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लॉकडाउन 24 00:16:25 लॉकडाउन 24 Video Duration : 00:16:25 प्रेम रावत जी द्वारा हिंदी में सम्बोधित (16 अप्रैल, 2020)

प्रेम रावत जी:

सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार! आशा है आप सब कुशल-मंगल होंगे।

मेरे को मालूम है कि यह जो लॉकडाउन की टाइमलाइन है यह बढ़ाई जा रही है ताकि आप लोगों को और कुछ दिनों के लिए लॉकडाउन में रहना पड़ेगा और मुझे यह भी अच्छी तरीके से विश्वास है कि कई लोग हैं जो इससे खफ़ा हैं। देखिये! खफ़ा होने की बात नहीं है, डरने की बात नहीं है।

बात सिर्फ यह है कि यह जो आपको मौका मिला है और मैं कह रहा हूं कि यह मौका मिला है, यह बार-बार नहीं आता है। यह ऐतिहासिक चीज हो रही है, जो हो रही है। पूरा भारतवर्ष नहीं, पूरा संसार लॉकडाउन में है और हर एक देश में कहीं ना कहीं इसका अफेक्ट, इसकी प्रतिभा देखी जा रही है। इसका असर सब जगह हो रहा है। एयरलाइंस में है, किसानों के लिए है, ट्रांसपोर्टेशन के लिए है, किसी भी चीज को देख लीजिए — दुकानदार हैं उनके लिए है और डॉक्टर लोग जो हैं वह तो बहुत ही मेहनत कर रहे हैं। नर्स लोग जो हैं वह तो बहुत ही मेहनत कर रहे हैं और हर रोज बीमार लोग इससे हर रोज इनकी संख्या बढ़ रही है। परन्तु आप लॉकडाउन में हैं और यह भी खुशी है कि आप सुरक्षित हैं परंतु यह समय, जो ऐतिहासिक समय है क्योंकि यह बार-बार नहीं आता। यह एक समय है कि इस संसार में रहते हुए आप एक काम करें और वह काम कुछ ऐसा हो जिससे कि आपकी जिंदगी के अंदर आनंद और बढ़े। जो अच्छी चीजें हैं वह और हों। आप अपने जीवन के अंदर उस असली सुख और चैन और शांति का अनुभव कर सकें।

अब यह कहना तो बहुत आसान है। कई लोग हैं जो भाषण देते हैं, भाषण सुनाते हैं और फिर उसके बाद कहते हैं “शांति, शांति, ओम शांति, शांति, शांति,” — शांति-शांति-शांति करने से शांति नहीं होती क्योंकि अगर आप किसी को कह रहे हैं कि “चुप हो जा, चुप हो जा, चुप हो जा, चुप हो जा, चुप हो जा” या आप किसी कमरे में बैठे हैं और आप कह रहे हैं हम सभी को “चुप हो जाना चाहिए, चुप हो जाना चाहिए, चुप हो जाना चाहिए, चुप हो जाना चाहिए” और आप सोचते हैं कि यह दोहराते रहें कि — चुप हो जाना चाहिए, चुप हो जाना चाहिए, चुप हो जाना चाहिए उससे फिर आवाज नहीं आएगी जबतक आप यह बोलते रहेंगे कि चुप हो जाओ सब लोग, चुप हो जाओ सब लोग तब तक कोई चुप नहीं होगा, क्योंकि तुम ही चुप नहीं हो रहे हो।

सबसे बड़ी जानने की बात यही है कि कौन-कौन से बीज आप अपने जिंदगी के अंदर बो रहे हैं, कैसे बीज बो रहे हैं ? ऐसे बीज बो रहे हैं जिनकी फसल जब तैयार होगी तो वह शांतिमय होगी, वह आनंददायक होगी या ऐसे बीज बो रहे हैं जिनसे कि आपकी जिंदगी के अंदर अशांति और बढ़े ? जो कुछ भी आप अब कर रहे हैं इसी का फल आपको मिलेगा। जो कुछ भी हो रहा है इसी का फल आपको मिलेगा। ठीक है परिस्थिति आपके इशारों के, आपकी इच्छाओं के अनुकूल नहीं है परन्तु है, जैसी है वैसी है।

अगर पृथ्वी जो सचमुच में इतनी दुःख में है — सारी प्रकृति, अगर सारी प्रकृति यह कहे कि मुझे कुछ राहत चाहिए, कुछ राहत चाहिए तो वह ऐसा ही कोई माहौल बनाएगी जिससे कि सारे लोग शांति से एक जगह बैठें ताकि सारी प्रकृति को राहत मिल सके। आपको राहत मिल रही है या नहीं पर सारी प्रकृति को राहत मिल रही है। प्रदूषण कितना कम हुआ है, हवा कितनी साफ हुई है यह तो प्राकृतिकली बहुत अच्छी बात है। जब प्रकृति के लिए यह अच्छी बात हो सकती है तो आपके लिए यह अच्छी बात क्यों नहीं हो सकती है ?

बिल्कुल हो सकती है। लोग अभी भी अपनी भावनाओं में रहते हैं, अपनी कल्पनाओं में रहते हैं, कहीं किसी के लिए कुछ है, किसी के लिए कुछ है। तुम ऐसा क्यों नहीं कर रहे हो, तुम ऐसा क्यों नहीं कर रहे हो और यह भी संभव है कि कई जो परिवार में इतने दिन एक साथ कभी रहे नहीं तो कोई कहीं किसी में बिज़ी था, कोई कहीं किसी में बिज़ी था, कोई कहीं बिज़ी था। अब एक जगह रह रहे हैं और हो सकता है कि यह भी बहुत संभव है कि आपस में खूब लड़ाई हो रही है। "कब खत्म होगा, कब खत्म होगा, कब खत्म होगा, जा रहा हूं बाहर — मेरे को यह पसंद नहीं है, मेरे को यह पसंद नहीं है, मेरे को यह पसंद नहीं है" — सारी बातें आगे आ रही हैं। जो बच्चा है वह और कुछ करना ही नहीं चाहता है वह बैठकर अपना वीडियो गेम देखना चाहता है और वीडियो गेम आया कहां से ? आया कहां से ? वीडियो गेम जो बच्चा, आपका बच्चा वीडियो गेम खेल रहा है, जो आपको पसंद नहीं है क्योंकि आप चाहते हैं कि वह अपना गृह-कार्य करे या कुछ पढ़े, कुछ लिखे, कुछ समझे या आपके साथ बैठकर बात करे। वह आपका — जो खिलौना, जो आप लाए उसके लिए, जो वीडियो गेम आप लाये, वह लाया कौन ? वह आप ही तो लाये। आपने ही वह बीज बोया है। बच्चे ने की हठ, आपने कहा ठीक है, मैं इसकी हठ नहीं सुनना चाहता हूं। मैं नहीं सुनना चाहता हूं कि यह हर एक रोज मेरे को टोके। एक चीज को टालने के लिए आपने दूसरी — एक बीमारी को निकालकर आपने दूसरी बीमारी डाल दी। अगर आप यह कहते "नहीं, नहीं!" क्यों ? आप समझते हैं कि सभी लोग यह गेम खेल करके बड़े हुए हैं। अरे! जब हम बड़े हो रहे थे यह ऐसे गेम नहीं थे तब क्या करते ? खुद खेलते थे। दोपहर का जो समय होता था, सब लोग सोये रहते थे तो हम भी जाते थे खेलने के लिए। और क्या-क्या खेल ? सब चीजों का खेल। कौन-सी ऐसी चीज है जिसके साथ नहीं खेल सकते — पानी है उसके साथ खेल सकते हैं, नलका है उसके साथ खेल सकते हैं, जो चीज सामने आए। कुछ और नहीं आ रहा है, क्योंकि उस समय तो टीवी भी नहीं था हिंदुस्तान में। क्या देख रहे हैं ? चीटियों को देख रहे हैं, कहीं बादलों को देख रहे हैं, कहीं फूलों को देख रहे हैं।

बात यह नहीं है, बात यह है कि जो कुछ भी हम अपने परिवार के साथ करना चाहते हैं उन चीजों के बीज हमने किस प्रकार बोये हुए हैं उसी का फल हमको मिलेगा। हम अगर अपने दोस्तों के साथ हैं तो किस प्रकार के बीज हमने उन दोस्तों के साथ बोये। अच्छे बोये हैं उसका फल अच्छा मिलेगा। ख़राब बोये हैं उसका फल खराब मिलेगा। बीजों का तो यह कानून है। और कहावत भी है — “बोये पेड़ बबूल का, आम कहाँ से होय॥” जब कांटों वाली कोई चीज का बीज लगाया है तो फिर तुम आम की अपेक्षा अगर करो तो कैसे होगा ! लोग पूछते हैं ऐसा क्यों है, ऐसा क्यों है, ऐसा क्यों है ? पर ऐसा क्यों है ?

एक प्रश्न मेरे पास आया है कि “भगवान को किसने बनाया ?” मैंने भी सोचा! 8 साल का बच्चा पूछ रहा है कि "भगवान को किसने बनाया?" यह सवाल, यह सवाल बहुत बढ़िया सवाल है। और 8 साल के बच्चे की अगर यहां यह — खोपड़ी चल रही है और वह सोच रहा है "भगवान को किसने बनाया?" अब वह तो — अगर वह वीडियो गेम खेल रहा है सवेरे से लेकर शाम तक, तो वह क्या सोचेगा यह बात! परन्तु यही बातें हैं सोचने की — क्या है यह ? मैं किस संसार के अंदर रह रहा हूं ? क्या यह दुनिया है ? ऐसा क्यों है जो है ? जो कुछ भी मैं देख रहा हूं ऐसा क्यों है ? क्यों यह दुनिया ऐसी है ?

अगर इसका सवाल भी कोई पूछे तो लोग तो आजकल यही जवाब देंगे "ऐसी है।" और मैं कहता हूं कि "ऐसी क्यों है ?" "ऐसी क्यों है?" — अगर यह प्रश्न पहले ही मनुष्य पूछता कि यह ऐसी इसलिए है — उत्तर तो यही होगा इसका कि इसलिए है क्योंकि तुमने ऐसी बनाई है। यह तुम्हारी बनाई हुई है। यह भगवान की — यह दुनिया जो है, माया जिसे कहते हैं, जिसके अंदर तुम सवेरे से लेकर शाम तक अपनी नाक को रगड़ते रहते हो, यह भगवान की बनाई हुई नहीं है, यह मनुष्य की बनाई हुई है। भगवान ने मनुष्य को जरूर बनाया — दो हाथ दिये, दो आँखें दीं, कान, नाक, मुंह, खोपड़ी दी सोचने के लिए, दिमाग दिया सोचने के लिए, परंतु हाथों पर हथकड़ी नहीं लगाई। पैरों पर हथकड़ी नहीं लगाई — "जाना है तू जहां जा सकता है, उत्तर जाना है, तेरे को उत्तर जा, दक्षिण जाना है, दक्षिण जा, पूरब जाना है, पूरब जा। जहां जाना चाहता है तू, जिस दिशा में जाना चाहता है जा।" और तेरे अंदर हृदय भी है — मनुष्य के अंदर हृदय भी है, मन भी है, हृदय भी है। और उसके अंदर प्यास भी है; उसके अंदर पानी भी है। उसके अंदर अज्ञान भी है; उसके अंदर ज्ञान भी है। उसके अंदर अंधेरा भी है; उसके अंदर प्रकाश भी है। अब बात सिर्फ इतनी है कि मनुष्य किस चीज को पसंद कर रहा है ? किस चीज को चूज़ कर रहा है, किस चीज को ले रहा है — अंधेरे को या उजाले को ? अज्ञानता को या ज्ञान को ? अगर अज्ञानता को लेगा, तो उसका भी उसको फल मिलेगा। भटकना पड़ेगा उसको। चाहे बाहर वह न भटके अंदर तो भटक रहा है, अंदर तो भटक रहा है।

मैंने देखा है बड़े-बड़े लोग, बड़े-बड़े लोग — उनके नाम के आगे क्या-क्या नहीं लिखा हुआ है। और उनको सम्मान की इतनी जरूरत है कि पूछो मत! किसी ने किसी दूसरे को माला पहना दी, उनको नहीं पहनाई तो उनका अपमान हो गया। गुस्सा हो जाएंगे, एक माला के कारण। अरबपति लोगों को हमने देखा है कुछ गड़बड़ हो गयी, गरम हो गए, अपमान हो गया। एक माला की कीमत क्या है ? क्या-क्या — फूलों की माला, क्या कीमत है उसकी ? जो अरबपति है, जिसके पास अरबों-अरबों-अरबों-अरबों पैसे हैं, पर उसको अगर एक माला नहीं मिली, उसको सम्मानित नहीं किया गया, तो उसका अपमान हो जाता है। ऐसे बीज बोये हैं। क्योंकि वह अपने आपको सम्मानित नहीं कर सकता। जो अपना सम्मान अपने आप नहीं कर सकता दूसरे क्या करेंगे उसका सम्मान। दिखावा है सब दिखावा है। हम आपको सम्मानित करते हैं, हम यह करते हैं, हम वह करते हैं। हमारे साथ हुआ है यह।

एक बार मैं एक जगह आया, इंग्लैंड में थी वह जगह। तो जैसे ही हमारी कार वहां रुकी तो वहां काफी सारे लोग खड़े हुए थे।

उन्होंने कहा , "अरे! कार को हटाओ यहां से, हटाओ, हटाओ, हटाओ, जल्दी हटाओ!”

