प्रेम रावत जी:
मेरे सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार! आज के दिन मैं आपको एक भजन पढ़कर सुनाना चाहता हूँ, जो कबीरदास जी का भजन है —
चंदा झलकै यहि घट माहीं, अंधी आँखन सूझे नाहीं ॥
इसी घट में वह चन्द्रमा झलकता है, मतलब प्रकाश का जो स्रोत है वह आपके अंदर है। पर, क्योंकि ये आँखें अंधी हैं आपको दिखाई नहीं दे रहा है।
यहि घट चंदा यहि घट सूर, यहि घट गाजै अनहद तूर, अनहद तूर ॥
इसी घट में चंदा है, इसी घट में सूरज है और इसी घट में बज रहा है वो, बिना बजाये जो बजता है। बजाने वाला कौन है उसको ? कोई गायक नहीं है, कोई म्यूज़िशियन (musician) नहीं है, परंतु वह बज रहा है।
यहि घट बाजै तबल-निशान, बहिरा शब्द सुने नहि कान ॥
क्योंकि कान जो हैं वो बहरे हैं, उनको सुनाई नहीं दे रहा है।
जब लग मेरी मेरी करै, तब लग काज एकौ नहि सरै ॥
जबतक मेरा-मेरी करते रहोगे, तबतक कुछ बनेगा नहीं। कुछ काम नहीं होगा। मेरा-मेरी, यह मेरा है, मेरा है, यह मेरा है, यह मेरा है, मेरे को क्या होगा, मेरे से क्या होगा, मेरे को क्या होगा इस परिस्थिति में! यह जो मेरा-मेरी है, यह सिर्फ चीजों को लेकर ही नहीं है, परन्तु परिस्थितियों को लेकर भी है। और इस परिस्थिति में सब अपने बारे में सोच रहे हैं, सब अपने बारे में सोच रहे हैं कि मेरा क्या होगा, मेरा क्या होगा, मेरा क्या होगा, मेरा क्या होगा! परन्तु कोई, जो सारा समाज है उसके बारे में कोई नहीं सोच रहा है। क्योंकि जबतक यह मेरा-मेरी रहेगी, तो एक भी काम बनेगा नहीं।
जब मेरी ममता मर जाय, तब प्रभु काज सँवारै आय॥
जब यह ममता खत्म हो जाती है, तब उस दया से, प्रभु की कृपा से कार्य सुलझ जाते हैं।
ज्ञान के कारन करम कमाय,
ज्ञान को पाने के लिए लोग कोशिश करते है, कर्म कमाते हैं।
होय ज्ञान तब करम नसाय ॥
जबतक ज्ञान नहीं होगा तबतक कर्म खत्म नहीं होंगें, इनका जो फल है वह खत्म नहीं होगा।
फल कारन फूलै बनराय,
फल कारन — फल के कारण जंगल में, पेड़ों में फूल आता है।
फल लागै पर फूल सुखाय ॥
जब फल लगने लगता है तो जो फूल हैं उसको जाना पड़ता है। इसी प्रकार समझें कि —
मृगा हास कस्तूरी बास,
जैसे मृग के नाभि में कस्तूरी है और वह सारे जंगल में खोजता रहता है।
आप न खोजै खोजै घास ॥
घास को सूंघता है।
तो इसका तुक क्या हुआ और मैंने क्यों ये पढ़कर सुनाया आपको यह भजन ? क्योंकि मैंने जो नई किताब लिखी है, उसमें भी यह भजन मैंने दिया है इसका ट्रांसलेशन अंग्रजी में।
मतलब है कि, इसी घट के अंदर, तुम्हारे अंदर ये सारी सुन्दर-सुन्दर चीजें झलक रहीं हैं। और इसका तुम आनंद उठा सकते हो। बाहर मत खोजो, क्योंकि लोग जब इन परिस्थितियों में दुखी होते हैं, तो इनका यही है कि यह कब खत्म होगा, यह कब खत्म होगा ? कभी भी खत्म हो, हमको तो यही आशा है कि जल्दी ही खत्म होगा। परंतु खत्म कभी भी हो, जब भी हो, आप सुरक्षित रहें यह सबसे बड़ी बात है। और जैसे मैं पहले कह रहा था — "न किसी को ये बीमारी दो; न किसी से ये बीमारी लो!" अगर यह समझ में आ गया तो बहुत अच्छा है।
तो लोगों का मन जो है यह विचलित होता है और यह सोचता है, "अब क्या होगा, अब क्या होगा, अब क्या होगा, मेरे साथ क्या होगा, मेरा क्या होगा, मेरा क्या होगा!" जब तक यह चलता रहेगा, तब तक कोई काम नहीं बनेगा। और जब मनुष्य यह सोचने लगेगा "ठीक है, जो भी परिस्थिति है, इसमें मैं आगे कैसे चलूँ! मेरा उद्धार — इस परिस्थिति में भी मेरा उद्धार हो!"
तो समझने की बात है, देखने की बात है कि क्या उस परमांनद का अनुभव इस परिस्थिति में भी किया जा सकता है या नहीं ? इसका उत्तर स्पष्ट है कि बिलकुल! इस परिस्थिति में भी वह चल रहा है। आपके अंदर वह चांद चमकरहा है, वह सूरज प्रकाश दे रहा है। अगर आप उस बात को स्वीकार कर पाए अपने जिंदगी के अंदर, तो फिर आगे चलने के लिए आपको मजबूर नहीं होना पड़ेगा, दुखी नहीं होना पड़ेगा और आप आनंद से, इस समय में भी आनंद से आप इसको गुजार सकते हैं।
परिवार के साथ अगर आप आइसोलेटेड हैं, तो सभी मिल-जुलकर के इस समय का पूरा-पूरा फायदा उठाएं। कैसे ?
द्वेष से नहीं, क्लेश से नहीं, एक-दूसरे की — "तूने ये कर दिया, तूने ये कर दिया, तूने ये कर दिया, तूने ये कर दिया!" इससे नहीं। एक दूसरे के अंदर जो अच्छाई है उसको बाहर लायें कि तुम्हारे में क्या अच्छाई है, तुम क्या कर सकते हो ? ये नहीं है कि दूसरे की त्रुटियां देखना, दूसरे की मिस्टेक्स (mistakes) को देखना। नहीं! उसकी अच्छाइयों को देखना। यह भी तो समय है और इस समय का पूरा-पूरा फायदा आप उठा सकते हैं।
अपने आपको जानो, यह मैं हमेशा कहता आया हूँ — "अपने आपको जानो, अपने आपको समझो कि आप कौन हैं।" यह मौका है, यह मौका है। जब और चीजें नहीं हो रहीं हैं, तो आप अपने अंदर जाकर के इस चीज का अनुभव कीजिये कि आप कौन हैं । और उससे जो आपको राहत मिलेगी। बात तो राहत की है, अब क्या राहत मिलेगी ? कैसी राहत मिलेगी ? जब आदमी अपने आपको समझने लगता है और वह जानने लगता है कि मेरे अंदर स्थित जो चीज है, वह अनमोल है। मैं एक उदाहरण देता हूँ आपको —
एक डिब्बा है। डिब्बे की क्या कीमत है ? 100 रूपए लगभग! परंतु उस डिब्बे के अंदर एक हीरे की अंगूठी है। और उस हीरे की अंगूठी की कीमत दो करोड़ रूपए है। डिब्बे की कीमत 100 रूपए, हीरे की अंगूठी की कीमत दो करोड़। जबतक वह अंगूठी उस डिब्बे में है, तबतक उस डिब्बे की कीमत क्या है ? आप सोचिये, तबतक उस डिब्बे की कीमत क्या है ? उस डिब्बे की कीमत तबतक वही है, जो उसमें है। जो वह — जबतक वह अंगूठी उस डिब्बे में है, तो उस डिब्बे की कीमत दो करोड़ है। और एक सौ रूपए, जो उसकी कीमत है असली में। क्यों?
क्योंकि अगर किसी को अंगूठी चाहिए और किसको खोजेगा वह ? कहाँ थी ? उस डिब्बे में थी। डिब्बे को खोजो। अंगूठी को नहीं, डिब्बे को खोजो। हरा रंग का डिब्बा है या लाल रंग का डिब्बा है उसको खोजो। और जब वह मिल जायेगा तो वह अंगूठी भी मिल जायेगी। परन्तु जब उसमें से अंगूठी निकल जाती है तब उस डिब्बे की कीमत क्या है ? तब उस डिब्बे की कीमत सिर्फ सौ रूपए है। जबतक आपके अंदर वो स्थित चीज है, जिसके कारण यह स्वांस आ रहा है, जा रहा है, तबतक आपकी भी कीमत वही है, जितनी कीमत है उस चीज की जो अनमोल है।
तबतक आपकी कीमत भी अनमोल है। पर, जिस दिन वह चीज निकल जायेगी, उस दिन आपकी क्या कीमत रह जाएगी ? यह खाल की खाल; ये हड्डियां की हड्डियां; ये बाल के बाल; ये दांत के दांत; ये खून का खून, ये सब। कोई कीमत नहीं रह जाती है इसकी।
सबसे बड़ी देखने की चीज है, आप जिंदा हैं और जबतक आप जिंदा हैं, तबतक आपकी कीमत वही है, अनमोल! जिसका कोई मोल नहीं। इस बात को समझने के लिए आपको हृदय रूपी दर्पण की जरूरत है। हृदय रूपी मिरर (mirror) की जरूरत है। हृदय रूपी आईने की जरूरत है ताकि आप देख सकें उस आईने में कि आप असलियत में क्या हैं ? संत-महात्माओं ने इसी बात पर ध्यान दिया है। इसीलिए यह कबीरदास जी का भजन —
चंदा झलकै यहि घट माहीं, अंधी आँखन सूझे नाहीं
यहि घट चंदा यहि घट सूर - सूरज
यहि घट गाजै अनहद तूर।।
यही सबकुछ हो रहा है और आपको होश-हवाश नहीं है, आपको यह होश नहीं है कि ये सबकुछ हो रहा है। आप बैठे हैं, अपने कमरे में बैठे हैं या अपने लिविंग रूम में बैठे हैं या अपने बैडरूम में बैठे हैं या कहीं भी बैठे हैं और आपके दिमाग में यह हो रहा है कि "अब क्या होगा या मैं बोर हो गया।" लोग बोर हो जाते हैं! अब अगर किसी के पास टेलीविज़न नहीं है, किसी के पास ये नहीं है, तो चुपचाप बैठे हुए हैं, "कैसे होगा; अब क्या होगा; क्या करेंगे; क्या नहीं करेंगे। बाप रे बाप! उफ्फ! ये तो बहुत हो गया।"
बोर पड़े हुए हैं। बोर्डम, (boredom) बोर्डम आ जाती है और बोर्डम न आये तो ततततततततततत... फ़ोन के ऊपर लगे रहते हैं, टेलीविज़न के ऊपर लगे रहते हैं। कहीं न कहीं, कुछ न कुछ मनोरंजन के लिए, उस मन की ख़ुशी के लिए लगे रहते हैं, जिस मन को आप खुश नहीं कर सकते। वो मन कभी खुश होता नहीं है। उसका तो यह है कि कोई चीज उसको चाहिए वह मिल गयी उसके बाद वह दूसरी चीज चाहेगा। तो लोग बोर हो जाते हैं।
पर संत-महात्मा क्या कह रहे हैं, बोर, बोर —
इस घट झलकै वही चंदा — चंदा भी इसी घट में झलक रहा है, सूरज भी और चांद भी इसी घट में है और इसी घट में बज रहा है अनहद तूर — बिना बजाये जो बज रहा है। इसी घट में है वह ढोल, इसी घट में शब्द सुने नहि कान। इसी घट में सबकुछ हो रहा है। परन्तु आपको हवा ही नहीं है, तो बोर्डम अपने आप होगी। और उसके लिए जिसको यह मालूम है कि यह मेरे अंदर हो रहा है उसको यह भी मालूम है कि मेरे को बोर होने की जरूरत नहीं है। मेरे अंदर तो क्या-क्या नहीं है!
