प्रेम रावत:
बात है जीवन की। हम जिस बात को करते हैं, उसका किसी मज़हब से लेना-देना नहीं है। वो मनुष्य के लिए है। और सबसे जरूरी बात समझना यह है कि क्योंकि हम जीवित हैं, कौन-सी ऐसी चीजें हैं, जो हमारे जीवन में सबसे ज्यादा प्रभाव रखती हैं, जो जरूरी हों ? क्योंकि अगर विषय होता कि आप धन और कैसे कमा सकते हैं — अगर विषय होता कि आप कैसे 50 परसेंट पैसे को बढ़ा सकते हैं, जो आपके पास है तो यह जगह बहुत छोटी पड़ती। क्योंकि आजकल हमलोगों की जो समझ है, वो कुछ इसी प्रकार की हो गयी है।
बात धन कमाने की नहीं है। कमाइए, खूब कमाइए! जितना हो सकता है, उतना कमाइए! बात धन कमाने की नहीं है, पर जिस तरीके से आप कमा रहे हैं, बात उसकी है कि आप किस तरीके से कमा रहे हैं कि आप उस धन को अपने साथ ले जाएंगे। और यह होगा नहीं।
हर एक चीज का एक लिहाज़ होता है। जब आप अपने घर से कहीं जाने के लिए निकलते हैं, दूर सफर करने के लिए निकलते हैं — तीन दिन के लिए जाना है, चार दिन के लिए जाना है, पांच दिन के लिए जाना है, छः दिन के लिए जाना है, उसी तरीके से तो आप पैक करते हैं अपने सूटकेस को। यह थोड़े ही है कि जब आपको एक दिन के लिए कहीं जाना है तो सूटकेस — अब माता-बहनों की बात अलग है। परंतु वो इस प्रकार से सूटकेस पैक होता है कि उसमें सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ! ये तो नहीं करते हैं। दो दिन के लिए जाना है, तीन दिन के लिए जाना है, उसी चीज को देखकर — क्या होना है, क्या करना है ? ये सब देखकर के ही तो आप पैक करते हैं ? पर अपने जीवन में किस तरीके से पैक करते हैं ?
जो आपके नाते हैं, रिश्ते हैं — और मैं यह चर्चा इसलिए कर रहा हूं आज, क्योंकि अभी तो पांच बजे हैं — एक बजे मैंने एक फोन-कॉल की। मेरे पास कल, जब मैं यहां पहुंचा, मेरे पास एक रिक्वेस्ट आयी कि ‘‘जी! एक व्यक्ति हैं और वो अपने जीवन के आखिरी दौर पर हैं — डॉक्टरों ने कह दिया है। और वो आपसे बात करना चाहते हैं।’’ तो मैंने फोन किया।
तो सबसे पहले उन्होंने कहा कि ‘‘हां, मेरे को कह दिया है कि मैं जा रहा हूं!’’
मैंने कहा कि असलियत तो यह है कि हम सब जा रहे हैं। कोई ऐसा नहीं है, जो नहीं जा रहा है। सिर्फ इतना है कि डॉक्टर ने अभी नहीं कहा है। मतलब, डॉक्टर कह दे — अपशगुन! डॉक्टरों का तो मुंह भी नहीं देखना चाहिए, वो ऐसी चीज कह सकते हैं। पर डॉक्टर कह देते हैं तो हमारा सारा सोचने का तरीका बदल जाता है। डॉक्टर कह देते हैं तो हमारे सोचने का तरीका बदल जाता है, जीने का तरीका बदल जाता है। और डॉक्टर ने नहीं कहा है, फिर भी हकीकत तो वही है। तो संत-महात्माओं का इसके बारे में यह कहना है कि हम अपने आपको — अब मैं पैराफ्रेज़ कर रहा हूं। और अंग्रेजी में जो शब्द होगा कि हम अपने आपको cheat कर रहे हैं। और कोई नहीं, हम अपने आपको cheat कर रहे हैं। जो फैक्ट्स हैं, जो हकीकत है, उसको स्वीकार नहीं कर रहे हैं। परंतु एक ऐसी हकीकत अपने दिमाग में बनाए हुए हैं, जो हकीकत नहीं है। जो हकीकत नहीं है।
तो फिर क्या रह गया ? मतलब, अगर मैं इसी तरीके से बोलता रहूं, थोड़ी देर के बाद आप लोगों को तो रोना आना लगेगा। इतना डिप्रेसिंग बन जाएगा ये सारा सब्जेक्ट — ‘‘जाना है, जाना है, जाना है। इसकी परवाह मत करो। उसकी परवाह मत करो। ये क्या होगा ? वो क्या होगा।’’ नहीं, नहीं, नहीं! मैं डिप्रेसिंग बात करने के लिए नहीं आया हूं। डिप्रेसिंग बात करनी है तो आपको मेरी क्या जरूरत है ? टेलीविजन चालू कीजिए, न्यूज चैनल देखिए, डिप्रेशन अपने आप आ जाएगा। अखबार खोल के बैठ जाइए।
परंतु बात कुछ ऐसी है कि इस अंधेरे के बीच में एक रोशनी है। बात कुछ ऐसी है कि इस डिप्रेसिंग न्यूज़ के बीच में — इस सारे डिप्रेसिंग संसार के बीच में एक खुशखबरी है। और वो खुशखबरी है — यह जीवन! वो खुशखबरी है — यह स्वांस! वो खुशखबरी है — तुम्हारा जिंदा होना! और अगर आप थोड़ी-सी चीजों को समझ जाएं तो आपका पूरा जीवन बदल जाएगा — खुशी में!
कितने ही लोग हैं, कितने ही लोग हैं, जिनके जीवन के अंदर दुःख है और उन दुःखों का कारण और कोई नहीं, वही लोग हैं, जिनको वो बहुत प्यार करते हैं। है कि नहीं ? ताना सुनना — द,द,द,द,द... द,द,द,द... द,द,द,द,द!
अब बात आती है — प्रेम करने की। क्या आपको प्रेम करना आता है ?
‘‘I loveyou, I loveyou, I loveyou’’ के कार्ड खरीदते रहते हैं। जवान थे तो ज्यादा कहते थे, अब थोड़ा बुड्ढे हो गये तो कम कहते हैं। देखिए! मनुष्य को प्यार करना चाहिए तो प्यार करना चाहिए। उससे प्यार करना चाहिए, जिसे वो प्यार करना चाहता है। और असली प्यार वो है कि प्यार हुआ जिससे हुआ, पर उसके कामों से नहीं। तो मैं ऊपर से बात चालू करता हूं।
आप भगवान से प्यार करते हैं ? इसके दो ही उत्तर हो सकते हैं — हां या ना! मल्टीपल च्वाइस है ये! हां या ना! करते हैं ?
आप भगवान से प्यार करते हैं और इसलिए करते हैं, क्योंकि जो वो करता है या भगवान से प्यार करते हैं, इनडिपेंडेंट ऑफ — वो जो करता है ?
आप अपनी मां से प्यार करते हैं, क्योंकि आप अपनी मां से प्यार करते हैं या आप अपनी मां से प्यार करते हैं, क्योंकि वो जो आपके लिए करती है ?
आप अपनी पत्नी से प्यार करते हैं — आप अपनी पत्नी से प्यार करते हैं या पत्नी से इसलिए प्यार करते हैं, कि वो जो आपके लिए करती है ?
मैं — आप समझें न समझें, मैं इसको बहुत इम्पोर्टेंट समझता हूं। क्योंकि अगर मैं भगवान से इसलिए प्यार करता हूं, क्योंकि मैं भगवान से आशा रखता हूं, उपेक्षा रखता हूं कि मेरे लिए वो ये करेगा, ये करेगा, ये करेगा, ये करेगा, ये करेगा, ये करेगा, तो ठीक है। मैं भी भगवान से प्यार करने के लिए तैयार हूं।
मतलब, लोगों का यह है कि हम इतने स्वार्थी हो गए हैं — हम अपने आपको स्वार्थी नहीं मानते।
जब सबेरे-सबेरे उठते हैं, कोई कहे, ‘‘तुम स्वार्थी हो।’’ ‘‘ना! हम कैसे स्वार्थी हैं ?’’
मतलब किसी भूखे को खाना भी खिलाना, उसमें भी हम अपेक्षा करते हैं कि वो कुछ कर्म हमारे — यहां जाएगा जेब में और भगवान हमको दया दृष्टि से देखेगा और हमारा बिज़नेस अच्छा चलेगा। तो हर एक चीज की अपेक्षा हो गयी।
आप अपने बेटे से प्यार करते हैं। इसलिए प्यार करते हैं, क्योंकि वो आपका कहा मानता है और अगर आपका कहा न माने तो वही प्यार करते रहेंगे उसको ?
यहां तक भी क्वेश्चन आ जाता है कि ‘‘तू मेरा बेटा हो ही नहीं सकता!’’
मतलब, कुछ ऐसा माहौल बना दिया है हमने अपने दिमाग में कि जो हकीकत है, उस हकीकत को हम नहीं देख रहे हैं।
अच्छा, भगवान की बात भी हो गयी, बीवी की बात भी हो गयी, बेटे की बात भी हो गयी। बीच में और कोई है तो उसकी बात भी समझो, हो गयी! क्योंकि वही बात है। वो जबतक हमको सैटिस्फाई करते रहेंगे, हम ठीक हैं और हम अपने आपको — अगर वो हमको सैटिस्फाई नहीं कर रहे हैं तो फिर गड़बड़ है।
अच्छा! अब ले जाते हैं बात एक कदम आगे! और कौन है एक कदम आगे ? आप!
आप अपने आप से प्यार करते हैं या नहीं ?
और अगर करते हैं तो इसलिए करते हैं, क्योंकि आप अपने आपको पहचानते हैं इसलिए आप अपने से प्यार करते हैं या आप इसलिए प्यार करते हैं कि आपकी जो आशाएं हैं, जबतक आप उन आशाओं को, उन ख्वाबों को पूरा करते रहेंगे, आप ठीक हैं। और जब आप नहीं करने लगेंगे अपने ही ड्रीम्स को पूरा — अपने ही ख्वाबों को पूरा। क्योंकि देखिए! लोग हैं इस संसार के अंदर, जो खुदकुशी करते हैं। खुदकुशी करना कोई आसान चीज नहीं है। पर वो अपने से ही इतने निराश हो गये हैं कि अब उनको जीवन में आगे चलने के लिए कोई आशा ही नहीं दिखाई देती है।
तो अगर प्यार करना है तो प्यार करना सीखना पड़ेगा बिना अपेक्षा के। और यह आसान काम नहीं है।
मैं सिर्फ आपके सामने बात रख रहा हूं, इसका मतलब यह नहीं है कि आप सबको डिवोर्स ले लेना चाहिए या अपने बच्चों को अनाथाश्रम में डाल देना चाहिए या अपनी जॉब से फायर कर लेना चाहिए। सिर्फ बात है दृष्टिकोण की, बात है समझ की।
अब बैलेंस की बात होती है। बैलेंस तो हो नहीं सकेगा। आई एम सॉरी! आई एम सॉरी! फिजिक्स इज़ इन्वॉल्व! एक तरफ इन्फिनिट — जिसका कभी अंत ही नहीं होता है — जिसका कभी अंत ही नहीं होता है और एक तरफ वो, जिसका अंत निश्चित है। सचमुच में दोनों को एक ही तराजू में रखेंगे ?
वाह, वाह, वाह! क्योंकि होगा नहीं। एक अथाह, दूसरा अथाह नहीं।
तो फिर इसका दृष्टिकोण क्या निकलता है ?
इसका दृष्टिकोण यह निकलता है कि जो भी मैं अपने जीवन में करूं, मैं एक चीज को ध्यान में हमेशा रखूं कि मेरी खुशी बाहर से नहीं आएगी, मेरी खुशी मेरे अंदर से आएगी। मेरी शांति बाहर से नहीं आएगी, मेरी शांति मेरे अंदर से आएगी। मेरा भगवान मेरे को बाहर नहीं मिलेगा, मेरा भगवान मेरे को अंदर में मिलेगा।
ये आपके ऊपर निर्भर है, आप किसको प्यार करें और कैसे प्यार करें ? ये आपके ऊपर निर्भर है! दिल से प्यार करें या दिमाग से प्यार करें ?