तो मैं उतर रहा था, मैंने कहा "भाई क्यों? क्यों हटाएं हम अपनी कार को यहां से?"

कहा — "जी! कोई आने वाला है। बहुत वीआईपी आने वाला है।"

मैंने कहा, "ठीक है ! कार को यहां से हटा देते हैं, पर हम उतर तो जाएं कम से कम।" तो हम उतर गए ।

तो उसने फिर देखा मेरी तरफ। मैंने सूट नहीं पहनी हुई थी। मैंने शर्ट पहनी हुई थी, बड़ा कैज़ुअल रूप में था, बड़ा आरामदायक कपड़े पहने हुए थे। मैं — 4 घंटे, 5 घंटे का रास्ता था तो कार से ही आया था।

उन्होंने कहा — "अरे! आप ही का इंतज़ार हो रहा था।"

मैंने कहा, "कोई बात नहीं, कोई बात नहीं!"

फिर कहने लगे मेरे से सॉरी, सॉरी, सॉरी। मैंने कहा, कोई बात नहीं, तुम चिंता मत करो। वह तो मज़ाकिया बात है।

तो जो अपना ही सम्मान नहीं कर सकता और क्या करेंगे! अब उनको क्या — वह क्या देखना चाहते थे ? वह देखना चाहते थे — सूट। वह देखना चाहते थे — टाई।' और टाई मैंने पहनी हुई नहीं थी, तो मैं टाई हूँ, मैं सूट हूँ ? नहीं!

आप अपने जीवन में अपना सम्मान कीजिये। और यह जो समय है यह आपके जीवन का समय है, यह आपके जीवन का समय है और इसका पूरा-पूरा फायदा आप उठाइए।

सभी श्रोताओं को मेरा नमस्कार!

लॉकडाउन 23 00:25:31 लॉकडाउन 23 Video Duration : 00:25:31 प्रेम रावत जी द्वारा हिंदी में सम्बोधित (15 अप्रैल, 2020)

प्रेम रावत जी:

सभी श्रोताओं को मेरा नमस्कार!

आज के दिन मैंने सोचा कि आपको एक कहानी सुनाते हैं और यह एक कहानी है, जो बहुत लोगों ने सुन भी रखी है। अगर आप नए-नए हैं तो यह आपके लिए नई कहानी होगी।

एक समय था, प्राचीन काल का समय और भगवान राम और लक्ष्मण, सीता वनवास पर थे। तो एक दिन भगवान राम ने कहा कि "भाई लक्ष्मण! चलो थोड़ा घूम आते हैं।" तो वह चल दिए और चलते-चलते-चलते-चलते वह एक नदी के पास पहुंचे। उसके तट पर वह चलने लगे। नदी के किनारे बड़ा शीतल वातावरण था — पेड़ थे, चिड़ियाएँ थीं, नदी बह रही थी तो बहुत ही सुंदर सबकुछ था। तो उनको एक आवाज आई और वह आवाज थी किसी के रोने की।

तो कहा — "लक्ष्मण तुमको भी यह आवाज सुनाई दे रही है?"

कहा — "हां! प्रभु मेरे को भी यह आवाज सुनाई दे रही है।"

तो भगवान राम ने कहा — "चलो देखते हैं कहां से यह आवाज आ रही है।"

तो आगे गए तो देखा कि एक बेचारा लकड़हारा नदी के किनारे बैठा हुआ है। दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ हुआ और खूब जोर-जोर से रो रहा है।

भगवान राम गये कहा कि " भाई! क्या बात है क्यों तुम रो रहे हो ? क्या दुःख है तुम्हें ?”

तो लकड़हारा कह रहा है — "प्रभु! मैं लकड़ी काटता हूं उसी से मेरा पेट पलता है और सबसे बड़ी चीज मेरे लिए है कुल्हाड़ी और मैंने कुल्हाड़ी एक पेड़ के सामने रखी थी संभालकर और मैं मुंह-हाथ धोने के लिए गया नदी में और वह कुल्हाड़ी जो है मेरी नदी में गिर गई। अब मिल ही नहीं रही है।"

तो भगवान को उस पर दया आई। दयालु भगवान राम तो थे ही। जब दया आई तो उन्होंने अपना हाथ पानी में डाला और एक बहुत सुंदर कुल्हाड़ी जो चांदी की बनी हुई थी निकाली और लकड़हारा की तरफ दी कि "भाई! यह तेरी है ?"

ऐसी कुल्हाड़ी उसने अपनी जिंदगी में कभी देखी नहीं थी तो उसने कहा "भगवान बहुत सुंदर कुल्हाड़ी है यह, पर यह मेरी नहीं है।"

भगवान मुस्कुराए उनको लगा कि यह सचमुच में अच्छा आदमी है। मैंने चांदी की कुल्हाड़ी निकाली और उसने मना कर दी। फिर अपना हाथ डाला नदी में और एक सोने की कुल्हाड़ी निकाली और उसमें तरह-तरह के जेवरात बने हुए थे, लगे हुए थे भगवान राम ने कहा कि "यह तुम्हारी है ?"

कहा प्रभु, "यह भी मेरी नहीं है। मेरी तो बड़ी साधारण-सी कुल्हाड़ी है।”

तो भगवान राम ने फिर हाथ डाला और उसकी कुल्हाड़ी निकाली जो बहुत ही पुरानी, उसमें जंग चढ़ा हुआ, लकड़ी जो उसमें लगी हुई और टेढ़ी-मेढ़ी ठीक ढंग से नहीं, देखने में भी अच्छी नहीं थी। कहा — "यह तुम्हारी है ?"

लकड़हारा बड़ा खुश हो गया कहा, "हां! प्रभु यह मेरी है!"

भगवान राम इतने खुश हुए, इतने खुश हुए उससे कि उन्होंने उसको चांदी की कुल्हाड़ी भी दे दी, सोने की कुल्हाड़ी भी दे दी और उसकी जो पुरानी टूटी-फूटी कुल्हाड़ी थी, वह भी उसको सौंप दी।

अब बात यह है कि ऐसी ईमानदारी इस संसार में आसानी से नहीं मिलती है। सभी एक ही चीज में लगे हुए हैं "और बढ़ाओ, और बढ़ाओ।" कोई धनी है उसके पास बेशुमार दौलत क्यों न हो वह दिन-रात इसी मेहनत में लगा रहता है कि "मेरे पास और हो, और हो, और हो!" चाहे छोटा से छोटा हो। कोई ऐसा भी है जिसको सिर्फ एक रुपए से ही उसका काम चल जाएगा जिसके पास सौ हैं उसको सौ और चाहिए, जिसके पास हजार हैं उसको हजार और चाहिए, जिसके पास लाख हैं उसको लाख और चाहिए, जिसके पास करोड़ हैं उसको करोड़ और चाहिए, जिसके पास अरबों हैं उसको अरबों और चाहिए।

यही माया की रीत है और ऐसा बड़ी मुश्किल से मिलता है कि जो ईमानदार आदमी हो, जो सोने की कुल्हाड़ी को भी देखे या चांदी की कुल्हाड़ी को भी देखे और यह कह दे कि “यह मेरी नहीं है।” बहुत मुश्किल से आपको ऐसा व्यक्ति मिलेगा।

समय गुजर गया। कुछ समय के बाद फिर वही बात हुई भगवान राम ने कहा "भाई लक्ष्मण! चलते हैं थोड़ा घूम लेते हैं अच्छा रहेगा।" तो फिर उसी नदी के पास पहुंच गए और वहां पर चलने लगे। बड़ा सुहाना मौसम था। पेड़, चिड़िया और नदी की आवाज — सबकुछ बहुत ही सुहाना था। चलते-चलते उनको फिर किसी के रोने की आवाज सुनाई दी तो रोने की आवाज सुनाई दी तो "कौन है!" तो जब गए आगे तो देखा कि वही लकड़ी काटने वाला लकड़हारा अपना सिर पकड़े हुए रो रहा है।

तो भगवान राम ने कहा, " भाई! अब तेरे को क्या दुःख है ? फिर तेरी कुल्हाड़ी खो गयी क्या ?"

कहा, "नहीं महाराज मेरी कुल्हाड़ी नहीं खोई। हम — मैं अपनी बीवी के साथ आया था यहां जंगल में और हमलोग लकड़ी इकट्ठा कर रहे थे, काट रहे थे। जब दोपहर हुई तो हम इस पेड़ पर चढ़ गये ऊपर जो, और बड़ा सुहाना था, क्योंकि नीचे पानी बह रहा था ऊपर पेड़ था। तो हमने सोचा कि इसी पेड़ पर चढ़ करके और खाना खा लेते हैं दोपहर का और फिर थोड़ा आराम भी कर लेंगे, बड़ा अच्छा रहेगा। तो सबकुछ बड़ा अच्छा चल रहा था। खा रहे थे खाना, आनंद ले रहे थे। इतने में मेरी बीवी फिसल करके नदी में पड़ गयी। और अब बहुत खोजा उसको मैंने वह मिल ही नहीं रही है। तो मैं क्या करूं ? वही एक है जो मेरे लिए खाना बनाती थी, मेरा घर रखती थी, सबकुछ करती थी मेरे लिए। अब वह चली गयी तो मेरी जिंदगी का क्या होगा!"

भगवान राम ने कहा, "ठीक है, अच्छी बात है!" तो उन्होंने अपना हाथ नदी में डाला और एक बहुत ही सुंदर लड़की को बाहर निकाला। अब लड़की इतनी सुंदर कि पूछिए मत। तो कहा, "भाई यह तेरी है ?"

तो उसने देखा उस लड़की की तरफ और तुरंत बोलता है “हां! प्रभु यह मेरी ही है!"

भगवान राम ने कहा, "बदमाश! जब तेरी कुल्हाड़ी की बारी थी, तो तू बड़ा ईमानदार था और अब बीवी की बारी हुई है — तेरी बीवी खो गयी है तो इस लड़की के साथ तू शादी रचाना चाहता है। तू बहुत ही बेईमान आदमी है तेरे को तो दंड मिलना चाहिए।"

कहा, "प्रभु मेरी भी तो सुन लीजिए आप!

कहा, "क्या ?"