तो यह बात समझें और जैसे मैंने पहले भी कहा, यह हिम्मत से काम लेने का समय है। यह हिम्मत से और सब्र से काम लेने का समय है। सब्र रखिये, क्यों रखिये ? इसलिए रखिये सब्र, क्योंकि यह भी खत्म होगा। एक समय था यह नहीं था, एक समय है जब यह है, एक समय होगा जब यह नहीं होगा। ठीक है, पर सब्र रखिये!
कैसे बीते दिन ? हिम्मत से, हिम्मत से बीते दिन। आनंद से बीते दिन! मैं यह कह रहा हूँ आपसे, मैं आपको सिर्फ यह नहीं कह रहा हूँ कि "भाई! किसी न किसी तरीके से इस दिन को बिता दो। ना! मैं यह कह रहा हूँ आपसे कि ये दिन भी आपका आनंद में बीतना चाहिए, क्योंकि यह आपकी क्षमता है।" चाहे कुछ भी हो, यह तो मैं आपको कह रहा हूँ। आप जेल में नहीं हैं, आप अपने घर में हैं।
जब मैं जेलों में जाता हूँ, लोगों से बात करता हूँ। उनको भी यही मेरे को समझाना पड़ता है कि भाई! एक तो यह बाहर की दुनिया है और एक तुम्हारे अंदर की दुनिया है। तुम अपने अंदर की दुनिया को समझो। बाहर की दुनिया तो तुमने समझ ली और यह भी समझो कि बाहर की दुनिया तुमको वो आनंद, स्थायी आनंद नहीं दे सकती है। जो आनंद है, अगर फिल्म भी देखने को जाओ, जबतक उस फिल्म हॉल में बैठे हो, फिल्म देख रहे हो तबतक आनंद ही आनंद है। हो सकता है कि आधे घंटे के लिए, पंद्रह मिनट के लिए फिल्म देखने के बाद भी तुमको अच्छा लगे। परंतु उसकी भी एक सीमा है, उसके बाद भूलना शुरू कर जाओगे। परन्तु जो अंदर का आनंद है, तुम जहां भी जाओ, कैसे भी रहो, कुछ भी होता रहे, वह आनंद हमेशा बना हुआ है। इसीलिए अपने आपको समझने की कितनी जरूरत है। क्योंकि इतनी बड़ी चीज, इतनी बड़ी बात, मनुष्य इसको खो रहा है।
तो चाहे कोई भी परिस्थिति है, मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि यह परिस्थिति अच्छी है, नहीं अच्छी नहीं है। परंतु फिर भी मेरा लक्ष्य क्या है ? क्या मैं इस परिस्थिति में फंसकर दुखी होना चाहता हूँ या इस परिस्थिति में रहते हुए भी मैं सुखी होना चाहता हूं। यही समझने की बात है, यही समझने की बात है! असली चीज क्या है ? मैं असल में क्या चाहता हूँ ? अगर यह बात आपकी समझ में आ गयी कि आप उस चीज को जो आप सचमुच में चाहते हैं, वह अभी भी आपके अंदर है। तो फिर आपका दृष्टिकोण बदल सकता है, इन सारी परिस्थितियों के बारे में।
तो सभी लोगों को मेरा नमस्कार!
प्रेम रावत जी:v
मेरे श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
आज मैं चर्चा करूंगा उन चीजों की, क्योंकि काफी लोगों ने प्रश्न भेजें हैं। और अभी उन क्वेश्चनस को, उन प्रश्नों को असेम्ब्ल (assemble) किया जा रहा है, परन्तु मैंने देखा कि काफी लोग अभी भी घबराये हुए हैं इस कोरोना वायरस की वजह से। और कई लोग इस बात में भ्रमित हैं कि उन्होनें बहुत कुछ सुना है, "ऐसा करना चाहिए, ऐसा करना चाहिए, ऐसा करना चाहिए; ये करना चाहिए; वो करना चाहिए!" तो मैं डॉक्टर तो हूँ नहीं, परन्तु मैं इस बात को, जो मैंने समझी है और मैंने काफी डॉक्टरों से भी बात की है।
तो इस समय में अगर हम कुछ कर सकें तो वो दो चीजों का हम ध्यान दें। और वो है — "एक तो किसी को यह बीमारी दें ना और किसी से ये बीमारी लें ना!" बस! ना दो, ना लो! तो वह कैसे संभव होगी ?
वह तभी संभव होगी जब आप और लोगों के पास आएंगे नहीं, जाएंगे नहीं और आइसोलेशन में रहेंगे। हाथ धोइये, शरीर को धोइये, साफ रहिये और घबराने की कोई बात नहीं है। घबराने से कोई चीज सिद्ध नहीं होती है। घबराने से कोई चीज ठीक नहीं होती है। घबराने से कोई चीज अच्छी नहीं होती है। यह घबराने का समय नहीं है। यह तो सब्र रखने का समय है। सब्र रखिये अपने होश-हवाश से और जो अंदर से आपकी ताकत है, जिसे करेज़ (courage) कहते हैं, जिसे हिम्मत कहते हैं, यह उससे काम लेने की जरूरत है। उन चीजों की जरूरत है। घबराने से कुछ नहीं होगा, डरने से कुछ नहीं होगा। क्या कर रहे हैं आप — अब मैं आपको एक — आज सवेरे मैं जब सोच रहा था इसके बारे में, तो मैंने एक उदाहरण सोच
मैंने देखा है ये, कहीं अगर चूहा दिखाई दे जाये घर में, तो लोग क्या करते हैं ? उस चूहे से दूर भागते हैं या तो कोई मेज़ है उस पर चढ़ जाएंगे या कुर्सी है उस पर चढ़ जायेंगे। उससे दूर भागेंगे। बस यही करना है! दूर भागना है ताकि वो बीमारी आप तक ना पहुंचें। यह सबसे साधारण बात है और इस बात का ध्यान रहे कि आपके अंदर वह ताकत है, जिससे कि आप इन परिस्थितियों में, इस समय में अच्छी तरीके से, आनंद से यह समय गुजार सकते हैं।
देखिये सब्र की बात है! यह भी एक दिन नहीं रहेगी। सब्र की बात है! सब्र करना है, यह नहीं है कि “अब क्या होगा, अब क्या होगा, अब क्या होगा, अब क्या होगा!" क्योंकि मन है —
मन के बहुत तरंग हैं, छिन छिन बदले सोय।
एक ही रंग में जो रहे, ऐसा बिरला कोय।।
इधर-उधर की बातें नहीं, पर स्पष्ट बात। जो समझ में आये, जिससे कि फिर हम अपने जीवन के अंदर उस आनंद को न भूलें। ठीक है, परिस्थिति ठीक नहीं है, बहुत कुछ हो रहा है। फिर भी हृदय को तो आनंद चाहिए। और वह आनंद उस हृदय को अब भी मिल सकता है। वह आपके अंदर है, वह बाहर से नहीं आएगा, वह आपके अंदर है, उसका आप आनंद लें। उसको आप खोजें कि, "कहाँ है वो चीज, जो आपके अंदर है ?"
जिन लोगों को यह ज्ञान है, उनलोगों के लिए तो बड़ी सरल बात है। उनको मालूम है कि वह चीज कहाँ है! जैसे मैंने पहले भी कहा है कि "अपने आपको जानो, यह बात बहुत जरूरी है। अपने आपको समझो, यह बात बहुत जरूरी है।" क्योंकि अगर ये चीजें हम नहीं समझ सके इस जीवन के अंदर तो कब समझेंगे। जो कुछ भी हो रहा है, यह तो एक मौका है। इसका भी आप फायदा उठा सकते हैं। अगर आप चाहें तो इसका भी आप फायदा उठा सकते हैं। ये परिस्थितियां अच्छी नहीं हैं। बाहर जो यह परिस्थिति है, वह अच्छी नहीं है। परन्तु अंदर जो परिस्थिति है, वह तो अच्छी है। तो अगर आपको बाहर नहीं पसंद है तो आप अन्तर्मुख होइये। अंदर की तरफ जाइये, अपने हृदय की तरफ जाइये।
जो बातें हमको संत-महात्माओं ने कितने ही वर्षों से, कितने ही हजारों-हजारों वर्षों से वो बात कही है कि —
नर तन भव वारिधि कहुं बेरो।
इस भव सागर से पार उतरने का यह साधन है।
सनमुख मरुत अनुग्रह मेरो।।
इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है।
तो क्या आपके ऊपर यह कृपा नहीं हो रही है ? यह स्वांस जो आपके अंदर आ रहा है, जा रहा है, क्या उस परमेश्वर की, जो आशीर्वाद है वह आपके ऊपर नहीं आ रहा है ? आ रहा है! पर इस बात को आप समझिये। अपने आपको इन परिस्थितयों के कारण, यह कहना कि मेरा यह दुर्भाग्य है, ये है, वो है। ये बातें सब अच्छी नहीं हैं। इनकी जरूरत नहीं है। जरूरत है उस चीज की, कि वो दिया, जिस दीये से मेरे अंदर का अंधकार मिट सकता है, वह दिया मेरे अंदर है। उसको जलाना बहुत जरूरी है। जब वह जलेगा तो उसके प्रकाश से जो अँधेरा है वो खतम होगा। उसका नाश होगा। जब अँधेरे का नाश होगा तो क्या दिखाई देगा? जो स्पष्ट है, जो असली है। यह असली नहीं है।
2019 में अप्रैल में या मार्च में किसी को ख्याल भी नहीं था इसके बारे में कि कोरोना वायरस क्या होती है। उसके बाद फिर जब अंत का समय आया 2019 का, तब लोगों को खबर पड़ी कि "हां! ये चीज है, अब ये करना चाहिए, वो करना चाहिए। इससे इतने लोग मर गए!"
जब चाइना में लोग मर रहे थे तब फिर किसी को हिन्दुस्तान में यह डर भी नहीं था कि कुछ होगा। सब ठीक था। पर धीरे-धीरे-धीरे करके जब यह सारे संसार में फैलने लगा, तो लोगों को डर लगने लगा। पर डर की बात नहीं है। कितने ही हजारों-हजार लोग जिनको यह वायरस लगी, वो ठीक हो गए, वो ठीक हो गए। अब सारे नंबर, बहुत बड़े हैं नंबर, परंतु वो ठीक हो गए। तो सबसे बड़ी बात यही है कि हम अपने जीवन में क्या चाहते हैं ? कोई भी परिस्थिति आये, अच्छी से अच्छी परिस्थिति आये, खराब से खराब परिस्थिति आये। ऐसी भी परिस्थिति आये जिसमें डरने की बात हो, फिर भी मनुष्य डरे नहीं, हिम्मत से काम ले और वो हिम्मत की जो एनर्ज़ी (Energy ) है वह कहाँ से आएगी ? वह आपके घट से आएगी! वह आपके अंदर से आएगी।
आज यही चीजें मैं लोगों को बताता हूँ कि "भाई! बाहर की दुनिया एक है, अंदर की दुनिया एक है।" इसमें दो बातों को समझो — जो बाहर की दुनिया है यह बाहर की दुनिया है। इसमें सबकुछ बदलता रहता है। कोई चीज इस बाहर की दुनिया में स्थायी नहीं है। कोई कुछ करता है, कोई कुछ करता है, कोई कुछ करता है, कोई कुछ करता है।
परंतु यह अंदर की जो दुनिया है, जो अंदर की दुनिया है, यह स्थायी है। इसमें ये नहीं हो रहा है, वो नहीं हो रहा है, वो — इसमें एक चीज हो रही है। क्या हो रहा है कि —
सनमुख मरुत अनुग्रह मेरो।।
इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है।
अब लोग तो भागते हैं, "हमको ये कर दो, वो कर दो, वो कर दो।" उटपटांग बातें — "वहां बारह कुओं से पानी पी लो, ये कर लो, वो कर लो, तो तुम्हारा ये हो जायेगा, तुम्हारा वो हो जायेगा।"
लोगों को बेवकूफ बनाने की बात है। परन्तु तुम्हारे अंदर हर एक स्वांस में यह प्रभु की कृपा है। इसके बारे में कोई बात नहीं करना चाहता। इसके बारे में मैं बात करता हूँ। क्योंकि यह असली चीज है। इसके होने से आप हो, इसके न होने से आप नहीं होंगे।
जब आप पैदा हुए, तो सबसे बड़ी चीज क्या थी कि आप स्वांस ले रहे हो या नहीं ? उस समय जब आप आये बाहर तो ये नहीं था कि यह लड़का है या लड़की है। ना! स्वांस ले रहा है या नहीं ले रहा है ? यह जो बच्चा आया है, यह स्वांस ले रहा है या नहीं ले रहा है ? और जब अंत का समय आता है, तब फिर स्वांस पर ही बात आती है कि स्वांस ले रहा है या नहीं ले रहा है ? नहीं ले रहा है — तो गया! ले रहा है — तो ठीक है!
