प्रेम रावत:
नमस्कार! आशा करता हूं आप सब ठीक होंगे। और हर एक दिन धीरे-धीरे गुजरता रहा है। और मैं, वाकई यह सोच रहा था कि “मैं आपको ऐसा क्या बताऊं, आपसे ऐसा क्या कहूं बस सोच रहा हूं, जिससे आपका यह वक्त, आपके लिए और भी आसान हो जाए और आप इसका अच्छे से सदुपयोग कर सकें।” क्योंकि सच्चाई जो भी हो, यह बात तो तय है कि कोरोना वायरस के कारण यह वक्त जो अभी हमारे पास है, उस पर कोई रिवाइंड बटन नहीं है। यह वक्त है — और यह उतना ही कीमती है, जितना किसी और काम के लिए होता है। यह उतना ही कीमती है जबकि हमने जन्म लिया था; यह वक्त उतना ही कीमती है जितना एक दशक पहले था, एक साल पहले था। और अब भी, इन सबके बीच ऐसे माहौल में भी यह वक्त बहुत ही कीमती है।
तो मेरा यह सोचना है “हम इस समय का अच्छे से इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं ?” — ऐसा कुछ पूरा करने के लिए नहीं जो बाहर है और ना ही किसी मकसद को पूरा करने के लिए, लेकिन खुद के लिए जो हम महसूस करते हैं कि हम सब जो इस स्थिति में हैं हम सोचते हैं कि हम बहुत अच्छे से इसका फायदा उठा लें। यह सिर्फ समय ही नहीं है जिसमें हम बहुत कुछ सोच सकते हैं, कुछ अवधारणा के बारे में, (कुछ हमारी इच्छा के खिलाफ) लॉकडाउन में और भी बहुत कुछ है जो कट रहा है। तो कोरोना वायरस में, लॉकडाउन का एक तरफा परिणाम दुनिया भर में प्रकृति के लिए बहुत ही लाजवाब रहा है। अमेरिका के बड़े-बड़े पार्कों में और सुंदर बागानों में जैसे यहां के योसेमिट और कई तरह के जीव-जंतु वहां पर नजर आ रहे हैं — क्योंकि वहां पर अब लोगों की भीड़ नहीं है — और उन्हें अपने लिए खुली जगह मिल गई है।
किसी दिन मैं एक बहुत ही अच्छी डॉक्यूमेंट्री देख रहा था उसके एक हिस्से में मैंने देखा दिल्ली कितनी खूबसूरत है। और अचानक, मुझे याद आया कि देहरादून में, आसमान इतना नीला और प्यारा दिखता है जितना आमतौर पर हम वैसा आसमान नहीं देख पाते हैं। लेकिन इस कोरोनावायरस के कारण, दिल्ली में भी आजकल आप नीले, खुले आसमान को देख सकते हैं, साफ आसमान को। यह वरदान है सभी जानवरों के लिए। बल्कि यह वरदान है उन सभी चीजों के लिए जो हमारे लिए जरूरी हैं, यह खूबसूरत दिन जिसमें धूप खिली हो, गर्माहट देती हुई। कभी-कभी मैं — मुझे आप स्वेटर पहने हुए देखेंगे और आप जानते हैं “मैं कहां हूं ?” आज मैं यहां कैलिफोर्निया में हूं और साउथ कैलिफोर्निया में बहुत ठंड होती है। वहां का तापमान कभी-कभी इतना गिर जाता है जैसे 65, 66 डिग्री तक, बहुत ही ज्यादा ठंड हो जाती है — और हवा चलती है तो ठंड और भी बढ़ जाती है।
खैर छोड़िए, मुद्दे की बात यह है कि यह समय हमारे लिए वरदान है — बहुत बड़ा वरदान। किसी ने मुझे कुछ तस्वीरें भेजीं फ्रांस से, पेरिस से जहां पर नदी बहुत खूबसूरत दिख रही है क्योंकि उसमें एक भी नाव नहीं है। नदी खामोश है, बिल्कुल खामोश — यहां तक कि बादल का प्रतिबिंब नदी में देख सकते हैं। वैसे जिसने मुझे यह पिक्चर भेजी है वह एक प्रोफेशनल फोटोग्राफर है और यह बहुत खूबसूरत है। बहुत अनोखी है।
तो मेरा पॉइंट यह है कि मैं यह कहना चाह रहा हूं कि हम सब मनुष्य होने के नाते जो करना है वह करते हैं, जो भी हमारी दिनचर्या है “रोज़मर्रा के काम, रोज़मर्रा की चीजें” (मैं यहां शौचालय जाने की बात नहीं कर रहा हूं) लेकिन जैसे आप हर सुबह अपने काम पर जाते हैं, गाड़ी लेते हैं, ऑफिस जाते हैं, वहां पहुंचकर गाड़ी पार्क करते हैं। फिर शाम को ऑफिस से वापस घर आते हैं। बस यही हर दिन और फिर कभी-कभी “खाने के लिए कहीं बाहर जाओ, इस काम के लिए बाहर जाओ, तो कभी उस काम के लिए।” ये सब वो काम है जो हमें करने ही हैं और जब इन चीजों से छुट्टी मिलती है तो सबकुछ शांत हो जाता है; सबकुछ ठहर-सा जाता है।
इसका यह परिणाम होता है (और शायद हमें भी पता नहीं चलता) कि हर दिन हम जो काम करते हैं, जो हमारे लिए जरूरी हैं उन सबका प्रकृति पर कितना गहरा असर होता है। बहुत गहरा असर होता है। तो अगर आप इस प्रकृति को देखें, एक इकोसिस्टम की तरह — और खुद को एक नए रूप में देखें, जिसने अभी-अभी प्रवेश किया हो, जो बर्बाद कर रहा है, सबकुछ बर्बाद कर रहा है — तो आपको आज की परिस्थिति का अच्छी तरह से अंदाजा हो जाएगा कि क्या बर्बाद हुआ है। क्योंकि कुछ बर्बादी तो जरूर हो रही है। तो मैं जिस बारे में बात कर रहा हूं उसका इससे क्या ताल्लुक है ? तो मैं यह बता दूं कि क्या ताल्लुक है — वो यह कि हमारी जिंदगी में, हमारी बेहतरीन प्रकृति भी है जो शामिल होना चाहती है, जो स्वांस लेना चाहती है।
हम जो भी अपनी जिंदगी में करते हैं या जो हम तय करते हैं कि हमें करना जरूरी है, छोटी-छोटी चीजें, रोज़मर्रा की चीजें जो हमें लगता है कि हमारे लिए बहुत ही जरूरी हैं। वह कुछ और नहीं बल्कि एक शोर है… जो किसी को पसंद नहीं आता; तब एक बहुत ही खूबसूरत चीज होती है; कुछ खूबसूरत चीजें सामने आती हैं; बहुत सारी खूबसूरत चीजें उभरकर सामने आती हैं; चिड़िया चहचहाने लगती हैं; वैसे जीव जो स्वभाव से बहुत शर्मीले होते हैं; वो बाहर दिखाई देने लगते हैं। और आपको माहौल में एक स्फूर्ति नजर आने लगती है; और इसे ही कहते हैं खूबसूरती!
जब मैंने दिल्ली की उन तस्वीरों को देखा तो मैं हैरान रह गया। क्योंकि मैंने कई सालों से दिल्ली को कभी इतना सुंदर नहीं देखा। एक पायलट होने के नाते, मैंने भारत में जहाज चलाया है और हम लोगों को बाहर बहुत ही बेकार दिखता है, कुछ भी ठीक से नहीं दिखता, चाहे आप प्लेन से आ रहे हों या हेलीकॉप्टर से आ रहे हों। जबतक हम दिल्ली से बाहर नहीं निकल जाते, मतलब थोड़ा पूर्व की तरफ यानि दिल्ली से बाहर तब जाकर आसमान थोड़ा साफ दिखता है। लेकिन अभी इन दिनों दिल्ली की खूबसूरती देखकर लगता है कि "वाह यह वाकई बहुत खूबसूरत है। शायद हम ही कुछ ऐसा कर रहे हैं जिससे इसकी खूबसूरती कम होती जा रही है।" अगर देखा जाए तो बहुत नुकसान हो रहा है, बर्बादी हो रही है। दिल्ली में इतना प्रदूषण है आप जानते हैं, दिल्ली में कितना प्रदूषण है, इस वजह से कम उम्र में लोगों की मौत हो रही है और बच्चों की सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है।
अगर हम इन सब चीजों पर ध्यान दें, यह सब जो हम अपने रोज़मर्रा की जिंदगी में करते हैं, बिना सोचे समझे, बिना यह सोचे कि हमारी जिंदगी में इसका क्या असर होगा… और अगर हम यह सब छोड़ दें — “और हम यह करेंगे; ऐसा करेंगे, हमें यह सब ख्याल आएंगे, तो हमें थोड़ी-सी राहत मिलेगी।” लेकिन इसका परिणाम क्या है ? खुद को नहीं पहचानने का क्या परिणाम हो सकता है ? अपने आपको न जानने का क्या परिणाम हो सकता है ? यह तो अपने अस्तित्व को मैला करने के जैसा है, उसकी पवित्रता को मैला करने जैसा है और ये सारी चीजें हमें बहुत उलझा देती हैं, परेशान कर देती हैं।
क्योंकि अभी इस कोरोना वायरस के कारण यह “करो या मरो” जैसे हालात नहीं हैं; यह कुछ ऐसा है "नहीं आप ऐसा नहीं कर सकते — आपको अलगाव में ही रहना है, नहीं तो आप बीमार हो सकते हैं।" और वो सारे सवाल "ओह आपके काम का क्या होगा ? काम पर नहीं जा रहे क्या;” और आप कहते हैं "अरे नहीं, नहीं, नहीं, नहीं” आप अपने काम पर ना जाएं। आराम से रहें। काम से कहीं ज्यादा जरूरी है आपके लिए जिंदा रहना।
मैं आपको क्या सलाह दे सकता हूं ? मैं यह सलाह दे सकता हूं कि आपको स्वस्थ रहना जरूरी है — सिर्फ शरीर से ही नहीं, बल्कि मन से भी। अपने अंदर से इन सब चीजों का असर खुद पर नहीं होने देना है। जो हम खुद ही उत्पन्न कर रहे हैं। लेकिन अपनी खुशी का एहसास यह होना जरूरी है, उसे पहचानना जरूरी है, खुशी को जानना जरूरी है, खुशी को जानना जरूरी है। तो हम कभी-कभी सोचते हैं "यह ऐसा क्यों है; यह वैसा क्यों है; क्यों, क्यों, क्यों, मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है; मेरे साथ वैसा क्यों हो रहा है ?" लेकिन हमने कभी यह नहीं देखा, यह नहीं सोचा कि हमने खुद के लिए अपने वातावरण को कितना दूषित कर दिया है — अपने अंदर हमने खुद की कई धारणाएं बनाकर खुद को भी दूषित कर दिया है।
धारणा कुछ भी हो सकती है, छोटी से छोटी भी। हमारे विचार भी छोटे-छोटे हो सकते हैं उस कंबोडिया की लड़की की तरह (यह बहुत साल पहले की बात है; अब तो वह काफी बड़ी हो गई होगी) उस वक्त वह लड़की स्कूल जाया करती थी —और एक दिन वह बहुत दुखी थी, क्योंकि उसका फोन खो गया था।
मैं उस प्रदूषण की बात कर रहा हूं। यह होता है खुद को दूषित करना। उसे इतनी-सी बात पर हताश नहीं होना चाहिए था। उसे इस बात को भूलकर आगे बढ़ जाना चाहिए था। लेकिन यह उसके लिए जरूरी था, उसके लिए यह बहुत ही जरूरी था, क्योंकि वह इससे अपने दोस्तों से बात कर सकती थी। यह सब उसमें आखिर आया कहां से ? जाहिर-सी बात है, वह जन्म से ही उसके साथ नहीं था। वह अपने दोस्तों के बारे में उतना नहीं सोचती थी; वह अपने उन दोस्तों के बारे में ज्यादा जानती भी नहीं थी, लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं हम अपने मन में ऐसे विचार आने देते हैं जिसकी वजह से हमारा मन भी दूषित हो जाता है, लेकिन हमें इस बात का पता भी नहीं चल पाता क्योंकि हर दिन हम इस बात को साबित करते रहते हैं “हमें इन चीजों की जरूरत है।” हर दिन हम यह साबित करते हैं कि “ये चीजें हमारे लिए कैसे जरूरी हैं” — जबकि हमारे लिए ज्यादा जरूरी यह है कि हमें इस चीज की समझ हो, हमें एक इंसान होने के नाते पवित्र मन रखना चाहिए।
हम समाज में रहते हैं — और मेरा विश्वास कीजिए मैं अपने समाज को नीचा दिखाने की कोशिश नहीं कर रहा हूं; मैं जानता हूं हमारे समाज में एक से एक अच्छी चीजें भी की गई हैं। कितनी सारी बीमारियों का इलाज ढूंढा गया है, कितनी तकनीकी वृद्धि हुई है, कितनी सारी चीजें की गई हैं। मेरे कहने का मतलब है अगर हम एक रेगिस्तान में 100 डिग्री गर्मी में भी हों, तब भी हम अंदर से ठंडे रह सकते हैं। मतलब, इन सब चीजों की दाद देता हूं। लेकिन इन सबके साथ हमने और भी ऐसी चीजों को अपने समाज में आने दिया है जो हमें नुकसान पहुंचा रहे हैं, देखा जाए तो हमें चोट पहुंचा रहे हैं और हमने इस बात पर कभी ध्यान नहीं दिया “ये चीजें हमें कैसे नुकसान पहुंचा रही हैं; इन चीजों का हम पर क्या असर पड़ रहा है ?”
