प्रेम रावत जी:
सभी श्रोताओं को हमारा नमस्कार!
मुझे यही आशा है कि सभी लोग कुशल-मंगल होंगें। और क्या हो सकते हैं, क्योंकि दुःख तो हम अपने कंधों पर डालते ही हैं। ऐसी परिस्थिति भी हम ही लोग बनाते हैं जिससे कि फिर दुःख होता है और संभावना तो यह है कि आनंद हो, संभावना तो यह है कि दिल में खुशी हो, हृदय में खुशी हो और शांति हो। परंतु कई बार हम ही लोग अपने जीवन में ऐसा-ऐसा माहौल बनाते हैं जिससे कि फिर दुःख होता है। पर जब हम यह करते हैं तब हमको यह ख्याल नहीं आता है कि हम क्या कर रहे हैं।
देखिये एक बात है, एक कहानी के रूप में लीजिए इसको आप। एक बार जब द्रौपदी की शादी नहीं हुई होती है तो खबर आई महल में कि एक बहुत पहुंचे हुए साधु-संत आये हैं और उनका दर्शन जरूर करना चाहिए। तो द्रौपदी ने कहा "मैं भी जाऊंगी, मैं भी दर्शन करना चाहती हूं।" द्रोपदी गई तो और कोई नहीं थे वह वेदव्यास जी थे और उनके पीछे गणेश जी लिखने के लिए बैठे थे। तो द्रौपदी ने उनको प्रणाम किया कहा "महाराज! मेरा भविष्य भी बताइये।"
तो वेदव्यास जी ने कहा, "ठीक है!" (उनको मालूम था कि क्या होने वाला है)
तो उन्होंने द्रौपदी का हाथ, हाथ में लिया उसको देखा कहा कि "द्रौपदी तुम्हारे कारण करोड़ों लोग मरेंगे, खून की नदियां बहाई जाएंगी।"
तो द्रौपदी को धक्का-सा लगा कहा, "महाराज मैं तो नहीं चाहती हूं कि मेरे कारण करोड़ों लोग मरें, मेरे कारण खून की नदियां बहें। तो कुछ आप इलाज नहीं बता सकते हैं, कुछ ऐसा नहीं बता सकते हैं जिससे कि मैं बच जाऊं।"
आजकल के लोग जब सुनते हैं कि ऐसा नहीं है या यह ठीक नहीं है या यह ग्रह ठीक नहीं है या कोई मांगलिक है या कुछ है, कुछ है तो कुछ ना कुछ करना चाहते हैं ताकि उसका जो बुरा असर है वह ना हो। लोगों के अपने ख्याल हैं, अपनी बातचीत है जो-जो उनके मन में आता है।
तो वेदव्यास जी ने कहा, "ठीक है! तुम तीन काम करो अगर तो यह खून की नदियां नहीं बहेंगी। एक तो किसी को ठेस मत पहुंचाओ, किसी को ठेस मत पहुंचाओ और जिसको तुमने ठेस पहुंचाई है, जिसको तुमने ठेस पहुंचाई है अगर वह तुमको ठेस पहुंचाए तो ठीक है उसको सह लो, पर अगर सह नहीं पाओ तो कभी बदला लेने के लिए तैयार मत हो, कभी बदला मत लेना। इसलिए किसी को ठेस मत पहुंचाओ और अगर तुमको कोई ठेस पहुंचाए तो वह अपने तक पहुंचने न दो, मतलब उसका बुरा असर जो है, उसका बुरा ना मानो। अगर बुरा मान भी गए तो बदला लेने की मत ठानना।"
तो द्रौपदी ने कहा, "यह तो बहुत आसान काम है यह तो मैं कर सकती हूं, तो मैं करूंगी।” परन्तु जब समय आया तो यही तीन चीजें ऐसी हुईं कि उनको पता था और पता होने के बाद भी ऐसी हुईं, ऐसी हुईं कि खून की नदी बहीं। क्या हुआ! महल में, जब दुर्योधन आया देखने के लिए महल, क्योंकि बहुत विचित्र महल था तो जब आया तो जहां पानी था तो उसको लगा कि "मैं पानी से नहीं गुजरूंगा।"
द्रौपदी ने कहा "इधर से आइये!"
तो उसने कहा, "नहीं, नहीं मैं तो सीधा चला जाता हूँ।" जैसे ही सीधे गए तो पानी में गिर गए और द्रौपदी हंस दी।
पहली बात, दुर्योधन को ठेस लगी, जो ठेस लगी तो उसने कहा कि "मैं इसका बदला लूंगा!" (उसने कहा, दुर्योधन ने)। तो फिर चीर-हरण हुआ। जब चीर-हरण हुआ तो द्रौपदी सचमुच में बुरा मान गयी — कहा हुआ था कि "बुरा मत मानना" पर बुरा मान गयी! और परिस्थिति भी ऐसी थी कि कोई भी बुरा मान जाये और बुरा मानने के बाद उसने कहा कि "मैं तो बदला लूंगी!" और खून की नदियां बहीं। जानते हुए भी यह तीनों चीजें हुईं।
आज हम यहां बैठ करके इन चीजों के बारे में सोच सकते हैं, पर जब यह चीजें होती हैं तब वह शक्ति नहीं रहती कि हम इसको देखें कि हम क्या करने जा रहे हैं और जिंदगी के अंदर आनंद पाने के लिए, शांति पाने के लिए यह चीज बहुत जरूरी है कि हम क्या करने जा रहे हैं! जो सचेत रहकर के, चेतना से जिंदगी को जीने की बात है वह यही बात है, क्योंकि कर्मों का फल तो मिलेगा, जो भी कर्म करोगे, अगले जन्म में नहीं इस जन्म में, किसी न किसी तरीके से इस जन्म में उन कर्मों का फल मिलेगा।
लोग हैं जो लोगों की तरफ देखते हैं, दूसरों की तरफ देखते हैं कहते हैं "वह भाग्यशाली है, मैं भाग्यशाली नहीं हूं।" क्यों ? तुम जो देख रहे हो वह बाहर से देख रहे हो। अंदर क्या समस्याएं हैं, उस आदमी के मन में क्या गुजर रही है, उस पर क्या गुजरती है, यह नहीं देखते लोग। सिर्फ बाहर से क्या-क्या हो रहा है यह देखते हैं — "बाहर से यह है, बाहर से वह है।" पर उसके साथ क्या गुजर रही है, वह नहीं देखते। बड़े-बड़े लोग जब आते हैं, टेलीविज़न के पास आते हैं, टेलीविज़न कैमरा के पास आते हैं तो मुस्कुराते हैं और घर जाते हैं तो चिंता, चिंता, चिंता, चिंता, चिंता। इसलिए कहा कि —
चिंता तो सतनाम की, और न चितवे दास,
और जो चितवे नाम बिनु, सोई काल की फांस
हर एक चीजों के बारे में मनुष्य चिंता करता है। उन समस्याओं के बारे में भी चिंता करता है जो समस्या सिर्फ ख्याल में हैं, जो सही में नहीं हैं, असल में नहीं हैं, उनके बारे में भी वह चिंता करता है। उसको चिंता है हर एक चीज की और उस चिंता में खो करके यह जो जीवन है इसको खोता है। लोगों को स्वर्ग जाने की इतनी चिंता रहती है — अब स्वर्ग है या नहीं है! मैं तो नहीं कह सकता, मैं तो नहीं बता सकता, मैं तो अभी जिंदा हूं। पर इतनी बात मैं बता सकता हूं कि अगर कहीं स्वर्ग है तो यहां है और अगर कहीं नरक है तो यहां है। यह मैं कह सकता हूँ, इस बात की मैं गारंटी दे सकता हूं। यह बात आपको भी अच्छी तरीके से मालूम है। आगे क्या है आपको नहीं मालूम। जो कुछ मालूम है वह आपने सुना है पर आपको क्या मालूम है वह सिर्फ यही क्योंकि और चीजों में तो आपको विश्वास करना पड़ता है, पर जो सही चीज है वह यही है कि जैसे कहा है —
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय।
जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय ।।
क्यों जाना चाहते हैं बैकुंठ ? सुखी होने के लिए, पर जो सुख यहां है, जो सुख उस आनंद में है, जो आनंद तुम्हारे अंदर है जो सुख उस शांति में है, जो शांति तुम्हारे अंदर है, वह बैकुंठ में भी नहीं है। बहुत बड़ी बात कह दी, यह तो बहुत बड़ी बात कह दी। पर कह दिया, क्योंकि यह सही बात है। और सबकुछ सोच की बात है और सबकुछ विचारने की बात है, परंतु जो है, वह है। लोग हैं इस दुनिया के अंदर "सात जन्म तक साथ निभाएंगे।" तुमको कैसे मालूम, तुमको कैसे मालूम और यही आठवां हुआ तो फिर!! मतलब, सबकुछ जो उन लोगों ने कहा है उसी पर लोग अपनी जिंदगी की बुनियाद डालते हैं और यह कभी नहीं देखते हैं कि यह कितनी मजबूत है।
समुद्र के किनारे अगर आप जो रेत है उसको इकट्ठा करके उसका एक थोड़ा-सा मकान भी अगर आप बनाएं तो ज्यादा देर नहीं टिकेगा। क्योंकि जो समुद्र का पानी है वह आ करके उसको तहस-नहस कर देगा, नष्ट कर देगा। समय भी एक ऐसी चीज है अपने आप को समझो कि आप भी एक समुद्र के तट पर हो, परंतु यह समुद्र का जो पानी है, वह पानी नहीं बल्कि समय है और वह लहरों की तरह आता रहता है, जाता रहता है, आता रहता है, जाता रहता है और एक दिन आएगा और जो कुछ भी इस विश्वास की दुनिया ने आपको बताया हुआ है जिस पर आपने अपनी बुनियादी सारी चीजों पर भरोसा किया है वह लहर सबको नष्ट कर देगी। क्या बचेगा ? क्या बचेगा ? जो आनंद है वह बचेगा।
जैसे मैं कई बार कहता हूं कि जब आप कहीं जाते हैं तो अगर आपके दोस्त ने या किसी परिवार ने आपको खाने पर बुलाया। अच्छे-अच्छे पकवान — आप जैसे ही घर में आए आपकी खातिरदारी की गई। बैठे आप लोग, आपने बात की, आपने कुछ मज़ाक किया, आपको अच्छा लगा, आनंद आया, फिर बढ़िया सुंदर भोजन परोसा गया और आपको बिल्कुल अच्छा लगा और बड़ी रुचि से आपने उसको खाया और खाने के बाद आपको मीठा भी कुछ दिया गया, मिठाई भी कुछ दी गई वह भी आपको बहुत सुंदर लगी और सचमुच में आप तृप्त हो गए, संतुष्ट हो गए। तो जब आप उस घर से, वहां से चले और बात तो यही है कि अगली सुबह खाना तो सब निकल जाएगा और (नहीं निकलेगा तो फिर गड़बड़ होगी) फिर खाना निकल जाएगा, परन्तु याद नहीं निकलेगी, उस दिन की याद नहीं निकलेगी।
अब मैं कई बार उदाहरण देता हूं यह — एक बार मेरे को बुलाया गया था भोजन पर। तो जब मेरे को बताया गया कि कहां जाना है भोजन पर, तो मैंने उस दोपहर में भी बहुत कम खाया इसलिए कि मेरे को ऐसा लगा कि जहां जाना है वहां बढ़िया-बढ़िया पकवान मिलेंगे, खूब डटकर खायेंगें। तो पहुंचे वहां और उस दिन खाना खाया, ज्यादा नहीं थोड़ा खाया (रात को जहां भोजन पर बुलाया था वहां) अब वह भोजन जो खाया उस दिन थोड़ा-बहुत वह तो कब का चला गया और जिसके यहां खाया था वह भी चला गया। अब पता नहीं उनलोगों में से कौन जिन्दा बाकी बचा है, परंतु उस दिन की याद आज भी ताजी है मेरे दिमाग में, क्योंकि उस दिन हुआ क्या कि मैं जैसे ही बैठा खाने के लिए तो सचमुच में बहुत सुंदर थाली सजी हुई थी, तरह-तरह के पकवान थे और जैसे ही खाया सब मीठा। दाल भी मीठी, सब्जी भी मीठी, दूसरी सब्जी भी मीठी, तीसरी सब्जी भी मीठी — ऐसा तो मैंने कभी अपनी जिंदगी में खाया ही नहीं था। मैं बहुत छोटा था उस समय, तो यह हुआ।
इस संसार के अंदर जो हम आए हैं, जो कुछ भी हमने किया है, बाहर हमने अपना मकान बनाया, बिज़नेस बनाया, यह खरीदा, वह खरीदा, यह किया, वह किया, नाम कमाया, यह किया, बच्चे पैदा किए, जो कुछ भी किया वह तो सब साथ जाएंगे नहीं, साथ तो किसी ने जाना नहीं है, घर तो साथ जाएगा नहीं, कार तो साथ जाएगी नहीं, यह सारी चीजें तो साथ जाएंगी नहीं। क्या जाएगा! शरीर तो जाएगा नहीं, यह आंखें, यह चेहरा, यह दांत, सबकुछ, जिस चीज को देख करके आप यह कहते हैं "यह मेरी फोटो है, मेरी-मेरी फोटो है, यह मैं हूं, यह मेरा है" वह तो सब यहीं रह जाएगा। तो जायेगा क्या ? जैसे उस रात की बात वैसे ही अगर इस जीवन के अंदर आनंद लिया तो वह आनंद साथ जायेगा। और कुछ नहीं और अगर आनंद नहीं मिला तो वह भी साथ जाएगा। जो दुःख है वह भी साथ जाएगा। इसलिए मैं लोगों से कहता हूँ कि "दुखी मत हो।"
जो कुछ भी समस्या है, देखो समस्या जब आती है सामने तो बहुत बड़ी लगती है। तुम्हारा काम है उसको उस तरीके से देखना जो उसका सच्चा आकार है। तो जब थोड़ा दूर से देखते हैं उसी समस्या को तो वह इतनी बड़ी नहीं लगती है। चाहे जब नजदीक रहती है तो बहुत बड़ी लगती है, क्योंकि एकदम, सारा कुछ घेर लेती है। परन्तु थोड़ा-सा दूर से देखो तो छोटी लगेगी, और दूर से देखो तो फिर और छोटी लगेगी, और दूर से देखो तो और छोटी लगेगी। यही बात होती है।
समस्या का तो हल निकाला जा सकता है, पर एक सबसे बड़ी समस्या है आपके सामने, जो आप इन समस्याओं में उलझे हुए इस समय को जो बीता रहे हैं और खराब कर रहे हैं, बेकार कर रहे हैं वह सबसे बड़ी समस्या है। और उस समस्या का हल है आपके अंदर, आपके हृदय में। अपने आप को जानो, इस जीवन को सचेत हो करके जियो और अपने हृदय के अंदर वह आभार रखो, क्योंकि वही साथ जाएगा, वह आनंद साथ जायेगा। तो अगर यह सबकुछ हम कर सकें तो हमारे लिए सबकुछ है। हम आनंद लें अपनी जिंदगी में आखिरी स्वांस तक, आखिरी स्वांस तक। जो कुछ भी हमसे बन पड़े, वह हम करें उस आनंद के लिए। सब तो नहीं कर पायेंगें, सबकुछ तो नहीं कर पायेंगें, पर जो कुछ भी हम कर पाएं उससे आनंद लें। और सचमुच में उस बनानेवाले का हम यह अदा करें कि "सचमुच में धन्यवाद तेरा कि तैनें मुझे यह जिंदगी दी!"