एक बार मैं था रेडक्रॉस ब्लड डोनर्स ड्राईव, इटली में — मैंने कहा कि सभी लोगों को ‘‘पीस एम्बेसडर’’ होना चाहिए। सभी लोगों को! शांति की बात करता हूं मैं, परंतु शांति तब तक संभव नहीं होगी, जबतक तुम अपने आपको नहीं पहचानोगे। हो ही नहीं सकती।
जबतक यह नहीं जानोगे कि ‘‘शांति तुम्हारी चाह नहीं है, तुम्हारी जरूरत है।’’ अभी तो लोग समझते हैं कि ‘‘आहा! अच्छा होगा शांति हो जाए!’’ बिना शांति के ये संसार नहीं चल पाएगा। बिना शांति के यह संसार नहीं चल पाएगा, चाहे कितनी भी टेक्नोलॉजी हो! आज सबसे अव्वल टेक्नोलॉजी इस संसार के अंदर शांति की नहीं है, अशांति की है। सबसे अव्वल टेक्नोलॉजी, सबसे एडवांस टेक्नालॉजी डिप्लॉय हुई है लड़ाई करने के लिए।
शांति के लिए क्या करना है ? कुछ नहीं!
लड़ाई के लिए क्या करना है? बहुत कुछ!
शांति के लिए क्या करना है ? कुछ नहीं।
कोई बम नहीं बनाना है, कोई फाइटर जेट नहीं बनाना है, कोई कुछ नहीं बनाना है, कोई सर्वेलेन्स नहीं करनी है, कोई रेडार नहीं चाहिए, कोई सेल्फट्रैकिंग मिसाइल नहीं चाहिए, कोई जीपीएस नहीं चाहिए। सिर्फ मनुष्य चाहिए और सिर्फ मनुष्य चाहिए! लोग कहते हैं, ‘‘हमको शांति के लिए क्या करना चाहिए ?’’
हम कहते हैं, ‘‘कुछ नहीं!’’ तुम जो कर रहे हो, उससे नहीं हो रही है। करना छोड़ो! तुम्हारे अंदर है। तुम्हारे अंदर है। जिस चीज को तुम खोज रहे हो, वो तुम्हारे अंदर है, तुम्हारे पास है। इस बात को जानो, इस बात को समझो और सिर्फ अपने दृष्टिकोण को बदलने की बात है। सिर्फ अपने दृष्टिकोण को बदलने की बात है। समझने की बात है और फिर इस जीवन के अंदर आनंद ही आनंद संभव है। यह मैं दावे के साथ कह सकता हूं। क्योंकि मैं नहीं कह रहा कि मेरे को समस्याएं नहीं तंग करती हैं। करती हैं। खूब करती हैं।
लोगों का काम ही है, अपनी समस्या मेरे सिर पर डालना सबेरे से लेकर शाम तक। और किसी और की हो न हो, वो तो किराये पर भी ले आते हैं। परंतु मेरा दृष्टिकोण बदला ? क्योंकि मैंने अपने से एक सवाल पूछना शुरू किया, ‘‘क्या मैं इस समस्या के कारण परेशान होना चाहता हूं या नहीं ? समस्या को तो देख लेंगे। पर क्या मैं परेशान होना चाहता हूं या नहीं ?’’
और जब उत्तर मेरे को मिला — नहीं! तो मैंने कहा, ठीक है। अब हम समस्या से लड़ने के लिए तैयार हैं।
दृष्टिकोण की बात है। समस्या से तो लड़ेंगे! लड़ना पड़ेगा, लड़ेंगे! परंतु अगर परेशान हैं तो बीमारी पहले ही लगी हुई है। परेशान होकर नहीं, दृढ़ता से! करेज! वीकनेस के साथ नहीं, कमजोरी के साथ नहीं, साहस के साथ। क्योंकि एक ही समस्या से नहीं लड़ना है। और यह जो जंग है, इसको जीतना है। छोटी-मोटी बैटल्स जो हैं — कभी जीतेंगे, कभी हारेंगे। कोई बात नहीं। परंतु जो वॉर है, उसे नहीं हारना है। कभी नहीं। कभी नहीं।
ये है जी 50 साल का एक्सपीरियन्स थोड़े ही शब्दों में। इनमें से कोई भी चीज आपको अच्छी लगे, अपने जीवन में इस्तेमाल कीजिए। कई लोग कहते हैं, ‘‘जी! हम कोई भी चीज इस्तेमाल नहीं करेंगे, क्योंकि हमको ये बात अच्छी नहीं लगी और ये बात अच्छी नहीं लगी और ये बात अच्छी नहीं लगी।’’
उन लोगों को मेरा यह कहना है कि जब आप सुपरमार्केट में जाते हैं तो पूरा सुपरमार्केट खरीद के ले जाते हैं या वही ले जाते हैं, जो आपको चाहिए ? जो आपकी जरूरत है। ठीक उसी तरीके से यह भी सुपरमार्केट है। यहां बहुत सारी चीजें कही गई हैं। जिसकी आपको जरूरत है, ले जाइए! और जिसकी नहीं है, उसको छोड़ दीजिए।
अभी लोग हैं, ऐसे कहते हैं, ‘‘जी! हम ये नहीं करेंगे, हम वो नहीं करेंगे।’’
हमारा तो यह है कि किसी ने भी कहा हो, किसी ने भी कहा हो — चाहे वो लड़के ने कहा, लड़की ने कहा। हमसे जवान, हमसे वृद्ध! अच्छा है तो हम रख लेंगे। नहीं है, नहीं रखेंगे। ये मतलब थोड़े ही है कि सारा का सारा सुपरमार्केट खरीद करके अपने घर में ले जाना है। फिट भी नहीं होगा। और करेंगे क्या ? तो जो अच्छा लगे, उसको रखो। जो बुरा लगे, कोई बात नहीं। पर अच्छे को रखोगे, तुम्हारे जीवन में भी अच्छाई आएगी।
प्रेम रावत:
एक बात है सोचने की, क्योंकि मैं जगह-जगह जाता हूं। और मेरे पास काफी प्रश्न भी आते हैं लोगों के, जो सिर्फ हिन्दुस्तान से ही नहीं, सारे देशों से। कई लोग हैं, जो जेलों में हैं, उनसे भी आते हैं। तो इन सब प्रश्नों को पढ़कर मुझे क्या लगता है ? तो मेरे को यही लगता है कि सब मनुष्य इस संसार के अंदर ओवरलोड हो रखे हैं। सब! छोटे हैं, उनको भी ओवरलोड किया हुआ है। बड़े हैं, उनको भी ओवरलोड किया हुआ है। परिवार के सारे सदस्य — ओवरलोड! देश के नागरिक — ओवरलोड! देश के नेता — ओवरलोड! देश के सिपाही — ओवरलोड! देश की पुलिस — ओवरलोड! सबके साथ यही हाल है। क्योंकि जब ओवरलोड होता है, जब बोझ ज्यादा हो जाता है तो दुःख होता है। जब इतना वजन पड़ने लगता है इन कंधों पर, इस गरदन पर, जो सहा नहीं जा सकता, तो फिर दुःख होता है। और इसके लिए क्या कहा है कि — भूले मन! समझ के लाद लदनियां।
अखबार उठाया मैंने एक दिन, उसमें लिखा हुआ था कि ‘‘आप अच्छी सेहत के लिए ये खाइए! ये खाइए! आप अच्छी सेहत के लिए ऐसा योग कीजिए! आप असली सेहत के लिए, अच्छी सेहत के लिए ये करिए, वो करिए!’’ और कहीं नहीं लिखा था कि — भूले मन! समझ के लाद लदनियां।।
और दरअसल में जड़ सारे मुश्किलों की वही है! आज जो मनुष्य तड़प रहा है, कहां भागता है ?
कोई मंदिर भागता है। पर किसी भी धर्म का व्यक्ति हो, वो अपने भगवान की ओर भागता है। क्यों भागता है ?
क्योंकि ‘‘मुझे दुःख से बचा लो! मेरी विनती सुन लो! कुछ करो!’’ परंतु उसको ये समझाने वाला कोई नहीं है —
भूले मन! समझ के लाद लदनियां।।
नए कानून बन गए! नए कानून बन गए कि इतनी कक्षा से इतनी कक्षा तक विद्यार्थियों को गृहकार्य नहीं करना पड़ेगा। परंतु उनको ये समझाने वाला फिर भी कोई नहीं है कि —
भूले मन! समझ के लाद लदनियां।।
थोड़ा लाद, बहुत मत लादे, टूट जाए तेरी गरदनियां।
भूले मन! समझ के लाद लदनियां।।
यही समझाने के लिए मैं यहां आया हूं कि — भूले मन!
ये बात मैं सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं कह रहा हूं। ये बात मेरे पर भी लागू होती है। लोगों को मैं देखता हूं, अपने आपको मैं देखता हूं। कई बार चिंतित पाता हूं।
तब, जब याद आती है कि ‘‘भूले मन! समझ के लाद लदनियां।’’
क्या-क्या लाद रहा है अपने गर्दन पर तू ?
और — भूखा हो — भूख लगी है अगर — और किस चीज की भूख ?
हर एक व्यक्ति को परमानंद की भूख है। वो आनंद में रहना चाहता है, उस सच्चिदानंद से मिलना चाहता है, अपने जीवन को सफल करना चाहता है। और कई बार उसको यह भी नहीं मालूम कि वो ये करना चाहता है। क्योंकि लगा हुआ है, इतना लगा हुआ है, इतना लगा हुआ है — बोझ है! तो —
भूखा होय तो भोजन पा ले, आगे हाट न बनियां।।
दो दीवाल हैं। एक दीवाल से तुम आए — जब तुम पैदा हुए। कहां थे तुम ? किसी को नहीं मालूम! क्या कर रहे थे तुम ? किसी को नहीं मालूम! पर उस दीवाल से निकले! आज जिंदा हो। एक दूसरी दीवाल है और तुमको उस दीवाल से भी जाना है। और जब जाओगे, कहां जाओगे ? किसी को नहीं मालूम। कोई तुमसे संपर्क नहीं रख पाएगा। सेलफोन तुम ले जा नहीं सकते अपने साथ कि वहां से फोन कर लें, ‘‘मैं यहां हूं!’’ कुछ नहीं। पर अगर जो कुछ करना है, इन दीवालों के बीच में करना है। तो अगर भूखे हो तुम — ये भोजन की बात नहीं हो रही है सिर्फ। ये खाने की बात — दाल की, भात की, रोटी की, चटनी की, सब्जियों की, अचारों की बात नहीं हो रही है। जो भूख लगी है तुम्हारे हृदय में, तुम्हारे अंदर, उसको अगर पूरा करना है तो अब कर लो! ‘‘आगे हाट न बनियां।’’ कोई खिलाने वाला, कोई देने वाला नहीं है।
प्यासा होय तो पानी पी ले, आगे देश निपनियां।।
आगे कुछ नहीं मिलेगा। आगे कोई सुराही देने वाला नहीं है, कोई मटका रखने वाला नहीं है, कोई पानी देने वाला नहीं है। कोई नदी नहीं है, कोई झरना नहीं है, कोई कुआं नहीं है, कोई नलका नहीं है। जो कुछ है, यहां है। और जो तेरे को करना है, यहां करना है।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, काल के हाथ कमनियां।।
आखिर में किसने पकड़ना है तुमको ?
काल ने पकड़ना है। वो ले जाएगा।
अब लोग अपने ख्यालों में विचार करते हैं कि हम अगर ये काम करें, ये काम करें, ये काम करें तो हम स्वर्ग जाएंगे।
धारणाएं हैं मनुष्य की। मनुष्य है जमीन पर, ऊपर की तरफ देखता है। क्या देखता है ? वो ऊपर वाला! कौन ऊपर वाला ? कौन ऊपर वाला ? कौन ऊपर वाला ?
अरे! वो ऊपर वाला तो तुम्हारे अंदर वाला भी है। पर ऊपर ही देखते रहोगे या अंदर की तरफ भी झांकोगे ? अंदर की तरफ झांकना नहीं आता है ? मैं दावे से कहता हूं कि लोगों को अंदर की तरफ झांकना नहीं आता है। बाहर घूर-घूर के देखते रहते हैं — कहां है ? कहां है ? कहां है ? कहां है ? कहां है ? ... और क्या कहते हैं ? ‘‘अगर भगवान! तू है तो सामने आ!’’
भगवान है, पर वो अंदर है। और जबतक तुम अंदर झांक के नहीं देखोगे, तुमको दिखाई नहीं देगा। तुमको पता नहीं लगेगा। बाहर की तरफ देखोगे, क्या मिलेगा ? इस दुनिया का क्लेश मिलेगा। लोग लड़ते हुए मिलेंगे!
जबतक तुम हर दिन, जिसमें तुम जिंदा हो, उसको अगर तुम नहीं समझोगे कि ये क्या है, तबतक तुमको भगवान की असली लीला क्या है, कभी समझ में नहीं आएगी। भगवान क्या है, ये भी तुमको समझ में नहीं आयेगा। चाहे तुम किसी भी धर्म को मानने वाले हो — हम तो कहते हैं, तुमको समझ में ही नहीं आएगा। परंतु जिस दिन तुम समझना शुरू करोगे कि ये क्या आशीर्वाद मिला है — असली त्योहार, वो त्योहार है, जिसमें मनुष्य अपने आपको समझने लगता है, वो त्योहार असली है। औरों का नहीं, अपना त्योहार!