जब आप बच्चे थे, जब आप आये — स्वांस ले रहा है या नहीं ले रहा है यह बच्चा ? ले रहा है, तो ठीक है। नहीं ले रहा है, तो गड़बड़ है। और जब स्वांस ली, तब आप जिंदा हुए। जब सांस रुकी, आप गए! इसी के लिए कहा है कि "यही है मेरी कृपा।" और जब तक यह आ रहा है, जा रहा है आप में, तो आपको डरने की क्या जरूरत है। जब तक आप जिंदा हैं आपको डरने की कोई जरूरत नहीं है। डर से कुछ नहीं होगा। जीते जी आनंद से अपनी दुनिया, अपने जीवन को बितायें।
समझें कि यह कितनी अच्छी चीज आपको मिली हुई है। यह जो जीवन है, यह ज्ञान है, अपने आपको जानो। सचेत होकर के इस जीवन को बिताओ और हृदय में आभार को महसूस करो। उसका आनंद लो। नाम ही है सच्चिदानंद! ‘सच’ सब चीजों का आनंद के लिए, आनंद के लिए, आनंद के लिए, आनंद के लिए! और समय आएगा, यह भी चला जाएगा, यह कोरोना वायरस, यह डर, सब, सब नॉर्मल होगा। परंतु यह जो समय है, इसमें आप डर के इसको गवां सकते हैं, फेंक सकते हैं ?
पहचान करने की बात है। हर दिन जो आप बिता रहे हैं, आप अपने साथ बिता रहे हैं। अब लोगों के साथ यह भी दिक्कत है कि अपने रिश्तेदारों के साथ, अपनी वाइफ के साथ या अपनी मिसेज़ के साथ या अपने पति के साथ या अपनी बहन के साथ या अपने भाई के साथ या अपने बेटों के साथ या अपने पापा के साथ या अपनी मम्मी के साथ लोग समय बिता रहे हैं। अरे भई! इनसे तुम प्यार करते हो। इनसे नफरत कब से हो गयी चालू ? इनसे तुम प्यार करते हो। समझो इस बात को कि इनसे तुम प्यार करते हो! ये तुम्हारे ही हिस्से हैं। इनसे नफरत करके क्या मिलेगा तुमको ? जो कुछ भी है अगर तुम उनसे नफरत करते हो तो यह नफरत तुम्हारे अंदर से आ रही है।
तो अगर समझ में आया तो सबके साथ मिलकर-जुलकर आनंद से यह समय बिताया जाए। अगर बिता सके आनंद से तो वाह-वाह है। यह समय भी आसानी से बीत जाएगा। सब्र करो! यह सहनशक्ति लोगों में अब रह नहीं गयी है। सब्र करना लोगों को आता नहीं है और यह सब्र करने का एक मौका है। सीखने का एक मौका है। सब्र से, धीरज से, हिम्मत से काम लेने का यह समय है। और वही बात, चाहे यह हो या न हो आनंद लेना है। और जिनके पास यह आनंद लेने की विधि है, वह आनंद लें। जिनके पास नहीं है वो जानें कि जिस आनंद की उनको खोज है, वह अभी भी उनके अंदर है और रहेगा। जब तक यह स्वांस आ रहा है, जा रहा है, तब तक यह आनंद तुम्हारे अंदर है। आखिरी स्वांस तक तुम्हारे अंदर है। अगर कुछ न भी हो तो इस बात को समझो और अपने जीवन को सफल बनाओ।
तो सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
प्रेम रावत जी:
मेरे श्रोताओं को मेरा नमस्कार!
इस माहौल में किस चीज के बारे में बात की जाए, तो ध्यान आता है — तो एक बात तो स्पष्ट है कि इस कोरोना वायरस से पहले लोगों का मन उनको परेशान करता था। और आज यह कोरोना वायरस है, लॉकडाउन है, ये सारी चीजें हैं और यह मन सबसे ज्यादा लोगों को परेशान करता है। तो एक दोहा है कि —
कुंभ का बाँधा जल रहे, पर जल बिन कुंभ न होय,
ज्ञान का बाँधा मन रहे, पर गुरु बिन ज्ञान न होय।
समझिये कि जो कुंभ है, जो मटका है, उसमें एक क्षमता है और वह क्षमता यह है कि वह बड़ी आसानी से जल को रख सकता है। जल इधर-उधर भागेगा नहीं, जो मटके में रहेगा वह मटके में रहेगा। परंतु बिना उस जल के वह मटका बन नहीं सकता, वह मटका तैयार नहीं हो सकता। उसमें — उससे पहले वह क्या है ? उससे पहले वह मिट्टी है, कुछ नहीं है। अगर उसमें जल डालें आप तो वह जल को रखेगा नहीं बल्कि गाड़ा बन जायेगा, कीचड़ बन जायेगा। और जब कुम्हार उस मिटटी को लेगा, उसमें जल मिलाएगा, पानी मिलाएगा; उसको मटका का आकार देगा, फिर उसको पकायेगा वो, तो अपने आप उसमें एक क्षमता आएगी कि वह उस जल को रख सके। इसी प्रकार यह उदाहरण दिया है कि जो मन है, ज्ञान उस मन को बाँध सकता है — मैं बताऊंगा ज्ञान, जो मन बाँधने की बात है, क्या है। परंतु गुरु के बिना वह ज्ञान नहीं होता है, जो उस मन को बाँध ले।
तो आज हो क्या रहा है ? वही हो रहा है, कोई इधर भाग रहा है; कोई उधर भाग रहा है। कोई किसी चीज के बारे में सोच रहा है; कोई किसी चीज के बारे में सोच रहा है। कोई यह सोच रहा है कि — मेरे साथ क्या होगा, मेरा क्या होगा; ये नहीं है मेरे पास; वो नहीं है मेरे पास। मैं जाऊँगा, क्या होगा — इस देश का क्या होगा; नेताओं का क्या होगा; पुलिस का क्या होगा। सब, सब लोग — मन जो है, कोई रोक नहीं है इसके लिए, यह भाग रहा है, भाग रहा है, भाग रहा है, भाग रहा है। कभी किधर भागता है; कभी किधर भागता है; कभी किधर भागता है।
सबसे बड़ी बात यह है कि इस मन के भागने में कोई समस्या है। तो अगर कोई समस्या है, तो सबसे बड़ी समस्या इस मन के भागने में यह है कि — यह मन लोगों को परेशान करता है, बिना बात के। अब जो होगा सो होगा, उसको तो कोई टाल नहीं सकता। पर लोगों को सब्र नहीं है कि देखें जो कहा जा रहा है, उसका पालन करें, आइसोलेट करें, घर में रहें, बाहर नहीं जाएँ। और कंटैमिनेशन जो होता है — अगर किसी को यह बीमारी है, कोरोना वायरस की या वायरस लगा हुआ है और वो जंप (jump) करे किसी पर तो अच्छी बात नहीं है।
तो साधारण सी बात है कि आप वहां मत जाइये जहां यह हो सकता है। संभव हो रहा है, कुछ समय लगेगा, बैठिये! परंतु यह मन ही है, जो बैठने नहीं देता है, घर में नहीं बैठने देता है, घर से बाहर भागता है कि — "तू भी आ जा, तू भी आ जा मेरे साथ, चलते हैं वहां चलें, वहां बड़ा मज़ा आता है, वहां बड़ा मज़ा आता है; वहां बड़ा मज़ा आता है!"
यह सबको मालूम है कि यह मन लोगों को सब जगह भगाता है और फिर जब भगाता है, भगाता है, भगाता है, जब दूर ले जाता है। तब किस चीज की याद आती है ? घर की याद आती है। और जब घर में बैठ जाते हैं तो किस चीज की याद आती है ? "वहां चलेंगे, वहां चलेंगे, वहां चलेंगे, वहां चलेंगे!"
स्पष्ट बात तो यह है कि यह परेशान करता है। तो "ज्ञान और मन का बाँधना", इसका मतलब क्या हुआ ?
जब मनुष्य अपने आपको जानता है, अपने आपको पहचानता है। जब वह ये जानता है कि मैं कहाँ हूँ और घर में अगर कोई — अगर आप बैठे हैं अपने घर में; अपने अपार्टमेंट में; अपने घर में, अपने मकान में और कोई दरवाजा खटखटाये, तो आपको अच्छी तरीके से मालूम है कि आपने नहीं खटखटाया है वो, तो कोई और है! कोई और दरवाजा खटखटा रहा है। अगर आपके घर में आपकी मिसेज़ हैं, आपकी घरवाली हैं और आप दोनों के दोनों बैठकर टेलीविज़न देख रहे हैं और दरवाज़ा कोई खटखटाये, तो आपको अच्छी तरीके से मालूम है कि आपने दरवाज़ा नहीं खटखटाया है और आपकी मिसेज़ ने दरवाज़ा नहीं खटखटाया है, तो कोई और है।
अच्छा! अगर आपका कोई बच्चा है, लड़का है और वह भी आपके साथ है और यही आपकी फैमिली है उस जगह — आप हैं; आपकी मिसेज़ हैं और आपका बच्चा है और आप सब बैठे हुए हैं एक ही कमरे में और कोई दरवाजा खटखटा रहा है तो आपको भी मालूम है कि आपने दरवाज़ा नहीं खटखटाया है; आपकी मिसेज़ ने दरवाज़ा नहीं खटखटाया है; आपके बच्चे ने दरवाज़ा नहीं खटखटाया है, तो कोई और होगा!
यह एक सिंपल सी बात है, बड़ी साधारण सी बात है, परंतु जब आप अपने आपको जानते ही नहीं है कि आप कहां हैं, कौन हैं, क्या हैं, तो जब कोई दरवाज़ा खटखटायेगा तो आपको यह भी नहीं मालूम है कि "यह मेरा कमरा है या किसी और का कमरा है।"
कौन खटखटा रहा है ? मैं तो नहीं खटखटा रहा या मैं खटखटा रहा हूँ ? अपने आपको जब मनुष्य जानता ही नहीं है, जब अपने आपको मनुष्य समझता ही नहीं है, तो जो कुछ भी उसके इर्द-गिर्द हो रहा है वह कैसे समझेगा कि क्या ठीक है उसके लिए, क्या गलत है उसके लिए। क्या अच्छा है उसके लिए; क्या बुरा है उसके लिए। समझ नहीं सकता। क्योंकि उसको मालूम ही नहीं है कि वह कौन है, क्या है ?
सबसे बड़ी चीज ज्ञान की यह है, इसे कहते हैं — आत्मज्ञान! और आत्मज्ञान की सबसे बड़ी चीज यह है कि "अपने आपको जानना! अपने आपको पहचानना!" और जबतक हम अपने आपको नहीं पहचानेंगे, अपने आपको नहीं समझ पाएंगे कि हम कौन हैं। तो ये सारी की सारी दुनिया जो हमारे इर्द-गिर्द है, इसका क्या तुक है, इसका क्या मतलब है हम नहीं समझ पाएंगे। और मन — यह भागेगा, यह भागेगा, कभी कहीं जाएगा, कभी कहीं जाएगा, कभी कहीं जाएगा! किसी चीज की और कोशिश करेगा, इच्छा करेगा और इन सारी चीजों में हम पड़े रहेंगे, जो हमारे पास है उसका भी हम आनंद नहीं ले पाएंगे, क्योंकि मन कहेगा — "नहीं और होना था!"
