पर अपना लोड निकालना पड़ता है तो वो चीज हमें समझनी चाहिए।

पुरुष: कभी-कभी संडे को हमें आना पड़ता है तो हमें यह लगता है कि खुद तो घर पर बैठे हैं, ठीक है, और हमें फोन करके यहां बुला लिया।

पुरुष: Because in future we will become boss, हम भी वो ही चीज करेंगे और फिर हमारे नीचे वाला हमें गाली देगा। 

पुरुष: अपनी स्किल से ज्यादा हम कम्पनी को दे रहे हैं। हमारी जितनी क्षमता है उससे ज्यादा हम काम कर रहे हैं बट हमें लगता है कि इतना हमें इन रिर्टन नहीं मिल रहा।

महिला: I don’t think so, I have getting paid that much what I deserve.

पुरुष: कम्पनी के साथ भी है, जब तक आप उनके लिये युसफुल हैं तभी तक वो आपको मोटीवेट करते हैं, नर्चर करते हैं, otherwise they will throw you out.

प्रेम रावत:

उनको सिर्फ एक कागज का टुकड़ा फाड़ना है and the contract is finished! और वो कागज का टुकड़ा आपकी जिंदगी को रेप्रज़ेंट करता है। तो क्या मेरा मतलब है कहने का कि आपको पढ़ाई नहीं करनी चाहिए ? नहीं, मैं ये नहीं कह रहा हूं।

मैं कह रहा हूं — Be armed for reality. सच्चाई के लिए तैयार होकर के जाना। उस मैदान में, लड़ाई के मैदान में अच्छी बात नहीं है कि सिर्फ — ‘‘अजी! मैं तो देखने के लिए निकला था।’’ नहीं। तैयार हो के जाना। तैयार होने का क्या मतलब है? Yes, you need education — education होनी चाहिए साथ में। But you also need ‘you’ and you need the wisdom. और क्या विज़डम कि मैं सोऊंगा नहीं, मेरे को जगना जरूरी है। मेरे को जगना जरूरी है, मेरे को ये पहचानना जरूरी है कि — मेरी नीड्स क्या हैं ? मेरा हृदय, मेरा हार्ट मेरे से क्या मांगता है ?

संयम...स्वतंत्रता...शांति..

दो दीवारें (Do Deewarein) 00:07:23 दो दीवारें (Do Deewarein) Video Duration : 00:07:23 इसी जीवन में सबकुछ करना है। अपने आपको समझना भी है और अपने हृदय को भरना भी है।

प्रेम रावत :

दो दीवाल हैं! एक दीवाल से निकल के आए और दूसरी दीवाल से जाना है। और उसके बीच में है तुम्हारी जिंदगी। कहां से आए ? किसी को नहीं मालूम। और जब दूसरी दीवाल के अंदर घुसेंगे, कहां जाएंगे ? यह किसी को नहीं मालूम। और ये दो दीवाल हैं! इसके बीच में है तुम्हारा खेल! ये उस दीवाल के उधर नहीं है और इस दीवाल के उधर नहीं है। इस दीवाल के इधर है और इस दीवाल के इधर है। इसमें तुम हो। तुम्हारे रिश्ते, तुम्हारे दोस्त, तुम्हारा सुख, तुम्हारा दुख, तुम्हारी चिंताएं, सब इसके बीच में हैं। और यह जो समय मिला है, तुम कहां लगे हुए हो ? इन दो दीवालों के बीच की सोचने के लिए नहीं। कहां जाता है मनुष्य का ध्यान ? इस दीवाल के उस तरफ क्या है ? फायदा क्या हुआ ? फायदा क्या हुआ ? क्योंकि वो तो होना ही है! वो तो हो के रहेगा! उसको टालने के लिए तो बहुत लगे हुए हैं पर वो कभी टलेगी नहीं। जब यह हो गया कि तुम इस दीवाल के इस तरफ आए तो अब उस दीवाल के उस तरफ तुमको जाना है।

देखो! जब तुम पैदा होते हो, तुमको कोई ध्यान नहीं है, तुम कौन हो, क्या हो, क्या करते हो, क्या करना है, क्या है, क्या नहीं है। एक-एक मिनट के आधार पर तुम जीते हो। सबकुछ ठीक है, सबकुछ ठीक नहीं है। भूख लगी है — ऐंऽऽ तकलीफ है, क्योंकि डाइपर किसी ने चेंज नहीं किया है तो — ऐंऽऽ नींद आ रही है, सो नहीं रहे हैं तो —ऐंऽऽ! उससे मां को पता लग जाता है कि कोई चीज ठीक नहीं है। ततततत... सुला देती है। सोना क्या है ? जागना क्या है ? कुछ नहीं मालूम। यही चक्कर चलता रहता है, चलता रहता है, चलता रहता है, चलता रहता है।धीरे-धीरे करके वो बोलना भी सीख जाएगा। ये सारी चीजें होती रहती हैं, होती रहती हैं, होती रहती हैं, होती रहती हैं, होती रहती हैं।