कई लोग हैं जो इस जीवन को खत्म करने के लिए लगे हुए हैं, खुदकुशी करना चाहते हैं क्यों, क्यों ? जिस खुदकुशी को तुम आज करना चाहते हो, थोड़ा धीरज रखो यह अपने आप हो जायेगी, क्योंकि एक दिन तो सभी को जाना है यहां से। परन्तु बात है कि जबतक नहीं जायें तब तक हम किसी ना किसी तरीके से, किसी ना किसी विधि से आनंद लेने की कोशिश करें। यह नहीं है कि "उसने यह कह दिया अब मेरे लिए लोग क्या सोचेंगे!"
अभी कुछ साल पहले जब मैं एक जेल में था (मैंने कुछ गलत नहीं किया था, मैं कैदियों को देखने के लिए, उनसे बात करने के लिए गया था) तो हमने सुनाया उन लोगों को और सुनाने के बाद जब प्रश्न-उत्तरों का समय आया तो एक आदमी खड़ा हुआ उसने प्रश्न पूछा कि "जी! आप मेरे को यह बताइए कि कुछ ही दिनों में मैं यहां जेल से जाने वाला हूं, मेरा समय समाप्त हो गया है यहां और मैं अपने गांव जाऊंगा और मेरे को यह चिंता है कि जब मैं गांव जाऊंगा तो लोग मेरी तरफ देखेंगे और क्या सोचेंगे, मेरे बारे में क्या सोचेंगे ?"
तो सारे कैदी मेरी तरफ देखने लगे कि "कुछ कहिए इसको आप!"
मैंने कहा कि "भाई! तू सच सुनना चाहता है ?"
कहा, "हां!"
सारे कैदी मेरी तरफ देख रहे थे कि "क्या बोलेंगे यह!"
मैंने कहा, “सच यह है कि उनको कोई परवाह नहीं है तू कहां से आया है, तेरे साथ क्या हुआ है ? क्योंकि उनकी अपनी समस्याएं हैं उनके पीछे वो लगे हुए हैं। उनके पास टाइम नहीं है कि वह तेरे बारे में सोचें।"
तो सारे के सारे कैदी हंसने लगे। क्योंकि बात तो सही है। लोगों के पास टाइम नहीं है। बोल देते हैं, परन्तु सोचते नहीं हैं। तो भाई! सबसे बड़ी बात है कि तुम अगर अपनी आंखों में गिर गए तो सबकी आंखों में गिर गए और तुम अगर अपनी आंखों में नहीं गिरे तो सबकुछ ठीक है। लोग यही देखेंगे, लोग यही देखेंगे। शेर जब दहाड़ता है तो वह — शेर मार भी तो सकता है, पर दहाड़ता है। क्यों दहाड़ता है ? अगर उसके दहाड़ने से तुम भाग जाओ तो फिर उसको तुमको मारना नहीं पड़ेगा। शेर से तुम यह भी तो सीख सकते हो — "दहाड़ो" उनलोगों को लगेगा सब ठीक है।
अपने जीवन के अंदर इस जीवन को सफल बनाओ, आनंद लो और मौज से रहो!
सभी लोगों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार! आनंद-मंगल रहिये!
प्रेम रावत जी:
सभी श्रोताओं को मेरा नमस्कार!
काफी सारी वीडियो बन चुकी हैं और धीरे-धीरे प्रश्न भी कम होते जा रहे हैं। लोग अपने भाव ज्यादा प्रकट कर रहे हैं, प्रश्न कम हो रहे हैं। जब चालू किया था तो पहले भाव लोग जो प्रकट कर रहे थे वह कम थे, प्रश्न ज्यादा थे। अब धीरे-धीरे प्रश्न कम हो रहे हैं और जो भाव हैं वह लोग और भी प्रकट कर रहे हैं। यह तो अच्छी बात है कि कोई चीज समझ में आ रही है कि जो भी दिक्कतें आती हैं, जो भी दिक्कतें होती हैं यह नहीं है कि उनको वहां बैठ करके और गुस्सा आए उन पर कि “यह कैसे होगा!” जैसे कहा है कि —
सो परत्र दुख पावहि सिर धुनि धुनि पछिताइ।
कालहि कर्महि ईस्वरहि मिथ्या दोष लगाइ।।
सभी को दोष लगाते हैं "इसने ऐसे नहीं किया, इसने ऐसे नहीं किया।" परन्तु यह सब करने की जरूरत नहीं है। यह सब चीजें जैसे बोझ की बात है, आपके गर्दन पर, आपके कंधों पर बोझ है इसको उठाकर अलग रखिये। इससे आपका कुछ लेना-देना नहीं है। यह जो समस्याएं हैं, यह जो परेशानियां हैं पहले किसी और को सताती थीं अब आपको सता रही हैं और आपके बाद किसी और को पकड़ेगीं। यह तो हमेशा होता रहता है।
तो चलिए एक अलग किस्म की बात करते हैं। तो क्या बात है — एक अविनाशी है जो आइंस्टाइन ने जिस चीज को समझाया है E = mc2 — “जो था, जो है, जो हमेशा रहेगा; जो अनंत है, जो यहां भी है; वहां भी है; ऊपर भी है; नीचे भी है; कोई ऐसी जगह नहीं है जहां वह नहीं है और कोई ऐसी चीज नहीं है जिसके अंदर वह विराजमान नहीं है, हर एक चीज में है।"
एक तो हुआ वह अविनाशी, जिसको नापा नहीं जा सकता, जिसको तौला नहीं जा सकता, जिसकी फोटो नहीं खींची जा सकती, जिसका चित्र नहीं बनाया जा सकता और यहां तक उस चीज को आप अपने ख्यालों से, अपने विचारों से भी नहीं पकड़ सकते हैं। मतलब, कोई अगर आपसे कहे कि वह क्या चीज है तो आप बता नहीं सकते कि वह क्या चीज है। क्योंकि यह जो ख्याल हैं, यह जो हमारे विचार हैं इनकी भी एक सीमा है। उस सीमा के बाद यह नहीं जा सकते। छोटा-सा उदाहरण जो आपने पहले सुना हुआ है कि आम का क्या स्वाद होता है ? तो स्वाद जो है उसका अनुभव किया जा सकता है, उसका वर्णन नहीं। उसका वर्णन करना मुश्किल है। इलायची — आप सब लोगों ने खाई है इलायची ? इलायची की सुगंध कैसी होती है उसका वर्णन कैसे करेंगे ? आपको मालूम है जब मैंने कहा, “इलायची” तो हो सकता है कि आपको इलाइची का अनुभव भी हुआ हो। आपको अच्छी तरीके से मालूम है कि इलाइची का स्वाद क्या है! और अगर कम से कम स्वाद नहीं मालूम तो उसकी जो खुशबू है वह कैसी है आपको मालूम है अच्छी तरीके से, पर उसका वर्णन नहीं कर सकते हैं।
ठीक इसी प्रकार एक अनंत है, अविनाशी है — "था, है, रहेगा उसी से सबकुछ आया है, उसी में सब कुछ समाप्त होता है।" एक तो है “वह” जो सब जगह है, जो अनंत है। उसका उल्टा क्या है ? उसकी अगर परछाई को देखें तो वह क्या है ? वह है नाशवान — "जो नहीं था, अब है और आगे नहीं रहेगा।" एक चीज जो सब जगह है, एक चीज जो सब जगह नहीं है। एक चीज वह जिसका कभी अंत नहीं होगा, एक चीज वह जिसका अंत होगा। इन दोनों की मैं बात क्यों कर रहा हूँ ? वह इसलिए कर रहा हूं कि यह जो समय है, जिस समय में आप जीवित हैं यह एक ऐसा समय है जब आप सुनते हैं कि यह जीवन है, यह आपकी जो जिंदगी है, यह सबकुछ — जब यह चीजें सुनते हैं तो पता नहीं आपके मन में क्या-क्या बातें आती होंगी — "यह मेरा जीवन है! आप अपना चेहरा देखते होंगे, अपना नाम सुनते होंगे या कुछ ऐसे ही विचार करते होंगे। जो आपकी नौकरी है, जो आपको परिवार है, जो आपका मकान है, जो आपकी जिम्मेदारियां हैं, जो आपकी समस्याएं हैं, जो कुछ भी आपकी जिंदगी के अंदर होता है उसके बारे में हो सकता है आप सोचें।"
परन्तु यह जो संयोग है यह कुछ ऐसा है कि इस संयोग में वह जो अनंत है, वह जो अविनाशी है और यह जो नाशवान है यह दोनों मिल गए हैं। मिल तो जरूर गए हैं, परंतु नाशवान अभी भी नाशवान है और अविनाशी अभी भी अविनाशी है। क्या हुआ है — यह अपने में ही एक चमत्कार है कि अविनाशी जो नापा नहीं जा सकता, जो अनंत है वह एक ऐसी चीज के अंदर आकर बैठ गया है वह एक ऐसी चीज में समा गया है, जो बहुत छोटी है। अनंत नहीं है और जिसका नाश होगा इसे कहते हैं "मनुष्य" — यह हैं आप, यह हूँ मैं। यह जो आप बाहर देख रहे हैं इसका नाश होगा, यह नाशवान है। इसके अंदर क्या बैठा है, कौन बैठा है ? इसके अंदर बैठा है "अविनाशी" — जिसका कभी नाश नहीं होगा। जबतक यह है तब तक एक मौका है और मौका क्या है कि यह जो अविनाशी है इसको यह नाशवान, इसका अनुभव कर सकता है, इसको पकड़ नहीं सकता है, इसको खींच नहीं सकता है, इसको पकड़कर काबू में नहीं रख सकता है। क्योंकि इस शरीर का ही नाश होगा। जब नाश होगा तो फिर दोनों की दोनों चीजें अलग हो जाएंगी।
जो अविनाशी है, वह कहां जायेगा ? वह तो — वही है जो जा नहीं सकता कहीं। वह यहां भी है, वहां भी है। और यह जो नाशवान है, यह नाशवान शरीर और नाशवान चीजों में, जिनसे बनकर यह आया है उनमें जाकर समा जाएगा और उनसे एक हो जाएगा, फिर नहीं रहेगा यह। यह जोड़ जो बना है फिर वह जोड़ नहीं रहेगा, वह अलग हो जाएगा। इसकी जो यह संभावना है कि “यह नाशवान शरीर, इसमें रहते हुए आप उस अविनाशी का अनुभव कर सकते हैं।” यह बात है, यह है आपकी असली जिंदगी। यह है आपकी (existence) इग्ज़िस्टन्स। यह है आपकी लाइफ। यह है आपकी संभावना। यह है आपकी शक्ति और अगर यह आपने कर लिया तो आपका सक्सेस यही है, आपकी सफलता यही है और अगर यह नहीं किया और इस सारे संसार की बातों में ही लगे रहे तो वह जो जोड़ हुआ है, जो यह मिलन हुआ है यह अलग तो होगा एक दिन और उसके बाद क्या होगा किसी को नहीं मालूम, कोई गारंटी नहीं देता है। गारंटी कैसे देगा — कोई उसके साथ थोड़े ही आएगा, तुम्हारे साथ थोड़े ही जाएगा कोई, कौन जाएगा — धर्मपत्नी, पति, बेटे, रिश्तेदार, तुमको चाहने वाले! अगर वह चाहें भी तब भी तुम्हारे साथ नहीं जा सकते।
एक पंडित जी वह — अभी ऑस्ट्रेलिया में प्रोग्राम हुआ था (मेरे ख्याल से एक-दो साल पहले) तो वहां वह आए। तो उनको मैं जानता हूं अच्छी तरीके से तो मैंने उनसे कहा कि "देवी-देवता आपको दिखाई दिए आप तो बादलों के ऊपर से चलकर आए ?" क्योंकि यही लोगों को, जब लोग नहीं उड़ते थे तब लोगों को यही बताया जाता था कि "बादलों के ऊपर देवी-देवता रहते हैं।" अब कितने ही लाखों-लाखों लोग उड़ते हैं और देवी-देवता किसी को नहीं दिखाई देते। हम बादलों के ऊपर खूब उड़े हुए हैं हमने कभी देवी-देवता को वहां नहीं देखा। यह सारी बातें हैं इनमें हम विश्वास करते हैं। अब मैं नहीं कह रहा हूं कि विश्वास करना चाहिए या नहीं करना चाहिए, यह तो आपके ऊपर निर्भर है। कोई कहता है "यह ऐसा होता है तो ऐसा होता है फिर ऐसा होता है तो फिर ऐसा होता है!" यह सारी बातें हैं लोग इन बातों पर विश्वास करते हैं कि "मैं जाऊंगा फिर ऊपर मेरी आत्मा जाएगी और फिर वहां रह करके या तो स्वर्ग जाएगी या नरक जाएगी फिर मेरे को यहां वापिस आना पड़ेगा, मैं फिर यहां वापिस आ जाऊंगा और सबकुछ ठीक हो जाएगा।"
परन्तु जब याद ही नहीं है कि कौन थे, क्या था — देखिए जब लोग मज़ाक करते हैं, कई बार मज़ाक करते हैं, तो क्या करते हैं, वह मास्क पहन लेते हैं, (नकाब एक तरह का) मास्क पहन लेते हैं तो मास्क में आदमी भयानक लग रहा है, जैसे भूत लग रहा है दांत हैं लंबे-लंबे, बड़ी-बड़ी आंखें हैं यह सबकुछ, दाढ़ी है। व्यक्ति तो वही है और हो सकता है कि वह आपका बेटा हो। यह मान लीजिये कि वह आपका बेटा है और बेटा आपको डराना चाहता है। तो वह छिप जाए आपके कमरे में। आप आएं कमरे में और जैसे ही आप अंदर आयें अपने कमरे में और वह वा.. वा.. वा..वा. करके आपको डराए। तो आप डर जाएंगे, क्यों डर गए आप ? बेटा तो आपका ही है। मास्क पहना हुआ था उसने, पर बेटा तो आप ही का था और बेटा वह अब भी आपका है। तो आप डरे क्यों अपने बेटे से ? क्योंकि एकमात्र मास्क देख लेने से, उसका चेहरा न देखने से आपको लगा कि "यह पता नहीं कौन है?" तो जब आपका चेहरा बदल जाएगा, जब आप किसी नए शरीर में आएंगे, आपका चेहरा बदल जाएगा, तो जो कुछ भी आपको आज याद है अपने बारे में, वह याद थोड़े ही रहेगा। फिर वही बात हो जाएगी "यह किसका चेहरा है, यह कौन है ?"