अब जैसे कोई गया, किसी ने सूट खरीदी या साड़ी खरीदी। तो खरीद कर ले तो आये, पर कहीं धक-धक होती है कि — "नहीं, उसके बगल में जो साड़ी थी, वो कहीं अच्छी न हो, इससे ज्यादा अच्छी न हो। तो ये सारी चीजें हमको परेशान कर रही हैं और इस समय जब यह कोविड19 है, जो यह कोरोना वायरस है। इससे जब लोग परेशान हो रहे हैं तो सबसे ज्यादा परेशानी इसकी यह नहीं है कि लोगों को बीमारी भी लग गयी। नहीं, अभी हो सकता है बीमारी लगी नहीं है और हो सकता है कि बीमारी लगे भी ना। परन्तु लोग परेशान हो रहे हैं, क्यों परेशान हो रहे हैं ? क्योंकि यह मन है और यह सब जगह भाग रहा है।
देखिये! आपके अंदर अच्छाई भी है; आपके अंदर बुराई भी है; आपके अंदर अंधेरा भी है; आपके अंदर दिया भी है; आपके अंदर उजाला भी है। और अगर आप चाहें तो उस उजाले को, उस दिये को जलाकर आप अपने हृदय में उजाला उत्पन्न कर सकते हैं। यह क्षमता आप में है। और इस क्षमता को यह समझिये कि यही आपकी असली ताकत है।
अपबल, तपबल और बाहुबल! अपबल — अपबल तो गया! तपबल — जो कुछ भी किया है लोगों ने, उसका बल — हां! मैंने ये किया, मैंने ये किया, मैंने ये किया, मैंने ये किया! मैं फलां-फलां देश का ये हूँ, मैं फलां-फलां देश का ये हूँ।
बात यह है कि कोरोना वायरस यह नहीं समझती हैं कि कितनी डिग्री आपके पीछे लगी हुई हैं। कितनी डिग्री आपकी दीवाल पर टंगी हुई हैं — उसको कोई मतलब नहीं है उनसे। आप जिंदा हैं और अगर उसको मौका मिला और अगर किसी कंटैमिनेशन के रूप से आप तक पहुंच गया वह कोरोना वायरस, तो फिर वह अपना काम कर देगा। उसके लिए यह नहीं है कि यह बहुत पहुंचे हुए संत हैं, यह बहुत पहुंचे हुए महात्मा हैं। यह बहुत पहुंचे हुए ये हैं; यह बहुत पहुंचे हुए वो हैं, उसके लिए कुछ नहीं।
तो अपबल, तपबल और बाहुबल! अब कोई बलि भी हो, वह कोरोना वायरस तो बहुत ही छोटा है, माइक्रोस्कोपिक है। आँख से देखेंगे तो दिखाई नहीं देगा। और वह इतना ताकतवर है कि बड़े-बड़े ताकतवरों को पलंग पर सुला दे, पलंग पर बिठा दे।
तो अपबल, तपबल और बाहुबल! और एक ही बल बचा है और वह बल है, चौथो बल है "राम!" वो अगर हमारे — वो हमारे पास है वह बल। जिस राम की बात हो रही है, वह राम —
एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट-घट में बैठा।
एक राम का जगत पसारा, एक राम जगत से न्यारा।।v
वह राम जो हमारे घट में बैठा है, उसको हम जान सकते हैं, उसको हम पहचान सकते हैं। उसकी मदद से, वही ज्ञान जो उस तक पहुंचा दे तो —
कुंभ का बाँधा जल रहे, पर जल बिन कुंभ न होय,
ज्ञान का बाँधा मन रहे, पर गुरु बिन ज्ञान न होय।
और इसलिए इस ज्ञान की जरूरत है, इसलिए इस ज्ञान की जरूरत है कि यह ज्ञान अगर हमको मिल जाए, तो फिर इस ज्ञान से हम अपने आपको पहचान सकेंगे, अपने आपको जान सकेंगे। और अगर हमने अपने आपको जान लिया तो फिर वाह ही वाह है।
चाहे कोई भी स्थिति आये, कोई भी स्थिति आये — अभी, मैं एक बात कहता हूँ सभी लोगों से — देखिये! अगर आप अपने आपको भाग्यशाली नहीं समझ रहे हैं और इन परिस्थितियों के कारण आप अपने आपको भाग्यशाली नहीं समझ रहे हैं, तो एक बात याद रखना, भगवान राम की बात — उस दिन उनका राज्याभिषेक होना था। दशरथ ने पहले ही अनाउंस (announce) कर दिया कि “अच्छा ठीक है अब समय आ गया है, अब राम का क्राउनिंग (crowning) होगा और राम राजा बनेंगे।” उस दिन सबलोग तैयारी में लगे हुए थे, सभी लोग खुश थे, सारे अयोध्या के वासी चाहते थे कि भगवान राम बनें। सभी चाहते थे। पर उस दिन, उस दिन क्या हुआ ?
एक तरफ तो वो खुशी है। सीता को भी खुशी थी। लक्ष्मण को भी खुशी थी। भगवान राम को भी खुशी थी। सारे अयोध्या वासियों को खुशी थी। दशरथ, जो इतने बलवान थे, 'दशरथ' — क्या ताकत थी उनकी, जैसे, नाम ही उनका था 'दशरथ' — दस रथों के बराबर उनकी ताकत थी, वह भी खुश थे। सभी लोग खुश थे कि आज भगवान राम का राज्याभिषेक होगा। पर उस दिन हुआ क्या ?
उस दिन उनको कहा गया कि, "तुम चौदह साल के लिए वनवास जाओ और तुम्हारा राज्याभिषेक नहीं होगा, भरत का होगा। भरत राजा बनेंगे और तुम चौदह साल के लिए वनवास जाओ।"
जिस दिन इतना खुशी का दिन हो और ऐसी खबर मिले। और यह हुआ, यह हुआ! और तुरंत छोड़कर भगवान राम ने कहा, "ठीक है! जैसा पिताजी चाहते हैं, मैं वैसा ही करूँगा।
सीता ने कहा - "मेरे से बात मत करो, मैं तो आउंगी तुम्हारे साथ। मैं तुम्हारी अर्धांगिनी हूँ, कैसे छोड़ दूँ।" वो जमाना अलग था, वो जमाना अलग था। और लक्ष्मण ने कहा, "मेरे को तो आना ही है तुम्हारे साथ।"
तो अगर अपने आपको तुम भाग्यशाली नहीं समझ रहे हो, समझ रहे हो कि "तुम्हारा दुर्भाग्य है, ये कैसे फँस गए तुम; ये क्या हो रहा है; ये क्या नहीं हो रहा है।"
तो जरा बैठो और सोचो! भगवान राम के बारे में सोचो कि "उनके साथ कैसा अनर्थ हुआ!" क्योंकि वो तो सबकुछ — मतलब उस दिन कितना हर्ष होगा। सभी लोगों को कितनी खुशी होगी। कितनी एक्साइटमेंट (excitement) जिसे कहते हैं और हुआ क्या — "चौदह साल के लिए वनवास जाओ और तुम्हारा राज्याभिषेक नहीं होगा भरत का होगा!"
तो भाई! विचारो, समझो और इस समय भी तुम्हारे अंदर एक दिया जल रहा है, उसके प्रकाश में; उस दिये के प्रकाश में, अँधेरा मत होने दो; उसको जलने दो और अपने जीवन में प्रकाश ही प्रकाश पाओ।
सभी लोगों को मेरा नमस्कार!
प्रेम रावत:
सबको नमस्कार! मैं प्रेम रावत!
तो पता है ये वीडियोज़ इसलिए बना रहा हूँ ताकि जैसे भी हो सके आप लोगों की मदद कर सकूँ। क्योंकि लॉकडाउन है, कोरोना वायरस लगभग हर जगह फैला हुआ है और मुझे लगा यह कमाल का मौका है विचारों के आदान-प्रदान का। कुछ विचार जो मेरे मन में आये।
और जब आप देखते हैं परिस्थिति को — मेरा मतलब यह कहना कि संकट है, मुझे नहीं लगता इसमें कुछ गलत होगा। और यह कोरोना वायरस तो बढ़ता और बढ़ता और बढ़ता ही जा रहा है। अब यह चाइना में जहां से शुरू हुआ, उन्होंने इस पर ज्यादा नियंत्रण पा लिया है। लेकिन, बाकी जगहों पर यह अब भी बढ़ता जा रहा है और यह कहाँ जाकर रुकेगा, यह कोई नहीं जानता।
मेरा मतलब है, मैं क्या कहूँ जिससे कि मदद मिलेगी ? तो मैं कल रात सोच रहा था, और वो एक बात जो मन में आयी। (सबसे पहले, दरअसल) वह थी कि यह पहली बार नहीं हो रहा है। इंसानियत पहले भी संकटों से जूझ चुकी है और जब आप सोचें ऐसी चीजें हुई हैं, जो बहुत ही बुरी थीं, पर किसी तरह हम इकट्ठा हुए और अपनी हिम्मत को समेटा।
इसलिए मैं यह बात कहना चाहता हूँ। बात यह नहीं कि हमारे सामने क्या है, पर फर्क़ इससे पड़ेगा कि सामना कैसे करेंगे हम इस चीज का — चाहे कुछ अच्छा हो, जो हमें तोहफे में मिला हो या कुछ बुरा, जैसे कि अब यह कोरोना वायरस।
एक तरह से दो चीजें हो रही हैं — एक है आपका जीवन, आपका अस्तित्व और यह एक तोहफा है जो आपको मिला है। और बिलकुल दूसरी चीज है, (जो भी छोड़िये अब, मैं उसमें नहीं पड़ने वाला हूँ), पर हमारे सामने यह वायरस है, लोग जो भी बातें कर रहे हैं और जैसी भी कहें — ये लोगों को डराता है और एक तरह से ये सही भी है, वो डर गए हैं।
पर, यह वह नहीं जो आपके सामने है। पर “आप कैसे सामना करेंगे इसका, आप कैसे संभालेंगे इसको!” तो सबसे पहले मेरे दिमाग में राम की कहानी आती है। उनके राज्याभिषेक के दिन सभी लोग बहुत खुश थे। वह खुश थे; उनकी पत्नी उत्साहित थीं; उनके पिता खुश थे; उनकी माँ खुश थीं और यह राज्याभिषेक होने ही वाला था।
अयोध्या के सभी निवासी (इंडिया में एक जगह), उन्हें बहुत ख़ुशी है कि राम राजा बनने वाले हैं। वह एक अच्छे राजा बनेंगे — वह बहुत पढ़े-लिखे हैं, नौजवान हैं!