कहा कि "जब मेरी कुल्हाड़ी खोयी थी तो आपने पहले चांदी की कुल्हाड़ी निकाली और मैंने कहा, वह मेरी नहीं है फिर आपने सोने की कुल्हाड़ी निकाली मैंने कहा कि वह भी मेरी नहीं है तब आपने मेरी कुल्हाड़ी निकाली और जब आप मेरे से खुश हो गए तो आपने वह तीनों की तीनों कुल्हाड़ी मेरे को दे दी। मैंने सोचा कि आपने यह पहली लड़की निकाली है फिर मैं कह दूंगा कि यह मेरी नहीं है फिर आप दूसरी लड़की निकालोगे वह इससे भी खूबसूरत होगी और मैं कह दूंगा यह भी मेरी नहीं है तब आप मेरी वाली निकालोगे और जब आप मेरी वाली निकालोगे तो मैं कहूंगा, हां यह मेरी है और आप तीनों के तीनों मेरे को सौंप देंगे। अब मेरे से एक तो संभाली नहीं जाती, मैं तीन-तीन कहां से संभालूंगा।" तो यह बात है।

तो सचमुच में सोचने की बात है कि इस माहौल में, जो यह कोरोना वायरस का माहौल है, यह सब माहौल है। यह एक हमारे पास समय है कि हम कुछ सीखें इससे, कुछ संभालें इससे। हमारे अंदर जो यह उद्गार होते हैं कि "और चाहिए, और चाहिए, और चाहिए।" जो यह कंजूसी होती है इसका हम क्या करें ? यह तो मनुष्य को शोभा नहीं देते। जैसे कि जब उसने कंजूसी नहीं दिखाई तो भगवान राम ने उसको और दिया। जब मनुष्य के अंदर (जो अंग्रेजी में जेनरॉसिटी generosity कहते हैं) कि हृदय से वह दे! तो देना किसी को — देखिये! बात पैसे की नहीं है, बात किसी चीज की नहीं है, कोई चीज और भी है जो आप दे सकते हैं। जैसे बाप अपने बेटों को, अपनी बेटियों को प्यार दे सकता है। पति अपनी पत्नी को प्रेम दे सकता है। पत्नी अपने पति को प्रेम दे सकती है — उपहार की बात नहीं कर रहा हूं मैं। यही, यह जो प्रेम है, यह जो समय है, यह सबसे बड़ा उपहार है। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को क्या दे सकता है ? हम लोगों ने तो रीत बना ली है हमारे संसार के अंदर कि किसी को कुछ देना है।

सबसे बड़ी चीज देने कि वह है क्या — वह प्रेम, वह असली चीज है जो हम किसी को दे सकते हैं। अब जब लोग हैं इस सिचुएशन (situation) के अंदर, इस परिस्थिति में कि कहीं जा नहीं सकते बाहर, लॉकडाउन है, तो घर में बैठे हैं। अरे! इसका यह मतलब नहीं है कि आप किसी को प्रेम नहीं दे सकते हैं। प्यार नहीं दे सकते हैं। जो रिस्पेक्ट होती है, जो इज्जत होती है वह आप दे सकते हैं। इस संसार के अंदर सबसे बड़ी बुरी आदत हम लोगों की क्या है कि अब हम लोगों ने एक दूसरे को सुनना बंद कर दिया है। परिवार में बाप नहीं सुनता है, बेटा बाप की नहीं सुनता है, बाप बेटा की नहीं सुनता है। पति पत्नी की नहीं सुनता है, पत्नी पति की नहीं सुनती है, पत्नी बेटों की, लड़कियों की नहीं सुनती है। एक-दूसरे में कोई किसी की नहीं सुन रहा है। सुनना बंद कर दिया है। जो मैं सोच रहा हूं बस वही होना चाहिए, वैसा ही होना चाहिए और कुछ नहीं।

पर यह सच्चाई नहीं है! एक मनुष्य होने के नाते, एक परिवार के सदस्य होने के नाते सबसे बड़ा उपहार जो आप दे सकते हैं वह किसी वस्तु का नहीं है वह इन भावनाओं का है, वह इस प्यार का है, वह इस आनंद का है। और जब हम यह भाव देंगें कहा है कि —

तुलसी या संसार में कर लीजिए दो काम देने को टुकड़ा भला लेने को हरि नाम

तो अपने जिंदगी के अंदर अगर हम उस चीज को अपनाएं जो असली में मनुष्य की असली इंसानियत है तो क्या-क्या नहीं बदल सकते हैं हम अब। क्या-क्या हमारे जीवन के अंदर, हमारे इर्द-गिर्द परिस्थितियों में — अब कई प्रश्न हैं जो आते हैं "मैं इस चीज के बारे में क्या करूं मैं परेशान हो जाती हूं" यह — अरे! सिर तो परेशानी में डाला हुआ है। समस्या से आई परेशानी, सिर घुसाया हुआ है परेशानी में, परेशान हो रखें और समस्या क्या इसको कोई नहीं देख रहा है। क्या है समस्या ?

बेटा बोलता है, "मैं नहीं पढूंगा! मैं नहीं पढूंगा।" माँ-बाप परेशान होते हैं। उसको पीटते हैं, उसको मारते हैं, उसको गाली-गलौज देते हैं, उसको भला-बुरा कहते हैं। अगर, अगर सचमुच में दो मिनट बैठकर उस बेटे से बात की जाये — क्यों नहीं पढ़ना चाहता है, क्या दिक्कत है, क्या खराबी है। हो सकता है वह यह कहे कि "जो पढ़ाया जा रहा है वह मेरे को समझ में नहीं आ रहा है।" अगर उसके समझ में नहीं आ रहा है तो उसकी गलती थोड़ी है। समझने का कोई वॉल्व थोड़ी होता है, समझने का कोई स्विच थोड़ी होता है। जब नहीं आ रहा है तो नहीं आ रहा है उसकी मदद करनी पड़ेगी, उसके साथ बैठना पड़ेगा, उसको और समझाना पड़ेगा।

जब स्कूलों में भेजते हैं हम, कैसे स्कूलों में भेज जाता है हिन्दुस्तान में ? ऐसे-ऐसे स्कूलों में भेजा जाता है बच्चों को, जहां इतने-इतने विद्यार्थी हैं एक-एक कक्षा के अंदर — अगर किसी का प्रश्न भी है तो उसका उत्तर उनको नहीं मिलेगा। और मास्टर जी हैं उनको क्या है — “भाई सारी क्लास को पूरा करना है।” वह 45 मिनट उनके पास हैं, उसमें सारी क्लास को पूरा करना है, पढ़ाना है। वह पढ़ा रहे हैं इसका यह मतलब नहीं है कि — उनको यह भी देखना है कि किसी के दिमाग में जो पढ़ा रहे हैं वह जा भी रहा है या नहीं! बस बोले जा रहे हैं, बोले जा रहे हैं, 45 मिनट के लिए उनको कहना है, जो उनका करिक्यूलम (curriculum) है उसके हिसाब से उनको पढ़ाना है, पढ़ाया और उनका काम पूरा हुआ।

मेरे को कैसे मालूम ? 'भाई! मैं भी तो जाता था स्कूल में।' सारी यही बात होती थी और जो — रांची के अंदर जो जन-भोजन की योजना है, उसके तहत जो वहां बच्चे आते हैं उनसे मैंने एक दिन बात की इस बारे में। तो यह बात तो समझने की है कि अगर किसी की — हो सकता है कि किसी के जीवन के अंदर किसी प्रकार का कष्ट है इसलिए कोई काम नहीं कर रहा है तो इसका मतलब यह थोड़ी है कि गुस्सा हो जाने से कोई काम हल हो जाएगा। ईर्ष्या, द्वेष यह जब परिवार के अंदर आता है — यह परिवार के अंदर नहीं आना चाहिए परन्तु जब भी यह परिवार के अंदर आता है यह परिवार को तबाह कर देगा, यह परिवार को तबाह कर देगा। यह नहीं होना चाहिए कभी परिवार में। सभी लोग कहते हैं परिवार को मिलजुल कर रहना चाहिए। परन्तु परिवार मिलजुलकर क्यों नहीं रहता है ? क्योंकि एक को किसी से समस्या है, कोई किसी से समस्या है...

एक बार एक विद्यार्थी ने — एक बार गया था मैं कहीं, तो उसने कहा कि मेरे सारे परिवार में लोग लड़ते हैं, झगड़ते हैं। मैं इस लड़ने-झगड़ने को बंद कैसे करूं ? मैंने कहा कि तुम जब देखते हो कि सब लड़ रहे हैं, झगड़ रहे है, तुम्हारा उस लड़ने और झगड़ने में, तुम्हारे परिवार के लड़ने में और झगड़ने में तुम्हारा योगदान क्या है ? मतलब कि तुम क्या करते हो जब सब लोग लड़ रहे हैं और झगड़ रहे हैं — तुम उसका आनंद लेते हो, उसका मज़ा लेते हो ? यह भी होता है। यह भी होता है। यह सारी चीजें परिवार में नहीं होनी चाहियें। हर एक परिवार का सदस्य एक महत्वपूर्ण सदस्य है और उस महत्वपूर्ण सदस्य को वह दर्ज़ा मिलना चाहिए, उसकी बात सुननी चाहिए, उसकी बात समझनी चाहिए। यह नहीं कि मैं भी परेशान हूं, मैं भी परेशान हूं, मैं भी परेशान हूं, मैं भी परेशान हूं, मैं भी परेशान हूं। वही वाली बात होती है बाप परेशान है, काम के कारण परेशान है। उसको यह करना पड़ता है, वह करना पड़ता है इसलिए वह परेशान है। मां परेशान है क्योंकि बाप परेशान है। बच्चे परेशान हैं क्योंकि मां और बाप परेशान हैं। और उनको यह करना है, उनको यह चाहिए, उनको यह चाहिए, उनको यह चाहिए।

अब दुनिया आसान थोड़ी है कोई। दुनिया कहती है “मेरे पास यह है, मेरे पास यह है, मेरे पास यह है, तेरे पास नहीं है।” अरे! किसी के पास कुछ है, किसी के पास कुछ नहीं है का क्या मतलब हुआ ? कुछ मतलब नहीं हुआ। जिसके पास वह नहीं है, जो दूसरे के पास है तो इसका मतलब है कि उसके पास कुछ और है जो उसके पास नहीं है। क्या है उसके पास ? अगर उसके पास फोन नहीं है तो उसके पास परेशान होने की कोई चीज नहीं है। उसके पास भी कुछ है। वह सोच सकता है, वह विचार सकता है, क्योंकि जिसके पास वह फ़ोन है — जो हमेशा आता रहता है, टेक्स्ट करना है, यह करना है, ईमेल है, फ़ोन है, यह है, वह है। वह सोचता थोड़े ही है। सारे दिन उसके पास सोचने के लिए समय नहीं है। जिसके पास वह नहीं है उसके पास सोचने के लिए समय है। उसके पास आनंद लेने के लिए समय है। उसके पास — यह तो वह वाली बात आ जाये कि अगर किसी को भूख लगी हो और कोई जा रहा हो रोड पर और आम का पेड़ मिल जाए और आम के पेड़ पर स्वादिष्ट से स्वादिष्ट आम लगे हुए हैं। आप जानते हैं अच्छी तरीके से एक हाथ से तो आम खाया नहीं जाता। आम के लिए तो दो हाथ चाहिए। उसको मसल-मसलकर अंदर से उसका गूदा निकालकर जब मुंह में डालेंगे तब मजा आता है उसमें। तो जिसके पास फोन है वह उसका मज़ा थोड़ी ही ले सकता है। कैसे, कैसे — एक हाथ से उसको कभी फ़ोन यहां रखना पड़ेगा, कभी यहां करना पड़ेगा, फिर खाने की कोशिश करनी पड़ेगी तो उसके साथ दिक्कत हो जायेगी। पर जिसके पास नहीं है वह अपना ठाट से, दोनों हाथों से उस आम का आनंद ले सकता है, यह होता है। सबके लिए सबकुछ है। बनानेवाले ने सबको सबकुछ दिया है। कोई अपने आप को — किसी को नहीं समझना चाहिए कि वह अभागा है। ना! यह सारे जितने भी बना रखे हैं लैबल कि "तू पढ़ा-लिखा है, मैं अनपढ़ हूं!" ना, इसमें पढ़े-लिखे की बात नहीं है, अनपढ़ की बात नहीं है। पढ़ा-लिखा भी कोई हो इसका मतलब यह थोड़ी है कि वह दाल बना सकता है, रोटी बना सकता है और कोई ऐसा भी हो जो पढ़ा-लिखा ना हो पर वह दाल बना सकता है, रोटी बना सकता है।

यह तो वही वाली बात है — एक बार एक बहुत विद्वान पंडित एक नौका में सफर कर रहे थे। तो उन्होंने जो मांझी था उससे पूछा कि — "भाई! तुम कितने पढ़े-लिखे हो?"

कहा कि "मैं तो पढ़ा-लिखा नहीं हूँ।"

कहा, “ओह! तुमने तो अपनी सारी जिंदगी बर्बाद कर दिया।"

वह नदी के बीच में — केवट जो है, वह नदी के बीच में नाव को ले जा रहा है। और पंडित जी पूछ रहे हैं "तुमने कहीं भ्रमण किया है, कहीं तीर्थ गए हो ?

कहा, “नहीं जी! मैं तो कहां जा सकता हूँ मैं तो इसी में लगा रहता हूं दिन-रात!”

कहा, "तुमने तो सचमुच में अपनी सारी जिंदगी खराब कर दी।" थोड़ा और आगे गए।

पंडित जी ने कहा — "और कुछ है तेरे पास जो तूने सीखा, जाना ?”