फिर अगर आपकी बीवी आपके पास आये और आप तो हैं जवान, इतने बड़े और बीवी आपकी सफेद बाल, कहे — "तू ही मेरा पति है।" तो फिर गड़बड़ नहीं होगी, बिलकुल गड़बड़ होगी। मतलब, यह सारी बातें जो लोग समझाते रहते हैं, लोगों को कहते हैं कि "इस पर विश्वास करो, इसमें विश्वास करो" — खुद ही तुक नहीं है उनके पास। पर बात सिर्फ यह है कि क्या आपको यह बात समझ में आई कि "जो यह आपको शरीर मिला है, जो यह समय है आपके पास इस नाशवान शरीर से आप उस अविनाशी का अनुभव कर सकते हैं।" यह संभावना है, यही संभावना, इसी संभावना को आप शांति कह सकते हैं। क्योंकि जब उसका अनुभव होगा, उस अविनाशी का अनुभव होगा तो अपने आप शांति आएगी। जो आपके हृदय के अंदर स्थित शांति है वह बाहर उभर कर आएगी। बात समझ में आएगी।
जो हम देखते हैं बाहर कि "यह ऐसा हो रहा है, यह गलत है या यह सही है, यह गलत है। जो चीजें हमें दुःख देती हैं अब जरूरी नहीं है कि वह दुःख हमें दे। दुःख है — यह तो वही वाली बात है कि बारिश तो होगी पर अगर छाता है तो तुमको भीगने की जरूरत नहीं है। बात तो समझने की है। अगर यहां समझ में आ गई कि “यह संभावना है यह भी पूरी करनी है।” क्योंकि लगे रहते हैं लोग क्योंकि आपको पट्टी तो पहले से ही चढ़ाई हुई है — "यह करो, यह करो, यह करो तो यह होगा, यह होगा, यह होगा, यह होगा, यह होगा, यह होगा!"
किसी को कहा हुआ है अब — अभी एक प्रश्न में किसी ने कहा कि "हमको कहा है कि हम बहुत ही खराब हैं, हम यह हैं, हम वह हैं और हमारा कुछ नहीं होगा, हम देखने में भी भद्दे हैं और कुछ नहीं होगा!"
भगवान ने आपको दो कान दिए हैं एक कान से सुनिए, एक कान से बाहर निकाल दीजिए। देखिए जब बंदर आपकी तरफ देखता है तो क्या सचमुच में वह सोचता होगा कि आप बहुत खूबसूरत हैं ? नहीं, वह तो यह सोचता होगा कि "यह ऐसा बंदर, भद्दा देखने में कौन है!" जब कौआ आपकी तरफ देखता है तो यह थोड़े ही सोचता है कि "आप कितने खूबसूरत हो" उसको तो कौआ ही खूबसूरत लगता है। कौए को कौआ और बंदर को बंदर, बिल्ली को बिल्ली, कुत्ते को कुत्ता। और अगर जो आपसे यह कह रहा है कि आप देखने में भद्दे हो तो वह मनुष्य नहीं होगा, क्योंकि कुछ भी हो आप बनाया तो उसी ने है। बनाया तो उसी प्रकृति ने है जिस प्रकृति ने किसी और को बनाया है। सुंदरता चेहरे पर नहीं, सुंदरता हृदय में होती है, सुंदरता आंखों में होती है, सुंदरता इस मुस्कान में होती है। तो अगर यह बात नहीं समझा कोई तो यही चक्करों में पड़ा रहेगा। इसके लिए कहा है कि —
चलती चक्की देख कर, दिया कबीरा रोए।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए।।
कोई नहीं बचा। सभी इसके अंदर पीसते रहते हैं, पीसते रहते हैं, पीसते रहते हैं, पीसते रहते हैं। और अगर पीसने से बचना है तो —
चक्की चक्की सब कहे किल्ली कहे न कोय।
जो किल्ली के पास में बाल न बाँका होय।।
वह किल्ली क्या है! सारी चीजें जिसके आस-पास चल रही हैं। वही अविनाशी जो आपके अंदर विराजमान है, उससे नाता जोड़िये। उससे नाता जुड़ गया तो फिर इन चीजों में आपको जो दुःख मिलता है, उस दुःख की कोई जरूरत नहीं रहेगी। इसका मतलब यह नहीं कि बारिश नहीं होगी पर जब भी बारिश होगी तो अपना छाता खोलिये, ज्ञान रुपी छाता खोलिये और भीगने से बच जाइये।
सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
प्रेम रावत जी:
सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
आशा है आप सब कुशल-मंगल होंगे और काफी संदेश आ चुके हैं मेरी तरफ से और यह लॉकडाउन अभी भी चल ही रहा है। और जब तक यह चलता रहेगा किसी न किसी रूप में आप तक यह संदेश पहुंचता रहेगा कि — "जिस चीज की आपको तलाश है वह आपके अंदर है। जो चीज आप चाहते हैं अपने हृदय से वह आपके अंदर है।" हां इतनी बात मैं जरूर कहूंगा कि कुछ प्रश्न मेरे सामने आए ज्यादा नहीं बहुत थोड़े-से तो उनमें लोग बड़े व्याकुल हैं, उनको डर लग रहा है, उनको कुछ — अपने परिवार को लेकर उनके पास समस्या है। मतलब, उनके पास कोई ना कोई, कोई ना कोई, कोई ना कोई समस्या है।
देखिए बात समस्या की नहीं है, बात है आपकी। समस्या तो समस्या हैं, समस्या तो कुछ ऐसी चीजें हैं जो पहले किसी और को सता रही थीं अब वह आपके पीछे लगी हुई हैं, आपके बाद किसी और को पकड़ेंगी। उनका काम है जैसे, मक्खी होती है कभी इधर परेशान कर रही है, फिर कहीं जो सामने वाला है उसके पास चली जाती है उसको परेशान करती है, फिर जब वह परेशान हो जाता है तो फिर वह ऐसे-ऐसे करता है तो फिर वह आपके पास वापिस आ जाती है। परेशानियां भी समस्या जैसी हैं।
पर आपके पास क्या यंत्र हैं इन समस्याओं को हल करने का ? हल का मतलब यह नहीं है कि आप इन समस्याओं का समाधान कर दें। हल का मतलब हुआ कि इन समस्याओं को आप अपने से अलग रखें, थोड़ा-सा दूर कर दें ताकि यह आपको परेशान ना करें। क्या चीजें हैं आपके पास ? आपके अंदर शांति है, आपके अंदर स्पष्टता है, आपके अंदर धीरज है। यह आपकी शक्तियां हैं और जबतक आप इन शक्तियों को इस्तेमाल नहीं करेंगे — डरना तो आपको आता है यह बात तो बिल्कुल स्पष्ट है। कुछ इधर हुआ, कुछ उधर हुआ — डर! "अरे क्या हुआ ?" डरने में तो आप माहिर हैं। जो चीज हम सबसे ज्यादा करते हैं उसमें हम माहिर हो जाते हैं।
आपको अगर याद है वह, एक मैं कहानी सुनाता हूं। एक व्यक्ति था और वह धनुष चलाने में बड़ा ही माहिर था। वह धनुष चलाता था और ऐसी-ऐसी जगह उसके तीर का निशाना लगता था जो एकदम सही निशाना हो। इतना माहिर था वह कि एक तीर को चला करके दूसरे तीर से उस पहले वाले तीर को फाड़ देता था, इतना माहिर था। तो वह जगह-जगह गांव में जाता था और अपने इस धनुष चलाने के चीज का वह प्रदर्शन करता था। जब गांव में जाता था तो लोग आते थे और ऐसी चीज उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थी कि — "कोई इतना माहिर जो एक तीर चलाए फिर उस पहले वाले तीर को दूसरे वाले तीर से फाड़ दे।" तो ऐसे करके लोग ताली बजाते थे, उसको पैसा देते थे और उसका गुजारा चलता था।
एक दिन वह बड़े शहर में गया और वहां बहुत सारे लोग इकट्ठा हो रखे थे और वह अपना प्रदर्शन वहां करने लगा। तो लोग बड़े खुश हुए, तालियाँ बजीं, खूब तालियाँ बजीं। फिर चलाये वह तीर और फिर पहले वाले तीर को फाड़ दे और ऐसा देखने में लोगों को बड़ा अचम्भा लगे। फिर लोग और ताली बजाएं। और जब तालियों की आवाज थोड़ी कम हो जाए तो पीछे से एक आवाज आती थी कि "यह तो अभ्यास का खेल है।" पहली बार जब उसको यह आवाज सुनाई दी कि "यह तो अभ्यास का खेल है" तो उसको अच्छा नहीं लगा। पर उसने सोचा कोई बात नहीं। फिर उसने तीर चलाया लोगों ने ताली बजाई और जैसे ही ताली की आवाज कम हुई तो फिर वही आवाज आई सामने, उसको सुनाई दी कि "यह तो सिर्फ अभ्यास का खेल है।" उसको अच्छा नहीं लगा। कौन है यह ? "मैं इतना बढ़िया तीर चलाने वाला हूं इतने सारे लोग देखने के लिए आए हैं मेरी कारीगरी को और यह बैठकर सिर्फ कह रहा है कि अभ्यास का खेल है, अभ्यास का खेल है।" फिर उसने तीर चलाया फिर लोगों ने ताली बजाई और जैसी तालियों की आवाज कम हुई फिर वही बात — "अभ्यास का खेल है।"
तो जब उसका प्रदर्शन पूरा हो गया, जब उसका प्रदर्शन खत्म हो गया, तो वह उस आदमी को खोजने के लिए गया पीछे। "कौन है यह आदमी, कौन है यह शैतान, कौन है यह बदमाश आदमी जो मेरी इतनी बड़ी कला को छोटा बना रहा है ?" तो वहां गया वह तो देखता है कि एक आदमी वहां बैठा हुआ है, कंधे पर उसके बांस है बहुत लंबा, बैठा हुआ है वह नीचे और बांस में आगे एक मटका बंधा हुआ है जमीन पर रखा हुआ है और पीछे भी एक मटका बंधा हुआ है वह भी रखा हुआ है और काफी सारी खाली बोतलें उसके पास हैं। तो वह तीर चलाने वाला उसके पास जाता है और कहता है कि "तू ही था जो यह कह रहा था कि यह सिर्फ अभ्यास का खेल है, अभ्यास का खेल है ?”