उनके पास सबकुछ है और उसी दिन जब उन्हें राजा बनाया जाने वाला है, उनकी दूसरी माँ, उनकी सौतेली माँ, उन्हें कुछ वचन मिले थे जो इस्तेमाल नहीं हुए थे — तो उन्होंने (मुझे लगता है मैं ठीक कह रहा हूँ।) वह राजा के पास गयीं और कहा कि “देखिये, याद है वो वचन जो मुझे दिए गए थे ? अब मैं क्या चाहती हूँ कि इस राज्याभिषेक को रोक दीजिये। मैं चाहती हूँ कि आप राम को राजा नहीं, पर मेरे बेटे भरत को राजा बनाइए। और मैं चाहती हूँ कि आप राम को चौदह वर्षों के वनवास पर भेज दें — वनवास दे दें उसे ।”
फिर आप सोच सकते है, सभी इतना खुश हैं, फिर सभी लोग कहने लगे, “हां, यह अच्छा होने वाला है — और फिर अचानक से उस ख़ुशी और उत्सुकता के बीच में ही अचानक कुछ और हो जाता है।
इस बात से पिता को बहुत ठेस पहुंची, क्योंकि वह चाहते थे कि राम ही राजा बन जाएँ। राम की माता जी को यह अच्छा नहीं लगा। लेकिन राम ने जानकर क्या कहा ? सीता को यह कैसा लगा ? लक्ष्मण को कैसा लगा ? वह राजा की तीसरी पत्नी से बेटे थे; लक्ष्मण और शत्रुघ्न, ये जुड़वां, भरत कैकेयी से हुए थे और फिर राम थे सबसे बड़े, सबसे बड़े बेटे।
तो लक्ष्मण ने राम को कह दिया; "हम अलग नहीं होंगे! मैं आपके साथ ही आऊंगा चाहे अच्छा लगे या नहीं!" सीता जी ने कहा, "मैं आपकी पत्नी हूँ, मुझे कोई फर्क़ नहीं पड़ता। मेरा स्थान आपके साथ है। इस महल में नहीं है, मैंने महल से विवाह नहीं किया। मैंने आपसे विवाह किया है। तो मैं साथ में चलूंगी आपके।”
अगर बस एक मिनट के लिए भी आप सोचें सकें कि, “हे भगवान! सभी लोग एक कमाल की बात के लिए इतने खुश हैं” — फिर ये संकट आ जाता है। यह अजीब सी बात हो जाती है।
तो उनके पिता राम को बुलाते हैं और कहते हैं, "तुम्हें ऐसा करना है!” और राम कहते हैं, “जी हां! मैं यही करूँगा, कोई दिक्कत नहीं है। ठीक है, मैं राजा बनने वाला था, क्योंकि आप चाहते थे कि मैं राजा बनूँ और अब आप चाहते हैं कि मैं वनवास में जाऊं और राजा ना बनूँ। जो आप कहें, जैसी आपकी इच्छा, जो भी आप कहें!”
तो कहानी की गहराई में जाये बिना, (क्योंकि कहानी बहुत ही सुन्दर है) मुद्दा यह बन जाता है कि आपको कैसे बातों को संभालना है, यह नहीं कि परिस्थिति क्या है ? “उस समय क्या करते हैं आप ?” आप अपने जीवन के साथ क्या करते हैं ? आप इस इंसानी अस्तित्व के साथ क्या करते हैं, जो आपको मिला है।
आप इस धरती के साथ क्या करते हैं; आप इन पेड़ों के साथ क्या करते हैं; आप नदियों के साथ क्या करते हैं; आप समुद्र के साथ क्या करते हैं; आप हवा के साथ क्या करते हैं; आप प्रकृति के साथ क्या करते हैं; इन सब चीजों के साथ जो आपको मिली हैं; ये सब जो हमारे पास हैं — आप इनके साथ क्या करते हैं ?
हम विनाश कर सकते हैं — हम समय बर्बाद कर सकते हैं। क्योंकि खाली बैठना बहुत बड़ी समस्या है। खाली बैठना जैसे कि — वो लोग जो बहुत घुलते-मिलते हैं, “ये और वो, बाहर जाकर पार्टी करना और सबसे मिलना।” अब आप ये नहीं कर सकते। आप बाहर नहीं जा सकते, आप अपने कमरे में ही हैं, अपनी अपार्टमेंट्स में ही, अपने घर में ही, जहां भी रहते हैं आप।
तो काफी वक़्त पहले मैंने अकेला बंद रहने की बात की थी। और मैं कहता था “अकेला बंद रहना सबसे बुरी सजा क्यों है ?” क्योंकि लोग सच में खुद को नहीं जानते। पर ये रहा एक कमाल का मौका, जो हमारे पास है। मैं इसके बारे में बात करता हूँ — तीन चीजें जो हमें चाहिए, वो तीन चीजें जो हमें चाहिए, पहली है: "खुद को जानना।"
क्योंकि अगर खुद को नहीं जानते, खुद को समझते नहीं हैं कि आप खुद क्या हैं! बाकी सभी चीजें जिनमें आप फंसे हैं, वो सब, “बाहर जाना और ये करना और वो करना और मेरी नौकरी और मेरा ये और मेरा वो।” ऐसे ही सबकुछ, रोज की मेहनत — और अचानक से हो जाए, अब आपको छुट्टी मिल जाती है, आपको छुट्टी मिली। लेकिन खुद के साथ!
अब क्या आप यह ले सकते हैं ? क्या आप कह सकते हैं ? “देखिये, मैं इस वक़्त मज़े कर सकता हूँ — क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं कौन हूँ और क्या कमाल का समय है खुद के साथ रहने का, जो मैं स्वयं हूँ यह समझना। अपने ऊपर दया होना, खुद को समझना, खुद के बारे में जानना।
एक बात जो करनी है वह है कि खुद को जानिए! खुद को जाने बिना असल में आप अंजान ही रहेंगे। एक अंजान व्यक्ति जो आपको जानता ही नहीं है।
फिर अचानक से ही, कोई वायरस कहीं से आ जाता है और दुनिया पर काफी प्रभाव डाल देता है। मेरा मतलब, यह ऐसा है कि जैसे कि एक डरावनी पिक्चर, एक तरह से। और फिर, अगली बात जो होती है, यह पूरी दुनिया पर प्रभाव डाल रहा है और पूरी दुनिया, सच में सरकारें गिर रही हैं कहते हुए कि, "अब आप अलग रहिये; आपको लॉकडाउन करना है और आप बाहर नहीं जा सकते और ये नहीं कर सकते और वो…"
और जब आप देखें कि नहीं करने वाली सूची कितनी बड़ी है तो हैरानी होगी। उस सूची में एक चीज है, जो आप कर सकते हैं और उसमें है — खुद के साथ रह जाना — आप खुद को जान सकते हैं, आप खुद को थोड़ा और बेहतर जान सकते हैं; आप खुद को समझ सकते हैं। क्योंकि ये बिलकुल बुनियादी बातें हैं!
बाकी चीजें जो मैं कहना चाहता हूँ, (बाकी दो चीजें जो मैं आने वाली वीडियोज़ में कहूंगा।) क्योंकि हम एक लॉकडाउन में हैं, मैं उनके बारे में और चर्चा कर सकता हूँ! पर ये रहीं आपके बारे में।
और अब इस परिस्थिति में, इन हालातों में, जो फिलहाल हमारे सामने हैं। आप यहीं हैं और आपको खुद के साथ होना है। लेकिन आप फिर क्या करेंगे; आप यह समय कैसे बिताने वाले हैं ? क्या आप परेशान ही रहेंगे; क्या आप यह कहते रहेंगे कि " यह बहुत बुरा है" और आरोप लगाएंगे ? किसी और पर आरोप लगाना, यह करना हमें पसंद है।
पर बात यह है कि एक तरफ तो, इंटरनेट एक कमाल की चीज है — हो सकती है। लेकिन दूसरी तरफ यहाँ पर गलत जानकारी बहुत है। कई लोग बस कहते हैं, "अब हम ये करें; अब हम वो करें; अब हम ये करें; हम क्या करें ?"
तो काफी दिलचस्प समय है, लेकिन आप इसका सही उपयोग कर सकते हैं, अपने आपको जानने में। यह कहने की कोशिश करें, “परिस्थिति की बात नहीं है, लेकिन मैं क्या करता हूँ।” क्या मुझमें हिम्मत है ? क्या मुझमें स्पष्टता है ?
जब आप रामायण पढ़ते हैं या जब आप रामायण सुनते हैं, सबकुछ होता है बढ़िया! वो दिन जब उन्हें राजा बनाया जाना था, वह कमाल का दिन था — सभी तारे सही जगह पर थे और ऐसा ही सबकुछ। इसके बारे में काफी सारी बातें लिखी हुई हैं।
मेरे लिए, जब मैं इसे सुन रहा था तो मैंने सोचा कि इसमें सितारों ने कहा कि, “सब ठीक है, लेकिन असल में ऐसा हुआ ही नहीं।” क्योंकि जिस दिन उनका राज्याभिषेक होना था, वह वनवास जा रहे हैं — एक या दो या तीन वर्षों के लिए नहीं। बल्कि चौदह वर्षों तक वह वनवास में रहने वाले हैं।
वह राजकुमार नहीं बनेंगे; वह नहीं बन पाएंगे, कोई ऐसा जिन्हें सब पसंद करते हैं, वह जंगल चले जाएंगे! वह वनवास में चले जाएंगे। जो भी मिले वह खाना खाएंगे। ऐसा नहीं कि खानसामा है और वह कहेंगे कि "अच्छा! आज रात को मुझे ये खाना है ?"
और ऐसा है कि अकल्पनीय। लेकिन वह क्या करते हैं ? वह हिम्मत दिखाते हैं; वह आगे बढ़ते हैं और वह अंत तक इतने सारे बुरे लोगों को मार देते हैं कि बीच में जो आना चाहते थे। और वह आगे बढ़ते हैं और सीता की रक्षा करते हैं। वह अच्छाई की रक्षा करते हैं।
वह विष्णु के अवतार हैं। तो उस तरह से भी उनका एक उद्देश्य तो है ही। और इसलिए वह एक तरह से या दूसरी तरह से आप भी, हां! बिलकुल सही समझते हुए आप कह सकते हैं, “हाँ ये सब हुआ; यह होना लिखा था; यह ऐसा है।
पर इतना भी नहीं। उन्हें एक इंसान के रूप में देखें, क्योंकि वह थे, उनकी पत्नी थीं; और एक भाई था जो उनसे बहुत प्यार करता था। वह अपने पिता से प्यार करते हैं और पिता की कही हर बात निष्ठा से मानते हैं।
तो जो भी, मुझे लगा कि आपसे यह सब कहना अच्छा होगा कम से कम एक दिन — संकट के बारे में न सोचें, परेशानी का न सोचें, लेकिन परेशानी का सामना कैसे करेंगे हमलोग ?
तो मुझे उम्मीद है यह मदद करेगा — और मैं आपसे फिर मिलूंगा। आपका दिन शुभ हो! एक अच्छी शाम बीते; एक अच्छी रात बीते; और अच्छे दिन हों! और हां, इस वक़्त जो भी अच्छा कर सकते हैं, वह आप जरूर करें।
धन्यवाद!
