प्रेम रावत जी:
सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
मुझे आशा है आप सब कुशल-मंगल होंगे। आज के दिन जो मैं कहना चाहता हूं वह वही बात है कि आपके अंदर एक शक्ति है और कमजोरी नहीं शक्ति क्योंकि सब लोग अपनी-अपनी कमजोरी समझते हैं और जब ऐसी परिस्थितियों में आते हैं तो कई लोग हैं जिनको गुस्सा आता है, कई लोग हैं जिनको दुख होता है, कई लोग हैं जो चिंतित हो जाते हैं, कई लोग हैं जो भयभीत हो जाते हैं। अपने से पूछते हैं क्या होगा, औरों से पूछते हैं क्या होगा, क्या हो रहा है, क्या नहीं हो रहा है ? क्योंकि यह बड़े-बड़े शब्द भी आ जाते हैं बीच में और लोगों को समझ में भी नहीं आता है कि यह क्या है, क्या नहीं है, आँखों से तो दिखाई देता नहीं है। छोटी-सी चीज है, छोटी-सी चीज इतना नुकसान कैसे कर सकती है ?
बात तो यही है देखने की — कि एक चीज जो आँख से नहीं देख सकते हैं जिसके लिए माइक्रोस्कोप की जरूरत है, जिसने सारे विश्व को लॉकडाउन में कर दिया है, सारे विश्व को, सारे विश्व को ताला लगा दिया है, रोक दिया है। यह क्यों हुआ, क्या हुआ, कैसे हुआ मैं उस पर नहीं जा रहा हूं, मैं कह रहा हूं यह हुआ है। फ्लाइट रुक गई, लोगों का आना-जाना रुक गया, एक देश से दूसरे देश में नहीं जा सकते, कई लोग बाहर नहीं जा सकते, अस्पताल सारे मैक्सड आउट हो गए — इतने सारे अस्पताल सारे मैक्सड आउट हो गए। कितने ही हजारों-हजारों लोग इस बीमारी से मर गए। कितने ही लोग इस बीमारी से बीमार हुए तो देखने की चीज यह है कि एक तरफ तो सभी को घमंड होता है — “हमारे पास यह है, हमारे पास यह है, हम ऐसे कर लेंगें, हम यह कर लेंगें, हम वह कर लेंगें।” परंतु ऐसा दुश्मन, अब इससे क्या करोगे इसके लिए कोई मिसाइल (missile) तो इस्तेमाल नहीं कर सकते। अब नॉर्थ कोरिया है वह हर दिन मिसाइल लॉन्च करने के लिए धमकी देता रहता और करता भी है लॉन्च। पर इस महामारी को मिसाइल से तो रोक नहीं सकते। बड़ी-बड़ी लोग बंदूक बनाते हैं उससे तो रोक नहीं सकते। बड़े-बड़े कंप्यूटर बनाते हैं, उससे तो रोक नहीं सकते। वह चीज जिसका मनुष्य को इतना घमंड है — अपनी टेक्नोलॉजी का, बैठे-बैठे सब टेक्नोलॉजी का इंतजार कर रहे हैं कि कब क्या होगा! कितने लाखों-लाखों-लाखों अविष्कार हुए हैं, पर उन अविष्कारों में से भी इस समय मनुष्य की सहायता करने के लिए कुछ नहीं है।
चाहे गांव के लोग हों, चाहे शहर के लोग हों, चाहे बड़े-बड़े शहर के लोग हों, चाहे छोटे-छोटे शहर के लोग हों, कस्बे के लोग हों, सबको अंदर बिठा दिया। यह हो गया यह कोई सोच भी नहीं सकता था। यही मैं कहता हूं कई बार कि जब 2020 आया तो किसी को यह नहीं था कि ऐसा कुछ होगा। जब जनवरी आया तब थोड़ा-बहुत होने लगा। 2019 में, अक्टूबर में किसी को कुछ नहीं था। सितम्बर में किसी को कुछ नहीं था। अगस्त में किसी को कुछ नहीं था। सब बढ़िया चल रहा है, सब ठीक है। हम यह कर रहे हैं, हम वह कर रहे हैं। बड़ी-बड़ी खबरें अख़बारों में आ रही हैं। इस चीज का आविष्कार हो रहा है, उस चीज का आविष्कार हो रहा है। उसने यह कर दिया, उसने वह कर दिया। अब यह नया फोन आने वाला है, अभी इस कंपनी का नया फोन आने वाला है, इस कंपनी ने यह सर्विस दे दी है, उस कंपनी ने वह सर्विस दे दी है, उस कंपनी ने यह कर लिया है, उस कंपनी ने वह कर लिया। और यह सारा कुछ जिसमें हम समझते हैं कि यह हमारी दुनिया है, यह हम हैं। यह सारी चीज जो संसार के अंदर हैं यह हमको रिप्रेजेंट करती हैं। यह हमने बनाई हैं। मनुष्य के किसी काम की नहीं हैं। तो अब क्या होगा ?
सबसे पहले यह देखना है कि मनुष्य आखिर जो तुम हो, मनुष्य हो इसका मतलब क्या है कि मनुष्य हो, इसका मतलब क्या है ? यह सारी चीजें तो काम नहीं कर रहीं। इन्होंने तो काम नहीं किया। यह थोड़े ही है कि जितने फोन बनाए हुए हैं, जितने कंप्यूटर बनाए हुए हैं, एकदम कंप्यूटर में प्रश्न डाला कि "कोरोना वायरस के साथ क्या करें" और कंप्यूटर ने तुरंत दो सेकंड के अंदर जवाब दिया "अजी! यह करिए!" यह क्या करिए ? बड़े बड़े वैज्ञानिक लगे हुए हैं। यह तो काफी समय हो गया है इसको। यह तो काफी समय हो गया है। अब मई आने वाला है, फिर जून आएगा और धीरे-धीरे लोग कह रहे हैं कि धीरे-धीरे खोलेंगे, इन सारी पाबंदियों को धीरे-धीरे हटाया जाएगा। तो क्या हुआ हमारे बड़े-बड़े अविष्कारों का ? यह सारी चीजें ठीक उसी प्रकार हैं जो कुछ भी हो आदमी के लिए, कितना भी धन हो उसके लिए...
एक मेरा दोस्त था (मतलब जब आप सुने वह शब्द दोस्त) तो वह मेरी उम्र का नहीं था मेरे से बहुत-बहुत बूढ़ा था वह काफी उम्र थी उसकी। वह एक ऐसा आदमी था कि उसने — वह लोगों के जूते साफ किया करता था रेलवे स्टेशन पर, बस अड्डों पर वह लोगों के जूते साफ किया करता था (अमेरिका में था वह)। तो उसने ठानी कि "इस संसार ने मुझको ठेस पहुंचाई है मैं सारे संसार को ठेस पहुंच जाऊंगा!" तो उसने धन कमाना शुरू किया धीरे-धीरे धीरे-धीरे उसने धन कमाना शुरू किया और एक आदमी जो उसके लिए काम करता था उसने मेरे को बताया कि इसके पास इतना पैसा है, इतना पैसा है कि अगर एक साथ सात 747 B अगर एक बार खरीद लिए जाएं तो इसको मालूम नहीं पड़ेगा कि इसका पैसा थोड़ा कम हुआ है। इतना पैसा! — (तो वही आदमी था वह) तो जब उसकी पत्नी मरी तो उसने मेरे को फोन किया कि आप आइए। उसका नाम था (मैं नाम नहीं लूंगा) तो उसकी जब पत्नी मरी तो उसने कहा "आप आइये!" तो मैंने कहा "मैं आता हूँ।" मैं आया तो वह रोने लगा। वह चाहता था कि मैं उसी के साथ जाऊं तो सारी जो फ्यूनरल थी वह जब हुई, सारा क्रिया-काम हुआ तो फिर कार में जा रहे थे और वह चाहता था कि मैं उसके पास बैठूँ तो मैं बैठा था उसके पास। वह रो रहा था कि "अब क्या होगा?" मैंने कहा कि "तू चिंता मत कर सब ठीक होगा थोड़े दिन आराम कर, थोड़े दिन इस बारे में सोच और सब ठीक हो जाएगा!"
दो हफ्ते के बाद वह आया मेरे से मिलने के लिए, तो आया नई कार और नई गर्लफ्रेंड उसके साथ आया। उतरा कार से और मेरे को ले गया साइड में कहा कि — "आपने ठीक कहा था कि सब ठीक हो जायेगा।" अब मेरी नई गर्लफ्रेंड भी हो गई है, नई कार भी ले ली है मैंने और सब कुछ बढ़िया है। ऐसे चलता रहा, चलता रहा, चलता रहा फिर एक दिन मेरे को फोन आया कि "वह अस्पताल में है और अपनी आखिरी सांस ले रहा है आप उससे आकर मिल लीजिये।" तो मैं गया। जब मैं वहां पहुंचा — तो ऐसा आदमी, मतलब वह कंजूस तो काफी था। इसमें तो कोई शक़ की बात नहीं कि कंजूस था वह, कंजूस तो काफी था। परन्तु वह लेटा हुआ है, उसकी आँखें बंद थीं और वह लेटा हुआ है चारपाई पर और मैं सच कहता हूं कि ऐसा, इतना भी नहीं लगा कि वह 3 फुट लंबा आदमी है। एकदम से छोटा-सा बन गया था। खाना-वाना उसने पता नहीं कब खाया होगा। कोई चीज, एक पैसा, एक बिल्डिंग, एक बिज़नेस उसके काम के नहीं आ रहे थे, कोई काम का नहीं था। वहां लेटा हुआ है वह और मशीन चल रही है वही स्वांस ले रही है उसके लिए और मैं उससे मिला। मैं तो आ गया वापिस और दो-तीन घंटे के बाद ही फिर उनके परिवार ने कहा कि "अब यह चला गया है।" उसका जो हार्ट-लंग-मशीन है उसको डिसकनेक्ट किया।
तो मेरे कहने का यही मतलब है कि यह सारी चीजें जिन पर हम यह सोचते हैं कि "यह मेरे काम आएंगी, यह मेरे काम आएंगी, यह मेरे काम आएंगी।" कोई चीज अंत में काम नहीं आती। क्या काम आएगा ? वह काम आएगा जिस पर आपने ध्यान दिया है। जो आपके अंदर है, जो आपकी शक्ति है कमजोरी नहीं, जो आप की शक्तियां हैं वह काम आयेंगी। उन पर ध्यान दीजिये। वह आज भी काम आयेगीं। चाहे कोई भी परिस्थिति हो, किसी भी दुख से झेलना हो, किसी भी दुख से आगे निकलना हो, किसी भी परिस्थिति से आगे निकलना हो वह चीजें जो हमारे अंदर हैं। वही चीजें हैं जो हमको प्रेरणा देती हैं आगे बढ़ने का, आगे चलने का। नहीं तो अगर मन की बात है, तो मन तो कहेगा "नहीं, तेरे साथ अब कुछ नहीं होगा, तेरा तो जो सबकुछ अच्छा था वह चला गया। अब तो सब नीचे ही नीचे, नीचे ही नीचे, नीचे ही नीचे, नीचे ही नीचे!" ना! कोई शक्ति है तुम्हारे अंदर, हर एक मनुष्य के अंदर।
और कैसी भी बाहर परिस्थिति हो, कैसी भी बुरी परिस्थिति हो परन्तु अंदर तुम्हारे अच्छाई है। अंदर तुम्हारे प्रकाश है —चाहे बाहर कितना भी अंधेरा हो, अंदर तुम्हारे प्रकाश है। उस प्रकाश को बाहर आने दो, उस अच्छाई को बाहर आने दो, उस अच्छाई को अपने जीवन के अंदर एक ऐसी प्रेरणा बनाओ कि तुम आगे चल सको और आगे क्या है तुम्हारे लिए ? उसके ऊपर विश्वास करो, ऐसा विश्वास जो जाना हुआ विश्वास हो, जो जान करके विश्वास हो। अंधविश्वास नहीं! जो आंख खोलकर विश्वास हो। क्योंकि यह स्वांस आता है, जाता है, आता है, जाता है, इसके लिए मेरे को इच्छा करने की जरूरत नहीं है। इसके लिए मेरे को कोई मंत्र पढ़ने की जरूरत नहीं है। इसके लिए कोई बटन दबाने की जरूरत नहीं है। यह आ रहा है, जा रहा है, आ रहा है, जा रहा है, आ रहा है, जा रहा है।
जिस समय मैं बच्चा था, जिस दिन से मैं पैदा हुआ — यह स्वांस मेरे अंदर आ रहा है, मेरे अंदर जा रहा है। जब मैं इसकी तरफ ध्यान देता हूं तो इसके लिए भी मेरे को एक पुरस्कार मिलता है और वह क्या है ? वह आनंद है, नाम ही उसका जिसने सारे संसार को बनाया है — उसका नाम ही क्या है — "परमानंद, परम आनंद!" आनंद की बात है भाई, यह दुःख की बात नहीं है। यह लोग हैं , कहा है न कि —
मन न रँगाये रँगाये जोगी कपड़ा
और क्या कहा है कि —
नाम छाड़ि पूजन लागे पथरा।
मन न रँगाये रँगाये जोगी कपड़ा
जंगल जाय जोगी — लोग हैं जो जाते हैं,
जंगल जाय जोगी धुनिया रमौले
"कोई कुछ करता है, कोई कुछ करता है, कोई बड़े-बड़े कान फाड़ लेते हैं, कोई नाक फाड़ लेते हैं, कोई यह करते हैं, कोई वह करते हैं।"
परन्तु वह तो तुम्हारे अंदर है। जब तुमने नहीं फाड़ा था वह — जिसको तुम खोज रहे हो, वह तब भी तुम्हारे अंदर था और अब सबकुछ फाड़-फूड़ लिया तब भी वह तुम्हारे अंदर है। फाड़ने से, फूड़ने से, धुनिया रमाने से, यह करने से, वह करने से इससे कुछ नहीं होता है। होता तब है जब तुम अपनी आँखें खोलो और अंदर की तरफ देखो, अंदर उसको पाओ, अंदर उसको जानो — तुम्हारे सारे तीर्थ, सारे व्रत, सबकुछ, सभी वहां तुम्हारे अंदर हैं, क्योंकि वह भी तुम्हारे अंदर है। जब वह तुम्हारे अंदर है तो जहां वह है वही तीर्थ है, वहीं सबकुछ है, वहीं दान-पुण्य, सबकुछ उसी में है।