कहा, "जी मेरे को तो सिर्फ यह नौका ही चलानी आती है।"

पंडित जी ने कहा — "तूने तो अपनी सारी जिंदगी खराब कर दी। कुछ नहीं सीखा तूने, कुछ नहीं पढ़ा तूने, तू अनपढ़ है।"

तब वह केवट बोलता है कि "पंडित जी! मैं एक सवाल आपसे पूछ सकता हूं ?”

पंडित जी ने कहा — "क्या ?"

तो केवट ने कहा, "आपको तैरना आता है, आपको तैरना आता है ?"

तो पंडित जी ने कहा "नहीं भाई! हमको तो तैरना नहीं आता है। हमको तैरने की क्या जरूरत है। हमने वेद पढ़े हुए हैं, शास्त्र पढ़े हुए हैं, हमने रामायण का अध्ययन किया हुआ है, गीता का अध्ययन किया हुआ है, सब चीजों का अध्ययन किया हुआ है। हमको तैरना नहीं आता है तो क्या बड़ी बात है!"

कहा, "पंडित जी! तैरना नहीं आता है, यही आपने नहीं सीखा। मेरी तो जिंदगी होगी बर्बाद जब होगी पर, आपकी बर्बाद तो अब हो गई है, क्योंकि इस नौका में हो गया है छेद और यह नौका धीरे-धीरे पानी में डूब रही है और अगर आपको तैरना नहीं आता तो आप आज मरेंगे।"

बात यह नहीं है कि क्या सीखा हुआ है! हर एक व्यक्ति की जिंदगी के अंदर बनाने वाले ने एक उपहार दिया है, सबको एक उपहार दिया है। वह क्या उपहार है — यह नहीं है कि "तुम यह नहीं कह सकते हो कि तेरा उपहार बड़ा है या मेरा उपहार बड़ा है। ना! यह नहीं कर सकते, यह नहीं कह सकते। सबका अपना-अपना है। वह तुम्हारे लिए है। जिसको करने से तुमको आनंद मिल सकता है। तुम्हारा जीवन धन्य हो। तुम समझ पाओ बस! यह उपहार सबको मिला हुआ है क्या उपहार है वह — खोजो उसको जानो।”

कोई कविता लिख सकता है, कोई कविता सुन सकता है। अच्छा! "आप कहेंगे कि कविता सुनने वालों में क्या-क्या-क्या-क्या बड़ी बात है ?"

अजी! एक बात सुनिए आप! अगर कविता सुनने वाले नहीं होते तो कविता सुनाने वाले क्या करते ? किसको कविता सुनाते ? सुनाते हैं यह तो लोग समझते हैं कि एक उपहार है जो सुनते हैं उनको नहीं कहते हैं कि उपहार है। परन्तु कविता सुनने वाले नहीं होते तो कविता सुनाने वाले क्या करते ? कुछ नहीं करते, न कविता लिखते, क्योंकि कोई सुनने वाला था, कोई सुनने वाला है, तभी तो वह उठकर सुनाते हैं उसको कविता। जब कोई है ही नहीं तो क्या सुनाएंगे। तो सबको एक उपहार मिला हुआ है अपने जीवन के अंदर। उस उपहार को जानो और अपने जीवन को सफल बनाओ!

सभी लोगों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

लॉकडाउन 22 00:19:16 लॉकडाउन 22 Video Duration : 00:19:16 प्रेम रावत जी द्वारा हिंदी में सम्बोधित (14 अप्रैल, 2020)

प्रेम रावत जी:

सभी श्रोताओं को मेरा नमस्कार!

मेरी यही आशा है कि आप सबलोग कुशल मंगल होंगे, तंदरुस्त होंगे और आनंद में होंगे। क्योंकि जब हम उस आनंद में हैं तो हमारे लिए मंगल ही मंगल है। अमंगल क्या है — जब विपदा सिर पर आती है। अमंगल क्या है — जब हम अपना रास्ता खो जाते हैं। जब हमको वह चीज नहीं दिखाई देती है जो स्पष्ट हमारे सामने है तो हम अपना रास्ता खो बैठें। और जब रास्ता खो जाते हैं और सबसे बड़ी बात रास्ता खोने की यही है कि जब मनुष्य खोने लगता है अपना रास्ता तो उसको मालूम नहीं पड़ता है कि "अब मेरा रास्ता मैं खो रहा हूँ!" अब मैं भटक रहा हूं — यह सबसे बड़ी बात है कि जब मनुष्य भटकने लगता है तो कोई ऐसी चीज नहीं है जो आकर उसको यह बताये कि अब तुम भटक गए हो। जब वह पूरी तरीके से भटक जाता है, तब उसको एहसास जरूर होता है कि "मैं भटक गया हूँ।"

अगर आपके घर से कहीं, जहां आप जा रहे हैं, दुकान पर जा रहे हैं या दुकान से घर पर आ रहे हैं और 10 मिनट का रास्ता है। आपको मालूम है कि 10 मिनट का रास्ता है 10 मिनट के बाद आपका मकान आपको मिल जाएगा और आधे घंटे के बाद भी अगर आप अपने घर पर नहीं पहुंचे हैं तो कुछ ना कुछ तो खराबी है, कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है। तो कैसे गड़बड़ मालूम हुई ? जब आप देखते हैं, अपने घड़ी को देखते हैं कि "आधा घंटा हो गया, मैं अभी तक नहीं पहुंचा!" तो मैं खो गया हूँ। सबसे बड़ी बात मेरे कहने का मतलब यही है कि जब हम खो जाते हैं तो कई बार यह नहीं मालूम पड़ता है कि हम कब खोना शुरू हो गए और खो जाते हैं, भटक जाते हैं।

इस पृथ्वी के ऊपर अगर हम भटके तो कम से कम एक बात जरूर है कि पृथ्वी गोल है, तो अगर हम चलते रहे, चलते रहे, चलते रहे, तो वहीं वापिस पहुंच जाएंगे जहां से हम चालू हुए। समुद्र में भी सफर करना पड़ेगा और जगह-जगह जाना पड़ेगा, परन्तु फिर भी वापिस आ जायेंगे। परन्तु इस जीवन में जब भटक जाते हैं तो फिर वापिस कैसे आएं ? जब इस जीवन में हम भटक जाते हैं, सही रास्ते पर नहीं हैं, क्योंकि जब हम पैदा होते हैं तो हमारे सामने यह सारी बड़ी-बड़ी जो मुश्किलें हैं, जो आज हम जिन चीजों को मुश्किलें मानते हैं यह नहीं होतीं। क्या है, जीवन बहुत ही साधारण होता है — भूख लगी रोये, मां ने खाना दे दिया। सब ठीक है। उसके बाद प्यास लगी रोये, मां ने दूध दे दिया। जब संतोष मिल गया तो सो गए, चुप हैं। धीरे-धीरे-धीरे करके हम चलना भी सीखते हैं।

यह मतलब नहीं है कि जब हमने चलना सीख लिया, तो हमको कोई मंज़िल हमारी पहले से ही हमने अपने मन में ठानी हुई थी और वहां जाएंगे। नहीं! कभी इधर जा रहे हैं, कभी उधर जा रहे हैं। कई बार तो मैंने छोटे-छोटे बच्चों को चलते देखा है, वह जाना कहीं और चाहते हैं और जा कहीं और रहे हैं। क्योंकि यह सारी चीजें हैं उनके सीखने की। और सबसे बड़ी बात कि बच्चा गिरता है, फिर उठता है। यह बात आप जानिये और इसको स्पष्ट रूप से समझने की कोशिश कीजिए मैं क्या कह रहा हूं कि बच्चा गिरता है और गिरता है, इधर-उधर देखता है कि सब ठीक है, अगर उसकी मां हंस रही है तो फिर सब ठीक है। फिर उठता है, फिर दो-तीन कदम चलता है, फिर गिर जाता है। फिर उठता है, फिर दो-तीन कदम चलता है, फिर गिरता है।

मतलब उस बच्चे को गिरने से कोई शिकवा नहीं है — "गिरा-गिरा" कोई बात नहीं "उठना" उसका मतलब है। गिरा तो यह नहीं है कि "माँ! मैं गिर गया, मैं गिर गया, मैं गिर गया, मैं गिर गया, मैं गिर गया, मैं गिर गया!" ना! इधर-उधर देखता है सब ठीक है, फिर उठता है, फिर चलने लगता है। यह चीज आप सबने देखी है, जानते हैं कि बच्चों के साथ यह सब होता है। तो इसका मतलब है कि आप भी जब बच्चे थे आपके साथ भी यह हुआ।

अगर मैं इसको एक शक्ति मानकर चलूं कि यह एक शक्ति है कि जो गिरने के बाद भी उठने की प्रेरणा देती है और गिरने में कोई शर्म की बात नहीं है, पर इतनी हिम्मत जरूर है कि बजाए कि बच्चा शर्म से — मतलब अपनी आँख नीचे करे या रोये या कुछ करे, वह उठता है और फिर चलने लगता है। यह जो शक्ति हम सब में थी यह कहां गयी, क्या हुआ इस शक्ति का ? क्योंकि आज जब हम गिरते हैं — और मेरा मतलब गिरना नहीं है जैसे लुढ़क गए जमीन पर उसका मतलब नहीं है, पर जब हम गिरते हैं — मतलब हमने कोई गलत काम कर दिया या कोई काम ठीक नहीं हुआ या किसी ने कुछ बुरा कह दिया हमको, इस प्रकार का गिरना, जिससे हमको दुख हो तो फिर हम दोबारा उठने की कोशिश क्यों नहीं करते हैं ? उसी के पीछे क्यों लग जाते हैं — "अरे! यह हो गया, वह हो गया, अब क्या होगा मेरा, क्या नहीं होगा।” अब बच्चा अगर यह कहने लगे — "मैं गिर गया, अब क्या होगा, अब मैं तो कभी चल ही नहीं सकूंगा, अब मैं कभी जा ही नहीं सकूंगा, मैं स्कूल कैसे जाऊँगा, मैं फुटबॉल कैसे खेलूंगा, मैं क्रिकेट कैसे खेलूंगा, मेरे साथ अब क्या होगा; यह तो अन्याय हो गया मेरे साथ, किसने यह मेरे साथ किया, यह किस कर्मों का फल है!" कर्मों का फल — तुम समझते हो कि जब बच्चा चलने लगता है और गिर जाता है तो वह बैठ करके यह कहता है "अरे मां! मेरी जन्म-पत्री लाओ, मेरे को बताओ मेरे कौन से कर्मों का फल है कि मैं गिर गया!" क्या समझते हैं ?

किसी बड़े स्वामी के पास जा रहा है; किसी पंडित के पास जा रहा है, "मैं तो 10 नारियल चढ़ाऊंगा मेरे को उठने की शक्ति दो!" ना! बच्चा — उसके लिए गिरना भी और उठना भी उतना ही सरल है। उसको उठने में और गिरने में कोई शर्म नहीं है। पर मनुष्य को है। "मैं गिर गया, मेरे साथ यह हो गया, मैं फेल हो गया या मेरे को पास करवा दो मैं 10 नारियल चढ़ाऊंगा।" तुम समझते हो वह जो छोटा बच्चा है वह कहता है "हे प्रभु! आज मेरे को गिराना मत, मैं तुमको 10 नारियल चढ़ाऊंगा।" ना, उसको क्या, उसको प्रभु — प्रभु तो उसका सब जगह है, मतलब उसको अपने भगवान से जो उनका नाता है, रिश्ता है, आनंद का जो रिश्ता है, आनंद का नाता है वह हर एक जीवन के हर एक क्षण में वह आनंद लेना चाहता है, देखना चाहता है, सुनना चाहता है। ऐसी-ऐसी आवाज़ें, उसके लिए सबकुछ नया है। हमारे लिए तो सबकुछ पुराना है — "हां! मैंने सुनी हुई है, यह आवाज सुनी हुई है, वह आवाज सुनी हुई है।" पर जो छोटा बच्चा है उसके लिए "हां! मैंने यह आवाज कभी नहीं सुनी।"