एक समाज के नाते हां, हमने काफी कुछ हासिल किया है, लेकिन हमारे यहां जेल में कई लोग भरे पड़े हैं — और ये लोग किसी दूसरे ग्रह से नहीं आए हैं, मंगल ग्रह या चांद से तो नहीं आए हैं यह वो लोग हैं जो हमारे ही समाज से हैं। तो यह क्या है फिर ?
सुलैमान के बारे में एक कहानी है। एक बार एक राजा के सामने एक चोर को पेश किया गया और राजा ने उससे पूछा "उसका जुर्म क्या है ?" तो उसने कहा "यह ब्रेड चुरा रहा था।" राजा ने चोर से कहा कि "तुम ब्रेड क्यों चुरा रहे थे ?" तो चोर ने कहा कि "मेरे पास खाने के लिए कुछ नहीं था। मैं बहुत भूखा था और जब मुझे यह ब्रेड दिखा तो मैं उसे लेने के लिए खुद को रोक नहीं पाया।"
तो राजा ने कहा "तुमने जो किया वह बहुत ही गलत था। तुम्हें इसकी सजा मिलेगी। तुम्हें 100 कोड़े मारे जाएंगे, 100 कोड़े।" यह सुनकर चोर रोने लगा। तब सुलैमान ने कहा "मत रो; कोई बात नहीं।” ये कोड़े तुम्हें नहीं मारे जा रहे। ये कोड़े उन लोगों को मारे जा रहे हैं, जिन्होंने तुम्हें भूखा रहने पर मजबूर किया।"
इसलिए सुलैमान को एक चतुर राजा माना जाता था। हमारी इस छोटी-सी दुनिया में जो कुछ भी होता है, हम उसका हिस्सा होते हैं। और कुछ ही समय में… आप यह जान जाते हैं कि एक आदमी की भी, सिर्फ एक आदमी की भी क्या अहमियत है हमारी जिंदगी में। अगर अलगाव में एक आदमी, मान लीजिए अगर आपके परिवार में 50 लोग हैं और एक-एक सदस्य अलगाव में है और अगर उनमें से कोई भी इस अलगाव को नहीं मानता है और बाहर निकल जाता है — और अब वह संक्रमित हो जाता है — तो हो सकता है आप नहीं जानते वह संक्रमित हो सकता है। सब लोग उस एक आदमी से डरकर रहेंगे, बचकर रहेंगे। “यही है एक की शक्ति।”
मैंने इस बात को एक शक्ति के बारे में लोगों को बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन मुझे लगता है मैं कामयाब नहीं हो पाया — लेकिन इस कोरोना वायरस ने मेरे लिए यह कर दिया। एक की शक्ति अब सबको साफ-साफ समझ में आने लगी है। ऐसा ही होता है क्या हमें जागरूक होने पर इस तरह की ट्रेजडी की जरूरत पड़ेगी ? ऐसा नहीं होना चाहिए — हमें जागरूक होने के लिए ट्रेजडी की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए; इस ट्रेजडी से हमें सीख मिलनी चाहिए; इस ट्रेजडी से हमें यह कहना चाहिए कि "हां मैं यह जिम्मेदारी लेता हूं; मैं जिम्मेदार हूं! और मैं कुछ ना कुछ कर सकता हूं।" हां, कर सकते हैं! हां, आप कुछ ना कुछ जरूर कर सकते हैं।
मेरा मतलब, अब यह कोरोना वायरस को ही ले लीजिए यह एक तरफ का है। एक बार मैं जब लखनऊ में था — बहुत पहले; मैं उस समय काफी छोटा ही था। मैं एक महल देखने गया था और वह महल लखनऊ के नवाब का था। और मुझे किसी ने एक कहानी सुनाई थी, जो सच थी। तो उस महल में, निज़ाम नृत्य देख रहे थे अपने महल में — मधुर संगीत चल रहा था और वह नर्तकियों को नाचता हुआ देख रहे थे… तभी उसके पहरेदार अंदर आए और कहा कि "निज़ाम आपको यहां से निकलना चाहिए क्योंकि हमें अंग्रेजों की सेना आती हुई दिखाई दे रही है; यहां से धूल उड़ती हुई नजर आ रही है; खतरा मंडरा रहा है।" तो उसने कहा "नहीं चिंता मत करो; कोई बात नहीं।"
थोड़ी देर बाद उन्होंने फिर से निज़ाम से कहा "यहां से निकलने में ही आपकी भलाई है। अंग्रेजों की सेना सर तक आ गई है, दरवाजे तक आ गई है।" और वह कहता है "अहह! तुम लोग परेशान मत हो; कोई खतरा नहीं है। तुम लोग जानते ही हो वह खतरा टल जाएगा; सबकुछ ठीक हो जाएगा।" थोड़ी देर बाद उन्होंने फिर से निज़ाम से कहा "यहां से अब आपको निकलना ही चाहिए। अंग्रेजों की सेना महल के मुख्य द्वार तक आ गई है।" निज़ाम कहता है "तुम लोग जाओ!" कुछ देर बाद पहरेदार फिर से आए और निज़ाम से कहा "वो लोग आपके कमरे में प्रवेश करने वाले हैं!" तब जाकर निज़ाम ने अपने नौकर को ढूंढा। उसे आवाज लगाई और कहा "मेरे जूते लेकर आओ!"
लेकिन नौकर तो था ही नहीं — वह तो कब का भाग चुका था। तो निज़ाम बाहर भागा। अंग्रेजों ने उसे पकड़ लिया और बंदी बना लिया। निज़ाम ने अंग्रेजों से कहा "अगर मैंने सिर्फ जूते पहने होते तो तुम लोग मुझे कभी पकड़ नहीं पाते।" कहा जाता है कि यह एक सच्ची कहानी है। वह निज़ाम वाकई इतना जिद्दी था, इतना ही जिद्दी था, इतना ही जिद्दी था।
वैसे ही यह चीज, यह कोरोना वायरस पहले से ही अपने आने की दस्तक दे चुका था। लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। यह चीन में शुरू हुआ; किसी ने ध्यान नहीं दिया। पता है पहली बार ऐसा नहीं हुआ है; पहले सार्स हुआ; फिर मर्स भी हुई (जो ऊंट में हुई थी); स्वाइन फ़्लू हुआ; फिर बर्ड फ़्लू हुआ। तो हम सबको पहले से ही पता था “कुछ तो इस तरह का होने वाला है।” इबोला का प्रकोप, मेरा मतलब इन सबसे हमें अंदेशा हो जाना चाहिए था कि कुछ ना कुछ मुसीबत आने वाली है। हमें कई बार संकेत मिला, चेतावनी मिली कि इस तरह की विपदा हम पर आने वाली है। लेकिन हमने अपनी जिद की वजह से क्या किया ? कुछ नहीं। हमने नजरअंदाज कर दिया। हमने इन चीजों पर ध्यान ही नहीं दिया। तो हमने किस चीज पर ध्यान दिया ? हमें हर दिन कुछ पैसे कमाने के लिए बाहर निकलना पड़ा। बिल्कुल भी नहीं! आपको क्या लगता है हम जो इतने पैसे जमा कर रहे हैं वह अपने साथ ऊपर ले जाने वाले हैं ? कोई भी ऐसा नहीं कर सकता, जिसका धन दौलत उसके साथ ऊपर जाता है।
परिणाम ? इसका परिणाम यह है कि हम कितने लोगों को खो रहे हैं। यह कितने दुख की बात है, बिल्कुल चकित कर देने वाली बात है कि इतने सारे लोग व्यर्थ में अपनी जान गवां रहे हैं। इन लोगों को मरने से बचाया जा सकता है। लेकिन यह हमारी जिद है जिसमें हमें आने वाली मुसीबत को देखने से रोक दिया। यह वही जिद है जो आपको बाहर से आने वाली मुसीबत को देखने नहीं दे रही और यह वही अहंकार है जो आपको अपने अंदर देखने से भी रोक रहा है। या आप 100 साल जीने वाले हैं तब भी यह अहंकार आपके पास जो 36,500 दिन है उसे देखने नहीं दे रहा। वह आपको इन सब चीजों का आभास करने से रोक रहा है।
यह अहंकार आपको यह देखने से रोक रहा है कि आप कितने सुरक्षित हैं; कमजोर हैं। आप वैसे नहीं हैं, यह आप जानते हैं, आप तो ठोस लोहे के बने हैं। फिर भी आप एक इंसान हैं और जबतक आप इस पृथ्वी पर हैं आप एक इंसान के रूप में ही हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके हाथ में क्या है, आपके हाथ में मशीनगन है या आपके हाथ में तीर-धनुष है, कुछ भी है — इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आप एक इंसान हैं और आप में जरा-सा भी अहंकार या जिद नहीं होनी चाहिए जो आपको आपकी इंसानियत, आपका दोष, आप खुद जो हैं, आप जैसे हैं, उसे देखने से आपको रोकता हो।
आप समझ रहे हैं, यह सोचने वाली बात है। ऐसा नहीं है कि आपको बाहर जाकर कोई बटन दबाना है। आप जानते हैं कि ऐसा कोई बटन बाहर सड़क पर नहीं है जिसे आप जाकर दबायें। नहीं, यह सिर्फ एक जागरूकता है; इसी को जागरूकता कहते हैं — यह सब छोटी-छोटी चीजें हैं जो हमारे अंदर हो रही हैं; जैसे एक पहेली सुलझने लगती है। सामने एक तस्वीर है और यह तस्वीर बहुत सारी पहेलियों के टुकड़ों में बंटी रहती है। आप इसे देखकर यह नहीं बता सकते कि यह तस्वीर किसकी है, इसके टुकड़ों को देखकर भी नहीं। आप इन टुकड़ों को जोड़कर पहेली को सुलझाने की कोशिश करते हैं, जिनमें कुछ टुकड़े जुड़ तो जाते हैं, लेकिन कुछ जुड़ नहीं पाते। जब इस तस्वीर में सारी पहेलियों के टुकड़े एक साथ रखते हैं, (बिना जोर-जबर्दस्ती के) तब एक तस्वीर बनती है। आप यह तस्वीर देखेंगे और शायद बहुत ही आनंदित होंगें।
यह छोटी-छोटी जागरूकता हममें होनी चाहिए जिससे हमारा जीवन परिपूर्ण होगा। मैं यह नहीं कहना चाह रहा हूं। मैं यहां दुख और दर्द के बारे में बात नहीं कर रहा हूं; मैं यहां सिर्फ अंदरूनी खुशी और परिपूर्णता की बात कर रहा हूं। एक इंसान होने के नाते वह हर चीज जिसे हम हासिल करना चाहते हैं, उस हर ख़्वाहिश को हम हमेशा पूरा नहीं कर सकते। अगर हम अपना इतिहास देखें तो हमें हमेशा अपने अहंकार और जिद की वजह से हार माननी पड़ी है। हमारे साथ सबकुछ इतना अच्छा हो रहा था — और आखिरकार अंत में क्या हुआ, यह महामारी मुसीबत बनकर आ गई। क्या हम यह चाहते थे ? क्या हम इतिहास के पन्नों में इस तरह से जाने जाएंगे ? या हम इस तरह जाने जाएंगे : “यह इंसान कितने अद्भुत थे। इन्होंने एकजुट होकर सबकुछ किया; इन सभी लोगों ने एक अच्छी तैयारी की थी।” जब हमारे पास सबकुछ होता है — अच्छे दिन होते हैं, तब वक्त होता है कि अपने बुरे समय के लिए, अकाल के लिए, सूखे के लिए, किसी भी आने वाली मुसीबत के लिए आप पूरी तरह से अपनी तैयारी करके रखें। लेकिन जब पूरी मानवता लालच में डूबी हुई हो और आने वाले मुसीबत को नहीं देख पा रही, तब दुर्भाग्य से हमें भी यही कहना होगा, जो निज़ाम ने कहा था "मेरे पास अगर जूते होते तो तुम मुझे कभी नहीं पकड़ पाते।" मेरा मतलब मुझे वह कहानी अभी भी याद है। मैंने पूछा “क्या वो सच में था ?” हाँ, ऐसे होते थे लोग; जो वाकई जिद्दी और अहंकारी होते थे।
इस अहंकार से हमें कुछ नहीं मिला। यह अहंकार — यह तुच्छ-सी चीज, आंखों से न दिखने वाला यह वायरस हमारी जिंदगी में अपनी नाक अड़ा रहा है और हमसे कह रहा है "अब बताओ तुम अब क्या करोगे ?"
हम इसकी दया पर पल रहे हैं, डॉक्टर्स की दया पर, ये डॉक्टर्स मेहनत कर रहे हैं। मेडिकल कोर, मेडिकल स्टाफ कड़ी मेहनत कर रहे हैं और हमें उन सभी संसाधनों की मदद से जिस पर हमें हमेशा से गर्व है। तबतक जबतक सब ठीक न हो जाए इन सब पर हमें गर्व है। तो क्या अंततः हमने इतिहास के लिए यह रचा है ? अगर हमने इतिहास के लिए यह सोच रखा है तो मैं आपको बता दूं कि एक और संभावना है। और वह संभावना परिपूर्ण होने के बारे में है; सफल होने के बारे में है। और ये कहे "नहीं उन लोगों ने कुछ सीखा। वो लोग इसके लिए खड़े हुए, एक अच्छी चीज के लिए। वो लोग खुद को समझ पाए। उन लोगों ने अपने जीवन को जागरूक होकर जीना सीखा और उन्होंने दिल से सबको धन्यवाद दिया।" हो सकता है कि यह मुमकिन हो और ऐसा होना मुमकिन है।
स्वस्थ रहें; सुरक्षित रहें; बने रहें। आपसे बाद में बात करता हूं। धन्यवाद!