जब यह जान लिया, यह पहचान लिया जिसने उसकी तो जिंदगी धन्य हो गयी। चाहे ऐसी भी परिस्थिति हो, जैसी है इन परिस्थितियों में भी तुम खुश रह सकते हो। लोग हैं "अजी! हमारे वहां क्लेश होता है, यह होता है, यह होता है, यह होता है।" भाई! तुम एक काम करो। तुम यह देखो कि तुम क्या कर रहे हो उस क्लेश को बढ़ाने के लिए। परिवार में तो होता है ना दो लड़ रहे हैं तो चार खड़े-खड़े हंस रहे हैं उन पर। क्यों हंस रहे हैं, क्या हंसने की जरूरत है, क्या तुमको साइड लेने की जरूरत है। कुछ ना कुछ — हर एक व्यक्ति उस परिवार में कुछ ना कुछ करता रहता है, कुछ ना कुछ करता रहता है, कुछ ना कुछ करता रहता है और उससे वह क्लेश बढ़ता रहता है, बढ़ता रहता है, बढ़ता रहता है। अज्ञानता, अज्ञानता है! आंखें खोलना, आंखें खोलना है! अंदर की तरफ दृश्य देखना, अंदर की तरफ दृश्य देखना है और अपने जीवन को सफल बनाने की बात है।
हम यही कहते हैं कि अपने जीवन को सफल बनाओ और जीवन सफल बनेगा कैसे ? जबतक तुम अपने आपको जानोगे नहीं, तब तक जीवन सफल नहीं हो सकता है। जबतक यह जिंदगी तुम सचेत रह करके जियोगे नहीं तब तक कुछ नहीं हो सकता है। अगर यह करोगे कि अपने आपको जानोगे और सचेत रह करके यह जिंदगी जियोगे तो तुम्हारे हृदय के अंदर वह आभार आएगा और उस आभार से हृदय भरेगा और उस आभार को वह प्रकट करना चाहेगा। उसके लिए आनंद ही आनंद होगा।
तो मेरे को यही आशा है कि सभी लोग कुशल-मंगल रहेंगे और सभी लोगों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
प्रेम रावत जी:
सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
मुझे आशा है कि आप सब लोग मंगलमय होंगे और आनंद में होंगे। क्योंकि सिर्फ किसी का कह देना कि आप लॉकडाउन में हैं तो इसका मतलब यह थोड़े ही है कि आप लॉकडाउन महसूस करें। अपने आप को अंदर से स्वतंत्र भी महसूस कर सकते हैं। मैं एक चीज पढ़ना चाहता हूं, क्योंकि एक-दो दिन पहले मैंने एक पंक्ति इस दोहे की पढ़ी थी। मैं पूरे दोहे को आपके सामने पढ़ना चाहता हूँ।
करता था चुप क्यों रहा —
करता था चुप क्यों रहा, अब करी क्यों पछताय।
बोवे पेड़ बबूल का, आम कहाँ से लाय॥
तो जब गलत किया तो किसी से कहा नहीं चुप रहे और अब पछता रहे हैं। अब जोर-जोर से सबको समझा रहे हैं, "अब क्या हो गया, अब यह क्या हो गया, अब यह क्या हो गया!"
कई चीजें है, कई चीजें हैं लोग अपने को भाग्यशाली नहीं समझते हैं। समझते हैं उनके साथ यह गलत है, यह गलत है, यह ठीक नहीं है, वह ठीक नहीं है, बहुत सारी चीजें हैं ऐसी। परन्तु समझने की बात यह है कि असली में क्या है, असली में क्या चीज हो रही है। ठीक है, आपके सामने बहुत समस्याएं हैं, आपके परिवार में समस्याएं हैं, आपके बिज़नेस में समस्याएं हैं, आपके घर में समस्याएं हैं, आपके सब चीजों में समस्याएं हैं। पर दरअसल में असलियत क्या है ? असल में क्या हो रहा है ? तो क्या हो रहा है कि नर तन — एक तरफ तो, एक तरफ तो सारी आपकी समस्याएं हैं। और दूसरी तरफ, "नर तन भव वारिधि कहुँ बेरो" — दुख को महसूस करने का साधन नहीं बताया है इसे। दुखी होने का साधन नहीं बताया है इसे। दुख क्यों होगा ? जब, जो चीज आपको मिली है उसका आप दुरुपयोग करेंगे तो दुख मिलेगा। कुछ ना कुछ गड़बड़ होगी, कुछ ना कुछ गड़बड़ होगी।
अगर मटकी को आप पानी से भी भरें या किसी भी चीज से भरें। पर उसको हथौड़े के रूप में इस्तेमाल करना शुरू करें मटकी को तो उसका दुरूपयोग है। तो क्या होगा मटकी के साथ ? मटकी टूटेगी। कोई भी चीज हो, अगर आपके पास पेंसिल है और आप पेंसिल से हथौड़ी का काम लेने लगें तो पेंसिल टूटेगी। क्योंकि पेंसिल हथौड़ा नहीं है। हथौड़ा, हथौड़ा है। पेंसिल, पेंसिल है। ठीक इसी प्रकार, यह जो मनुष्य शरीर मिला है क्या है यह ? "नर तन भव वारिधि कहुँ बेरो"— आप लगे रहते हैं अपनी समस्याओं को सीधा करने में। यह सारी चीजें होती रहती हैं, पर कहा है
—
नर तन भव वारिधि कहुँ बेरो। सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो॥
इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है। मैं बार-बार सुनाता हूं लोगों को यह। क्योंकि यह है दरअसल में बात और इस स्वांस का आना-जाना ही कृपा है, उनका आशीर्वाद है। किस चीज की जरूरत है ?
करण धार सदगुरु दृढ़ नावा, दुर्लभ काज सुलभ करी पावा॥
जो असंभव लगता है वह भी जब समय का सतगुरु मिले, तो वह उसको बड़ा आसान बना सकता है। नहीं तो क्या होगा—
मो सम कौन कुटिल खल कामी।
जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नमक हरामी॥
भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी।
सूर, पतित कों ठौर कहां है, सुनिए श्रीपति स्वामी॥
जो मनुष्य शरीर मिला है उसका दुरूपयोग क्या है ? वह जिस चीज के लिए मिला है उसी को आप ठुकरा दें। वह जिसकी कृपा से मिला है, उसको ठुकरा दें। तो असलियत क्या है और हो क्या रहा है ? असलियत क्या है, हो क्या रहा है ?
यह कुछ इस तरीके से बात है कि जंगल के बीच में एक जगह है और पेड़ भी सब सूखे हुए हैं। पेड़ भी सब सूखे हुए हैं। नदियां हैं एक-दो वह भी सूखी हुई हैं। कहीं पानी नहीं है और एक झोपड़ी है और झोपड़ी में से रोने की आवाज आ रही है। मां भी रो रही है, बाप भी रो रहा है, बच्चे भी रो रहे हैं। बच्चे दुखी हैं उनको भूख लगी है, मां दुखी है कि बच्चे दुखी हैं और बाप दुखी है कि मां और बच्चे दुखी हैं। उसको मालूम नहीं कि वह खाना कहां से लाये! सबकुछ सूख गया है। उसको कुछ ऐसा नजर नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं! वह दरिद्र है, उसके पास कोई पैसे नहीं है। वह समझता है कि उसमें कोई क्षमता नहीं है। वह समझता है कि उसमें कोई बल नहीं है। बस एक छोटी-सी झोपड़ी है उसकी और कुछ नहीं है। एक छोटा-सा कुआं भी खोदा हुआ है झोपड़ी के पास और वह भी सूखा हुआ है। ऐसी हालत में कोई अगर आए और उससे कहे कि "क्यों रो रहे हो?" और वह अपनी विपदा सुनाये कि "मेरे साथ यह हो रहा है, मेरे पास कुछ नहीं है।" और वह जो व्यक्ति है वह उस दरिद्र व्यक्ति से कहे कि "नहीं तुमको रोने की जरूरत नहीं है। तुम्हारे पास बेशुमार दौलत है और दौलत तुम्हारी ही झोपड़ी के नीचे सोना, अशर्फियां, हीरे-मोती, जवाहरात ये सारे दबे पड़े हैं। यहां सब दबे पड़े हैं। खोदो, निकालो जो निकालना चाहते हो और जाओ और अपने परिवार के लिए भोजन लाओ, अपने परिवार के लिए सबकुछ जो लाना चाहते हो, लाओ।"
ऐसे व्यक्ति को क्या करना चाहिए ? मैं पूछता हूं कि ऐसे व्यक्ति को क्या करना चाहिए ? रोता रहे — मेरे पास कुछ नहीं है, मेरी पत्नी है वह भी दुखी है, मैं कितना अभागा हूं, उसको तो एक और कान मिल गया ना सुनाने के लिए। अपना रोने के लिए, धोने के लिए उसको एक और कान मिल गया। परन्तु जिसको वह समझता है कि एक और कान मिल गया वह यह कह रहा है कि "तेरी झोपड़ी के नीचे बेशुमार दौलत है, खोद उस दौलत को और जा और जाकर के अपना भाग्य पलट।" तो वही मेरा पूछना है कि उसको क्या करना चाहिए ? उसको — रोते ही रहे वह या उसको यह कहना चाहिए या यह करना चाहिए कि "अच्छा! क्या सचमुच में मेरे झोपड़ी के नीचे यह हीरे-मोती सबकुछ हैं मैं भी देखूं! मैं अपने आप देखना चाहता हूं।" यह नहीं कि आपने कहा और अब आप जाइए और फिर कल मैं निकाल लूंगा। नहीं! आप खड़े हैं यहां, मैं निकालता हूं। तो वह जाता है और उसने खोदे और उसको हीरे मिले, जवाहरात मिले। खुश होकर वह जाए अपने बच्चों के लिए पानी, भोजन, यह सारी चीजें — पहले तो यह चीजें ताकि वह अच्छी तरीके से उनका रोना-धोना बंद हो। उसके बाद वह धीरे-धीरे उसको और निकाल सकता है, अपना बड़ा मकान बना सकता है या सारा धन लेकर के कहीं और जा सकता है। अब कुछ भी कर सकता है वह।
यहां जो बात हो रही है वह कुछ ऐसी हो रही है, क्योंकि जो लोग हैं वह समझते हैं कि वह निर्धन हैं पर किस — धन की बात नहीं हो रही है, सोने और जवाहरात की बात नहीं हो रही है। बात हो रही है निर्धन हैं वह आनंद के मामले में कि उनके जीवन में आनंद नहीं है। उनके जीवन में निराशा है। उनके जीवन में ऐसी-ऐसी चीजें हुई हैं जिससे कि वह अपने आपको भाग्यशाली नहीं समझते हैं। हां, स्वांस आ रहा है, जा रहा है वह नहीं समझते हैं कि यह भाग्यशाली है। उनका जन्म हुआ वह यह नहीं समझते हैं कि भाग्यशाली हैं। वह जीवित हैं वह यह नहीं समझते हैं कि भाग्यशाली हैं। यही तो जवाहरात हैं, यही तो सोना है, यही तो चांदी है, जो तुम्हारे अंदर है। यह सारी चीजें जब तुम जानने लगोगे और अच्छी तरीके से जान लोगे कि कोई अमीर आदमी ऐसा नहीं है इस सारे संसार के अंदर जो एक स्वांस खरीद सके, एक स्वांस भी कोई नहीं खरीद सकता है। इतनी अनमोल चीज, जिनके पास अरबों-खरबों-खरबों डॉलर हैं वह भी एक स्वांस नहीं खरीद सकते हैं और तुम हर एक दिन वह स्वांस ले रहे हो।
तो भाग्यशाली तुम हुए या नहीं हुए ? जब तुम जानते ही नहीं हो कि तुम्हारी ही कुटिया के नीचे, तुम्हारी ही झोपड़ी के नीचे क्या है। क्योंकि तुमने कभी ध्यान ही नहीं दिया। कोई आता है, कोई बताता है तो ठीक है, उस पर शक करेंगे लोग। क्योंकि जो झूठ बोलता है उस पर कोई शक करता नहीं है।
लोग हैं, ऐसे ठग हैं आते हैं और लाखों-लाखों का माल चोरी करके ले जाते हैं। वह भी ऐसे चोरी करके ले जाते हैं कि आदमी ने खुद उसको दे दिया। उसको बताएंगे कि “बहुत इन्वेस्टमेंट की। यह मौका है और आप इसमें पैसा लगाइये आपको बहुत पैसे मिलेंगे।” हिंदुस्तान से और कई देशों से लोग फोन करते हैं और अमेरिका में यहां फोन करते हैं लोगों को और कहते हैं "हम गवर्नमेंट ऑफिस से बोल रहे हैं (अमेरिका गवर्नमेंट ऑफिस से बोल रहे हैं) और तुम फलां-फलां यह जुर्माना है यह जल्दी से जल्दी इस पते पर भेज दो नहीं तो हम तुम्हारा बैंक-अकाउंट यह सबकुछ खत्म कर देंगे।" तो भाई!, लोग हैं डरकर करते हैं।
तो कोई झूठ बोले तो उस पर सब विश्वास करने के लिए तैयार हैं और जो सच बोले उस पर कोई विश्वास करने के लिए तैयार नहीं है। मैं तो यही कहता हूँ कि मेरे पर विश्वास मत करो। जो तुम्हारे अंदर की चीज है उसको तुम जानो, उसको तुम पहचानो और अगर तुम्हारे हृदय में आनंद नहीं आए तो फिर हमसे बात करो।
एक बार यही हुआ दिल्ली में इसका मैंने बहुत बार उदाहरण भी दिया हुआ है। तो एक बड़ा हॉल था और उसमें जिज्ञासु लोग बैठे थे। सब जिज्ञासु, जो ज्ञान लेने के लिए तैयार हो रहे थे वहां बैठे हुए थे और पीछे कुछ लोग थे। तो प्रश्न-उत्तर हो रहे थे, तो एक महिला ने हाथ उठाया तो वह बोलती है "जी मेरे को हाल ही में ज्ञान हुआ है आपका। और मैं तो कोई चीज नहीं महसूस करती हूँ।" वह देखने की चीज थी, क्योंकि जितने भी जिज्ञासु उस हॉल में बैठे हुए थे, काफी सारे सब मेरी तरफ देख रहे थे पहले तो। जैसे ही उसने यह कहा कि "मेरे को कुछ नहीं हुआ, मैंने आपका हाल ही में ज्ञान लिया है।" तो सब के सब, एक भी नहीं था जिसने यह नहीं किया हो, सब के सब पीछे मुड़े और उसकी तरफ देखा। उसकी तरफ देखा फिर मेरी तरफ देखा कि "अब इसका उत्तर दीजिए!"