तुम जब बादलों को देखते हो तो क्या कहते हो अपने से ? कुछ नहीं! बादल आये, आये! तुम जानते हो कि हर एक बादल जो आकाश में आता है, उसका रंग-ढंग सबकुछ अलग है। मनुष्य को तो लगता है कि सब एक ही जैसे हैं। पर एक जैसे, कैसे हैं ? सब अलग-अलग हैं। जब बारिश होती है, एक-एक बूंद उस बारिश की अलग-अलग है। जब बर्फ पड़ती है, एक-एक क्षण जो बर्फ पड़ रही है, वह सारी बर्फ — उसका एक-एक हिस्सा अलग-अलग है। वैज्ञानिक लोग कहते हैं कि जब तुम तारों को देखते हो, आकाश में जब तारों को देखते हो तो कितने तारे देख रहे हो ? जितने-जितने भी समुद्र के किनारे, नदियों के किनारे, जितनी भी रेत है, उनका हर एक-एक-एक जो कण है उससे ज्यादा हैं सितारे आकाश में। जब मैंने पहली बार यह बात सुनी, मैं अचंभे में रह गया कि ऐसे कैसे सम्भव हो सकता है! परन्तु इतना विशाल है यह और इतने तारे हैं, इतने तारे हैं, इतने तारे हैं, इतने तारे हैं कि जितने समुद्र के किनारे जो रेत है उसका एक-एक कण भी लें तो उससे भी ज्यादा तारे आकाश में हैं।

यह सब कुछ अचंभे की बात हर समय तुम्हारे सामने हो रही है पर मनुष्य है कि उसके लिए क्या चिंता है — "मेरी भैंस कहां है ?" यह नहीं, मतलब एक तो चिंता यह है कि "मेरा क्या होगा, क्या मैं आज का जो दिन है जो कभी — सोचिये आप, विचारिये! मैं कहने वाला था कि आज का जो दिन है वह कभी वापिस नहीं आएगा। सोचिये आप, विचारिये! कब वापिस आएगा ? कभी नहीं, कभी नहीं, मतलब कभी नहीं, कभी नहीं — सौ साल में नहीं, दो साल में नहीं, दो करोड़ साल में नहीं, दो हजार लाख करोड़ साल में नहीं, दो अरब साल में नहीं, एक हजार, दो हज़ार, पांच हज़ार, दस हज़ार अरब सालों में भी नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं। कभी नहीं वापिस आएगा।

कितने ही लोग हैं जो अपने घर में बैठे हैं इस कोरोना वायरस की वजह से और बोर हो रहे हैं। तुम तो बोर हो रहे हो पर तुम्हारे सामने से क्या गुजर रहा है ? तुम्हारे सामने से गुजर रहा है यह दिन और यह दिन कभी वापिस आएगा नहीं। एक बार निकल गया तो यह निकल गया यह कभी-कभी, कभी-कभी, कभी-कभी, कभी वापिस नहीं आएगा। यह तुम जानते हो अच्छी तरीके से। इससे कोई अंजान नहीं है इस बात से कोई अंजान नहीं है । फिर भी लोग अपना समय किस तरीके से गुजार रहे हैं, जैसे फिर यह कल दोबारा आएगा।

कितने ही लोग इस कोरोना वायरस से मर गए। जब यह — जब वही लोग नवंबर में थे, तब उनको यह था कि कोरोना वायरस से मरेंगे ? नहीं! दिसंबर में यह सारी बातें चालू हुईं। तो क्या होगा, क्या नहीं होगा इसका सबकुछ होते हुए तुम इसके बारे में बता नहीं सकते। क्यों जी ? 2019 में क्या आपको मालूम था अप्रैल में कि यह होने वाला है ? तब तक तो आप सभी लोग, हम सभी लोग खोए हुए थे कि "टेक्नोलॉजी में यह हो गया, टेक्नोलॉजी में यह हो गया।" सबके पीछे क्या था "5G आएगा, जी! 5G आएगा।" अरे! 5G को मारो गोली, आ गया कोरोना जी। अब क्या करोगे ? सबको घर में बिठा दिया। मतलब कोई यह सोच नहीं सकता था, सोच नहीं सकता था। हमको अच्छी तरीके से याद है हम तो (मेरे ख्याल से नवंबर का समय था) नवंबर का समय था, 2020 की बात थी, इस साल की बात थी कि — "हम वहां जाएंगे, हम वहां जाएंगे, हम वहां जाएंगे, वहां जाएंगे, वहां जाएंगे, वहां जाएंगे, टूर की बात हो रही थी, तो वही वाली बात थी कि "हां! हिंदुस्तान चलें, वहां चलें, वहां चलें, वहां चलें, वहां चलें।"

यह किसी — एक भी व्यक्ति ने उस मीटिंग में यह नहीं कहा कि "जी! सब घर बैठे होंगे और आप भी घर में लॉक्ड होंगे" — किसी ने नहीं कहा। यह सोच भी नहीं सकता था कोई कि ऐसा समय होगा। अजी! हम तो सब जानते हैं, सबको ऐंठ थी अपनी, अहंकार जिसे कहते हैं। "हमने तो यह कर लिया हासिल, हमने यह कर लिया हासिल, हमने यह कर लिया हासिल।" अब कर लो हासिल क्या करना है! इसने अच्छे-अच्छों को बिठा दिया घर में। तो क्या करोगे ? कैसे करोगे ?

तब बात आती है उस हिम्मत की, उस दृष्टिकोण की कि "मैं अपने जीवन में उस चीज को पाऊं। अगर मैं गुम भी हो गया तो बात गुम होने की नहीं है, बात है वापिस रास्ते पर आने की।" उसके लिए कैसी हिम्मत की जरूरत है ? वैसी हिम्मत की जरूरत है कि बिना शर्म के, बिना किसी चीज को सोचे हुए, जैसे बच्चा जब गिरता है तो फिर उठता है और आगे चलता है। अभी वह चल नहीं सकता है, उसको अच्छी तरीके से मालूम है वह ज्यादा चल नहीं सकता है। वह एक-दो कदम लेता है, गिर जाता है। पर फिर उठता है और वह जो उसका उठना है वही एक चीज है जो उसको वह मौका देगी कि फिर वह दो कदम और चल सके। फिर तीन, फिर चार, फिर पांच, फिर छह, फिर सात और ऐसे-ऐसे वह चलता रहे और ऐसे-ऐसे करता रहेगा तो वह कुछ सीखेगा — और चलना सीखेगा।

यह बात है कि हम इसको अपने जीवन में अपनाएं, इस हिम्मत को जो हमारे अंदर है। जब हम बच्चे थे हमारे अंदर थी यह सबके साथ हुआ है — चाहे आप औरत हो, चाहे आप मर्द हो यह सबके साथ हुआ है और यह आपके अंदर अभी हिम्मत है। पर इस हिम्मत को बाहर लाओ और कैसे बाहर लाओगे ? जबतक तुम बात की स्पष्टीकरण नहीं करोगे। क्योंकि तुम दुख में — जो दुख में बात होती है, बात तो अलग है, दुख अलग है, जो बात तुमको दुख देती है वह बात अलग है, दुख अलग है। तुम्हारा सिर है घुसा हुआ दुख में, तुम वह जो बात जो तुमको दुख दे रही है उसको नहीं देख रहे हो और हटाना है उसको जो दुख दे रही है जैसे कोई अगर चीज है जिससे बदबू आ रही है, तो बदबू आ रही है तो अपना नाक बंद कर लिया। परन्तु तुमको अच्छी तरीके से मालूम है कि तुम कब तक अपना नाक बंद करोगे, स्वांस तो तुमको लेना पड़ेगा। तो तुम क्या करते हो ? तुम वही करते हो जो बुद्धिमानी रूप वाली बात है कि जो श्रोत है उस बदबू का उसको उठाकर कहीं फेंक देते हो, अपने से दूर। जब ऐसा करते हो तो बदबू भी उस चीज की उसके साथ चली जाती है। ठीक उसी प्रकार, जो चीज दुख देने वाली है तुम्हारा सिर घुसा हुआ है दुख में, तुमने अपनी नाक बंद कर रखी है जबतक वह चीज जो तुमको दुख दे रही है, जबतक उसको नहीं हटाकर फेंकोगे दुख तुम्हारा कहीं नहीं जाएगा, क्योंकि उसका श्रोत वह चीज है।

तो मुझे आशा है कि जो मैंने आज कहा उससे आपको कुछ समझ में आएगा और आप उसका पूरा-पूरा फायदा ले सकेंगे और आपके जीवन में थोड़ा-सा आनंद और आए। और आपका जीवन मंगलमय बीते।

सभी लोगों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

लॉकडाउन 21 00:10:57 लॉकडाउन 21 Video Duration : 00:10:57 प्रेम रावत जी द्वारा हिंदी में सम्बोधित (13 अप्रैल, 2020)

प्रेम रावत जी:

सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

आज का दिन जो है मैं कुछ विशेष करने के लिए जा रहा हूं और एक प्रेजेंटेशन है, स्लाइड शो है ताकि मैं आपको दिखा सकूं कि भारतवर्ष में जो कुछ थोड़ी-बहुत हमारी आर्गेनाईजेशन्स हैं — प्रेमसागर फाउंडेशन है; द प्रेम रावत फाउंडेशन है; राज विद्या केंद्र है और यूथ पीस फाउंडेशन है। तो वो — ये जो आर्गेनाईजेशन्स हैं यह क्या-क्या कर रही हैं इस कोरोना वायरस के समय हिंदुस्तान में!

एक तो बहुत ही महत्वपूर्ण बात यह है कि यह जो आर्गेनाईजेशन्स हैं — यूथ पीस फाउंडेशन है; प्रेमसागर फाउंडेशन है; आर वी के है; टी पी आर एफ है यह लोगों की मदद कर रही हैं। हम उनमें से नहीं हैं जो एक जगह बैठ करके सिर्फ भाषण दें। हम चाहते हैं कि सबका ही भला हो। यह तो स्पष्ट बात है कि —

बिन भोजन भजन न होय गोपाला।

ये लो अपनी कंठी माला।।

यह तो बात स्पष्ट है और इस समय एक मानवता के नाते हम लोगों के लिए जो भी कर पायें वह थोड़ा है। तो एक प्रेजेंटेशन है और वह प्रेजेंटेशन मैं पढूंगा, आप देखेंगे तो "कोरोना वायरस (कोविड-19) — राज विद्या केंद्र राहत अभियान" — इसमें प्रेमसागर फाउंडेशन भी है; द प्रेम रावत फाउंडेशन भी है; राज विद्या केंद्र तो है ही और यूथ पीस फाउंडेशन भी है। तो यहां आप देख सकते हैं कि "कोविड-19 — राहत अभियान भोजन सामग्री" जो लोगों में बांटी जा रही है —

राज विद्या केंद्र दिल्ली, जिला मजिस्ट्रेट साकेत दिल्ली को राहत कार्य के लिए — 1000 किलो आटा, 900 किलो चावल, 150 किलो दाल तथा 150 किलो हरी सब्जियां दी गयीं — (राज विद्या केंद्र दिल्ली, जिला मजिस्ट्रेट साकेत दिल्ली को भोजन सामग्री देते हुए) — आप देख सकते हैं इस फोटो में।

राज विद्या केंद्र दिल्ली, 500 पैकेट भोजन सामग्री पुलिस प्रशासन नॉर्थ वेस्ट दिल्ली को दी गई इसमें — 2500 किलो आटा, 500 किलो दाल, साथ में नमक, सरसों का तेल, हल्दी पाउडर शामिल हैं। इसके अतिरिक्त 1500 पैकेट की भोजन सामग्री प्रशासन को सहयोग देने के लिए तैयार हैं — (पुलिस प्रशासन नॉर्थ वेस्ट दिल्ली को भोजन सामग्री सौंपते हुए)

35 लोगों के लिए आइसोलेशन में सरकार के सहयोग के लिए आवास तैयार रखा गया है (अगर जरूरत पड़े तो) ।

पुलिस प्रशासन की मदद से रांची के बंटोली गांव में 111 लोगों को 555 किलो चावल, 111 किलो दाल, 111 किलो आलू, साथ में नमक और साबुन दिया गया है। (111 आलू नहीं होंगे 111 किलो होंगे, 111 गिन-गिनकर कौन आलू देगा)

राज विद्या केंद्र रांची आपस के 5 गांव में 68 लोगों के बीच 330 किलो चावल बांटा गया। राज विद्या केंद्र रांची, पुलिस प्रशासन रांची को लोगों की मदद के लिए भोजन सामग्री दी गई।

प्रेमसागर फाउंडेशन रांची 100 लोगों के आइसोलेशन में सरकार के सहयोग के लिए आवास तैयार रखा गया है — यह आवास है अगर जरूरत पड़े आइसोलेशन के लिए ताकि लोग आनंद से रह सकें, प्रेम से रह सकें और आइसोलेशन का जो समय है वह पूरा हो सके उनके लिए।