तो उस आदमी ने कहा, “हां मैं ही कह रहा था।”
कहा — तेरा दिमाग खराब है, तू जानता नहीं है कि यह सब लोग मेरे को देखने के लिए आये! मैं इतना बड़ा कलाकार हूं। मैं ऐसा तीर चलाता हूं — यहां ऐसा कोई नहीं है जो मेरे जैसा तीर चला सके। तू समझता है कि "तू मेरे जैसा तीर चला सकता है!"
उसने कहा — "भाई! मैं जो कह रहा हूँ, वह तो सत्य है, यह तो अभ्यास का खेल है !"
जो तीर चलने वाला था वह और गरम हुआ — क्या मतलब है तेरा, "अभ्यास का खेल है!" मैं तो इतना बड़ा कलाकार हूँ, तू कैसे कह सकता है कि "यह सिर्फ अभ्यास का खेल है।"
तो तेल वाले ने कहा — "देख! मैं दिखाता हूं तेरे को। तो उसने कहा कि मैं तेल बेचता हूं और इन दोनों मटके में तेल है। और यह है खाली बोतलें, तो उसने एक खाली बोतल रखी और एक बड़े से मटके को उठाया, अपने कंधे पर रखा और उस मटके से तेल उस बोतल में डाला और एक बूंद भी इधर से उधर ना हो और सारी बोतल को तेल से भर दिया।
तब वह कहता है तीर चलाने वाले से कि "तू अब यह कर!"
तो तीर चलाने वाला कहता है — "मैं तो नहीं कर पाऊंगा।"
तो उसने कहा, यही बात। "तेरे जैसा मैं तीर नहीं चला सकता हूँ और जैसा मैं करता हूँ, इस मटके से सारी बोतल भर देता हूँ तेल से, तू नहीं कर सकता है। क्योंकि तू तीर चलाने का अभ्यास करता है और मैं इस मटके में रखे तेल से इस बोतल को भरने का अभ्यास हर रोज करता हूं इसलिए मैं इसमें माहिर हूं और तू उसमें माहिर है।"
तब जो तीर चलाने वाला था उसकी आँखें खुली, उसको समझ आया कि "हाँ बात तो सच कह रहा है !"
क्या तुक हुआ इस कहानी का ? इस कहानी का तुक यह हुआ कि जो भी हम करते हैं उसमें हम माहिर बन जाएंगे तो अगर डरना — डरना अगर हमारी प्रकृति बन गया है कोई भी चीज आए सामने और हम डर जाएं उससे तो फिर क्या होगा ? डरने में और माहिर हो जाएंगे, और माहिर हो जाएंगे, और माहिर हो जाएंगे और फिर क्या होगा थोड़ी-सी भी बात इधर से उधर हो — "डर!" डरने से क्या होता है, डर में बुराई क्या है ?
देखिये! आप में सुनने की क्षमता है पर जब डर लगता है तो कान बंद। आप में देखने की क्षमता है पर जब डर लगता है आंख बंद। आप में सोचने की क्षमता है, पर जब डर लगता है तो बुद्धि भी काम नहीं करती है। तो जब इन चीजों ने काम करना छोड़ दिया है और डर तो लोगों को यहां इतना भी लगता है कई बार कि वह चिल्ला भी नहीं सकते हैं। मतलब, इतना डर लगता है, इतना डर लगता है कि चिल्ला भी नहीं सकते, मुँह भी बंद, आँख भी बंद, कान भी बंद। यहां तक कि लोगों को इतना डर लगता है, इतना डर लगता है कई बार कि वह बेहोश हो जाते हैं, होश भी नहीं है। तो जब यह सारी चीजें बंद हो गई तो आपके पास बचा क्या ? कुछ नहीं, कुछ नहीं बचा। इसलिए डरना जरूरी नहीं है।
कोई भी समस्या हो सोच के, विचार करके आगे आप बढ़ सकते हैं। कई जगह हैं मनुष्य के पास जब समस्या आती है तो पहाड़ की तरह दिखाई देती है, परंतु यह मेरे को नहीं मालूम कि क्यों मनुष्य यह समझता है कि उसको पहाड़ के ऊपर से ही जाना है ? जब समस्या का पहाड़ उसके सामने होता है तो पता नहीं क्यों उसके दिमाग में यह बात आती है कि उसको ऊपर से ही जाना है। मैं लोगों से कहता हूं ऊपर जाने की क्या बात है जो तुम्हारी मंजिल है, वह उस समस्या रूपी पहाड़ के दूसरी तरफ है तो तुमको जाना कहां है ? पहाड़ के दूसरी तरफ तो ऊपर से जाने की कोई जरूरत नहीं है, तुम बगल से जा सकते हो बड़ी आसानी से। जहां पहाड़ होगा, दो पहाड़ जहां मिलेंगे, वहां एक नदी जैसी चीज होगी, चाहे वह सूखी भी हो उस पर बड़े आराम से चलकर के तुम दूसरी तरफ जा सकते हो। पर इसके लिए डरना नहीं, सोचना, विचारना बहुत जरूरी है। और जब तक यह नहीं होगा — कोई भी समस्या है, मैं नहीं कह रहा कि बड़ी समस्या है, छोटी समस्या है, नहीं! कोई भी समस्या है। समस्या एक समय नहीं थी, समस्या आयी तो समस्या जाएगी भी। अगर तुमको उसमें परिश्रम करने की जरूरत है तो परिश्रम इस प्रकार करो ताकि उस समस्या का अच्छी तरीके से समाधान हो सके। सोचने की बात है।
जहां तक परिवार की बात है, जब मां-बाप में वह चीज नहीं रह जाती है "एकपना" — बाप आता है सारे दिन नौकरी करके घर आता है। उसका दिमाग वैसे ही खराब है इसलिए क्योंकि सारे देना माथापच्ची, माथापच्ची करके आता है। जब घर आता है तो उसको यह नहीं मालूम कि उसकी बीवी के साथ क्या गुजरी है — घर को साफ रखना, घर में खाना बनाना, वह एक टाइम नहीं, दो टाइम, तीन टाइम खाना बनाना, चाय बनाना, यह तैयार करना, वह तैयार करना, यह साफ करना, वह साफ करना, यह आसान काम नहीं है तो बीवी भी उसी हाल में है, पति भी उसी हाल में है। और पत्नी क्या ठानी हुई है ? पत्नी यह ठानी हुई है कि "आने दो, आने दो, घर आने दो मैं सुनाऊंगी उनको — मेरे को यह चाहिए, मेरे को यह चाहिए, मेरे को यह चाहिए, मेरे को यह चाहिए।" और पति है वह बेचारा घर आया कि "क्या करूँ?"
नहीं! दोनों को कम से कम चाहे आधा घंटा हो, चाहे एक घंटा हो आराम से बैठ करके, आराम से बैठ करके, चैन की सांस, समस्याएं नहीं "यह करना है, वह करना है, यह है, वह है।" ना! आराम से बैठकर — "कैसे हैं आप ? आप कैसे हैं ?" बढ़िया समय हो एक कप चाय मिल जाए। चाय पी करके, आराम करके, जो गर्दन पर वजन लादा हुआ है उसको नीचे रख दो। उसकी जरूरत नहीं है। तुम अब घर आ गए हो, उसकी जरूरत नहीं है। उसके बाद अगर कोई समस्या है तो उसका टाइम निकाल करके अच्छी तरीके से उस पर बात की जा सकती है। लोग खाना खाने के लिए साथ में बैठते हैं। मैं सोच रहा था एक "प” — पॉलिटिक्स, पॉलिटिक्स के बारे में टेबल पर बैठकर बात नहीं करनी चाहिए। दूसरा "प" — प्रॉब्लम्स, समस्याएं उनके बारे में बात नहीं करनी चाहिए। क्या बात करनी चाहिए ? या तो चुप या फिर किसके साथ अच्छा क्या हो रहा है ? सिर्फ "अच्छा!" किसी के साथ अच्छा हुआ वह बोले।
देखिये! जबतक लोगों के सामने यह आदत नहीं डाली जाएगी कि वह मीठा बोलें और कोई सुनने वाला है — जब कोई भी आपके परिवार में मीठा बोले तो कोई सुनने वाला है ? जबतक यह आदत नहीं होगी, वह अभ्यास की बात जो मैं कह रहा था तब तक काम कैसे चलेगा ? जो भी माहौल हम चाहते हैं वह तभी संभव होगा जब हम कोई परिश्रम करें उस माहौल को सामने लाने का, उसको साक्षात्कार करने का।
आपके जीवन में सबसे बड़ी बात है यह मौका है। आपका जीवन है अंधेरापन नहीं उजाला। आपको क्या चाहिए— उजाला! आपको क्या चाहिए — आनंद और वह सबकुछ आपके पास है। जैसा मैंने पहले कहा, सबकुछ, सबकुछ जो आपको चाहिए इन समस्याओं से लड़ने के लिए वह आपके पास है। बस बात यह है कि आपको उसका इस्तेमाल करना है।
कुछ एक दिन पहले, दो दिन पहले किसी ने पूछा कि "क्या मैं पीस एजुकेशन प्रोग्राम उसका हिंदी में भी वर्ज़न लाऊंगा ?"
तो हाँ! उसका हिंदी में भी वर्ज़न आएगा। और मैं यही चाहता हूं कि जो लोग पीस एजुकेशन प्रोग्राम को करना चाहते हैं, जो एजुकेशन प्रोग्राम है उसको कंप्लीट करना चाहते हैं तो वह लोग कर सकते हैं। अब उसके लिए रजिस्ट्रेशन नहीं होगा, वह ओपन (open) है। कोई भी, कोई भी कर सकता है, जो भी चाहे कर सकता है। क्या है उसमें ?