व्रत रखते हैं ? व्रत रखते हैं, क्यों रखते हैं ?
ये {दिमाग की तरफ इशारा करते हुए} कहता है। ये {दिमाग की तरफ इशारा करते हुए}!
ये नहीं{हृदय की तरफ इशारा करते हुए}, हृदय काहे के लिए कहेगा व्रत रखो ? ये {दिमाग की तरफ इशारा करते हुए} कहता है — व्रत रखो तो कुछ अच्छा हो जाएगा। और पेट क्या कहता है ? खिला दे भाई! खिला दे! खिला दे, खिला दे! सारे दिन पेट क्या कहता है ?
‘‘गुर्रऽऽऽऽऽ! घुर्रऽऽऽऽऽऽऽऽ! गुर्रऽऽऽऽऽऽऽऽ! घुर्रऽऽऽऽऽऽ! मैंने तेरा क्या बिगाड़ा ? मुझे क्यों नहीं खिला रहा है ?’’ और खाना क्या है ? वही खाना है, जो भगवान बनाता है। क्या उल्टी गंगा है!
कहते हैं — किसान, ‘‘फसल को उपजाता है।’’ उपजाता है ? परंतु उसको, उस बीज को धरती से कौन निकालता है ? किसान ? वही, जिसके लीले की बात कर रहे हैं, वही-वही —
कामिल काम कमाल किया, तैंने ख्याल से खेल बनाय दिया।
वो! वही! वही किसान है! वही खाने वाला है, वही बनाने वाला है। वही बनाता है, वही भूख बनाता है, वही खाना बनाता है और उसी के नाम पर तुम व्रत करते हो।
परंतु व्रत भी रखेंगे। मैं नहीं कह रहा हूं कि मत रखो! रखो! शौक से रखो! पर ज्यादा लम्बा मत रखना, नहीं तो तुम कहीं और पहुंच जाओगे। अच्छा कर्म करने का कोई व्रत नहीं रखता कि आज ये नहीं कि ‘‘आज के दिन मैं जो कुछ भी करूंगा, अच्छा करूंगा! ये कोई नहीं करता। आज के दिन मैं अपनी पत्नी से अच्छा व्यवहार करूंगा।’’ ये व्रत रखना है, ये रख के देखो! और पत्नी कहे, ‘‘मैं आज के दिन पति से अच्छा व्यवहार करूंगी।’’ और माता-पिता कहें, ‘‘आज हम अपने बच्चों से अच्छा व्यवहार करेंगे!’’ और बड़े-बड़े लीडर, ‘‘आज हम अपने देशवासियों से अच्छा व्यवहार करेंगे।’’ देशवासी — ‘‘आज हम पुलिस से अच्छा व्यवहार करेंगे। आज हम एक-दूसरे से अच्छा व्यवहार करेंगे।’’
एक दिन तो होगा नहीं तुमसे। एक घंटे से चालू करो कि अगले एक घंटे में — और पड़ोसी से नहीं, सिर्फ अपने परिवार में। देखो, क्या असर होता है! अब एक घंटे काम किया तो फिर दो घंटे कर लेना। दो घंटे काम किया तो तीन कर लेना। फिर चार, फिर पांच!
देखो! जब तुम गुस्सा होते हो तो तुम्हारे शरीर को हानि होती है। और जब तुम प्रसन्न होते हो तो तुम्हारे शरीर को कोई हानि नहीं होती है। इसका मतलब समझे ? पहले प्रश्न तो ये होना चाहिए कि क्या तुम अपने शरीर को हानि पहुंचाना चाहते हो ? हां या नहीं ?
{श्रोतागण} — नहीं।
नहीं ? ऐं ? नहीं ? नहीं!
तो अगर शरीर को हानि नहीं पहुंचाना चाहते हो तो इसका क्या मतलब हुआ ? प्रसन्न रहना अच्छा है। नहीं ? बजाय नाराजगी करने के। नफरत करोगे, तुम्हारे शरीर को हानि पहुंचेगी। प्यार करोगे, तुम्हारे शरीर को हानि नहीं पहुंचेगी। तो इसका मतलब क्या हुआ ? अभी भी तुम्हारा कम्प्यूट करने की जरूरत है इसको!
प्यार करना तुम्हारा स्वभाव है। इसलिए तुमको हानि नहीं पहुंचेगी। नफरत करना तुम्हारा स्वभाव नहीं है, इससे तुमको हानि पहुंचेगी। जो तुम करोगे, जो तुम्हारे स्वभाव में नहीं है, उससे तुमको हानि पहुंचेगी। अज्ञानता में रहोगे, तुमको हानि पहुंचेगी। ज्ञान में रहोगे, तुमको हानि नहीं पहुंचेगी। आनंद में रहोगे, तुमको कोई हानि नहीं पहुंचेगी। क्योंकि ये तुम्हारा स्वभाव है। तुमको बनाया ही इसलिए गया है।
अनुभव करो! मालूम करो! जानो! अपने जीवन की क़दर जानो! अपने जीवन के अंदर क्या संभावना है, इसको जानो! सीखो!
प्रेम रावत:
We came here to talk about peace.
पीस, शांति कोई किसी देश, किसी कल्चर, किसी धर्म की exclusive नहीं है। ये सारे विश्व को चाहिए। इसकी जरूरत सारे विश्व को है। शांति के बारे में अगर बात करें तो दो-तीन प्रश्न पहले उठते हैं। एक, तो यह कि शांति के बारे में तो बहुत समय से सुनते आ रहे हैं। मतलब, मैं दो साल, तीन साल की बात नहीं कर रहा हूं। मैं बात कर रहा हूं हजारों सालों की। हजारों सालों की! और अगर शांति की परिभाषा आगे रखी जाए तो ये तो सबको चाहिए! किसी भी धर्म का हो, कोई भी हो, सबको यह बात पसंद है कि शांति होनी चाहिए।
प्रश्न ये उठता है कि ‘‘हो क्यों नहीं रही है ?’’ बजाय इसके कि हम शांति के और करीब जाएं, हम शांति से और दूर जा रहे हैं। लड़ाइयां हो रही हैं और सभी लोग बैठे-बैठे तमाशा देख रहे हैं, क्या हो रहा है ? बड़े-बड़े भाषण होते हैं शांति के ऊपर, पर शांति का कहीं नामो-निशान ही नहीं है। क्यों ? क्यों ? आखिर शांति है क्या ? अगर लड़ाइयां बंद हो जाएं तो शांति हो जाएगी ? तो समय तो ऐसा पहले भी रहा है, जब लड़ाइयां नहीं हो रही थीं। तो जब लड़ाइयां नहीं हो रही थीं, तो शांति थी ? अगर शांति थी, तो फिर लड़ाइयां क्यों चालू हो गईं दुबारा ? शांति तो लड़ाइयों को जन्म दे नहीं सकती! तो शांति है क्या ?
हम सबके दिमाग में एक विचार है और वो विचार है — यूटोपिया का। अब आप समझते हैं यूटोपिया ? एक ऐसा हमने दृश्य बना रखा है अपने दिमाग में कि ऐसा समय आएगा, कुछ ऐसा होगा कि न ज्यादा गर्मी होगी, न ज्यादा ठंडी होगी। न कोई भूखा होगा, न कोई प्यासा होगा। न कोई चोर होगा, न कोई चोरी होगी। सब लोग, जितने दुनिया के लोग हैं, सब आपस में मिलजुल के रहेंगे।
पर यूटोपिया की परिभाषा क्या है ? यूटोपिया का मतलब क्या है ? असली मतलब क्या है यूटोपिया का ? क्या आप जानते हैं ?
यूटोपिया का असली मतलब है — ये ग्रीक से हुआ। और जो उसके दो पहले शब्द हैं, उनका मतलब है — नॉट! नहीं! नहीं! और टोपिया आया — टोपोग्राफी से! टोपोग्राफी का मतलब हुआ — कोई जगह! तो जिसने इस शब्द को coin किया, phrase किया, उसका ये कहना है कि कोई ऐसी जगह नहीं है और हम उसी चित्र को लेकर के बैठ गए। अगर हम देखें कि हो क्या रहा है ? दूर से देखेंगे — एक दूसरा दृश्य नजर आएगा। नजदीक से देखेंगे — एक दूसरा दृश्य नजर आएगा। नजदीक से देखेंगे, आपको कौन लड़ता हुआ मिलेगा ? दूर से देखेंगे तो हो सकता है, सिर्फ धुआं दिखाई दे! लड़ाई का धुआं दिखाई दे। नजदीक से देखेंगे तो आप देखेंगे कि लोग लड़ रहे हैं। लोग लड़ रहे हैं। धुआं लड़ाई नहीं पैदा करता, घर लड़ाई नहीं पैदा करते, लोग लड़ाई पैदा करते हैं। और लोगों को चाहिए शांति! अगर कहीं परिवर्तन आना है तो लोगों में आना है।
अब मैं आपको दूसरी दिशा में ले जाता हूं। आपने microscope का नाम तो सुना होगा। Magnifying glass का नाम सुना होगा। उससे हम नजदीक से देख सकते हैं, उस चीज को बड़े रूप में देख सकते हैं नजदीक से और मालूम कर सकते हैं कि ये असली में क्या है ? तो कहां ले जा रहा हूं मैं आपको कि —
पानी में मीन पियासी, मोहे सुन सुन आवे हांसी।
आतमज्ञान — सेल्फ नॉलेज! Without knowing yourself!
आतमज्ञान बिना नर भटके — सॉक्रटीज़ भी कहता है क्या ? ‘‘know thyself’’ यहां भी कहा जा रहा है —
आतमज्ञान बिना नर भटके, क्या मथुरा क्या काशी।
कहीं भी चले जाओ।
मृग नाभि में है कस्तूरी, बन बन फिरै उदासी।।
मोहे सुन सुन आवे हांसी।।
सोई हंस तेरे घट माहीं, अलख पुरुष अविनाशी।।
सुना ? हां!
जानते हो क्या है ?
हां! हमारे अंदर है। और फिर लड़ाई-झगड़े के लिए चल दिए। फिर लड़ाई-झगड़े के लिए चल दिए! फिर झगड़ा हो रहा है। झगड़ा कहां हो रहा है ? बाहर से, बाहर झगड़ा तो बाद में होता है भाई! झगड़ा पहले तुम्हारे अंदर हो रहा है। तो समझने की बात है कि वो शांति, शांति का स्रोत भी हमारे अंदर है।
हृदय के बारे में तो आपने सुना होगा, पर हृदय होता क्या है ? जो भी आपमें अच्छाई है, आप जानते हैं कि आपमें क्या-क्या चीज अच्छी नहीं हैं। आप जानते हैं कि आपमें क्रोध है। क्रोध बाहर से नहीं आता है। क्रोध आपके अंदर से आता है और जहां आप जाते हैं, आपका क्रोध आपके साथ जाता है। आपका संशय भी आपके साथ जाता है। परंतु जैसे सिक्के का एक side नहीं हो सकता। एक तरफ अंधेरा है तो दूसरी तरफ उजाला है। एक तरफ अगर doubt है तो दूसरी तरफ clarity है। एक तरफ अगर anger है तो दूसरी तरफ compassion है। इन सारे attributes को आप जानते हैं ये आपके अंदर है। जब आपको कहीं गुस्सा होना पड़ता है तो ये थोड़े ही है कि वो एस.एम.एस. के रूप में आपके फोन में आता है ? नहीं! वो तो आपके अंदर है! कहींभी। पर क्या आप जानते हैं कि उसके दूसरी तरफ क्या है ? उस गुस्से के दूसरी तरफ compassion है। पर हम अपने जीवन में इस बात पर कभी ध्यान नहीं देते हैं।
है घट में पर दूर बतावें — हा, हा!