यह राज विद्या केंद्र जयपुर की बात है — 24 परिवारों को 120 किलो आटा, 24 किलो चावल, 24 किलो दाल, साथ में नमक, बेसन, हरी सब्जी, मसाला और सरसों तेल दिया गया। (कम से कम खाना बनाकर खा सकते हैं लोग)

राज विद्या केंद्र जयपुर, पंवालिया गांव के सरपंच को भोजन सामग्री और हरी सब्जियां दी गई बांटने के लिए लोगों के बीच में।

राज विद्या केंद्र गोवा, पुलिस प्रशासन के अनुरोध पर जरूरतमंद लोगों के लिए गोवा में — 175 किलो आटा, 115 किलो दाल और 67 किलो चावल, साथ में नमक, तेल और हल्दी दी गई।

राज विद्या केंद्र कोलकाता स्थानीय प्रशासन के माध्यम से 300 पैकेट भोजन सामग्री — जिसमें 600 किलो आलू (किलो आलू, 111 किलो आलू, 111 आलू नहीं ), 750 किलो चावल, 150 किलो दाल, साबुन और बिस्कुट बांटा गया (साबुन साफ रहने के लिए, बिस्कुट खाने के लिए) ।

राज विद्या केंद्र कोलकाता, ग्राम पंचायत संकराली हावड़ा की मदद से 150 परिवारों को भोजन सामग्री दी गई — अब जो बेचारे गरीब लोग हैं उनके लिए और कोई राहत नहीं है अब उनको जो थोड़ा-बहुत भी मिल जाता है उससे वह अपना काम चला सकते हैं — पुलिस प्रशासन की मदद से लोगों को भोजन सामग्री दी गई।

राज विद्या केंद्र सिक्किम में प्रशासन की मदद से 28 वृद्ध लोगों को सहायता दी गई।

राज विद्या केंद्र मुरादाबाद लोगों की मदद के लिए 100 पैकेट भोजन सामग्री — जिसमें 500 किलो आटा, 200 किलो चावल, 100 किलो दाल, साथ में सरसों का तेल, हल्दी और साबुन दिया गया। (क्या मुरादाबाद में बिस्कुट नहीं भेजे?) — राज विद्या केंद्र मुरादाबाद पुलिस प्रशासन की मदद से लोगों को भोजन सामग्री दी गयी (तो यहां दे जा रही है।)

राज विद्या केंद्र देहरादून (यह हमारा शहर है) — 110 लोगों को 400 किलो आटा, 200 किलो चावल, 100 किलो दाल, साथ में आलू, तेल, प्याज और मसाला पैकेट भी दिया गया। (उनको भी बिस्कुट नहीं मिले! कुछ करना पड़ेगा।) — राज विद्या केंद्र देहरादून 110 लोगों को भोजन सामग्री देते हुए — ध्यान दें आप आसमान कितना साफ है फोटो में और आप देख सकते हैं इन फोटो में सारे नियमों का पालन किया जा रहा है, अधिकतर जितना हो सके।

राज विद्या केंद्र बोकारो झारखंड, बोकारो झारखंड — स्थानीय प्रशासन की मदद से 35 परिवारों को आटा, चावल, दाल, आलू, सब्जियां, नमक, मसाले, बिस्कुट ( बिस्कुट — इनको बिस्कुट मिल गए) और साबुन दिया गया — ये पैकेट बनाए हुए हैं, पैकेट देख सकते हैं आप।

हंस योग साधना केंद्र झुमरी तलैया में प्रधानमंत्री राहत कोष में 10 लाख रूपए की सहयोग राशि दी गई। मुख्यमंत्री राहत कोष में 5 लाख रूपए की सहयोग राशि दी गई। एस एन फ्लैगस फाउंडेशन मिर्जापुर, जिला अधिकारी डी एम मिर्जापुर को 1 लाख रूपए की सहयोग राशि दी गई। (यह देख लीजिये आप — एस एन फ्लैगस फाउंडेशन का साइन)

1500 किलो चावल पटेहरा गांव में प्रशासन की मदद से लोगों को दिया गया।

बहुत सारे वॉलिंटियर्स लगे हुए हैं लोगों की मदद करने में। यह तो बहुत अच्छी बात है और इस समय में भी लोगों की मदद की जाए यह तो बहुत ही सराहनीय बात है। एस एन फ्लैगस फाउंडेशन मिर्जापुर, लोगों की मदद के लिए पुलिस प्रशासन मिर्जापुर को भोजन सामग्री दी गई। एस एन फ्लैगस फाउंडेशन मिर्जापुर, लोगों की मदद के लिए जिला प्रशासन मिर्जापुर को भोजन सामग्री दी गई। एस एन फ्लैगस फाउंडेशन मिर्जापुर 30 लोगों के आइसोलेशन में सरकार के सहयोग के लिए आवास तैयार रखा गया है।

यह हेल्प-लाइन है — अगर किसी को हेल्प की जरूरत है तो — 91+91-7533003637 या फिर rvkender@rvk.in वहां पर आपलोग संपर्क कर सकते हैं।

सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

लॉकडाउन 20 00:14:21 लॉकडाउन 20 Video Duration : 00:14:21 प्रेम रावत जी द्वारा हिंदी में सम्बोधित (12 अप्रैल, 2020)

प्रेम रावत जी:

सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

आज के दिन मेरे को यही आशा है कि आप सब कुशल-मंगल होंगे और सबसे बड़ी बात यह है कि जैसे भी आप हैं, जिस भी परिस्थिति में आप हैं इस कोरोना वायरस के समय में आप आनंद में हैं, आप मंगलमय हैं। क्योंकि यह चीज सभी लोगों को चाहे कोई भी हो, चाहे अमीर हो, चाहे गरीब हो, सभी लोगों को उपलब्ध है। यह उसकी कृपा है, उस बनाने वाले की कृपा है कि चाहे कैसा भी माहौल हो, चाहे कोई भी चीज हो रही हो, चाहे कैसा भी कुछ हो रहा हो, कैसा भी दुख हो, कैसा भी प्रकृति की तरफ से कुछ भी हो रहा हो, अगर मनुष्य चाहे अपने जीवन के अंदर तो उन परिस्थितियों में भी आनंदमंगल रूप से अपने जीवन को बिता सकता है।

यही सबसे बड़ी बात है कि हम को जो और लोग कर रहे हैं, और लोग परेशान हो रहे हैं, कोई कुछ कर रहा — हम पढ़ते हैं न्यूज़ में, समाचार जब आते हैं तो किसी ने कुछ कर दिया, किसी ने कुछ कर दिया, कोई इस चीज का विद्रोह कर रहा है, कोई उस चीज का विद्रोह कर रहा है। क्या मांगा जा रहा है लोगों से — छोटी सी बात है कि अपने घर में रहो ताकि तुम इस बीमारी को फैला न सको। यह नहीं है कि अब से लेकर जबतक तुम मर नहीं जाओगे तबतक तुम आइसोलेट रहोगे, यह कोई नहीं कह रहा है। यही कहा जा रहा है कि कुछ दिन रहो, कुछ दिन सब्र करो। क्या आज के मनुष्य में सब्र करने की कोई क्षमता नहीं रह गयी है ? क्या सुनने की कोई क्षमता नहीं रह गई है ? सारी बातें एकदम पॉलिटिकल हो गई हैं। भाई! आप मनुष्य हैं! सबसे पहले आप मनुष्य हैं और मनुष्य होने के नाते सबसे पहले आपका जो एक फर्ज़ बनता है वह यह बनता है कि आप अपने को भी सुरक्षित रखें और आपके एरिया में, आपके क्षेत्र में जो लोग हैं वह भी सुरक्षित रहें।

यह जानने की बात है, यह पहचानने की बात है, यह इंसानियत की बात है। जब आप हैं जिंदा तो आप अगर किसी की मदद कर सकते हैं कि उन तक यह बीमारी न पहुंचे। आपके घर रहने से आप उनकी यह मदद कर रहे हैं कि यह बीमारी और लोगों तक न पहुंचे। आपको लगेगी अगर यह बीमारी तो आपके घर में जो लोग हैं उनको लग सकती है यह बीमारी। यह समझने की बात है कि मनुष्य होने के नाते आप इस समय किन-किन की मदद कर सकते हैं। मैंने हमेशा ही लोगों से कहा है कि "भाई! शांति तब होगी जब हर एक दिया जलेगा!" मेरे को अच्छी तरीके से मालूम है कि लोग इस बात पर मेरे पर हंसते थे कि आप एक-एक की बात कर रहे हैं।

आज एक-एक की ही बात की जा रही है। गवर्नमेंट भी एक-एक की ही बात कर रही है कि सभी को रहना चाहिए, क्योंकि एक-दूसरे से अगर लोग मिलेंगे तो कितने ही कितने, कितने-कितने, कितने-कितने, कितने कि उनको — मल्टिप्लाई होंगे तो कितने ही हजारों लोग इस बीमारी से प्रभावित होंगे। और बात यह है कि जब अस्पताल में जगह नहीं है, डॉक्टरों के पास जगह नहीं है, वह मैक्सड आउट हैं तो फिर कैसे आगे चलेगा! परंतु लोग हैं जो इन बातों पर ध्यान नहीं देते हैं और चीजों पर ध्यान देते हैं। अपनी-अपनी बात पर ध्यान देते हैं स्वार्थ यह होता है — असली स्वार्थ यह है कि जब ऐसा समय आए तो लोग सबकी बात नहीं मान रहे हैं, सबकी बात नहीं देख रहे हैं, सबका भला नहीं देख रहे हैं, सिर्फ अपनी बात मानना चाहते हैं इससे बड़ा स्वार्थ और हो नहीं सकता। क्योंकि यह समय है, यह समय है उन चीजों को परखने का कि "क्या तुम में सहनशक्ति है या नहीं ?" या इसी शक्ति के पीछे तुम लगे हुए हो — बांहों कि जो शक्ति है इसी के पीछे लगे हुए हो पर यहां की शक्ति कोई शक्ति नहीं है, यहां की शक्ति कोई शक्ति नहीं है। जब अगर ऐसा होगा तो फिर जो सचमुच में, जिसको खोखला कहते हैं, खोखला — बाहर से तो सबकुछ ठीक लगता है, पर अंदर कुछ है नहीं। वह बात हो जाएगी, वह बात हो जाएगी।

क्योंकि मनुष्य की असली पहचान है कि उसके अंदर की चीज क्या है ? उसके अंदर गुस्सा भरा हुआ है या प्रेम भरा हुआ है। उसके अंदर वह डरा हुआ है या उसके पास हौसला है आगे बढ़ने का। यह चीजें मनुष्य को बनाती हैं। यह चीजें आगे आना जरूरी हैं। यह चीजें बहुत जरूरी हैं कि जबतक इन चीजों से लोगों की पहचान नहीं होगी, जबतक ये चीजें लोगों की जिंदगी में तराजू नहीं बनेंगी, तबतक हमारी सोसाइटी बदल नहीं सकती है।

क्योंकि किसी के पास बड़ी कार है तो हम समझते हैं कि सबकुछ है उसके पास। अगर किसी के नाम के आगे यह लगा हुआ है, किसी के नाम के आगे वह लगा हुआ है, तो उसके पास सबकुछ है। ना! जिसके पास शांति है, जिसके पास वह हौसला है अंदर, जिसके पास वह धीरज है अंदर, उसके पास सबकुछ है।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।

माली सींचे सौ घड़ा, जब ॠतु तब फल होय।।

अगर कोई पौधा लगाये, बीज बोये और वह उसके पास जाये — बीज के पास थोड़ा पौधा जब आ जाता है बाहर जमीन से, उसको खींचे कि "बड़ा हो जा, बड़ा हो जा, बड़ा हो जा" तो बड़ा होगा ? वह तो निकल आएगा बाहर और जब बाहर निकल आएगा तो वह मर भी जाएगा। तो इसलिए असली चीज वही है कि जो अपने जीवन के अंदर, अंदर का कनेक्शन बना करके भी रहता है। यही नहीं है कि बाहर का कनेक्शन है सारा, बाहर ही सबकुछ है, बाहर ही सबकुछ है, बाहर — जैसे घर में, अब वह घर किस काम का जिस घर में सारी बत्तियां बाहर हैं, सारे बल्ब बाहर लगे हुए हैं और अंदर बिल्कुल अंधेरा है।

अरे! उजाला तो अंदर होना चाहिए, बाहर हो या ना हो। कम से कम अंदर तो उजाला होना चाहिए। इसी प्रकार मनुष्य के अंदर यही बात होनी चाहिए, क्योंकि अगर वह उजाला उसके हृदय में नहीं है, उसकी जिंदगी के अंदर नहीं है, तो उसकी जिंदगी अँधेरी है। यह एक ऐसा समय है कि मेरे ख्याल से, जनवरी 2019 में किसी ने नहीं सोचा होगा कि ऐसा समय आएगा। फरवरी में नहीं सोचा होगा, मार्च में नहीं सोचा होगा, अप्रैल में नहीं सोचा होगा, मई में नहीं सोचा होगा, जून में नहीं सोचा होगा, जुलाई में नहीं सोचा होगा, अगस्त में नहीं सोचा होगा। धीरे-धीरे-धीरे फिर आखिरी में, 2019 आखिरी में यह खबर आने लगी कि चीन में कुछ हो रहा है। और तब भी लोगों ने नहीं सोचा होगा, उनका यही विचार होगा "वहां हो रहा है वो लोग संभाल लेंगें, फिर हमसब ठीक हैं!"