जो मैं सुनाता हूं लोगों को वैसे ही सुना रहा हूं, बस उसमें सिर्फ एक बात है और वह बात यह है कि "उस पर ध्यान देना है क्या कहा जा रहा है!" बस! तो आधे घंटे के लिए वह वीडियो चलती है उसके बाद लोगों को यह लिखना है कि उन्होंने उस वीडियो को देख करके क्या प्राप्त किया ? क्या हासिल किया ? क्या समझ में आया उनको ? प्रश्न नहीं, क्या समझ में आया ? फिर वह मेरे को भेजेंगे और उसके लिए एक-दो दिन लगेंगे। जब सारी इन्फॉर्मेशन आएगी, जब सब रिफ्लेक्शंस आएंगे मेरे पास तब उनको मैं सब के सब नहीं, कुछ रिफ्लेक्शंस होंगे जिनको मैं पढूंगा। वीडियो पर सब आप देख सकेंगे और फिर जब वह कंप्लीट हो जाएगा तो फिर दूसरी वीडियो पर जाएंगे। ऐसे करके दस वीडियो हैं और उनका आनंद लेना है और उससे अगर उनको समझ में आ गई बात तो मैं सच में कहता हूं कि लोगों की जिंदगी बदल गई है इस पीस एजुकेशन प्रोग्राम की वजह से।
मेरे को तो बहुत हर्ष है कि सभी लोग हिंदुस्तान के जो यह देखना चाहते हैं वह देख सकेंगे और बहुत जगह है — मॉरीशस है, साउथ अफ्रीका है कई जगह हैं जहां लोग देख रहे हैं, जहां-जहां हिंदी लोग बोलते हैं। तो जैसे मैंने लिस्ट उस दिन सुनाई थी लोगों को तो बहुत सारे लोग हैं और इसका मज़ा ले सकते हैं।
तो सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
प्रेम रावत जी:
सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
आज का दिन फिर प्रश्नों और उत्तरों का दिन है। तो आप लोगों ने प्रश्न भेजे हैं। कई बार मैं प्रश्न पढ़ता हूं फिर उनका उत्तर एक साथ ही दे देता हूं तो आप जब सुन रहे हैं तो हो सकता है कि आपका उत्तर उसी में हो जाए। पर कुछ ऐसे सवाल हैं जैसे यह है और यह आदित्य नारायण दुबे ने लिखा है, वेस्ट बंगाल से —"प्रेम रावत जी! मैं अभी जिज्ञासु हूँ और मैं भी अपनी जिंदगी का आनंद लेना चाहता हूँ। मैं अपने अशांत और विचलित मन को शांति देना चाहता हूँ। कृपया मेरी मदद करें।"
देखिए! (आपकी मदद करने के लिए ही तो हैं हम यहां मदद करेंगे जरूर करेंगे) — पर बात है समझने की क्योंकि जब हम किसी चीज को अच्छी तरीके से समझते नहीं हैं क्या होना है तो बहुत उल्टा-सीधा हो जाता है। अब मैं आपको उदाहरण देता हूं कि आप रोटी बनाना चाहते हैं, फुल्का और मैंने कई बार कहा है कि "मेरे को रोटी बनानी नहीं आती है" तो अभी मैं Rucsio में गया था तो वहां खाना बनाने वाला कोई नहीं था तो मेरे को ही खाना बनाना पड़ा तो मैंने बनाया, पर हिन्दुस्तानी खाना बनाया और मैंने फुल्का पहले कभी नहीं बनाया था पर इस बार परांठा जरूर बनाया। तो उसका एक तरीका है मतलब, पहले आटा लिया और आटे में पानी डाला, उसको गूँधा। अगर मैं आटे को तवे पर डाल दूं बिना गूंधे और तवे को गरम करूं और तवे से फिर आटा निकालूं, फिर उसमें पानी डालूं, फिर उसमें घी डालूं, फिर उसमें नमक डालूं और फिर उसको कोशिश करूं कि यह परांठा बन जाए तो परांठा तो नहीं बनेगा। उसका एक नियम है और उस नियम का अगर पालन किया जाए तब जाकर वह परांठा बनाएगा। ठीक इसी प्रकार से अगर आप भात बनाना चाहते हैं, तो चावल को धोइये, धोने के बाद उसको डालिए, फिर उसमें पानी डालिए फिर जब उसमें उबाला जाये फिर उसकी आंच धीमी करके उसको पकने दीजिये।
परंतु अगर आप उल्टा करें मतलब, पतीले को पहले गर्म कर लिया, फिर उसको थोड़ा नीचे कर लिया, फिर उसमें पानी डाला, फिर उसमें चावल डाल दिए, फिर उसको निकाल दिया, तो वह चावल कच्चे ही रहेंगे, पकेंगे नहीं। उसका भी एक नियम है, हर एक चीज का एक नियम है। अपने आप को समझने का एक नियम है, शांति का नियम है तो अगर आप अपने हृदय में अगर शांति का अनुभव करना चाहते हैं (तो जरा ध्यान दीजिए विशेष रूप से मैंने क्या कहा अभी) आप अपने हृदय में अगर शांति का अनुभव करना चाहते हैं तो आपको वह शांति का अनुभव हो सकता है। आप कहते हैं कि "मैं अपने अशांत और विचलित मन को शांति देना चाहता हूं।" मन आपकी शांति को समझेगा नहीं जिस शांति की मैं बात कर रहा हूं उसको वह समझेगा नहीं। मन के लिए, जहां मन की बात है मन — वह जो आपका यह प्रिंटर है, प्रिंटर, यह फोटो बना रहता है आपके लिए, आपके लिए कहता रहता है "यह ऐसा करो, यह ऐसा करो, वहां जाओ, ऐसा करो”, दुनिया भर में भगाता रहता है —
जल बिच कमल, कमल बिच कलियां, जा में भंवर लुभासी।
सो मन तिरलोक भयो सब, यती सती संन्यासी।।
इसमें सब के सब आ गए। और मन तो घूमता रहता है, घूमता रहता है, कभी यहां जाओ, कभी वहां जाओ, कभी यह करो, कभी वह करो और अच्छे-अच्छों को, अच्छे-अच्छों को पकड़ता है। बात ही मन की है तो मन का क्या स्वभाव है ? मन के क्या नियम हैं ? मन आपको कहेगा कि आपको क्या चाहिए! आप मन से नहीं कह सकते कि आपको यह चाहिए। मन आपसे कहेगा कि यह आपको चाहिए। इस बात का आप ख्याल रखिये। मन कहेगा कि "तुमको यह पेन चाहिए, तुमको यह पेन चाहिए, मन कहेगा कि तुमको यह फिल्म देखनी है" मन कहेगा, तुम नहीं कहोगे। मन कहेगा और मन इन्हीं चीजों में भागता रहता है कि "मेरे को यह करना है, मेरे को वह करना है, मेरे को उससे यह कहना है, मेरे को उससे यह कहना है — झंझट।" और दूसरी चीज, मन के जो रास्ते हैं वह अधिकांश रूप में आपको अशांति लाते हैं, आपको दुखी करते हैं तो जब वह पेन जिसके लिए मन ने कहा "तेरे को यह पेन चाहिए" जब आपको वह पेन नहीं मिलेगा तो आप दुखी होंगे, आप परेशान होंगे। दुनिया के साथ यही होता है।
दुनिया में कोई लड़का है, वह लड़की से प्यार करना चाहता है, लड़की है, लड़के से प्यार करना चाहती है। मन ने कहा "हां यह तेरे लिए ठीक रहेगा, यह ऐसा करो, ऐसा करो, ऐसा करो!" जब वह बात बनती नहीं है तो फिर बहुत गड़बड़ होती है। दुःख होता है, दर्द होता है। ऐसे ही मन घूमता रहता है मतलब, मन का काम है उसका चरित्र है "घूमना।" जैसे भजन में कहा कि —
पानी में मीन प्यासी मोहे सुन सुन आवे हासी जल बिच कमल, कमल बिच कलियां, जा में भंवर लुभासी। सो मन तिरलोक भयो सब
तीनों लोकों में घूमता रहता है। तीनों लोकों में घूमता रहता है। स्वर्गलोक आपको नहीं लगती है बात कि "स्वर्ग जाना है, स्वर्ग अच्छा होगा, स्वर्ग ऐसा होगा, स्वर्ग ऐसा होगा" — तीनों लोकों में भागता रहता है। पृथ्वीलोक में तो भागता ही है और पाताललोक में भी भागता है — "वहां का यह धन मिल जाए, वहां का यह सोना है, वहां का यह रखा हुआ है, वहां का यह रखा हुआ है, वहां से यह कर लेंगें, वहां से यह कर लेंगें!" परन्तु मन की एक और चीज है उसका एक और नियम है वह क्या है ? जब भी कोई चीज उसको मिल जाती है तो वह उससे तृप्त नहीं रहता है उससे फिर ऊब जाता है और आपको फिर प्रेरणा करता है कि आप किसी दूसरी चीज को ढूंढो। तो मन के लिए ऐसी कोई चीज नहीं है कि उसको कोई चीज मिल गई तो उसके लिए उतना ही अच्छा है, उतना ही ठीक है।
ना! उसके बाद वह फिर दूसरी चीज को खोजेगा, फिर तीसरी चीज को खोजेगा, फिर पांचवी चीज को खोजेगा। अगर आपको विश्वास नहीं है तो आप अपने जूतों को देख लीजिये। "नहीं! मेरे को ऐसे जूते चाहिए! फिर उनसे जब मन ऊब जाता है तो फिर दूसरे जूते चाहिए, ऐसे जूते चाहिए, मैंने यह देखा।" चश्मे देख लीजिये लोगों के पास — "धूप के चश्मे, कभी यह खरीदते हैं, कभी वह खरीदते हैं, कभी यहां जा रहे हैं, कभी यहां जा रहे हैं" तो यह मन का जो चरित्र है वह इस प्रकार है यह उसका कानून है कि उसको एक जगह कहीं टिकना नहीं है। घूमता रहता है, घूमता रहता है, भ्रमण करता रहता है, भ्रमण करता रहता है और उसका भ्रमण करना ही, मन का भ्रमण करना ही भ्रमित होना है। आदमी कहता है फिर मेरे को यह क्यों नहीं मिल रहा है, मेरे को वह क्यों नहीं मिल रहा है, मेरे को यह क्यों नहीं संभव हुआ, यह क्यों नहीं संभव हुआ। फिर —
सो परत्र दुख पावहि सिर धुनि धुनि पछिताइ।
कालहि कर्महि ईस्वरहि मिथ्या दोष लगाइ।।
जब उनके प्लान — प्लान बन गया, प्रिंटर ने बनाई फोटो और मन ने कहा "हां! ऐसी फोटो चाहिए तेरे को” और फिर उसके पीछे लग गया और जब वह फोटो साक्षात् नहीं हुई, उस फोटो का साक्षात्कार नहीं हुआ तो फिर दुख आता है और फिर आदमी पछताता है कि मेरे साथ ऐसा क्यों नहीं हो रहा है ? क्या नहीं हो रहा है वह फोटो जो बनाई हुई है वह साक्षात्कार उसका क्यों नहीं हो रहा है ?
यह समझने की बात है। तो जिस शांति की बात आप कर रहे हैं उसका अनुभव आपके हृदय में होगा, क्योंकि हृदय का स्वभाव, हृदय का नियम बिल्कुल मन से अलग है, मन से अलग है। हृदय संतुष्ट होता है, हृदय भ्रमण नहीं कर रहा है, वह तीनों लोकों में नहीं जा रहा है। वह एक जगह है। उसको मालूम है कि वह एक जगह कौन-सी है जो उसको अच्छी लगती है। वह एक जगह है वही जगह जहां वह वह शक्ति जो आपको यह जीवन दे रही है, जहां इस स्वांस का आना-जाना हो रहा है वहां हृदय की लगन है और शांति भी वहीं है।
तो सोचिये और मैंने जो कहा है इसके बारे में सोचिये। शांति आपको चाहिए, वह आपको मिल जायेगी, वह आपको मिल जायेगी। पर वह हृदय में मिलेगी। मन इसके पीछे जितना आप लगेंगे इसको जितना आप खाना खिलाएंगे यह उतना ही दूर भागेगा आपसे। इसको खाना खिलाना थोड़ा कम कीजिए और कैसे होगा ? जब आप अपनी जिंदगी के अंदर उन छोटी-छोटी चीजों का आनंद लेने लगेंगे जो आपके सामने हैं और उससे फिर इस मन को इतनी दूर भागने की जरूरत नहीं पड़ती है।
मां-बाप हैं — मां-बाप अच्छा भी बोलते हैं, बुरा भी बोलते हैं और कई-कई नौजवानों के लिए तो जनरेशन गैप है। मां-बाप के सोचने का तरीका अलग है, बच्चे का सोचने का तरीका अलग है और दोनों की आपस में मिलती नहीं है। देखिये! अब यह किसी ने सवाल भी पूछा है कि "मेरी और मेरे पिता की, मेरी मां की और मेरे परिवार की हमसे मिलती नहीं है।"
देखो! मां-बाप का आदर करो। जब उनके पास जाओ, वह तुम्हारे दुश्मन नहीं है वह सिर्फ यह चाहते हैं कि कम से कम तुम उनकी बात सुनो, उनसे बहस मत करो उनकी बात सुनो। जैसे कोई जाता है बाहर कई लोग हैं हमने देखा कि कोई बंदर को खाना खिलाने के लिए जाता है, कोई कबूतरों को खाना खिलाने के लिए जाता है, तो ले जाता है हाथ में खाना और चचचचच....करके ऐसे खाना देता है। हमने देखा है जो गौ पालते हैं, भैंस पालते हैं तो कई बार भैंस को बुलाना हुआ तो चचचचच....ऐसे करते हैं तो हाथ में भैंस देखती है और आ जाती है, खा लेती है।
ठीक इसी प्रकार जब माँ-बाप से मिलने जाओ तो यह समझ कर जाओ कि सुनना है — सुनाना नहीं है, सुनना है। वह जो कहें सुनो उनकी बात। उनके पास एक्सपीरियंस है जो तुम्हारे पास नहीं है और एक्सपीरियंस की वैल्यू क्या है ? एक्सपीरियंस की वैल्यू बहुत ज्यादा है। जो तुम्हारे पास है, तुम्हारे पास हो सकता है कि नई-नई इन्फॉर्मेशन हो पर उनके पास एक्सपीरियंस है। यह नई जो इन्फॉर्मेशन है यह गलत हो सकती है पर एक्सपीरियंस जो है बहुत कम गलत होता है। यह मैं नहीं कह रहा कि गलत नहीं हो सकता है बहुत कम गलत होता है। पर चक्कर यह है कि मां-बाप तुम्हारा भला चाहते हैं, तुमसे प्यार करते हैं, तुम्हारा भला चाहते हैं, तुमसे दुश्मनी नहीं चाहते, परंतु अगर तुम उनकी बात नहीं सुनोगे तो वह गड़बड़ जरूर होगी। तो जब जाओ उनके पास तो उनकी बात सुनो। इसका यह मतलब नहीं है कि तुमको वह सारी चीजें करनी है जो वह कह रहे हैं। परन्तु कम से कम उनकी बात सुनो। भगवान ने दो कान दिए हैं — एक से सुनो, एक से बाहर। अगर वह भी अपनी रट में लगे हुए हैं क्योंकि माँ-बाप को भी समझना चाहिए कि बच्चे को पढ़ाया है, लिखाया है, खिलाया है, बड़ा हुआ है यह और जैसा उनके साथ हुआ था जब वह जवान हुए तो वह भी किसी की नहीं सुनते थे। यह आप भी कर रहे हो, इसीलिए यह हो रहा है।
इस बात को समझो यह परिवार में — मैं तो हमेशा कहता हूं कि आज यह जो देशों की समस्या है वह क्या समस्या है ? क्योंकि उनके लीडर जो हैं वह उनके जो नागरिक हैं उनकी बात नहीं सुन रहे हैं। तो लीडर उनकी नहीं सुन रहे हैं, पति पत्नी की बात नहीं सुन रहा है — दो मिनट की बात है, दो मिनट की बात है। बस सुनना है, सुनना है, सुनाना नहीं है, सुनना है! सुनाने के लिए सब तैयार हैं, सुनने के लिए कोई तैयार नहीं है। सुनाना और सुनना ज्यादा अंतर नहीं है, सुनना और सुनाना, परन्तु दिन और रात का अंतर है और इसमें कितनी रिलेशनशिपस, इसने कितने संबंध तोड़ दिए हैं क्योंकि कोई चला गया सुनाने के लिए पर सुनने के लिए तैयार नहीं था। कम से कम इस लॉकडाउन में अगर आपको प्रैक्टिस करनी है तो आप सुनने की प्रैक्टिस कीजिए। सुनाने की नहीं, सुनने की प्रैक्टिस कीजिए। आपका सारा माहौल बदल जाएगा, आपका सारा माहौल बदल जाएगा।
परिवार क्या चाहता है ? इस दुनिया में परिवार की बात छोड़िए, इस दुनिया में सब यही चाहते हैं कि कोई उनकी दो बात सुन ले, कोई उनकी दो बात सुन ले। सुन लो! तुम्हारा क्या जाता है ? सुनाने की क्या बात है सुन लो! सुन लो! क्या कहेगा कोई या तुम उससे सहमत होगे या उससे सहमत नहीं होगे। तो वह बात जो वह तुमको सुनाने जा रहा है वह तो उसके दिमाग में पहले से ही थी और तुमको कोई फर्क़ नहीं पड़ा। अब अगर तुम सुन लोगे तो तुमको क्या फर्क़ पड़ जाएगा! एक कान से सुना, दूसरे कान से निकाल दिया। कोई बात नहीं। परन्तु यही छोटी-छोटी चीजें हम नहीं करते हैं एक दूसरे के लिए। लीडर नागरिकों की बात नहीं सुनते हैं, पति-पत्नी की बात नहीं सुन रहा है और पत्नी पति की बात नहीं सुन रही है और बच्चे मां-बाप की बात नहीं सुन रहे हैं और मां-बाप बच्चों की बात नहीं सुन रहे हैं। सुनो! थोड़ा-सा ध्यान दो! उससे बहुत कुछ परिवर्तन हो सकता है, उससे बहुत कुछ बदल सकता है तुम्हारे संसार के अंदर। तो इस पर जरा ध्यान दीजिए!