है घट में पर दूर बतावें, दूर की बात निराशी।
इसीलिए सारा संसार निराश होता है — दूर की बात निराशी।।
कहे कबीर — गुरु के बिना —
कहे कबीर सुनो भाई साधो, गुरु बिन भरम न जासी।।
तो शुरू से अगर लिया जाए इसको तो कहा जा रहा है कि जिस चीज की हमको तलाश है, वो हमारे अंदर है। पर आज मनुष्य के ऊपर focus नहीं है, सोसाइटी के ऊपर focus है। सोसाइटी को बदलना चाहिए। सोसाइटी की वजह से गड़बड़ हो रही है। सोसाइटी की वजह से ये हो रहा है। गवर्नमेंट्स को बदलना चाहिए, गवर्नमेंट्स को बदलना चाहिए। गवर्नमेंट्स को बदलना चाहिए। लीडर्स को बदलना चाहिए। पर लीडर हैं कौन ? वो भी मनुष्य हैं। सोसाइटी के सदस्य हैं कौन ? वो भी मनुष्य हैं। तो बात सोसाइटी की हो रही है, मनुष्य की नहीं हो रही है। change गवर्नमेंट की हो रही है, मनुष्य की नहीं हो रही है। मनुष्य को बदलने में कोई interested ही नहीं है।
देखिए! लगभग दो हजार कुछ साल पहले इस भारतवर्ष पर एक लड़ाई हुई थी, जिस लड़ाई का नाम था महाभारत! हुई थी, नहीं हुई थी, पर उसका वर्णन जरूर है। और क्या हुआ था उस लड़ाई के अंदर ? क्या हुआ था उस लड़ाई के अंदर ? किस बारे में थी वो लड़ाई ? कहां —हजारों कहानियां हैं — किस बारे में थी! छोड़िए कहानियों को। पर मूल में क्या है ? क्या चीज थी ? जब मनुष्य के — मनुष्य, मनुष्य के विपरीत हो गया तो वो लड़ाई हुई। जब मनुष्य, मनुष्य के विपरीत हो गया, तब वो लड़ाई हुई। कारण बड़े बन गए, खून बहना कम हो गया। खून का महत्व कम हो गया, मनुष्यों की जिंदगी का महत्व कम हो गया और जो कारण थे, उनका महत्व ज्यादा हो गया। दो हजार कुछ साल पहले।
और आज ? मनुष्य का महत्व कम हो गया, खून का महत्व कम हो गया — बिल्कुल वही हाल है। और कारणों का महत्व ज्यादा हो गया। और महाभारत हो रही है। पर सबसे बड़ी महाभारत होती कहां है ?
सबसे बड़ी महाभारत बाहर नहीं होती है, वो तो सिर्फ 18 दिन की लड़ाई थी। वो तो थी जो लड़ाई, वो अलग बात है, परंतु यहां ये लड़ाई होती है — पच्चीस हजार, पांच सौ पचास दिन। अगर आपकी उम्र 70 साल की — 70 साल आप जीएंगे तो उसका calculate कर लीजिए! कितने दिन आपको जीना है! ये लड़ाई चलती रहती है, चलती रहती है, चलती रहती है, चलती रहती है, चलती रहती है और बहुत खूंखार रूप ले लेती है।
तो मेरा कहने का मतलब यह है सार में कि अगर किसी भी चीज को बदलना है तो, उसके लिए आपको मनुष्य को भी देखना पड़ेगा। ईंटों की संख्या से बिल्डिंग की मजबूती नहीं आती है। ईटों की मजबूती से बिल्डिंग की मजबूती आती है। संख्या से नहीं। इसी प्रकार — in the same way — हर एक व्यक्ति की मजबूती से शांति स्थापित हो सकती है। जो बिल्डिंग हम लोग, सभी लोग, इस दुनिया के सभी लोग, जो बिल्डिंग बनाना चाहते हैं, उसकी मजबूती depend करेगी हर एक individual पर, हर एक व्यक्ति पर, जो उस बिल्डिंग की ईंट होगी, जो उस बिल्डिंग की बुनियाद होगी। न कि उस बिल्डिंग की ऊंचाई होगी। कितना भी उसको ऊंचा बनाना है, पर ईंट को उतना ही मजबूत होना चाहिए। ये मेरा कहना है।
मेरी कोई philosophy नहीं है। मैं मनुष्य हूं। मुझे भी अपने जीवन के अंदर शांति की जरूरत है। जैसे आपको जरूरत है, मेरे को भी जरूरत है। मैं वो मृग नहीं बनना चाहता, जो जंगलों में भागता रहता है और जो चीज उसके अंदर है, वही उसको मालूम नहीं है। क्योंकि जिस चीज की मेरे को तलाश है, उसी चीज की आपको भी तलाश है। जिस चीज को मेरा हृदय चाहता है, उसी चीज को आपका हृदय चाहता है। हृदय वो जगह है, जहां मेरी अच्छाई बसती है। हृदय वो जगह है, जहां मेरी वो कस्तूरी बसती है। हृदय वो चीज है, जहां मेरे जीवन के अंदर प्रकाश बसता है, अंधेरा नहीं। जहां ज्ञान बसता है, अज्ञान नहीं। जहां करुणा बसती है, खौफ नहीं। उस जगह को मैं हृदय कहता हूं। वह सबके अंदर है।
देखिए! आपकी आंख हैं। इन आंखों से आप सबकी आंखें देख सकते हैं, पर अपनी आंख नहीं देख सकते हैं। उसके लिए आपको आईने की जरूरत है। अपनी आंखें देखने के लिए आपको आइने की जरूरत है, दूसरे लोगों की आंखें देखने के लिए आपको आइने की जरूरत नहीं है।
तो समझने की बात है कि अगर मैं अपने आपको देख सकूं तो मुझे क्या दिखाई देगा उस आईने में ? मेरी अच्छाई ? अरे! कम से कम अगर दोनों चीजें दिखाई दे जाएं मेरे को कि मेरी अच्छाई भी है, मेरे में बुराई भी है। तो मैं कम से कम चूज़ तो कर सकता हूं अपनी अच्छाई ? पर जब मेरे को मालूम ही नहीं है कि वो क्या है — अगर — अब मैं आखिरी बात कहूंगा कि अगर इस दुनिया के अंदर कोई hope है, आशा है — क्योंकि कई लोग यहां बैठे हुए हैं और मैं अच्छी तरीके से जानता हूं कि वो ये कहेंगे कि शांति कभी हो ही नहीं सकती।
क्योंकि कई लोग मेरे से ये कहते हैं। ‘‘हो नहीं सकती, हो नहीं सकती!’’
आखिरी बात मैं ये कहना चाहूंगा कि यहां ऊपर आने से पहले हम लोगों ने — जो यहां पैनल बैठी है, उन्होंने ये दीया जलाया। आपने देखा होगा। जलाया। आपने कुछ ध्यान दिया, कैसे हुआ ये ? क्योंकि जब हम आए दीये के पास तो सारी जो बत्तियां हैं, वो बुझी हुई थीं। और दीप जलाने का ये मौका था।
तो हुआ क्या ?
तो ये एक मोमबत्ती लाए, जो जल रही थी। समझ रहे हैं, अब मैं कहां जा रहा हूं इसको लेकर कि एक जलती हुई मोमबत्ती में एक शक्ति है और उस मोमबत्ती में ये शक्ति है कि वो बुझी हुई बत्ती को जला सकती है। ये कानून प्रकृति का कानून है! और ये कानून हम सबको आशा देता है कि जलती हुई मोमबत्ती बुझी हुई मोमबत्ती को जला सकती है। बुझी हुई मोमबत्ती जलती हुई मोमबत्ती को बुझा नहीं सकती। कोशिश भी करेगी तो जलने लगेगी। नजदीक भी आएगी तो जलने लगेगी। क्योंकि ये कानून है और ये कानून कायम है। ये कानून आज भी कायम है। ये सब हम लोगों को आशा देता है कि जो बदलाव हम लाना चाहते हैं, जिस अंधेरे में हम प्रकाश लाना चाहते हैं, ये हो सकता है क्योंकि ये कानून है। अगर हम लोगों को उस मोमबत्ती की तरह जलाना शुरू करें तो एक मोमबत्ती बताइए, कितनी मोमबत्तियों को जला सकती है ? एक-एक का रेसियो नहीं है। एक के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी, तीसरी के बाद चौथी, चौथी के बाद — अब यहां कितनी बत्तियां हैं ? एक, दो, तीन, चार, पांच! एक ही मोमबत्ती ने पांचों को जला दिया।
तो ये एक चीज है। इसे हम लोग समझें। इसको लेकर के आगे बढ़ें तो सचमुच में हम अपने जीवन के अंदर इस शांति को स्थापित कर सकते हैं। मैं ये मानता हूं। क्योंकि लोग चाहते हैं इस शांति को। ये ऐसी बात नहीं है कि ये फॉरेन आइडिया है। अगर हम ऊपर देखना बंद करें और अपनी तरफ देखना शुरू करें तो बहुत-कुछ परिवर्तन आ सकता है। जब मैंने ये prisons में देखा हुआ है, जब जेलों में देखा हुआ है, soldiers में देखा हुआ है, veterans में देखा हुआ है, hospice में देखा हुआ है, hospitals में देखा हुआ है — हर एक वर्ग में। Libraries में देखा हुआ है, schools में देखा हुआ है, universities में देखा हुआ है। तो लोग अपनी तरफ देखना शुरू करते हैं, बजाय ऊपर के। क्योंकि हर एक चीज ऊपर, ऊपर, ऊपर। ऊपर से आएगी। ऊपर से आएगी। ऊपर से नहीं आ रही है। नहीं आ रही है।
कितनी देर इंतजार करोगे ? आप बस का इंतजार करोगे। कितनी देर करोगे बस का इंतजार ? हैं जी ? आप कितनी देर करते हैं बस का इंतजार ? एक साल ? अगर आप बस अड्डे पर खड़े हुए हैं, बस नहीं आई तो एक साल इंतजार करेंगे ? चलिए, दो साल खड़े रहेंगे वहीं ? तीन साल ? चार साल ? पांच साल ? या मैं उल्टी तरफ जा रहा हूं ? 15 मिनट, 20 मिनट ? 20 मिनट में तो उतावले हो ही जाएंगे आप! आधा घंटा ? पैंतालिस मिनट ? और मनुष्य कितनी साल से इंतजार कर रहा है कि कोई आएगा, फिर सबकुछ बदलेगा।
जब बदलने की शक्ति हम सबको मिली हुई है! और बदलना क्या है ? बदलना क्या है ? बदलना कुछ नहीं है! जो अच्छाई है, उसको उभरना है। कहां से चालू होगा ये ? आप अपने घर से चालू कीजिए। आप अपने परिवार से चालू कीजिए। आपको बाहर जाकर भाषण देने की जरूरत नहीं है, अपने घर से चालू कर लीजिए। वहां सबेरे-सबेरे जब आप उठते हैं, आपका बेटा या आपकी बेटी, जो सबेरे-सबेरे आपको देखने के लिए मिलती है तो क्या कहते हैं उनको ?
‘‘तू लेट हो गई! तू लेट हो गई! जल्दी तैयार हो, तेरी बस आ गई है!’’
ये कोई मिलने का तरीका है ? कितने दोस्त बचेंगे आपके, अगर इस तरीके से मिलने लगे, ‘‘तू लेट हो गया! तू लेट हो गया!’’
दुनिया को तो गुड-मॉर्निंग कहने के लिए तैयार हैं और जिनसे प्रेम करते हैं, उनका नाम ही नहीं है। ऐसी हालत में क्या बदला जाएगा ? धीरे-धीरे ये सारी चीजें — यूटोपिया नहीं, असली शांति की बात कर रहा हूं मैं, तब स्थापित होगी। जब हम इस चीज को समझेंगे कि एक जलती हुई मोमबत्ती, एक बुझी हुई बत्ती को जला सकती है।
What do you live for? Do you live for what you have or do you live for what you don’t have? Now, if I start to get into this a little bit more, it is very possible that lot of executives here may say that’s going to make people in our corporation loose ambition. On the contrary, on the contrary, it will be real ambition, not fake ambition, achievable ambition versus unachievable ambition, human ambition instead of some strange dream. So, what is the situation of the world?
क्या परिस्थिति है इस दुनिया की ? जो भी आप परिस्थिति देख रहे हैं इस दुनिया की —
Whatever you are looking at in this world, who made that? I am not talking religiously here.
मैं धर्म की बात नहीं कर रहा हूं। जो कुछ भी परिस्थिति है, जो कुछ भी परिस्थिति है इस दुनिया की, वो किसने बनाई ? अब यहां लोग बैठे हैं, जो कहेंगे, ‘‘भगवान ने!’’ पर भगवान को आप काहे के लिए दोष दे रहे हैं ? जब भगवान की बनाई हुई नहीं है! भगवान ने पृथ्वी बनाई, भगवान ने आकाश बनाया, भगवान ने मनुष्य को बनाया और मनुष्य ने जो आज की परिस्थिति है, वो उसने बनायी। क्या परिस्थिति है ?