पर यह एक ऐसी बीमारी निकली कि वहां से चली, तो ऐसी चली, ऐसी चली, ऐसी चली कि सारे संसार में फैल गयी। क्यों ? क्योंकि वही — एक जमाना था, 1918 से लेकर 1920 का समय जब एक 'स्पेनिश फ्लू' हुआ था, तो सब जगह नहीं फैला वह, क्योंकि सब जगह लोग जा नहीं रहे थे। कई जगह थे कि लोग जा ही नहीं रहे थे। परन्तु अब तो ऐसा हो गया है कि लोग हवाई जहाज से सफर करते हैं और एक देश से दूसरे देश, दूसरे देश से तीसरे देश, तीसरे देश से चौथे देश, सब जा रहे हैं। एक ऐसा जाल बिछा दिया है कि कहीं से कहीं, कहीं से कहीं, कहीं से कहीं — अब ऑस्ट्रेलिया से फ्लाइटें चलती हैं, लंदन जाती हैं, ऑस्ट्रेलिया से फ्लाइट चलती हैं, दिल्ली रूकती हैं, फिर लंदन जाती हैं, फिर लंदन से चलती हैं, फिर लॉस-एंजेलिस जाती हैं। अब तो ऐसा हो गया है कि लोग सफर करते हैं, करते हैं, करते हैं, ट्रैवल करते हैं, जाते हैं, जगह-जगह जाते हैं।

तो भाई, लोगों ने तो यही समझा है कि वह तो अच्छी बात है और अच्छी बात है भी कि लोग देखते हैं, सारे संसार को देखते हैं कि और जगह क्या-क्या हो रहा है! परन्तु वही कारण है कि सब जगह फैल गया! अब फैल गया तो फैल गया, परन्तु अब क्या करना है ? बात फैलने की नहीं है, अब क्या करना है ? अब किस हौसले से काम लेना है ? किस शक्ति को इस्तेमाल करना है ? ताकि हम इस समय में आनंदपूर्वक रह सकें। इसके लिए यह नहीं, इसके लिए यह इस्तेमाल करने की जरूरत है, यह इस्तेमाल करने की जरूरत है। यह, यह आपको बोर्डम से बचाएगा, बोर नहीं होना पड़ेगा।

अगर इस हृदय के आनंद को आप समझ गए तो आपको बोर्ड (bored) नहीं होना पड़ेगा और बुद्धिमानी से काम लीजिए ताकि आप सुरक्षित रह सकें। हृदय से काम लीजिये, आनंद लीजिये, जीने का आनंद लीजिये; हर स्वांस का आनंद लीजिये। अपने हृदय में उस आभार को प्रकट होने दीजिए कि मेरा जीवन धन्य है क्योंकि मैंने किसी चीज को समझा है अपनी जिंदगी के अंदर। मैंने किसी चीज को जाना है अपनी जिंदगी के अंदर है और जबतक मैं जानूंगा नहीं, जबतक मैं पहचानूंगा नहीं, तबतक मेरे लिए कुछ नहीं है। इसीलिए कहा कि —

ज्ञान बिना नर सोहहिं ऐसे।

लवण बिना भव व्यंजन जैसे।।

खाने में दिखता तो सब ठीक है, क्योंकि नमक दिखाई नहीं देता है खाने में, परन्तु गड़बड़ रहती है।

देखिये अभी एक बात का मेरे को ख्याल आया कि लोग घर में हैं, अब घर में हैं तो बीवी से कभी नहीं बन रही है, कभी बच्चों से नहीं बन रही है, कभी यहां नहीं बन रही है, कभी कोई, किसी से नहीं बन रही है, झगड़ा होता है लोगों का आपस में तो, जब वहां से Persia से लोग आए हिंदुस्तान में पहली बार (तो उधर की तरफ उतरे जो वेस्ट में है) तो जब वह उतरे तो वह राजा के पास गए और राजा से कहा कि "जी हमको जगह दीजिए जहां हम अपना घर बना सकें, मकान बना सकें, अपना बिज़नेस कर सकें!"

तो राजा ने कहा, "देखो मैं तुमको एक उदाहरण देता हूं तो उसने एक दूध का गिलास मंगवाया और एक छोटे-से गिलास में और दूध मंगवाया, तो उसने उस छोटे गिलास का दूध जो था वह बड़े गिलास में डाला और जो बड़ा गिलास तो पहले से ही फुल था, भरा हुआ था तो दूध गिरने लगा। तो राजा ने कहा कि यह हालत है हम पहले से ही फूल हैं, हम पहले से ही फूल हैं और अगर तुम इसमें आओगे, यहां आओगे तो ओवरफ्लो होगा। तो हम नहीं चाहते हैं कि ओवरफ्लो हो, तुम जाओ।"

वहां से जो लोग आए थे, तो वहां एक बुद्धिमान आदमी था, बुजुर्ग आदमी था, तो उसने कहा "अच्छा ठीक है! मैं आपको उत्तर देना चाहता हूं। तो राजा को कहा कि, एक गिलास दूध का लाइए तो दूध का गिलास लाया गया। उसने कहा, चीनी लाइये तो उसने चीनी ली और उस गिलास में, उस दूध के गिलास में डाली और चीनी घोल दी। कहा, हम ऐसे हैं, हम चीनी हैं। हम घुलकर — हम ओवरफ्लो कुछ नहीं करेंगे हम घुलकर मिठास डालेंगे। हम घुलकर इसमें, घुलकर मिठास डालेंगे।" तब राजा को समझ में आया और उसने उनको वहां रहने दिया।

आपके घर में जितने भी लोग हैं, क्या वह चीनी नहीं बन सकते कि वह इस माहौल में सबके लिए मिठास लाएं ? यह नहीं है कि ओवरफ्लो सिचुएशन हो बल्कि सबके लिए मिठास लाएं। कड़वापन करने के लिए तो सारी जिंदगी है, परंतु यह समय है कि यह मिठास से, आनंद से बीते और अंदर की शक्ति से बीते और समझ से बीते, हृदय से बीते, आनंद से बीते।

सभी लोगों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

लॉकडाउन 19 00:19:19 लॉकडाउन 19 Video Duration : 00:19:19 प्रेम रावत जी द्वारा हिंदी में सम्बोधित (11 अप्रैल, 2020)

प्रेम रावत जी:

सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

मेरे को आशा है कि आप सभी लोग कुशल-मंगल होंगे। आपके जीवन के अंदर इन परिस्थितियों में भी आनंद होगा, क्योंकि अगर वह आनंद आपके जीवन में नहीं है तो इस कोरोना वायरस में कोई ऐसी शक्ति नहीं है कि वह आपके उस आनंद को छीन सके। यह आनंद, यह शांति जिसकी मैं चर्चा कर रहा हूं यह कोरोना वायरस से कोई तालुक्कात नहीं रखती है। यह शांति, यह आनंद आप से तालुक्कात रखता है। जबतक आपके जीवन में यह स्वांस आ रहा है, जा रहा है तबतक यह शांति, यह आनंद जिस आनंद की मैं चर्चा करता हूं वह आपके अंदर है। अब बात इतनी है कि आप उस आनंद को चाहते हैं या नहीं ? क्योंकि जब कोई मनुष्य एक चीज को समझता है कि उसके लिए वह चीज बहुत जरूरी है, तो अपने ध्यान को उस चीज के ऊपर एकाग्र करता है। यह नहीं है कि वह इधर भाग रहा है, उधर भाग रहा है, यह कर रहा है, वह कर रहा है।

एक विद्यार्थी जो पांचवी कक्षा में पढ़ता हो, चौथी कक्षा में पढ़ता हो, हो सकता है कि कई बार उसका ध्यान पढ़ाई पर नहीं जाता है। वह अपने ही खेलने के ऊपर लगा हुआ है, कहीं यह विचार कर रहा है, कहीं यह ध्यान उसका कहीं और है, कहीं और है, कहीं और है। परन्तु जब कोई ऐसी चीज होती है जैसे कि कोई खबर आई उसके पास कि उसके लिए एक बहुत बढ़िया उपहार लाया जा रहा है और वह चंद ही क्षणों में उसके सामने होगा और बहुत ही सुंदर वह उपहार है। उस समय उसका ध्यान इधर-उधर नहीं भागेगा वह उस उपहार के ऊपर एकाग्रित होगा। क्यों होगा ? क्योंकि उसकी आशाएं उस उपहार में हैं, उस उपहार से बंधी हुई हैं। जब उसके सामने — जब कोई भी ऐसा चैलेंज आता है, कोई भी ऐसी चुनौती आती है "यह पढ़ना है; वह पढ़ना है।" हो सकता है कि उसको यह नहीं लगे कि उसके लिए वह जरूरी है, परंतु जब उसको लगे कि कोई चीज ऐसी है जो उसको आनंद देगी, जो उसको मजा देगी, जो उसके लिए मनोरंजन करेगी और वह चीज, वह चाहता भी है तो उसका ध्यान उस चीज पर एकाग्र होगा।

मनुष्य को अगर हम देखें तो अधिकतर मनुष्य सब एक ही जैसे काम करते हैं। यह हम सबको मालूम है — अभी कोरोना वायरस की वजह से, लॉकडाउन की वजह से ट्रैफिक बहुत कम है। पर जब नॉर्मल सबकुछ रहता है, तो एक ही समय सबलोग निकल कर आते हैं। एक ही समय उठकर सबलोगों को काम पर जाना है। एक ही समय सब लोगों को घर वापिस जाना है। एक ही समय लोग खाने के लिए निकलते हैं; एक ही समय लोग रात को अगर कोई इंटरटेनमेंट है, उसके लिए निकलते हैं। हम मनुष्यों में अंतर क्या रह गया ? फ़र्क क्या रह गया ? हम कौन हैं ? हम क्या हैं ? हमारा ध्यान किस ओर जा रहा है ? हमारा ध्यान जा रहा है — और मैं जानता हूं अच्छी तरीके से लोग हमसे कहते हैं कि "जी! हमको दो रोटी कमानी है। हमको दो रोटी कमानी है; पेट भरना है!" कहा है कि —

ये जग अंधा, मैं केहि समझाऊँ,

सब ही भुलाना पेट का धंधा।

मैं केहि समझाऊँ।।

सभी लोग इसी चीज के पीछे लगे हुए हैं कि हमारी भूख कैसे खत्म होगी ? एक तरफ अगर हम देखें तो सचमुच में इतना खाना उगता है, इतना खाना उगता है इस संसार के अंदर कि सब लोग खा नहीं सकते उसको। फेंका जाता है — खाना, भोजन फेंका जाता है। क्योंकि उसको वो लोग बांट नहीं सकते हैं। इतना, इतना, इतना उगाते हैं। फिर भी लोग लगे हुए हैं कि — "मेरे को दो कमाने हैं; मेरे को दो पैसे कमाने हैं; मेरे को दो रोटी चाहिए; मेरे को यह चाहिए; मेरे को वह चाहिए।" क्या इन चीजों का प्रबंध हम सारे ही इस पृथ्वी पर रहते हुए जो मनुष्य हैं, क्या इन चीजों का प्रबंध हम नहीं कर सकते हैं ? हम कर सकते हैं, परंतु जो चक्कर चला रखा है —