दूसरा है रोशनी रस्तोगी, बेगूसराय, बिहार से — "प्रेम रावत जी! स्वाभिमान और अभिमान में क्या अंतर है। हम यह कैसे मालूम करें कि हम स्वाभिमानी हैं या अभिमानी हैं ?"
अभिमानी इसका मतलब आप बढ़े-चढ़े अपने आपको महसूस करते हैं वह है अभिमान, जो सत्य नहीं होता है, जो सत्य नहीं होता है। स्वाभिमान हुआ आपकी यह ताकत कि आप अपने पैरों पर खड़े हो सकें यह अच्छी बात है कि आप अपने पैरों पर खड़े हो सकें और किसी के ऊपर आपको रीलाइ नहीं करना पड़े आपको किसी के ऊपर यह नहीं करना पड़े कि इनके बजाय — जबतक यह हैं तब तक मैं हूं, जबतक यह नहीं हैं तब फिर मैं भी नहीं हो सकता। ना ऐसा नहीं! स्वाभिमान मनुष्य के लिए जरूरी है पर अभिमान जो मन करता है कि "तू यह है, तैनें यह कर लिया, तैनें यह कर लिया, तैनें यह कर लिया, तैनें यह कर लिया, तैनें यह कर लिया!" याद रखना एक दिन आएगा, एक दिन आएगा कानों में डालेंगे रुई, नाक में डालेंगे रुई, अगर आँख बंद नहीं हैं तो आँख बंद कर देंगे और खाट पर नहीं रखेंगे, नीचे कर देंगे और काहे पर ले जाएंगे ? चार बांस की लकड़ियों पर ले जाएंगे और ऊपर चादर डालेंगे और सारे के सारे शरीर को गंगा में डालकर के आग के ऊपर चढ़ाकर के और आग लगा देंगे। यह सबके साथ होना, यह सबके साथ होना है। उस बात को मद्देनजर रखते हुए कितना अभिमान करना है उतना कर लो। क्योंकि एक दिन तुमको यहां नहीं रहना है, एक दिन तुम्हारे साथ ऐसा हाल किया जाएगा कि तुम सोच भी नहीं सकते हो। यह तुम्हारे साथ होना है। अब यह तुम पर निर्भर है। जो गलत अभिमान है, वह गलत अभिमान है।
मेरा प्रश्न है और यह लिखते हैं अमित कुमार, हरदोई, उत्तर प्रदेश से (अच्छे प्रश्न हैं) मेरा प्रश्न है कि — "सत्य क्यों मारा जाता है और असत्य हमेशा बलवान बनकर क्यों रह जाता है ?"
उल्टा! उल्टी बात है! सत्य कभी नहीं मारा जा सकता है। अगर सत्य मारा जा सकता तो बहुत पहले ही मर जाता। पर आज भी सत्य है और सत्य रहेगा, सत्य था, सत्य है, सत्य रहेगा! असत्य वह बलवान लगता है, पर है नहीं। असत्य बलवान लगता है, पर है नहीं। सत्य बलवान है और उसको बलवान लगने की कोई जरूरत नहीं है। पर सत्य, सत्य है और असत्य, सत्य को छुपाने की कोशिश करता है। पर सत्य, असत्य से छुप नहीं सकता। और वह सत्य ही आखिर में बाहर आता है, तो यही बात हुई।
अब भगवान राम के रामायण को देख लीजिए या महाभारत को देख लीजिए तो क्या हुआ ? अंत में सत्य जो था वही बाहर आया। हमारी जिंदगी के अंदर भी जिस दिन हमको यह समझ में आ जाता है कि हम कौन हैं। जिस दिन हम यह समझ पाते हैं कि हमारे अंदर क्या है तो यही होता है कि जो हमारा सत्य है वह जीत गया और जो असत्य है वह हार गया।
अपने आपको जानना और इस जिंदगी को सचेत बनकर रहना और इस हृदय को आभार से भरना यह सत्य है। यह सत्य है! और जब यह होगा तो कम से कम आपकी जिंदगी के अंदर जो असत्य है वह हार जाएगा और सत्य जीत जाएगा। इसी के लिए हम यह सबकुछ करते हैं जो कर रहे हैं।
मेरे को आशा है कि आप सब ठीक-ठाक रहेंगे, कुशल-मंगल रहेंगे और सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
प्रेम रावत जी:
सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
आज फिर दिन है प्रश्नों का, उत्तरों का और आप लोगों ने प्रश्न भेजे हैं तो मैं उनको पढ़कर सुनाता हूं आपको।
पहला प्रश्न है — प्रेम रावत जी आपने अपने संदेश में कहा था कि "गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं कि अर्जुन तू युद्ध भी कर और मेरा सुमिरन भी कर!” मेरा सवाल है कि युद्ध बाहर करना है और सुमिरन अंदर तो यह दोनों बाहर और अंदर की चीज एक साथ कैसे संभव है ?"
यह तो बिलकुल संभव है। क्योंकि एक चीज अंदर हो रही है, एक चीज बाहर हो रही है। बाहर वाली अंदर को डिस्टर्ब नहीं करेगी और अंदर वाली बाहर की चीज को डिस्टर्ब नहीं करेगी तो बड़े आराम से बाहर भी रहकर के आप जो कुछ है इसके अंदर जैसे, कमल का फूल होता है ठीक उसी प्रकार गंदे पानी में रहते हुए भी वह स्वच्छ है। तो उसकी जो जड़ है वह तो गंदे पानी में है, परन्तु जो कमल है वह एकदम स्वच्छ है।
मेरा एक प्रश्न है यह प्रियंका लिखती हैं। “भगवान जहाँ वास करते हैं, वह स्थान तो सर्वोत्तम होता है (बिलकुल होता है), परंतु लाचार प्राणी के हृदय में अविनाशी भगवान के बैठे रहते हुए भी वह क्यों दूसरों का मोहताज़ बनकर कष्ट उठाता है ?”
देखिये! बात यह है कि जो आपके अंदर है, वह एकदम सुंदर है, स्वच्छ है, सुंदर है, उत्तम है, अति उत्तम है। परंतु यह चक्कर क्या है! यह सारा चक्कर — जिस चक्कर से मनुष्य दुखी होता है वह चक्कर क्या है ? अगर एक चीज है और उस चीज को जैसे कि किसी की एक कमीज है और कमीज को आपको दिखाते हैं तो कमीज जब आप देखते हैं तो उस कमीज के ऊपर दाग लगे हुए हैं, उस पर मैल है। तो जब आप उस कमीज को देखते हैं तो आपको वह कमीज लगती है कि वह कमीज अच्छी नहीं है। आप पसंद करने के लिए, कमीज पसंद करने के लिए कहीं जाते हैं, तो आपको वह कमीज अच्छी नहीं लगती। तो आप मेरे को यह बताइए कि वह कमीज अच्छी है या नहीं है ? देखने में बहुत भद्दी लगती है, क्योंकि उस पर दाग हैं। तो सच्चाई क्या है इसमें ? कमीज अच्छी है या नहीं है ? कमीज बुरी है या अच्छी है ? कमीज तो कमीज है। जो दाग लगे हुए हैं उसके ऊपर वह दाग धोए जा सकते हैं। धोने का मतलब वह दाग हटाए जा सकते हैं और जब वह दाग हट जाएंगे तब आप देखेंगे कि वह कमीज असली में क्या है! जब आप किसी भी चीज को धोते हैं तो धोने का मतलब क्या है ? धोने का मतलब तो यही है कि दाग को निकालना।
गुरु धोबी सिस कापडा, साबुन सिरजनहार।
सुरति सिला पर धोइए निकसै मेल अपार ।।
इसी प्रकार जो मैल है, मैल लगा हुआ है, कष्ट, दुख जो मनुष्य को होता है वह उसकी भ्रम से होता है। भ्रमित होता है जब मनुष्य तो वह जो स्पष्ट है, जो सही है, जो साफ है उसको नहीं देख पाता है। जब यह मैल हटता है तब उसको असली में क्या है, तब उसको दिखाई देता है।
जैसे हीरा — अब आपने हीरा तो देखा होगा। हीरे में चमक होती है परंतु अगर हीरे को उससे पहले कि उसको काटा जाए उससे पहले कि वह — जैसे निकाला जाता है उसको उस स्टेज पर अगर आप हीरे को देखें तो बिल्कुल कांच के टुकड़े के माफ़िक लगता है। ऐसा लगता है कि इसमें कोई चमक नहीं है और चमकता भी नहीं है। परंतु जब उसको काटा जाता है, जब उसकी पॉलिश की जाती है तो वह चमकने लगता है। पॉलिश की जरूरत है! आपको किस चीज की जरूरत है ? जो भ्रमित, जो चीजें आ गई हैं, क्योंकि — जैसे एक कहानी है मैं सुनाता हूं। एक आदमी था, वह विद्यार्थी था। सारा कॉलेज- वॉलेज पढ़ लिया उसने, सबकुछ हो गया उसका।
एक दिन वह जा रहा था अपने घर वापिस तो उसने कहा कि अब जब घर जाऊंगा तो नौकरी ढूंढूंगा, नौकरी करनी पड़ेगी, संसार के अंदर आगे चलूंगा मैं, तो क्या-क्या मेरे को करना चाहिए! तो उसने देखा कि एक बहुत वृद्ध आदमी कुबड़ा, क्योंकि कंधों पर एक बहुत बड़ा बोझ डाला हुआ है लकड़ियों का और गर्दन को नीचे किये हुए चल रहा है। तो वह उस वृद्ध आदमी के पास गया, उसने कहा कि "बाबा! मैं पढ़-लिखकर के आया हूं और अब घर की तरफ जा रहा हूं। अब आगे मैं नौकरी करूंगा, परिवार चलाऊंगा, यह सबकुछ होगा तो आपने तो यह सबकुछ किया हुआ है आप मेरे को बताइए कि मैं कैसे अच्छी तरीके से यह सबकुछ कर पाऊं ?" तो जो वृद्ध आदमी था वह रुका और जो उसके कंधों पर बोझ था, उसने उस बोझ को नीचे रखा और जैसे ही बोझ को नीचे रखा वह सीधा खड़ा हो गया, सीधा खड़ा हो गया। फिर उसने उस बोझ को उठाया और अपने कंधों पर रखा और फिर कुबड़े की तरह चलता रहा।
यही बात होती है कि यह जो भार उठा रखा है अपने कंधों पर बिना बात के, बिना बात के यह किस काम आएगा आपके ? कुछ काम नहीं आएगा। यह अभी भी आपको परेशान कर रहा है और यह परेशान करता रहेगा। जबतक आप उस बोझ को अपने कंधों से नीचे रखने के लिए नहीं सोचेंगे, उसकी तरकीब नहीं जानेंगे तब तक यह बोझ बना रहेगा और यही होता है कि लोग उस चीज का फायदा नहीं उठा पाते हैं। क्योंकि मन की कामनाएं हैं, यह जो प्रिंटर है यह फोटो बनाता रहता है — "देखने में ऐसा होना चाहिए, देखने में ऐसा होना चाहिए, देखने में ऐसा होना चाहिए, देखने में ऐसा होना चाहिए," और जब वैसी जिंदगी में चीजें मिलती नहीं हैं क्योंकि इस प्रिंटर को कौन देखेगा ? उसके अनुकूल कौन बनाएगा ? तो जब नहीं मिलती हैं तो फिर आदमी परेशान होता है कि मेरी इच्छा पूरी नहीं हुईं, मेरा यह नहीं पूरा हुआ।
भगवान के पास क्यों जाते हैं, भगवान के पास क्यों जाते हैं ? इस प्रिंटर ने बनायी फोटो और भगवान से मांगने के लिए जाते हैं कि “इस फोटो को सच्चा कर दे, इस फोटो को सच्चा कर दे!” यह नहीं कि "इस फोटो बनाने वाले को बंद कर दे, इसको बंद कर दे जरा।" परन्तु यह है — “नहीं! यह बनाता रहे और भगवान तू बैठ करके इसको, सबको साकार करता रहे। इसको सच्चा बनाता रहे।” यह हालत है दुनिया की।
"हिंदी में पीस एजुकेशन प्रोग्राम भारत में कब तक ला रहे हैं ?"