तो इसमें लगभग समझो —10 साल लग जाएंगे। फिर अगले 10 साल में सब चक्कर होगा। उसी अगले 10 साल में “टीन एजर” बनोगे। सिर्फ 10 साल में। उसी 10 साल — जैसे पहले 10 साल, वैसे ही दूसरे 10 साल में तुम “टीन एजर” बनोगे और “टीन एजर” से बाहर भी निकलोगे। नाइनटीन! बस! फिर ट्वेंटी। और फिर अगले 10 साल में, सिर्फ दस साल में — दस साल की बात हो रही है। पहला दस साल, दूसरा दस साल, तीसरा दस साल — सारी दुनियादारी के चक्कर में पड़ोगे। शादी! कोई जब 30 का होने लगता है — ऐं! उससे पहले ही ये सबकुछ होता है। नौकरी लग जाती है, ये ..! क्योंकि नौकरी लग जाए, फिर शादी भी अच्छी होगी। ग्रेजुएट भी उसी में होना है। अगर कोई डिग्री लेनी है कॉलेज से, वो भी उसी में होगी। ये सबकुछ कर कर कराके सारी अच्छी तरीके से तुम अगले उस दस साल में फंस जाओगे।

फिर अगले दस साल में तुम क्या करोगे ? फंसे रहोगे। पहले दस साल में उस चक्कर से तुम, निकलने की तुम्हारी इच्छा भी नहीं थी। अगले दस साल में उससे भी तुम्हारी निकलने की इच्छा नहीं थी। अगले दस साल में उससे भी निकलने की इच्छा नहीं थी, परंतु ये जो होंगे अगले, तुम्हारी इच्छा होगी — कैसे निकलें ? फिर ध्यान जाएगा तुम्हारा रिटायरमेंट की तरफ, जो अगले दस साल में होना है। रिटायर भी होना है और होगा क्या ? पहले मंदिरों का चक्कर काटते थे, अब अस्पतालों का चक्कर काटोगे — ‘‘उंह! ये हो गया, वो हो गया! डॉक्टर साहब! ठीक कर दो!’’ यही होना है सबके साथ।

तो तुम जब सोचते हो कि तुम्हारे पास बहुत टाइम है तो जरा सोचो कितना टाइम है! ज्यादा टाइम नहीं है। और इसी में करना है, जो कुछ करना है। इसी में समझना भी है, अपने हृदय को भरना भी है, अपने आपको समझना भी है। तो उसके प्रति तुम क्या कर रहे हो ?

इसी जीवन में सबकुछ करना है। अपने आपको समझना भी है और अपने हृदय को भरना भी है।

Log In / Create Account
Create Account




Log In with





Don’t have an account?
Create Account

Accounts created using Phone Number or Email Address are separate. 
Create Account Using
  
First name

  
Last name

Phone Number

I have read the Privacy Policy and agree.


Show

I have read the Privacy Policy and agree.

Account Information




  • You can create a TimelessToday account with either your Phone Number or your Email Address. Please Note: these are separate and cannot be used interchangeably!

  • Subscription purchase requires that you are logged in with a TimelessToday account.

  • If you purchase a subscription, it will only be linked to the Phone Number or Email Address that was used to log in at the time of Subscription purchase.

Please enter the first name. Please enter the last name. Please enter an email address. Please enter a valid email address. Please enter a password. Passwords must be at least 6 characters. Please Re Enter the password. Password and Confirm Password should be same. Please agree to the privacy policy to continue. Please enter the full name. Show Hide Please enter a Phone Number Invalid Code, please try again Failed to send SMS. Please try again Please enter your name Please enter your name Unable to save additional details. Can't check if user is already registered Please enter a password Invalid password, please try again Can't check if you have free subscription Can't activate FREE premium subscription Resend code in 00:30 seconds We cannot find an account with that phone number. Check the number or create a new account. An account with this phone number already exists. Log In or Try with a different phone number. Invalid Captcha, please try again.
Activate Account

You're Almost Done

ACTIVATE YOUR ACCOUNT

You should receive an email within the next hour.
Click on the link in the email to activate your account.

You won’t be able to log in or purchase a subscription unless you activate it.

Can't find the email?
Please check your Spam or Junk folder.
If you use Gmail, check under Promotions.

Activate Account

Your account linked with johndoe@gmail.com is not Active.

Activate it from the account activation email we sent you.

Can't find the email?
Please check your Spam or Junk folder.
If you use Gmail, check under Promotions.

OR

Get a new account activation email now

Need Help? Contact Customer Care

Activate Account

Account activation email sent to johndoe@gmail.com

ACTIVATE YOUR ACCOUNT

You should receive an email within the next hour.
Click on the link in the email to activate your account.

Once you have activated your account you can continue to log in

Do you really want to renew your subscription?
You haven't marked anything as a favorite so far. Please select a product Please select a play list Failed to add the product. Please refresh the page and try one more time.