मैंने कहा, "देखो भाई! अगर तुमको नहीं होता है, कोई चीज महसूस नहीं होती है तो छोड़ दो इसको। हमने कब कहा कि इसी को पकड़े रखो। नहीं है तो नहीं है।"
कहा, "नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं ! मेरे को बहुत कुछ महसूस होता है। मेरे को शांति महसूस होती है।"
तो मैंने कहा कि “मैंने और क्या कहा था, क्या महसूस होगा?”
कल्पना की बात लोग कल्पना में रह जाते हैं। कल्पना करते हैं कि वह कितने अभागी हैं और उनके साथ यह नहीं हुआ, उनके साथ यह नहीं हुआ, हर एक मनुष्य के साथ तुलना करने लगते हैं, तुलना करने लगते हैं। अब हिन्दुस्तान में तो वह बात है ही। कई लोग हैं जो, काला रंग उनको पसंद नहीं है तो बड़ी-बड़ी क्रीम लगाते हैं, क्योंकि तुलना करते हैं। यह नहीं है कि अपना चेहरा देख करके आईने में संतुष्ट हो जाएं। नहीं, किसी और का चेहरा देखते हैं और फिर कहते हैं कि "मेरा चेहरा इसकी तरह होना चाहिए!" यही हो रहा है।
जब यह सोशल मीडिया नहीं था लोग एक-दूसरे को अपनी फोटो नहीं भेजते थे, यह सारी चीजें नहीं होती थीं। तो हिन्दुस्तान में जिस तरह के लोगों के बाल होते थे, बाल काटते थे वह बिल्कुल अलग थे, विदेश में अलग थे, कहीं और जाओ तो वहां अलग थे। परंतु अब जहां भी जाओ सब युवकों के बाल वैसे ही कटे हुए हैं। क्योंकि देखते हैं "मैं ऐसा होना चाहता हूँ, मैं ऐसा होना चाहता हूँ!" नाई की दुकान में जाओ क्या मिलेगा आपको ? फोटो लगी हुई हैं ताकि आप नाई को ऊँगली दिखाकर कह सको कि मेरे को ऐसा बना दे, मेरे को ऐसा बना दे, मेरे को ऐसा बना दे, मेरे को ऐसा बाल काट दे।" बाल तो — बाल तो अब मेरे बड़े हो रहे हैं। अब लॉकडाउन में हूँ तो पता नहीं कौन आकर काटेगा! पता नहीं क्या होगा पर बड़े हो रहे हैं अब काटने का समय भी हो रहा है।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि तुम अपने आप को देखो, अपने आप को जानो, अपने आप को पहचानो और अपने अंदर स्थित जो चीज है जब उसको तुम जानोगे, पहचानोगे तो सचमुच में तुम यह जानोगे कि तुम कितने भाग्यशाली हो। तुम्हारे पास सबकुछ है, क्योंकि तुमने अपने अंदर स्थित उसको पा लिया, जो सारे संसार की रचना करता है। जो सारे संसार को चलाता है। तो सबसे बड़ी बात तो यह है कि अपने आपको भाग्यशाली पाओ — अभागा नहीं, भाग्यशाली!
तो सभी लोगों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
प्रेम रावत जी:
सभी श्रोताओं को मेरा नमस्कार!
मैं आप लोगों से कुछ कहना चाहता हूं और वह कुछ इस प्रकार से है क्योंकि मैं सोच रहा था — एक तो मैं यही सोच रहा था कि सब कुशल-मंगल तो हैं क्योंकि बहुत जरूरी बात है कि हम सभी आनंद में रहें और इस माहौल में जो भी यह माहौल है इसका उस चीज से कोई लेना-देना नहीं है कि हम एक दीवार से आए और एक दिन हमको दूसरी दीवार से जाना है। कोरोना वायरस हो या कोरोना वायरस ना हो यह तो होगा और हर दिन हमारी जिंदगी के अंदर क्या महत्व रखता है, यह कोरोना वायरस नहीं निकालेगा, कोरोना वायरस से इसका कोई ताल्लुक़ात नहीं है।
तो जो बात मैं सोच रहा था, वह बात यह है कि एक तो हम सुनते हैं कि यह सारा जगत एक सपना है। सपना क्या है और सच्चाई क्या है ? जागना क्या है और यह सपना क्या है ? तो कई बार समझ में नहीं आता है। कई बार यह लगता है कि यह जो संसार है, जो इस संसार के रीति-रिवाज हैं यही सच है। सवेरे-सवेरे उठकर नौकरी पर जाना है यही सच है। भूख लगती है खाना खाना है यही सच है। किसी की शादी हो रही है, किसी से रिश्ता हो रहा है, किसी से नाता हो रहा है, किसी से यह हो रहा है, किसी से वह हो रहा है यही सच है। कोई यह करता है, कोई वह करता है, उसने यह कर दिया, उसने वह कर दिया।
अब अखबार पढ़ते हैं सब लोग बैठ करके — यह तो प्रथा है कई लोगों की बैठ करके चाय सवेरे-सवेरे और अखबार, बैठे हुए हैं। हिंदुस्तान में पता नहीं कितनी ही दुकानें होंगी जहां लोग बैठे हैं बाहर, चाय की दुकान है, कोई समोसा तल रहा है, कोई कुछ हो रहा है, कोई कुछ हो रहा है, चाय भी पी रहे हैं, अखबार भी पढ़ रहे हैं और सबसे बड़ी बात अपनी टिप्पणी भी कर रहे हैं। समझा रहे हैं किसी को कि क्या खबर है यह! समझा रहे हैं, बात हो रही है "यह ऐसा है, वह वैसा है।" अब हिन्दुस्तान है, लोग अपनी-अपनी बात रखना चाहते हैं — "यह ऐसा हो गया, उसने यह कर दिया, उसने यह अच्छा नहीं किया, यह ठीक नहीं हो रहा है, यह गलत है, यह ऐसा है, यह वैसा है।" लोग बहस करते हैं इस पर। क्योंकि वह समझते हैं कि उनकी टिप्पणी करने से कुछ होगा। पर सच तो यह है कि होना-जाना कुछ है नहीं। करते रहें, अपना ओपिनियन (opinion) वह प्रकट करते रहें, उनके अपने विचार वह प्रकट करते रहें, पर उससे कुछ होगा नहीं। पृथ्वी फिर भी वैसे ही चक्कर काटती रहेगी, जैसी चक्कर काटती आ रही है। समय उसी रफ्तार से चलता रहेगा जिस रफ्तार से चलता आ रहा है।
सपना क्या है और असलियत क्या है ? जो भी हम समझते हैं इस संसार के अंदर, जो असलियत जिसको हम मानते हैं, जिसके आगे हम सिर झुकाते हैं, जिसके आगे हम अपना शरीर झुकाते हैं। जो हमारे नाते हैं, जो हमारे रिश्ते हैं, यह जो सारी चीजें हैं, हमारा बॉस है, हमको नौकरी करनी है, हमको यह करना है, हमको वह करना है, यह सारे रीति-रिवाज जो बनाए हुए हैं यह मनुष्य के बनाए हुए हैं। यह बनाने वाले के नहीं बनाए हुए हैं। इसका बनाने वाले से कोई लेना-देना नहीं है। कई लोग हैं जो अपने बच्चों से दुखी हैं। उनके बच्चे वह नहीं करते हैं जो वह चाहते हैं। आपका बच्चा अगर वह नहीं कर रहा है जो आप चाहते हैं तो एक मिनट के लिए एक बात आप सोचना — भगवान कृष्ण के जो पुत्र थे, भगवान कृष्ण उनसे खुश नहीं थे। और वही कारण थे — उनके पुत्र जो थे वही कारण बने जो सारी द्वारका, जो सारी चीजें खत्म हुईं, लड़ाईयां हुईं उसके कारण वही थे। सोचने की बात है। इसका मतलब यह हुआ कि यह जरूरी नहीं है कि महापुरुष का बच्चा भी महापुरुष ही हो। बड़े आदमी का बच्चा बड़ा हो यह नहीं है बात। सबका अपना-अपना है जब जो, जैसी जिसकी समझ है। पर सबसे बड़ी बात सपना क्या है और असलियत क्या है ? असलियत क्या है ? असलियत है कि तुम जीवित हो, यह असलियत है और जो कुछ तुम्हारे आसपास इर्द-गिर्द हो रहा है, वह असलियत नहीं है। असलियत यह है कि तुम इस समय जीवित हो और तुम्हारे अंदर, तुम्हारे अंदर अविनाशी विराजमान है।
विधि हरि हर जाको ध्यान करत हैं, मुनिजन सहस अठासी।
सोई हंस तेरे घट माहीं, अलख पुरुष अविनाशी।।
क्यों, क्यों असलियत है ? क्योंकि वही है एक — "जो था, जो है और जो हमेशा रहेगा।" क्योंकि वह असलियत है। नकली क्या है — "जो नहीं था, जो है और जो नहीं रहेगा।" "जो नहीं रहेगा — जो नहीं था, जो है और नहीं रहेगा उसको असली नहीं समझ सकते, वह सपना है।”
जैसे कोई अगर तुमको नयी कार बेचे और कहे कि "यह पहले आपके पास नहीं थी, अब आपके पास है और एक दिन यह आपके पास नहीं रहेगी", तो आप तो उसको देखेंगे कि बेवकूफ आदमी है मेरी कार है जितने दिन मैं चाहता हूँ उसको रखना मैं रख सकता हूँ। बात इसकी नहीं है, बात है कि वह खुद ही नहीं रहेगी। जो रिश्ते-नाते जिनको आप देखते हैं वह खुद, जिनके साथ यह रिश्ते हैं, वही नहीं रहेंगे। इस पृथ्वी को देखते हैं आप — यह पृथ्वी भी नहीं थी, है और नहीं रहेगी। यह भी असली नहीं है। चंदा भी असली नहीं है। सूरज भी असली नहीं है। पर क्या असली चीज है ? वह असली चीज है जो आपके अंदर विराजमान है और जबतक वह आपके अंदर विराजमान है तब तक आप भी असली हैं। तब तक आप भी असली हैं। कौन सी चीज ? शरीर नहीं, कोई ऐसी चीज है जबतक वह आपके अंदर है तब तक आप भी असली हैं क्योंकि वह भी असली है और जब वह असली चीज, वह तो हर एक जगह है वह तो आती-जाती है नहीं पर जिस दिन आपके अंदर वह नहीं रहेगी आप उससे हट जाएंगे तो आप भी असली नहीं रहेंगे। आप भी चले जायेंगे।