उस पर काम हो रहा है और भारत में आएगा। भारत में तो है, परन्तु उसको इस ब्रॉडकास्ट नहीं, ब्रॉडकास्ट के बजाय पीस एजुकेशन प्रोग्राम सबके लिए देंगे।
"मैं शांति का अनुभव करता हूं पर मैंने जो शांति का अनुभव किया है क्या यही वास्तविक शांति है या मुझे गहराई में जाना है। शांति के अनुभव की क्या कोई मापदंड है ?" — यह नरेश कुमार शाह, विराटनगर, नेपाल से पूछ रहे हैं।
तो सबसे बड़ी बात तो यह है कि शांति, शांति है। इसका कोई मापदंड नहीं है। आम के स्वाद का क्या मापदंड है ? बताशे के स्वाद का क्या मापदंड है ? कोई मापदंड नहीं है। ठीक इसी प्रकार शांति है। जब आप शांति को इन चीजों से निकाल दोगे, "कितनी लंबी होनी चाहिए, कितनी चौड़ी होनी चाहिए, शांति की परिभाषा कैसी होनी चाहिए!" जब यह शक़ आप निकाल देंगे अपने जीवन में, अपने मन से, अपने विचारों से कि शांति कैसी होनी चाहिए तब आपको असली शांति का अनुभव हो सकेगा। क्योंकि परिभाषाओं के अनुकूल शांति नहीं होनी चाहिए, इन परिभाषाओं के अनुकूल शांति नहीं होनी चाहिए। शांति होनी चाहिए, शांति जो आपको चाहिए, जो मेरे को चाहिए वह शांति है, जो असली शांति है, जो हमारे हृदय के अंदर है, जो अभी भी हमारे अंदर है। चाहे उसका हम अनुभव न करें तब भी वह हमारे अंदर है।
"मेरा प्रश्न है कि पाप क्या है ?"
पाप कुछ नहीं है असली चीज क्या है कि जो मनुष्य अपने जीवन में अच्छा काम करे वह अच्छा है। पुण्य करे वह अच्छा है। पाप क्या है जब वह पुण्य नहीं कर रहा है तो अपने-आप पाप कर रहा है। एक चीज होती है 'जो है' और एक चीज होती है 'जो नहीं है।' रोशनी होती है, अंधेरा रोशनी का अभाव है। अंधेरा अपने में कुछ नहीं है जो है, रोशनी है। पर रोशनी ना होने की वजह से अंधेरा है। अँधेरे को आप कुछ कर नहीं सकते, क्योंकि वह कुछ है नहीं। अंधेरे को आप बाहर नहीं फेंक सकते, अंधेरे को आप डब्बे में नहीं डाल सकते। अंधेरे को आप यहां से वहां नहीं ले जा सकते। रोशनी को आप ले जा सकते हैं। रोशनी को हटाएंगे, अंधेरा अपने-आप हो जाएगा। रोशनी को लाएंगे, अंधेरा अपने-आप हट जाएगा। यह है पाप, यह है पुण्य।
"अगर शांति का अनुभव होने के बाद मनुष्य रास्ता भटक जाए तो वह वापिस रास्ते पर कैसे आ सकता है ? कृपया मार्गदर्शन कीजिए!" — रेखा देवी, सिवान, बिहार से।
देखिये! सबसे पहली चीज होनी चाहिए "चाहत।" क्या आप वापिस आना चाहते हैं या नहीं ? सबसे पहली चीज यह है, क्योंकि यह नौका है, यह नौका है और आपकी जिंदगी एक नौका है। नौके में आप ही बैठे हैं और यह भवसागर के पार जा रही है। मैं सभी लोगों से यही कहता हूँ "कूदो मत, कूदो मत, मत कूदो, तुमको कष्ट होगा, झंझट होगा!" पर लोग हैं जो उस बात को अनसुनी कर देते हैं और कूद जाते हैं। जब कूद जाते है तो फिर वह कहते हैं "अजी! हमको अंदर बुला लो। हमको नौका पर वापिस बुला लो।"
मैं कहता हूँ उनसे एक बात कि "तुम नौका से कूदे क्यों?" क्योंकि वह खुजली जो तुमको इस नौका से कूदने पर जिसने मजबूर कर दिया अगर वह खुजली हटाई नहीं तो मैं अगर तुमको नौका में ला भी दूं तो फिर तुम कूदोगे दोबारा, बिल्कुल कूदोगे। क्योंकि वह जो खुजली है, भ्रमित होने की वह तुमने नहीं खोयी। "आओ वापिस नौका पर आओ" इसमें कोई हर्ज नहीं है, इसमें कोई गलत बात नहीं है। परंतु वह चीज जो तुमको, जिसने मजबूर कर दिया तुमको नौका से कूदने में उस चीज को हटाओ। उसके लिए तुमको थोड़ा सा पेशेंस की जरूरत है, उसके लिए सब्र होना चाहिए, उसके लिए समझ होनी चाहिए, उसके लिए स्पष्टता होनी चाहिए, उसके लिए समझ होनी चाहिए। अगर यह चीजें — यह शक्तियां आप में ही हैं, यह सारी शक्तियां आप में हैं, पर अगर इनको इस्तेमाल नहीं करेंगे आप तो फिर यह आगे आपकी मदद कैसे करेंगे! यह शक्तियां हैं आपकी — यह चीजें हर एक व्यक्ति के जीवन के अंदर यह शक्तियां हैं। शांति एक आपकी शक्ति है, इसको इस्तेमाल करना है इस संसार के अंदर। यह चीजें हैं जो आपके अंदर, जो असली चीज है 'प्रकाश' वह आपकी शक्ति है। वह अंधेरा जो इस दुनिया के अंदर है उसको दूर कर सकती है। यह समझने की बात है।
तो यह मैं कहूंगा — जब मैं कहता हूँ लोगों से कि "भाई! मत कूदो!" तो लोग कूदते क्यों हैं ? अब कूद भी गए तो फिर मैं कहता हूँ कि आना चाहते हो तो आओ, परन्तु उस चीज को मत साथ लाओ जो तुमको दोबारा मजबूर करे नौका से कूदने के लिए।
एक सबसे बड़ी बात कि इस जीवन को सफल बनाओ! इस जीवन में जो यह मौका है इसका पूरा-पूरा आनंद लो। कल फिर प्रश्नों के उत्तर देने के लिए मैं आऊंगा और सभी लोगों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
प्रेम रावत जी:
सभी श्रोताओं को मेरा नमस्कार!
आज के दिन मैं एक बात कहना चाहता हूं। मैं रात को सोच रहा था तो बात है कि —
बाजी लांऊ राम से पल्टू दोऊ विधि राम।
हारुं तो मैं राम की, जीतूं तो राम।।
अब यह सुनने में बहुत सुन्दर है। इसमें भक्ति है, इसमें भाव है और सबसे बड़ी चीज इसमें यह है कि यही एक चीज है — अपने आप को जानना, अपने अंदर स्थित जो परमात्मा है उसको जानना कि “दोनों तरफ से ही अगर बाजी लगाई जाए हारो तो भी जीतोगे और जीते तो जीतोगे” तो यही एक ऐसी चीज है। क्योंकि इस संसार के अंदर अगर बाजी लगाओगे — जीते तो जीते, हारे तो हारे। यही कारण है क्योंकि ऐसी बाजी हम हमेशा लगाते रहते हैं जो हमारे लिए दुःख का कारण बनता है। मां-बाप पहले, जो बाप है वह बाप नहीं होता है, आदमी है। कर रहा है जो कुछ भी कर रहा है, वह पढ़ रहा है, लिख रहा है। उम्र आती है उसकी शादी की। उसको किसी से प्रेम होता है या उसकी इच्छा होती है किसी से या उसके मां-बाप कोई अरेंज करते हैं उसके लिए शादी। लड़का-लड़की होते हैं, वह दोनों आते हैं शादी होती है। शादी होती है तो बच्चा होता है मां-बाप बनते हैं। अब वह सारा सबकुछ वह खुशी का समय है। शादी हुई यह खुशी होती है, रिश्तेदार सब आते हैं, पकवान बनते हैं, यह होता है, वह होता है, क्या-क्या नहीं होता है। और एक किस्म से वह पति और वह पत्नी एक बाजी लगा रहे हैं कि सबकुछ बढ़िया होगा, सब कुछ बढ़िया होगा।
पहले ही रामायण को अगर देखें तो सब चीजें इसी तरीके से इनका प्रबंध हो रहा है कि सबकुछ बढ़िया होगा, परंतु हुआ नहीं। क्योंकि बाजी संसार के साथ लग रही थी और यही होता है। तो आशाएं हैं कि बच्चा जब बड़ा होगा तो मेरा राजा बेटा है, मेरा यह है, मेरा वह है। जब राजा बेटा बड़ा होता है तो वही अपने माँ-बाप को कटघरे में भेज देता है। यह हमेशा होता रहता है यह पहली बार तो होगा नहीं। कितने ही लोग हैं हमको यह करना है, हमको वह करना है, हमको यह चाहिए, हमको वह चाहिए, अब ऐसा नहीं है, ऐसा नहीं है, ऐसा नहीं है, ऐसा नहीं है। क्योंकि हम बाजी लगा रहे हैं और आशा कर रहे हैं कि “हमको संसार यह देगा, हमको संसार यह देगा, हमको संसार यह देगा।”
परंतु यह बाजी जब हम इस दुनिया के साथ लगाएंगे, इस माया के साथ लगाएंगे तो इसमें हार होगी और जीत होगी। जीत बहुत कम होगी, हार बहुत ज्यादा होगी और जिनकी जीत हो गई है वह फिर बाजी लगाएंगे और एक ना एक दिन उनको हारना है। परंतु जो अपने स्थित उस आनंद के साथ, उस शक्ति के साथ जो तुम्हारे अंदर है जिसके लिए कहा है —
घट में है सूझे नहीं, लानत ऐसी जिन्द।
तुलसी या संसार को, भयो मोतियाबिंद।।
वह जो चीज तुम्हारे अंदर है जिसके बारे में मैंने पहले भी कहा कि जो भजन है कबीरदास जी का —
पानी में मीन प्यासी मोहे सुन सुन आवे हासी
है घट में पर दूर बतावें, दूर की बात निरासी
उसी से निराशा होती है लोगों को क्यों ? जो तुम्हारे अंदर है जब उससे तुम बाजी लगाओगे तो अगर तुम हार गए तब उसके और तुम अगर जीत गए तब भी तुम उसके। तो कितनी सुंदर बात है यह कि हम अपने जीवन में एक ऐसी चीज से बाजी लगाएं जिससे हम हार ही नहीं सकते। एक ऐसी चीज हमारे लिए आशा का स्रोत बने जो हमको कभी ठुकराएगा नहीं जिस स्रोत से, जिस आशा से हमको कभी निराश नहीं होना पड़ेगा, हमको कभी निराशा नहीं मिलेगी।
संसार में सारे काम करते हैं निराशा मिलती है, निराशा मिलती है, निराशा मिलती है। लोग हमको चिट्ठी में लिखते हैं, प्रश्नों के बारे में लिखते है, यह सारी चीजें लिखते हैं लोग कि "जी मैं खुश नहीं हूं, मेरे साथ यह हो रहा है, मैं दुखी हूँ" —क्योंकि तुमने अपनी आशा लगाई है इस संसार के अंदर, इस माया के अंदर और आशा का स्रोत तुम्हारे लिए अगर यह माया है, यह दुनिया है तो तुमको निराशा जरूर मिलेगी। और जिसने यह स्रोत समझा है कि जो हमारे अंदर स्थित आनंद है, जो हमारे अंदर स्थित परमात्मा है वह हमारा स्रोत होगा अगर आशाओं के लिए तो हमको कभी निराश नहीं होना पड़ेगा। चाहे कुछ भी हो हमारी जिंदगी के अंदर वह हमेशा हमारे साथ है। दुख में सुख में वही एक ऐसी चीज है जो दुःख में हमारे को सुख दे सकती है। और वही एक ऐसी चीज है जो सुख में और सुख को बढ़ा सकती है।