जरा सुनिए! लोग गरीब हैं। ठीक है जी ? लोग गरीब हैं। अमीर भी हैं, गरीब भी हैं। चक्कर यह है कि इस सारी — 7.7 बिलियन पॉपुलेशन में एक परसेंट — एक परसेंट, पैसे को कंट्रोल करती है। ये भगवान की बनाई हुई नहीं है।
देखिए! जितना भी सोना इस पृथ्वी से निकाला गया, जितने भी हीरे इस पृथ्वी से निकाले गए, वो कहीं गए नहीं हैं। ये नहीं है कि किसी के पास दस हजार हीरे थे, वो मर गया तो वो उनको ले गया। ना! वो सब यहीं हैं। सब के सब यहीं हैं! परंतु आज हम शांति की तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं और इसलिए नहीं दे रहे हैं और मैं फिर आता हूं अपने प्रश्न के ऊपर दोबारा। क्योंकि हम जी किस चीज के लिए रहे हैं ? उसके लिए, जो है या उसके लिए, जो नहीं है ?
कहानी का टाइम! कहानी तो आप लोगों को पसंद होगी ? You like stories? कहानी तो पसंद होगी आपको ? सुनिए, कहानी सुनाता हूं।
एक व्यक्ति था और वो राजा के यहां काम करता था और हमेशा बड़ा खुश रहता था। हमेशा! और राजा को ये बात पसंद नहीं आई। तो राजा ने कहा, ‘‘मैं राजा हूं। मैं इतना खुश नहीं हूं, जितना ये है। ये कैसे संभव है! ये मेरा नौकर है और ये मुझसे भी ज्यादा खुश है।”
How can this be? He is just my servant and he is happier than I am. I am the king, I have the money, I have power, I have everything, I am not happy, he is happy. How can this be?
तो एक दिन उसने अपने मिनिस्टर को बुलाया। उससे पूछा कि ‘‘ये आदमी इतना खुश क्यों रहता है ? ये तो राजा है नहीं! मैं राजा हूं, मैं इतना खुश नहीं हूं, ये इतना खुश क्यों है ?’’
मंत्री ने कहा, ‘‘महाराज! ये जीता है उसके लिए, जो इसके पास है। आप जीते हैं उसके लिए, जो आपके पास नहीं है।’’
When the King asked the minister, how can this be — this man is so happy?
The minister said, “My king, he lives for what he has, you live for what you don’t have.”
The king goes, I don’t believe you, prove it.
He said, “Certainly”.
तो राजा और मंत्री ने एक प्लान बनाया और 99 पैसे एक बैग में डाले — सिर्फ 99 पैसे। एक रुपया भी नहीं, 99 पैसे! और उसके घर जा के छोड़ दिये।
99 Paises, shy one paisa to be a rupee.
उसके घर छोड़ दिया। अब वो घर आया, when he came home, घर आता है तो देखता है कि एक बैग रखा हुआ है तो बैग को खोला उसने। तो उसने गिने तो बड़ा अचंभा हुआ। 99 पैसे किसके हैं ? देखा उसने, कोई नहीं। उसको ख्याल आया ये मेरे हैं। मैं किसी को नहीं बताऊंगा। ये मेरे हैं। फिर सोचता है वो। कहता है, ‘‘काश! काश! मेरे पास एक और पैसा होता। एक, सिर्फ एक और पैसा होता तो ये पूरा एक रुपया बन जाता।”
बस! उसको चिंता लग गई कि जितना मैं कमाता हूं, उससे खा सकता हूं। अपना घर का किराया दे सकता हूं। सिर्फ यही कर सकता हूं। अब एक पैसा और कहां से लाऊं ? चोरी मैं करना नहीं चाहता। कैसे होगा, कैसे होगा ? और मेहनत करनी पड़ेगी। क्या करना पड़ेगा ? क्या नहीं करना पड़ेगा ? कैसे लाऊं ? कैसे लाऊं दोबारा ? तो दूसरे दिन जब वो दरबार में आया, कोई खुशी नहीं। चिंता में वो डूबा हुआ है कि एक पैसा और कहां से आयेगा ? जब राजा ने देखा, when the king saw, he was no longer happy, जब राजा ने देखा कि वो खुश नहीं है। कई दिन बीत गए ऐसे ही तो राजा को बड़ा बुरा लगा। उसने कहा — एक पैसा लिया उसने और नौकर के पास गया, नौकर को दिया — ‘‘ये ले! अब तेरा एक रुपया पूरा हो गया है।’’
कहा, ‘‘महाराज! वो 99 पैसे से पहले मैं खुश था। मेरा एक छोटा-सा घर था। आपकी नौकरी थी! और जो मिलता था, उससे मेरा पेट संतुष्ट हो जाता था। मैं — I was happy. जब ये 99 मिले तो मैं उस एक पैसे के लिए जीने लगा।
I started to live for that one paisa, now you have given me one paisa, you think I will be happy? No, now I want one o’one and when I get one o’ one, I will want one o’two and when I have one o’ two, I have one o’three.
My King! ये कभी खतम नहीं होगा अब, जबतक मैं जिंदा हूं, Till, I am alive my King, I am going to keep wanting more and more and more and more and more and more and more …., because, क्योंकि अब मैं उसके लिए जीने लगा हूं, जो मेरे पास नहीं है।”
आप लोग यहां बैठे हैं, आपने हो सकता है, ये कहानी पहले सुनी हो या नहीं सुनी हो। ठीक, आपका विचार गया होगा कि ये लालच की बात कर रहे हैं। मैं लालच की बात नहीं कर रहा हूं। आपके घर में परिवार है। आपके घर में परिवार है। आप कितना टाइम अपने परिवार के साथ बिताते हैं ? उनकी बात सुनते हैं। उनकी बात सुनते हैं कानों से। उनकी बात सुनते हैं! आप वही हैं, जो बोर्ड रूम में जा करके घंटों बैठेंगे और, और लोग, जो आपके नहीं हैं, उनकी बात सुनेंगे। पर घर में जो आपका सेंट्रल बोर्ड है, वो भी आपसे बात करना चाहता है, उसके भी कुछ प्रस्ताव हैं।
They have something to say too. Do you listen? Do you have the time to listen? If not, if, if you do, great, wonderful. If you don’t, then you are living for not what you have but what you don’t have. That’s the subtle difference. It is not about just greed, I am not here to lecture you on greed, I am not here to lecture you on morality. I am here to talk about what is real.
मैं जाता हूं, मैं जेलों में जाता हूं, लोगों को संबोधित करता हूं। I go to jails and I have been to prisons and talk to inmates that are there for life. On one sense, what difference would it make, what I tell them, they are in for life and I cannot help them escape. But, when they understand, जब वो समझने लगते हैं कि इस जीवन का अस्तित्व क्या है — देखिए! जो व्यक्ति जेल में है और उसको उम्र-कैद हो रखी है, उसके सपने क्या हैं कि कुछ ऐसा हो जाए कि मैं यहां से निकल जाऊं! Job ? नौकरी ? बड़ा महल ? बढ़िया कार ? सबसे बढ़िया खाना ? ‘‘मैं यहां से निकल जाऊं!’’
आप तो सोच भी नहीं सकते हैं कि ये रट — जब आप अगर कभी जेल में जाएं तो आप देखेंगे कि ये feelings सब में है। सबमें है! सब में! ‘‘कब निकलूंगा, कब निकलूंगा, कब निकलूंगा! कब निकलूंगा, कब निकलूंगा, कब निकलूंगा!’’
और ऐसे व्यक्ति को, How do you tell a person like this — good news? What can be good news for this person except one — Oh! You are coming out.
ऐसे व्यक्ति को, जो उस जेल से निकलना चाहता है बाहर, उसके लिए तो एक ही खुशखबरी है! वो ये है कि ‘‘हां जी! आप छूट रहे हैं कल!’’ और क्या खुशखबरी देंगे उसको ? क्योंकि उसकी इच्छा ही ये है! परंतु सुनिए! उसको भी हमने एक खुशखबरी दी! वो क्या दी कि तुम जीवित हो! और अपने जीवन को इन परिस्थितियों से मत तौलो! ये परिस्थिति बदलती रहेंगी। देखो इनको! तुमको कैदी किस चीज ने बनाया है यहां!
समझने की बात है! दीवाल ? ईंटों ने ? ईंटों ने ? आपका घर काहे का बना है ? ईंटों का बना है! और हो सकता है कि आपकी खिड़की में वैसे ही सलाख भी लगे हों। पर आपका घर है। और मैं तो उनको कहता भी हूं कि — भाई! यहां तो सिक्योरिटी भी बहुत बढ़िया है। बाहर गॉर्ड खड़े हुए हैं, बंदूक है, मशीनगन है। किसी को आने नहीं देते, किसी को जाने नहीं देते। सबकी आई.डी. चेकिंग हो रही है। और तीन टाइम का खाना मिलता है और शौचालय है। अमेरिका में तो कमरे में ही है — en-suite!
तो भाई! तुमको चक्कर क्या है ? मैं कहता हूं, तुम्हारी असली जेल है, यहां! {दिमाग की तरफ इशारा करते हुए} ये वाली नहीं। और जिस दिन तुम इससे निकल जाओगे, उस दिन तुम सचमुच में परम स्वतंत्र हो जाओगे।
आपको क्यों सुना रहा हूं मैं ? आप तो जेल में हैं नहीं! Because you too are imprisoned by that, that you live for, that doesn’t exist. Look and understand what you have. This life, this opportunity that you are alive. I was doing an interview, day before yesterday, very interesting, question was asked, “Where should I look for peace?” Question था कि ‘‘मैं शांति को, कहां उसकी खोज करूं ?’’
मैंने कहा, उस चीज की कैसे खोज करेंगे आप, जो आपके पास पहले से ही है ? शांति तो आपके अंदर है!
है घट में पर दूर बतावें, दूर की बात निरासी।
सोई हंस तेरे घट माहीं, अलख पुरुष अविनाशी।।
वो तो अंदर है। पर आपके पास जो है, आप उसके लिए नहीं जी रहे हैं। जो आपके पास नहीं है, उसके लिए आप जी रहे हैं। Big problem, big problem.
उसके लिए जीना शुरू कीजिए, जो आपके पास है तो आपको कौन मिलेगा ?
अलख पुरुष अविनाशी।
उसके लिए जीना शुरू करिए, जो आपके पास है।
नर तन भव बारिधि कहुं बेरो।
सनमुख मरूत अनुग्रह मेरो।।
ये शरीर जो आपको मिला है, ये इस भवसागर से पार करने का साधन है। आपकी समस्याओं से पार होने का साधन है, तरीका है।
आपकी problems — भवसागर की definition बहुत बड़ी है साहब! भवसागर में इस दुनिया भर की जो समस्या हैं, वो भी आ गई हैं। और इस भवसागर को पार करने का ये साधन है और —
सनमुख मरूत अनुग्रह मेरो।।
इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है। ये मैंने नहीं बनाया है।
सनमुख मरूत अनुग्रह मेरो।।
इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है। तो अगर इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है — और उधर कहा हुआ है कि —
है घट में पर दूर बतावें, दूर की बात निरासी।
सोई हंस तेरे घट माहीं, अलख पुरुष अविनाशी।।
तुम्हारे अंदर है।
मृग नाभि कुण्डल बसे, मृग ढूंढ़े बन माहिं।
ऐसे घट घट ब्रह्म हैं, दुनिया जानत नाहिं।।
कहां है ? वो भी आपके अंदर है। तो वो भी आपके अंदर है, वो अलख पुरुष भी आपके अंदर है, स्वांस भी आपके अंदर है — मतलब, ये सारी चीजें आपके पास पहले से ही हैं! तो अगर ये सारी चीज आपके पास पहले से ही हैं तो जरा मेरे को आप ये बताइए कि आप क्यों नहीं जानते हैं इन चीजों के बारे में ? आपको तो मालूम होना चाहिए न ?
प्रत्येक में — कोई कहे कि ‘‘भगवान तुम्हारे अंदर है’’ और आपने कहा, ‘‘हां जी! हां जी! हां जी!’’ ना! इससे काम नहीं चलेगा। अगर कोई — आपको प्यास लगी है, आप रेगिस्तान में हैं और आप प्यास से मर रहे हैं — You are in the middle of the desert dying of thirst and somebody comes to you and says, “Do you have water?”
And you say, “Yes, yes, yes, I know, I know water, you need water, it’s okay, it’s okay.”
नहीं! नहीं, नहीं, नहीं! आप ये चाहते हैं कि जब आपने ये प्रश्न पूछा उससे कि ‘‘क्या आपके पास पानी है ?’’
देखिए! वो कोई भी जवाब दे, पर आप ये चाहते हैं कि जब आप उससे प्रश्न पूछें कि ‘‘क्या तुम्हारे पास पानी है ?’’
तो वो जवाब दे, ‘‘हां! और ये रहा!’’