प्रेम रावत:
सभी को नमस्कार! मुझे उम्मीद है कि आप सभी लोग अच्छे होंगे।
आज मुझे लगा कि हमें कुछ अलग करना चाहिए। आज हम जो करने की कोशिश करने जा रहे हैं वह है मैं आपको इस बारे में बताऊं कि इस कोरोना वायरस की शुरुआत के बाद से टीपीआरएफ क्या कर रहा है।
मदद का एक बहुत बड़ा हिस्सा बाहर जा रहा है। जिसकी थोड़ी-सी झलक है, जिसे मैं चलाना चाहता हूं, इससे आपको पता चलेगा कि टीपीआरएफ क्या कर रहा है। मेरा मतलब है कि निश्चित रूप से हम कई अलग-अलग संगठनों के साथ काम कर रहे हैं, जो इस कोरोना वायरस से लड़ने में सबसे आगे है। कभी-कभी सबकुछ राजनीतिक हो जाता है — और हम नाटक, आघात, समाचार, सबकुछ में फंस जाते हैं। और सिर्फ उन बुनियादी मनुष्यों की दृष्टि खोना बहुत आसान है जो अंतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
टीपीआरएफ हमेशा निश्चित रूप से एक बहुत ही विशेष स्थान रखता है। क्योंकि हम प्रचार की कोशिश नहीं करते हैं; हम देखने की कोशिश नहीं करते हैं — मेरा मतलब है, निश्चित रूप से प्रचार अच्छा है और लोगों के लिए यह जानना अच्छा है कि ऐसा संगठन मौजूद है। लेकिन हम जिन चीजों को करने की कोशिश करते हैं उनमें से एक है, जहां लोग वास्तव में पहुंचना चाहते हैं वास्तव में विभिन्न संगठनों द्वारा जो भी भागीदारी की जाती है उससे हमें मदद मिलती है। मेरा मतलब है, जब आप इसे देखते हैं तो वहां बहुत सारे दान हैं, बहुत सारे संगठन हैं।
लेकिन बहुत बार मदद करने के लिए आने वाला नहीं आता है, क्योंकि बताने में या सूचित करने में कहीं कुछ गड़बड़ होती है। टीपीआरएफ के साथ, मैंने विशेष रूप से इस बात को बार-बार बनाया है कि हमें वास्तव में यह सुनिश्चित करना है कि हमारे जो भी प्रयास हैं वह वास्तव में अच्छी तरह से निष्पादित हों — और लोग दिन के अंत में, अंत तक प्राप्त करते हैं हमने जिन्हें मदद करने के लिए निर्धारित किया है। तो यहाँ प्रस्तुत है। “द प्रेम रावत फाउंडेशन जो गरिमा, शांति और समृद्धि को आगे बढ़ाता है।”
“मैं संपर्क में हूं। टीपीआरएफ सभी गतिविधियों पर नवीनतम अपडेट के साथ सोशल मीडिया पोस्ट, वेबसाइट लेख और ईमेल प्रदान कर रहा है और लोग कैसे भाग ले सकते हैं।”
“टीपीआरएफ नए दर्शकों के लिए ‘लॉकडाउन’ वीडियो पेश कर रहा है, जो अब तक 2.3 मिलियन से अधिक लोगों तक पहुंच गया है।” यहां कुछ लोगों के कमेंट्स हैं :
"आपको अपने प्यार और समर्थन और दैनिक संदेशों के लिए धन्यवाद! मैं इन प्रसारणों से बहुत खुश हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद! एक और बात इस कोशिश के समय में हमें अपनी बुद्धिमत्ता, स्पष्टता और प्रेम दिखाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!" इसलिए टीपीआरएफ यह सुनिश्चित कर रहा है कि यह संदेश लोगों तक पहुंच रहा है।
"मानवीय सहायता — टीपीआरएफ कोरोना वायरस से ग्रस्त क्षेत्रों में देखभाल, चिकित्सा आपूर्ति और भोजन प्रदान करने के लिए 200,000 डॉलर से अधिक का प्रारंभिक अनुदान दे रहा है। 100,000 डॉलर दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस, स्पेन, मैक्सिको, यू.एस और विभिन्न अन्य देशों में लोगों की मदद करने के लिए डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स और इंटरनेशनल मेडिकल कोर जा रहे हैं।”
“टीम्स टीपीआरएफ का समर्थन हमारी मेडिकल टीमों को कोरोना वायरस महामारी और उसके परिणामों के लिए एक वैश्विक प्रतिक्रिया लॉन्च करने में मदद करेगा।” यह एक वाक्य है — "डेवलपमेंट थॉमस कुरमन विकास निर्देशक, बॉर्डर के बिना डॉक्टर्स; यूएसए डिवीज़न।" “देखभाल और आपूर्ति के साथ उत्तरी इटली में लोगों की मदद करने के लिए सीईएसबीआई के लिए 50,000 डॉलर।” और यह जिम्मेदारियों में से एक है।” यह मुझे प्राप्त हुआ एक लम्बा पत्र है, लेकिन यह पत्र का एक छोटा-सा उद्धरण है।
"सीईएसबीआई में अपने उधार दान के लिए आप सभी की ओर से धन्यवाद! इसने हमें इस कठिन परिस्थिति में आगे बढ़ने की ताकत दी है। मैं टीपीआरएफ द्वारा किए गए उद्देश्यों के लिए आपको बधाई देना चाहता हूं — रॉबर्टो विग्नोला, सीईएसबीआई, डिप्टी सीईओ।" और हम विशेष रूप से इटली की मदद करना चाहते थे क्योंकि इटली इस कोरोना वायरस के साथ बहुत मुश्किल से लड़ रहा है “स्ट्रीट पीस एंड रेस्पेक्ट के लिए 5,000 डॉलर संगठन के पूर्व सदस्यों का समूह जो पीस एजुकेशन प्रोग्राम से प्रेरित थे, जो अल्पाका, इक्वाडोर में जरूरतमंद बुजुर्ग पड़ोसियों के लिए भोजन लाकर अपने समुदाय में सकारात्मक योगदान देने के लिए प्रेरित हुए।”
“यूएस में बेघर परिवारों को आश्रय और भोजन उपलब्ध कराने के लिए 25,000 डॉलर फैमिली प्रॉमिस में जा रहा है।” इस सामान की बहुत-सी अनदेखी हो जाती है और टीपीआरएफ में हम वास्तव में ऐसा नहीं करना चाहते हैं।
“25,000 डॉलर सबसे कमजोर समुदायों में हजारों अमेरिकी बच्चों, परिवारों और वरिष्ठों को ताजा पैकेट भोजन प्रदान करने के लिए सेंट्रल किचन में जा रहा है।”
“25,000 डॉलर का प्रारंभिक अनुदान फ़िजी में लोगों को चक्रवात हेरोल्ड से उबरने में मदद करने जा रहा है जिसने आश्रय, भोजन या चिकित्सा देखभाल के बिना लोगों को छोड़ दिया।” फ़िजी की बात है, वहां लोग बहुत गरीब हैं। एक द्वीप, एक मुख्य द्वीप है जहां सुवा और नाडी हैं। फिर बड़ा द्वीप है और बहुत सारे अन्य छोटे द्वीप हैं।
जब प्राकृतिक आपदाएं होती हैं (तो यह उनके लिए दोहरी मार है न केवल कोरोना वायरस का खतरा है बल्कि यह चक्रवात भी है।) यह वास्तव में बहुत कठिन है, बहुत ही कठिन है। यह रोज़मर्रा के आधार पर बहुत कठिन है। और फिर जब ऐसा कुछ होता है तो यह वास्तव में, वास्तव में और, और कठिन हो जाता है।
मैं कई बार फ़िजी गया हूं। यहां के लोग दिल के सुंदर हैं; लोग बहुत सरल हैं। यह वास्तव में फ़िजी में एक सामुदायिक प्रयास है। “गंभीर उष्णकटिबंधीय चक्रवात के रूप में इस क्षेत्र में पहले से ही रोगियों के इलाज और कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए मैं संघर्ष कर रहा था,” जैसा मैंने कहा।
“समर्थकों ने कोरोना वायरस राहत प्रयास के लिए 60,000 डॉलर से अधिक का दान दिया। टीपीआरएफ जरूरतमंद लोगों को सहायता देना जारी रखेगा। और आप tprf.org पर कोरोना वायरस राहत प्रयास में योगदान कर सकते हैं।” हर बिट मदद करता है हमेशा — हर बिट मदद करता है।
“2019 में, दुनिया भर में शांति शिक्षा कार्यक्रम में 36,000 से अधिक लोग शामिल हुए थे। 2020 में, इसमें 5,000 से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए।” — और यह पीस एजुकेशन प्रोग्राम की पहल है जो टीपीआरएफ प्रमुख है।
“अधिकांश शांति शिक्षा कार्यक्रम पाठ्यक्रम को वायरस फैलाने से बचने के लिए अस्थाई रूप से रोका गया है। अमेरिका, मेक्सिको, कोलंबिया, ब्राजील, इटली जर्मनी, ऑस्ट्रिया, फ़्रांस, स्विट्जरलैंड और अन्य देशों के लोग पाठ्यक्रम को सुविधाजनक बनाने के लिए शुरू कर रहे हैं।” — यह एक सामुदायिक प्रयास है जो टीपीआरएफ का समर्थन करता है और यह एक अद्भुत, बहुत ही अद्भुत चीज है।
निश्चित रूप से, हम शांति शिक्षा कार्यक्रम को वस्तुतः हमारे लिए भी देख रहे हैं, हम सभी जो उस विशेष कार्यक्रम से नहीं गुजर रहे हैं। मैं अभी भी उस पर काम करने और उसका एक हल का संस्करण बनाने की कोशिश कर रहा हूं।
ब्राजील में, जो फिर से है — आप जानते हैं मैं वहां था और जब आप ग्रामीण ब्राजील क्षेत्र में बाहर आते हैं तो लोग बहुत गरीब होते हैं और जहां भी लोग गरीब हैं वह वास्तव में बहुत मुश्किल में पड़ने जा रहे हैं। “ब्राजील में, तेरह राज्यों के लोग वस्तुतः भाग ले रहे हैं। साओ पौलो से, इन पाठ्यक्रमों के संचालन के केवल एक सप्ताह के बाद दिन-प्रतिदिन पचास प्रतिभागी हैं। प्रतिभागी अधिक लोगों को आमंत्रित करते रहते हैं। यह मेरे दिन का सबसे अच्छा हिस्सा है और मैं अपने बारे में बहुत कुछ सीख रहा हूं।” यह एक उद्धरण है।
यह एक उद्धरण है: "प्रेम रावत की बात सुनकर मुझे अपने जीवन को समझने में मदद मिली है। — पीसा प्रोफेसर। बोगोटा, कोलंबिया और पीसा, इटली में विश्वविद्यालयों ने कार्यक्रम को वस्तुतः पेश किया है।” यह एक बार फिर से अद्भुत प्रयास है।
“कोलंबिया में, शिक्षा सचिव ने शिक्षकों को आमंत्रित किया था जो प्रोग्राम ‘लॉकडाउन श्रृंखला’ में सेक्रेटरी मानवता के लिए व्यक्तिगत संदेश देखने के लिए कार्यक्रम को लागू कर रहे थे। उन्हें खुद की अच्छी देखभाल करने और घर पर रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”
मेरा मतलब है कि मैं कोलंबिया गया हूं। और देश अभी तक पूरी तरह से ड्रग्स और विद्रोह और इसके साथ है। और लोगों की शक्ति के बारे में बहुत कुछ कहा जा सकता है, इस प्रेरणा के बारे में कि लोगों को आगे बढ़ना है एक अंतर बनाने की कोशिश करना है। क्योंकि बहुत सारी चीजें बस आती हैं और जाती हैं — लेकिन लोग वहां हैं। और उन्हें एक साथ बांधने की जरूरत है; उन्हें सही मायने में बदलाव लाने के साथ आने की जरूरत है। इसलिए यह वास्तव में अद्भुत है कि लोग इसे एक कदम आगे ले जाएं।
“जेलों में प्रतिभागियों को अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए लिखित सामग्री प्राप्त हुई है। हम बहुत आभारी हैं और समर्थन को बहुत मददगार पाते हैं। — जेल निदेशक, कोलंबिया।”
फिर से आप जानते हैं इन सभी के बीच में जो कि हममें से अधिकांश के लिए एक उपद्रव है, कुछ लोग हैं जो पहले से ही फियास्को के माध्यम से चले गये हैं और उस फियास्को के बीच में है और वो बेघर हैं।
“एक बेघर आश्रय और दो ड्रग रीहबिलटैशन सेंटरों में जहां कार्यक्रम फल-फूल रहा है, कर्मचारी वस्तुतः कार्यक्रम को सुविधाजनक बनाना सीख रहे हैं।” मेरा मतलब है, यह उन लोगों के लिए दोहरी मार की तरह है जो बेघर हैं। उन्हें तंग स्थानों में निचोड़ना है — ताकि वे उस दूरी को, सामाजिक दूरी को बर्दाश्त नहीं कर सकते। मेरा मतलब है, सामाजिक दूरी क्या है ?