प्रेम रावत:
सभी को नमस्कार! मुझे आशा है कि आप अच्छा कर रहे होंगे, स्वस्थ रहते हुए, खुश रहते हुए। मैं बस कुछ ही मिनटों का समय लेना चाहता हूं और हर किसी का स्वागत करता हूं, जो इन प्रसारणों को सुन रहा है और इन प्रसारणों को सुनने वाला है। पूरी दुनिया में इन प्रसारणों को सुनने वाले 173 देश हैं — भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका, स्पेन, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, अर्जेंटीना, इटली, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, कोलंबिया। जर्मनी, ब्राजील, नेपाल, स्विट्जरलैंड, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया। चिली, पुर्तगाल, ग्रीस, मैक्सिको, नीदरलैंड, पेरू।
युरग्वे, आयरलैंड, न्यूजीलैंड, डेनमार्क, स्वीडन, इक्वाडोर, ऑस्ट्रिया, ताइवान, श्रीलंका, मॉरीशस, वेनेजुएला, इज़राइल, (शालोम), जापान, स्लोवेनिया, कोट डी आइवर, बेल्जियम, फिनलैंड, सिंगापुर, हांगकांग, मोरक्को, बेनिन, त्रिनिदाद और टोबैगो, नॉर्वे, संयुक्त अरब अमीरात, बोलीविया, थाईलैंड, घाना, निकारागुआ।
दक्षिण कोरिया, रियूनियन, क्रोएशिया, इंडोनेशिया, कैमरून, बोस्निया और हर्जेगोविना, सर्बिया, पैराग्वे, कोस्टा रिका, यूक्रेन, ग्वाटेमाला, फिलीपींस, फिजी, पोलैंड, फ्रेंच पोलिनेशिया, जर्सी, सऊदी अरब, लेबनान।
पनामा, वियतनाम, साइप्रस, लाओस, मेडागास्कर, ग्वाडालूप, रूस, लिथुआनिया, कतर, डोमिनिकन गणराज्य, प्यूर्टो रिको, तुर्की, कुवैत, ओमान, युगांडा, बुल्गारिया, पाकिस्तान, सेनेगल, अल सल्वाडोर, नाइजीरिया, ट्यूनीशिया, चीन, हंगरी, केन्या, केन्या।
कंबोडिया, रोमानिया, बांग्लादेश, जमैका, बहामास, मिस्र, मोंटेनेग्रो, माल्टा, नाइजर, टोगो, अंडोरा, कांगो, किंशासा, जॉर्डन, अंगोला, लक्जमबर्ग, बहरीन, इराक, कुक आइलैंड्स, गैबॉन, जिंगिया, बारबाडोस, माली, बुर्किना फासो।
क्यूबा, एस्टोनिया, आइसलैंड, लातविया, मलावी, तंजानिया, न्यू कैलेडोनिया, केप वर्डे, फरो आइलैंड्स, सैन मैरिनो, कोसोवो, जिम्बाब्वे, आर्मेनिया, भूटान, अल्जीरिया, होन्डुरस, ईरान, केमैन द्वीप, माल्डोवा, मार्टीनिक, अल्बानिया, ग्रेनाडा, गाम्बिया —बहुत सारे देश।
उत्तरी मैसेडोनिया, स्लोवाकिया, तिमोर-लेस्त, अरूबा, बेलारूस, क्यूरकाओ, जॉर्जिया, फ्रेंच गुयाना, ग्वेर्नसे, गिनी, सिंट मार्टेन, मालदीव, मोजाम्बिक, पापुआ न्यू गिनी, फिलिस्तीन, सेशेल्स, सोमालिया, सीरिया, समोआ।
सेंट बार्थेलेमी, बेलीज, कांगो, ब्राजील, इथियोपिया, गुवाम। और गुयाना, कजाकिस्तान, सेंट किट्स एंड नेविस, लाइबेरिया, म्यांमार, नामीबिया, रवांडा और सूडान।
इसलिए मैं — दक्षिण सूडान का स्वागत करता हूं — और इन प्रसारणों के लिए आप सभी का स्वागत करता हूँ। मुझे आशा है कि आप कोरोना वायरस की इस स्थिति में आगे बढ़ने के बाद भी उनका आनंद ले रहे हैं, जहां मुझे लगता है कि बहुत सारे लोग सिर्फ — यह उनके लिए बहुत अधिक है।
यह एक बात और कोई कहता है कि “आप लॉकडाउन में हैं” — और आप वास्तव में लॉक होने का अनुभव करते हैं। इसलिए मुझे लगता है कि यहां बड़ी असमानता है — सिर्फ इसलिए कि कोई कहता है कि यह एक लॉकडाउन है, क्या आप लॉकडाउन महसूस करते हैं ? कोई कहता है “हम दुर्भाग्यशाली हैं,” और इसलिए क्या आप दुर्भाग्यशाली महसूस करते हैं ? और यही मुख्य बात है।
क्योंकि मैं बहुत सारे डॉक्टरों को जानता हूं और मैं उनसे बात करता हूं। मैं कहता हूं “एक स्पष्टता है। कोई आपके पास आता है — और वह बीमार नहीं हैं; वह बीमार महसूस नहीं करते; वह बीमार नहीं हैं…”
और मैंने कहा “मुझे पता है कि आपका यह काम पता लगाना है कि उनके साथ कुछ गलत है।” लेकिन आपको व्यक्ति की स्पष्टता को भी देखना होगा। यदि वह बीमार हैं, तो उन्हें बताएं कि वह बीमार हैं। लेकिन अगर वह बीमार नहीं हैं, तो कम से कम, वहां से शुरू करें। और इसके विपरीत; यदि कोई व्यक्ति आपके पास आता है और आपको लगता है कि वह बीमार नहीं हैं, लेकिन वह बीमार हैं, तो आपको वहीं से शुरू करना होगा।
कभी-कभी हम कुछ की स्पष्टता को भूल जाते हैं। स्पष्ट बात यह है कि हम जीवित हैं; जो कुछ भी इस धरती पर होने के बारे में बहुत भाग्यशाली है, हर एक दिन यह स्वांस आती है, हर एक दिन यह स्वांस आती है और यह सुंदर है। यह समझने के लिए स्वीकार करना महत्वपूर्ण है। वह हर दिन, सचेत होने के लिए थोड़ा प्रयास करने के लिए। क्योंकि जब आप इस दुनिया को देखते हैं… और मैं प्रशिक्षण पर काम कर रहा हूं, (और मुझे आशा है कि मैं जल्द ही इसे पूरा करने में सक्षम होऊंगा) और यह है कि — यह थोड़ा पानी से भरा हुआ है, पीस एजुकेशन प्रोग्राम वह है जिसे मैं आगे लाऊंगा।
क्योंकि हमारी सीमाएं हैं और शांति शिक्षा कार्यक्रम में जिन चीजों की आवश्यकता होती है उनमें से यह एक है कि वो लोग, जो भाग लेने जा रहे हैं अपनी शिक्षाओं में भेजते हैं, (जो उन्होंने सीखा है या जो उन्होंने समझा है), इसलिए हम इसे साझा कर सकते हैं… अगर आप नाम नहीं चाहते तो, मैं नहीं बताऊंगा — लेकिन कम से कम यह वो है जो आपने सीखा है। क्योंकि वो है जो अन्य लोगों को प्रदान करता है जैसे, "उस व्यक्ति को यह मिल गया” या “यह व्यक्ति इससे बाहर हो गया।" और ऐसा भी हो सकता है “शायद मुझे चाहिए, मुझे कोशिश करनी चाहिए; मुझे इसका अनुकूलन करना चाहिए।” इसलिए यह वास्तव में एक अद्भुत पल प्रदान करता है। लेकिन एक मुख्य बात यह है कि हम परिणामों से दूर होने की कोशिश कर रहे हैं।
आप जानते हैं कि क्या परिणाम होते हैं, उन कार्यों से जो हम करते हैं या किसी और के कार्यों से। लेकिन हम चाहते हैं — लेकिन हम उन परिणामों की तरह नहीं हैं जो खराब हैं। हमें ऐसे परिणाम पसंद आते हैं, जो अच्छे हैं। इसलिए जब बुरा हो या जब भयानक समय आता है, जब दुःख का समय आता है हम सबकुछ देखते हैं और हम यह सोचते हैं "यह कौन कर रहा है; मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है ?" मुझे पता है कि बहुत से लोग वास्तव में ऐसा महसूस करते हैं; यह ऐसा है जैसे उन्हें बाहर निकाल दिया गया।
आपको बाहर नहीं निकाला गया है, किसी को भी आपको दंडित करने की कोशिश नहीं की जा रही है। लेकिन जो आपको महसूस करना है वो यह है कि अन्य लोगों के कार्य और उसके परिणाम आपके नियंत्रण में नहीं हैं — लेकिन वे क्रियाएं जो आप करते हैं, आपको उन्हें नियंत्रण में करना होगा और उन परिणामों को आप कम करने के लिए कुछ कर सकते हैं। ये वही परिणाम हैं जिन्हें आप कुछ कम कर सकते हैं और ये वही हैं जो इसके बारे में है। पूरी तरह से जीवन जीना सही मायने में जीवन को जीना है, सचेत रूप से यह जानना है कि यह क्या है जो आप करते हैं। क्योंकि यह एक बहुत ही एक्शन-ओरिएंटटेड है, जो कुछ भी आप करते हैं — वह नहीं जो आप सोचते हैं।
देखिये, सोच अलग है। और मैं इस बारे में एक प्रशिक्षण में बात करने जा रहा हूं (मुझे नहीं पता कि यह कौन-सा है।) लेकिन यह है। यह एक ऐसी बात है जो मेरे पास थी जो कि “अब क्या महत्व है इसका ?” क्योंकि इतने सारे लोग “अब” इसके बारे में बात करते हैं “यह महत्वपूर्ण है।” लेकिन “आज,” आज का महत्व है, आज “अभी” इसका एक पूरक है। और "अब" का क्या महत्व है ?
आज का, अब का वह समय है, जो आप कार्य करते हैं। जब आप कुछ करते हैं, जैसे ही आप कुछ करते हैं, जैसे ही कोई कार्यवाही होती है वह विचारों के दायरे से बाहर होती है। विचार, आप जितना चाहे उतना कर सकते हैं। विचारों के साथ, आप कल (आने वाले कल) की यात्रा कर सकते हैं। विचारों के साथ, आप कल (बीते कल) की यात्रा कर सकते हैं। लेकिन उन क्रियाओं के साथ आप कल (आने वाले कल) नहीं जा सकते और उन क्रियाओं के साथ आप कल (बीते कल) नहीं जा सकते। इसलिए इसका महत्व यह है कि यह वह जगह है जहां आपके कार्य होंगे — और जो आप करते हैं वह सीधे जिम्मेदार होगा, जो परिणाम पैदा करेगा। और वह नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं (जो आप पसंद नहीं करते; आप पीड़ित होने जा रहे हैं)। मैं कर्म के बारे में बात नहीं कर रहा हूं; मैं वहां नहीं जा रहा हूं। मैं उन कार्यों के बारे में बात कर रहा हूं, जो अब हम करते हैं।
यह किस प्रकार का कार्य है और कितना जटिल है — यह बहुत बड़ा है! आप किसी को कैसे देखते हैं। आप अपनी पत्नी को गलत तरीके से देख सकते हैं या आपकी पत्नी आपको गलत तरीके से, गलत समय पर देख सकती है और यह खत्म हो गया है। यह अच्छा है, यह अच्छा नहीं है। तो आप अपने कार्यों के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं। आप अपने कार्यों के लिए जिम्मेदार हैं, जो आपके लिए अच्छे परिणाम ला रहे हैं — अच्छे परिणाम और साथ ही बुरे परिणाम भी। आप चाहते हैं, जितना संभव हो उन चीजों को करना जो अंततः (अन्य लोगों की कीमत पर नहीं) आपको अच्छे परिणाम लायेंगे; आप में पूर्णता लायेंगे; आप में खुशी लायेंगे; आप में समझ लायेंगे।
मेरा मतलब है कि मैं बहुत से लोगों को देखता हूं — और कुछ लोग जिन्हें मैं नहीं जानता; मैं उन्हें टेलीविजन पर देखता हूं, शायद यह एक साक्षात्कार है; शायद वे बात कर रहे हैं या जो भी हो। और फिर आप उनके बारे में पढ़ते हैं "वह ऐसा कर रहे हैं और वे हैं, किसी के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं और वहां से आगे बढ़ना है।"
लेकिन एक बात जो है अमानवीय है, इनमें से कुछ लोग वो हैं, जो बहुत खुश नहीं हैं। मेरा मतलब है, एक व्यक्ति है जो, लोग टेलीविजन पर इस व्यक्ति को बहुत बार देखते हैं — और वह एक बहुत शक्तिशाली व्यक्ति है, क्योंकि वह जानता है वह एक बहुत शक्तिशाली देश से जुड़े हैं। लेकिन वह खुश टूरिस्ट नहीं है। मेरा मतलब है, जब भी आप उसे देखते हैं वह सिर्फ एक खुश टूरिस्ट नहीं है — भले ही स्थिति-वार, वह शीर्ष के शीर्ष के शीर्ष पर हो। इसलिए इसका उस सूत्र से कोई लेना-देना नहीं है जो कुछ लोग खींचते हैं। “यदि आपके पास यह है, तो आप स्वचालित रूप से खुश हैं — आप सफल हैं।”
नहीं, सफलता एक ऐसी चीज है जिसे महसूस किया जाता है। यदि आप सफल नहीं महसूस कर रहे हैं, तो कोई व्यक्ति आपको बता सकता है कि आप सफल हैं। कोई भी साथ नहीं आ सकता और आपको बता सकता है कि यदि आप खुश नहीं हैं तो आप खुश हैं ("ओह, नहीं, नहीं, नहीं आप खुश हैं; आप खुश हैं।) तो ये बातें व्यक्तिपरक हैं। वह आपके ऊपर हैं! उद्देश्य नहीं है।
जब समाज कुछ ऐसा लेता है जो बहुत व्यक्तिपरक होता है और इसे कुछ बहुत ही उद्देश्य में बदलने की कोशिश करता है तो, सामान का एक पूरा बंच होता है जो कि अच्छा नहीं है। तो सीखने का यह सूत्र शुरू होता है "हां, हां, आपको यह सूत्र सीखना होगा; आपको यह सूत्र सीखना होगा कि यह क्या है।" और यही इस बारे में है। यदि आप सफल होना चाहते हैं तो आपको यह करना होगा और फिर आप सफल हो जाएंगे।”
खैर, संयुक्त राज्य अमेरिका में, लोगों को कॉलेज खत्म करने के लिए और स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के लिए ऋण लेना पड़ता है। जिसके बाद वे पैसे बनाने की कोशिश करते हैं और वहीं वे अभी तक शुरू नहीं हुए हैं और वे पहले से ही कर्ज में हैं। और शेष जीवन के लिए, वे कर्ज में रहने और कर्ज में रहने और कर्ज में रहने वाले हैं। पूरी अर्थव्यवस्था आधारित है ताकि आप कर्ज में डूबे रहें — अब तक आप सिर्फ एक गुलाम की तरह काम करते रहते हैं, बस एक गुलाम की तरह काम करते हैं और उसे चुकाने की कोशिश करते हैं। और आप इसे कभी चुकाने में सक्षम नहीं होंगे। क्योंकि यह केवल अधिक जटिल और अधिक मिश्रित और अधिक मिश्रित होता रहता है। और यही होता है। इसलिए आप कुछ ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं जो बहुत ही व्यक्तिपरक है। इसे बहुत ही उद्देश्य पूर्ण बनाइए — “और ये करिए, ये, ये और ये।”
लोग मेरे पास आते हैं — और वे अपने जीवन में शांति चाहते हैं; वे सद्भाव चाहते हैं; वे तृप्ति चाहते हैं; वे स्पष्टता चाहते हैं; वे आशा चाहते हैं; वे यह सब चाहते हैं। लेकिन वे सोचते हैं कि इसका उद्देश्य — “हम एक बटन दबायेंगे और यह होने लगेगा। “नहीं, यह व्यक्तिपरक है। यह पूरी तरह से आप महसूस करते हैं। यदि आप अपने जीवन में उस खुशी को महसूस नहीं करते हैं तो आपको वह आनंद नहीं मिलेगा। बस। आपको इसे महसूस करना होगा; आपको इसे समझना होगा। यही शांति है। शांति एक ऐसी चीज है जिसे आपको महसूस करना है — कुछ ऐसा नहीं है जिसके बारे में आपको सोचना है। “क्या, क्या मुझे अब शांति है ?”