नहीं ? नहीं ? यही तो चाहते हैं आप ? अगर आप प्यास से मर रहे हैं तो आप ये थोड़े ही जानना चाहते हैं कि ‘‘डॉलर का क्या भाव है ?’’ आप यह जानना चाहते हैं कि ‘‘फलां-फलां कार की वारंटी कितने साल की है!’’ नहीं। आप चाहते हैं, एक उत्तर चाहते हैं आप। और वह उत्तर है — ‘‘हां! यहां हमारे पास पानी है! लीजिए!’’
तो जब भगवान की बात आती है, उस पारब्रह्म की — और मैं भगवान की बात, रिलिजियस नहीं कह रहा हूं। मैं प्रत्यक्ष अनुभव की बात कर रहा हूं। बोलने वाला नहीं। बोलने वाला नहीं! मैं मैन्यू की रोटी की बात नहीं कर रहा हूं। मैं उस रोटी की बात कर रहा हूं, जिसको आप खा सकते हैं। दोनों में बहुत अंतर है! मैन्यू — एक तो होती है मैन्यू की रोटी! जब आप रेस्टोरेंट में जाते हैं तो उसकी फोटो भी होती है, उसका वर्णन भी होता है और देखने में भी बड़ी अच्छी लगती है वो। और उसका वर्णन भी बहुत अच्छा होता है। ये शुद्ध घी की — इसमें शुद्ध घी है, इसमें बढ़िया आटा है, इसमें इतनी कैलरिज हैं, इसमें इतना ग्लूटन है, इसमें ये है, इसमें वो है। और वो सबकुछ बढ़िया लगता है। और एक होती है खाने वाली।
जापान में जाइए आप। आपको जगह-जगह प्लास्टिक का खाना देखने के लिए मिलेगा। प्लास्टिक! उसको आप खा नहीं सकते हैं, वो दिखता बड़ा बढ़िया-सा है। पर उसको आप खा नहीं सकते। तो एक होता है, एक रोटी होती है डिस्क्रिप्शन की, मेन्यू की और एक होती है खाने वाली। वो जो खाने वाली है न, वही आपकी भूख मिटा सकती है। मेन्यू वाली नहीं। मेन्यू का काम है कि आपको वो उस तरफ संबोधित करे, ताकि आप उसको ऑर्डर करें! ऑर्डर करके आएं और आप उसको खाएं और खाकर के अपनी भूख मिटाएं।
लोग रह जाते हैं, ‘‘हां! गए थे, देखो जी!’’
अब आजकल तो सब चीजों की फोटो खींची जाती है न! तो निकाला अपना फोन और मेन्यू की फोटो खींची और कोई कहे कि ‘‘कहां गए थे ?’’
‘‘भाई! रेस्टोरेंट गए थे। बहुत ही बढ़िया रोटी थी। देखो! ये इसकी फोटो है। रोटी की फोटो!’’
उससे किसी की भूख नहीं मिटेगी। तो मैं कहना चाहता हूं यही कि आप अपने जीवन में उस चीज का अनुभव करिए, जो आपके पास पहले ही है! What you already have, that’s what is important.
और मैंने आपसे एक बात और कही थी। मैंने कहा था — मैं बताऊंगा कि शांति कैसे मिलेगी ? कहा था न मैंने ? तो जब आप उन चीजों को खोजने लगेंगे, जो आपके पास पहले ही है तो surprise, surprise, surprise! एक चीज आपके पास पहले से ही है। उसका नाम है — शांति, जो आपके अंदर है। जब आप खोजना शुरू करेंगे बाहर नहीं, अंदर — उन चीजों को लेना शुरू करेंगे, जो आपके पास पहले से ही हैं तो आपको शांति भी उसमें जरूर मिलेगी। क्योंकि वो आपके अंदर पहले से ही है।
ऐंकर : वाकई बहुत खुशी हो रही है कि आपके संदेश सुनकर, आपकी बातें सुनकर। तो जिस तरीके से अगर हम बात करें आज के युग की, आज के जमाने की — जिस तरीके की अशांति दुनिया भर में फैली हुई है और दुनिया भर में आप घूमते हैं। यू.के. की बात करूं मैं, यू.एस. की बात करूं या यूरोपियन कंट्रीज की बात करूं, वहां की पार्लियामेंट्स ने आपको बुला-बुलाकर सम्मानित किया है तो क्या उन देशों पर, उन लोगों पर भी कोई आपकी बात का, आपके संदेश का असर पड़ता है ?
प्रेम रावत जी : पड़ता जरूर है! क्योंकि जब लोग सुनने लगते हैं शांति की बात, कम से कम कोई तो शांति की बात कर रहा है। और ऐसी शांति नहीं, जो धर्म से संबंधित हो। ऐसी शांति, जो निज़ी शांति हो, जो उसके जीवन के अंदर हो, चाहे वह किसी भी धर्म का हो।
अब कई लोग हैं, जो धर्म को नहीं मानते हैं। कई लोग हैं, जो भगवान को भी नहीं मानते हैं। पर इसका मतलब यह नहीं है कि वो शांति का अनुभव नहीं कर सकते।
लोग समझते हैं कि ‘‘नहीं, ऐसा करो, ऐसा करो, ऐसा करो, तब जाकर के यह सबकुछ होगा।’’
नहीं! शांति तो सबके अंदर है, परंतु उसको हमने मौका नहीं दिया है उभरने का। उसको मौका नहीं दिया है, उसको खोजने का, उसको जानने का और यह बात बहुत जरूरी है। जब भी — अब आज आप देखिए! शांति के बारे में लोग कहीं भी मैं जाता हूं, प्रभावित होते हैं। वो संदेश सुनते हैं कि — क्योंकि सारे दिन वो सुन रहे हैं, "ये हो रहा है, वो हो रहा है, वहां लड़ाई हो रही है, ऐसा हो रहा है, ऐसा हो रहा है, ऐसा हो रहा है।"
तो सोचते हैं, ऐसा क्यों हो रहा है ? जैसे आपने अभी कहा कि ऐसा क्यों हो रहा है ? फिर जब शांति का संदेश सुनते हैं तो कहीं न कहीं गुंज़ाइश है। क्योंकि पहले उनके दिमाग में यह भरा हुआ है कि शांति हो नहीं सकती।
मैं लोगों से कहता हूं कि ये जो लड़ाइयां हैं, जो कुछ भी आज इस विश्व का हाल है, वो किसने बनाया ?
वो मनुष्य ने बनाया। अगर मनुष्य ने बनाया और आप इस बात को मानते हैं कि मनुष्य ने बनाया तो यह तो बहुत अच्छी खुशखबरी है। क्योंकि इसका मतलब है कि वो बदली भी जा सकती है। अब प्रकृति को बदलना बड़ा मुश्किल है। अगर भगवान ने बनाया तो बड़ा मुश्किल है। परंतु अगर मनुष्य ने बनाया है तो वो बदला जा सकता है।
ऐंकर : बिल्कुल, बिल्कुल, बिल्कुल! आंतरिक शांति, जैसे आपने बात कही कि ‘अंदर की शांति’। यह हम बात कर रहे थे कि देशों में जिस तरीके का टाइम चल रहा है आजकल, आंतरिक शांति क्या है ? उसके बारे में थोड़ा-सा हमारे दर्शकों को समझाइए।
प्रेम रावत जी : मैं इस सवाल को दो हिस्सों में बांटना चाहता हूं। एक तो यह कि आंतरिक शांति क्या नहीं है और क्या है ?
तो सबसे पहले लोग समझते हैं कि अगर उनकी समस्याओं का हल हो जाए तो उनको आंतरिक शांति मिल जाएगी। तो अगर कोई भूखा है तो उसके लिए यह हो जाता है कि अगर मेरे को खाना मिल जाए तो मैं शांत हो जाऊंगा। अगर पड़ोसी का कुत्ता हर — सारी रात भौंक रहा है तो यह होता है कि अगर यह कुत्ता शांत हो जाए तो मैं शांत हो जाऊंगा। तो अंदर की शांति यह नहीं है कि हमारी समस्याओं का हल हो जाए तो हम शांत हो जाएंगे क्योंकि हमारी समस्याएं बदलती रहेंगी। हर एक चीज के साथ — जब सेलफोन नहीं थे तो उनकी बैटरी की कंडीशन क्या है, किसको परवाह थी ? पर अब हो गये हैं तो कितनी बैटरी बची है, अब हमारे लिए समस्या बन गयी है। तो एक तो यह है कि क्या नहीं है और लोग समझते हैं कि ये लड़ाइयां बंद हो जाएं तो शांति हो जाएगी। यह भी शांति नहीं है।
तो अब शांति क्या है ?
शांति है मनुष्य के अंदर। शांति है वह चीज, जो कि मनुष्य अपने आपको पहचाने। अपने आपको पहचाने कि मेरी ताकत क्या है और मेरी कमजोरियां क्या हैं, वहां से शुरू करे। वह शांति नहीं है, पर वहां से शुरू करे कि मेरे अंदर क्या ताकत है ? तो आपके अंदर आनंद को अनुभव करने की भी ताकत है और आपके अंदर परेशान होने की भी ताकत है। आप में गुस्सा होने की भी ताकत है और आप में प्रेम करने की भी ताकत है। और ये दो ताकत जो आपकी हैं, इससे आप कभी वंचित नहीं हैं। मतलब, आप कहीं भी चले जाएं, ये दोनों चीजें आपके साथ-साथ चलती हैं।
ऐंकर : जी, जी, जी, जी!
प्रेम रावत जी : आप क्रोधित भी हो सकते हैं और आप आनंद में भी हो सकते हैं। आप प्यार भी कर सकते हैं, आप नफरत भी कर सकते हैं। दोनों चीजें आपके साथ चलती हैं।
अब बात यह है कि हम किस चीज को प्रेरणा देते हैं ?
संसार में जब हम होते हैं, ट्रैफिक में फंस जाते हैं या रेलगाड़ी छूट गयी या हवाई जहाज छूट गया तो प्रेरणा उन चीजों को मिलती है, जिससे कि गुस्सा आए। उस समय आदमी यह नहीं सोचता है कि नहीं, कम से कम मैं जीवित तो हूं। क्योंकि उसकी दुनिया में, मनुष्य की दुनिया में जीवित होने का कोई मोल नहीं है कि ‘‘मैं आज जीवित हूं!’’ यह नहीं कहता है मनुष्य। किसी के साथ कोई समस्या हुई तो यह नहीं कहता है मनुष्य कि ‘‘कम से कम मैं जीवित तो हूं!’’
वह कहता है, "नहीं, ये हो गया! ये हो गया! ये हो गया! ये हो गया! और जब प्राण निकलने लगते हैं मनुष्य के, तब उसको ख्याल आता है — अरे बाप रे बाप! कहां मैं फंसा हुआ था ?
सबसे बड़ी चीज तो यह है कि मैं जीवित रहूं, दो मिनट के लिए और रहूं, तीन मिनट के लिए और रहूं!
तो शांति वह है, जब मनुष्य के अंदर, वो जो तूफान आते रहते हैं, उनसे निकलकर के, वह उस चीज का अनुभव करे, जो उसके अंदर है। हम उस ताकत को, उस शक्ति को, जिसने सारे विश्व को चला रखा है इस समय, वह हमारे अंदर भी है और उसका अनुभव करना, साक्षात् अनुभव करना — मन से नहीं, ख्यालों से नहीं, साक्षात् अनुभव करना — उससे फिर शांति उभरती है मनुष्य को । क्योंकि वह उस चीज का अनुभव कर रहा है, जिसका कि वह एक हिस्सा है और जिसकी कोई हद नहीं है। इन्फीनिट है! जिसका कभी नाश नहीं होगा, वह भी उसके अंदर है। और जबतक वह उसका अनुभव नहीं कर लेगा, वह अपने आपको पहचान नहीं पाएगा पूरी तरीके से कि वह है क्या ? और जबतक पहचानेगा नहीं, तब तक जानेगा नहीं, तब तक पहचानेगा नहीं।
ऐंकर : चार साल की उम्र — खेलने-कूदने की उम्र होती है या स्कूल में पढ़ने की उम्र होती है। तो कहां से ये ख्याल, कहां से आते थे आपके दिमाग में कि ये मुझे बोलना है, लोगों को ये असर होगा या पिताजी से सुनते थे या जो घर का एक परिवेश था, जैसे पिताजी आपके बता रहे हैं — वो लोगों को संदेश देते थे! कहां से आते थे ये ख्यालात ?