वे मुख्यधारा के समाज का हिस्सा नहीं हैं; वे बस वहां पर हैं, क्योंकि जो कुछ भी बुरी चीजें उनके साथ हुई हैं वे उस तरह से चले गए हैं। यह बहुत, बहुत ही सोचनीय है कि फाउंडेशन, टीपीआरएफ उनके बारे में कुछ कर रहा है और वे इसमें शामिल हैं कि — हर कोई शामिल है कि हर किसी को मदद मिलती है। इसलिए यह देखना वाकई अद्भुत है।
“टीपीआरएफ उन लोगों के लिए सहायता प्रदान कर रहा है जो कार्यक्रम की आभासी सुविधा सीखना चाहते हैं।” यदि आप इसके बारे में संपर्क करना चाहते हैं तो, अधिक जानने के लिए ईमेल करें pep@tprf.org और यह शांति शिक्षा कार्यक्रम का प्रयास है।
“लोगों के लिए नियमित भोजन के रूप में,” प्रयास का संबंध है, “सरकारी नियमों द्वारा सेवाओं को रोक दिया जाता है; टीपीआरएफ होम डिलीवरी सहित लोगों को सख्त जरूरत के भोजन और सहायता प्रदान करने के अन्य तरीकों की खोज कर रहा है। 2006 से तीन मिलियन से अधिक लोगों को भोजन पहुंचा रहा है।” यह वास्तव में अद्भुत है।
आश्चर्यजनक बात यह है कि भारत में एक (सिस्टर) संगठन है जो लोगों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए पुलिस के साथ और स्थानीय अधिकारियों के साथ काम कर रहा है, (जिसे 'प्रेम सागर फाउंडेशन' कहा जाता है।) और आरवीके उसमें मदद करता रहा है और यह सुनिश्चित करने के लिए बहुत, बहुत प्रभावी रहा है कि खाद्य वितरण होता है।
वास्तव में, मेरे पास उन संगठनों द्वारा एक प्रस्तुति है जो बिल्कुल एक जैसी है — सिवाय इसके कि एक हिंदी में है, इसलिए मुझे इसका अंग्रेजी में अनुवाद करना होगा। लेकिन यह सुनने में आश्चर्यजनक है कि 2006 से, अब तक तीन मिलियन से अधिक लोगों को भोजन दिया जा चुका है।
प्रेम रावत फाउंडेशन ने फिर से सभी को धन्यवाद दिया: “सभी टीपीआरएफ स्वयंसेवकों और समर्थकों के लिए जो सकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं।” क्योंकि यह हमारे समाज और इस दुनिया के लिए एक सकारात्मक प्रभाव है, जिसमें हम सभी रहते हैं। इसलिए यह देखना वास्तव में आश्चर्यजनक है कि टीपीआरएफ इस समय वास्तव में प्रसिद्ध हो रहा है।
तो धन्यवाद! अच्छी तरह रहिए; स्वस्थ रहिए; खुश रहिए। मैं आपसे बाद में बात करूंगा।
प्रेम रावत:
नमस्कार! आशा करता हूं आप सब ठीक से होंगे। अभी भी दुनिया में कितना कुछ हो रहा है — लेकिन आज मैं फिर आपके अस्तित्व के बारे में बात करना चाहूँगा — इस धरती की पहचान होने के नाते आपके, अपने, हमारे अस्तित्व की। और इसका क्या मतलब है ? मतलब है कि यह एक भेंट है — सच में क्योंकि हममें से कोई भी ऐसा नहीं है जो वेंडिंग मशीन में अपने पैसे डाल कर यह कहेगा कि "ठीक है मुझे यह चाहिए” और बटन दबाया और बस हम यहाँ हैं। यह कितना अच्छा है, क्योंकि सिर्फ प्रशंसा से ही आप यह समझ पाएंगे कि ये सब किस बारे में है। अब आप इसे “प्रबोधन” कहें या “सबको जानने वाला” कहें, आप इसे जो चाहे कहें जैसा लोग कहते हैं — लेकिन बस थोड़ी-सी प्रशंसा, अपने अस्तित्व के लिए सराहना, प्रशंसा जीवन के लिए, प्रशंसा स्पष्टता के लिए, प्रशंसा खुशी के लिए…
इस खूबसूरत रचना में शामिल होने के लिए प्रशंसा — लाखों, लाखों, लाखों और लाखों, लाखों वर्षों के प्रयोग, एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में तीसरी प्रजाति में चौथी प्रजाति में विकसित होने के लिए है। और उनमें से हर एक प्रजाति कुछ ना कुछ योगदान करती है कि एक इंसान के रूप में हम आज क्या हैं, तो इससे काफी कुछ संभव हुआ है। हाल ही में बहुत पहले की बात नहीं है उन्हें यह पता चला कि वहां शायद दूसरी प्रजातियां भी मौजूद थीं। बहुत हद तक — होमो इरेक्टस, लेकिन हमारे साथ रहने वाली अन्य प्रजातियां और यह मन को लुभा देने वाली बात है वहां से लेकर यहां तक, जहां हम आज हैं वह सारे बदलाव जो हजारों सालों से लाखों वर्षों से करोड़ों वर्षों से बदलता आ रहा है कुछ नया और बेहतर करने की तलाश में। और कुछ बेहतर करने के प्रयास में हम खुद को इस चौराहे पर खड़ा पाते हैं। और इस चौराहे पर काफी खतरा है। एक बात तो स्पष्ट है और वह यह कि हम बहुत ही नाजुक हैं और यह सब साफ-साफ दिख रहा है। जैसे ही यह लॉकडाउन शुरू होता है यहां नहीं जा सकते, वहां नहीं जा सकते, लोग परेशान हो रहे हैं। चारों ओर इतना कुछ हो रहा है और लोग डरे हुए हैं, पूरी मानवजाति यह सोचकर डरी हुई है कि "अब उनका क्या होने वाला है ?"
तो हमने अपने चारों तरफ जितना कुछ भी बनाया है वह सब हमें कोई गारंटी नहीं देती। अचानक आज हम साल 2020 में हैं। जब आप 2020 को एक “कल्पना” जैसा सोचते हैं, जो एक सुंदर कल्पना है, एक महान कल्पना। और 2020 के बीच में जब इतनी परेशानी, इतना डर, इतनी गलत जानकारी, इतना संदेह उठा — जिसने आपको सोचने पर मजबूर कर दिया कि "एक मिनट रुको; क्या हम एक प्रजाति, मानवजाति — असल कोई बदलाव ला पाए ? क्या हम किसी भी तरह विकसित हो पाए ?" और अब तक क्या हम विकसित नहीं हुए — सिर्फ अगर हम यह मान लें कि वास्तविकता कितनी साधारण और सुंदर है — यह सच कि हम हैं और हो सकता है बाहर हम एक सही दुनिया बनाने की कोशिश करें। (हो सकता है हम बना पायें या शायद नहीं भी।)
कोरोना वायरस के बारे में एक चीज यह तो है ही कि — किसी भी हाल में यह हमारे लिए वरदान तो नहीं है। लेकिन मैं आपको एक बात बता दूं इसने वातावरण की हवा को शुद्ध होने का अवसर दिया। इसने पूरे प्राकृतिक जीवन को एक विराम दिया। अचानक ही हर वो चीज, जो हमारे वातावरण को मैला कर रही थी, गाड़ियों से खचाखच भरी सड़कों पर धुआं, प्रदूषण पैदा करने वाले कारखाने, दूषित करने वाली हर वो चीज सब अचानक थम गयी एक सही दुनिया की खोज में। हमने असल में अविश्वसनीय रूप से एक अपूर्व दुनिया का निर्माण कर दिया। क्या हम कभी भी इस बात को मानेंगे ? शायद नहीं! क्योंकि उसके लिए हमारे अंदर गड्स होना चाहिए; ऐसा कहने के लिए काफी हिम्मत होनी चाहिए, “हां, शायद हम एक सही दुनिया की खोज के लिए सही रास्ते पर नहीं जा रहे थे।” क्योंकि ये सब लालच की वजह से है। तब भी अगर हम पीछे मुड़कर लेखन को देखना शुरू करें — उदाहरण के तौर पर कबीर के लेखन, नानक के लेखन और कई लोगों के लेखन जिन्होंने अपने मन में यह बात बैठा ली थी कि “इस धरती पर हम सिर्फ अपने लालच को पूरा करने के लिए नहीं आए हैं।” फिर ये महान लोग बहुत ही खूबसूरत तरीके से मन के अंदर झांकते हैं और ये बताते हैं "नहीं, लालच पूरा करने की बिल्कुल जरूरत है — अगर आप किसी चीज के लिए लालच करते हैं तो उसे पाने की लालच रखें। अगर आपको लालच करना ही है तो शांति का लालच रखिए।"
यह वास्तव में एक अलग मानसिकता है; यह एक बहुत ही अलग तरह की सोच है कि “मेरे अंदर जो शांति है मैं उसकी तलाश बाहर कर रहा हूं। मैं उसे बाहर उत्पन्न करने की कोशिश कर रहा हूं।” क्योंकि जब लोग मुझसे शांति की बात करते हैं तो वो अपने मन के अंदर की शांति के बारे में नहीं सोच रहे होते हैं; वो बाहर की शांति के बारे में सोचते हैं। “क्या बाहर शांति हो सकती है ?” मैं नहीं जानता। क्या हमारे अंदर शांति मिल सकती है; हां, यह मैं जानता हूं। और वह शांति जो मेरे अंदर है वही मुझे बनाती है, वही शांति मेरी पहचान है; मेरे मन की अंदरूनी शांति। बाहर की शांति नहीं। अगर मैं एक ऐसे कमरे में जाऊं जो बहुत ही शांत है तो क्या मेरे अंदर भी कोई आवाज नहीं आएगी; शांत रहेगा सबकुछ ? नहीं, क्योंकि उस कमरे की शांति मेरे बारे में नहीं बताती। मैं जो हूं वह मेरे अंदर की शांति ही बता सकती है। मेरी जो पहचान है क्या वह उस जगह की खूबसूरती बताती है, जहां मैं हूं — या वह गुस्सा जो मेरे अंदर है ?
मैं खुद को यह सोचने से रोक नहीं पाता कि हम सबको जागरूक होकर जीने का वक्त आ गया है। अभी लॉकडाउन में, इस परिस्थिति में हमें हर एक दिन जागरूक होकर जीने की आदत डाल लेनी चाहिए। यह अभ्यास करना चाहिए, जागरूक होना चाहिए, “जिस परिस्थिति में हम अभी हैं हमारे अंदर इस वक्त क्या चल रहा है ?” जब गुस्सा आता है — और मैं यह जानता हूं कि गुस्सा कब आता है। गुस्सा बहुत जल्दी बाहर निकलता है इससे पहले कि आप ब्रेक लगायें वह बाहर निकल चुका होता है — और नुकसान कर चुका होता है। मैं इस गुस्से को कैसे रोक सकता हूं ? तो मैं आपको बता दूं वहां तक पहुंचने के लिए, मतलब अपने गुस्से पर काबू करने के लिए मुझे बहुत अभ्यास करना पड़ा, धीरे-धीरे लेकिन लगातार, धीरे-धीरे लगातार। अब शायद वक्त आ गया है कि हम इस मौके का फायदा उठायें और कुछ अलग चीजों का अभ्यास करें। जागरूक होकर जीने का अभ्यास देखने के लिए, जानने के लिए “वह क्या है — क्या है वह जिसे मैं पाना चाहता हूं ? मेरे पास आज जो मुझमें है मैं उसका इस्तेमाल कैसे कर सकता हूं ? आज की परिस्थिति में मेरे अंदर जो चीजें पहले से ही मौजूद हैं मैं उसका इस्तेमाल कैसे करूँ ? कैसे मैं अपने अंतर्मन में शांति पैदा करूं ?”
क्योंकि किसी और को इसके लिए दोषी ठहराना तो बहुत ही आसान है " ये लोग हैं जो मेरी शांति भंग कर रहे हैं; इन लोगों को शांति बनाए रखने की जरूरत है।" लेकिन यह उनके बारे में नहीं है; किसी दूसरे के बारे में नहीं, बल्कि आपके अपने बारे में है। जागरूक होकर आपको जीना जरूरी है; बाकी लोगों की जागरूकता के लिए आपको नहीं सोचना। इस चीज के लिए आपको अभ्यास की जरूरत है, बाकी सभी चीजों की तरह ही। अगर कोई फिट नहीं दिखता और उन्हें फिट रहना है तो उनके लिए एक दिन काफी नहीं है। और उससे कोई फायदा भी नहीं… अगर वह व्यायाम वाली साइकिल का इस्तेमाल करते हैं, ट्रेडमिल पर चलते हैं — दौड़ते हैं, दौड़ने की कोशिश करते हैं तो — सच तो यह है कि अगर वह फिट नहीं हैं तो वो लोग इतना भी नहीं कर पाएंगे।
लेकिन सब लोग ये बात जानते हैं कि हर दिन, बार-बार, अगर अभ्यास किया जाए तो एक दिन वो अपनी मंजिल पाने में सफल हो ही जाएंगे; वो लोग अपने अभ्यास और लगन से उस मुकाम तक पहुंच जाएंगे जहाँ वो जाना चाहते हैं। लेकिन उसके लिए बहुत धीरज रखने की जरूरत पड़ेगी; उस मेहनत और लगन की जरूरत पड़ेगी; हर एक दिन को जागरुक होकर जीने की जरूरत पड़ेगी — यह कहने के लिए ठीक है "मैं अपने अंदर शांति पैदा करना चाहता हूं; मैं आज अपने अंदर शांति महसूस करना चाहता हूं। आज मैं इसके लिए क्या कर सकता हूं ? आज जो भी मेरे साथ होगा उसके लिए मेरी प्रतिक्रिया अंदर से क्या होगी ?" सबसे जरूरी बात, अंदर से क्या होगी।
बहुत-बहुत ही आसान, अगर हम थोड़ा-थोड़ा करके इसे देखें। शांति पाने के लिए ऐसी धारणा है, अच्छे इंसान बनने के लिए ऐसी धारणा है कि यह एक ही झटके में हो सकता है। लेकिन यह एक ही झटके में नहीं होता। क्योंकि बुरा होने के लिए भी अभ्यास की जरूरत होती है। बुरा बनने के लिए भी वक्त लगा था। बुरा बनने के लिए भी काफी प्रयास करना पड़ता है। तो अच्छा बनने के लिए भी भरपूर अभ्यास की जरूरत तो पड़ेगी ही।
क्या यह हो सकता है ? हां, हो सकता है। लेकिन यह आपके ऊपर निर्भर करता है। क्या आप अपने अंदर की उन चीजों को पुकार सकते हैं ? मैंने अपनी किसी बातचीत में इसी के बारे में पहले भी बताया है। “क्या आप अपने आप में खुश हैं।” क्या आप अंदर से खुश हैं ?
