124वें हंस जयंती समारोह के इस पहले सत्र में, श्री प्रेम रावत जी ने एक ऐसे गुरु के महत्व का उल्लेख किया जो आपके भीतर आत्म-ज्ञान का दीपक जला सकता है।
अपनी विद्वता और बेहतरीन वाक्-पटुता के साथ
उन्होंने समझाया कि जिस तरह एक दीपक अंधेरे में रोशनी फैलाता है, उसी तरह आत्म-ज्ञान की रोशनी हृदय की दुनिया में प्रकाश फैलाती है।
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दिल्ली में 124वें हंस जयंती समारोह के दूसरे सत्र में प्रेम रावत ने सच्ची संतुष्टि और आंतरिक शांति पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने बताया कि मान-सम्मान अस्थायी होते हैं और अंततः समाप्त हो जाते हैं, इसलिए हमें केवल आंतरिक शांति पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
उन्होंने यह भी बताया कि शांति और संतुष्टि बाहरी चीजों से नहीं, बल्कि हमारे भीतर से आती है। प्रेम रावत जी ने संतुष्टि को प्यास या भूख के शांत होने से तुलना करते हुए कहा कि ये केवल अनुभव से पूरी होती हैं। असली आनंद बाहरी उपलब्धियों में नहीं, बल्कि आत्म-चेतना और आंतरिक संतोष में है।
प्रेम रावत जी ने श्रोताओं को यह समझने के लिए प्रेरित किया कि जो शक्ति पूरे ब्रह्मांड को चलाती है, वही शक्ति उनके अंदर भी है।
उनका संदेश यह था कि सच्ची संतुष्टि और आनंद बाहरी परिस्थितियों में नहीं, बल्कि अपने भीतर शांति और संतोष को अनुभव करने में है।
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अपनी विद्वता और बेहतरीन वाक्-पटुता के साथ
उन्होंने समझाया कि जिस तरह एक दीपक अंधेरे में रोशनी फैलाता है, उसी तरह आत्म-ज्ञान की रोशनी हृदय की दुनिया में प्रकाश फैलाती है।
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(Prem Rawat) There's a story that I like to tell. And I've told this story before, but I don't think people really understand it.
So, I'll tell it again. The story is, there was once a man who wanted to learn how to be a swordsman. So, he went to the Master and asked, "Would you teach me how to be a swordsman?" The Master replied, "Oh yeah, no problem. I'll teach you how to fight with the sword. Sure."
The man asked, "What do I have to do?" The Master says, "Since you want to learn from me, come and stay at my home. Then you will be there and I can teach you." So, the guy is very excited. "I get to be at the Master's home. He will teach me!"
He moves into the home, he's ready to learn. The Master says, "Since you're staying here, could you clean my kitchen and my living room, and clean the outside? And the guy is like, "Okay, the Master says I must clean, so I will clean."
So he cleans the kitchen and he cleans the living room and he cleans all the areas and he's done. So he says to the Master, "I have finished my chores, I have finished my tasks. What's next?" And the Master says, "Do you know how to cook?" So he says, "Yeah, I can cook a few things." Master says, "Can you please cook for me?" So he starts cooking for him.
And before you know it, everyday, this is the routine. He cleans, he cooks, he washes his clothes. He does everything. And this man who wants to be a swordsman starts to get very frustrated. Because the Master is not teaching him anything.
Everyday goes by and all he's doing is cleaning, and washing, and cooking. So one day, he gets really upset and he picks up a stick and the Master is looking after the big pot with water boiling, there's a lid on there. And this man goes to the Master and pretends with the stick like it's a sword, and he's going to poke him. And immediately the Master picks up the lid and blocks him.
And in this moment the person understands one simple thing: He wants to learn how to fight with a sword but he does not want to learn how to be a warrior. And a warrior doesn't need a sword. A warrior will take anything, even the lid of a pot and effectively block a blow if need be.
Once you become a warrior, everything becomes a tool. Everything becomes a tool.
This is why I think that this is a wonderful story. Because it shows, do you... Do you want to learn something or do you want to become a student. Which one?
People come, and their objective is,Oh, give me Knowledge." anh-anh Knowledge is like the swordsman, "Teach me how to be a swordsman." But what you really need is to become a student. Then you will learn. And you will learn so much more. If you're not a student then you think just like the rest of the world. "Make it better, make it better, make it better..."
But if you are a true student you don't try to make 'it' better, whatever is happening on the outside. You don't try to make 'it' better. What's happening on the inside, you try to make that better.
You try to better yourself because now you understand.
(प्रेम रावत) जो हम चाहते हैं और जो असलियत है, इसमें विभाजन क्यों है ? जो हम चाहते हैं और असलियत जो है, उसमें विभाजन क्यों ये है ? वो दोनों चीज़ें अलग-अलग क्यों हैं ?