प्रेम रावत जी : देखिए! एक बात अगर समझ में आ गई और उस चीज का अनुभव कर लिया आपने अंदर तो उसके बाद तोते की तरह रटने की जरूरत नहीं है। उसके बाद तो फिर दिल से कह सकते हैं और वो दिल से बात उभरकर आएगी, क्योंकि बात समझ में आ गई। और यही बात मैं आज लोगों के जीवन में चाहता हूं कि लोगों की समझ में आ जाए यह बात। एक बार आ गई तो उसके बाद उनको तोता बनने की जरूरत नहीं है।
ऐंकर : जरूरत नहीं है।
प्रेम रावत जी : क्योंकि आजकल तो तोता बन गए हैं लोग। ये फलां-फलां किताब में लिखा है, ये फलां-फलां किताब में लिखा है। वहां से पढ़ रहे हैं, ये कर रहे हैं। भाई! तुम्हारा अनुभव क्या है ? अपना अनुभव होना चाहिए। तो मैंने अपने जीवन में अपना अनुभव ही आगे रखने की कोशिश की है। यह नहीं है कि मैं बहुत विद्वान हूं। मेरे को फेम नहीं चाहिए।
ऐंकर : बिल्कुल, बिल्कुल!
प्रेम रावत जी : क्योंकि वो — मैंने उसका अनुभव किया हुआ है। वो क्या होती है, मेरे को मालूम है और मेरे को नहीं चाहिए। इसीलिए आप मेरे पोस्टर नहीं देखेंगे।
ऐंकर : बिल्कुल, बिल्कुल! कहीं नजर नहीं आते हैं।
प्रेम रावत जी : क्योंकि हम गंदगी नहीं फैलाना चाहते हैं। ये देश है, इसमें हमारा जन्म हुआ और आज — देखिए! लोग कूड़ा फेंकने में कोई संकोच नहीं करते हैं।
ऐंकर : बिल्कुल!
प्रेम रावत जी : और एक समय था — हमारे पोस्टर लगते थे। मैंने कहा कि मेरे को नहीं चाहिए। मेरे को सुनने वाले वो चाहिए, जो सचमुच में अपने हृदय से मेरी बात सुनना चाहते हैं।
ऐंकर : बिल्कुल!
प्रेम रावत जी : आज भी वही बात है। तो आपको जगह-जगह एडवर्टाइजमेंट नहीं मिलेंगे। हम उन्हीं लोगों को संबोधित करना चाहते हैं, जो सुनना चाहते हैं।
ऐंकर : यही चीजें आपको औरों से अलग बनाती हैं। आपकी जो मुझे कैटेगरी नजर आती है, जिस तरीके से मैंने आपको सुना — यूट्यूब पर भी सुना और साक्षात् सुनकर आया मैं, तो औरों से अलग हैं आप। तो कैसे आप अपने आपको अलग मानते हैं उन सबसे ?
प्रेम रावत जी : देखिए! एक तो मैं अपने आपको मनुष्य मानता हूं।
ऐंकर : जी!
प्रेम रावत जी : और मनुष्य होने के नाते मुझे इसमें गर्व है। और लोगों को जो देखता हूं, वो समझते हैं कि मनुष्य सबसे नीचे है। मैं समझता हूं कि मनुष्य सबसे ऊपर है।
ऐंकर : बहुत अच्छे!
प्रेम रावत जी : तो यह बात अलग है। तो लोग कहते हैं कि "हमको पूजो"!
हम कहते हैं, "नहीं, तुम अपने आपको पूजना शुरू करो! जो तुम्हारे अंदर है, उसको पूजना शुरू करो!" लोग कहते हैं, "हमको आशीर्वाद दीजिए!"
मैंने कहा कि "जिसका आशीर्वाद तुम्हारे सिर पर है, तुम चाहते हो कि मैं उसका हाथ हटाकर के अपना हाथ रखूं ? मेरे में, तुम में कोई अंतर नहीं है। मेरे को भी दुःख होता है, तुमको भी दुःख होता है। इसीलिए मैं तुमसे बात कर सकता हूं। क्योंकि मेरा अनुभव है कि मनुष्य होने के नाते हम उस चीज का भी अनुभव कर सकते हैं, जो हमारे जीवन में शांति लाए और उस चीज का भी अनुभव कर सकते हैं, जो अशांति लाए।" तो कॉमन ग्राउंड है। कॉमन ग्राउंड मेरे को पसंद है। कॉमन ग्राउंड मेरे को पसंद है। और मैं अपने आपको पुजवाना नहीं चाहता हूं। मैं अपने आपको डिक्लेयर नहीं करना चाहता हूं कि मैं ये हूं, मैं वो हूं। क्योंकि ये — जब मैं छोटा था, लोगों ने चालू कर दिया कि "ये, ये है! ये भगवान है। ये, ये है, ये, वो है!"
ऐंकर : अच्छा, अच्छा!
प्रेम रावत जी : ...भगवान! अब स्कूल में जाओ! स्कूल में आप मास्टर से कहेंगे कि "मैं भगवान हूं! मेरे को गृहकार्य मत दो।"
ऐंकर : बिल्कुल नहीं!
प्रेम रावत जी : मैं इम्तिहान नहीं दूंगा। मैं तो भगवान हूं, मेरे को वैसे ही पास कर दो।"
नहीं! ये सब नहीं है। वहां तो फिर गृहकार्य भी करना है और अगर मास्टर कहता है, "सब लोग खड़े हो जाओ! अपना कान पकड़ो!" वो भी करना है। उस समय तो ये सब चलता था।
ऐंकर : जी, जी, जी!
प्रेम रावत जी : पूरी की पूरी क्लास पनिश हो रही है। तो ये सारी चीजें — मनुष्य यह जाने कि वह मनुष्य है। और मनुष्य बहुत सुंदर चीज है। अच्छी चीज है! खराब कर रही है अभी, परंतु इसको भी बदला जा सकता है।
ऐंकर : एक चीज और मैं जानना चाहूंगा कि जिस तरीके से मैंने, जैसे पिछला आपका "आरंभ" देखा था, उसमें जो भारी तादाद में लोग आए हुए थे। तो पॉलिटिशियन्स जो होते हैं, वो ऐसे लोगों को ग्रैब करने की कोशिश करते हैं कि ये हमारी साइड आ जाएं, ये हमारी साइड आ जाएं। क्या ऐसा कोई अनुभव रहा है कि पॉलिटिशियन्स आपको अपनी तरफ खींचने की कोशिश करते हैं कई बार ?
प्रेम रावत जी : होता है! होता है, परंतु जब हम देखते हैं — अब देखिए! पॉलिटिशियन की बात अलग है। पॉलिटिशियन्स भी मनुष्य हैं। ऐंकर : जी, जी!
प्रेम रावत जी : और यह बात नहीं है कि उनके अंदर अच्छाई नहीं है। अच्छाई तो उनके अंदर भी है। अब ऐसे माहौल में हैं वो कि कॉम्पटीशन, कॉम्पटीशन, कॉम्पटीशन, कॉम्पटीशन, कॉम्पटीशन। उनको सही होना है, कुछ गलती नहीं कर सकते। मतलब, उनको इस तरीके से बना दिया है लोगों ने कि उनकी जिंदगी अपने आप ही डिफिकल्ट हो गयी है। जो लोग हैं, वो उनको देखते हैं कि कोई भी उनकी समस्या हो, वो उसको ठीक करेंगे।
कैसे ? कैसे ? मतलब, कहां से करेंगे ठीक ? तो अगर लोग यह अपेक्षा छोड़ना शुरू करें और एक-दूसरे की तरफ देखना शुरू करें कि भाई! हम अपनी समस्याओं को हल कर सकते हैं। तो समाज बंटेगा नहीं, इकट्ठा होगा।
ऐंकर : जुड़ेगा!
प्रेम रावत जी : तो मैं तो पॉलिटिक्स से दूर रहता हूं।
ऐंकर : जी, जी, जी!
प्रेम रावत जी : क्योंकि मैंने देखा हुआ है कि पॉलिटिक्स क्या है। अब अगर सभी एक ही नौका में बैठें हैं और वो नौका डूबने लगे तो रस्सी कौन फेंकेगा ?
ऐंकर : {हँसने लगते हैं}
प्रेम रावत जी : तो मेरा — मैं तो अपने आपको समझता हूं रस्सी फेंकने वाला।
ऐंकर : हूं, हूं, हूं!
प्रेम रावत जी : तो मेरे को तो उस नौका में नहीं बैठना है। कम से कम वो नौका अगर डूबने लगे तो रस्सी तो फेंक सकूंगा मैं।
ऐंकर : सही बात है! देश भर में घूमते हैं। परिवार भी आपका है, मैंने सुना है।
प्रेम रावत जी : बिल्कुल!
ऐंकर : कैसे तालमेल बिठाते हैं ? देश में, परिवार में कभी शिकायत नहीं रहती है कि हमें समय नहीं देते हैं आप ?
प्रेम रावत जी : हां! देखिए! जब बच्चे छोटे थे तो मैंने, जितना मैं उनको समय दे सकता था, उतना मैं समय देता था। जैसे ही मैं आता था — कई बार टूर से मैं आया तो उनको स्कूल लेने के लिए चला जाता था। उनको बड़ा अच्छा लगता था। कई बार मैं छुप जाता था पीछे — वो आते थे कार में तो मैं पीछे से निकलता था तो — आऽऽऽऽऽ! आ गए, आ गए! तो फिर मैंने सबको बैठाकर के बताया कि भाई! मैं यह करते आ रहा हूं। तुमसे पहले भी मैं कर रहा था और जब तुम बड़े हो जाओगे, तब भी मैं यह करता रहूंगा।
ऐंकर : ठीक, ठीक, ठीक!
प्रेम रावत जी : तो मैं पहले ही माफी मांग लेता हूं कि जितना समय मेरे को बिताना चाहिए, मैं नहीं बिता पाऊंगा। फिर भी मैंने कोशिश की कि वो मेरे साथ आएं। और उनको हिन्दुस्तान भी मैं लाता था, उनको बहुत अच्छा लगता था। और अब जैसे वो बड़े हो गए हैं तो सब इसी काम में हाथ बंटाने के लिए तैयार हैं।
ऐंकर : अच्छा, अच्छा, अच्छा!
प्रेम रावत जी : और उनको बड़ा अच्छा लगता है।
ऐंकर : तो जैसे आपके पिताजी ने आपको चुना, तो क्या आप भी आगे चाहेंगे कि आपके बच्चे भी इसी तरीके से शांति का संदेश और आगे बढ़ाएं ?
प्रेम रावत जी : मैं तो चाहूंगा! मैं तो चाहूंगा, परंतु मैं यह भी चाहूंगा कि वो और लोगों को प्रेरित करें और लीडर न बनें। सभी, सभी लोग मिलकर के — यह शांति का जो पथ है, इस पर सभी को चलना है। यह लीडरपना ज्यादा नहीं चलेगा। क्योंकि इसमें यह हो जाना कि सबकी अपेक्षा यह हो जाती है कि तुम क्या कहोगे, क्या करोगे, ये है, वो है। यह नहीं चलेगा। ये सब मिलकर के होगा। क्योंकि सभी-सभी इसमें — अब जैसे मेरे को शांतिदूत की पदवी मिली तो मैं एक — इटली में रेडक्रॉस फंक्शन में गया। तो मैंने कहा कि भाई! तुम सभी पीस एम्बेसडर क्यों नहीं बनते हो ? शांतिदूत क्यों नहीं बनते हो ?
ऐंकर : क्यों नहीं बनते हो ? बहुत बढ़िया।
प्रेम रावत जी : हर एक मनुष्य को शांतिदूत बनना है — मेरे को ही नहीं। मैं शांतिदूत होने के हिसाब से आपको कह रहा हूं कि "आप सब बनो! मैं आपको डिक्लेयर कर रहा हूं!" क्योंकि तभी होगा। मिलकर होगा। बिछड़कर नहीं। अलग होकर नहीं होगा।
ऐंकर : धन्यवाद प्रेम रावत जी! बहुत-बहुत शुक्रिया आपका कि आपने हमारे दर्शकों को शांति का संदेश दिया, जो कि आप दुनिया भर में देते हैं। हमारे दर्शक — अगर मैं यह कहूं कि लकी हैं, खुशकिस्मत हैं, आपका संदेश सुन रहे हैं — तो आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! इतना ही कहना चाहता हूं।
प्रेम रावत जी : आपके दर्शकों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
ऐंकर : धन्यवाद! नमस्कार!
Once there was a camp of American Indians — काफिला। तो एक दिन एक बच्चा उस काफिले के सरदार के पास जाता है, He goes to the chief. सरदार के पास जाता है और सरदार से कहता है कि ‘‘Chief! मेरा एक प्रश्न है।’’ तो सरदार बोलता है, ‘‘क्या ?’’