क्योंकि अगर आप खुद से खुश नहीं हैं, अगर आप चाहते हैं कि आप कोई और हों, अगर आप खुद को कोई और समझते हैं — अगर यही आपका लक्ष्य है, (आप खुद की तरह नहीं आप किसी और की तरह) तब समस्या हो सकती है। क्योंकि आप कोई दूसरे व्यक्ति नहीं हो सकते। आप तो आप ही हैं। और आप जो हैं उसी में आपको खुश रहना ही है। आपकी गलतियों या किसी और कारण की वजह से नहीं, लेकिन सिर्फ एक मौलिक तरीके से, एक सरल तरीके से आप कल्पना कर सकते हैं खुद से खुश रहने की। इसके लिए बस इतना ही करना है। आपको इस तरह की समझ को बस हासिल करना है।
मैं भी यह समझता हूं कि हम सबके लिए यह बहुत अच्छा समय नहीं है — लॉकडाउन में रहना, इस स्थिति में रहना यह बिल्कुल 'ग्राउंडहॉग डे' की तरह है, (जो मैं जानता हूं कि महज़ एक पिक्चर है जिसमें हर दिन एक जैसा ही होता है, एक ही दिन, एक ही दिन हमेशा दोहराता रहता है।) इस पिक्चर में, दरअसल वो दिन बार-बार आता रहता है, एक ही दिन बार-बार — और वह उससे बहुत बोर हो गया था। वह यही चाहता था कि उसके लिए एक अलग दिन आए। वह कई बुरी चीजें करने की कोशिश करता है। अचानक एक दिन उसे यह अहसास होता है कि “ठीक है” शायद हर दिन एक जैसा ही हो, लेकिन मैं उसमें कुछ बदलाव, कुछ नयापन ला सकता हूं। वह खुद में बदलाव ला सकता है। और जब वह ऐसा करना शुरू करता है तब वह इन सबसे बाहर निकल जाता है फिर से वही दिन और फिर कुछ ऐसा होता है जो उसे पूरी तरह से बदल देता है, ग्राउंडहॉग डे फिल्म में।
कभी-कभी पता है जब मैं — वह मेरी पसंदीदा फिल्मों में से एक है, इसलिए मैं इस फिल्म को काफी देखता हूं। क्योंकि कभी-कभी जब हम फंस जाते हैं — और फिर ऐसा लगता है “ओह हां, आज फिर से एक बार वही दिन है वापस पहले दिन की तरह।” लेकिन जब आप अपने अंदर झांकते हैं और खुद को बदलने की चुनौती लेते हैं, तब आप अपनी जिंदगी को जागरूक होकर जीने की चाह रखते हैं, आप अपने जीवन को जागरूक होकर जीने का अभ्यास करने की चाह रखते हैं। तब आपके साथ कुछ खास होने वाला होता है, आप में कोई बेहतरीन बदलाव आता है और वह शांति आपको इतनी प्यारी लगेगी जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। आपके आंगन में खुशियां नाचेंगी, दरवाजा खटखटाएगी। आपकी जिंदगी खूबसूरत हो जाएगी — बहुत खूबसूरत। तब आपको यह बात समझ में आ जाएगी कि क्यों कई लोगों ने यह बात कही है कि "जिंदगी एक भेंट है।" आप समझ पाएंगे कि वो यह सब बातें क्यों किया करते थे शांति के लिए, खुशी के लिए, अपनी बेहतरीन जिंदगी के लिए। क्योंकि आप अब समझते हैं और अब आप अपनी जिंदगी को उस नज़रिये से देख सकते हैं जिसकी आपने कल्पना की थी।
आपकी सभी समस्याओं की सूची, इच्छाओं की सूची, विफलताओं की सूची और उन सभी चीजों की सूची जिसे आप “सफलता” मानते हैं, इन सबसे आप नहीं नापते हैं लेकिन किसी और चीज से इसकी तुलना करते हैं जो वास्तव में है, असल में है। जिंदगी को जिंदगी की नजरों से ही देखना, इस दुनिया को देखना जिसमें आप रहते हैं, उस दुनिया को जिसमें सूरज है, जिसमें चंद्रमा है, जिसमें सागर है, जिसमें अनगिनत तारे हैं उन सब चीजों को बनाने वाले की नजरों से देखना, उसकी प्रशंसा करना, हर एक दिन की प्रशंसा करना जिस दिन को आप जीते हैं। हर उस पल की प्रशंसा करना कि हम आज जिंदा हैं। क्या होता अगर उस प्रशंसा के लिए आपके सिर पर जुनून सवार होता; आप पर उस खुशी का जुनून सवार होता; आभार देने का जुनून सवार होता ? कैसा होता अगर आपके अंदर जो शांति बसती है आप पर उसका जुनून सवार होता और आपका मन खुशी से नाचता ? तब तो यह दुनिया आपके लिए, मेरे लिए, हम सबके लिए बिल्कुल ही अलग दुनिया होती।
धन्यवाद! सुरक्षित रहें; स्वस्थ रहें!
प्रेम रावत:
नमस्कार! आशा करता हूं आप सब कुशल होंगे।
तो कल रात मैं एक बार फिर से प्रशिक्षण और शांति शिक्षा कार्यक्रम के बारे में सोच रहा था — और मेरे दिमाग में एक बात आई और वह कोई बात नहीं थी बल्कि एक सवाल था — दरअसल एक नहीं, दो सवाल थे। और सवाल यह है "क्या आप एक इंसान के रूप में खुद से खुश हैं ?" मेरे ख्याल से यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल है।
क्योंकि अगर हम एक इंसान के रूप में खुश नहीं हैं तो फिर यह एक सोची हुई बात है — एक सोची-समझी चीज है। वास्तव में आप कौन हैं, यह एक बिल्कुल अलग बात है; वह एक ऐसी चीज है जिसका हमें एहसास होना चाहिए; जिसकी हमें पहचान होनी चाहिए; जिसकी हमें समझ होनी चाहिए। लेकिन आपको क्या लगता है क्या आप खुद से खुश हैं ? क्योंकि अगर आप खुद से खुश हैं तो फिर आपके लिए यह लॉकडाउन कोई बड़ी बात नहीं है। क्योंकि आप जो हैं उसमें खुश हैं, लेकिन अगर आप अपने आप से खुश नहीं हैं तो फिर आपके लिए यह वाकई बहुत बड़ी बात है। क्योंकि आप जानते ही नहीं कि आप कौन हैं। और क्योंकि आप खुद को नहीं पहचानते तो आप एक अजनबी के साथ हैं। सच में एक अजनबी के साथ। और इस दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो अपनी पूरी जिंदगी एक अजनबी के साथ गुजार देते हैं, किसी ऐसे इंसान के साथ जिसे वह जानते तक नहीं — लेकिन वह आपके साथ हैं, हर दिन और हर पल।
फिर बस एक ही चीज बच जाती है उम्मीद, उम्मीद, उम्मीद, उम्मीद। और आपको उस अजनबी से कुछ ज्यादा ही उम्मीद होती है। दरअसल आप उस अजनबी से उन सभी चीजों की उम्मीद रखते हैं जो उम्मीद लोगों ने आपसे रखी हो। यह दुनिया आपसे बहुत उम्मीद रखती है और जिसके साथ आप रहते हैं उस अजनबी के ऊपर यह सब डाल देते हैं। तो इसका क्या मतलब हुआ ? इसका साधारण-सा मतलब यह है, “अगर आप यह समझ गये हैं कि आप कौन हैं, अगर आप समझते हैं कि आप कौन हैं तो आप खुद के लिए अजनबी नहीं हैं।” और अगर आप खुद से अजनबी नहीं हैं तो आप आसानी से यह कह सकते हैं "हां मैं अपनी जिंदगी में यह चाहता हूं; मैं इस तरह से अपनी जिंदगी जीना चाहता हूं। यह मेरे लिए सही है और यह मेरे लिए सही नहीं है।"
क्योंकि खेल के किसी भी चरण में… मतलब जब आपने स्कूल जाना शुरु किया, तो आपने किंडरगार्टन, के.जी कक्षा से शुरुआत की। फिर आप पहली कक्षा में गए। दूसरी कक्षा में आप कब गए ? जब आपने पहली कक्षा खत्म की। अब आपको लगेगा कि दूसरी कक्षा में जाने का कोई मतलब ही नहीं है, क्योंकि जबतक आप ने अपनी पहली कक्षा खत्म की, तब तक आपको उसकी आदत हो गई। लेकिन आपको रुकना होगा, क्योंकि आप अपना अगला कदम लेने के लिए तैयार हैं।
यह सीढ़ियां चढ़ने जैसा है। जब आप पहले पायदान पर कदम रखते हैं; तब आप अपने पैर वहां तक लाते हैं, फिर एक बार जब वहां होते हैं तब आप अपना दूसरा कदम दूसरे पायदान पर रखते हैं — और फिर तीसरे और चौथे पायदान पर — और इस तरह से आप ऊपर चढ़ते जाते हैं। तो इससे पहले कि आप अपने आप से उम्मीद लगायें, (चाहे वह आपकी खुद की उम्मीद हो तो इससे पहले कि आप अपने आप से उम्मीद लगाएं, चाहे वो आपकी खुद की उम्मीद हो या फिर दुनिया की बनाई हुई उम्मीद हो) आपको यह बात अच्छी तरह समझनी होगी "हां मैं इस स्तर पर आराम से पहुंच गया हूं या अब मैं दूसरे स्तर तक जा सकता हूं।" दूसरे स्तर पर यह क्या है ? खुद को थोड़ा और समझ पाना। तीसरे स्तर पर खुद को थोड़ा और समझना — और यह एक खोज है; यह आपके बाकी के जीवन के लिए खुद को जानने की एक प्रक्रिया है।
क्योंकि आप स्थिर नहीं हैं। आप लगातार बदल रहे हैं; आप स्थिर रहना तो चाहते हैं, पर बदलना नहीं चाहते। और ‘सुकरात’ ने यही कहा था कि अगर आप को सबकुछ मिल जाए (मैं संक्षिप्त में बताता हूं) वह हर चीज जो आप चाहते हैं, तो आप खुश नहीं रह पाएंगे। अगर आपको अपनी मनचाही चीज नहीं मिलती, तो भी आप खुश नहीं रह पाएंगे। और अगर आप जो चाहें वह आपको मिल भी जाए, तो आप खुश नहीं रह पाएंगे। क्योंकि वह बदल जाएगी और बदलाव जिंदगी का नियम है। आपको यह बात पसंद नहीं। आप स्थाई रहना चाहते हैं; आप चाहते हैं सबकुछ थम जाए — और आप उसे उस तरह से देख सकें; आप उसे स्थाई रूप से देख सकें। आप हर चीज को उसके स्थाई रूप में सराहना चाहते हैं।
तो अब यहां आता है वास्तविकता का पूरा मुद्दा। और वास्तविकता क्या है ? मुझे एक सवाल याद आया जो किसी ने मुझसे पूछा था, जब मैं पुर्तगाल में था। और उन्होंने कहा “अगर मुझे यह पता लगाना हो कि मैं कौन हूं” (क्योंकि मैं उन लोगों से इसी बारे में बात कर सकता था) “कि अगर मैं यह पता लगा लूं कि मैं कौन हूं और मैं खुद को पसंद ना आऊँ, तब मैं क्या करूंगा ?" तब मैंने जवाब दिया, जो भी उसका जवाब था; मैं होटल वापस गया — और मैं सोचने लगा। मतलब, “कमाल है मैंने कभी सोचा नहीं था किसी को अपनी खुद की पहचान नहीं होगी…” और ऐसा कहीं नहीं है।
आप कबीर को सुनें या आप कई लोगों ने कितना कुछ कहा है उसे पढ़ें; तो कोई यह नहीं कहता “सुनो खुद को पहचानने में थोड़ा सावधान रहना जरूरी है क्योंकि अगर तुम खुद को जान गए… और क्या हो अगर तुमने जो देखा वह तुम्हें पसंद नहीं आया ?” काफी दिलचस्प है। अद्भुत है। मतलब, “एक मिनट रुको यह संभावना इस व्यक्ति के दिमाग में मौजूद हो सकती है, इस व्यक्ति के मन में आ सकती है। लेकिन यह संभावना कभी भी सामने आई ही नहीं।” क्योंकि पहले से ही लोगों को पता होता है कि जब आप खुद को जान जाते हैं, तो आप जो देखेंगे वह आपको पसंद आएगा ही। और यह एक बहुत ही दिलचस्प बात है। यह जानना बहुत ही आश्चर्यजनक है कि जो है, वह वास्तव में आप हैं और वह बेहतरीन है — बेहद!