सपना क्या है और सच्चाई क्या है ? सच्चाई अंदर है, सच्चाई को अगर बाहर ढूंढेंगे तो आपको जो सच्चाई मिलेगी बाहर, वह सच्चाई, सच्चाई नहीं है, वह असली चीज नहीं है। देखिये! इसको ज्यादा दूर ले जाएंगे आप इस बात को तो आप फिर भ्रमित होंगें। हवाई जहाज में बैठने की बात, हवाई जहाज में अगर आप बैठेंगे तो असली नहीं है तो आप गिर नहीं जाएंगे नीचे! नहीं, उसकी बात नहीं हो रही है। पर एक दिन हवाई जहाज नहीं था, आज है और एक दिन ऐसा आएगा कि हवाई जहाज वह उड़ान नहीं भरेगा। इसलिए नहीं क्योंकि वह क्रैश हो गया। नहीं! हवाई जहाज की भी एक जीवन लिमिट होती है उसके बाद उसको नहीं उड़ाते हैं, उसको रख देते हैं कहीं। ठीक इसी प्रकार, सारी चीजें जिनको आप देखते हैं, जिनसे आप भ्रमित होते हैं, यह चीज असली नहीं हैं।
सपना है और सपने में क्या होता है ? लगता है कि चीज असली है — जब सपना आता है तो लगता है कि चीज असली है। बात जो हो रही है सपने के अंदर असली है। परंतु जैसे ही आंख खुलती है पता लगता है कि वह असली नहीं थी। यही बात समझने की है। आंख जब खुलती हैं, ये आँख जब खुलती हैं। जब मन के पीछे आप भाग रहे हैं और मन आपके पीछे भाग रहा है, जब आप मन के पीछे भाग रहे हैं और मन दुनिया के पीछे भाग रहा है तो फिर कहां कोई किसी को पकड़ पाएगा। क्योंकि दुनिया भाग रही है बहुत तेज, उसके पीछे मन भाग रहा है बहुत तेज और फिर लोग मन के पीछे भाग रहे हैं बहुत तेज और सभी भाग रहे हैं, भाग रहे हैं, भाग रहे हैं, भाग रहे हैं, भाग रहे हैं, भाग रहे हैं, भाग रहे हैं। कोरोना वायरस ने सबको घर में बिठा दिया। कोरोना वायरस ने सबको घर में बिठा दिया। अब क्या भाग रहा है ? अब मन भाग रहा है और लोग उसके पीछे भागने की कोशिश कर रहे हैं, उसके पीछे भागने की कोशिश कर रहे हैं। "हम लॉकडाउन में नहीं रहना चाहते हैं, हम यह करना चाहते हैं, हमको यह मत कहो, हमको वह मत कहो, हम भी बाहर आएंगे, हम लॉकडाउन में नहीं रहना चाहते हैं।"
भलाई इसमें किसकी है, किसकी जान बचेगी, किसके लिए अच्छा होगा, देश के लिए अच्छा होगा — यह सब कोई नहीं सोचता। थोड़े बहुत लोग हैं जो यह बात सोच रहे हैं और लोग हैं जो नहीं "हम बाहर आएंगे, हम यह करेंगे, हम वह करेंगे, हम यह आंदोलन करेंगे, हम वह आंदोलन करेंगे!" भाई! तुम्हारी मर्ज़ी तुम जो करो हम रोकने के लिए नहीं कह रहे हैं। हम यह कह रहे हैं कि कुछ बातें होती हैं जो तुम्हारी अच्छाई के लिए हैं। अगर तुम उस बात को समझ पाए तो अच्छी बात है।
यही कबीरदास जी ने कहा है कि — "अगर सच बोलें तो मार पड़ेगी झूठ बोलें तो वह हमको पचता नहीं है तो हम करें तो करें क्या!" यही बात होती है।
संसार इस माया के पीछे भाग रहा है जो सपना है उसको साक्षात्कार करने के लिए आदमी भागता रहता है। यही लोग कहते हैं "यह मेरा सपना है, मैं अपने सपने को पूरा करना चाहता हूं।" अरे भाई! सपने को पूरा करोगे तो अगर पूरा हो भी गया, तो जिस दिन तुम्हारी आँख खुलेगी, उस दिन वह भी खत्म हो जायेगा, सपने की तरह। यह तो एक, जैसे गुब्बारा होता है और गुब्बारे में हवा भरी हुई है और ऐसा लगता है कि सबकुछ ठीक है पर कोई छोटी-सी भी चीज अगर उस गुब्बारे से लग गयी और वह गुब्बारा फुट गया जिसे बुलबुला कहते हैं, जो साबुन का बनाते हैं तो जो बुलबुला है वह हवा में जा रहा है ऐसा लगता है कि सबकुछ ठीक है। कोई भी चीज उसके साथ आकर लगेगी, वह फट जाएगा। खत्म हो जाएगा। यही हाल है इस दुनिया का। पर तुम अपने जीवन में जो असली चीज है उसको पकड़ने की कोशिश करो, उसको पाने की कोशिश करो। वह चीज तुम्हारे अंदर है
“विधि हरि हर जाको ध्यान करत हैं” — ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी जिसका ध्यान करते हैं। वह चीज तुम्हारे अंदर है
सोई हंस तेरे घट माहीं, अलख पुरुष अविनाशी —
विधि हरि हर जाको ध्यान करत हैं, मुनिजन सहस अठासी।
सोई हंस तेरे घट माहीं, अलख पुरुष अविनाशी।।
अविनाशी — उसका कभी नाश नहीं हो सकता है। जिस चीज का नाश हो सकता है वह आज है पर कल नहीं रहेगी। क्योंकि उसका नाश तो होना है। पर अविनाशी की प्रकृति यह है कि उसका नाश नहीं होना है।
विधि हरि हर जाको ध्यान करत हैं, मुनिजन सहस अठासी।
सोई हंस तेरे घट माहीं, अलख पुरुष अविनाशी।।
पर चक्कर क्या है कि "पानी में मीन प्यासी मोहे सुन सुन आवे हासी" — जिसके पास सबकुछ है, सबकुछ है, सबकुछ है वही संतुष्ट नहीं है अपने आप से तो और क्या चाहिए ? जब तुम अपने आप से ही संतुष्ट नहीं हो, अपने आप से ही तुम प्रसन्न नहीं हो तो फिर किससे प्रसन्न होगे ? कौन ऐसा होगा जो तुमको प्रसन्न कर सकता है ? जब तुम अपने आप से ही खुश नहीं हो, किस चीज से, क्या चीज होगी जिससे खुश हो पाओगे। मन कहता है "यह कर लो, वह कर लो, उससे खुश हो जाओगे, उससे खुश हो जाओगे, उससे खुश हो जाओगे!" पर उन चीजों से खुश नहीं होना है। खुश होना है तो अपने आप से खुश हो।
अगर सचमुच में सपने की तरफ नहीं भागना चाहते हो तो अंदर की ओर भागो। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि सारे संसार के काम तुमको बंद करने पड़ेंगे। नहीं, देखो! सपना देखो! इसमें क्या बात है। पर कम से कम जहां तुमको होना चाहिए वहां तुमको होना चाहिए अर्थात तुमको अच्छी तरीके से मालूम हो कि तुम्हारे साथ जो अविनाशी तुम्हारे अंदर बैठा है इसको तुम अच्छी तरीके से जानते हो। इसको तुम अच्छी तरीके से समझते हो। और हर पल में जो यह स्वांस आ रहा है, जा रहा है इसका तुम स्वागत कर रहे हो। इसका तुम आनंद ले रहे हो। क्योंकि यही बात है अगर समझो इस बात को और समझ सको।
अभी अंग्रेजी की जो मैंने ब्रॉडकास्ट बनाई इसमें मैं सुना रहा था लोगों को तो मैंने कहा कि "सबसे बड़ी बात आज के दिन का महत्व क्या है, अब का महत्व क्या है ?" अब का महत्व यह है कि मैं किसी भी चीज के बारे में सोच सकता हूँ। किसी भी चीज के बारे में सोच सकता हूँ। परन्तु जो करना है, जो करनी है, जो कर्म है वह अब होगा, वह आज के दिन मैं कर सकता हूँ, कल नहीं कर सकता कर्म। सोच सकता हूं कल के बारे में, कल के बारे में सोच सकता हूं — "मैं यह करूंगा, मैं वह करूंगा, मैं वह करूंगा, वह वह करूंगा, मैं वहां जाऊंगा, मैं यह करूंगा, मैं वह करूंगा, पर किया नहीं कुछ भी।" करना है, कर्म करना है तो वह 'आज के दिन' ही होगा, आज के दिन। 'पास्ट' में नहीं, 'जो बीत गया' उसमें नहीं। 'भूतकाल' में नहीं और 'कल' में नहीं वह 'आज' कर्म करना है। तो जो कर्म किया, आज कर्म करना है अगर वह सोच-विचार के नहीं किया और कर दिया, अंधाधुंध कर दिया तो उसका फल भी अंधाधुंध मिलेगा।
इसी से लोग परेशान होते हैं। जब फल उनको अंधाधुंध मिलता है, जैसी उनकी चाहत है उसके अनुकूल नहीं मिलता है तो लोग परेशान होते हैं। पर कल, तुम कल के बारे में सोच सकते हो पर कल तुम कुछ कर नहीं सकते हो। करोगे जो कुछ भी करना है वह आज करोगे चाहे वह कल का दिन — जब कल का दिन आएगा तो कैसे आएगा आज के रूप में आएगा। आज बनकर आएगा। करना जो कुछ है वह आज के दिन करना है, सोच-समझ के करना है। पर तुम्हारी सोच है कल के लिए या तुम विचार करते हो जो दिन बीत गया उसके लिए ? करना है ‘आज के दिन’— इसका यह महत्व है।
अपने जीवन को सफल बनाओ; आनंद लो और सभी लोगों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
प्रेम रावत जी:
सभी श्रोताओं को मेरा नमस्कार!