चलती चक्की देखकर, दिया कबीरा रोय।

दो पाटन के बीच में, साबुत बचा ना कोय।।

यही हाल होता है। कोई नहीं बचा। चक्की चल रही है; चल रही है; चल रही है; और इसमें सब पीस रहे हैं। क्यों ? माहौल ही ऐसा बना रखा है, माहौल ही ऐसा बना रखा है। अब देखिये! इतने लोग हैं, इतनी सारी चीजों का आविष्कार हो रखा है। एक समय था कि ऐसे फोन नहीं हुआ करते थे। जब पहली बार हमारे घर में फोन आया तो उसमें तो डायलिंग के लिए भी कुछ नहीं था। सिर्फ फोन था उसको उठाओ तो ऑपरेटर आती थी और ऑपरेटर को बताओ कि कौन-सा नंबर चाहिए या किसी का नाम तो वह अपने आप जोड़ती थी। इतनी टेक्नोलॉजी में, इतना सबकुछ एडवांस हो गया है, इतनी चीजों का अविष्कार हो गया है; ऐसे-ऐसे हवाई जहाज जो आवाज की गति से भी तेज चलते हैं; ऐसी-ऐसी चीजें, जो पानी के नीचे चलती हैं; पानी के ऊपर चलती हैं; ऐसी-ऐसी रेलगाड़ियां जो इतनी तेज चलती हैं कि एक समय था कि कोई सोच भी नहीं सकता कि इतनी तेज रेलगाड़ी चलेगी। ऐसी-ऐसी यंत्र जिनसे कहां से कहां की बात मालूम की जा सकती है; सैटेलाइट सिस्टम, जीपीएस सिस्टम, सैटेलाइट कम्युनिकेशन्स — सारी पृथ्वी में ऐसे-ऐसे, ऐसे-ऐसे, ऐसे-ऐसे अविष्कार हो रखे हैं जिसको हम — जिसकी लिस्ट बनाएं तो बहुत बड़ी लिस्ट होगी।

उसके उपरांत भी जब यह कोरोना वायरस आया, तो लोगों को डर लगा। यह नहीं था कि हमारे पास इतना हमने सबकुछ कर लिया है अब हमको डरने की जरूरत नहीं है। ना, डर रहे हैं लोग और अभी भी डर रहे है। इससे तो लोग बहुत परेशान हो रखे हैं। लोग अपने घर में नहीं रह सकते। घर लिया क्यों ? रहने के लिए। कितने ही दिन हुए होंगे जिस दिन — जब से उठे आप, सवेरे-सवेरे उठे, अपने दफ्तर के लिए तैयार हुए और आपकी यह इच्छा थी कि "आज घर में ही बिताया जाए" और कितने ही बच्चे होते हैं जो यही चाहते हैं कि "आज हम स्कूल ना जाएं, घर में ही बैठकर खेलें !"

"भैया और तो छोड़ो बात तुम्हारी यह चाहत ऊपर वाले ने सुन ली और ऐसा प्रबंध कर दिया कि तुमको अपने घर में ही रहना पड़े — एक दिन नहीं, दो दिन नहीं, तीन दिन नहीं, बहुत सारे दिन।" पर उससे भी तुम्हें खुशी नहीं है, उससे भी तुम खुश नहीं हो, क्योंकि तुम चाहते हो कि अब कुछ और हो। अभी तो लोग होंगे जो यह सोचते होंगे कि "यार! वह दिन आए कि मैं ऑफिस जाऊं, घर से निकलूं।”

देखिए! यह मन जो है आपको घर में भी परेशान कर रहा है और यह ऑफिस में भी परेशान करेगा। यही मन है जो मूवी थिएटर ले जाता है और मूवी थिएटर में भी परेशान करता है। यही मन है जो सब जगह घूमता रहता है, घूमता रहता है, घूमता रहता है और आपको परेशान करता रहता है और आप परेशान होते रहते हैं। यह परेशान करता रहता है — वह बात अलग है यह तो उसकी प्रकृति है। पर आप परेशान होते रहते हैं यह बात अचंभे की है और यह आपकी प्रकृति नहीं है। आपकी प्रकृति परेशान होने की नहीं है, आपकी प्रकृति है आनंद लेने की। तो यह अब क्या हो गया ?

मैं एक समय बोला करता था, एक समय क्या — जो मैंने सुनाया है लोगों को (2019 में भी सुनाया, 2018 में भी सुनाया) कि भाई! एक-एक दिया जब जलेगा तब जाकर के इस संसार के अंदर रोशनी होगी और मेरे को अच्छी तरीके से मालूम है कि ऐसे लोग हैं जो यह कहते होंगे कि "जी! आपका यह ख्वाब कभी पूरा नहीं होगा सब को जला नहीं सकेंगे। एक-एक को कैसे जलाएंगे, एक की कीमत ही क्या है!"

अब देख लीजिए! इस लॉकडाउन में, इस कन्टैमनैशन (contamination) में एक की क्या वैल्यू होती है! एक आदमी चार-पांच आदमियों को कन्टैमिनेट कर सकता है और वह चार-पांच आदमी एक-एक को कर सकते हैं, एक-एक को कर सकते हैं, पांच-पांच को कर सकते हैं, पांच-पांच उसको कर सकते हैं, कितने ही हजारों-हजारों-हजारों-हजारों-हजारों-लाखों में वह कन्टैमनैशन हो जाता है। यह है ताकत एक-एक की। एक-एक व्यक्ति की! इसीलिए तो आपको लॉकडाउन में डाला हुआ है। ताकि आप औरों को कन्टैमिनेट नहीं करें। और, और आपको कन्टैमिनेट नहीं करें। इसलिए समझिये कि आप जैसे हैं, उसकी बहुत बड़ी कीमत है। अगर आप शांति में नहीं हैं तो उसका प्रभाव इस पृथ्वी के ऊपर इस सारे ही जन-समाज के ऊपर पड़ता है। अगर आप आनंद में नहीं हैं तो इसका प्रभाव सबके ऊपर पड़ता है। चाहे थोड़ा पड़े, चाहे बड़ा पड़े पर प्रभाव पड़ता है।

तो आपकी असली प्रकृति क्या है ? क्या यही है जो आप हर रोज करते हैं ? और अब आप उसको वही — जिससे कि आपको बिल्कुल नफरत है और अब आपको उससे निकाल दिया गया अब उससे आपको प्यार है और घर रहने से आपको नफरत है। यह है मन का चक्कर। उल्टा चला तो सही नहीं, उल्टा चला तो सही नहीं, सीधा चला तो सही नहीं, सीधा उल्टा कैसे भी चले, टेढ़ा चले वह भी सही नहीं। कुछ भी सही नहीं है। इस चक्कर में सब लोग हैं। परन्तु अगर आप अपने आप को समझते हैं; अपने आपको जानते हैं तो आपको पता होगा कि आपकी असली प्रकृति है उस शांति में लीन होने की।

देखिये! एक बुझे हुए दिए को जलते हुए दिए के पास लाइए। तो ठीक है, आप — एक दिया जल रहा है, एक दिया बुझा हुआ है। आप बुझे हुए दिये को जलते हुए दिये के पास लाइए क्या होगा ? जैसे ही वह, जो उसकी बत्ती है जैसे ही वह जलती हुई बत्ती के नजदीक आएगी, जब उसको छूयेगी तो क्या होगा ? जो दीपक जल रहा था वह हिला नहीं। जो बुझा हुआ था वह उसके पास आया — जलते हुए दिए के पास आया होगा क्या ? जो बुझा हुआ दिया है वह भी जलने लगेगा। प्रकाश देने लगेगा। यह कानून कोई छोटा-मोटा कानून नहीं है, यह बहुत-बड़ा, लम्बा-चौड़ा कानून है। और यह प्रकृति का कानून है। यह समझने की बात है। इस बार जो बुझा हुआ दिया है उसको आप रहने दीजिए एक ही जगह। जलते हुए दिये को बुझे हुए दिये के पास लाइए। जैसे ही वह बत्ती, बुझे हुए दिये की बत्ती से जलती हुई बत्ती, जब बुझे हुए दिये की बत्ती से जुड़ेगी तो बुझा हुआ दिया फिर जलने लगेगा। प्रकाश देने लगेगा।

इसका मतलब समझते हैं आप ? यह है आशापूर्ण बात। यह आशा से भरी हुई बात है। अगर ऐसा ना होता, अगर ऐसा ना होता तो हम सबकी जिंदगी निराशा में हमेशा रहती। पर, क्योंकि कानून यह है कि बुझा हुआ दिया जलते हुए दिये को बुझा नहीं देगा बल्कि जलता हुआ दिया बुझे हुए दिये को जला देगा — इस कानून के होने की वजह से हमारे सब — जिंदगी के अंदर अंधेरे रहने की कोई जरूरत नहीं है। हम सबकी जिंदगी के अंदर प्रकाश हो सकता है।

और वह प्रकाश जिस प्रकाश के होने से हम देख लेंगे, हमको पता लग जाएगा की असली चीज क्या है! अंधेरा होने की वजह से दिखाई नहीं देता है और जब उजाला होता है, जब ज्ञान का दीपक जलता है, तब सब दिखाई देता है, तब दिखाई देता है कि "आह! यह क्या है, यह क्या है ?" बड़ी से बड़ी समस्या जो मनुष्य के सामने आती है, बड़ी से बड़ी समस्या जो मनुष्य के सामने आती है, उसको भी हम आसानी से पार कर लेते हैं।

किसी ने प्रश्न पूछा था मेरे से — काफी-काफी दिन हो गए अब तो, "जी! उसका उदाहरण दीजिए हमको कि जो आप कहते हैं कि जब समस्या आती है तो उसके ऊपर चलने की जरूरत नहीं है, उसके ऊपर चढ़ने की जरूरत नहीं है उस समस्या के बगल से निकल सकते हैं तो ऐसा कैसे है?"

बड़ी साधारण-सी बात है, यह तो आप हर रोज करते हैं। अगर एक दिन आप खाना बनाने के लिए अपने रसोईघर में गए और आपका जो सिलिंडर है, वह गैस से खाली था। कोई गैस नहीं है। तो यह तो स्पष्ट है कि आप खाना नहीं बना सकते। तब करेंगे तो करेंगे क्या ? समस्या क्या थी, गैस की ? गैस तो आप अपने शरीर में डाल नहीं सकते। गैस की समस्या नहीं थी। गैस से खाना बनना था। और समस्या यह है, समस्या क्या है ? गैस नहीं है या खाना नहीं बन सकेगा ? आपको भोजन प्राप्त नहीं होगा तो आप भूखे रह जाएंगे। अगर आप समझते हैं कि समस्या सिर्फ यह है कि गैस नहीं है तो बात दूसरी है। अगर समस्या यह है और इस बात को आप समझते हैं कि सबसे बड़ी समस्या है कि अगर यह गैस नहीं है तो मैं भोजन नहीं कर पाऊंगा। अगर आपने यह बात जान ली कि बात है भोजन की, गैस की नहीं। गैस तो कल मिल जाएगी, गैस तो कल ले आएंगे। “बात है आज भोजन की! आज मेरे परिवार को भोजन कैसे मिलेगा ?”

बड़ी आसान बात है क्योंकि वह जो प्रॉब्लम थी — वह थी गैस नहीं है। परन्तु आपने उसको सही तरीके से समझा कि बात गैस की नहीं है, गैस से आपकी समस्या का कोई संबंध नहीं है। संबंध है आपकी भूख से! उस दिन पिज़्जा मंगवा लीजिए। सारी फैमिली को बैठकर सारे परिवार के साथ बैठकर के पिज़्जा खा लीजिए समोसे मंगवा लीजिए कुछ खाना बाहर से मंगवा लीजिए। और अगर वह भी बात आपको ठीक नहीं लगे और आस-पास में कोई नहीं है समोसा बनाने वाला, पिज़्जा बनाने वाला। तो अगर घर में अंगीठी है तो उसी के ऊपर आग लगाकर के चूल्हा डालकर के खाना बना लीजिये।

समस्या क्या थी ? समस्या समझने की बात है सबसे पहले। समस्या क्या है ? कई बार हम अपने जीवन में समझते नहीं हैं। समस्या सचमुच हमारे जीवन में है, जब हमारा हृदय उस शांति से नहीं है भरा हुआ है, तो वह है समस्या। जब हमारा जीवन आनंद से नहीं भरा हुआ है तो वह है समस्या — और सबसे बड़ी समस्या वह है और उसका एक ही हल है। उसका हल है कि हम अपने जीवन में जो हमारे अंदर स्थित शांति है उसका अनुभव करें और उससे अपने हृदय को भरें!

तो सभी लोगों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

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