अब मान लीजिए, मतलब आपके सामने एक दीवार है — और उसमें एक बड़ा दरवाजा है। और कोई आपसे कहता है "ठीक है मेरे पीछे आओ।" और वह आदमी उस दरवाजे से बाहर निकलता है और वो लोग किसी चीज को देख रहे हैं और वह बहुत ही अद्भुत है। और वो लोग आपसे कह रहे हैं "डरो मत; अंदर आ जाओ!" लेकिन वो लोग आपको यह नहीं बता रहे कि उन्हें क्या दिख रहा है। वो लोग सिर्फ इतना ही कह रहे हैं "अंदर आ जाओ; कोई बात नहीं। सब ठीक है।" लेकिन वो लोग आपको अंदर आने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, लेकिन प्रोत्साहन के लिए वह यह नहीं कह रहे कि "मुझे यह दिख रहा है; मुझे यह दिख रहा है; मुझे यह दिख रहा है" इसलिए मुझे आश्चर्य हो रहा है ऐसा क्यों। दरअसल मैंने कहीं एक दोहा पढ़ा था वह यह है कि “जब आप अपने इस अनुभव के बारे में बात करते हैं, जब आप खुद को जानने की उस भावना के बारे में बात करते हैं तो ऐसा लगता है कि कोई ऐसा आदमी है जो गूंगा है, जो बोल नहीं सकता, टॉफी खाता हुआ। वह उसका स्वाद ले सकता है — और वह उसका बखूबी मज़ा ले रहा है। लेकिन वो लोग यह नहीं बता रहे कि वह उसका कितना मजा ले रहे हैं और उसका स्वाद कैसा है। वह बस आपको इतना बता रहे हैं "हम्म, यह बहुत बढ़िया है; बहुत मजेदार।"
और यही सबसे जरूरी चीज है। यही कि वास्तविकता, अपने आप में ही बहुत खूबसूरत है। यह अस्तित्व अपने आप में ही बहुत खूबसूरत है। (अब यहां ध्यान दें जरा) यह अस्तित्व अपने आप में ही बहुत खूबसूरत है। यह वास्तविकता अपने आप में ही बहुत खूबसूरत है। आपकी जिन्दगी अपने आप में ही बहुत खूबसूरत है। आपका मन अपने आप में ही बहुत खूबसूरत है।" तो फिर ये बाकी चीजें क्यों आपके आसपास मंडरा रही हैं ? हां, यह हुई काम की बात। याद कीजिए वह पहला सवाल, जो मैंने आपसे पूछा था मैंने पूछा था "क्या आप अपने आप से खुश हैं ?" क्योंकि अगर ऐसा नहीं है तो आप अपने कंधों के ऊपर दूसरों का दिया हुआ उम्मीदों का भार उठाए खड़े हैं।
लेकिन यह समय है खुद को जानने का और बाकी चीजों का नहीं। आपकी अब तक की जिंदगी अपने आसपास की चीजों को समझने में गुजर गई — वो सभी चीजें जो हो रही हैं और हम यही सीखते हैं और हम यही सीखते हैं और हम यही सीखते हैं और मैं यह नहीं कह रहा कि यह गलत है; यह सही या गलत का सवाल नहीं है। इस दुनिया में ऐसी कई चीजें हैं जो हम सीखते हैं — वह अपने आप में बुरी होती हैं। पर वास्तविकता अपने आप में ही बहुत अच्छी है। आप एक इंसान के रूप में, अपने आप में ही बहुत अच्छे हैं और इसीलिए यह अविश्वसनीय रूप से सीखा हुआ व्यवहार है, अविश्वसनीय रूप से सीखा हुआ भारी भरकम व्यवहार जो बाकी लोगों के पास है, जो आपके पास है जिसकी वजह से इस दुनिया में संघर्ष पैदा होता है — टकराव होता है, मनमुटाव होता है। वास्तविकता से नहीं, उस मीठी सच्चाई से नहीं कि आप कौन हैं कि आप में स्वांस कहां से आई कि आप जिंदा हैं कि आपका एक अस्तित्व है।
आप बहुत कम वक्त के लिए मौजूद हैं, लेकिन आप मौजूद हैं और उसमें ही आप खिल उठते हैं — खिल उठते हैं। आप उन सब बातों को जान जाते हैं जिस पर आपने कभी ध्यान नहीं दिया। “यह सच्चाई छिपी हुई क्यों है ? यह खूबसूरती छिपी हुई क्यों है ?” माफ कीजिएगा, यह छिपी हुई नहीं है — हमारी कल्पना में भी यह खूबसूरती छिपी हुई नहीं है। यह खुशी छिपी हुई नहीं है। यह शुद्धता छिपी हुई नहीं है। यह शांति छिपी हुई नहीं है आपने कभी इस पर ध्यान ही नहीं दिया। आपने कभी सोचा ही नहीं कि यह सब मौजूद भी है। किसी ने आपको यह नहीं बताया कि यह सब मौजूद है किसी ने नहीं कहा "यहां आ जाओ, यही वह जगह है जहां वह सारी आश्चर्यजनक चीजें हैं, जो आप में है।" और बस क्या यह इतना आसान है, इतना सरल कि हमें बस इतना ही करना है कि इस पर ध्यान देना है ? और यह खुद को जाहिर करना शुरू कर देगा और बिल्कुल यही योजना है, "हमारे रास्ते से हट जाओ।"
काफी लोग मुझे कहते हैं "मैं शांति की तलाश कर रहा हूं।" और मैं कहता हूं "क्यों नहीं मेरी शुभकामनाएं हैं आपके साथ! आप इस तरह से शांति नहीं पा सकते!" क्योंकि वह पहले से ही आपके पास है। इसलिए आपको इसकी तलाश नहीं करनी चाहिए; आपको इसका मज़ा लेना चाहिए; आपको ध्यान देना चाहिए, यह पहले ही आपके पास है आपके अंदर है। यह तो ऐसे ही हो गया जैसे कोई कह रहा हो "मेरा चश्मा कहां है" — और पता है उनका चश्मा उनके सिर पर ही होता है। कई लोग ऐसा करते हैं और फिर सबसे पूछते रहते हैं "मेरा चश्मा कहां है ?" स्वाभाविक-सी बात है उनकी आंखें नहीं देख पाती कि उनका चश्मा उनके सिर पर है। और अगर कोई आपको अपने सिर पर चश्मे के साथ देखता है — तो उसे लगता है “वह रहा चश्मा, वह देखो, तुम्हारे सिर पर ही है तुम्हारा चश्मा। और तुम हर जगह उसे ढूंढ रहे हो; जब तुम्हारा चश्मा तुम्हारे सिर पर ही है तो क्यों हर जगह उसे ढूंढ रहे हो ?” और उसी तरह हम उस खूबसूरती को ढूंढते रहते हैं जो हमारे अंदर ही होती है। अब दूसरा सवाल जो मैं आपसे करने वाला हूं। मुझे उम्मीद है कि आपको पहले सवाल का जवाब कुछ हद तक मिल गया होगा। लेकिन दूसरा सवाल यह है कि "इस समय हम सब इस लॉकडाउन में हैं जो बहुत अच्छी स्थिति तो नहीं है, लेकिन ऐसी स्थिति में हमारी क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए ?
तो मेरा सवाल यह है “जल्द ही — अंदाज से कह रहा हूं, बहुत जल्द यह सब खत्म हो जाएगा। आपने इससे क्या सीखा होगा ?”
जब मैंने शुरुआत की थी तब “फिर से सबकुछ कायम करने के बारे में था।” आप क्या ठीक करते ? जब आप लॉकडाउन से बाहर निकलेंगे तो क्या आप पहले जैसे रहेंगे ? क्या आप बस इंतजार कर रहे हैं ? आप हर दिन इसके खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं — मेरा मतलब, हर एक दिन ? क्या आप इससे डर रहे हैं ? जबकि मैंने आपसे पहले ही कहा है कि डरने से किसी का भी कुछ अच्छा नहीं होता। बिल्कुल नहीं होता, इससे किसी का भला नहीं होता।" लेकिन आपको कुछ तो करना ही होगा। और इसके लिए बहुत हिम्मत चाहिए कभी-कभी। और अगर मैं यह कह रहा हूं कि इसमें बहुत हिम्मत चाहिए तो यह पूछना बेकार होगा कि आप में हिम्मत है या नहीं। आप में हिम्मत है। आप अपनी जिंदगी में वह कदम उठा सकते हैं; आप आगे बढ़ सकते हैं। और इस चुनौती का सामना करते हुए कह सकते हैं "ठीक है यह वक्त मेरे लिए समय की बर्बादी नहीं है। क्योंकि सच कह रहा हूं कि अगर यह समय की बर्बादी है, तो यह वाकई समय की अच्छी बर्बादी है, बहुत, बहुत, बहुत ज्यादा अच्छी बर्बादी है।” यह सुनने में थोड़ा अजीब है, लेकिन हां, “यह समय की बहुत अच्छी बर्बादी है।”
लेकिन ऐसा नहीं है। ऐसा नहीं हो सकता। मानव जाति के रूप में, हम इस पृथ्वी पर इतिहास रच रहे हैं। हमने एक ऐसी स्थिति का सामना किया जिसके लिए हम तैयार नहीं थे — और बहुत ही कम समय में इस स्थिति ने पूरी दुनिया को घुटनों पर खड़ा कर दिया। यह एक ऐसी चीज है जिसे आप अपनी आंखों से देख भी नहीं पाएंगे। इसे देखने के लिए माइक्रोस्कोप या कुछ और की जरूरत पड़ेगी…. तो यह है हमारी स्थिति और हम क्या कर रहे हैं ?
सरकार इस लॉकडाउन को बढ़ाने के बारे में बात कर रही है, यह कर रही है; वह कर रही है; बहुत कुछ कर रही है। कुछ देश ऐसे होंगे जो इस स्थिति से गुजर चुके होंगे। कुछ द्वीप जो इस स्थिति से गुजर चुके होंगे और वो इससे मुक्त होकर यह कह रहे होंगे "ठीक है; सब ठीक है — लेकिन यहां मत आना।" एक लंबे समय तक यह दुनिया ऐसी नहीं रहेगी, लेकिन अब आपके लिए सही मौका है। आप क्या देखते हैं — इस दौरान आप अपनी जिंदगी में जो बदलाव लाने वाले हैं ? यह आपके लिए कैसे बेहतर साबित होगा जब आप इस स्थिति से बाहर आएंगे ? (आदर्श रूप से सबकुछ ठीक हो जाएगा — और लोग इसके लिए एक वैक्सीन की इजात (ढूंढना) कर लेते हैं। आप यह वैक्सीन ले लेते हैं अब आपको कुछ नहीं हो सकता और अब आप जो चाहे कर सकते हैं, क्योंकि सबकुछ सामान्य हो जाएगा।) क्या आप पहले जैसे ही रहेंगे ?
क्योंकि अगर हम पहले जैसे ही रहेंगे इस पृथ्वी पर रहने वाली मानवजाति में कोई बदलाव नहीं आएगा, जो इस पृथ्वी को सबके साथ बांटते हैं… यह जाहिर-सी बात है कि हम इस दुनिया को सबके साथ बांटते हैं। हम सब बदलाव लाते हैं। हम सब बदलाव लाते हैं। कुछ लोग ऐसे हैं जो पूरी दुनिया से लॉकडाउन में हैं और कहीं बाहर नहीं जा रहे और दूसरे लोगों को संक्रमित होने से बचा रहे हैं। हां, आप अपना किरदार निभा रहे हैं; बखूबी निभा रहे हैं — अब अकेले नहीं रहे। जब आप लॉकडाउन में हैं आप चार-पांच लोगों को सीधे संक्रमित होने से बचाते हैं और फिर हर एक के लिए वह चार और पांच लोग जिन्हें आपने अगर संक्रमित किया होता तो वो और चार पांच लोगों को संक्रमित कर देते और इसी तरह से यह फैलता जाता। तो आप एक नहीं हैं।
तो एक बार सोचिए कि यह कितना शक्तिशाली है कि हमें किन परिस्थितियों में जीना पड़ रहा है। हमारे साथ क्या हो रहा है ? यह कितना शक्तिशाली है — और यह कि हम अकेले भी कैसे फ़र्क ला सकते हैं। हर एक आदमी इसमें फ़र्क ला रहा है; वो लोग जो हमारे लिए आगे खड़े होकर लड़ रहे हैं; अस्पतालों में, वो लोग फ़र्क ला रहे हैं; अस्पताल के कर्मचारी और नर्स वो फ़र्क ला रहे हैं; डॉक्टर्स फ़र्क ला रहे हैं; लोग जो फ़र्क ला रहे हैं। अगर हम इतना बड़ा बदलाव ला सकते हैं तो सोचिए, जब मैं यह कहता हूं — और अक्सर लोग मुझ पर हंसते थे; मुझे यकीन है वो लोग आज भी मुझ पर ऐसे ही हंसेंगे, जब मैं कहता हूं कि "शांति पाना मुमकिन है!" और वो कहते हैं "हां, हां…!"
लेकिन एक उदाहरण देता हूं। शांति पाना मुमकिन है। हम जितना सोचते हैं उससे कहीं ज्यादा शक्तिशाली है। और एक साथ मिलकर हम कुछ भी कर सकते हैं। लेकिन मैंने हमेशा से यही कहा है कि हर एक इंसान अलग है और यह प्रत्येक व्यक्ति की ताकत है जो अंत में बदलाव लाती है। यह कोई एक बड़े लाइट बल्ब की तरह नहीं है बल्कि यह बहुत सारे छोटे-छोटे बल्बों से मिल रही रोशनी है जो बदलाव लाती है। आप दरअसल इन छोटी-छोटी लाइट को असल में रोशनी देता हुआ देख रहे हैं। अपनी आंखों के सामने।
मैं बहुत जल्द ही या एक-दो दिनों में टीपीआरएफ पर एक रिपोर्ट पेश करूंगा कि वह क्या कर रहे हैं — और भारत में आरवीके क्या कर रहा है और प्रेमसागर फाउंडेशन क्या कर रहा है — और लोग इसके लिए कितनी मेहनत कर रहे हैं। यह कोरोना वायरस कि इस परिस्थिति में एक बहुत ही बेहतरीन रिपोर्ट है। मैं जल्द ही आपके सामने उस रिपोर्ट को पेश करूंगा।
तो यह आपके लिए एक अच्छा मौका है अपने आपको अंदर से बदलने का। और तभी मैंने कहा था "क्या आप अपने आप से खुश हैं" — अपने अंदर से हमेशा के लिए बदलने का मौका है, सिर्फ इस हालात के लिए नहीं। बल्कि हमेशा के लिए खुद में बदलाव लाना। और अगर आप खुद को बदल सकते हैं, तो आप अपने आसपास की दुनिया को भी बदल सकते हैं।
तो यह दो सवाल, सोचियेगा जरूर। एक बार इसके बारे में जरूर सोचियेगा। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!