अब तो काफी समय भी बीत चुका है और बहुत सारे प्रश्न भी आए हैं और काफी प्रश्नों के उत्तर भी हमने दिए हैं। और सबसे बड़ी बात है कि जब लॉकडाउन चालू हुआ जब हम यहां वापस आए तो हमने यही सोचा कि भाई! अच्छा रहेगा कि सब लोगों के सामने अपनी बात रखें और क्योंकि कई लोग हैं जो, जिनको डर लगा कि यह क्या हो रहा है! क्योंकि यह हर दिन तो होता नहीं है, हर रोज तो होता नहीं है। तो हमने समझाया कि भाई! डरने की जरूरत नहीं है, डरने की की बात नहीं है सबसे बड़ी बात है कि हिम्मत से काम लेना है और जहां तक हमारी समझ है, जो कुछ भी हो रहा है अब लोग तो इसी के पीछे पड़े हुए हैं कि यह क्या हो रहा है, वह क्या हो रहा है, कब छूटेंगे, कब यह होगा, कब वह होगा और अखबार में तरह-तरह के खबर भी छपती रहती हैं, आती रहती हैं।
पर अगर थोड़ा-सा ध्यान दिया जाए और यह जो कुछ भी हो रहा है इससे 2 मिनट, 3 मिनट के लिए मनुष्य की तरफ अगर हम अपना ध्यान दें तो कोई परिवर्तन नहीं है। अभी भी स्वांस तुम्हारे अंदर आ रहा है, स्वांस तुम्हारे अंदर जा रहा है, तुम जीवित हो। समय, समय है! तुम, तुम हो! तुम्हारे अंदर यह स्वांस आ रहा है। सबसे बड़ी कृपा यह है और इससे बड़ी खुशखबरी इस संसार में और कोई नहीं है, “तुम जीवित हो।” तुम्हारे लिए यह सबसे बड़ी खुशखबरी है। अब यह बात तो सही है कि हम इसको खुशखबरी की तरह नहीं लेते हैं। क्योंकि जैसे अंग्रेजी में कहते हैं “ओल्ड न्यूज़ — पुरानी खबर!” तो यह तो पुरानी खबर है कि “हम जीवित हैं।” परन्तु यह पुरानी खबर नहीं है। जो हर नया दिन आता है, जिसमें तुम अपने को जीवित पाते हो। वह सबसे ताजा खबर है, पुरानी खबर नहीं, सबसे ताजा खबर है और सबसे जरूरी खबर है। सबसे जरूरी खबर है। सब खबरों से श्रेष्ठ खबर यह है कि तुम जीवित हो और अपना ध्यान उस चीज पर दो जिससे कि तुम्हारे हृदय में आनंद आए, उस तरफ ध्यान दो अपने जीवन के अंदर जिससे कि तुम्हारे हृदय में खुशी आए, तुम्हारी जिंदगी में खुशी आए।
कई लोग हैं और कहां-कहां उनका ध्यान नहीं जाता है। कोई किसी चीज का ध्यान करता है, कोई किसी चीज का ध्यान करता है। अब यहां तक भी बात हो जाती है कि लोगों की जिंदगी के अंदर इतनी परेशानियां हैं कि वह परेशानियों का ध्यान करते हैं और जो परेशानियों का ध्यान करेगा तो और परेशानी आएगी। अगर वह परमानंद का ध्यान करेगा तो उसकी जिंदगी के अंदर परमानंद आएगा और जो — अब जैसे कई बार, जब बच्चे थे तो अगर बस में सफर कर रहे हैं, कार में सफर कर रहे हैं, तो बच्चे यह देखने लगते हैं कि कौन-कौन-सी कार सफेद है। तो जब वह सफेद कार को ही खोज रहे हैं तो उनको सफेद कार ही मिलेंगी। क्योंकि वह काली कार मिले तो उसको नहीं गिनेंगे। लाल कार हो उसको नहीं गिनेंगे, नीली कार हो उसको नहीं गिनेंगे। पर जो सफेद है उसको गिन रहे हैं। वहां भी सफेद है, वहां भी सफेद है, वहां भी सफेद है, वहां भी सफेद है।
तो मेरे कहने का मतलब है कि जिस चीज में तुम्हारा ध्यान जा रहा है — और लोग हैं जो प्रश्नों में भी लिखते हैं, "जी! हम इस चीज से परेशान हैं, हम इस चीज से परेशान हैं, हम इस चीज से परेशान हैं।" पर, यह तो अच्छी बात है कि तुम्हारा स्वांस तुमसे नहीं कह रहा है कि "मैं तुमसे परेशान हूं।" तुम्हारी जिंदगी तुमसे नहीं कह रही है कि मैं तुमसे परेशान हूं, तुम हो मेरी परेशानी का कारण।
सबकुछ होते हुए, जो सुंदर-सुंदर चीजें हैं अपनी जिंदगी के अंदर इनको तो गिनते नहीं हो। इनके ऊपर कभी ध्यान जाता नहीं है। परिवार में भी मां हैं, बाप हैं, यह तो खुशी की बात है कि तुम्हारे मां हैं, बाप हैं उस पर तो ध्यान जाता नहीं है। यह जाता है कि वह क्या कह रहे हैं। अरे! कह रहें हैं तो कह रहे हैं, एक कान से सुनो और दूसरे कान से निकाल दो। सारी जिंदगी भर तुम यह करते हो। तो अपने परिवार के साथ भी यह कर सकते हो। एक कान से सुना — जो बुरा तुमको लगता है एक कान से सुना दूसरे कान से बुरा निकाल दिया। भाई हैं, बहन हैं यह नहीं कि हम खुश हैं कि भाई हैं, बहन हैं। वह यह करते हैं, वह यह करते हैं, वह यह करते हैं, वह यह करते हैं। अगर यही सब करते रहे आप अपनी जिंदगी में, नुक्स देखते रहे — भगवान कहते हैं गीता में अर्जुन से कि "मैं तेरे को ज्ञान देता हूं, मैं तेरे को वह दिव्य नेत्र देता हूं जिससे कि तू वह, मेरे असली रूप को देख पाएगा और समझाते हुए उसको कहते हैं कि मैं तेरे को यह ज्ञान जो दे रहा हूं वह इसलिए दे रहा हूं कि तू औरों के अवगुणों को नहीं देखता। इसलिए दे रहा हूं कि तू औरों के अवगुणों को नहीं देखता।" तो हमको भी तो ध्यान करना चाहिए। क्या हम सिर्फ लोगों के अवगुणों को देखते हैं या उनकी अच्छाईयों को भी देखते हैं ? अच्छाई को अगर देखोगे या देखने की कोशिश करोगे तो तुमको अच्छाई मिलेगी।
अब कोई आदमी घर में बैठा हुआ है वह मक्खी गिनना चाहता है तो मक्खी गिनने के लिए अगर वह निकलेगा या अपने घर में ही बैठा रहे तो मक्खी उसको नजर आयेंगी। क्योंकि ध्यान ही उसका मक्खियों पर है। अब पहले किसी और चीज पर ध्यान है तो मक्खी आई भी तो उस पर ध्यान नहीं गया। परंतु जब ध्यान ही मक्खियों पर है, ध्यान ही मुसीबतों पर है, ध्यान ही परेशानियों में है तो परेशानी, परेशानी नजर आएंगी। फिर जब तुम परेशानियों को देखने लगोगे, जब परेशानियां तुम्हारी नजर में आएंगी तो तुम और परेशान होगे। जब और परेशान होगे तो फिर ध्यान तुम्हारा और परेशानियों पर जाएगा। ध्यान और परेशानियों में जाएगा तो फिर तुम और परेशानियों को देखोगे।
यह ऐसे ही जैसे कुत्ता अपनी पूंछ के पीछे भागता है, भागता रहता है, भागता रहता है, भागता रहता है क्योंकि पूंछ को पकड़ तो सकता नहीं है। देख जरूर सकता है और कुछ पीछे उसके है, जो हिल रही है चीज उसको वह पकड़ना चाहता है और पकड़ तो सकता नहीं है तो फिर भागता रहता है, भागता रहता है, भागता रहता है, भागता रहता है। यही हाल हो जाता है। जब मैं छोटा था तो श्री महाराज जी के पास, हमारे पिताजी के पास एक छोटा-सा कुत्ता था, उसका नाम था ‘टॉमी।’ इतना चिढ़ा हुआ था वह सबसे, मतलब सबको काटता था वह और भौंकता था। अगर उसको एकदम पागल बनाना होता था तो उसके सामने एक आईना रख दो। बस! वह दूसरे कुत्ते को देखता था, (थी तो उसी की अपनी परछाई) वह दूसरे कुत्ते को देखता था तो वाऊं, वाऊं , वाऊं, वाऊं करके उसके पीछे भागता था। और इतना मतलब, घंटो-घंटो वह भौंकता रहता था अपनी ही परछाई पर और अपनी ही परछाई को काटना चाहता था। मनुष्य के साथ — वह तो कुत्ता था, वह तो कुत्ता था, उसको तो हम मान सकते हैं उसके पास इतना बड़ा दिमाग नहीं था जितना हमारे पास है और भाषा भी पता नहीं उसकी कोई कुत्ते वाली भौं, भौं, भौं, भौं — क्या-क्या कह रहे हैं कुत्ते पता नहीं।
भाई! तुम तो मनुष्य हो। तुम्हारे पास तो भगवान ने यह दिमाग दिया है, यह हृदय दिया है तुमको इस काबिल बनाया है कि तुम बोल सको, तुम सोच सको, तुम्हारे पास भाषा है परंतु हम करते क्या हैं ? फिर वही, आचरण वही हैं, जो हम करते हैं इस संसार के अंदर। अपने आप से ही लोगों को डर है। कई लोग हैं जो इस लॉकडाउन में हैं , घर में अकेले हैं उनको डर लगता है। डर क्यों लग रहा है भाई ? यह वही तो घर है, जहां तुम रहना चाहते हो, यह वही तो घर है। तुमने ही तो इसका प्रबंध किया हुआ है। पर अपने आप से ही डर लगता है।
जेलों में जब कैदी लोग कुछ खराब करते हैं तो उनको एक सजा दी जाती है उसे कहते हैं ‘सॉलिटेरी कन्फाइनमेंट’ (Solitary confinement) और सॉलिटेरी कन्फाइनमेंट का मतलब है उसको अकेले-अकेले कोई कमरे में बंद कर देंगे। वह सबसे बुरी सजा मानी जाती है। क्यों ? क्योंकि मनुष्य अपने आप, अपने आपको नहीं समझता है, वह अपने को ही भौंक रहा है, अपनी परछाई को देखकर ही भौंक रहा है। समझ नहीं आ रहा है उसके कि वह क्या है, क्यों यहां है ?
भगवान सबकुछ चला रहा है या वह चला रहा है ? सारी प्रकृति को चलाने वाला एक ही है। परंतु तुम अपनी जिंदगी में क्या करो। स्वांस का आना-जाना उसकी वजह से है, तुम्हारी वजह से नहीं है, उसकी वजह से है। पर इन हाथों से तुम क्या करो यह तुम्हारे पर निर्भर है। इस मुंह से तुम क्या बोलो यह तुम्हारे पर निर्भर है। तुम कड़वा भी बोल सकते हो, मीठा भी बोल सकते हो, दोनों चीजें हैं। जुबान में कोई फर्क़ नहीं पड़ेगा। कड़वा बोलोगे तो यह नहीं है कि जुबान को कड़वा लगेगा। ना! वह तो मुँह से आवाज़ आएगी और कड़वा है। और मीठा है, मीठा बोलना चाहते हो, अंदर से बोलो। वह बोलो जो सच है। क्या सच है ? जिससे तुम प्यार करते हो उनको कहो कि तुम प्यार करते हो। मां-बाप आजकल बच्चों से प्यार जरूर करते हैं, परंतु वह कभी कहते नहीं हैं कि हम प्यार करते हैं। बस यही बात है "तैनें यह कर दिया, तैनें यह कर दिया!"
कितने ही मां-बाप होंगे जो पहला शब्द अपने बच्चे को सवेरे-सवेरे गुड मॉर्निंग नहीं बोलते हैं, राम-राम नहीं बोलते हैं, नमस्कार नहीं बोलते हैं, कैसे हो नहीं बोलते हैं, तुमसे प्यार है यह नहीं बोलते हैं। सबसे पहला शब्द क्या है "तुम लेट हो, लेट हो, लेट" — जब उसको यह मंत्र सीखा ही दिया कि "तुम लेट हो, तुम लेट हो, तुम लेट हो, तुम लेट हो, तुम लेट हो, तुम लेट हो" तो वह सारी जिंदगी भर लेट रहेगा। वह सारी जिंदगी भर लेट रहेगा। तुम चले भी जाओगे, तुम माँ-बाप हो , तुम चले भी जाओगे पर तुम्हारा बच्चा बड़ा होकर के लेट रहेगा। हर एक चीज में लेट। क्यों ? क्योंकि तुमने उसको अच्छी तरीके से समझा दिया है, हर रोज उसको समझा दिया है कि "तू लेट है, तू लेट है, तू लेट है, तू लेट है, तू लेट है।" तैनें यह नहीं किया, तैनें वह नहीं किया, तैनें ऐसा नहीं किया, तैनें वैसा नहीं किया।" यह सब क्यों करते हैं ताकि दुनिया तुम्हारी तरफ देखे और कहे कि जो तुम कर रहे हो, वह ठीक कर रहे हो।
देखो! तुम अगर सवेरे-सवेरे उठ करके अपना स्कूटर या मोटरसाइकिल लो और स्पीड लिमिट से चलाओ और हेलमेट पहनो और सबकुछ ठीक करो और जहां स्टॉपलाइट हो जहां लाल बत्ती हो वहां रुको और जहां हरी बत्ती हो वहां जाओ और हर एक चीज तुम बढ़िया तरीके से करो, बिल्कुल ठीक-ठाक करो जैसे कानून है वैसे ही अपनी मोटरसाइकिल चलाओ। तुम समझते हो कि तुम्हारी पीठ पर कोई हाथ ठोकेगा। नहीं, नहीं! गलत चलाओ तो तुरंत तुम्हारा चालान करने के लिए पहुंच जाएंगे। भाई! यही तो बात है इस संसार के अंदर। जब सब काम तुम ठीक करने की कोशिश करते हो कोई कुछ तुमको नहीं बोलेगा। गड़बड़ करोगे तब बोलेगा। तो सबसे बड़ी बात तो यह हुई कि तुम अपनी जिंदगी में क्या चाहते हो ? तुम्हारी जिंदगी है। स्वांस का आना-जाना यह तुम पर निर्भर नहीं है। कब तुम पैदा हुए यह तुम पर निर्भर नहीं था। कब तुम जाओगे यह तुम पर निर्भर नहीं है, परंतु यह तुम पर निर्भर है क्या तुम इस, जो तुमको जीवन मिला है इसमें क्या करो! इसीलिए संत-महात्माओं ने पहले से ही कहा है कि —
बड़े भाग्य मानुष तन पावा, सुर दुर्लभ सद्ग्रन्थन गावा।
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा, पाइ न जेंही परलोक संवारा।
समझाया है तुमको कि यह साधना का धाम है और मोक्ष का दरवाजा है। कैसी मोक्ष ? सारे झंझटों से परे — हटना और उठना और वह है असली मोक्ष। जीते जी जो मोक्ष मिले इन सारी चीजों से। जैसे यह एक उदाहरण है जो बहुत-बहुत बार दिया जाता है — जैसे कमल का फूल गंदे पानी में भी रहकर गंदे पानी से ऊपर रहता है वह स्वयं गंदा नहीं होता है, चाहे गंदे पानी में जरूर वह है, परंतु अगर कमल का फूल, उसको देखो तो वह तो इतना सुंदर है कि ऐसा नहीं लगता कि इस पानी में उसका जन्म हुआ है। पर हुआ है, हुआ है परन्तु फिर भी उससे ऊपर रहता है।
जो कुछ भी समस्याएं हैं, आएंगी समस्या तो आएंगी, परंतु अगर आपके पास ज्ञान रूपी छाता है तो आपको भीगने की जरूरत नहीं पड़ेगी। बारिश को आप नहीं रोक सकते। लोग यही सबसे बड़ी गलती करते हैं वह बारिश को रोकना चाहते हैं। हमारे पास आते हैं हमसे कहते हैं कि "जी! हम बारिश को कैसे रोक सकते हैं ?" बारिश को तुम नहीं रोक सकते सिर्फ क्या कर सकते हो तुम — अगर तुम्हारे पास छाता है तो उसको खोलो और तुम भीगने से बच सकते हो! बस! भीगने से बच सकते हो!