क्योंकि मनुष्य जब जान जाता है कि वह कौन है, क्या है, एक ढांचा है, बाहर से यह मिट्टी है, जैसे मटका होता है वैसे यह मिट्टी है। और जैसे मटका एक दिन टूटता है और मिट्टी के साथ वापिस जाकर मिल जाता है। इस मिट्टी को भी इस मिट्टी के साथ मिलना है। यह यही मिट्टी है इसी मिट्टी से यह बना है और इसी मिट्टी में जाकर इसको मिलना है। परन्तु तुम यह मिट्टी हो या वह चीज हो जो इस मिटटी के अंदर है और जबतक वह चीज इस मिट्टी के अंदर है यह मिट्टी बोल सकती है, यह मिट्टी सुन सकती है, यह मिट्टी हंस सकती है, यह मिट्टी सोच सकती है, यह मिट्टी चाह सकती है, यह मिट्टी आशा कर सकती है, यह सारी चीजें उस चीज के बदौलत है जो तुम्हारे अंदर है। जिसको जब तक तुम जानोगे नहीं कि वह चीज क्या है — मन से कल्पना करने की बात नहीं कर रहा हूं, मैं जानने की बात कह रहा हूं, पहचानने की बात कह रहा हूं, कल्पना की बात नहीं कर रहा हूं मैं। यह नहीं है कि तुम बैठे-बैठे कल्पना अपनी बनाओ कि — मर्द लोग हैं उनके लिए क्या है —"हां! "अगर मेरी बीवी ऐसी हो या मेरी गर्लफ्रेंड ऐसी हो या ऐसी लड़की मेरे को मिल जाए।" और लड़कियां है — "ऐसा पति मेरे को मिले, मेरा पति ऐसा होना चाहिए, मेरा पति ऐसा होना चाहिए, मेरा पति ऐसा होना चाहिए” और कल्पना की फोटो बन रही है, कल्पना की फोटो बन रही है और फिर उस कल्पना को साक्षात् करने के लिए सब लगे हुए हैं।
कहां जा रहे हैं ? मंदिर जा रहे हैं, गुरुओं के पास जा रहे हैं — क्यों जा रहे हैं ताकि उनकी वह जो कल्पना है वह साक्षात् हो जाए, यह चक्कर है। और गुरु हैं ऐसे जो कह रहे हैं उस गौ को दो रोटी खिला दे, उस कुत्ते को तीन रोटी खिला दे, उस सुअर को यह दे दे, उस पेड़ पर यह बाँध दे उससे तेरी जो कल्पना है वह साक्षात् हो जाएगी — यह चक्कर क्या है! यह चक्कर है सारे मन का। जैसे कबीरदास जी ने कहा —
जल बिच कमल, कमल बिच कलियां, जा में भंवर लुभासी।
सो मन तिरलोक भयो सब, यती सती संन्यासी।।
सब आ गए इसमें, सब आ गए इसमें। और यही लोग करते हैं। जाते हैं — क्या चाहिए ? "यह चाहिए, यह चाहिए, यह चाहिए, यह चाहिए, यह चाहिए!" अब मेरा विश्वास नहीं हो रहा। किसी दिन शॉपिंग मॉल में जाओ और बैठ जाओ कहीं, जाकर बैठ जाओ। फिर देखो हर एक व्यक्ति जो आ रहा है, कहाँ उसका ध्यान है ? उसका ध्यान अपनी बीवी पर नहीं है, उसका ध्यान अपने बच्चे पर भी नहीं है, उसका ध्यान है "उस दुकान में क्या बिक रहा है, उस दुकान में क्या बिक रहा है, उस दुकान में क्या बिक रहा है, उस दुकान में क्या बिक रहा है ?" सब ऐसे ही भ्रमण कर रहे हैं और कबीरदास जी ने शॉपिंग मॉल होने से पहले ही कह दिया है कि ऐसे ही तुम्हारा मन सब जगह भागता रहता है और यही तुम करते रहते हो “भागते रहते हो, भागते रहते हो, भागते रहते हो, भागते रहते हो” — पैरों से नहीं अपने मन से। और कल्पना की फोटो बनाते रहते हो और उसके पीछे, उसका साक्षात्कार करने के लिए तुम कुछ भी करने के लिए तैयार हो। मेरे पास यह होना चाहिए, मेरे पास यह होना चाहिए और उसके लिए तुम यह ट्रेनिंग लेने के लिए तैयार हो, यह ट्रेनिंग लेने के लिए तैयार हो, यह करने के लिए तैयार हो, यह घूस देने के लिए तैयार हो — हमको तो मालूम भी नहीं था लोग इतनी-इतनी घूस देते हैं ताकि छोटी-सी नौकरी मिल जाये। यह सब होता रहता है। और दुनिया इसमें लगी हुई है। पर जिसने वह —
बाजी लांऊ राम से पल्टू दोऊ विधि राम।
हारुं तो मैं राम की, जीतूं तो राम।।
अगर मैं हारा तब भी राम का और जीता तब भी राम का। क्योंकि राम ही को जीत लिया मैंने। कौन-सा राम ? फिर वही वाली बात आती है, जब राम की बात आती है तो वही बात आती है जो तुम्हारी कल्पना के राम हैं और मैं किस राम की बात कर रहा हूं ? मैं उस राम की बात कर रहा हूं जो तुम्हारे घट के अंदर बैठा हुआ है —
एक राम दशरथ का बेटा। एक राम घट-घट में बैठा।।
एक राम का जगत पसारा। एक राम जगत से न्यारा।
एक राम जो जगत से न्यारा है — उसको तुम पकड़ोगे कैसे ? उसको देखोगे कैसे ? उसको जानोगे कैसे ? वह तो न्यारा है, वह तो अलग है। एक राम दशरथ का बेटा — दशरथ के जो बेटा राम थे, वह तो अब नहीं हैं। उनको तो देवी-देवताओं ने कहा कि "अब आइये" — एक तो वह कहानी है जो मैं सुनाता हूं — हनुमान वाली और दूसरा है कि वह गए और सरजू नदी में उन्होंने गोता लगाया फिर वापिस आये नहीं। तो वह तो गए। पर हां, एक राम घट-घट में बैठा और जो तुम्हारे घट में बैठा है उसको तुम जान सकते हो, उसको तुम पहचान सकते हो, वह तुम्हारे आशाओं का स्रोत होना चाहिए। जिस दिन हो जाएगा तुम्हारे आशाओं का स्रोत तो तुमको यह कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी कि मैंने इस आदमी पर विश्वास किया और इसने मेरे साथ विश्वासघात किया। क्योंकि जो हृदय की बात है, वह हृदय की बात है। उसमें विश्वासघात नहीं होता है। जब उसको जानने की बात है जो तुम्हारे घट में बैठा हुआ है उसमें विश्वासघात नहीं होता है। वह साक्षात् चीज है। जो शांति की ओर चलता है उसके साथ विश्वासघात नहीं क्योंकि वह शांति को जानता है, समझता है, जानना चाहता है, उस पर विश्वास करना चाहता है।
यह तो हम पर निर्भर करता है कि हम क्या चाहते हैं अपने जीवन के अंदर। निराशा किसी को अच्छी नहीं लगती, दुःख किसी को अच्छा नहीं लगता, परंतु दुःख से बचने के लिए सब चाहते हैं। निराशा से बचने के लिए सब लोग निकलते हैं। सब चाहते हैं कि निराशा ना हो। परंतु जबतक तुम ऐसा स्रोत नहीं ढूंढोगे जिस स्रोत से सिर्फ आशा ही आशा निकले तब तक कैसे संभव होगा कि तुम्हारे जीवन के अंदर वह दुख नहीं होगा, वह निराशा नहीं होगी, क्योंकि तुमको मालूम ही नहीं है।
अब जैसे लोग कुआं खोदते हैं और कुआं खोदते हैं तो वह सूख जाता है, जब सूख जाता है तो फिर दिक्कत होती है। फिर जब बारिश का मौसम आता है तो थोड़ा-बहुत पानी उसमें पड़ता है तब भरता है। भाई! यही बात है एक ऐसा कुआं चाहिए जो हमेशा गर्मियों में भी, सर्दियों में भी, बारिश में भी और सूखे समय में भी हमेशा उसमें पानी रहे, ऐसी क्या चीज है ? वह तुम्हारे अंदर है इसीलिए तुम भाग्यशाली हो, इसीलिए तुम भाग्यशाली हो, क्योंकि वह चीज तुम्हारे अंदर है तुमको प्यासा मरने की जरूरत नहीं है क्योंकि तुम्हारे अंदर एक ऐसा कुआं है जिसमें हमेशा पानी रहता है।
अचरज देखा भारी साधू, अचरज देखा भारी रे।।
बिन भूमी के महल खड़ा है, तामे ज्योत उजारि रे।
अँधा देख देख सुख पावे, बात बतावे सारी रे।।
कैसी चीज! ऐसी चीज तुम्हारे अंदर है।
पंगु पुरुष चढ़े बिन सीढ़ी, पीवे भर भर झारी रे।।
बिन बजाए निशदिन बाजें, घंटा शंख नगारी रे।
बहरा सुन सुन मस्त होत है, तन की खबर बिसारी रे।।
ऐसी चीज तुम्हारे अंदर है। तुम्हारे अंदर है। परन्तु जबतक तुम उस चीज को अपने जीवन का, इन चीजों का स्रोत नहीं बनाओगे और दुनिया की तरफ देखोगे तो कोई बाजी हारोगे, कोई बाजी जीतोगे और जीत भी गए फिर बाजी लगाओगे फिर हारोगे। तो यही सारा चक्कर दुनिया के साथ हमेशा चलता रहता है। जबतक हम अपने आप को जानेंगे नहीं, पहचानेंगे नहीं, जबतक हम अपने जीवन को सचेत रूप में जीयेंगे नहीं, जबतक हमारा हृदय आभार से भरा नहीं रहेगा तब तक कुछ ना कुछ, कुछ ना कुछ, कुछ ना कुछ इस संसार के अंदर होता रहेगा।
अब यह जो समय आया इस समय में इसकी कल्पना लोगों ने नहीं की थी, क्योंकि इतना सबकुछ भरा हुआ था लोगों के अंदर, इतना अभिमान भरा हुआ था कि "जी! अब तो हम ऐसे समय में रहते हैं कि देखो हमारे पास यह है, हमारे पास वह है, हमारे पास जी पी एस है, हमारे पास सैटेलाइट्स हैं, हमारे पास जहाज हैं, हमारे पास हवाईजहाज हैं, हमारे पास यह है, हमारे पास वह है। इसने सारी सिवलिज़ैशन को, सारी सिवलिज़ैशन को एकदम ब्रेक लगा दिया है। अब यह अच्छी बात है, बुरी बात है!
देखिये! मैं बैठकर खुश नहीं हो रहा हूं कि यह कोरोना वायरस हो रही है। क्योंकि मेरा तो बहुत बड़ा प्रोग्राम बना हुआ था कि "यहां जायेंगें, वहां जायेंगे।" अब यह समय आ रहा है, "मेरे को साउथ अफ्रीका में होना था" और लोग मेरा इंतजार कर रहे हैं वहां। परन्तु उनको मालूम है कि मैं नहीं आ सकता। क्योंकि न तो मैं उड़ सकता हूं — आने नहीं देंगे मेरे को अंदर और कोरोना वायरस की वजह से प्रोग्राम तो हो नहीं सकते। मेरे को कोई खुशी नहीं है, परंतु जब सोचता हूं इसके बारे में कि हम लोग किस दिशा में जा रहे थे और कितनी तेज उस दिशा में जा रहे थे और इस कोरोना वायरस ने एकदम ब्रेक लगा दिया कि "नहीं! तुम कहीं नहीं जा रहे हो!"
देखो क्या है! तुम अपने आप को देखो क्या है! छोटी-सी बात लोगों को कहा कि "तुम अपने घर में रहो, अपने घर में रहो" — लोग नहीं रह सकते। "अपने साथ रहो" — लोग नहीं रह सकते। "शांतिपूर्वक रहो" — लोग नहीं रह सकते। यह हाल है इस दुनिया का, यह हाल है इस दुनिया का। यह हो रहा है इस दुनिया के अंदर। किसी से कहो “थोड़े दिन शांति से बैठ जाओ!” नहीं, बैठ नहीं सकते — यह चाहिए, वह चाहिए, परेशान हो रहे हैं। परेशान हो रहे हैं क्यों ? अपने साथ नहीं रह सकते ना। अपने आपको नहीं जाना। अब अपने साथ कोई रहने के लिए बोलता है तो उनको दुख लगता है, उनको अजीब लगता है। अजीब लगता है! अजीब!! अरे! किसी गैर के साथ रहने में अजीब नहीं लगता है, पर अपने साथ रहने में अजीब लगता है। तो कहीं ना कहीं तो उलटी गंगा बह रही है यह — कहीं ना कहीं तो यह उलटी गंगा बह रही है। जैसा उसको बहना चाहिए वैसे नहीं बह रही है।
तो यह समझने की बातें हैं। और सबसे बड़ी बात तो यही है कि जो चीज जिसकी आपको तलाश है वह आपके अंदर है। कोरोना वायरस हो या नहीं हो अपने जीवन में उस चीज को पहचानो। और सबसे बड़ी बात कि वही चीज आपके आशाओं का स्रोत बने तो आपके जीवन के अंदर धन्य-धन्य होगा। वही आपके शांति का स्रोत बने तो सचमुच में आपके जीवन के अंदर शांति होगी। और वही आपके आनंद का स्रोत बनें तो आपका सारा जीवन आनंद से भर जाए।
सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!