प्रेम रावत:
सबको नमस्कार! उम्मीद है आप ठीक हैं; सुरक्षित हैं और अच्छा महसूस कर रहे हैं।
जिस बारे में मैं आज आपसे बात करना चाहता हूं दोबारा बहुत आसान है। क्योंकि यही तो हम सबको अपने जीवन में सच में करना है, चाहे जो भी परिस्थिति हो सादगी से ही हम उसे पार कर पाएंगे। जीवन की सादगी देखिए, अस्तित्व की सादगी और आप समझेंगे कि मैं क्या बात कर रहा हूं। अपने जीवन में हम कभी-कभी समझ नहीं पाते कि अस्तित्व में सामंजस्य होना कितना जरूरी है। सभी चीजों के साथ सामंजस्य बनाना, प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाना, अपने आसपास के लोगों के साथ अच्छे से रह पाना और सबसे जरूरी बात अपने साथ सामंजस्य रखना। हमारे अस्तित्व में शांति, इस स्वांस में सामंजस्य, जो आ-जा रही है, हमारे अंदर जीवन देती हुई — साधारण चीजें, सुंदर और साधारण चीजें, आप — आपका अस्तित्व, आप क्या चाहते हैं वह सब अलग रख दीजिए — लेकिन अपनी जरूरतें उनको भी देखें, आसान-सी बातें पूर्णतया के लिए, शांति के लिए, खुशी के लिए, समझ पाना।
सवाल यह है लेकिन जवाब होने के लिए भी यह समझना कि यह सभी जवाब जो हैं — जवाबों का समुद्र वह आपके भीतर है। वह उलझन कि "यह क्या है" और फिर इस बात का जवाब खोज पा लेना। वह समझ तभी आ सकती है अगर आपके जीवन में सादगी है। अगर आप इस खुशी की ताल को समझते हैं, इस अस्तित्व की ताल को — जो आती है कि अस्तित्व है, आप आगे बढ़ना चाहते हैं आप जिंदा रहने से ज्यादा चाहते हैं कुछ, विकास करना चाहते हैं। इसमें जो जरूरी है वह बस यह कि आपका अस्तित्व सरल होना चाहिए। बस होना अस्तित्व में, सामंजस्य देखना सबसे आसान ढंग से, जटिल तरीके से नहीं। हमें जटिलता पसंद है — ओह, हमें जटिलता बहुत पसंद है। क्योंकि जब उलझा हुआ होता है हमें चुनौतीपूर्ण लगता है, “हम क्या कहें; इसमें गहराई क्या होती है।”
एक बार मैंने देखा कि कोई किसी के पिछले जन्म की बात कर रहा था, "अरे आप तो हाथी थे, अरे आप तो यह थे; आप तो वो थे!" आप यह सब क्यों सोच रहे हैं ? यह जीवन मिला है आपको। वह वाला नहीं जो आपका था। यह जीवन है आपका और आप इस जीवन में क्या कर सकते हैं ? इस जीवन में क्या बन सकते हैं ? क्या आप सरल बन सकते हैं ? क्या आप बच्चे की आंखों से सबकुछ देख सकते हैं ? यह क्या है ? और इसमें बस सरलता है बिना सोचे बस मान लेना। “यह क्या है कि इसका नाम क्या होता है ? इसका कार्य क्या है; इसका उद्देश्य क्या होता है ?” यह सब बाद में होगा — लेकिन एक पड़ाव है जहां बच्चा बस देखकर कुछ अपना लेता है।
कई बार मैंने यह देखा है। आप बच्चे को चांद दिखाइए। आप उन्हें बाहर ले जाइए। अपने आप चांद दिखाइए; अभी रात ही है; वह ऊपर देखेंगे, वह चांद को देखेंगे — उन्हें नहीं पता कि इसे “चांद” कहते हैं और तब मां-बाप कहते हैं कि "यह चांद है" — लेकिन बिना उसे नाम दिए बिना। और किसी चीज के बिना, वह बस उसकी सुंदरता को निहारता है, सराहना करता है यह जाने बिना कि “यह कितना दूर है, चांद का व्यास कितना है, इसकी परिधि कितनी बड़ी है, चांद क्या है, यह कहां से आया" — यह सब बाद में आती है बातें। लेकिन मुद्दा यह है "अच्छा यह बाद में होगा; बाद में हम इसमें पड़ जाते हैं" —लेकिन उस सादगी का क्या ?
मैं हमेशा एक सवाल पूछता हूं "उस बच्चे को क्या हुआ ?" आप वही बच्चे थे एक बार — वह बच्चा तो बहुत ही सरल हुआ करता था। और कई लोगों के लिए वह इसकी गहराई नहीं देखते, मैं देखता हूं। किसी चीज की सच्चाई को देख पाना, उसका नाम क्या है यह जाने बिना, उसकी विशेषता पता किए बिना, उसका उद्देश्य जाने बिना, कुछ भी जाने बिना.. मतलब कि चांद सुंदर क्यों लगता है ? क्या यह है ? जब वह आकाश में चमकता है यह सुंदर लगता है। यह सुंदर क्यों लगता है ? इससे फर्क नहीं पड़ता, यह तो बस है! क्या मैं भी ऐसा ही बन सकता हूं ? क्या मुझे जीवन में होने वाली हर बात के लिए कई हजारों मतलब निकालने जरूरी हैं या मैं बस मान सकता हूं कि “मैं हूं! मेरा अस्तित्व है ?” क्या मैं जरूरतों को मान सकता हूं ? मैं शांत होना चाहता हूं। मुझे अच्छा महसूस करना है। मुझे खुशी को महसूस करना है। मुझे पूर्ण होना है और कई लोग, वह क्या है जिससे हम पूर्ण होंगे ?
किसी ने मुझसे हाल ही में एक सवाल पूछा "शांति क्या है; शांति क्या होती है ?" किसी ने असल में, कई बार लोगों ने मुझसे पूछा है कि "शांति क्या है ?"
वाह! सच में आप जानना चाहते हैं शांति क्या है ? आप महसूस नहीं करना चाहते; आप बस जानना चाहते हैं कि शांति क्या है ? यह क्या बात हुई। चीनी क्या है ? मिर्च क्या है; नमक क्या है ? आप इसे नाम दे सकते हैं "हां, ये ये है; वो ये है; वो ये है।" पर चखिए! इसे चखिए। एक कहानी है जिसमें एक राजा होता है — और वह दरबार में बैठा होता है।
एक राजदूत आता है और उस राजदूत ने कहा कि "उसके राजा ने उसे भेजा है, एक तोहफे की तरह अपने राज्य के इस फल के साथ।" और वह राजा जो बैठा हुआ है वह कहता है "यह क्या है ?"
तो जवाब आता है "यह आम है।"
अब ऐसा हुआ कि उनके राज्य में यह फल नहीं होता था। तो उसने कहा "अच्छा यह क्या काम करता है ?"
तो किसी ने कहा "अच्छा, मैं जरा देखता हूं कि यह क्या है!" तो उन्होंने एक आम को देखा और फिर कहा "राजा यह एक फल है और ऐसा दिखता है और यह एक आम है।” “पर मुझे समझ नहीं आया।"
राजा ने कहा "आम क्या होता है ?"
तो फिर एक आदमी गया और उसने कहा कि "अच्छा, देखते हैं यह कैसा है! उसने कहा, पिलपिला-सा कुछ है।"
राजा ने कहा "मुझे अब भी समझ नहीं आया।"
फिर किसी ने उसे खाया और कहा "ओह यह तो बहुत स्वादिष्ट है; यह मीठा है; इसकी कमाल की महक है।"
राजा ने कहा "मुझे अब भी समझ नहीं आया आम क्या है!" और अंत में यह चलता रहा, चलता रहा और चलता रहा और सब लोग इस बात से तंग हो गए।
फिर एक दरबारी उठा और उसने एक आम का टुकड़ा लिया, प्लेट में रखा और राजा के पास लेकर बोला "राजा इसे खाएं।"
और फिर जैसे ही राजा ने उसे खाया उसने कहा "अच्छा अब मुझे पता है आम क्या है।" धन्यवाद! यह ताकत है जानने की।
और मानने की ताकत ? “ज्यादा, ज्यादा, ज्यादा इसे मानिए; इसे मानिये; इसे मानिए; इसे मानिए; इसे मानिए।” क्योंकि यह जानना नहीं है, “यह है मानना, मानना।” जाकर आप समझें एक गोली बनाकर आपको कोई दे देगा और आपको वह गोली खा लेनी है। आप बोलेंगे "मुझे लगता है मुझे पता है।” पर मैं इस बात में नहीं मानता। “मैं उस बात को मानता हूं और मैं ज्यादा मानता हूं; मैं कम मानता हूं।" और ये चीजें चलती रहेंगी, चलती रहेंगी। और फिर ऐसे भी लोग हैं, जो इसे आपको समझायेंगें। और समझाने वालों की कोई कमी नहीं है आजकल। और फिर वो क्या करते हैं ? वो उठते हैं और वह अपनी किताब खोलते हैं और फिर कहते हैं "अच्छा यह ऐसे होगा मैं आपको बताता हूं। यह इसलिए है, क्योंकि किताब में लिखा हुआ है। वह झूठ है, क्योंकि किताब में लिखा हुआ है और यह गलत है, वह ऐसे है, यह वैसे है।" और यह चलता रहता है पर यही तो है मानना। पर जानने की बात क्या है ? आप अपने जीवन में क्या चाहते हैं; आप जानना चाहते हैं ? और यह है खुद से सामंजस्य बनाए रखना — अपने विरुद्ध नहीं पर खुद से सामंजस्य रखना, सच्चा सामंजस्य, उस ताल में होना।
वरना तो जीवन क्या है ? मैं आपको बता सकता हूं यह है कि संगीतविंद में कोई एक इंसान, कोई एक कलाकार गलत बजा रहा हो और वह जो गलत बजा रहा है वह गलत ताल में है और क्या यह आपके जीवन में ऐसा होता है ? जहां संगीत कुछ अजीब है, क्योंकि कोई और इसे बजा रहा है। यह उसी ताल में नहीं है जैसे आप रहना चाहते हैं। आपके सामंजस्य के हिसाब से नहीं, इस जीवन में हर रोज सामंजस्य होना जरूरी है। हर पल जब आप अस्तित्व में हैं, आपको होना है सामंजस्य में। जैसा समय आजकल है, यह चुनौती है। क्योंकि यह हो रहा है। “अब क्या होने वाला है ?” बस यही बात है — "क्या होने वाला है; कब होने वाला है; ये क्या है; वो क्या है; यह क्या है; वह क्या है।" लेकिन हृदय की दिलचस्पी रोज क्या होता है उसमें है: “आप जीवित हैं”, जीवित हैं, अस्तित्व है आपका।
समझिए सामंजस्य में होना क्या है। समझिये कि आपका सामंजस्य में होना कितना जरूरी है। अस्तित्व के साथ सामंजस्य, जो भी समय है आपके पास — जो भी समय बचा हुआ है। और जब यह खत्म होगा आप तालमेल नहीं कर पाएंगे। क्या करना चाहेंगे ? हां, लेकिन क्या कर पाएंगे ? नहीं! यह है आपका मौका; यह है मौका महसूस करने का, तज़ुर्बा लेने का। यह कितना सुंदर है कि आप इसे अब भी कर सकते हैं; महसूस कीजिए; शांति का अहसास कर सकते हैं; खुशी महसूस कर सकते हैं। जीवित होने की खुशी; अच्छाई; वो सामंजस्य; वो समझ; और आपको यही तो होना भी है अंत में। वो मुश्किल नहीं है, लेकिन आसान-सी बात है।
और जब आप समझते हैं कि यह सादगी क्या है और कितनी अहम है वह सादगी, फिर सबकुछ बदलने लग जाता है। सब चीजों का नया मतलब निकल जाता है। "वाह! मैं आज को कैसे पकड़ूं ? अपने जैसे रहकर” — और आप उसे जीत लेंगे। आप यही तो चाहते हैं। हमेशा एक अच्छा समय रहता है; हमेशा एक सुंदर समय है अगर आप समझ जाएं तो। विश्लेषण नहीं करना है, आकलन करने से नहीं "अरे यह तो….” हमें आकलन चाहिए; मैं नहीं कहता हमें आकलन नहीं चाहिए। हमें आकलन चाहिए। कई बातें हैं जिनमें आकलन जरूरी होता है। लेकिन आपका अस्तित्व वह सच्चा है। आकलन करने का लाभ कोई नहीं है “इसका क्या मतलब, उसका क्या मतलब।” अपनाइये, अपनाईये और समझिये — कि आपको उस आसान सामंजस्य में होना ही है, अपने अस्तित्व के साथ, सरल तालमेल में इस स्वांस के साथ। जितनी आसान है, आपको उतना ही आसान बनना है; आपको उतना सच्चा बनना है।
सच क्या है ? कोई महान बातें नहीं जो समझ में नहीं आ सकतीं। नहीं, नहीं, नहीं इन दो दीवारों के बीच बिल्कुल नहीं। आसान क्या है; सच्चा क्या है आपके लिए ? इस स्वांस का आना और जाना, आपका अस्तित्व। आपका सच है आपकी जरूरत शांति की, शांति की आपकी जरूरत। सच है पूर्ण होने की आपकी जरूरत। सच है आपकी जरूरत उस सादगी में रहने की। सच है जीवन में वह सामंजस्य लाना, आपके जीवन में सामंजस्य होने की जरूरत।
एक बार फिर दुनिया देखें और खुद को बच्चे की आंखों से देखें। मैं हमेशा कहता हूं “उस बच्चे को क्या हुआ, क्या आपने सोचा ?” वह बच्चा अब भी है। वह आप में ही है, कभी किसी समय एक बच्चा ही था। वह बच्चा कभी नहीं मरता। वह बच्चा अब भी यहीं है। उस बच्चे से दोबारा मिलिए; उस सादगी को फिर से जानिए; उस सामंजस्य को फिर समझें; उस खुशी को फिर से समझें। इस सबका पुरस्कार होगा पूर्ण होना, शांति मिलना, यही तो है जीवन की सुंदरता।
सुरक्षित रहें; अच्छे रहें आप सब। धन्यवाद!