थोड़ा-सा ध्यान दो, अपनी तरफ ध्यान दो, अपने जीवन की तरफ ध्यान दो, ध्यान दो तुम क्या कर रहे हो, ध्यान दो किस तरीके से तुम — जिनसे तुम प्यार करते हो उनको किस तरीके से ट्रीट करते हो, उनको किस तरीके से, उनके साथ कैसा सलूक करते हो। प्यार का सलूक करो! समय लगेगा। लोग चाहते हैं कि अगर मैं कुछ आज मीठा बोल दूँ तो सभी मेरे लिए मीठा बोलें। नहीं! तुम अगर कुछ मीठा बोल दोगे तो लोग सोचेंगे "क्या हो गया इसको, आज अच्छी बात कर रहा है यह!" उनको भी समय लगेगा यह जानने में कि तुमने अपने जीवन में कोई परिवर्तन किया है। हर एक चीज में समय लगता है।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, जब ॠतु तब फल होय।
धीरज तो रखना ही चाहिए। और जो कर सकते हो, अच्छा करो उसकी मिठास तुम्हारे जीवन के अंदर जरूर आएगी।
सभी श्रोताओं को मेरा नमस्कार! फिर आगे मिलेंगे!
प्रेम रावत जी:
अब यह दूसरा हिस्सा है। यह आया है चंचल, चंदौली उत्तर प्रदेश से — "आप मन और हृदय की बात करते हैं। मन चंचल है परंतु हृदय की बात समझ नहीं आती है। हृदय को कैसे समझें ?"
हृदय को समझने की बात नहीं है, हृदय को एहसास करने की बात है। जैसे जो मिठास का स्वाद है वह एहसास करने की चीज है। वह समझने की चीज नहीं है। अगर आप किसी को समझाने की कोशिश करेंगे कि मिठास क्या होती है तो वह किसी की समझ में नहीं आएगी। परन्तु एहसास करने की कोशिश करेंगे तो बिल्कुल कोई भी उसका एहसास कर सकता है। तो इसी प्रकार हृदय की बात, समझने की बात नहीं है। हृदय की बात आप अपने दिमाग से नहीं समझ पाएंगे, हृदय की बात आपको उसका एहसास करना पड़ेगा और जब आप उसका एहसास करेंगे, जब उसका अनुभव करेंगे तो वह अनुभव करने की बात है तब आपको समझ में आएगा कि हृदय क्या कह रहा है और क्या कहता है।
"क्या सुख और शांति में अंतर है ?" तो संजय कुमार का मुजफ्फरपुर से बिहार से यह प्रश्न है — "क्या सुख और शांति में अंतर है ?"
देखिये! शांति, शांति है और सुख, सुख है। सुख, आपको इस संसार का भी सुख मिल सकता है पर यह जरूरी नहीं है कि जब आप इस संसार का सुख ले रहे हैं तो आपको शांति भी मिलेगी। कई बार तो यह होता है कि आपको इस संसार का सुख तो मिल रहा है, परन्तु शांति नहीं मिल रही है। और कई बार यह होता है तो — "क्या सुख और शांति में अंतर है?" बिलकुल अंतर है। परन्तु जिस आदमी के पास शांति है उसको एक ऐसी, उसको एक ऐसा सुख मिलेगा, वह ऐसा सुखी होगा कि वह संसार नहीं समझ पायेगा कि तू क्यों सुखी है। "तेरे पास यह नहीं है, तेरे पास यह नहीं है, तेरे पास यह नहीं है।"
आज हैप्पीनेस जिसे कहते हैं — “सुखी, हैप्पीनेस, आर यू हैप्पी, तुम हैप्पी हो।” तो बड़े-बड़े आर्गेनाईजेशन्स ने इसकी परिभाषा बनाई है कि सुखी का क्या मतलब होता है ? तुम्हारे पास नौकरी हो, तुम्हारे पास परिवार हो, तुम्हारे पास यह हो, तुम्हारे पास वह हो, परन्तु यह सब चीजें होने के बावजूद भी यह जरूरी नहीं है कि मनुष्य सुखी है। बड़े बड़े लोग हैं, बड़े बड़े लोग हैं और अब एक आदमी को तो मैं जानता हूं मतलब, निजी रूप से नहीं जानता हूं, पर जानता हूं वह — अब मैं नाम नहीं लूंगा ऐसे देश का वह, इतना बड़ा इंचार्ज है और उसके पास बहुत, स्वयं भी उसके पास बहुत पैसा है, पर मैं नाम नहीं ले रहा हूं किसी का और बहुत-बहुत शक्तिशाली देश है और शक्तिशाली देश का वह इतना बड़ा नेता है तो वह भी शक्तिशाली हो गया। परन्तु जब भी उसको मैं देखता हूँ, तो ऐसा लगता है कि एकदम नाखुश है, खुश है ही नहीं। छोटी-छोटी-सी बातों से ऐजिटेटेड (agitated) रहता है, गुस्सा उसको हमेशा आता रहता है। कोई कुछ थोड़ा-सा भी गलत बोल दे तो बड़ा गुस्सा आ जाता है उसको। तो इतना सबकुछ होने के बाद भी उसके पास शांति नहीं है। पैसा है, यह नहीं है कि उसको किसी से उधार लेने की जरूरत है। कहीं भी वह जा सकता है, कुछ भी वह खरीद सकता है। हां, उसके घर में मेरे ख्याल से अच्छे-अच्छे सोफे होंगे, बैठने के लिए बढ़िया-बढ़िया चीजें होंगी, देखने के लिए बढ़िया -बढ़िया चीजें होंगी। वह सारा सुख तो है, परन्तु शांति उसके पास नहीं है। तो सुख और शांति में यह अंतर है। तो जिसके पास शांति है, उसके पास एक बहुत ही अद्भुत सुख है उसके पास और वह सुखी है। परन्तु जो सुखी है, उसके पास यह नहीं है कि उसके पास शांति है। तो यह अंतर है। बड़ा अच्छा सवाल पूछा आपने।
"जिस परमानंद को अपने ही अंदर देखने को आप कहते हैं यह कैसे संभव है समझाने की कृपा करें क्या यह कार्य किसी भी परिस्थिति में संभव है" — अर्चना सिंह, मिर्जापुर उत्तर प्रदेश से यह प्रश्न पूछ रही हैं — "जिस परमानंद को अपने ही अंदर देखने को आप कहते हैं यह कैसे संभव है?" यह इसलिए संभव है क्योंकि आपके अंदर वह है इसलिए संभव है। आपने सुना होगा मैंने पहले भी कहा हुआ है कि —
एक राम दशरथ का बेटा। एक राम घट-घट में बैठा।।
एक राम का जगत पसारा। एक राम जगत से न्यारा।।
जो आपके घट में बैठा है वह आपके अंदर है उसको देखना, देखना कैसे ? इन आँखों से नहीं, उसको देखना है अनुभव की आँखों से। और जब वह अनुभव की आँखों से आप उसको देखेंगे, तो आपको आनंद मिलेगा। यह उसकी प्रकृति है। तो ऐसे यह संभव है। और क्या यह किसी भी परिस्थिति में किया जा सकता है ? थीअरेटिक्ली (theoretically) यह किसी भी परिस्थिति में किया जा सकता है। भगवान कृष्ण अर्जुन को कह रहे हैं लड़ाई के मैदान में कि "तू मेरा सुमिरन भी कर और लड़ाई भी कर!" जब समय आया तो उस चीज को दिखाने के लिए भगवान कहते हैं "तू इन आँखों से नहीं देख सकेगा, मैं तेरे को दिव्य नेत्र देता हूँ।" वह दिव्य नेत्र क्या हैं ? वह अनुभव के जो नेत्र हैं, जो तुम्हारे अंदर हैं, उनसे तुम उस चीज का दर्शन कर पाओगे। तो मेरे को यही आशा है कि आपको आपका उत्तर मिला।
यह निराकार पटेल, रायगढ़ छत्तीसगढ़ से इन्होंने प्रश्न पूछा है "सभी व्यक्ति सफल होने के लिए अपने-अपने स्तर पर प्रयास करते हैं इसमें कुछ व्यक्ति को सफलता प्राप्त होती है, जैसे दो व्यक्ति कुआं खोदते हैं तो एक में स्वच्छ और एक मीठा पानी प्राप्त होता है और दूसरे वाले के में पानी ही नहीं मिलता है ऐसा क्यों?"
जो हर एक व्यक्ति कुआँ खोदता है, जो हर एक व्यक्ति कुआँ खोदता है उसको अच्छी तरीके से मालूम है कि हो सकता है पानी न निकले या खारा पानी निकले! मुझे कैसे मालूम। जब पानी निकलता है तो उसको चखते हैं। क्यों चखते हैं कि मीठा है या खारा है। यह किसी को नहीं मालूम कि पानी निकलेगा या नहीं निकलेगा। यह रिस्क आप जब कुआं खोदते हैं तो यह रिस्क आप ले रहे हैं। निकले, पानी है तो निकलेगा, पानी नहीं है तो नहीं निकलेगा। और ऐसे भी कुएं हैं जिनमें पानी निकलते हैं फिर सूख जाते हैं। और ऐसे भी कुएं हैं जिनमें पानी नहीं निकलता है और फिर बारिश का पानी उनमें आ जाता है तो थोड़ा-बहुत पानी कुछ महीनों के लिए उनमें बना रहता है।
देखिये! बात सफलता की नहीं है, कई चीजें हैं जिनमें यह रिस्क लेना पड़ता है। नहीं लेंगे रिस्क तो कुछ भी नहीं होगा आगे। अगर कोई यह बोले कि मैं तो कुआं खोदूंगा ही नहीं, क्योंकि हो सकता है कि कुएं में पानी नहीं निकले, तो ना कभी आपके पास कोई कुआं होगा ना कभी पानी निकलेगा। परन्तु यह रिस्क हर एक व्यक्ति लेता है। जब किसान अपनी फसल बोता है, तो वह भी यह रिस्क लेता है कि यह उगेगी या नहीं उगेगी। और उग भी गयी तो अगर बेटाइम पानी पड़ा या ओले पड़े तो यह सारी की सारी फसल बर्बाद हो सकती है। यह रिस्क हम लोग लेते हैं। परंतु रिस्क लेते हुए भी हम रिस्क को समझते नहीं हैं और समझना चाहिए।
अब जैसे कहीं जा रहे हैं आप, बस से जा रहे हैं बस का एक्सीडेंट हो गया और सबको लगता है कि यह तो बड़ी बुरी बात हुई। परन्तु यह रिस्क आप लेते हैं जब आप बस में सफर करते हैं तो यह रिस्क आप लेते हैं तो यह तो सारी बातें इस संसार की ऐसी ही हैं, ऐसा लगता नहीं है कि ऐसी हैं, पर ऐसी हैं और यह तो कहा है संत महात्माओं ने कि "इस स्वांस के ऊपर इसकी कदर समझो क्योंकि ना जाने इस स्वांस का आना होय न होय।" कब, कैसे ?
