एक झलक:
भगवान ने तुमको दी है ये गाड़ी, ये मनुष्य शरीर, ये जीवन। इस गाड़ी में इंजन है। है कि नहीं ? और इस गाड़ी को फ्यूल चाहिए, पेट्रोल चाहिए, रोटी चाहिए, दाल चाहिए, चावल चाहिए यही तो उसका फ्यूल है। इसी से चलती है ये। इसमें ब्रेक भी है। ब्रेक है यहां (दिमाग की तरफ इशारा) और एक्सीलरेटर भी है। वो कहां है ? वो भी यहां है (दिमाग की तरफ इशारा)। ब्रेक और एक्सीलरेटर पास-पास होते हैं। ब्रेक भी है, एक्सीलरेटर भी है। पेट्रोल भी भगवान ने बनाया। नहीं ? अच्छा इसमें पानी भी पड़ता है। पानी भी भगवान ने बनाया है। इंजन भी है इसका यहां। एक चीज स्टीयरिंग भी होगा। स्टीयरिंग भी होगा। वो किसके हाथ है ? .... वो स्टीयरिंग जो है इस गाड़ी का वो किसके हाथ है?
- श्री प्रेम रावत
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भगवान ने तुमको दी है ये गाड़ी, ये मनुष्य शरीर, ये जीवन। इस गाड़ी में इंजन है। है कि नहीं ? और इस गाड़ी को फ्यूल चाहिए, पेट्रोल चाहिए, रोटी चाहिए, दाल चाहिए, चावल चाहिए यही तो उसका फ्यूल है। इसी से चलती है ये। इसमें ब्रेक भी है। ब्रेक है यहां (दिमाग की तरफ इशारा) और एक्सीलरेटर भी है। वो कहां है ? वो भी यहां है (दिमाग की तरफ इशारा)। ब्रेक और एक्सीलरेटर पास-पास होते हैं। ब्रेक भी है, एक्सीलरेटर भी है। पेट्रोल भी भगवान ने बनाया। नहीं ? अच्छा इसमें पानी भी पड़ता है। पानी भी भगवान ने बनाया है। इंजन भी है इसका यहां। एक चीज स्टीयरिंग भी होगा। स्टीयरिंग भी होगा। वो किसके हाथ है ? .... वो स्टीयरिंग जो है इस गाड़ी का वो किसके हाथ है?
- श्री प्रेम रावत
एक झलक:
अंगूठी कई बार डब्बे में आती है। नहीं ? लाल जैसा डब्बा होता है, उसमें आती है। नहीं ? अच्छा! आपकी समझ में अंगूठी की कीमत ज्यादा है या डब्बे की कीमत ज्यादा है ? अंगूठी! तो बिना अंगूठी के डब्बा क्या है ? कुछ नहीं है। पर जबतक उस डब्बे में अंगूठी है, तबतक आप उस डब्बे की भी देखभाल करेंगे। नहीं ? उसको ठीक ढंग से रखेंगे। जबतक उसमें अंगूठी है। और जब उसमें से अंगूठी निकल गई......। जबतक इस डब्बे में {शरीर की तरफ इशारा करते हुए} ये स्वांस आ रहा है, जा रहा है, आपको इस डब्बे की कीमत समझनी है। और जिस दिन इसमें से ये स्वांस आना-जाना बंद हो जाएगा, इस डब्बे की कोई कीमत नहीं रहेगी। पर जबतक है, तबतक इस डब्बे की कीमत उतनी ही है, जितनी उस अंगूठी की है।
- प्रेम रावत
एक झलक:
अंगूठी कई बार डब्बे में आती है। नहीं ? लाल जैसा डब्बा होता है, उसमें आती है। नहीं ? अच्छा! आपकी समझ में अंगूठी की कीमत ज्यादा है या डब्बे की कीमत ज्यादा है ? अंगूठी! तो बिना अंगूठी के डब्बा क्या है ? कुछ नहीं है। पर जबतक उस डब्बे में अंगूठी है, तबतक आप उस डब्बे की भी देखभाल करेंगे। नहीं ? उसको ठीक ढंग से रखेंगे। जबतक उसमें अंगूठी है। और जब उसमें से अंगूठी निकल गई......। जबतक इस डब्बे में {शरीर की तरफ इशारा करते हुए} ये स्वांस आ रहा है, जा रहा है, आपको इस डब्बे की कीमत समझनी है। और जिस दिन इसमें से ये स्वांस आना-जाना बंद हो जाएगा, इस डब्बे की कोई कीमत नहीं रहेगी। पर जबतक है, तबतक इस डब्बे की कीमत उतनी ही है, जितनी उस अंगूठी की है।
- प्रेम रावत
एक झलक:
बात करेंगे शांति की — हम बात करते हैं — चलिए! आप अपनी family से चालू करिए! वहां से चालू करिये, जहां वो लोग हैं, जिनसे आपको स्नेह है, जिनसे आपको प्यार है! Those people who you love, start with that.
दुनिया भर के लिए टाइम है, परंतु अपनी family के लिए टाइम नहीं है — मैं लेट हो गया! मैं लेट हो गया, मैं लेट हो गया, मैं लेट हो गया, मैं लेट हो गया। मैं लेट हो गया। और काहे के लिए लेट हो गये ? क्या लेट हो गए ? ताकि और लोगों के साथ बैठ के गपशप मार सकें।
अगर आपके पास सिर्फ गपशप के लिए टाइम है, अगर आपकी priority में — आपके जीवन की priority में गपशप है सिर्फ, तो यह स्पष्ट है कि आप वहां कार के steering wheelके पीछे बैठे तो जरूर हैं, पर गाड़ी कोई चला नहीं रहा है। और यह गाड़ी किसी चीज के साथ जरूर जाकर टकरायेगी और उसको कहते हैं — गुस्सा आना! क्योंकि कोई चला नहीं रहा है।
- प्रेम रावत
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बात करेंगे शांति की — हम बात करते हैं — चलिए! आप अपनी family से चालू करिए! वहां से चालू करिये, जहां वो लोग हैं, जिनसे आपको स्नेह है, जिनसे आपको प्यार है! Those people who you love, start with that.
दुनिया भर के लिए टाइम है, परंतु अपनी family के लिए टाइम नहीं है — मैं लेट हो गया! मैं लेट हो गया, मैं लेट हो गया, मैं लेट हो गया, मैं लेट हो गया। मैं लेट हो गया। और काहे के लिए लेट हो गये ? क्या लेट हो गए ? ताकि और लोगों के साथ बैठ के गपशप मार सकें।
अगर आपके पास सिर्फ गपशप के लिए टाइम है, अगर आपकी priority में — आपके जीवन की priority में गपशप है सिर्फ, तो यह स्पष्ट है कि आप वहां कार के steering wheelके पीछे बैठे तो जरूर हैं, पर गाड़ी कोई चला नहीं रहा है। और यह गाड़ी किसी चीज के साथ जरूर जाकर टकरायेगी और उसको कहते हैं — गुस्सा आना! क्योंकि कोई चला नहीं रहा है।
- प्रेम रावत