कबीर के कथन इससे भरे हुए हैं जो आपको बताता है कि "यह बात है” और आप बस जाओ, यह बात है, “यह बात है; यह है” — यह नहीं है। जबतक आपके पास वह सच्चा एहसास नहीं होगा, जबतक आपके जीवन में वह सच्ची समझ नहीं होगी तबतक कुछ भी फर्क नहीं पड़ने वाला है। आप कोशिश करने जा रहे हैं — लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
इसलिए यह — तीन चीजें हैं, जिनके बारे में मैं हमेशा बात करता हूं, "अपने आपको जानें; अपना जीवन सचेत रूप से जीयें।" क्योंकि वह एकमात्र बाधा है जो आपके पास है — आपके कार्यों और उन परिणामों के बीच जो आप नहीं चाहते हैं। तो उन क्रियाओं को करने का, उन परिणामों को कम करने के लिए आपके पास सिर्फ एक तरीका है, यदि आप चेतना का अभ्यास करना शुरू करते हैं, तो जो हो रहा है उसके बारे में जागरूक होना होगा — "आप क्या करने वाले हैं; आप क्या कहने वाले हैं; क्या होने जा रहा है" — इसके लिए इसे थोड़ा-सा विचारते हैं कि “क्या होने जा रहा है ?”
क्या होने जा रहा है, आप अगर अपने बच्चे को यह बताने जा रहे हैं कि “आप देर से आए हैं ?” ठीक है, यह तुम्हारे साथ हुआ है; यह आपको कैसा लगा। आपको वास्तव में यह मिला है, क्योंकि आपके साथ वास्तव में ऐसा ही हुआ है; "आप लेट हैं; आप लेट हैं; आप लेट हैं; आप लेट हैं।"
एक समय आपको अपने आपसे सवाल पूछना होगा — "यहां कौन है ?" आपके माता-पिता चले गए होंगें; वे इस पृथ्वी पर नहीं हो सकते हैं — लेकिन वे निश्चित रूप से आपके पास एक विरासत छोड़ गए हैं। और आप बस बैठे हुए हैं और इसको नष्ट कर रहे हैं। और लोगों को लगता है कि यह पूरी तरह से ठीक है, क्योंकि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। इसके बारे में अच्छी तरह से सोचें, “क्या आप ऐसा करना चाहते हैं ? आप क्या करना चाहते हैं ?” और यह सच है कि — आपके द्वारा की गई कार्रवाईयां हैं और हो सकता है आप उन कार्यों के बुरे परिणामों से गुजर रहे हैं।
लेकिन अब आप क्या करना चाहते हैं ? क्या आप बदलना चाहते हैं या आप इसे दोहराना चाहते हैं ? और उन नकारात्मक परिणामों के दुख को दोहरा रहे हैं ? यह आप पर निर्भर है। यह आपके ऊपर है। और यह हमेशा आपके ऊपर रहेगा। और यह बहुत ही व्यक्तिपरक है कि आप क्या महसूस करते हैं, जो आप अपने जीवन में समझते हैं।
इसलिए सुरक्षित रहें; अच्छा महसूस करें और सबसे महत्वपूर्ण बात, खुश रहें। धन्यवाद!
प्रेम रावत:
सभी को मेरा नमस्कार! और मुझे आशा है कि आप ऐसे कठिन समय में अच्छा कर रहे हैं — और अच्छी तरह से होंगे। इसलिए आज मैं आपसे इस बारे में सिर्फ एक बात करना चाहता हूं कि बहुत समय पहले मैं इस कथन से रूबरू हुआ (या उद्धरण या आप इसे कुछ भी कह सकते हैं) और यह कुछ इस तरह से हुआ कि “हर चीज पर सवाल करना” और इसलिए मैंने सोचना शुरू किया कि “यह बहुत ही दिलचस्प है; हर चीज पर सवाल करो। और क्या मैं इससे सहमत हूं ?” मैं मानता हूं कि — हमें सवाल करना चाहिए। लेकिन एक ही समय में, हमें उत्तरों की आवश्यकता है — क्योंकि बिना कोई उत्तर मिले प्रश्न करने का कोई अर्थ नहीं होगा। और किस क्षेत्र में, किस स्पेक्ट्रम में आप सवाल करना चाहेंगे ?
तो यहां, यहां मेरे लिए यह है कि — "हां, हम हर चीज पर सवाल करते हैं। अब कुछ प्रश्नों के लिए, भले ही मुझे उत्तर मिल जाए, क्या मुझे परवाह है ?” मेरा मतलब है, मेरा मतलब है कि मैं ऊपर देख सकता हूं; मैं एक हवाई जहाज को आसमान में उड़ता हुआ देख सकता हूं। और यह कहना काफी सामान्य होगा, “मुझे आश्चर्य है कि वह हवाई जहाज कहां जा रहा है ?” कोई मेरे पास आता है और कहता है, “वह हवाई जहाज सिंगापुर जा रहा है।” यह होता है, “ठीक है, कोई बड़ी बात नहीं है।” या यह दिल्ली जा रहा है; “क्या बड़ी बात है ?” — या यह मुंबई जा रहा है; “क्या बड़ी बात है ?”
लेकिन फिर वह सवाल हैं जो जाहिर हैं हमें पूछने की जरूरत है और उन सवालों के जवाब पाने की जरूरत है — वो सवाल हैं — “मैं कौन हूं ? मैं यहां क्यों हूं ? मैं क्या हूं ?” मैं एक इंसान हूं। मुझे उत्तर की आवश्यकता है; मुझे अपने जीवन में बार-बार उत्तर की आवश्यकता है कि “मैं एक इंसान हूं।” मैं क्या चाहता हूं ? मुझे जरूरत है। मेरी जरूरतें बहुत बुनियादी हैं; मेरी जरूरतें बहुत मौलिक हैं। “और इस दुनिया के बारे में क्या ?” मुझे इस दुनिया की हर चीज पर सवाल उठाने की जरूरत है। और कमाल की बात यह है कि ज्यादातर समय हम दुनिया पर सवाल नहीं उठाते हैं; हम खुद से सवाल करते हैं। हमें दुनिया से कोई जवाब नहीं मिलता; हम इस पर सवाल भी नहीं उठाते हैं, लेकिन हमें दुनिया से कोई जवाब भी नहीं मिलता है। हमारी धारणायें हैं : “यह वही है जिसके लिए यह है; यह वही है जिसके लिए यह वही है; जिसके लिए यह है।”
अचानक एक असमानता, एक तरह का असंतुलन; जहां सवाल पूछे जा रहे हैं… और क्या सवाल पूछना अच्छा है; मुझे लगता है प्रश्न पूछना अद्भुत है। लेकिन आपको उन सवालों को पूछना होगा जिससे आपको जवाब मिल सके, खासकर जब वह सवाल आपके अस्तित्व से, इस धरती पर आपके मौलिक अस्तित्व से संबंधित हों। मैं पैदा हुआ था; मैं एक अंधकार से बाहर आया। मैं इस दुनिया में मौजूद हूं; मैं इस समय मौजूद हूं। मुझे समझ नहीं आता कि वह समय कितना कम है। मैं अपनी संभावनाओं को नहीं समझता कि वो संभावनाएँ मेरे लिए कितनी बड़ी हैं।
मुझे पता है कि एक दिन मुझे जाना है — लेकिन मुझे इसका मतलब समझ में नहीं आता कि “जाने का मतलब,” कहां जाना है ? मैं कहां जा रहा हूं ? क्योंकि वह पहले से ही निर्धारित है। “यदि आप एक अच्छे व्यक्ति हैं, तो आप स्वर्ग जाने वाले हैं।” और यह पूरी तरह से उस पर निर्भर करता है, जिस धर्म का आप पालन कर रहे हैं।
धर्म की बात यह है कि आप धर्म में बहुत बार पैदा हुए हैं। आप एक धर्म का चयन नहीं करते; आप एक धर्म में पैदा हुए हैं। और एक बार जब आप एक धर्म में जन्म लेते हैं; तो आप कुछ नहीं कर सकते। किसी और को अलग लग सकता है, जो आपको पूरी तरह से सामान्य लगेगा। जब कोई ईसाई हिंदू धर्म के संस्कारों का पालन करता है, तो वह बहुत अलग दिखता है। लेकिन एक हिंदू के लिए, यह पूरी तरह से सामान्य है; यह पूरी तरह से सही है; बिल्कुल सही है। यह कैसे होता है। जब कोई दूसरे लोग ईसाइयों को अपने धर्म का पालन करते हुए देखते हैं, तो उन्हें लगता है “यह अजीब है; यह गलत है।” लेकिन एक ईसाई जो उसमें पैदा हुआ है, जिसने इसे बहुत कम उम्र से देखा है। उसके लिए सबकुछ सामान्य लगता है।
इसलिए हम अपने विश्वासों में, अपने उद्देश्यों, अपने विचारों में — लेकिन हम वास्तव में सवाल नहीं उठा रहे। मैं धर्म के बारे में बात नहीं कर रहा हूं; मैं उन चीजों पर सवाल नहीं उठा रहा हूं। मैं पूछताछ के बारे में बात कर रहा हूं कि “मैं कौन हूं ? मैं यहां क्यों हूं ? मेरी जरूरतें क्या हैं ? मेरी समझ क्या है ? मुझे अपने जीवन में क्या चाहिए ? आज — मेरे लिए क्या महत्वपूर्ण है ? मेरे लिए आज का मूल्य क्या है ? मेरे लिए कल का क्या मूल्य होगा; मेरे लिए कल के क्या मूल्य हैं ?” क्योंकि यदि कल का मूल्य, आज के मूल्य से अधिक है, तो मैं सही मायने में यह नहीं समझता कि आज, कल और कल सभी क्या हैं। यदि कल का मूल्य मेरे लिए आज के मूल्य से अधिक है, तो मैं इन तीन चीजों को नहीं समझता जो कि “आज, कल और कल हैं।” मुझे नहीं मिला; मैं इसका मूल्य नहीं जानता।
आज का दिन मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण है — क्योंकि मैं आज कुछ कर सकता हूं। आज यहां मेरे कर्म हो रहे हैं। वहीं कल की यादें हैं, सोच-विचार हैं। कल चिंतन, विचार, उद्देश्य हैं — लेकिन कोई भी क्रिया कल नहीं हो सकती है या कोई भी कार्य कल में नहीं हो सकता है। क्योंकि होने वाली क्रियाओं के लिए — आज का होना बेहद जरूरी है। तो क्या मेरी गतिविधियां एक सुविचारित विचार के परिणाम हैं ? या वो ऐसा नहीं है ? (कुछ दिन अच्छे हैं; कुछ दिन अच्छे नहीं हैं; कुछ घंटे अच्छे हैं; कुछ घंटे अच्छे नहीं हैं; कुछ मिनट अच्छे हैं; कुछ नहीं हैं।) क्योंकि अगर मैंने सोचा नहीं है कि यह क्या है जो मुझे करना चाहिए… और मैं कहता हूं कि "स्पष्टता" — सभी चीजों को पूरी तरह से समझने के लिए होती है।