सबसे बड़ी बात तो यह है आप तो कुएं की बात कर रहे हैं। मैं दूसरी बात करता हूं कि आपका यह शरीर है, आपको भी नहीं मालूम कब तक यह आपके पास है। कभी है, और आज है, हो सकता है कल न हो। तो इस बात को समझिये कि रिस्क तो हम हमेशा ले रहे हैं हम समझते हैं कि यह हमारे भाग्य का फल है। यह भाग्य का फल नहीं है यह हम रिस्क ले रहे हैं और जबतक यह रिस्क, इस दुनिया के सारे कार्यों में यह रिस्क हैं तब तक यह सारा चक्कर बना रहेगा।
उत्तम नगर, दिल्ली से यह प्रश्न है — "आप शांति के बारे में बात करते हैं, आप प्यास की बात करते हैं मुझे कैसे पता चलेगा कि शांति मिल गई। शांति की प्यास को कैसे समझें ?"
हां! यह तो वही वाली बात हो गई — जब एक राजा के पास एक दूत आया और उसने कहा "महाराज हमारे राजा ने आपके लिए यह आम के फल भेजे हैं उपहार के रूप में।"
राजा ने पूछा — "यह आम क्या होता है हमको मालूम ही नहीं है ?"
उसके राज्य में आम नहीं थे तो राजा ने एक व्यक्ति को अपने दरबार से कहा, "तुम चखो और और चखकर मेरे को बताओ कि आम क्या होता है, कैसे होता है?"
उसने चखा और उसने बताने की कोशिश की कि — "आम ऐसा होता है, ऐसा होता है पर राजा को समझ में नहीं आया।" ऐसे करते-करते-करते-करते जितने भी दरबारी थे राजा के दरबार में सबका नंबर आया, सबने कोशिश की पर किसी को भी, कोई भी इसमें सक्सेसफुल नहीं हुआ, समर्थ नहीं हुआ कि वह राजा को समझा सके कि आम क्या होता है।
उसके बाद एक जो आखिरी वाला था उसने लिया आम को और उसको काट करके एक प्लेट में रखा और राजा के पास ले गया और कहा "यह चखिए महाराज!"
जैसे ही राजा ने चखा तब राजा को मालूम पड़ गया कि आम क्या होता है।
जैसे आपने प्रश्न पूछा है ठीक वही बात है। आप पूछ रहे हैं कि शांति कैसे मालूम पड़ेगी ? क्या-क्या शांति — जब आप शांति का अहसास करेंगे तक आपको मालूम पड़ेगा कि शांति क्या है। उससे पहले एक थ्योरी है, उससे पहले एक थ्योरी है। उससे पहले कोई समझा दे, समझ में आएगी या नहीं आएगी परंतु मुंह में तो स्वाद आएगा नहीं। शांति का अनुभव तो होगा नहीं। कितने ही लोग हैं जो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं शांति के बारे में पर लोगों को शांति तो मिलती नहीं है। लोग यह भी करते हैं जब अपना भाषण खत्म किया — "ओम शांति, शांति, शांति, शांति!" किसी को शांति नहीं मिलती। शांति तुम्हारे अंदर है और वह एहसास करने की चीज है जबतक उसका एहसास नहीं करोगे, जबतक उसका अनुभव नहीं करोगे तब तक क्या समझोगे कि शांति क्या है। शांति परिभाषाओं की चीज नहीं है, शांति परिभाषाओं में नहीं फंसी हुई है।
आतम अनुभव ज्ञान की, जो कोई पुछै बात
सो गूंगा गुड़ खाये के, कहे कौन मुख स्वाद।
तो वही वाली बात है। कैसे समझाएं स्वाद तो आ रहा है, पर कैसे समझाएं। तो आपको ही इसका स्वाद लेना पड़ेगा।
"मैं एक संयुक्त परिवार में रहता हूं — यह हैं संजय मिश्रा, दिल्ली से — बहुत कोशिश करने के बाद भी मेरे परिवार में शांति नहीं हो पा रही है हर वक्त क्लेश होता है। मैं हिम्मत हार चुका हूं कृपया मार्गदर्शन कीजिए।"
देखिये! जबतक वह परिवार आपका परिवार है आप हौसला मत खोइए। क्लेश जो होता है, फाइटिंग, इनफाइटिंग जिसे कहते हैं अपने आप में नहीं होती है। यही प्रश्न, ऐसा ही एक प्रश्न एक लड़की ने पूछा था मेरे से एक जगह यूनिवर्सिटी में मैं गया था कहीं तो मैंने कहा कि "तुम इसमें कितना हिस्सा लेते हो, तुम्हारा क्या रोल है इसमें।" तो वही वाली बात है कि कुछ-कुछ मतलब, बाहर खड़े होकर के और लोगों को उकसाते हैं कि "हां यह ठीक है, यह ठीक है, यह ठीक है, यह ठीक है, यह ठीक है।"
देखिये! आप भी कुछ कर रहे हैं उस क्लेश के बारे में, उस क्लेश को आगे बढ़ने में आप उस क्लेश की मदद कर रहे हैं। यह जानिए कि आप क्या कर रहे हैं जिससे कि वह क्लेश बढ़ रहा है। आप क्या कर रहे हैं और लोग नहीं, आप क्या कर रहे हैं ? जब आप उस क्लेश को समझेंगे और कुछ ऐसा करेंगे कि वह क्लेश आगे ना बढ़े और लोगों के लिए नहीं, आप अपने लिए जो कर रहे हैं। साइकिल होती है न — बाइसाइकिल उसकी चेन होती है। अगर उसमें से एक चेन का लिंक निकाल दें आप तो वह सारी की सारी चेन किसी काम की नहीं रह जाती। एक लिंक निकालने में, एक लिंक उसका निकाल दें तो फिर वह चेन नहीं रह जाती। फिर उससे साइकिल नहीं चलेगी, चाहे सारी की सारी हों और सिर्फ एक ही नहीं है, साइकिल नहीं चलेगी। ठीक इसी तरीके से यह बात है कि यह जो चेन है इसके एक हिस्से आप भी हैं और अगर आप इसमें से अलग हो जाएं, आप उस क्लेश की मदद न करें तो यह चेन फिर आगे चल नहीं पाएगी।
बहुत कुछ कह सकता हूं इसके बारे में मैं, परंतु यही मैं कहना चाहता हूं अभी तो अगर आपकी समझ में आए मैं क्या कह रहा हूं तो इस बारे में कम से कम थोड़ा सोचिये, थोड़ा विचारिये!
सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
प्रेम रावत जी:
मेरे श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
आज का दिन है प्रश्नों का उत्तर देने का तो पहला प्रश्न है। साधना — जब कभी भी — उन्होंने पूछा है कि "जब कभी भी मनुष्य के ऊपर आपदा आती है तो मूर्खता भी उतनी ही तेजी से आती है क्या यह मन की वजह से होता है ?"
नहीं! देखिए, जब मनुष्य के ऊपर आफत आती है तो सबसे पहले आफत के कारण उसकी आंखें बंद होती हैं, उसके कान बंद होते हैं, आफत के कारण उसकी आंखें बंद होती हैं, आफत के कारण वह किसी की सुनना नहीं चाहता है, आफत के कारण वह किसी की, कुछ नहीं करना चाहता है और इसी वजह से मूर्खता भी आती है क्योंकि जब आंख ही बंद कर ली तब कहां जा रहे हैं क्या दिखाई देगा ? क्या पता है ? कुछ पता नहीं। तो मुझे यही आशा है कि आपके प्रश्न का उत्तर आपको मिला होगा।
"मैं अपनी जिंदगी से हार चुका हूँ मुझे ऐसा लगता है कि जहां भी मैं जाता हूं सब मुझे अपने काम के लिए इस्तेमाल करते हैं — प्रमोद।"
देखिए! आप किसी से भी लड़ सकते हैं। आप अपने भाई से लड़ सकते हैं और मैं समझ सकता हूं क्यों। आप अपनी बहन से लड़ सकते हैं, मैं समझ सकता हूं क्यों। आप अपने पिताजी से लड़ सकते हैं, मैं समझ सकता हूं क्यों। आप अपनी माताजी से लड़ सकते हैं, मैं समझ — मैं यह नहीं कह रहा कि लड़ना चाहिए, पर आप लड़ सकते हैं और मैं समझ सकता हूँ क्यों। पर आप अपनी ही जिंदगी से लड़ रहे हैं, यह मैं नहीं समझ सकता। यही तो है आपके पास और क्या है आपके पास ? अगर आपका जीवन ही नहीं रहा तो आपके पास क्या रहेगा, कुछ भी नहीं रहेगा। तो इससे मत हारिये। इससे नहीं लड़ना है। इस जिंदगी में तो जीत ही जीत करनी है, हारना नहीं है। जो लोग आपको इस्तेमाल कर रहे हैं वह आपका फायदा उठा रहे हैं। आप अपने लिए भी तो जीना सीखिए। औरों के लिए नहीं, अपने — जब आप अपने लिए ही जीना नहीं सीखेंगे तो फिर आप औरों के लिए कैसे जी पायेंगे ? जो दिया खुद ही नहीं जला हुआ है वह और दीयों को कैसे जलायेगा ? जो मोमबत्ती खुद ही नहीं जली हुई है, वह और मोमबत्तियों को कैसे जलायेगी ?
लोग कहते हैं कि औरों के लिए जीना चाहिए। पर एक बुझा हुआ दिया औरों के लिए कैसे जीएगा ? कैसे जी सकता है ? जबतक वह खुद ही नहीं प्रकाशित है, जबतक वह खुद ही नहीं जल रहा है तो वह और किसी दीये को कैसे जलाएगा ? मजबूती आप में होनी चाहिए। देखिये! उस मकान का क्या फायदा, जिस मकान की छत इतनी कमजोर है कि आप उसको — आप छत को उठा रहे हैं, तो वह कैसी छत हुई ? कम से कम आपके मकान को इतना तो मजबूत होना चाहिए कि कुछ भी आए, ऊपर से आये, साइड से आए, वह उसको थोड़ा-बहुत तो झेल सके। जब उसी में वह शक्ति नहीं है, तो वह आपका कैसा घर हुआ ? आपकी रक्षा कैसे करेगा ? तो सबसे बड़ी बात है कि आप अपने में, जो करेज़ (courage) होना चाहिए, जो मजबूती होनी चाहिए, वह लाएं। और जब वह होगी, तब लोग आपका फायदा नहीं उठाएंगे।
यह प्रश्न आया है — पुष्पा देवी, पीलीभीत उत्तर प्रदेश से, आप कहते हैं कि "मनुष्य जब परेशान होता है तब वह भगवान की याद करता है पर जब मैं परेशान होती हूँ तो मेरा भगवान पर विश्वास नहीं रह जाता है, ऐसा क्यों ?"