प्रेम रावत:
हेलो नमस्कार सभी को।
उम्मीद है आप सब ठीक हैं और इन परिस्थिति में भी ठीक रहने का प्रयास कर रहे हैं। मुझे आपसे ऐसी ही आशा है हम यही कर सकते हैं — एक-एक कदम लें एक-एक दिन करके एक-एक पल यह जीवन का सही तरीका है। तो हर बात को आराम से देखें। हां, हमारी क्षमता है कल का सोचने की। हां, हमें कल का सबकुछ याद भी है। पर हम यह भी समझ सकते हैं कि आज का महत्व क्या है ? हमारे भीतर एक कमाल की ताकत है वर्तमान को समझने की। जबतक हम यह समझदारी प्रयोग में नहीं लाते, वह क्षमता जिससे हम वर्तमान को समझ पाते हैं कि आज का अर्थ क्या है। कल की तैयारी करने को बेमतलब क्यों समझते हैं हम लोग और कल तो जा चुका है और वह वापस नहीं आने वाला और वो कभी नहीं आएगा यह समझ लेना।
लेकिन आज यह पल आपके लिए संदेश लाया है और वह संदेश बहुत गहरा है। यह संदेश बहुत आसान है और यह संदेश बहुत स्पष्ट है और यह संदेश कहता है “आप अस्तित्व, आनंद!” और इस संसार का आनंद नहीं — वह आनंद नहीं जिसकी बात अक्सर आम लोग करते हैं "हां, चलो समुद्र किनारे चलें” या “चलो ऐसा करते हैं, चलो वैसा करते हैं।" वह आनंद जो आपके भीतर छुपा है — वह आनंद जो आपके अस्तित्व में है; वह आनंद जो जीवित होने में है; वह आनंद जो यह समझने में आता है कि यह पल आपके जीवन में क्या बातें या चीजें ला रहा है! क्या यह जीवन, क्या यह अस्तित्व एक तोहफा है ? यह तोहफा है अगर आप समझें कि यह खास है। अगर आप समझें, अगर आप यह तोहफा स्वीकारने को तैयार हैं, अगर आप यह तोहफा लेने को तैयार हैं, अगर आप यह तोहफा खोलना चाहते हैं तो फिर यह तोहफा है। वरना इसका कोई अर्थ नहीं है। मेरा मतलब, आपसे पहले कितने ही लोग और आपके बाद कितने ही लोग इस दुनिया में आए और चले गए हैं और इससे बताइए क्या फर्क पड़ा है ? कोई और इंसान….
आजकल सब कुछ आंकड़ों में है और हर रोज जब मैं उठता हूं मैं एक वेबसाइट देखता हूं और इसका नाम है "वर्ल्डओमीटर्स।" मैं इस वेबसाइट पर देखता हूं कि आंकड़े और संख्या ही हैं। संख्या पैदा हुए लोगों की, वो लोग जो मर गए हैं — सभी लोग सबकुछ और फिर कोरोना वायरस की भी जानकारी होती है वहां पर। मैं उन आंकड़ों को देखता हूं कि "हां यह संख्या इंसानी जिंदगी की है। लेकिन क्या है सच में जो ये आंकड़े दर्शाते हैं कि असल में क्या चल रहा है। जो जीवन पर खतरा है।" आप कहते हैं, " ओह, हां इतने सारे लोग मर गए और वो बुजुर्ग थे।" यह गलत बात है। उदास करने वाली बात। क्योंकि एक पूरी पीढ़ी उस ज्ञान के बिना बड़ी होगी और वो सारी बातें और वो सारी जानकारी जो उनके दादा-दादी उन्हें देते। मेरा मतलब यह कितना कीमती है, कितना जरूरी है यह। कोई बताने वाला तो होता "यह ऐसा करना होता है। कोई बात नहीं।” सबकुछ ठीक हो जाएगा हमेशा हमारे हिसाब से काम नहीं होते हैं; यह तो किसी ने नहीं सोचा था।
कई बार मां-बाप उनके पास समय नहीं होता। लेकिन दादा-दादी के पास समय होता है और वह ज्ञान आगे जाता है एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी से अगली पीढ़ी और यह है मूल्य — यह संख्या नहीं है, लेकिन मूल्य उस व्यक्ति की जो यहां पर है, जीवन की। क्योंकि इनमें से एक संख्या (शायद वह हजारों में हो), लेकिन वह प्रतिनिधि है इंसानों की। वह आपको दर्शाती है; मेरे बारे में नहीं। दर्शाती है सच में इस स्वांस का सही मतलब, जो हमारे भीतर आ रही है। हमें एक मौका मिला है जीने का — एक मौका मिला है कुछ अच्छा करने का। और मैं आपसे ये सभी बातें बोल रहा हूं क्योंकि मुझे लगता है कि कभी-कभी हमें अपना सिर रेत से बाहर निकालना चाहिए (एक शुतुरमुर्ग की तरह) और आसपास देखना चाहिए उस सच्चाई को, वह सुंदरता जो अस्तित्व में है। क्योंकि हां — हां कई बुरी चीजें हो रही हैं। कुछ विश्व नेता बिल्कुल सक्षम नहीं हैं। उन्हें सच में कुछ भी नहीं आता। उन्होंने यह तूफान आता हुआ देखा और फिर भी कुछ नहीं किया जबतक देर नहीं हो गई। और इस सबकी इतनी बड़ी सजा मिली है, बुरी हालत, खतरनाक माहौल है…. लेकिन इस परेशानी में भी आपको अपना सिर रेत से बाहर निकालना है और सच्चाई को देखना है। सच क्या है ? सुंदर क्या है; वह जो अच्छा है।
क्योंकि आपके भीतर वो भेड़िये हैं — एक अच्छा भेड़िया और एक बुरा भेड़िया और वह लड़ते हैं। पर कौन-सा भेड़िया जीतेगा ? प्रत्यक्ष है — जिसे आप जीतायेंगे। अगर इस परिस्थिति में आप बुरे भेड़िए को जीता रहे हैं तो वही जीतने वाला है और मेरी सच मानिए जब बुरा भेड़िया जीतता है यह आपका जीवन बुरा बना देता है और यह इतने बुरे वक्त में और भी ज्यादा बुरा हो जायेगा। लेकिन अगर आप अच्छे भेड़िए को जीताते हैं… वह अच्छा भेड़िया क्या चाहता है ? वह चाहता है करुणा। वह चाहता है स्पष्टता। वह चाहता है खुशी, पूर्ण होना। और अगर ये चीजें उस भेड़िए को दी जाती हैं वह मजबूत बनता है और फिर यह बुराई पर और बुरा नहीं होगा यह कुछ अच्छा होगा, कुछ सीखा जाएगा, कुछ समझा जाएगा।
एक कहावत है "जब आप झुके हुए हों कुछ उठा लीजिए। आप इतने करीब तो हैं ही; कुछ उठा लीजिए।" और मैं यह मानता हूं जब आप जीवन में झुके हों, तो कुछ उठाइए। समझे! यह बात हमेशा रही है “जब बुराई का समय होता है आपने इसकी तैयारी तभी कर लेनी चाहिए जब समय अच्छा हो।” बुरे वक्त की तैयारी करने में आप उसकी तैयारी तभी कर लें जब वक्त अच्छा है। और सवाल यह आता है, “क्या आपने किया ? क्या आपने समय रहते तैयारी की ?” या फिर आप बस कह रहे थे "हां, सबकुछ ठीक है; कुछ बुरा नहीं होगा। देखिए, यहां पर..."
यही तो होता है कई बार सभ्यताओं में। और यह पहली बार नहीं होगा कि सभ्यता के इतना विकसित होने के बाद इस ऊंचाई पर लोग खो गए। लोग सोचने लगे कि "हे भगवान, हम इतने ताकतवर हैं; हम ये हैं; हम वो हैं। मतलब कि कुछ बुरा नहीं होगा…” सब लोग अलग सच्चाई में हैं, सब। अब अलग सच्चाई को देखा — काश! हम देख पाते! क्योंकि यह सच्चाई इतनी अच्छी नहीं है। कुछ अलग सच्चाई ही अच्छी थी। इस बात से इंसानों की मदद कैसे होगी ? इसलिए मैं लोगों से कहता रहता हूं, लोग हमेशा मुझसे कहते थे "यह क्या है; इसका अर्थ बताएं ?" और मैं कहता था, “रुकिये, रुकिये, रुकिये, रुकिये, रुकिये, रुकिये, रुकिये आप एक इंसान हैं।” तुलनात्मक रूप से हमने सच में इस आधुनिक रूप में, यह आधुनिक व्यक्ति होने के नाते हमें ज्यादा समय नहीं हुआ है यहां पर। हमने अभी सबकुछ समझा भी नहीं है। हम अब भी पुरानी-सी दुनिया में रहते हैं और हम मतलब कि हम सोच सकते हैं कि इस आधुनिक 2020 में और इस तकनीकी के बीच रह रहे हैं, लेकिन सच्चाई है कि महिलाओं को आज भी हमारे समाज में बराबरी नहीं मिलती है और यह अकल्पनीय है।
ज्यादा समय पहले नहीं कुछ वर्षों पहले ही और मुझे यकीन है कि इंडिया जैसे देशों में यह अब तक चल रहा होगा कि अलग समुदाय में आप शादी नहीं कर सकते। इसका प्यार से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन यह है कि "नहीं, नहीं यह व्यक्ति इससे शादी नहीं कर सकता।" हालांकि समाज काफी बदल गया है लेकिन अब भी काफी बदलाव बाकी हैं और एलजीबीटी समुदाय के लोग हैं — जिन्हें इतनी नफरत का सामना करना पड़ता है और हम उन्हें जैसे वो हैं, उन्हें वैसे अपनाते नहीं, इंसान की तरह भी नहीं अपनाते। और समाज अब भी इतना ज्यादा बंटा हुआ है — बुरा लगता है। मुझे यह बात पता है कि टीवी पर ऐसे शोज़ हैं जहां पर लोगों द्वारा जमाखोरी को दिखाया जाता है और उनके पास इतना कुछ है कि यदि आप उनके कमरों में जाएंगे तो जगह भी नहीं मिलेगी। लेकिन आपको क्या लगता है बड़ी कंपनियां क्या कर रही हैं ? और जब वह जमा करती हैं (पैसे इकट्ठा करती हैं), उनकी तारीफ होती है, "आपने तो बहुत अच्छा किया!" लेकिन वह तो बस पैसे को जमा कर रहे हैं। जब, “लेकिन अच्छा, देखिए, देखिए कैसे वह इंसान इतना कामयाब हो गया।" शायद उस इंसान ने, उनके पास क्या है, उन्होंने भी किसी से लिया ही होगा।
जब भ्रष्टाचार होता है तब ऐसा ही होता है। किसी गरीब के मुंह से छीनकर खाना ले लेते हैं। हम जितना उगाते हैं, उससे कहीं ज्यादा बर्बाद कर देते हैं। यह है वह समाज जिसकी रचना हमने अपने लिए की है ? अब वक्त है सच में, सोचने का इस सब पर, यह समझना कि “हमें क्या चाहिए ? क्या हम इस धरती पर बंटकर रहना चाहते हैं या फिर हम एक साथ मिलकर रहना चाहते हैं ? क्या हम ऐसी दुनिया चाहते हैं जिसमें सभी लोग सुरक्षित महसूस कर पायें या हम ऐसी दुनिया चाहते हैं जहां पर सबको खतरा और खतरा और खतरा और खतरा ही महसूस होता रहे ?”
इन सवालों के जवाब मेरे दोस्तों आपके हृदय में है और सभी इंसानों के हृदय में है। यह कोई अनोखे विचार नहीं हैं जो 2020 में अभी-अभी दिमाग में आए हैं। यह वो बातें हैं और विचार हैं जो बहुत लंबे समय से रहे हैं। दरअसल तब से जब से दुनिया में समाज रहे हैं। आजाद होने की इच्छा; आगे बढ़ने की इच्छा; बेहतर होने की इच्छा और एकता लाने की इच्छा। और पूरी मानवता की बेहतरी के लिए काम करते रहना। जिस दुनिया का निर्माण हम आज करेंगे, वही दुनिया कल भी रहेगी और उसके बाद भी और उसके बाद भी और उसके बाद भी। चाहे आपको पसंद हो या नहीं, आप ही कल के रचयिता हैं। लेकिन मेरी मानिए आप कभी यह नहीं समझ पाएंगे कि भविष्य का अर्थ क्या है अगर आप वर्तमान को नहीं समझते। आप कल का मूल्य नहीं जान पाएंगे अगर आप आज का मूल्य नहीं जान पाए। अगर वर्तमान आपके लिए रहस्यमय है तो भविष्य भी रहस्यमय ही रहेगा।
इसलिए यही समय है; यह समय है एक कदम लेने का, भीतर देखने का, अनिश्चितता के बारे में सोचने का नहीं। लेकिन निश्चितता के बारे में सोचना जो हम ला सकते हैं। एकजुट होने का समय है जैसे हम पहले कभी नहीं थे। और बाकी पूरी दुनिया के साथ होने से ज्यादा जरूरी होगा कि हम अपने आपके साथ जुड़ें। हम दो नहीं हो सकते, हम तीन नहीं हो सकते, चार नहीं हो सकते — हमें एक होना है अपने आप में। हमें जानना है कि हम कौन हैं; हमें समझना है कि हम कौन हैं ताकि हम आगे बढ़े और सभी के लिए एक बेहतर दुनिया बना पाएं। ताकि हम समझें — हम समझें वह मतलब “मानवता का, मानवता”, करुणा पूरी दुनिया के सभी लोगों के लिए — सबके लिए।
तो आप सभी का धन्यवाद! मैं आपसे फिर बात करूंगा। उम्मीद है आपको कुछ सोचेंगे इस बारे में। और सबसे जरूरी सुरक्षित रहें; ठीक रहें और खुश रहें।