तो बच्चा बोलता है कि ‘‘Chief! सरदार! यह बताओ कि यह कैसे संभव है ? How is it posssible that some of the people are good some of the time? यह कैसे संभव है कि कुछ लोग अच्छे होते हैं, कभी अच्छे होते हैं। Some people are good and the same people who are good sometimes are bad the other times. यह कैसे संभव है कि वही लोग, जो कभी अच्छे होते हैं, वही लोग बुरे हो जाते हैं। वही लोग, जो एक-दूसरे के प्रति प्यार जताते हैं, वही लोग एक-दूसरे से दुश्मनी कर बैठते हैं। यह कैसे संभव है ?’’ तो सरदार कहता है कि ‘‘तुम्हारे अंदर दो भेड़िया हैं।’’
भेड़िया समझते हैं न ? Wolf!
There are two wolves inside of you. दो भेड़िया हैं। एक अच्छा भेड़िया है — One good wolf, one is good wolf and one is bad wolf.
एक अच्छा भेड़िया है, एक अच्छा भेड़िया नहीं है। खतरनाक भेड़िया है। और वो दोनों आपस में लड़ते हैं। इसलिए कभी लोग अच्छे होते हैं — वही लोग जो अच्छे होते हैं, दयावान होते हैं, एक दिन दयावान हैं, एक दिन गुस्सा कर रहे हैं। एक दिन मोहब्बत है उनको, एक दिन नफरत कर रहे हैं।’’
तो बच्चे ने कहा, ‘‘ठीक है!’’
थोड़ी देर के बाद वह फिर एक प्रश्न पूछता है, ‘‘सरदार! Chief, tell me something, who wins?
कौन-सा भेड़िया जीतेगा ? अच्छा वाला या बुरा वाला ? “Which wolf will win? Good wolf or bad wolf ?”
तो Chief बोलता है, सरदार बोलता है, “The one you feed.” वो भेड़िया जीतेगा, जिसको तुम खिलाते हो। क्योंकि जिसको तुम खिलाते हो, वो बलवान होगा और जो बलवान होगा, वो जीतेगा।’’
इस कहानी का तुक क्या हुआ ? आपकी समझ में तो आया न ?
You understood that, right! Two wolves inside of you. Good wolf, bad wolf. और उत्तर क्या है कि जिस भेड़िये को तुम खिलाते हो, वही जीतेगा।
This story is not complete. यह कहानी अभी अधूरी है। क्योंकि इस कहानी के बाद एक और प्रश्न आता है। वो बच्चे का नहीं है। वो मेरा है। और मैं आपसे पूछता हूं कि आप किस भेड़िया को खिलाते हैं ? आपके अंदर भी दो भेड़िये हैं। एक अच्छा है, एक बुरा है। आप किसको खिलाते हैं ? बुरे वाले भेड़िये को या अच्छे वाले भेड़िये को ?
तो जो मैंने कहा न कि अंदर क्या हो रहा है ? यह किसी को नहीं मालूम। इसके लिए कोई ऐसी टेक्नोलोजी नहीं है, जिससे कि आदमी मालूम कर सके, मेरे अंदर मैं किस भेड़िये — जो कुछ भी मैं कर रहा हूं, वो किस भेड़िये के पास जा रहा है ? तो लोग लगे हुए हैं और उनको सबको मालूम है कि उनकी जिंदगी में वो क्या चाहते हैं। यह तो सबको मालूम है, क्या चाहते हैं ? कहीं भी आप चले जाइए। You can go anywhere in the world then ask people, what do you want? They know. I want to be like this. I want to be like this.
जो कुछ भी आप कल्पना करते हैं, पाने की कल्पना करते हैं, ताकतवर बनने की कल्पना करते हैं — एक चीज आपके अंदर पहले से ही है। और वह जो चीज आपके अंदर पहले से ही है, वह सबसे ताकतवर है। और वह जो चीज है आपके अंदर, वह है शांति! वह है शांति! तो अब लोगों को ये लगता है कि ‘‘ठीक है जी! आपने कह दिया कि शांति हमारे अंदर है। यह तो हमको भी मालूम था कि शांति हमारे अंदर है।’’ अब ये लोग बहुत — ये बात बहुत बोलते हैं लोग — ‘‘यह तो हमको पहले से ही मालूम था!’’
तो अगर यह आपको पहले से ही मालूम था तो आप प्यासे क्यों घूम रहे थे ? यह तो वो वाली बात हुई कि किसी ने आकर बताया — आपने पूछा कि ‘‘मैं प्यासा हूं, पानी का प्रबंध कर दो!’’ तो किसी ने कहा कि ‘‘जिस कुएं की आपको तलाश है, वह आपके अंदर है।’’ और आप कह रहे हैं, ‘‘हां! यह तो हमको मालूम था कि कुआं हमारे अंदर है!’’
जब आपको पहले से ही मालूम था कि कुआं आपके अंदर है तो आप प्यासे क्यों घूम रहे थे ? काहे के लिए प्यासे घूम रहे थे ? आपको मजा आता है, प्यासे घूमने में ?
जब आपके जीवन में कोई इम्तिहान आता है — यहां कई लोग बैठे हैं, जो स्कूल नहीं जाते अब। या जाते भी हैं तो पढ़ाने के लिए जाते होंगे। अब उनको ऐसा लग सकता है कि ‘‘भाई! इम्तिहान तो हमने तब दिया था, जब हम छात्र थे।’’
नहीं जी! आप चिंता मत कीजिए! आपके जीवन में भी इम्तिहान आते रहते हैं। अभी जिस कक्षा में आप हैं, उस कक्षा में भी आपके जीवन के अंदर इम्तिहान आते रहते हैं। उनको आप हो सकता है, इम्तिहान न कहें, पर समस्या कहें। पर वो इम्तिहान आपके जीवन में आते रहते हैं। और जो बच्चे यहां बैठे हैं, उनको तो मालूम ही है कि उनके तो इम्तिहान और आएंगे। और जब इम्तिहान आएंगे तो बुरा हाल भी होता है। क्योंकि एक ही लक्ष्य है उस समय कि कैसे यह इम्तिहान पूरा हो, मैं पास होऊं और फिर क्या ? फिर क्या ? फिर मेरी सारी जो इच्छाएं हैं — बढ़िया नौकरी लग जाएगी, ये हो जाएगा, वो हो जाएगा।
मैं एक बात कहूं ? जबतक आप जीवित हैं इस दुनिया के अंदर सुख और दुःख दोनों ही आपके आगे-पीछे हमेशा मंडरा रहे हैं। सुख भी और दुःख भी। Till you are alive, both times, good times and bad times are right next to you.
इस जीवन के अंदर उजाला भी है, अंधेरा भी है। ज्ञान भी है, अज्ञान भी है! शांति भी है, अशांति भी है! दोनों चीजें हैं। और यह कभी खतम नहीं होगा। जबतक आप जीवित हैं, यह कभी खतम नहीं होगा।
दो प्रकार की चीजें हैं। एक तो होती है छलनी। चाय के लिए छलनी इस्तेमाल की जाती है। वह करती क्या है ? एक छलनी होती है वह, जो खराब चीज है, उसको तो रख लेती है और जो अच्छी चीज होती है, उसको छोड़ देती है। और दूसरा होता है — छाज! वह क्या करता है। वह उल्टा करता है। जो खराब है, उसको फेंक देता है और जो अच्छा है, उसको रख लेता है। इन दोनों में आप कौन-से हैं ? अच्छा रखने वाले या बुरा रखने वाले ? सोचने की बात है। क्योंकि अगर आप गलत भेड़िये को खिला रहे हैं तो फिर गड़बड़ होगी। वह जीतेगा, वह गुर्रायेगा! यहां कितने लोग बैठे हैं, जिनको गुस्सा आता है ?
तो यहां दो प्रकार के लोग बैठे हैं। एक तो वे, जिनको गुस्सा आता है और वे मानते हैं कि उनको गुस्सा आता है। और दूसरे, जिनको गुस्सा आता है, पर वे मानते नहीं हैं कि उनको गुस्सा आता है। इसलिए मैंने भी अपना हाथ ऊपर कर दिया था। बात है, गुस्सा आता है और गुस्सा किसी को पसंद नहीं है। और गुस्से को कंट्रोल करने की बहुत कोशिश करते हैं लोग। पर चक्कर ये है कि जब गुस्सा आता है तो वह अनाउंस नहीं करता है कि ‘‘मैं आ रहा हूं!’’ सबसे बड़ी दिक्कत यही है गुस्से के बारे में कि जब वह आ जाता है, तब पता लगता है — आ गया! और जाता कब है ? जब उसकी मर्ज़ी आती है। अच्छे-अच्छों को हमने गुस्सा होते देखा है। अच्छे-अच्छों को हमने गुस्सा होते देखा है। लोग हमारे पास आते हैं कि ‘‘जी! हम गुस्से को कंट्रोल कैसे करें ? गुस्से को कंट्रोल कैसे करें ?’’
मैंने कहा कि — मैं कहता हूं लोगों से कि आप गुस्से को कंट्रोल क्यों करना चाहते हैं ? आप गुस्से को कंट्रोल करना चाहते हैं तो क्यों करना चाहते हैं ? भाई! गदहा भी गुस्सा करता है, बंदर भी गुस्सा करते हैं। मोर को भी गुस्सा आता है, शेर को भी गुस्सा आता है। सांप को भी गुस्सा आता है! तो भाई! तुम गुस्से को कंट्रोल करना चाहते हो तो क्यों करना चाहते हो ? और गुस्सा ही एक कंट्रोल की चीज है ?
इस जिंदगी पर भी कंट्रोल है या नहीं ? इस जिंदगी की गाड़ी, इस जिंदगी की गाड़ी में — इस जिंदगी की गाड़ी को कौन कंट्रोल कर रहा है ? तुम कर रहे हो या नहीं ?
लोग कहते हैं, ‘‘भगवान हमारी गाड़ी चलाता है।’’
तो आप जाइए, अपने driving test पर जाइए और जब इंस्पेक्टर साथ बैठा हो, वह कहे कि ‘‘अच्छा! इधर ले जाओ, उधर ले जाओ!’’ कहो, ‘‘हम तो स्टेयरिंग को हाथ भी नहीं लगाएंगे जी!’’
तो अगर आप यह जान लें तो आपकी आस्था में कोई अंतर नहीं आयेगा। पर यह जिंदगी आपको मिली है — यह जिंदगी आपको मिली है और इसको क्या आप सचमुच में चला रहे हैं या नहीं ? तो कंट्रोल क्या है ? क्या आप उस तरफ भी बढ़ रहे हैं कि आपके जीवन के अंदर शांति हो ? क्या आप उस तरफ भी बढ़ रहे हैं कि आपके जीवन में जो आप — जिन लोगों को आप सचमुच में प्यारा समझते हैं — आपकी family! आपकी family! बात करेंगे शांति की — हम बात करते हैं — चलिए! आप अपनी family से चालू करिए! वहां से चालू करिये, जहां वो लोग हैं, जिनसे आपको स्नेह है, जिनसे आपको प्यार है! Those people who you love, start with that.
दुनिया भर के लिए टाइम है, परंतु अपनी family के लिए टाइम नहीं है — मैं लेट हो गया! मैं लेट हो गया, मैं लेट हो गया, मैं लेट हो गया, मैं लेट हो गया। मैं लेट हो गया। और काहे के लिए लेट हो गये ? क्या लेट हो गए ? ताकि और लोगों के साथ बैठ के गपशप मार सकें। अगर आपके पास सिर्फ गपशप के लिए टाइम है, अगर आपकी priority में — आपके जीवन की priority में गपशप है सिर्फ, तो यह स्पष्ट है कि आप वहां कार के steering wheel के पीछे बैठे तो जरूर हैं, पर गाड़ी कोई चला नहीं रहा है। और यह गाड़ी किसी चीज के साथ जरूर जाकर टकरायेगी और उसको कहते हैं — गुस्सा आना! क्योंकि कोई चला नहीं रहा है।
यहां से चालू करिए अपनी कहानी! चाहे आप चाहें, न चाहें, आप अपनी कहानी हर रोज लिख रहे हैं। You are writing your book every single day, what do you want to write in that book? What do you want to say in that book? How beautiful it was, to be alive today? Would you say that? Shouldn't you think every single day that you are alive, that's what you go in your page, it was a beautiful day, thank you.
पर उसके लिए आँखें खोलना जरूरी है। उसके लिए समझना जरूरी है! उसके लिए कम से कम अब — आप चाहते हैं कि और आपका मार्गदर्शन करें, परंतु आप भी तो कुछ अपना मार्गदर्शन कीजिए कि ‘‘मैं अपने जीवन के अंदर ये चाहता हूं और ये मेरे जीवन के अंदर संभव है!’’ तो मैं यह कहना चाहता था आपसे। शांति आपके अंदर है। इसको हासिल करने के लिए क्या करना पड़ेगा ? जो रोड़े हैं, जो दुविधाएं हैं, जो obstacles हैं, इनको निकाल के फेंकना पड़ेगा। इनको निकाल के फेंकना पड़ेगा।