अच्छा! एक बात मैं आपसे कहना चाहता हूं। यह एक, बात तो बिल्कुल स्पष्ट है आपने पहले ही एक अपने मन में, अपनी बुद्धि में, अपने दिमाग में एक चित्र बना रखा है और उस चित्र में यह है कि "भगवान यह करेगा; भगवान आपकी यह करेगा; भगवान आपके लिए यह करेगा; भगवान आपके लिए यह करेगा" और आपको सिर्फ यह कहना है, हे भगवान जी! अब मेरे लिए यह कर दो। हे भगवान जी! अब मेरे लिए यह कर दो। हे भगवान जी! अब मेरे लिए यह कर दो!" आप भगवान की बात कर रहे हैं या नौकर की बात कर रहे हैं। आप कह रहे हैं कि "आपका विश्वास उठ जाता है भगवान से जब आप परेशान होते हैं" — आप नौकर की बात कर रहे हो या भगवान की बात कर रहे हो ? आप, अगर नौकर को आवाज दी जाए — किसी का नाम, किसी का नौकर है प्रकाश, "हे प्रकाश कहां है तू, कहां है, जल्दी आ!" नहीं आ रहा है वह, तो ठीक है आप उससे निराश हो जाइए। परंतु, जिस भगवान की आप बात कर रहे हैं वह आपका नौकर थोड़ी है। वह — आप परेशान हों या ना हों, वह आपको थोड़े ही परेशान कर रहा है।
आप समझते हैं कि भगवान का और कोई काम नहीं है सिर्फ आपको परेशान करने के। परेशान मैं बताऊं आपको कौन कर रहा है, आपको दुनिया परेशान नहीं कर रही है, आपको परेशान अगर कोई कर रहा है तो वह हैं "आप" — आप अपने आपको परेशान कर रहे हैं यह मैं आपसे कह रहा हूं क्योंकि यह मेरा अनुभव है। जब मैं परेशान होता हूं तो बड़ी साधारण-सी चीज है, "उसकी गलती है, उसकी गलती है, उसकी गलती है,उसकी गलती है।” मैं कितने ही, हजारों लोगों को जानता हूँ "यह उसने किया, यह उसने किया, यह उसने ठीक नहीं किया, यह उसने ठीक नहीं किया।" परन्तु यह सचमुच में जब मैं अपनी तरफ देखता हूं तो मेरे को यही एहसास होता है कि दरअसल में, सच्ची में मैं अपने आपको परेशान कर रहा हूं ये लोग परेशान नहीं कर रहे हैं, मैं अपने आपको परेशान कर रहा हूं और मेरे को इस परेशानी से अगर ऊपर उठना है तो मेरे को उठना है। यह नहीं है कि "इसको मेरे को ठीक करना है, इसको मेरे को ठीक करना है, इसको मेरे को ठीक करना!" वह ठीक हों या ना हों परेशान मैं खुद अपने आप को कर रहा हूं।
इसका यह मतलब नहीं कि मैं उसको छोड़ दूंगा, अगर उन्होंने कोई गलती की है तो मैं उनको कहूंगा कि “तुमने यह गलती की है, यह तुम्हारा ठीक — यह ठीक नहीं किया तुमने।” परन्तु जहां तक बात है भगवान की, कि आपका उनसे विश्वास उठ जाता है यह ठीक बात नहीं है। वही, सबको बनाने वाला ही एक ऐसा है जो विश्वसनीय है और सारा संसार आपको धोखा दे सकता है, परंतु वह जो आपके हृदय में विराजमान है वही है एक जो आपको कभी धोखा नहीं देगा।
"मेरा पढ़ाई में मन नहीं लगता है किसी तरह अगर अपने मन को कंट्रोल कर भी लूं तो 2 या 3 दिन से ज्यादा नहीं कर पाता हूं इसके लिए मैं क्या करूं ?" — देखिये — यह प्रकाश, मेडिकल छात्र हैं नेपाल से, उनका यह प्रश्न है! मन तो आपका लग रहा है पर कहीं और लग रहा है यह बात नहीं है कि आपका मन नहीं लग रहा है, मन तो आपका लग रहा है पर कहीं और लग रहा है और आप चाहते हैं कि वह पढ़ाई में लगे।
देखिये, सबसे बड़ी बात यह है कि जो आप पढ़ रहे हैं इस समय, यह आप अपनी सारी जिंदगी भर नहीं पढ़ते रहेंगे। इसका एक निश्चित समय है उसके बाद आप ग्रेजुएट होंगे, उसके बाद अगर आप डॉक्टर बनना चाहते हैं तो आप डॉक्टर बन जाएंगे। उसके बाद आपको बहुत स्वतंत्रता मिलेगी आप जो भी करना चाहे कर पाएंगे। पहले कुछ साल में तो आपको खूब मेहनत करनी पड़ेगी। तो जो भी यह हो रहा है, यह हमेशा के लिए नहीं हो रहा है। हर एक चीज, हर एक दिन जो आता है वह वापिस कभी नहीं आएगा। अगर आप कुछ सीख जाएं, कुछ समझ जाएं इससे आपका भी भला है, औरों का भी भला है।
सबसे बड़ी बात तो यही है कि मन तो आपका कहीं लग रहा है बस यह बात है कि पढ़ाई में नहीं लग रहा है। वहां से निकालकर आप अपना मन पढ़ाई में भी लगाएं। इसका यह मतलब नहीं है कि जहां अब लग रहा है — अगर आप अपने लिए यह बना लें कि या तो वहां लगे या यहां लगे तो बात बहुत मुश्किल बन जाएगी। नहीं, यहां भी लगाइये, वहां भी लगाइये। जब यहां लगाने का समय हो तो मन को एकाग्र करके यहां लगाइये। जब वहां लगाने का समय हो तो वहां लगाइये। यह तो आपके ऊपर निर्भर है। इसका यह मतलब थोड़े ही है कि अगर आप 2 दिन लगा सकते हैं, 3 दिन लगा सकते हैं तो आप 4 दिन भी लगा सकते हैं, 5 दिन भी लगा सकते हैं, 6 दिन भी लगा सकते हैं, 7 दिन भी लगा सकते हैं, हफ्ता भी लगा सकते हैं, हफ्ता लगा सकते हैं तो महीना भी लगा सकते हैं, महीना लगा सकते हैं तो दूसरा महीना भी लगा सकते हैं, दूसरा महीना लगा सकते हैं तो साल भी लगा सकते हैं, 2 साल भी लगा सकते हैं, 3 साल भी लगा सकते हैं, 4 साल भी लगा सकते हैं। उसके बाद तो आपको ग्रेजुएट हो जाना चाहिए। तो मतलब, मेरा यही कहने का मतलब है कि मन तो आपका कहीं ना कहीं लग रहा है बात यह है कहां लग रहा है! तो मेरे को आशा है कि आपको इसका जवाब मिला होगा।
जय श्री विश्वकर्मा, धनबाद झारखंड, वह लिखती हैं कि — "मेरे मन में बहुत अशांति रहती है, मैं कभी खुश नहीं रह पाती हूं। जिस वजह से मैं अपने परिवार को भी खुश नहीं रख पाती हूं। मैं बहुत डिप्रेशन में हूं कृपया इससे निकलने का रास्ता बताएं।"
देखिये एक तो, डिप्रेशन मेडिकल के कारण हो सकता है। इसके लिए आपको डॉक्टर को दिखाना चाहिए ताकि कम से कम अगर कोई ऐसी चीज है, केमिकल इम्बैलेंस (chemical imbalance) है तो वह, आप उसको देख पाएं। और अगर केमिकल इम्बैलेंस नहीं है और आप, अशांति रहती है आप खुश नहीं रह पाते हैं, आप चीजों में देखते हैं कि क्या-क्या गलत हो रहा है तो यह सारी चीजें यह तो आपके ऊपर निर्भर है आप क्या देखें! हर एक चीज के अंदर अच्छाई भी है, हर एक चीज के अंदर बुराई भी है। अगर आप देखें जो पौधा गुलाब के फूल देता है उसमें गुलाब का फूल भी है ऊपर और कांटे भी हैं उसमें। तो कांटे चाहिए आपको या गुलाब का फूल चाहिए आपको। सुंदरता तो आपको गुलाब के फूल में मिलेगी, कांटों में नहीं मिलेगी। कांटों में दर्द मिलेगा, दुख मिलेगा और गुलाब के फूल में आपको बहुत अच्छी खुशबू मिलेगी, आनंद मिलेगा, कोमलता मिलेगी, बहुत सुंदर रंग मिलेगा, यह सारी चीजें आपको मिलेंगी और हर एक चीज में यह है। यह आपके ऊपर निर्भर है कि आपको क्या चाहिए और अगर यह चाहिए तो बड़ी आसानी से उस तरफ हर दिन थोड़ा-थोड़ा परिश्रम कीजिए कि आप चीजों की अच्छाइयों को देखें, बुराइयों को नहीं। जब कोई चीज किसी भी चीज की बुराइयों को देखने लगे अपने आप से कहिए "रुको-रुको मैं यह नहीं देखना चाहती मैं देखना चाहता हूँ या देखना चाहती हूं जो अच्छाई है इसमें।" तो ऐसे-ऐसे, धीरे-धीरे-धीरे, थोड़ा-थोड़ा-थोड़ा-थोड़ा करके आपके जीवन में परिवर्तन जरूर आएगा।
अगला प्रश्न , मेरा प्रश्न है कि "कर्म और कर्तव्य बड़ा है या धर्म बड़ा है ? मेरा मार्गदर्शन करें।"
धर्म आप सीखते हैं, समझते हैं, पर जो भी आप करते हैं वह आपका कर्म है। मैंने अपने जीवन के अंदर किसी भी चीज की कल्पना की, कोई भी ख्याल मेरे मन में आया पर मैंने अगर कुछ उसके बारे में नहीं किया तो वह ख्याल किसी भी काम का नहीं है। एक बार जब मैं कोई चीज कर देता हूं उसको मैं वापिस नहीं ले सकता। ख्याल को मैं वापिस ले सकता हूं पर अगर एक बार मैंने कोई चीज कर दी तो उसको मैं वापिस नहीं ले सकता, कर दी तो कर दी उसमें फिर समय शामिल है। एक बार किसी चीज में समय शामिल हो जाता है तो उसको वापिस नहीं लिया जा सकता। सबसे बड़ा कर्म है। कर्त्तव्य समझने की चीज है कि आपका कर्तव्य क्या है किसी-किसी चीज के भी प्रति। और धर्म आपको बताता है कि कैसे आपको रहना चाहिए, कैसे आपको होना चाहिए, क्या आपको करना चाहिए, परंतु धर्म करवाता नहीं है। कर्म आप करते हैं, कोई भी कर्म आप करते हैं, धर्म नहीं। धर्म समझाता है क्या ठीक है, क्या अच्छा है! कर्तव्य समझाता है कि क्या ठीक है, क्या अच्छा है, परंतु कर्म आप करते हैं।
तो यह सबसे बड़ी चीज है कि बड़ा नहीं, छोटा नहीं सबसे बड़ी बात है कर्म आप करते हैं और उस कर्म को जो आपके समझ है उसको तो आप वापिस ले सकते हैं, परंतु जो कर्म आप करते हैं उसको आप वापिस नहीं ले सकते। यह एक कहानी है न वही वाली कि एक बार अकबर इंतजार कर रहा था बीरबल की। तो बीरबल नहीं आया उनके दरबार में तो अकबर गुस्सा हो गए। बीरबल को बुलाया तो बीरबल आया।
तो बीरबल से कहा कि "क्यों तुम आज लेट हो गए आये नहीं समय पर ?"
बीरबल ने कहा "जी! मेरा पोता आया हुआ है और उसको खुश करने में मैं लगा हुआ था। वह खुश ही नहीं हो रहा था।"
राजा ने कहा, "ऐसी क्या बड़ी बात है छोटा-सा बच्चा ही तो है उसको तो बड़ी आसानी से खुश किया जा सकता है।"
तो कहा कि "हुजूर! यह तो ठीक बात नहीं है। यह सच बात नहीं है — बच्चे को बड़ी आसानी से खुश नहीं किया जा सकता है!"
तो अकबर ने कहा — "बुलाओ अपने पोते को!" तो पोते को बुलाया गया।
तो पोते को पहले ही बीरबल ने कहा था "क्या-क्या माँगना राजा से!"
तो अकबर ने पूछा, "क्या चाहिए तुमको?"
पोते ने कहा , "जी!, मेरे को गन्ना चाहिये।" तो गन्ना मंगवाया।
तो बीरबल की तरफ देखा अकबर ने कि "देख! बड़ी आसान बात है यह, इसको खुश करना कोई बड़ी बात नहीं है।"
बीरबल थोड़ा मुस्कुराया, क्योंकि उसको समझाया हुआ था तो बच्चा फिर रोने लगा।
तो कहा कि "अब क्यों रो रहा है ?"
कहा, "मेरे को पूरा गन्ना नहीं चाहिए, मेरे को छोटे-छोटे टुकड़ों में यह गन्ना चाहिए।"
तो राजा ने कहा "यह तो बड़ी आसान बात है।" सिपाही को बुलाया कि इसको काट दो अपनी तलवार से। तो उसने उसकी गँड़ेरी काट दी।
तो जब गँड़ेरी काट दी तो राजा ने देखा बीरबल की तरफ कि "यह तो बड़ी आसान बात है। क्या मुश्किल बात है इसको खुश करने में।"
तो फिर बच्चा रोने लगा।
कहा, "अब क्या हो गया, अब क्या बात है ?"
तो कहा कि नहीं "मेरे को साबुत, पूरा का पूरा साबुत गन्ना चाहिए अब।"
तो फिर अकबर ने देखा बीरबल की तरफ कि क्या बड़ी बात है। तो उसको बुलाया कहा, "लाओ दूसरा गन्ना लाओ, साबुत गन्ना लाओ!"
तो जब साबुत गन्ना आया तो बच्चा और जोर से रोने लगा।
कहा, "अब क्या हुआ, अब क्या बात है ?"
कहा, "मेरे को वही गन्ना साबुत चाहिए, जो छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा था।
क्योंकि वह फिर साबुत नहीं होगा कभी भी।
तो देखने की बात है कि जो आप करते हैं एक बार जो किया उसमें समय इनवॉल्वड है। जब समय इनवॉल्वड है तो उसको फिर वापिस नहीं लिया जा सकता इसलिए सचेत रहने की बहुत जरूरत है।
तो सभी लोगों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!