जब हमारी आर्मी को कोई संकेत मिलता है कि एक ऐसा एरिया है, जहां मौसम खराब है या कुछ हालात खराब हैं। बेशक, आपको एहसास होता है जब आप एक हवाई जहाज उड़ाते हैं तो आपके पास ये सब जानकारी होती है — और आपके पास अपना रडार होता है — लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपके पास आपकी आंखें हैं। आप उपग्रह चित्र देख रहे हैं, अपने प्रदर्शन पर आप उपग्रह चित्र — और इसे देख रहे हैं, आप देख रहे हैं कि यह कितना करंट है। बेशक, मेरे पास अपना आईपैड भी था और मैं इसे देख रहा हूं और यह मुझे करंट बता रहा था। लेकिन तब मेरी आंखें हैं। और अगर, आप जानते हैं तो सबकुछ कहते हैं, “नहीं, इसके बारे में चिंता मत करो; सबकुछ ठीक है,” और मैं खिड़की से बाहर देख रहा हूं और मैं कुछ इस तरह से जा रहा हूं कि मुझे पता है कि यहां मौसम खराब है। तो बस यही समय है फैसले का।
तो मैंने एक फैसला किया — मैंने रास्ता बदला और मैंने एक छोटा-सा गोला बनाया। मैं उस तूफान में आगे जाना नहीं चाहता था। तो मैंने एक आसान-सा रास्ता पकड़ा; मैं वापस आया। ये सारी चीजें करने में मुझे ऐसे बीस से पच्चीस मिनट करीब लगे — और मैं वापस अपने रूट पर था। और by the way, मुझे कुछ रास्ता सूझा और मैंने रास्ते को अपने अनुरूप ढ़ाल लिया।
इसलिए जब आप उड़ते हैं तो आप चीजों के सभी पहलुओं को देखते हैं; सिर्फ यह नहीं कि आप हवाई जहाज में चढ़ते हैं, इंजन को क्रैंक करते हैं और उड़ान भरते हैं। नहीं, आप एक नजर डालते हैं कि “मैं कहां जा रहा हूं जब ऐसा होगा ? अगर मैं एक इंजन खो दूंगा, तो मैं कहां तक जा सकता हूं और मैं कहां जा रहा हूं ? मेरे पास कितना ईंधन होगा; क्या मैं इसे पूरा कर पाऊंगा ? मेरे पास कितना भंडार होगा ?" तो अब आपने क्या नतीजा निकाला ? इसलिए सारी जानकारी जो ली जाती है; यह एक संसाधित है; यह एक संसाधित है। एक तस्वीर ली जाती है। और फिर यह एक योजना बन जाती है, जिसके साथ आप सहमत होते हैं। तो जो भी जानकारी भेजी गई है कि "हां, हम ऐसा कर सकते हैं, यह हमारे लिए आवश्यक ईंधन की मात्रा है।” और जब मैं अपनी ईंधन का आदेश देता हूं, तो मैं हमेशा मार्ग देखता हूं — और अगर मौसम बहुत खराब हो या रास्ता बदलना पड़े या अशांति हो या जो भी हो और हमें नीचे जाना पड़ सकता है तो आप थोड़ा अतिरिक्त आदेश देते हैं। थोड़ा अतिरिक्त हमेशा अच्छा होता है।
निश्चित रूप से विमान में अंगूठे का नियम यह है कि आपातकालीन स्थिति में — “आपके पीछे रनवे ट्रक में ईंधन और आपके ऊपर की ऊंचाई आपके लिए अच्छी नहीं होती।” आपके पास जितनी ऊंचाई हो सकती है, उतनी ही आपको जरूरत है। आपको उस ईंधन की आवश्यकता है, जिसे आपने ट्रक में छोड़ा था और आप इसे अपने पंखों में रखना चाहेंगे। और रनवे जितना अधिक आपके पास है, उतना ही बेहतर है कि आप जो भी कर रहे हैं। तो क्या यह जीवन में लागू नहीं होता है ? यह लागू होना चाहिए। वो सिद्धांत है कि — “हमें किसी भी घटना और किसी भी संभावना के लिए तैयार रहना चाहिए।” लेकिन एक ही समय में हम ऐसा नहीं कर सकते। यह हम चले। यह हम चले। हम लॉन्च कर रहे हैं, इससे पहले ही रॉकेट ने अपने पैडल को उतार दिया है। हम जा रहे हैं, हम जा रहे हैं। विचार तो पहले से ही है; आप सुबह उठते हैं और “तबतक मैं चला जाता हूं।” इसलिए आप जाते हैं — और आप बस का इंतजार कर रहे हैं; आपने अपना घर छोड़ दिया है; आप ऐसा कर रहे हैं — और यह वैसे ही है जैसे आप इस तूफान में फंस गए हैं। आपको पता नहीं क्या करना है।
अब मैं आपसे ये सब क्यों कह रहा हूं ? क्योंकि यह भव्य समय है; यह एक बेहतरीन समय है उन चीजों में से कुछ चीजों पर सवाल उठाने का — सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इनमें से कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न जो आपको खुद से पूछने की जरूरत है। सिर्फ इसके लिए किसी के शब्द ना लें। तो लोग जो सवाल पूछते हैं उनके पास एक जवाब होता है — यह जवाब नहीं कि "हां, हां, भगवान सिर्फ रहस्यमय तरीके से काम करता है और मैं इसे स्वीकार करता हूं।" नहीं, नहीं, “यह क्या चल रहा है ?” क्योंकि यहां मैं हूं; यह मेरी जिंदगी है! मैं वह हूँ जिसे ऑप्शन दिए गए हैं, यह करने के लिए या नहीं करने के लिए।
मैं महाभारत का वह योद्धा हूं जो भारत के उन महान युद्ध में था। और एक विकल्प दिया गया है — और कृष्ण कह रहे हैं "देखो तुम्हें सबकुछ देखना है और उसके बाद ही उसे यह चुनाव करना चाहिए।" और जब अर्जुन अंत में इसके पूरे पक्ष को देखता है, तो वह लड़ने के लिए तैयार हो जाता है। तो मुझे सबसे पहले कहना होगा कि मेरे जीवन में एक समय था, मैं अर्जुन की पसंद से बिल्कुल सहमत था। “मैं लड़ने नहीं जा रहा हूं; मैं उन सभी लोगों को जानता हूं…मैं लड़ाई नहीं कर रहा हूं।” ऐसा होता है, “यह एक अच्छा विकल्प है; लड़ाई मत करो" लेकिन यहां पूरे मामले को देखिए। पूरा कारण समझिए — कि इन लोगों ने खुद को अपने खिलाफ कर लिया है कि क्या सही है और क्या ठीक है; क्या सही है, क्या ठीक है।
वैसे भी, वह महाभारत था, वह बीता हुआ कल है। आने वाला कल वही होगा, जो होना होगा। लेकिन आज आपके साथ काम करना है, काम करना है। यह वो जगह है जहां आपके कार्य किए जाएंगे। क्योंकि आज वह जगह है जहां कार्यवाही होगी, “अब” वह जगह है जहां कार्यवाही होगी, तो अब का महत्व है। दो मिनट पहले, केवल विचार हो सकते हैं। जहां तक आप अपने विचारों के साथ जा सकते हैं। लेकिन क्रियाओं के लिए, आप अभी की स्थिति में बंद हैं।
इसलिए यदि आप अभी की स्थिति में बंद हैं तो, अपनी सारी सोच पर ध्यान केंद्रित ना करें या भाग लें और समझें कि आप क्या हैं — क्योंकि आप जहां कार्य करने जा रहे हैं और अब आप जहां पर कार्य करते हैं या यहां जो भी करते हैं, उसके परिणाम आपको भविष्य में भुगतने पड़ेंगे — और आपका वह अतीत बन जाएगा। और ज्यादा से ज्यादा यह प्रक्रिया हो रही है और ज्यादा “आज” मडल्ड होने जा रहा है।
तो हर चीज पर सवाल; पूर्ण रूप से; कोई दिक्कत नहीं है। कुछ सवालों के जवाब आपको कभी नहीं मिलेंगे, जो उन सवालों की परवाह करता है, शायद वो बहुत तुच्छ हैं। लेकिन फिर भी वो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं, जो आपको स्वयं से पूछने चाहिए — और आपको उत्तर प्राप्त करने होंगे। यह विकल्पों का सवाल नहीं है; आपको उन उत्तरों को प्राप्त करना होगा। और उन उत्तरों को स्पष्ट करना होगा, सफल होना होगा, सही होना होगा। इसे सही मानना है, अपने दिल से, उन सवालों के जवाब को स्वीकार करना है।
क्योंकि तुम्हारे भीतर एक सागर है, उत्तर का एक महासागर है। यह वही है जो मैं कहता हूं कि — "आपके अंदर उत्तर का एक महासागर है।" और इसका जवाब है कि आपको सही लग रहा है कि आप उस महासागर से आने वाले हैं जो आपके भीतर है। और वही महासागर आपके भीतर है। इसलिए मुझे उम्मीद है कि चीजें आपके लिए सुधार कर रही हैं। इसे एक दिन एक समय लो। देखो, “तुम नहीं जानते क्या हो रहा है नीचे; सड़क पर क्या होगा, सड़क पर क्या होने वाला है,” सड़क, जो भी हो। लेकिन एक दिन, एक समय में, अच्छा महसूस करें। खुश रहें, सुरक्षित रहें, अब के महत्व को समझें। वह नहीं बदला है।
कोरोना वायरस या नहीं, लॉकडाउन या नहीं, उस दिन के संबंध में कुछ भी मतलब नहीं है कि आप पैदा हुए थे और उस दिन जब आप जाने वाले थे। उनके संबंध में, इसका मतलब कुछ भी नहीं है। यह अभी भी मान्य है। और हर क्षण यह स्वांस तुम्हारे भीतर आती है, तुम्हारे लिए एक उत्सव है जिसे तुम्हें हर एक दिन मनाना शुरू करना होगा।
तो सुरक्षित रहें और सबसे महत्वपूर्ण बात धन्यवाद; मैं आपसे बाद में बात करूंगा।