तो सुनिए, ध्यान से सुनिए।
हम, वो जो शक्ति है जो सबके ह्रदय में विराजमान है, जो हर एक कण-कण में विराजमान है, जो रस्सी जब जली हुई नहीं है तो उसमें भी विराजमान है और जब वो रस्सी जलके राख हो जाए तब भी वो उस रस्सी की राख में विराजमान है। तुममे विराजमान है, और जब तुम इस संसार से चले जाओगे, तुम्हारा शरीर काम नहीं करेगा फिर भी वो तुम्हारे शरीर में विराजमान है । और जब तुम्हारा शरीर जला दिया जाएगा तो जो तुम्हारी राख होगी वो उसमें भी विराजमान है। और जब तुम्हारी राख को बहा दिया जाएगा और जब तुम्हारी राख पानी से मिल जाएगी तो उसमें भी विराजमान है, क्योंकि वो पानी में विराजमान है।
अगर तुमको गाढ़ दिया गया और तुम सड़ गए तो जो तुम्हारा सड़ा हुआ हिस्सा है, वो उसमें भी विराजमान है। और जिस मिट्टी से तुम बने, वो उसमें पहले ही विराजमान था। और जब उस मिट्टी से तुम बने तो वो अब तुममें विराजमान है, और ऐसा कभी होगा नहीं कि तुम उससे कभी जुदा हो जाओ, क्योंकि तुम हो नहीं सकते।
परन्तु वो तब भी था जब तुम, तुम नहीं थे। वो तब भी था जब तुम हो और वो तब भी रहेगा जब तुम नहीं रहोगे। तीनों चीज़ें आ गयी न इस में?था, है, रहेगा, और तुम नहीं।
तुम क्या हो? अपनी याददाश्त हो, पहचान हो। कौन कौन है, कौन क्या है, क्या नाम है, ये सारी चीज़ें, अगर ये सारी चीज़ें तुममें से निकल गई तो कौन क्या है, क्या, कुछ समझ में नहीं आएगा। तो जब ये है, तो फिर चक्कर क्या है ? मतलब जब ऐसा है तो सबकी चैन कि बंसी बजनी छानिये। नहीं ?
सबकी चैन कि बंसी... कहाँ से आया ये गुस्सा, कहाँ से आया ये दुःख? कहाँ से आई ये सारी चीज़ें ? जानना, न जानना, इसका तो सवाल... जब वो है, और रहेगा, और उसको तुम निकल नहीं सकते। उसको ये नहीं कह सकते "यहाँ मत आना।" तो फिर ये सारा चक्कर क्या है ?
जिस-जिस चीज़ की तुम कल्पना करते हो ये तुम्हारी सिर्फ खयालों की दुनिया में है। सिर्फ। और वो इस ख़याल की दुनिया से अलग है। इसी लिए कहा है, इसको तुम अपने खयालों से नहीं पकड़ सकते। खयालों में नहीं है वो।
कण-कण में है, खयालों में नहीं है। कण-कण में है, विचारों में नहीं है। कण-कण में है, और तुम्हारे ह्रदय में है, और ह्रदय में तुम इसका अनुभव कर सकते हो।
ये है समझने की चीज़, ये है जानने की चीज़, ये है पहचाने की चीज़।
People ask many questions: Why is this like this? Why is that like that? Why does this happen? Why does that happen? But the best question of all is, “How can I make the most of this time that I have been given? How can I make the best use of it?”
Great saints and wise men have clearly answered this question, and people listen to it a lot. But, I think they either don’t understand it or are unwilling to accept it. Whatever your questions are, your mind, your brain is what is asking them, they dwell on these questions. But all the answers reside in your heart. In the mind, there are only questions; in the heart, nothing but answers. Your questions will not end until you go within and experience what is inside. They will go on and on.
Just like a room full of darkness—you wouldn’t know what is inside. You wouldn’t understand what is in that room. But as soon as there is light in that room… light doesn’t create anything; it only reveals what is already there—a table, a chair, a glass, or a bed.
Light doesn’t create these things, but if they are there, you can see them. Then you can decide for yourself what you wish to do. Similarly, in life, when there is light, you recognize what is around you. If you are hungry, there is fruit. If you need water, it’s there. And if you want to use these things, you can because there is now light in the room. Before the light, when there was darkness, you had no way of knowing where things were. The lack of this knowing creates unease in human beings. But when clarity emerges, when you begin to know and recognize things, you can decide on your own what you need. You no longer need to wonder, because if you are thirsty, you can see the water.
Likewise, in life, when there is darkness inside, there are thousands of questions: What is this? What is that? Will I go to hell? Will I go to heaven? What will happen to me? We have heard all these concepts. When you were born, you knew nothing about hell or heaven. You learned about them later. And so you began to think, Where will I go? What deeds have I done? Have I made any mistakes? These doubts start to emerge, one after another. But when that light bulb of knowledge begins to glow, there is clarity in life.
It is said, It is said, "Without knowledge, man sleeps in ignorant slumber, just as without salt in the food, there is no taste." The one whose inner light of knowledge is not lit, lives life like they have everything, but still dwells in ignorance. He knows not where he is, nor does he know what’s happening now. Although he’s highly skilled at planning for tomorrow, he has no idea about the present. This mind keeps creating images, photos of how things should be. “How my wife should be, how my family, my children, my friends should be.” It constantly chases these things.
And if you think about it deeply, the root of conflicts lies in these photos we have created in our lives.
So pay attention, and most importantly, live in joy. My greetings to all.